Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 23-06-1979; Gatha: 104.

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३१
प्रवचनः ता. २३–६–७९.
‘प्रवचनसार’ गाथा-१०३. एकसो बे गाथामां ए आवी ग्युं केः दरेक पदार्थ - आ आत्मा
छे, परमाणु (छे.) (धर्मास्तिकाय, आकाश, काळ) एक - एक द्रव्य, एनी पर्याय एनो जन्मक्षण
होय त्यारे उत्पन्न थाय. समजाणुं कांई? झीणी वात जरीक तत्त्वनी! परमाणु के आत्मा, एनी पर्याय
उत्पन्न थवानो काळ होय, ते जन्मक्षण छे. त्यारे (पर्याय उत्पन्न) थाय. आघी-पाछी न थाय ने
बीजाथी, फेरववाथी न थाय. आहा...! दरेक आत्मा ने दरेक परमाणु, तेना वर्तमान समयनी अवस्था,
उत्पन्न थाय (तेनी) जन्मक्षण (ते) छे. आहा...हा! एवो निर्णय करे के आत्मामां पण जे समये, जे
अवस्था, जे समये थवानी छे ते थाय. ‘तो एनुं तात्पर्य द्रव्यस्वभाव पर एनी नजर जाय.’
आहा... हा! आवी वात झीणी! धरम बहु झीणी चीज छे! अंदर वस्तु छे आत्मा, देहथी भिन्न आ
तो (शरीर) माटी छे. हाडकां-चामडां छे. अंदर चैतन्य छे ‘एनी पण जे समय जे अवस्था थवानी
ते तेनो जन्मक्षण, ई थवानी ते थई’
हवे, एमां धरम केम, शुं करवो? केः थवानी जे छे ई थाय छे,
ई द्रव्यनी पर्याय छे.’
एने पर्यायमां थाय छे तेनी नजर छोडी, अने नजर ‘द्रव्यनी करवी.’
आहा... हा... हा!
‘कारण के ई तो थाशे ज, ए समये पर्याय थाशे’ जे समये जे पर्याय थवानी ते
थाशे (ज.) , एटले ई थाशे एना अवसरे, एवो निर्णय करनारे पर्यायने द्रव्य उपर वाळवी जोईशे.
वस्तु भगवान चिदानंद प्रभु! ‘एना तरफ पर्याय वळे तो एने आनंदनो अंश–स्वाद आवे’ अरे...
रे... रे! एनो अतीन्द्रियस्वरूप छे आत्मा! अतीन्द्रिय आनंद (स्वरूप छे आत्मा!) आ इन्द्रियना
विषयमां (आनंद) माने छे कल्पना (करीने) ई तो अज्ञानी, मूढजीव परमां-स्त्रीमां-शरीरमां-
इन्द्रियोना विषयोमां सुख छे, सुख माने तो मिथ्याभ्रम छे.
(कहे छे केः) आत्मामां अतीन्द्रिय आनंद छे अने ए जेने जोतो होय, तो एणे वर्तमान
पर्याय थाय ते थाय ज छे ए समये, एना उपरथी नजर छोडीने (हठावीने) ध्रुव जे भगवान
आत्मा-उत्पाद-व्यय ने ध्रौव्य (स्वरूप आत्मा) जे समये उत्पन्न थई, पर्याय उत्पन्न, पूर्वनी थई
व्यय, ध्रौव्यपणे रह्युं! ई त्रणे पर्यायो द्रव्यने आश्रये (छे.) द्रव्यमां छे एटले द्रव्य उपर द्रष्ठि करवी.
आहा...! आवी वातुं! नवराश न मळे, दुनियाना पाप आडे आखो दि’ आवुं तत्त्व, क्यां एने
सांभळे? ई एकसो ने बे (गाथामां) कह्युं. एकेक द्रव्यना उत्पाद-व्यय ने ध्रौव्य, अने त्रणे द्रव्यना छे.
एमां द्रव्य छे. एम १०२ (गाथामां) कह्युं. समजाणुं कांई?
(कहे छे) हवे, एकसो त्रण (गाथामां) (आ विषय विचारे छे.) “हवे द्रव्यनां उत्पाद–व्यय–
ध्रौव्य अनेक द्रव्यपर्याय द्वारा विचारे छेः– (शुं कहे छे) परमाणु आदि जाजा (परमाणु) भेगां थईने
पर्याय थाय, के आत्मा असमानजातीय छे. (पहेलां कह्युं ई) समानजातीय

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३२
(द्रव्यपर्याय) परमाणु छे. जुओ! आ आंगळी छे. ए समानजातीय (द्रव्यपर्याय छे) रजकणे-रदकण
(नो स्कंध) अने ई समानजातीयनी जे आ पर्याय थाय, ई एनाथी तेने काळे थाय. आत्मा तेने
करी शके नहीं. आहा...! आत्मा आंगळी हलावी (चलावी) शके नहीं. तत्त्व एवुं छे बापु! आहा...
हा! वीतराग सर्वज्ञदेव! परमेश्वर त्रिलोकनाथ! एमणे जे जोयुं एवुं कह्युं, अने तेने अंतर आहा...
हा... हा! (ग्रहण कर.) ओलामां - ‘नियमसार’ मां एक शब्द छे. टीका, भाई! ए करी (छे)
ने...! ‘पद्मप्रभमलधारिदेवे’! ‘सकल समूहना हितकारी’ माटे आ कह्युं छे, एवा शब्दो छे. सकल
भव्यजीव हों? लायक (जीव), अभव्य नहीं. आहा... हा! (वळी) सकल भव्यजीवोना समूह एना
हितकारी माटे आ शास्त्र छे. नियमसारमां छे. नियमसार छे ने...? (छे अहींयां) नियमसार?
जुओ! शास्त्रमां! न्यां (ए गाथामां) एवा शब्दो छे.
(श्रोताः) दिगंबरो तो कहे छे एमां एम क्यां
कह्युं छे एमां तो कह्युं छे’ ए मारा माटे कर्युं छे’ (उत्तरः) ए पोते कह्युं छे. कुंदकुंदाचार्ये तो (मूळ)
पाठ कर्यो, आ तो टीकाकार आम कहे छे के आ माटे आम कहेवामां आवे छे. (जुओ, शास्त्रमां) ए
आव्युं, आव्युं हवे पहेली गाथामां पाछळ छे. टीकामां छे
‘सकळ भव्यसमूहने हितकर ‘नियमसार’
नामनुं परमागम हुं कहुं छुं’ सकळ भव्यसमूहने हितकर आ ‘नियमसार’ शास्त्र छे. आहा... हा!
पहेली ज गाथामां छे हों? टीका (मां) कळशमां नहीं. ‘आवुं होय त्यारे आवे ने ई पर्याय.’
(अहींयां कहे छेः “हवे द्रव्यनां उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य अनेक द्रव्य पर्याय द्वारा विचारे छेः–
पाडुब्भवदि य अण्णो पज्जाओ पज्जओ वयदि अण्णो।
दव्वस्स तं पि दव्वं णेव पणट्ठं ण उप्पण्णं।। १०३।।
नीचे हरिगीतः-
ऊपजे दरवनो अन्य पर्यय, अन्य को विणसे वळी,
पण द्रव्य तो नथी नष्ट के उत्पन्न द्रव्य नथी तहीं. १०३.
टीकाः– जरी झीणी वात पडशे अजाण्या माणसने! अभ्यास न मळे लोकोने तत्त्वनो! आहा...
हा! आ तो वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा, एणे जोयेलुं तत्त्व ई प्रमाणे समजे तो ई आगळ - आगळ
वधी शके. जे रीते छे ए रीते न समजे तो, तो मिथ्याद्रष्टि थाय ई तो. वस्तुनी स्थिति जे रीते छे ई
रीते न माने तो मिथ्याद्रष्टि थाय. (हवे टीका एकसो त्रण (गाथानी) टीका.
(अहींयां कहे छे केः) “अहीं विश्वमां एक (द्वि–अणुक) ” बे परमाणु ओ समानजातीय,

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३३
छे? बे परमाणु आ. झीणुं पोईन्ट. आ (आंगळी.) कांई एक नथी. (अनेक छे) आना कटका
करतां - करतां - करतां - छेल्लो रहे, एने परमाणु कहे (छे.) ई बे अणु समानजातीय छे
ने...? “समानजातीय अनेक द्रव्यपर्याय विनष्ट थाय छे.” आहा... हा! ए द्वि-अणुक
समानजातीयनी पहेली जे पर्याय हती ते विनष्ट थाय छे. “अने बीजो चतुरणुक (समानजातीय
अनेक द्रव्यपर्याय) उत्पन्न थाय छे.”
शुं कीधुं? बे परमाणुमां जे पर्याय छे पहेली एनो नाश थाय छे
अने त्रण-त्रीजो परमाणु भेगो थाय छे ने त्रण परमाणु पर्याय उत्पन्न थाय छे. बे नो व्यय थ्यो,
त्रणने उत्पत्ति थई. आहा...! आंही सिद्ध करवुं बहुं झीणुं छे! आंही भाषा, ए आत्मा करी शके एम
नहीं त्रण काळमां! आ हाथ हलावी शके नहीं त्रणकाळमां! आहा...! ई परमाणु बे छे ई त्रणमां
जयारे आव्यो, समानजातीय (तो) बे नो विनष्ट थईने त्रणनी उत्पत्ति थई (स्कंधमां) अने एने
कारणे ए (उत्पत्ति) थई आत्माथी नहीं. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “समानजातीय अनेक द्रव्यपर्याय उत्पन्न थाय छे परंतु ते त्रण के चार
पुद्गलो (परमाणुओ) तो अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे (–ध्रुव छे).” शुं कीधुं? आहा... हा!
त्रणनो (समूह) हतो ने...! त्रि-अणुक हतो ने पहेलो. त्रि-अणुक (एटले) त्रणपरमाणु अने अनेक
द्रव्यपर्याय थतां बीजो चतुरणुक, त्रण परमाणुओनी पर्याय तो हती, हवे ई चोथा परमाणुमां जयारे
जोडाणुं त्यारे चार परमाणुनी पर्याय नवी थई. ए उत्पन्न थई, त्रण परमाणुनी पर्याय विनष्ट थई.
परमाणुपणे कायम रह्या. आहा... हा! आखो दि’ कहे छे अमे करीए - करीए! छीए. धंधा उपर
बेठो दुकाने ने आ करीए, ना पाडे छे भगवान! आहा... हा... हा... हा! दुकाने बेठो होय ते अमे
करीए, आनुं आम वेंचीए ने (नोकरोने कहीए) आनुं आम करो ने आनुं आम करो. भाषानो
धणी थाय, शरीरनो क्रियानो धणी थाय. पैसा आपे एनो धणी थाय, पैसा ल्ये एनो धणी थाय.
अहींयां ना पाडे छे. आहा... हा!
(श्रोताः) त्यागीओ तो ना ज पाडे ने..! (उत्तरः) वस्तुनुं स्वरूप
एम छे. त्यागी एटले शुं? वस्तुनुं स्वरूप एम छे.
के जे त्रण परमाणुओ छे. अने ई त्रण परमाणुओनी ते पर्याय तो होय ज छे. हवे ई चार
परमाणु जयारे थाय त्यारे (स्कंधनी उत्पत्ति) चारनी थाय एटले थाय एटले त्रणनो विनष्ट थाय.
परमाणु तो कायम रहे. आम तो अनंत (परमाणुओ) मां एम छे. दाखलो त्रण (चार परमाणुनो)
आप्यो छे. बाकी आ अनंत (परमाणुओनी वात) छे. हवे आ अनंता परमाणु छे (शरीरना)
एनी पर्याय उत्पन्नरूप छे. हवे एनी पर्यायमां जयारे हीणी बीजी पर्याय थाय त्यारे ई बीजी
पर्यायपणे उत्पन्न छे अने पहेली पर्यायपणे व्यय छे. पण आम (हाथ के शरीर) हालवानी पर्यायनो
कर्ता परमाणुं छे. आत्मा एने हलावे हाथ (के शरीरने) एम छे नहीं. आखो दि’ त्यारे शुं करे आ
(लोको)? अभिमान करे आखो दि’.
‘हुं करुं हुं करुं ए ज अज्ञान छे (शकटनो भार जेम श्वान
ताणे’) . आहा... हा! आ आंगळी, एक छे, ई पर्याय छे (परमाणुनी) आम थई (बे य

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३४
पहोळी) तो एनी पर्याय थई बे यनी एक. एक (पहेली) पर्यायनो विनष्ट थ्यो, अने बे (बीजी)
पर्यायनी उत्पत्ति थई, ए परमाणु छे तो ई उत्पन्न थ्युं ने विनष्ट थ्युं छे. आत्माथी नहीं. आहा...
हा! आ तो दाखलो आप्यो (एनो) त्रण परमाणु समानजातीय अनेक द्रव्यपर्याय विनष्ट थाय छे
अने बीजो चार (अणुक) समानजातीयनो उत्पन्न थाय छे. परंतु ते त्रण के चार पुद्गलो -
परमाणुओ तो अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे. परमाणु कांई नाश थता नथी, एनी पर्यायनो
विनष्ट के उत्पाद थाय छे. आहा... हा! आवुं झीणुं! (वीतरागी तत्त्व.)
(कहे छे) एक शेरडीनो कटको छे शेरडीनो कटको. हवे कहे छे के ई शेरडीनी जे पर्याय छे,
एने आ जयारे घसाणी (पीलाणी) त्यारे रस (नीकळीने) पर्याय बदलाई गई. नवी पर्याय थई.
ई पर्याय-परमाणुनी शेरडीथी थई छे, संचाथी नहीं. आवुं कोण माने? आहा... हा! शुं कह्युं?
शेरडीनो रस जे नीकळ्‌यो, ए संचाथी (चिचोडाथी) नीकळ्‌यो नथी. ए रसनी पर्याय, ए शेरडीना
सांठापणे हती, ए पर्यायनो व्यय थई अने रसनी पर्याय उत्पन्न थई, परमाणु तो एम कायम
(ध्रुव) रह्या. (श्रोताः) चिचोडामां नाखे ने शेरडीने... (उत्तरः) कोण चिचोडामां नाखे! आहा...
हा... हा! आवुं काम छे बापु! आकरुं काम छे (गळे ऊतारवुं) वीतराग सर्वज्ञदेव! अत्यारे बधुं
गोटा हाल्या, परनी दया पाळोने...! पण परना परमाणुओ छे एनां - शरीरनां, अने एनो आत्मा
छे (जोडे) ई असमानजातीय (द्रव्यपर्याय छे) आमां आवशे. हवे ई तो जे समये एनुं मनुष्यनुं
शरीर छे. अने (जो्रडे) आत्मा. हवे ई समये एनो जे पर्याय - असमानजातीय छे - तेथी ई
पर्याय छे हवे बीजे समये, पहेली पर्यायनो व्यय थाय, ई पर्याय उत्पन्न थाय, अने परमाणुने आत्मा
तो कायम रहे. आहा... हा! आवी वात छे. आ तो सिद्धांत छे. पछी एमांथी कूंचीमां (कूंचीरूप)
दाखला आपे! (श्रोताः) धरम करवा माटे आ बधुं समजवुं पडे? (उत्तरः) पण धरम सत्य करवो
छे के नहीं. तो वस्तुनी सत्यता कई रीते छे! सत्यथी धरम थाय के असत्यथी धरम थाय? तो
वस्तुनुं स्वरूप सत्य कई रीते छे? एनी खबरुं विना, एने धरम थाय क्यांथी? आहा...! परनुं
अभिमान करे ने में आ कर्युं ने आम कर्युं आखो दि’ सवारथी सांज धंधामां मशगूल, बायडी-
छोकरांवने राजी राखवामां मशगूल! आहा... हा! अने खावा वखते आहार ने पाणी (स्वादिष्ट)
आव्या होय ते आम तृप्ति... तृप्ति... कहे (ओडकार खाईने) ओ... ओ... ओ... आहा... हा!
(कहे छे) (श्रोताः) (आजे) जाणे सोनानो सूरज ऊग्यो...! (उत्तरः) धूळे य नथी सोनानो
सूरज. पापनो सूरज (ऊग्यो छे) त्यां. में कर्युं... में कर्युं (कर्तापणानुं झेर!) आहा... हा! (कर्ताभाव
टाळवो) आकरुं काम भाई! वीतराग परमेश्वर! त्रिलोकनाथ बिराजे छे महाविदेहक्षेत्रमां!
एमनी आ
वाणी छे.’ आहा...हा...हा! आकरी वात छे.
(कहे छे केः) आ चश्मा छे ने...! (जुओ,) चश्मानी जे पर्याय छे जुओ. आ (दांडी
हलवानी)

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३प
ए पर्यायनो व्यय थईने आम (दांडी) थाय छे. ई परमाणुने लईने थाय छे, हाथने लईने नहीं.
अने एनी पहेली पर्यायनो व्यय थ्यो बीजी पर्यायनी उत्पत्ति थई, परमाणु द्रव्य तरीके कायम रह्यां.
आहा... हा... हा! आवी वातुं हवे! ओली तो दया पाळो... व्रत करो... अपवास करो... बस ई
(वातुं) हाले! (आत्मा) दया पाळी शकतो नथी ने दया पाळो (कहेवुं) ई वात जूठी छे - खोटी छे.
परद्रव्यनी पर्याय, ए पण आत्मा करी शकतो नथी. आहा... हा... हा! व्रतने तपना परिणाम होय तो
ए शुभराग छे. ए कांई धरम नथी. ए शुभरागेय ते काळे थाय, तेनी जन्मक्षण छे. अने पूर्वनी
पर्यायनो व्यय थाय, द्रव्य-गुण कायम रहे. आवो जे निर्णय करे, एनी द्रष्टि, द्रव्य उपर जाय. द्रव्य
उपर जतां शुभभावनो व्यय थई अने समकितनी पर्याय उत्पन्न थाय. आत्मा एम ने एम रहे
आखो (पूर्ण.) आहा...हा...हा! आवो मारग छे! आहा...!
(अहींयां कहे छे केः) “तेम बधाय समानजातीय द्रव्यपर्यायो.” जोयुं? ओलुं- (परमाणुनुं
तो द्रष्टांत आप्युं. त्रण परमाणु ने चार परमाणुनुं द्रष्टांत आप्युं “तेम बधाय समानजातीय
द्रव्यपर्यायो.”
आ शरीरना, पुस्तकना, लाकडीना बहारना (बधा परमाणु पदार्थोना) आहा... हा!
बधा परमाणुओ - पुद्गलो. छे? (पाठमां) “द्रव्यपर्यायो विनष्ट थाय छे.” द्रव्योनी-पदार्थोनी
वर्तमान अवस्था छे ई नाश थाय छे. अने पछी बीजी अवस्था “उत्पन्न थाय छे” परंतु
समानजाति द्रव्यो तो अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे (–ध्रुव छेः)
आहा...हा...हा! परमाणु त्रणने
चारनो दाखलो आपी, (एमां कह्युं के) त्रण परमाणुनो पिंड (जे) चार परमाणु पिंडरूपे थ्यो तो ए
त्रण परमाणुनी पर्यायनो व्यय थ्योने चार परमाणुनी पिंडनी पर्यायरूपे उत्पन्न थ्यो अने परमाणुओ
तो ध्रुव रह्या. एम बधा द्रव्योनुं लई लेवुं (समजी लेवुं) कहे छे. समानजातीय बधा परमाणु (नी
वस्तुस्थिति ए ज छे.) आहा... हा! गजब वात छे!!
(कहे छे केः) आ थांभली छे ल्यो! थांभली छे ने...! एनी वर्तमान पर्याय देखाय छे, ए
घणा परमाणु पिंडनी पर्याय (छे.) ए पर्याय बदले छे. अने पछी नवी अवस्था एमां थाय छे. अने
परमाणु कायम रहे छे. ए (थांभली) कडियाए कर्युंने करी त्यां, रामजीभाईए ध्यान राख्युं माटे
(सरखुं) कर्युं एम नथी आहा... हा! वजुभाई! वजुभाईए ध्यान कर्युं (राख्युं) ल्यो ने...! (पण
एम नथी.) आहा... हा!
(श्रोताः) प्रमुखने तो ध्यान राखवुं ज पडे ने...! (उत्तरः) प्रमुख तरीके
ने...! आहा... हा! शुं प्रभुनी वाणी!! आहा... हा!
(कहे छेः) जेम त्रण परमाणुने चार परमाणुनी वात करी. के त्रण परमाणु एकला हता एनी
पर्याय अने चोथाने एनी पर्याय थई. (तेमां) त्रणनी पर्याय विनष्ट थई, चोथानी पर्याय नवी
उत्पन्न थई ने परमाणुं एमने एम रह्या. एम आ जगतना जेटला पदार्थो (छे.) आ जड-एक
परमाणुथी मांडीने अनंत परमाणुना आ स्कंध (जेवा के) पुस्तकना, आंगळीना, हाथना, जीभना,

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३६
दाळ-भात रोटली (ना) कटकाना, समानजातीय पार्ययो छे. दाळ-भात, रोटली छे (भोजनमां)
सामे, रोटलीपणे घणां परमाणुओ समानजातीय (द्रव्यपर्याय) छे. हवे ए रोटलीनुं बटकुं थयुं. तो
(आखी रोटलीनी) पर्यायनो व्यय थयो, नवी बटकानी (कटकानी) पर्याय उत्पन्न थई, परमाणु
कायम रह्या. ई कोने लईने बटकुं कर्युं, एने (हाथ ने दांत) ने लईने नहीं, पुद्गलने लईने ई
(बटकानी पर्याय थई छे.) आ... रे! आवी वातुं! वाणियाने नवराश न मळे ने आवी वातुं एने
(समजवी) झीणी! आहा... हा!
(श्रोताः) गरज हशे ते आवशे समजवा...! (उत्तरः) जेने गरज
हशे ई आवशे, वात साची. आवी वात क्यां (छे.)? आहा... हा... हा!
(कहे छे केः) आ कपडुं छे. जुओ! आम छे ने... अत्यारे अवस्था आवी छे. ई पछी आम
थाय. एमां पहेली अव्स्थानो व्यय थाय, बीजी (नवी) अवस्था उत्पन्न थाय, अने (कपडांना)
परमाणु कायम रहे. आंगळीथी ए वस्त्र आम ऊंचुं थ्युं एम नहीं. (श्रोताः) आंगळीथी नहीं पण
एनी मददथी...! (उत्तरः) आंगळीथी नहीं, पण ए (कपडांना) अनंत परमाणु (नी पर्यायपणे
(पोताथी) ऊंचा थया. आहा... हा! आम छे भगवान! शुं आ तो वातुं! जगतथी जुदी छे!
तीर्थंकरदेव! त्रिलोकनाथ, जिनेश्वरदेव! जेणे एकसमयमां त्रण काळ, त्रण लोक जोयां, ए प्रभुनी
वाणीमां आ (वस्तुस्वरूप) आव्युं!
आहा... हा! जेम त्रण परमाणुनी पर्यायनो व्यय, चार (परमाणुपर्याय) नो उत्पाद ने
परमाणुपणुं कायम (रहे छे.) एम अनंता परमाणुओनो ए कोथळो - शुं कहेवाय. आ? कागळ,
लाकडी, आ नाक, जीभ ए अनंतपरमाणुनी पर्याय छे ई समानजातीय (छे.) सरखी छे ने...
बधानी! छे ने परमाणु - परमाणुमां. ई जे समये उत्पन्न थई ए समये ते अनंत परमाणुनी पर्याय
छे. बीजे समये अनंत परमाणुमांथी केटलाक परमाणु नीकळी ग्या. तो ए परमाणुनी (नवी) पर्याय
उत्पन्न थईने परमाणु कायम रह्या. ई काढी नाख्या पोते (स्कंधमांथी) एम नहीं. रोटली (कोई)
खाय छे. अने कांकरी आवीने आम (कोळियो) काढी नाख्यो, ई आत्माथी थ्युं नथी एम कहे छे.
(श्रोताः) पण ई कांकरीवाळो कोळियो काढयोने एणे... (उत्तरः) काढया. (काढया!) ए...
मीठालालजी! आवी वातुं छे! गांडी-घेली जेवी वातुं छे! दुनिया पागल, कांईखबर न मळे
(वस्तुतत्त्वनी) क्यां जाईए छीए ने शुं करीए छीए! (भान न मळे कांई!) पांच हजारनो पगार
होय महिने पण भान न मळे कांई! आहा... हा!
अहींयां परमात्मा त्रण अणुने चार अणुनो दाखलो आपीने... आहा... हा! बधा द्रव्यो, कीधा
ने बधा! जोयुं? (बधानी वात करे छे.) “तेम बधाय समानजातीय.” बधामां जेटला अनंत छे
बधा (पुद्गलो) आहा... हा! “तेम बधाय समानजातीय द्रव्यपर्यायो विनष्ट थाय छे अने उत्पन्न
थाय छे परंतु समानजाति द्रव्यो तो अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे.”
अविनष्ट

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३७
(एटले) ए कंई परमाणु नाश थता नथी अने उत्पन्न थता नथी. ए ध्रुव रहे छे. बहु आकरी -
आकरी आहा... हा... हा!
(कहे छे केः) एकसो बे (गाथामां) जनमक्षण कीधी’ ती. जेटला अनंता द्रव्यो भगवाने
जोया, अनंता आत्माओ, अनंता परमाणु (ओ), दरेकने पर्यायनी उत्पत्ति तेनो जन्म काळ होय छे.
उत्पत्तिकाळ (होय) त्यारे थाय. हवे अहींयां एथी आगळ लई ग्या हवे (आ गाथामां) के भई!
समानजातीयना परमाणुओ त्रण छे ने चार छे. त्रणना चार थ्या (तो) त्रणनी पर्यायनो व्यय थ्यो
ने चारनी पर्याय उपजी मेळवीने भेगां थ्या माटे एम थ्युं एम नथी. आहा... हा! समजाणुं कांई?
देवीलालजी! आहा... हा!
(शुं कहे छे केः) सीसपेननी अणी काढे छे आम अणी. हवे आहा... हा... हा! ई सीसपेन छे
ई अनंत परमाणुनो स्कंध छे. हवे एनो जे पहेलो पर्याय छे, ए सीसपेन आखी हती. पछी छरी
पडीने... आम थाव मांडी (छोलावा लागी) त्यारे ए अनंत परमाणु जे (आखी सीसपेनना)
पर्यायपणे हती ते पर्यायनो नाश थ्यो, अने झीणी के सुंवाळी (अणी नीकळी) एनी पर्यायनो उत्पाद
थ्यो. ए परमाणुनी उत्पन्न (उत्पाद) थ्यो. छरीथी नहीं, बीजाथी (हाथथी के माणसथी) नहीं.
आहा... हा... हा! छरीथी आम छोलाणुं ए नहीं. छरी एने ए सीसपेनने अडती नथी. (श्रोताः)
(होनहार कीधुं तो अणी काढे तो छे...) (उत्तरः) काढी रह्या, कोण काढतुं’ तुं! ई वखते बापु! आ
तो तत्त्वदर्शीनो विषय छे! आ तो कोलेज! तत्त्वनी कोलेज छे! आहा... हा!
(कहे छे) भगवान त्रिलोकनाथ परमात्मा! त्रण परमाणु ने चार परमाणुनो दाखलो आपी,
“तेम बधाय समानजातीय” (सिद्धांत सिद्ध कर्यो छे.) आहा... हा! “द्रव्यपर्यायो विनष्ट थाय छे.”
घउंनो लोट छे लोट. एमां (ए) लोटमांथी शीरो थाय छे. (शीरो बन्यो तेथी) लोटनी पर्यायनो
विनष्ट थयो, शीरानी पर्याय उत्पन्न थई, अने परमाणु तो कायम (ध्रुव) रह्या. ई शीरो बाईए कर्यो
ई वात साची नथी. एम कहे छे.
(श्रोताः) आवुं शीखीने कोई रांधशे नहीं. (उत्तरः) रांधशे नहि
(एम नहीं) रांध्या विना रहेशे नहीं. आहा... हा! आवुं छे. (कहे छे) चूलामां (पहेली) थोडी अग्नि
होय, पछी लाकडां वधारे नाखे आम. त्यारे लाकडां वधारे नाख्यां तो ज पहेली (अग्नि) थोडानी हती
तेनो व्यय थ्यो, अने वधारे अग्नि उत्पन्न थ्यो. आम लाकडुं चूलामां जतां, एटले कोई माणसे लाकडुं
नाख्युं अंदर (चूलामां) अने अग्नि वधारे थ्यो, ए वातमां कांई माल नथी. (लाकडाना ने अग्निना
परमाणु स्वतंत्र छे.) आहा... हा! आवुं छे. अहींयां तो (कह्युं छे) “बधाय समानजातीय
द्रव्यपर्यायो”
त्रणेय काळना ने बधाय (त्रणे लोकना) ओलो तो - (त्रण परमाणु ने चार
परमाणुनो) दाखलो आप्यो’ तो. (पण सिद्धांत तो बधाय समानजातीय द्रव्यपर्यायोने लागु पडे छे.)
आहा... हा! आवी (वस्तु) स्थिति हजी सांभळवा मळे नहीं एने हवे जावुं क्यां? आ तो

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३८
ज्यां होय त्यां अमे करीए ने आनुं आ कर्युंने आनुं आ कर्युं... पुस्तक में बनाव्यांने... मकान
(मंदिर) अमे बनाव्युने... प्रभु! ना पाडे छे एनी, भाई! ई परमाणुनी जे पहेली पर्याय हती पछी
बीजी घणां परमाणु मळीने बीजी पर्याय थई अने परमाणु कायम रह्या! ते कांई एमां कर्युं छे, एम
छे नहीं. आहा... हा! (श्रोताः) शुभभाव तो कर्योने एणे? (उत्तरः) राग कर्यो, ई तो राग कर्यो.
पूर्व पर्यायमां राग बीजो हतो, एनो व्यय थ्यो अने आनो (शुभरागनो) उत्पाद थ्यो, ने आत्मा
एनो ए रह्यो. आहा... हा! वाणियाना वेपारमां भारे हाकोटा, आखो दी’ वेपार ते माथाकूट. हवे
आ (भगवान) कहे के वेपार करी शकाय नहीं. ए दुकानने थडे बेसे, आ तमारे शुं? लोखंड (नो
वेपारी) चीमनभाईने लोखंड... लोखंड आ पूरजा बनावे लोखंडना. एक वार पगलां करवा लई
ग्या’ ता. कळशो द्यो मा’ राजने! के मारे माथामां! ई लोढाना कळशा उत्पन्न थ्या ई पहेली पर्याय
लोढानी हती, पछी आ कळशानी थई, ई एने कारणे थई छे. कारीगरना कारणे नहीं, संचाने कारणे
नहीं. ए...! गुलाबचंदजी! वात तो सादी छे. आहा... हा!
(कहे छे) आ हाथ हलवानी अवस्था थई, आ अवस्था थई ते जडनी छे. आ तो. ‘बधाय
समानजातीय’ कीधाने...? पहेला त्रण के चार परमाणुनो दाखलो आप्यो (पण) आ (हाथना) बधा
समानजातीय छे. ई समानजातीय (परमाणुनी) पर्याय पहेलां आम छे ने पछी आम थाय (हाथ
वांको वळे ने सीधो थाय) ए परमाणु कायम रहीने आनो नाश थ्यो ने आनो उत्पाद थ्यो. पण ई
(पर्याय वांका वळवानी ने सीधा थवानी) कोने लईने? ए परमाणुने लईने थ्यो छे (हाथ एम,
एम) अंदर आत्मा छे माटे एने लईने थ्यो, ई वातमां माल (नथी), एकेय दोकडो साचो नथी.
(ई वातमां.) हवे आवुं तत्त्वज्ञान! आहा... हा! आ तो तत्त्वज्ञाननी कोलेज छे. आ झीणी,
साधारण वात नथी ‘आ.’ आहा... हा... हा! भाषा तो सादी आवे छे. भाव पण जेवा...! जुओ!
अहींयां तो आ कीधुं. जेम त्रण ने चार पुद्गलो-परमाणुओ छे. अने एनी पर्यायत्रणनी
हती (एनो) नाश थई, चारनी थई - पर्यायो भेगी (स्कंध) “तेम बधाय समानजातीय
द्रव्यपर्यायो.” जोयुं? आ रीते वात करी छे. दरेक पर्यायनी एटले व्यंजनपर्याय ने एक द्रव्यपर्यायनी
वात नथी. समानजातीयमां भेगी वात लीधी छे भाई!
“द्रव्यपर्यायो विनष्ट थाय छे अने (नवी)
उत्पन्न थाय छे. परंतु समानजाति द्रव्यो तो अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे (–ध्रुव छे.)” हवे
एक वात ई समानजातिनी करी. हवे बीजी असमानजातीय (नी करे छे.) आहा...! असमानजातीय
एटले? के मनुष्य (शरीर) जड छे. अने भगवान अरूपी चैतन्य छे. (बन्ने) एक जात नथी. अंदर
चैतन्यस्वरूप, जाणनार-देखनार प्रभु (आत्मा) अरूपी (एटले के) वर्ण, गंध, स्पर्श, रस विनानो
छे ई. अने आ (काया) वर्ण, गंध, रस, स्पर्शवाळी माटी, धूळ (छे.) बे य असमान छे. बे य
(जातिए) सरखां नथी. परमाणु, परमाणु (नो स्कंध) ए बे य समान (जातीय) छे. पण आ
आत्मा ने शरीर, बे समानजाति नथी. असमानजातीय छे.

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३३९
आहा...हा! “वळी जेम एक मनुष्यत्व स्वरूप.” मनुष्यनी पर्याय, योग्यता.“असमानजातीय
द्रव्यपर्याय विनष्ट थाय छे.” आहा...हा...हा! एक मनुष्यत्वस्वरूप असमानजातीय, कारणके मनुष्यनो
आत्मा ने शरीर बे जुदी जात छे, एक जात नथी. असमानजातीय (द्रव्यपर्याय) छे. आहा... हा! थोडी
भाषामां पण केटलुं समाडयुं!!
“अने बीजो देवत्वस्वरूप (असमानजातीय द्रव्यपर्याय) उत्पन्न थाय
छे.” शुं कहे छे? अहींयां जे छे ए आत्माने देह ई असमानजातीय (द्रव्यपर्याय) छे. एक जात नथी.
अने आनो व्यय थशे. अने देवमां जशे, त्यारे देवनी पर्याय उत्पन्न थशे, ई पण असमानजातीय ने
भेगां (एटले, देवनुं शरीरने आत्मा भेगां) अहींया मनुष्यमां छे ई असमानजातीय (द्रव्यपर्याय)
विनष्ट थशे. अने आत्मा तो अंदर कायम छे. आत्मा आम थाय एम छे? (समानजातीय) परमाणुमां
तो समानजातीय - कारण परमाणु-परमाणुनो स्कंध थाय छे. आहा... हा!
(कहे छे केः) अहींयांथी मनुष्यनो आत्मा, देवमां जाय. तो कहे छे के एनी (मनुष्यनी)
पर्याय विनष्ट थईने (देवनी) नवी पर्याय उत्पन्न करी. कर्मथी नहीं. कर्मने लईने अहींयांथी
देवलोकमां जाय एम नहीं, देवलोक केमनाख्युं के मुनि होय ते देवलोकमां जवाना! पंचम आराना मुनि
छे, आहा... हा! स्वर्गमां जवाना, एटले एने कह्युं के मनुष्यपणुं आ छे ते असमानजातीय छे.
आत्मा जात जुदी छे ने जडनी जात जुदी छे. एटले बे य असमान छे बे य सरखां नथी. ई
असमान (जातीय) मनुष्य पर्यायनो नाश थई, असमानजातीय देवपर्यायनी उत्पत्ति थशे. अने एमां
परमाणुने आत्म छे ए तो कायम रहेनारां छे. पर्यायमां विनष्ट ने उत्पन्न छे. ए विनष्ट ने उत्पन्न
कर्मने लईने पण थाय एम नहीं. मनुष्यनी गति अहीं पूरी थई गई, ए कर्मने लईने पूरी थई
एम नहीं. ए जीवने पुद्गलनी ए ज पर्याय ते ते तेटली त्यां रहेवानी हती. आहा...हा...हा!
(श्रोताः) थोडो’ क टाईम जीव रोकाई जाय एम तो कहे छे... (उत्तरः) ए बधी वातुं. ओली नाथ,
नाथ आवे छे ने... बळदने नहीं (नाकमां नाथे छे) नाथ! अहींयां कहे छे के कोईने लई जाय
त्रणकाळमां एम बनतुं नथी. आहा...हा! ए नाथ छे ते (बळदना) नाकने अडी नथी. जुदी जात छे
भाई! आहा...हा! अनंतकाळथी रखडे छे. दुःखी चोराशीना अवतार! सत्ने समज्या विना! विपरीत
समजे ने विपरीत माने (तेओ बधा) रखडी मरशे. आहा...हा...हा!
(अहींयां कहे छे केः) “अने बीजो देवत्वस्वरूप उत्पन्न थाय छे परंतु ते जीवने पुद्गल तो
अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे.” जीव तो जीव तरीके रहे छे. जीव तो मनुष्यपर्याय (पणे) हतो
ए देवपर्याय (पणे) थ्यो. परमाणुनी जेम आ देहनी मनुष्ग (शरीर रूपनी) पर्यायपणे हता, ए
पर्याय बीजी थई गई. (पण परमाणु तो कायम रह्या ज छे.) आहा...हा! आ... गजब वात छे!!
ते ते समये थाय, अने ते ते समये उत्पन्नने विनष्ट समानजातीय (द्रव्यपर्याय

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३४०
के असमानजातीय (द्रव्यपर्याय) पोताने कारणे थाय छे. आहा... हा... हा... हा! आवी वात छे!
भई, अंतरंगनुं कारण आव्युं नहोतुं काल! “अंतरंग-बहिरंग कारण” आव्युं’ तुं के नहीं?
(श्रोताः) समयसारमां (उत्तरः) हें, समयसारमां? ए आमां - आमां आव्युं’ तुं नहीं!
प्रवचनसारमां. ए आ रह्युं ल्यो! आ प्रवचनसार जुओ! (गाथा-१०२ टीकामां वच्चे छे) ‘तेम
अंतरंग अने बहिरंग साधनो वडे करवामां आवता संस्कारनी हाजरीमां,’
(जे उत्तरपर्यायनी
जन्मक्षण होय छे, ते ज पूर्वपर्यायनी नाशक्षण होय छे अने ते जे बन्ने कोटिमां रहेला द्रव्यपणानी
स्थितिक्षण होय छे). छे? अंतरंग ई. (कार्य थाय त्यारे) ई तो बहिरंग निमित्त होय छे तेनुं ज्ञान
कराव्युं (छे.) पण निमित्तथी कंई पण एमां थाय, एनी पर्याय, एनो उत्पाद थाय ने स्कंध थाय,
निमित्त आवीने (ए कार्य कर्युं एम नथी). कुहाडो आव्यो, कुहाडो! एनाथी आम लाकडाने मार्यो,
माटे एनो कटको (फाडो) थ्यो. कहे छे के लाकडाने कुहाडो अडयो ज नथी. फकत ई लाकडानी जे
अवस्था पहेली हती, ई नाश थईने बीजी (फाडानी) अवस्था थई, ई पोताने कारणे थई छे.
(कुहाडाने कारणे नथी थई) गांडा कहे एवुं छे! पागल जेवी वातुं लागे! आवी ते केवी रीत?
(वस्तुस्वरूपनी) (श्रोताः) ‘परमात्मप्रकाश’ मां एम ज कहे छे...! (उत्तरः) कहे छे ने
‘परमात्मप्रकाश’ मां
‘पागल लोको धरमीने पण पागल कहे एवी आ चीज (वस्तुस्वरूप) छे!
आहा... हा!
(कहे छे केः) ल्यो, (आत्मा) कांई करी शकतो नथी, करी शकतो नथी. (अमे) कांई करी
शकता नथी तो प्ररूपणा शुं काम करो छो? पण कोण करे (प्ररूपणा) बापु! ई भाषा जे कारणे
आववानी होय ई ते त्यां आवे. आहा... हा! ए आत्मानुं कर्तव्य नथी बापा! तने खबर नथी!
आहा... हा... हा! भाषा छे ते अनंत परमाणु नो समानजातीय (द्रव्यपर्याय) स्कंध छे. (वळी)
भाषा अनंत परमाणुनो समानजातीय स्कंध छे. ए स्कंध पहेलां, पहेली जे वर्गणापर्याय हती, एनो
व्यय थईने भाषापणे (पर्याय) थई, परमाणुओ कायम रह्या. ई आत्माए भाषा करी छे के आ
जीभ हलावे छे आत्मा, ए वातमां कांई माल नथी. (एटले के ते वात खोटी छे.) हवे त्यारे लोको
एम कहे छे केः भाई! चावी-चावीने खावुं! पेटमां कांई दांत नथी. एम नथी कहेता? (कहे छे ने...)
चावी-चावीने खावुं! पेटमां कांई दांत नथी. (वळी एम कहे). (अहींयां कहे छे केः) कोण चावे?
अरे प्रभु! गजब वात छे!! ए ए (मोढामां) दांत जे हले छे (खाती वखते). स्थिर हतां एनुं
हलवुं-पहेली पर्यायनो व्यय थ्यो अने हलवानी पर्यायनो उत्पाद थ्यो, दांत रह्या कारण के ए
परमाणुथी थ्या छे. आत्माथी नहीं, जीभथी नहीं. आहा... हा! भगवानथी नहीं. आ तो सिद्धांत छे
ने एक!! भगवान परमात्मा, त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेव बिराजे छे, महाविदेहमां बिराजे छे. त्यां कुंदकुंद
आचार्य ग्या’ ता. आठ दि’ रह्या’ ता. ए न्यांथी आवीने आ... शास्त्रनी रचना करी. (श्रोताः)
आ दिव्यज्ञान त्यांथी लाव्या...!
(उत्तरः) हा... हा... आवी वात! जूना पंडितो तो एम कहे के एक
द्रव्य बीजा द्रव्यनुं न करे एम माने तो ते दिगंबर जैन नथी. न करे एम माने ई, करी

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३४१
(ज) शके. अरे, भगवात! तुं तरी पर्यायमां उत्पन्न रहीने (तारामां) तुं कर. बीजा द्रव्य छे एना
उत्पाद-व्यय एनामां नथी? अने तेना द्रव्यने कारणे ते काळे उत्पन्न नथी? ते ते काळे पर्यायनी
जन्मक्षण छे तेनो व्यय थाय ने बीजी (नवी) पर्याय थाय. अने (द्रव्यआत्मा) के परमाणु कायम
रहे. (एमां बीजो शुं करे? आहा... हा... हा! आवुं सांभळ्‌युं नथी बधुं लाडनूमां! कलकतामां (के)
वेपारमां आहा... हा... हा! (श्रोताः) आखी नवी बनावी छे (कोलेज) (उत्तरः) नवी ज छे!
आहा... हा! भगवाननो पोकार छे. तीर्थंकरदेव, केवळी जिनेश्वरप्रभु! एनो पोकार छे के परमाणु त्रण
परमाणुने चार परमाणु जयारे (स्कंधरूपे) थाय. तो त्रण परमाणुनी पर्यायनो व्यय थाय ने चार
परमाणु (रूपे) पर्यायनो उत्पाद थाय, अने परमाणुपणे कायम रहे. त्यां ए समानजाणीय
(द्रव्यपर्याय) तो दाखलो (दीधो छे.) हवे आत्मा ने शरीर (एकसाथे देखाय) ए असमानजातीय
(द्रव्यपर्याय) छे. आत्मानी पर्याय मनुष्यनी छे अत्यारे. देवमां जशे त्यारे देवनी पर्याय थशे. ए
समये-समये आनी पर्याय बदले छे ए पूर्वनी पर्याय विनष्ट, नवी पर्यायनुं उत्पन्न (थवुं) आत्मानुं
कायमपणुं छे. शरीरना परमाणुओनी (पर्याय) पण समानजातीयपणे, जे समये छे - जे एनी
जन्मक्षण छे, ए उत्पन्न थाय छे, ते जन्मक्षणे बीजी पर्याय (पूर्वनी पर्याय) नाश थाय छे. बीजी
(नवी) पर्यायनी जन्मक्षण पण ए ज छे. आहा... हा... हा! (श्रोताः) आ शुभ भाव थ्या अंदर
एनुं केम छे?
(उत्तरः) ए बधुं भेगुं बधुं शुभभाव. शुभभाव पहेलो होय बीजे समये विनष्ट थई
जाय. अने पहेलां पछी नवी (पर्याय) उत्पन्न थाय. ई वखते शुभभाव आत्माथी थयेलो छे. कर्मथी
नहीं. भई कर्म मोळां पडयां माटे शुभभाव थ्यो, (एम’ नथी) आहा... हा! आकरुं काम बापा!
(शुं कहे छे?) आ केळवणी जुदी जातनी छे. आहा...! कोई दि’ मळी नथी. अने दरकारे य
करी नथी. रळवुं... ने बायडी-छोकरां हारे रमवुं ने राजी थावुं ने... आ धूळ! ए ढोर जेवा अवतार
छे बधा. आहा.. हा! आवो ध्रुव छे आत्मा!! कहे छे के! परनुं एक पांदडुं (य) हलावी शके नहीं.
आहा... हा! (झाडना) पांदडां हले छे ने...! पवनथी नथी हलतां एम कहे छे. आहा...! ई धजा छे
ने धजा! ई पवनथी नथी हलती (फरफरती) ई धजा जे आम छे ने आम-आम थाय छे (एमां)
पूर्वनी पर्यायनो व्यय, नवीन पर्यायनो उत्पाद ने समानजातीय परमाणुओनुं टकी रहेवुं. ए पवनने
लईने धजा हलती नथी (फरफरती नथी) माळे! आवी वातुं!
(श्रोताः) आ तो भगवान
बनाववानी वात छे...! (उत्तरः) हें, भगवान बनाववानी वात छे. आहा.. हा! भाई, भगवान ज
छो प्रभु! तुं ज्ञाता-द्रष्टा छो. भगवाननो अर्थ ई छे के तुं ज्ञाता-द्रष्टा छो! ‘ज्ञाता–द्रष्टा पोतानी
पर्यायमां पण करवुं ए पण नथी’ आहा... हा! एने पण जाणवुं-जाणे एम छे. परनी पर्याय तो
करे ई त्रणकाळमां होई शके नहीं. आहा... हा! अमे आ कर्युं, थोडुं अमे आ कर्युं. आटला सुधारा
कर्या... ने आटली अमे व्यवस्था करी... ने अव्यवस्था हती तेनी व्यवस्था करीने... दुकाने अमे हता.
आहा... हा! अमारे कुंवरजीभाईने एटलो (गर्व) हतो में आ कर्युं में कर्युं... आ कर्युं आहाहाहा! शुं
छे आ कीधुं? आटलुं बधुं. हुं कर्युंने में कर्युं, बीजाने दुकान नो’ हाली होय नो’ आवडी होय... ए
तो पुण्यने लईने

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३४२
थाय. पुण्य छे ई निमित्त छे, ते निमित्तथी कहेवुं (कहे पुण्य होय तो थाय) आहा... हा... हा... हा!
(कहे छे केः) ए तो समानजातीयना परमाणुओ त्यां छे एनी पर्यायो त्यां थाय छे. पुण्य
(कर्म) ना परमाणुओ समानजातीयना छे ए नाथी आ बहारनुं (कार्य) थाय छे एमे य नहीं.
पुण्यने लईने पैसा आवे छे एम नहीं एम कहे छे (अहींयां). आहा... हा! (अन्यक्षेत्रथी) आम
आवे एम के आम आवे. बीजे छे ते आम आवे छतां पैसानी पर्याय जे हती पूर्वनी तेनो व्यय
थई, अने आ उत्पन्न थई. पैसाना परमाणु कायम रह्या, कर्मने लईने नहीं (पण) परमाणुने लईने
आम थ्युं छे. आहा... हा! भारे काम! आ ओलो (कहे छे ने) पांगळो बनावी दीधो आत्माने,
पांगळो नथी बनाव्यो, एनी ज्ञाता-द्रष्टानी शक्तिनो विकास कर्यो छे! आहा... हा! ‘जाणनार
देखनार प्रभु तुं छो.’
बीजी वात’ मूकी दे! आहा... हा!
(कहे छे) परनुं हुं करी दउं, बायडीनुं हुं करी दउं... ‘अर्धांगना’ कहे बायडीने! धूळे य नथी
अर्धांगना, एनुं शरीर जुदुं ने एनो आत्मा जुदो! एना आत्मानी ने शरीरनी पर्याय एनाथी थाय
छे. ताराथी थाय छे न्यां? आहा...हा...हा! थोडामां केटलुं नाख्युं!! आहा...हा!
(अहींयां कहे छे केः) “तेम बधाय असमानजातीय द्रव्यपर्यायो” पहेला ई लीधुं. पहेलामां
समानजातीयनुं लीधुं दाखलो (आप्यो) पछी बधाय समानजातीय द्रव्यने लई लीधुं. आखी दुनियाना
द्रव्यो - चार अरूपी छे, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश, जीव अने बे (काळ ने पुद्गल) “ते
जीव ने पुद्गल तो अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे, “तेम बधाय असमानजातीय”
नारकीनुं
शरीर ने नारकीनो जीव, ए असमानजातीय (द्रव्यपर्याय) छे अने नारकीना शरीरनो ए जे समये
व्यय थाय, ते ज समये शरीरना परमाणु बीजी रीते परिणमे अने शरीरनो त्यां व्यय थाय, अने
मनुष्यपणामां आवे (तेमां) ओलानो व्यय थाय (नारकीगतिनो अने ओलानो उत्पाद थाय
(मनुष्यगतिनो). अंदर आत्मा तो कायम छे. कर्मने लईने नर्कमांथी (मनुष्यमां) आव्यो एम नहीं.
कर्मने लईने नर्कमां ग्यो ए नहीं. कहे छे ने आने नर्क आयुष्य बांध्युं छे ने एटले कर्म नर्कमां लई
ग्या (आत्माने) एम नथी. ई जीवनी पर्यायनो उत्पद काळ ज ई जातनो आम अंदर जवानो छे.
एक-एक पूर्वनी पर्यायनो व्यय, नवीनो उत्पाद, आत्मानुं कायम रहेवुं (छे.) आहा... हा! आवुं बधुं
कोणे कर्युं हशे के आवुं? भगवान कहे छे के में कर्युं नथी. हुं तो वाणी आवी’ ती, वाणी वाणीने
कारणे आवी छे.
(श्रोताः) कंई करे नहींने कहेवाय भगवान...! (उत्तरः) सर्वज्ञभगवान कहे छे में
कांई कर्युं नथी. वाणीने य करी नथी. कारणके वाणीनो पर्याय पहेला नो’ तो. समानजातीय
परमाणुमां. पछी उत्पन्न थयो (पर्याय) परमाणु कायम रह्या. ई तो भाषावर्गणा ऊपजे छे. ई वात
कीधी’ ती पालीताणे, पालीताणे ग्या ने रामविजयजी हता (श्वेताबंर) अरे, एम खोटी वात छे
केवळी भाषा पहेले समये ग्रहे, बीजे समये छोडे, ई ग्रहे ने छोडे? आहा... हा... हा!

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३४३
अरे... रे! आवी वातो भारे आ तो! अने एने माननारा य मळे!! जूठा अनादिथी जूठुं सेव्युं
छे ते जूठाने मळे ने! आहा... हा! ई करमने लईने थाय एम ई कहे छे. ई तो चर्चा थईने जेठाभाई
हारे. खेडावाळा जेठाभाई! श्वेताबंर (हता) पहेला आंही (नो) परिचय, आव्या अमरेली. रुचे नहीं,
गोठे नही, एकदम अजाणी वात! पछी एने परिचय करतां लाग्युं के वात कंईक बीजी लागे छे. पछी ए
लोकोमां प्रश्न मूकया पचास. आनो उत्तर आपो जो ठीक पडे तो आमांथी नहीं नीकळुं, उत्तर क्यांयथी
मळ्‌यो नहीं सरखो, छेवटे रामविजयजी कहे के मारी हारे चर्चा करो. पछी कहे के चर्चा करीए. पण पहेली
कबूलात करो. रामविजयजी कहे ‘कर्मथी विकार थाय’ पहेली कबूलात करो. आ कहे मारे मान्य नथी.
(कहे छे केः) विकारी पर्याय छे ई तो जीवनी, जीवमां अस्तित्वने लईने थाय छे. आहा...
हा... हा! कर्मनी पर्याय छे ई कर्ममां कर्मने लईने थाय छे. ज्ञानावरणीयनी पर्याय थाय छे ई कर्मनी
- परमाणुनी पर्याय, पहेली हती एनो व्यय थईने कर्मरूपे थई, एने आत्माने लईने आत्माए
रागद्वेष कर्यो, माटे ते ज्ञानावरणीयनी पर्याय थई एम नथी. माळुं सारुं! आमां केटलो’ क फेरफार
करवो? मीठालालजी! आ तो बधुं गांडुं कहेवाय एवुं छे. आहा... हा! हा! आज आव्या? संसारना
डाह्या ते गांडा कहे एवुं छे! आहा... हा! भाई, मारग जुदो बापा! केम के अनंत आत्माओ ने
अनंत परमाणु छे. ते अनंतपणे क्यारे रही शके? ते ते काळना, पोताना परिणाममां, पोते रहे तो
रहे पण बीजाओने परिणमावी द्ये अने बीजा आने परिणमावी द्ये (तो तो) अनंत-अनंत, पृथक
पृथकपणे नहीं रहे. आहा... हा! हें! आहा...! वीतराग मारग अलौकिक छे. बापु! एवुं क्यांय छे
नहीं. परमेश्वर सिवाय आ वात कोई ठेकाणे छे नहीं. वाडामां नथी अत्यारे, वाडावाळाओए तो ऊंधुं
मार्युं! दया पाळो... ने व्रत करोने... अपवास करो... ने भक्ति करो... ने पूजा करो... आहा... हा!
(कहे छे) अहींयां तो परमात्मानी पूजा करतां, वाणी जे बोलाय ते पर्यायनी उत्पत्ति भाषा
(वर्गणा) थी थई छे. ‘स्वाहा’ ए भाषानी पर्याय थई छे आत्मथी नहीं. अने चोखा चडाव्या आम
भगवानने, अर्ध्य चडावे ई आंगळीथी नहीं ने आत्माथी नहीं. आहा... हा! चोखाथी पर्याय, ते रीते
पूर्वनी पर्यायनो व्यय थई त्यां गया चोखा ई उतपादने चोखाना परमाणु कायम (ध्रुव) छे. चोखाना
परमाणुनी पर्यायथी ए चोखा गया छे आत्माए आम मूकया माटे गया छे एम नथी. आरे... आवी
वातुं हवे! काने तो पडे! के कांईक छे कांईक वात आ छे एम थायने माणसने... आवुं अत्यार सुधी
मानीए छीए एना करतां कांईक बीजी वात छे बापु!
(अहींयां कहे छे केः) “तेम बधाय असमानजातीय द्रव्यपर्यायो विनष्ट थाय छे अने उत्पन्न
थाय छे परंतु असमानजातीय द्रव्यो तो अविनष्ट अने अनुत्पन्न ज रहे छे.” आ

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गाथा – १०३ प्रवचनसार प्रवचनो ३४४
प्रमाणे पोताथी (अर्थात् द्रव्यपणे) ध्रुव.” छे ने? (पाठमां) द्रव्यने बे ठेकाणे - बे अर्थ करवा.
पछी नीचे छे (फूटनोटमां) ‘द्रव्य’ शब्द मुख्यपणे बे अर्थमां वपराय छे (१) एक तो,
सामान्यविशेषना पिंडने सामान्य त्रिकाळ रहेवुं अने पर्याय विशेष, ए बे थईने पण द्रव्य कहेवाय
छे. सामान्यविशेषनो पिंडने अर्थात् वस्तुने द्रव्य कहेवामां आवे छे; जेमके द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूप
छे. ई रीते द्रव्य कहेवामां आवे छे. (२) बीजुं, वस्तुना सामान्य अंशने पण द्रव्य कहेवामां आवे छे.
शुं कीधुं? उत्पादव्यय ने ध्रौव्य - त्रण थईने एक एने पण द्रव्य कहेवामां आवे छे अने एक ध्रौव्य छे
तेने पण द्रव्य कहेवाय ई नयनी अपेक्षाए. आहा... हा! द्रव्य कहेवामां बे प्रकार छे उत्पाद-व्यय तो
छे. ई उत्पादव्यय ने ध्रौव्य त्रण मळीने पण द्रव्य कहेवामां आवे छे. प्रमाणनुं (द्रव्य). अने उत्पाद-
व्यय विना एकलुं ध्रुव त्रिकाळी एनुं लक्ष कराववा ध्रौव्यने पण द्रव्य कहे छे. ए नयनुं द्रव्य छे. अने
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य सहित आखुं प्रमाणनुं द्रव्य छे. आ... रे... आहा...! प्रमाण शुं ने नय शुं?
वस्तुस्थिति एवी छे भाई!
“आ प्रमाणे पोताथी (अर्थात् द्रव्यपणे) द्रव्यना बे अर्थ लीधा. लीधा ने? ध्रुव अने
द्रव्यपर्यायो द्वारा उत्पाद व्यय एवां द्रव्यो उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य छे.” दरेक द्रव्य, दरेक पदार्थ उत्पाद-
व्ययने ध्रौव्यस्वरूप छे. ए रीते द्रव्य कहीए अने उत्पाद-व्यय छोडीने त्रिकाळीने पण द्रव्य कहीए.
(एम) ‘द्रव्य’ कहेवामां बे प्रकार छे.
विशेष कहेशे.....

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३४प
हवे द्रव्यनां उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य एक द्रव्यपर्याय द्वारा विचारे छेः-
परिणमदि सयं दव्वं गुणदो य गुणंतंर सदविसिट्ठं ।
तम्हा गुणपज्जाया भणिया पुण दव्वमेव त्ति ।। १०४।।
परिणमति स्वयं द्रव्यं गुणतश्च गुणान्तरं सदविशिष्टम् ।
तस्माद्गुणपर्याया भणिताः पुनः द्रव्यमेवेति ।। १०४।।
अविशिष्टसत्त्व स्वयं दरव गुणथी गुणांतर परिणमे,
तेथी वळी द्रव्य ज कह्या छे सर्व गुणपर्यायने. १०४.
गाथा – १०४.
अन्वयार्थः– (सदविशिष्टं) सत्ता-अपेक्षाए अविशिष्टपणे, (द्रव्यं स्वय) द्रव्य पोते ज
(गुणतः च गुणान्तरं) गुणमांथी गुणांतरे (परिणमति) परिणमे छे (अर्थात् द्रव्य पोते ज एक
गुणपर्यायमांथी अन्य गुणपर्याये परिणमे छे अने तेनी सत्ता गुणपर्यायोनी सत्ता साथे अविशिष्ट -
अभिन्न - एक ज रहे छे.) (
तस्मात् पुनः) तेथी वळी (गुणपर्यायाः) गुणपर्यायो (द्रव्यम् एव इति
भणिताः) द्रव्य ज कहेवामां आवे छे.
टीकाः– गुणपर्यायो एकद्रव्यपर्यायो छे, कारण के गुणपर्यायोने एकद्रव्यपणुं छे (अर्थात्
गुणपर्यायो एकद्रव्यना पर्यायो छे कारण के तेओ एक ज द्रव्य छे - भिन्न भिन्न द्रव्यो नथी.) तेमनुं
एकद्रव्यपणुं आम्रफळनी माफक छे. (ते आ प्रमाणेः) जेम आम्रफळ पोते ज हरितभावमांथी पीतभावे
परिणमतुं थकुं, पहेलां अने पछी प्रवर्तता एवा
हरितभाव अने पीतभाव वडे पोतानी सत्ता
अनुभवतुं होवाने लीधे, हरितभाव अने पीतभावनी साथे अविशिष्ट सत्तावाळुं होवाथी एक ज
वस्तु छे, अन्य वस्तु नथी; तेम द्रव्य पोते ज पूर्व अवस्थाए अवस्थित गुणमांथी उत्तर अवस्थाए
अवस्थित गुणे परिणमतुं थकुं, पूर्व अने उत्तर अवस्थाए अवस्थित
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१. हरिणभाव - लीलो भाव; लीली अवस्था; लीलापणुं.
२. पीतभाव - पीळो भाव; पीळी दशा; पीळापणुं (पहेलां केरीनी लीली अवस्था होय छे पछी पीळी थाय छे.)
३. अविशिष्ट सत्तावाळुं - अभिन्न सत्तावाळुं; एक ज सत्तावाळुं. (केरीनी सत्ता लीला तथा पीळा भावनी सत्ताथी अभिन्न छे, तेथी
केरी अने लीलो भाव तथा पीळो भाव एक ज वस्तुओ छे, भिन्न वस्तुओ नथी.
४. पूर्व अवस्थाए अवस्थित - गुण पहेलांनी अवस्थामां रहेलो गुण; गुणतो पूर्व पर्याय, पूर्व गुणपर्याय.

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३४६
ते गुणो वडे पोतानी सत्ता अनुभवतुं होवाने लीधे, पूर्व अने उत्तर अवस्थाए अवस्थित गुणो साथे
अविशिष्टसत्तावाळुं होवाथी एक ज द्रव्य छे, द्रव्यांतर नथी. (केरीना द्रष्टांतनी जेम, द्रव्य पोते ज
गुणना पूर्वपर्यायमांथी उत्तरपर्याये परिणमतुं थकुं, पूर्व अने उत्तर गुणपर्यायो वडे पोतानी हयाती
अनुभवतुं होवाने लीधे, पूर्व अने उत्तर गुणपर्यायो साथे अभिन्न हयाती होवाथी एक ज द्रव्य छे,
द्रव्यांतर नथी; अर्थात् ते ते गुणपर्यायो अने द्रव्य एक ज द्रव्यरूप छे, भिन्न भिन्न द्रव्यो नथी.)
वळी जेम पीतभावे ऊपजतुं, हरितभावथी नष्ट थतुं अने आम्रफळपणे टकतुं होवाथी,
आम्रफळ एक वस्तुना पर्याय द्वारा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य छे, तेम उत्तर अवस्थाए अवस्थित गुणे
ऊपजतुं, पूर्व अवस्थाए अवस्थित गुणथी नष्ट थतुं अने द्रव्यत्वगुणे टकतुं होवाथी, द्रव्य
एकद्रव्यपर्याय द्वारा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य छे.
भावार्थः– आना पहेलांनी गाथामां द्रव्यपर्याय द्वारा (अनेक द्रव्यपर्याय द्वारा) द्रव्यनां उत्पाद-
व्यय-ध्रौव्य बताववामां आव्यां हतां. आ गाथामां गुणपर्याय द्वारा (एक द्रव्यपर्याय द्वारा) द्रव्यनां
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य बताव्यां छे. १०४.