Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 24-06-1979; Gatha: 105.

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३४७
प्रवचनः ता. २४–६–७९.
‘प्रवचनसार.’ गाथा - १०४. उपरनुं मथाळुं.
“हवे द्रव्यनां उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य एकद्रव्यपर्याय द्वारा विचारे छेः– भाषा तो अध्यात्मनी छे
भाषा. शुं कहे छे? के द्रव्य एटले वस्तु. आत्मा वस्तु छे आ परमाणु जड (ए पण वस्तु छे.) आ
कंई एक चीज नथी. (आ शरीर) आना कटका करतां-करतां छेल्लो पोईन्ट रहे तेने परमाणु कहे छे.
एने द्रव्य कहे छे. एवा अनंत द्रव्यो छे (आ विश्वमां) अने अनंता आत्माओ छे. ई दरेक आत्मामां
(ने दरेक द्रव्यमां) उत्पाद-व्ययने ध्रौव्य, छे ने? नवी अवस्था उत्पन्न थाय, पूर्वनी अवस्था व्यय
थाय, अने सद्रश-ध्रुवपणे कायम रहे. एवो एनो स्वभाव छे. दरेक आत्मा ने दरेक परमाणुनो (एवो
स्वभाव छे.) ए द्वारा विचारे छे. मथाळुं बांध्युं हों!
परिणमदि सयं सव्वं गुणदो य गुणंतंरं सदविसिट्ठं ।
तम्हा गुणपज्जाया भणिया पुण दव्वमेव त्ति ।। १०४।।
अविशिष्टसत्त्व स्वयं दरव गुणथी गुणांतर परिणमे,
तेथी वळी द्रव्य ज कह्या छे सर्व गुणपर्यायने. १०४.
झीणी वात छे भई!
टीकाः– “गुणपर्यायो एक द्रव्यपर्यायो छे.” शुं कीधुं ई? जेम केः आ आत्मा छे. एना गुण
छे ज्ञान-दर्शन-आनंद, प्रभु आत्मा सच्चिदानंदस्वरूप छे. ‘सत्’ शाश्वत रहेनार छे. अने तेना गुणो
एटले शक्तिओ - स्वभाव, ए पण शाश्वत छे. एनी पर्यायो एटले अवस्थाओ बदले छे, एने
पर्याय कहे छे. तो कहे छे केः गुणपर्यायो, ए गुणोनी जे अवस्थाओ, ए द्रव्य छे. द्रव्यथी जुदी जुदी
नथी. झीणी वात छे! आहा...! गुणपर्यायो परमाणुना कह्या अने आत्माना कह्या. एम हवे आ
परमाणु छे एनी अवस्थाओ (छे.) जुओ, आ आंगळी (आम वळे छे, सीधी थाय छे ए
परमाणुनो अवस्थाओ छे.) पहेली अवस्था हती लोटनी, एनी पहेलां धूळनी (माटीनी हती).
परमाणु जे रजकण छे ई तो कायमना छे. ए रजकणनी अवस्था-रूपांतर थाय छे. ते रजकणना गुण
छे. एमां जे एक एक परमाणु (रजकण) पोईन्ट - अणु छे एमां वर्ण-रस-स्पर्श-गंध (आदि
अनंत) गुण छे. ए गुणो त्रिकाळ छे अने एनी वर्तमान अवस्था बदले छे ए तेनी पर्याय छे. ई
गुणने पर्याय थईने द्रव्य छे. आहा... हा! आवी वात छे आ! (श्रोताः) गुण एटले लाभ थ्यो
आटलो अमने...
(उत्तरः) गुण एटले शक्ति छे प्रभु जे आत्मा ने परमाणु छे, तो शक्तिओ एमां
जे छे एने गुण कहे छे. जे आत्मा ‘छे’ तो एमां (अनंता) गुण छे. जाणवुं-देखवुं-आनंद-शांति-
सुख-स्वच्छता-प्रभुता (आदि अनंत) शक्तिओ छे एटले गुण

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३४८
छे. अने तेनी वर्तमान हालत-बदलवुं (ए) तेनी पर्याय छे. ए गुण अने पर्याय ते द्रव्य छे. गुण
ने पर्याय द्रव्यथी जुदी चीज नथी. आहा... हा! आकरुं-आकरुं काम छे बापु आ तो! आ तो
वीतरागनी कोलेज छे. केटलो’ क अभ्यास होय तो समजाय आ तो! अत्यारे आ चालतुं नथी बधी
गरबड-गरबड (गोटा ऊठया छे.)
(अहींयां कहे छे केः) “गुणपर्यायो एकद्रव्यपर्यायो छे.” समजाणुं आमां? आत्मा वस्तु
छे, आ तो (शरीर) तो जड छे माटी. वाणी जड छे, धूळ, अंदर आत्मा जे चैतन्यस्वरूप ‘छे’
- जाणनार छे, एनामां जाणवुं-देखवुं-आनंद आदि गुण छे. ए गुणनी वर्तमान अवस्था, जे
क्षणे जे अवस्था रूपांतर थाय, ते अवस्था ने ते गुण (एटले) अवस्थाओ ने गुणो ते द्रव्य छे.
ते (आत्म) वस्तु छे. एना गुण अने एनी वर्तमान अवस्था तेना द्रव्यथी जुदा नथी. आ...
रे... आ आकरुं काम! एटले बीजुं द्रव्य, बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके एम नथी त्रणकाळमां.
आहा... हा!
“गुणपर्यायो एकद्रव्यपर्यायो छे.” एटला शब्दो नो ए अर्थ छे. आ तो सिद्धांत
छे!!
(अहींयां कहे छे केः) “कारण के गुणपर्यायोने एकद्रव्यपणुं छे.” गुण जे आत्मा (ना)
ज्ञान-दर्शन-आनंद, एनी थती दशाओ ए बधुं द्रव्य छे. आत्मा-वस्तु छे. बे, गुणपर्यायो थईने
आत्मवस्तु छे. (तेम) परमाणुमां पण वर्ण-गंध-रस-स्पर्श (आदि गुणो) अने आ एनी
अवस्थाओ, परमाणुनी अवस्था (ए बे थईने परमाणु द्रव्य छे.) आ लूआनी अवस्था छे अत्यारे,
ई परमाणु छे एनी अवस्था छे. पहेली एनी अवस्था लोटपणे हती, (पछी) रोटलीपणे (थई)
एना पहेलां लोटपणे, एना पहेलां घउं-पणे, एनां पहेलां कांकरापणे (ए) पलटतां-पलटतां-
पलटतां, अवस्था पलटे ई अवस्था (पर्याय) कहेवाय. अने एमां कायम रहेली शक्ति (ओ) छे
आमां (परमाणुमां) वर्ण-गंध-रस-स्पर्श (आदि) ए गुणो छे अने ए गुणो ने पर्यायनो समुदाय
ते द्रव्य-वस्तु छे. त्रण थईने वस्तु छे. आहा...! आकरुं काम छे. बापु! अभ्यास अत्यारे मूळ
तत्त्वनो अभ्यास आखो वयो ग्यो. (चाल्यो गयो.) उपरनी वातुं करे. एक तो नवरो न थाय धंधा
आडे! पोताना पापना धंधा, भले पछी पांचलाख-दशलाख पेदा करतो होय. आहा... हा!
(कहे छे) ‘आ’ आत्मा अंदर वस्तु छे. ते गुणपर्यायरूप द्रव्य छे. ए शरीरपणे नथी,
वाणीपणे नथी, खरेखर तो पुण्य-पापना विकार परिणाम वर्तमानपर्याय छे, ए पर्यायने त्रिकाळी
गुण थईने द्रव्य कहेवाय छे. समजाय छे कांई? समजाय छे के नहीं? शुं कहे छे? अ... हा... हा! एम
कहे छे प्रभु! केः कोई पण तत्त्व छे - आत्मा, परमाणु आ जड (शरीर) ए वस्तु छे. अंदर द्रव्य
(आत्मा) (अथवा) द्रव्य एटले पदार्थ! ए पदार्थ शक्ति विनानो न होय. ‘शक्तिवान’ छे ए पदार्थ
ने शक्ति (स्वभाव छे.) पदार्थ ‘स्वभाववान’ छे ए स्वभाव विना न होय. (ए) स्वभावने गुण
कहेवामां आवे छे. अने तेनी थती हालत-पर्याय तेने अवस्था कहे छे. ए गुणने पर्यायनो

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३४९
समुदाय ते द्रव्य छे. आहा... हा! आ तो, वीतरागनी कोलेज छे बापा! आ तो बीजी जात, आखी
दुनियाथी बीजी जात छे. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “कारण के गुणपर्यायोने एकद्रव्यपणुं छे.” (अर्थात् गुणपर्यायो एक
द्रव्यना पर्यायो छे कारण के तेओ एक ज द्रव्य छे.” एक ज वस्तु छे. आहा... हा! आ... आ शरीर
छे. आ परमाणुनुं छे आ एक नथी, अनंत परमाणुओनो पिंड-दळ छे. एमां एकेक परमाणु, वर्ण-
गंध-रस-स्पर्श तेनी शक्ति नाम गुण छे. अने आम थवुं - अवस्था थवी (हाथ-पगनुं हलवुं तथा
बोलवुं) एनी पर्याय छे, ए गुण ने पर्यायो थईने ते परमाणु छे. एम दरेक परमाणु, पोताना गुण
ने पर्याय थईने द्रव्य छे. एम दरेक आत्मा, एनी शक्ति (ओ) छे अने एनी बदलती अवस्था
(ओ) छे, ए शक्ति ने अवस्थाओ थईने ए (आन्म) तत्त्व (द्रव्य) छे. बीजो कोई एनी अवस्था
पलटावी द्ये (एवुं स्वरूप नथी.) (आ समजमां बेसाडवुं) आकरुं काम छे बापु! एक द्रव्य, बीजा
द्रव्यनुं कांई करी द्ये एम नथी. केम के प्रत्येक द्रव्य, पोताना शक्तिवाळां तत्त्व होवाथी, ते शक्ति
(ओ) नी बदलती अवस्थावाळो होवाथी, ते द्रव्य ज छे. (एनुं काम) बीजुं द्रव्य कांई करी शके
(एवुं परतंत्र तत्त्व नथी.) तो आखो दि’ करे छे ने आ बधा? दाकतर ईन्जेकशन मूके, फलाणुं मूके,
ढीकडुं मूके... आहा... हा... हा! आहा... हा! आंही तो मोटो दाकतर आव्यो’ तो, ओलो मुंबईमां छे
ने आंखनो. शुं एनुं हतुं नाम? हें
(श्रोताः) अशोकभाई (उत्तरः) अशोकभाई नहीं. हें! मोटो
नहीं आंखनो कहेवाय छे. (श्रोताः) डोकटर चीटनीस (उत्तरः) हा, चीटनीस. आव्या’ ता. बे-त्रण
वार आवी ग्या मोटा दाकतर! व्याख्यानमां बेठा’ ता. पण आ क्यां अभ्यास! न मळे, एकली
आखो दि’ धूळधाणी! वेपारमां ने धंधामां ने नोकरीमां आखो दि’ धंधा आडे पाप! आम थोडो
वखत मळे ने सूई जाय छे-सात कलाक! कां थोडो वखत रहे तो बायडी-छोकरां राजी राखवा माटे
रहे पण हुं कोण छुं? शुं आ चीज (आत्मा) छे? अने केम मारुं आ परिभ्रमण मटतुं नथी?
चोराशीना अवतार करी-करीने मरी ग्यो छे!! आ (मनुष्यनो) पहेलो अवतार नथी के आवा तो
अनंत कर्या. (वर्तमान आ अवतार छे तो) एना पहेलां अवतार, एना पहेलां अवतार, एना
पहेलां अवतार एम अनादिथी अवतार करी आव्यो अभ करतां करतां. ई आत्मा रखडे छे केम? ई
कहे छे.
(कहे छे केः) एना गुण अने पर्याय, द्रव्यना आधारे छे. द्रव्यना छे. एनी द्रष्टि करतो नथी
तेथी परिभ्रमण करे छे. आहा... हा! एनी द्रष्टि परद्रव्य पर ज छे. आनुं थाय, आनाथी आनुं थाय,
आनाथी आनुं थाय. फलाणी दवा लगाडुं तो आ थाय, ए बधुं खोटुं पाडे छे अहींयां! आहा... हा!
आहा... हा! छे? (पाठमां) “तेओ एक ज द्रव्य छे – भिन्न भिन्न द्रव्यो नथी. तेमनुं एकद्रव्यपणुं.”
ई द्रव्य एटले वस्तु, द्रव्य केम कहे छे? ‘द्रवतीत्ति द्रव्यं’ जेम पाणीमां तरंग ऊठे, एम आ द्रव्यमां
पर्याय-अवस्था थाय छे, जुओ! आ भिन्न भिन्न अवस्थाओ थाय छे एने द्रव्य कहीए, ‘द्रवतीति
द्रव्यम्’ द्रवे, पर्याय, पर्याय-अवस्था पलटे, पर्याय-अवस्था द्रवे एने

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प०
द्रव्य कहीए.
आहा...! बीजो, एनी पर्यायने पलटावे, एवुं त्रणकाळमां बनतुं नथी. आवी वात छे. आ
हले छे आ (हाथ) जुओ! आ हले छे ई अवस्था छे. एमां वर्ण-रस-गंध-स्पर्श गुण
परमाणुमां छे. आ परमाणु ते एनो धरनार छे. आ तो (हाथ) अनंता परमाणु छे. ई अनंता
परमाणुमां, एकेक परमाणुमां अनंता गुण छे - शक्तिओ छे. वर्ण-गंध-रस-स्पर्श विगेरे... शक्ति
(ओ) समये-समये पलटे छे. ए पलटवुं ने गुणो ए बधुं थईने तत्त्व-परमाणु छे. ए पलटवुं
ने गुणो थईने बीजुं द्रव्य छे एम नथी. आहा... हा! आवुं छे! (तत्त्वस्वरूप!) शुं थाय बापु!
मारग बहु जुदो बापा!
(अहींयां कहे छे केः) “आम्रफळनी माफक छे. ते आ प्रमाणे” द्रष्टांत आपे छे. “तेमनुं
द्रव्यपणुं आम्रफळनी माफक छे.” केरी, केरी! “जेम आम्रफळ पोते ज हरितभावथी पीतभावे
परिणमतुं थकुं”
द्रष्टांत आपे छे. केरी जे लीलापणे रंगे छे. ए लीलो रंग पलटीने पीळो थाय छे.
(केरी) पाके एटले.
“हरितभावथी पीतभावे परिणमतुं थकुं, पहेलां अने पछी प्रवर्तता एवा
हरितभाव अने पीतभाव वडे पोतानी सत्ता अनुभवतुं होवाने लीधे.” बे य (अवस्था) थईने पोतानी
सत्ता छे. लीलुं अने पीळुं ए एना पोतानी सत्ताथी, परमाणुनी सत्ता छे. आहा... हा! “पोतानी सत्ता
अनुभवतुं होवाने लीधे, हरितभाव अने पीतभावनी साथे अविशिष्ट सत्तावाळुं होवाथी.”
एकसत्तावाळुं छे. खास एक सत्ता छे. ई तो अवस्था पलटी, (पण) सत्ता एक ज छे. आहा... हा!
आवी वातुं हवे! आवुं कई जातनुं? (वस्तुस्वरूप!) मारग एवो छे बापु, शुं कहीए?
आहा... हा! अहींयां तो बोंतेर वरस थ्यां आ शास्त्रोना अभ्यासथी. अढार वरसनी उंमरथी,
नेवुं थ्यां नेवुं. पण आ वात! बीजी जातनी बापु, शुं कहीए? बहु, परिचय थोडो करे शुं?
अहींयां एक कहे छे के जे तने देखाय छे ने...! ए छे के नहीं? (निर्णय कर.) तो ई जड छे
के चैतन्य छे? त्यारे कहे के अंदर जाणनार छे ई चैतन्य छे अने जणाय छे आ शरीर, वाणी, मन
ए जड छे. हवे ‘छे’ ई सत्ता एनी ‘छे’ एनाथी ते सत्त्व, सत्ताथी जुदुं नथी. तेनी ‘सत्ता’ नामनो
गुण छे. ‘अस्तित्व’ नामनो गुण छे (ए) गुणथी तत्त्व जुदुं नथी. ए त्रणेय थईने एक सत्ता छे.
आहा.. हा... हा! को’ समजाय छे के नहीं! आ तो ‘प्रवचनसार’ वीतरागनी वाणी छे. सर्वज्ञ
त्रिलोकनाथ! आत्मा सर्वज्ञ थाय छे. त्रणकाळ, त्रणलोकने जाणे. त्यारे जे वाणी नीकळे ईच्छा विना,
ई आ वाणी छे. आहा... हा! पण एने अभ्यास नहीं ने... (जरी कठण लागे!)
ए कहे छे (अहींयां) “हरितभाव अने पीतभाव साथे अविशिष्ट सत्तावाळुं”

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प१
अविशिष्ट सत्तावाळुं’ एटले? अभिन्न सत्तावाळुं - एक ज सत्तावाळुं. (जुओ) नीचे (फूटनोटमां)
अविशिष्ट सत्तावाळुं
= अभिन्न सत्तावाळुं; एक ज सत्तावाळुं, केरीनी सत्ता लीला तथा पीळा भावनी
सत्ताथी अभिन्न छे, तेथी केरी अने लीलो भाव तथा पीळो भाव एक ज वस्तुओ छे, भिन्न वस्तुओ
नथी. आहा... हा!
(कहे छे केः) आ शरीर-जड छे. एमां ताव आवे. ई परमाणुओ छे, ई परमाणुओ छे आघां
(अडयां विनानां) ए एकेक परमाणुमां वर्ण-गंध-रस-स्पर्श शक्ति (ओ) गुण कहेवाय छे. तेनुं
परिणमन (स्पर्शगुणनी पर्याय गरम थई) ई ताव आव्यो. ई पर्याय एनी छे जडनी. ई पर्याय ने
गुण थईने ई द्रव्य छे. ए तावनी पर्याय ने शक्ति-गुणो थईने ए द्रव्य (परमाणुद्रव्य) छे. एने
बीजा उपर नजर करवानी नथी एम कहे छे. आहा... हा! तारुं द्रव्य जे छे अंदर! आहा... हा! ए
वस्तु तरीके एमां वसेला अनंता गुणो-शक्तिओ वसेला छे. ए गुणोनुं क्षणे-क्षणे परिणमन थाय छे.
ए परिणमन एटले अवस्था-पर्याय-बदलवुं. ए बदलती अवस्था अने गुण ई द्रव्य छे. अनेरुं कोई
द्रव्य नथी, गुण कोई अनेरुं द्रव्य नथी. समजाय छे? भाषा तो सादी छे पण भई! भाव गमे एटला
द्यो पण भई, अध्यात्मभाषा छे आ तो!! आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “अन्य वस्तु नथी” जोयुं? लीलो अने पीळो जे भाव, केरीनो (छे.)
ए केरीथी अनेरो भाव नथी, अनेरी चीज नथी. ए वस्तु पोते ज छे, अन्य वस्तु नथी. “तेम द्रव्य
पोते ज पूर्व अवस्थाए अवस्थित गुणमांथी उत्तर अवस्थाए अवस्थित.”
गुणमांथी बीजो थ्यो
(पर्याय) लीलामांथी पीळो थई ग्यो (वर्णगुण)
“गुणे परिणमतुं थकुं.” आहा... हा! ए वस्तु छे
आत्मा, एमां ज्ञान, दर्शन, आनंद एनो गुण छे. शक्ति छे. एनी पर्याय जे परिणमे छे ए पूर्वनी
अवस्था बदले छे ने नवी अवस्था थाय छे. ते गुणे परिणमतुं (थकुं) “पूर्व अने उत्तर अवस्थाए
अवस्थित गुणो साथे
छतां पर्याय पलटे छतां गुणो तो एवा ने एवा छे. गुणमां कोई बीजी रीते
अवस्था थती नथी शक्तिओनी एनी. ए गुणो ने पोतानी सत्ता अनुभवतुं होवाने लीधे
(“पूर्व अने
उत्तर अवस्थाए अवस्थित गुणो साथे अविशिष्ट सत्तावाळुं होवाथी एक ज द्रव्य छे.”) आहा... हा
(कहे छे) आत्मा, जड पदार्थोथी जुदो तद्र्न! अने एना अंतरमां अनंत-अनंत गुणछे. के जे
आत्मामां अतीन्द्रिय ज्ञान, अतीन्द्रिय अनंत आनंद, अतीन्द्रिय स्वच्छता, प्रभुता एवी अनंती शक्ति
(ओ) ते गुण छे. अने ए गुणो (पण) जेम द्रव्य छे कायम रहेनार, ई शक्तिओ पण कायम,
रहेनार छे. एनी वर्तमान थती, बदलती अवस्था (ए) अवस्था ने गुण द्रव्य ज छे. बीजुं द्रव्य
नहीं. आहा...हा! अथवा बीजा द्रव्यथी ते गुण-पर्याय थाय, एवुं ई द्रव्य नथी. आहा... हा! समजाय
छे आमां?

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प२
(शुं कहे छे केः) आखो दि’ आ बधा करे ने वेपार-धंधा! दुकाने बेसीने, आ वेच्युं आ पांच
रूपिया (मां) पचीस (मां) पचास (मां) ढीकणुं! बापु! तने खबर नथी भाई! तुं एक ज तत्त्व
छो एम नहीं बीजां तत्त्व छे (जगतमां) अने बीजा तत्त्वो छे (ई) तेनी शक्ति ने गुणोथी खाली
नथी. (अथवा) बीजां तत्त्वो छे ते तेना गुणो ने शक्तिी खाली नथी छतां वर्तमान तेनुं बदलवुं थाय
छे, परिणमे छे ई परिणमे छे ई पर्याय ने गुण ई द्रव्य छे. बीजुं द्रव्य-आत्मानो एमां गुण ने
पर्याय करे एम बनी शके नहिं. आकरी वात बहु! आहा... हा! आखी दुनियानी जुदी जात छे भई!
संप्रदाय मां जुदी जात छे भई! संप्रदायमां हतां त्यारे आ चालतुं नहीं! आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) कीधुं? “पूर्व अने उत्तर अवस्थाए अवस्थित ते गुणो” पर्याय बदले
पण गुणो तो अवस्थित छे. “वडे पोतानी सत्ता अनुभवतुं होवाने लीधे.” पूर्वनी पर्याय ने उत्तर
पर्याय, एमां पोतानी सत्ता अनुभवतुं (ते द्रव्य) एक ज सत्ता छे. आहा... हा! “पूर्व अने उत्तर
अवस्थाए अवस्थित गुणो साथे अविशिष्टसत्तावाळुं होवाथी एक जे द्रव्य छे.”
आहा.. हा... हा!
ओलामां पहेलुं आव्युं’ तुं ने भाई! पंचाणुं गाथा (मां)
अपरिच्चतसहावेणुपादव्वयधुवत्तसंबद्धं’
अने अपरिच्चित्तसहावेण दरेक पदार्थ पोताना, स्वभावथी अपरिचित नाम जुदो नथी. दरेक वस्तु
वस्तु छे. एमां अंदरमां तेनी शक्तिओ वसेली छे. ‘वास्तु’ (एटले) वस्तु छे (लोको) वास्तु ल्ये छे
ई कोई पीपळामां लेता नथी मकानमां ल्ये छे. एम वस्तु छे आ आत्मा ने परमाणु आदि. तेमा
‘वास्तु’ एटले वस्तुमां रहेल अनंतागुणो छे. आहा... हा... हा! ए गुणोनी वर्तमान परिणति ते
पर्याय छे. पर्याय परि
+ आय (एटले) समस्त प्रकारे परिमणवुं, बदलवुं, रूपांतर थई जवुं जेम
लीलारंगनी पीळी केरी थई गई ने...! आहा... हा! एम दरेक द्रव्यनी एक अवस्थाथी बीजी अवस्था
थाय, तेमां तो गुणो अवस्थित रहे - (ए) गुणो ने अवस्था ते द्रव्य छे. आहा... हा!
‘बीजानुं कांई करी शके नहीं एम कहे छे. तेम बीजाथी तारामां कांई थाय’ ना पाडे छे’
(सर्वज्ञभगवान!) ए... इ? आ प्लेन हलावतां ने प्लेन एमां नोकर हता पंदरसोनो पगार, छोडी
दीधी - नोकरी छोडी दीधी. मुंबई ग्या’ ता ने अमे प्लेन (मां) हारे आवता. टोपी पहेरीने हालतां
ने जाणे! आहा... हा! धूळमां य नथी कांई! आहा... हा... हा! जे पैसा छे ई को’ क अस्ति छे ने?
अस्ति छे तो ई पैसो एक-एक तत्त्व नथी. पैसामां आ तमारी शुं कहेवाय ई
(श्रोताः) नोट, नोट
(उत्तरः) हा, ई नोट. अनंत परमाणुनी बनेली छे. जेम आ आंगळी अनंत परमाणुनी बनेली छे.
ते कांई एक परमाणु नथी. (आ आंगळीना) कटका करतां- करतां- करतां- करतां जे छेल्लो पोईन्ट
रहे ते परमाणु (छे.) तेने द्रव्य कहे छे. एवा अनंत परमाणुओ एमां (नोटमां, हाथमां) रहेला छे.
(अने विश्वमां) एवा अनंता (अनंता) परमाणुओ छे.
एम आ आत्मा जे आ अंदर छे. एमां गुण-ज्ञान, दर्शन आदि गुण छे. अने क्षणे-क्षणे

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प३
पलटती एनी पर्याय छे. ई पर्याय एटले अवस्था. (ई) अवस्था ने गुण थईने (आत्मा) द्रव्य छे.
परने लईने ई द्रव्य छे एम नथी. आहा... हा... हा! समजाणुं कांई? समजाय छे के नहीं हवे?
भाषा तो सादी छे. माल (भाव) तो जे होय ते होय ने...!
(कहे छे) (जेम) क्रोड रूपियानो (माल होय) हिसाब करवा माटे कहे, तो (किंमत) चार
आना कहे. ई सहेलुं कहेवाय? आहा... क्रोडना (मालने) क्रोडपणे समजे (एनी किंमत) तो समजायुं
कहेवाय. एम वस्तुनी स्थिति, जे रीते छे ते रीते ज समजवुं ते भाव (किंमत) छे. सहेलुं करीने -
ऊंधुं करीने समजवुं (ऊंधाई छे.) आहा... हा! अरे! अनंतकाळ थ्या, चोराथी लाख, अवतार करतां
- करतां - करतां, पोते आत्मा तो नित्य छे. कया भवे नथी? बधा भवमां भमतां-भमतां-भमतां,
भूतकाळ मां भव.. भव.. भव.. भव.. भव.. क्यांय आदि नथी. एवा अनंत भव कर्यां छे,
कागडाना, कूतराना आहा...! आहा... हा!
(कहे छे केः) वस्तु पोते नित्य छे ने पर्याय पलटे छे. वस्तु नित्य छे, तेनी शक्तिओ नित्य छे
अने अवस्था तेनी पलटे छे, ई तो छ ए द्रव्यनुं स्वरूप छे. छ द्रव्य छे ई लांबी वात पडे तमने
(एटले विस्तार करता नथी). अत्यारे आपणे आत्मा ने परमाणु बे ने ज लईए छीए. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “एक ज द्रव्य छे, द्रव्यांतर नथी.” शुं कीधुं ई? केरीनी लीलीनी पीळी
अवस्था थाय, पण परमाणु तो ई ना ई ज छे. द्रव्य बीजुं, नथी थ्युं. एम आ शरीरमां बिलकुल
ताव न हतो. अने एमां तावनी पर्याय थाय, एथी ते द्रव्य बीजुं थई ग्युं एम नथी. (परमाणु
शरीरना छे तेनी) ए पूर्वनी ठंडी पर्यायनो व्यय थई, ऊनी पर्यायनो उत्पाद थई, अने द्रव्यपणे-
वस्तुपणे कायम रहे छे. आहा... हा... हा! आवी चीज छे! को’ पटेल? आवो मारग छे! आहा..
हा! गमे तेटली भाषा सादी करे पण एनी मर्यादामां ते आवेने...! आहा...!
अहा... हा! आ जगतमां जे देखाय छे. ई छे ई देखाय छे ने...? एक वात. अने देखनारो छे
ए देखे छे ने...? बे वात. शुं कीधुं? लोजिकथी, कंई न्यायथी समजवुं पडशे ने... (एने) के जे आ
देखाय छे चीजो आ. ते छे के नहीं? अस्ति छे के नहीं? एनी सत्ता छे के नहीं? ई मौजुदगी चीज छे
के नहीं? के आकाशना फूलनी पेठे छे? ‘आकाशना फूल’ न होय. आ तो अस्ति छे. ई बधुं अस्ति छे
अने एनो जाणनारो आ छे. एने खबर नथी एनी (के अमे आ प्रमाणे छीए.) आने (शरीरने)
खबर नथी एनी आ तो जड छे माटी! भाषा जड छे एनी एने खबर नथी, शरीर जड छे एने
खबर नथी (के) हुं जड छुं आहा...! जाणनार एवो आत्मा, ए पण ‘छे’ ने जणाय एवी चीज पण
छे. आहा... हा! बे य चीजनी अंदर जाणनारो आत्मा एक (छे.) एवा अनंत आत्माओ छे. आहा...
हा! जणाय एवा पदार्थो अनंत, ए अनंत तत्त्वो छे. ई अनंत तत्त्वोने जाणनारो आत्मा. एनी एक
समयमां पर्याय एटले अवस्था जाणवानी थाय. पहेली (पर्याय) थोडाने

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प४
जाणवानी हती, पछी घणाने जाणवानी थई, अने गुण जे छे ज्ञान (गुण) ए तो कायम रहयो.
कायमपणे गुण रहीने ई पल्टी अवस्था. ई पलटती अवस्था ने गुण, ई द्रव्य-तत्त्व छे. ए पलटती
अवस्था बीजाथी थई छे, ए करमने लईने पलटती अवस्था थई छे एम नथी. भारे काम बापु!
आहा...हा...हा! आ लोजिक! झीणी वात छे! आहा...हा!
(अहींयां कहे छे केः) “केरीना द्रष्टांतनी जेम, द्रव्य पोते ज गुणना पूर्व पर्यायमांथी उत्तर
पर्याये परिणमतुं थकुं”. पहेली अवस्था जेम केरीनी लीली हती, पछी उत्तर अवस्थाए पीळी थई,
ई पोते ज - ए केरीना गुण छे ई केरीमां छे. ए द्रव्य पोते ज, तेम कोई पण द्रव्य आत्मा के
परमाणुओ “पूर्व अने उत्तर” पूर्व एटले पहेलुं, उत्तर एटले पछी “गुणपर्यायो वडे पोतानी
हयाती अनुभवतुं.”
पोतानी सत्ताने अनुभवतुं, पूर्वपर्याय व्यय थई, नवी पर्याय (उत्पन्न) थई,
ए सत्ताने अनुभवतुं (एटले) सत्ता ए पोतानी स्थिति छे. अनुभवतुं अर्थात् होय छे. अनुभवतुं
जडने पण अनुभवतुं छे एम कीधुं अहींयां तो. आहा. हा. हा. आहा... हा! जाणवुं-देखवुं एमां
नथी, आ तो (शरीर) तो माटी. पण एमां एनो उत्पाद-व्यय जे थाय छे, ते तेना पर्यायने
अनुभवे छे ई परमाणु! एनी पर्यायने (परमाणु) अनुभवे छे एम कहे छे. आहा... हा! बीजी
रीते कहीए, तो शरीरमां जे ताव आवे छे, ताव जे परमाणुमां अंदर शक्ति छे, वर्ण-गंध-रस-
स्पर्शनी एनुं ई (ताव) परिणमन छे. परमाणुमां एक स्पर्श नामनो गुण छे, परमाणु छे ई अस्ति
तत्त्व छे. छेछेछे एमां एक स्पर्श नामनी शक्ति-गुण छे, स्पर्श, स्पर्श (गुण) एनी ठंडी
अवस्थामांथी गरम थाय छे, पहेली ठंडी हतीने पछी गरम थई, ए गरम थतां ने ठंडी जतां, गुणो
ने ई पर्यायो थईने बधुं द्रव्य ज छे. ए परने लईने थ्युं छे. (गरम-ठंडुं) अने परने लईने (दवाने,
दाकतरथी) मटे छे. (एम नथी.) तो बधा दवाखाना बंध करवा पडे! अहा... हा... हा... हा... हा!
बापु! प्रभु! ए तो एनी चीज एने कारणे थाय छे. तुं मफतनो अभिमान करतो हो तो माराथी
थाय छे, ए काढी नाखवानुं छे! समजाणुं कांई? आहा...!
‘हुं करुं, हुं करुं ए ज अज्ञान छे.’ नरसी
महेता कहे छे. जुनागढ. “हुं करुं हुं करुं ए ज अज्ञान छे, शकटनो भार जेम श्वान ताणे.” गाडानो
भार जेम कूतरुं ताणे, हेठे अडतुं होय (एम माने) गाडु तो हाले बळदथी, ठीठुं अडयुं होय तो
माराथी हाले छे आ. एम आ दुकानने थडे बेठो ने कंईक पांच-पचीस हजार मळता होय ने, माराथी
आ मळे छे हुं हतो ने माटे व्यवस्था बधी करुं छुं बराबर, नोकरो-नोकरोथी व्यवस्था बराबर हालती
नथी ते हुं थडे बेसुंतो... ए व्यवस्था करुं. ए हिमंतभाई! तमे बेसो ने नोकर बेसे तो शुं फेर न
पडे? (श्रोताः) फेर पडे (उत्तरः) फेर पडे? फेर तो एने लईने पडे छे. तमे मथो एमां, ने फेर पडे
छे एम नथी. एम कहे छे. झीणी वात छे बापु! धरम समजवो बहु! अनंत-अनंत काळ थ्या
परिभ्रमण करतां, ए दुःखी छे, दुःखी छे. अंदर अतीन्द्रिय आनंद भर्यो छे. आहा...! पण एनाथी
विपरीत मान्यतामां, विपरीत श्रद्धामां, विपरीत (अभिप्रायमां). अस्तित्व जेनुं स्वतंत्र छे तेम न
मानतां मारे लईने एमां (कार्य) थाय ने एने लईने मारामां थाय, एवी मिथ्याश्रद्धाथी दुःखी छे ई.
भले क्रोडोपति-अबजोपति हो! बिचारां भिखारां

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३पप
दुःखी-दुःखी छे. बराबर हशे? (श्रोताः) एकदम बराबर! अहीं तो आवता नहीं? साहू शान्तिप्रसाद
साहू, फोटो आव्यो छे भाई एनो, दिल्हीवाळा. चालीश करोड. साहूजी शान्तिप्रसाद! आंही घणीवार
आवी ग्या छे! धूळमां य कांई, ए परमाणु ए परमाणु स्वतंत्र छे, तारा नहीं. अर... र... र! आवुं
(श्रोताः) एटला बधा - करोडो रूपिया हता ने... तमे ना पाडो. (उत्तरः) कोने कहेवा करोडो. ए
बधी धूळ, बे अबज कीधुं नहीं? आपणे गोवामां छे एक शांतिलाल खुशाल. जैन, स्थानकवासी! बे
अबज चालीश करोड (रूपिया) गुजरी गयो हमणां दोढ-पोणा बे वरस पहेलां, मुंबई. एनी वहुने
हेमरेज थयेलुं. न्यां तो चालीश लाखनो बंगलो छे, दस-दस लाखना बे बंगला छे गोवामां. बे
अबज चालीश करोड रूपिया छे. एने बाईने (पत्नीने) हेमरेज थ्युं ने आवी’ ती न्यां, त्यां बे-
चार दि’ थ्या ने मने कंईक दुःखे छे, दाकतर बोलावो. दाकतर ज्यां आवे त्यां, जाव रखडवा
चारगति! आहा... हा! क्यां जवुं? जेवा भाव कर्या, ए भवे जईने अजाण्या क्षेत्रे, न्यां अवतार
अवतरशे. एना पाछा चालीश लाखना बंगला पडया रह्या हेठे. बे अबजने चालीश करोड! हमणां
आव्यो’ तो छोकरो दर्शन करवा, मुंरई ग्याने अमे तो आव्यो-आव्यो! आवे! सांभळवा पण क्यां
बिचारांने! आ वात! क्रिश्चियनने परण्यो छे, पैसा बहु (ने) एटले ख्रिस्तिने परण्यो छे छोकरो
आव्यो’ तो दर्शन करवा हमणां मुंबई हता ने अमे! अरे! बिचारां भिखारा! भिखारां एटले?
(कहे छे) आ आत्मामां अनंत लक्ष्मी छे, ज्ञान, दर्शन, आनंदनी, ए लक्ष्मीनी जेने भावना
ने श्रद्धा नथी, अने आ लक्ष्मी - बायडी आवे ने छोकरां आवे ने ए बधां भिखारां, पर वस्तुए
मागनारा मागण छे. आहा...हा...हा...हा! दरबारने कह्युं’तुं ने आंही. भावनगर दरबार आव्या’ता.
व्याख्यानमां श्रीकृष्णकुमार अत्यारे छे ने एना बाप कृष्णकुमार भावसिंहजीनो दिकरो आव्या’ता
व्याख्यानमां बे-त्रण वार कीधुं. दरबार! महिने लाख मागे नानो मागण, पांच लाख मागे ई मोटो
मागण ने करोडो मागे ई मागणनो मागण छे. आंही अमारे क्यां एनी पासेथी कांई लेवुं’ तुं के
न्यां राजी थाय तो पैसा आपे ई, आंही शुं छे! माणस नरम हतो, बिचारा कहे छेः साची वात
महाराज! मागवुं (तो एनी पासे मांगवुं) के अंदर भर्युं पडयुं छे अंदर. आहा...! अतीन्द्रिय
सच्चिदानंद प्रभु! सत् शाश्वत ने ज्ञान ने आनंदनो भंडार छे. अनंत ज्ञान ने अनंत अनंत आनंद
जेनो स्वभाव छे, एनी आनंदनी - अनंतनी मर्यादा शी? आहा...! ई तारी नजरुं गई नथी त्यां,
तें श्रद्धा करी नथी. एवो जे भगवान आत्मा (एने मूकीने ‘आ लोवो’ ‘आ लावो’ बायडी लावो,
छोकरां लावो. ने छोकरां ने वहु लावो, दीकरीने ठेकाणे पाडो, छोकरांने ठेकाणे पाडो ने फलाणुं ने ढीकणुं,
मरी ग्यो अनादिथी (अहंकार ने ममकारथी). पोतानी सत्तानो स्वीकार न करतां, परनी सत्ताना
स्वीकारमां, परना कार्य हुं करुं छुं, मारे लईने बधुं थाय छे. (ए अहंते ममथी आनंदलक्ष्मी खोई
बेठो.). आहा...हा! आवुं छे! ई मूढता छे. आहा...हा!
(वळी कहे छे) तमारो शेठ आव्यो’तो ने...! मुंबळ आव्यो’ तो. पचास करोड! आवे बिचारा,
जाणीता रह्याने आवे, समजे शुं धूळ कांई? पचास करोड (श्रोताः) किलाचंद देवचंद (उत्तरः) हा,

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प६
ई पोते बधा विष्नु ने बैरांओ बधा जैन छे. आव्या’ ता बिचारा, कांई खबरु न मळे बिचाराने!
वातुं मोटी करे. अने ओला सांभळनारा बचारां साधारण होय, मोटप नाखीने मारी नाखे! आहा...
हा! बापु मोटो तो प्रभु तुं अंदर आनंदने ज्ञानथी मोटो छे. आहा... हा! अरे... रे! ए चैतन्य
हीरलो अंदर छे, चैतन्य हीरो! जेम हीराने पासा होय छे एम आ चैतन्य (हीराने) अनंतगुणना
पासा होय छे. आहा... हा! ए गुणनी वर्तमान अवस्था थाय, ते गुण-पर्याय छे. गुण-पर्याय एटले
द्रव्य-वस्तु छे. गुण-पर्याय ते द्रव्यथी अनेरी चीज नथी. आहा... हा! समजाय छे कांई! आपणे
अहींयां चुमालीस वरसथी हाले छे. सवाचुमालीस वरस तो आंही थ्या. जंगलमां! पीसतालीस वरसे
आव्याने आंही. सवाचुमालीस थ्या. ९१ मां फागण वद त्रीजे आव्या. आ बधुं करोडो रूपिया नखाई
ग्या पछी. एनी पर्याय थवा काळे थाय, एमां कोईथी थाय नहीं हों! आहा... हा... हा!
(कहे छे केः) ‘अस्ति’ छे के नहीं... जे देखाय छे ने देखनारो छे. देखाय छे ने देखनारो छे,
ए अस्ति छे के नहीं, सत्ता छे के नहीं, मौजुदगी चीजनी छे के नहीं? तो मौजुद जे चीज छे ए
कायम रहेनारी छे ने अनादि-अनंत (छे.) ए चीज छे एमां अनंता गुण भर्यां छे. (एटले ध्रुव
छे) नवुं-नवुं थाय ए तो पर्याय-अवस्था थाय. गुण ने द्रव्य ए तो कायम छे. अवस्था बदले-
रूपांतर थाय. पण रूपांतर ने गुण ए द्रव्य छे, द्रव्य छे, द्रव्यथी ई जुदां नथी.’ आहा...हा...हा! आवो
उपदेश होय!! छे? (पाठमां).
(अहींयां कहे छे केः) “द्रव्य पोते ज गुणना पूर्व पर्यायमांथी उत्तर पर्याये परिणमतुं थकुं,
पूर्व अने उत्तर गुणपर्यायो वडे पोतानी हयाती अनुभवतुं होवाने लीधे, पूर्व अने उत्तर
गुणपर्यायो साथे अभिन्न हयाती होवाथी एक ज द्रव्य छे.”
द्रव्य एटले वस्तु. अथवा द्रव्य एटले
द्रवतीति द्रव्यम्’ पाणीनो पिंड जेम होय ने पछी तरंग ऊठे - द्रवे तरंग एम वस्तु छे. (तेनी)
पर्याय-अवस्था बदले छे, ए अवस्थाने द्रव्य करे छे. ई तेने द्रव्य कहीए. ई द्रव्यनी पर्याय पोते द्रवे-
करे छे. पण एनी पर्याय बीजो कोई द्रवे-करे ई त्रण काळमां बनतुं नथी. माने न माने स्वतंत्र छे.
आहा... हा परम सत्य आ छे. सत्-सत् साहेब! चैतन्यप्रभु! अनंत आनंद ने अनंतज्ञानथी भरेलो
पदार्थ छे प्रभु (आत्मा)! एनी अवस्था क्षणे-क्षणे थाय छे (एटले के द्रवे छे) ई अवस्था ने गुण
थईने ई द्रव्य छे. शरीर थईने द्रव्य छे. ने वाणी थईने... द्रव्य छे... ने... पैसा थईने द्रव्य छे... न...
बायडी लईने द्रव्य छे... ने... बायडी अर्धांगना कहेवाय, धूळमांय नथी अर्धांगना! आहा... हा!
सांभळने... हवे! बायडी वळी एने पतिदेव कहे. ई वळी एने धरमपत्नी कहे. एम भाषामां
ओगाळे! कोण हता बापा! वस्तु जुदी छे. आहा... हा! जुदी जुदी चीजने जुदुं कोई करे झीणुं पडे
भाई! एक तत्त्व, बीजा तत्त्वने अडे नहीं. केम बेसे? आत्म भगवान अंदर अरूपी, वर्ण, रस, गंध,
स्पर्श विनानो अने ज्ञान, दर्शन, आनंदवाळो! ए शरीरने अडतो नथी. अने आ शरीरना रजकणो
ए आत्माने अडता नथी. केम के आ तो जड-रूपी छे ने प्रभु (आत्मा) अरूपी छे. आहा... हा!
(श्रोताः) ताव आवे छे त्यारे दुःखे छे केम? (उत्तरः) दुःखे छे

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प७
ई तो द्वेष करे छे माटे. अणगमो करे छे ने द्वेषने लईने दुःख छे. तावने लईने नहीं. अहा... हा...
हा. तावनी तो जडनी अवस्था छे. पण एमां अणगमो करे छे. ‘ठीक नथी आ’ एनुं नाम द्वेष छे
एनुं नाम दुःख छे. आहा... हा!
आहा...! धरमी जीवने आत्मज्ञान ने दर्शन ने आनंदनुं भान होवाथी, एने ई शरीरमां
रोगादि होवा छतां, पोताने आनंद (स्वरूप) माने ई आनंदनो अनुभव करे, ए जरी दुःख थाय
जरी पण जाणे! आहा... हा... हा! बहु फेर! वस्तु वस्तुनो!
अहींयां तो सवाचुमाळीश वरसथी हाले छे भई! ९१ ना फागण वद त्रीजे आव्या छै
अहींयां, त्रण वरस बीजामां रहया. ‘स्टार ओफ ईन्डिया’ (नामनुं) मकान छे जंगलमां. त्रण वरस
त्यां रहया. बाकी आ स्वाध्याय मंदिर थ्युं. ९४ मां (संवत - ९४) आहा... हा! बावीस लाख तो
पुस्तक बहार पडया छे. आंहीथी (सोनगढथी) वांचन करे छे जयपुर वगेरेमां. नैरोबी छे, आफिकामां
छे, आ बधाय मंदिर बनावे छे आफिका. पैसावाळा छे करोडोपति आठ, बीजा पैसावाळा छे. आ जेठ
शुद अगियारसे पूरुं. मंदिर पंदर लाखनुं तैयार कर्युं छे. हवे ए लोकोनी मागणी छे, न्यां आववानी.
हवे थाय ई खरुं नेवुं वरस थ्यां. हवे देखाव लागे पण जावुं. मागणी छे एनी. आहा... हा! आ
चीज! अरे... रे! सांभळवा मळे नहीं, अने जे सांभळवा मळे ए बधुं ऊलटुं मळे. अरे. ई सत्ने के
दि’ पहोंचे! सत्नो सत् तरीके के दि’ स्वीकार करे? आहा... हा! छे? (पाठमां)
(अहींयां कहे छे केः) “पूर्व अने उत्तर गुणपर्यायो साथे अभिन्न हयाती होवाथी एक ज द्रव्य
छे.” द्रव्यांतर नथी. वस्तु एक ज छे. केरीनी (पर्याय) लीलीनी पीळी थई, अने एनो वर्ण जे गुण छे.
ए गुणनी अवस्था लीली ने पीळी ई पर्याय कहेवाय. अने अंदर वर्ण छे ई गुण कहेवाय. गुण ने
पर्याय ने एवा अनंता गुणो अने एनी अनंती पर्यायो, ते द्रव्य-वस्तु छे ते तत्त्व छे. परने लईने
नहीं. आहा... हा! पर तत्त्वने लईने पर तत्त्वना पर्यायो नहीं, परतत्त्वने लईने परतत्त्वना गुणो नही
परतत्त्वने लईने परतत्त्वनुं द्रव्य नही. आहा...हा...हा! हवे आ के दि’ भेगा थाय? जे सांभळवा मळे
मुश्केल! पकडवानुं मुश्केल! दुनियाने जाणीने छीए ने भई! जाणतां! छासठ वरस तो दुकान छोडयाने
थ्या छे. सडसठ थ्या सडसठ दुकान छोडयाने...! आहा...! दुकान उपरेय हुं तो शास्त्रनो अभ्यास करतो.
नानी उंमरमां, दुकान पिताजीनी. अभ्यास बधो ‘दशवैकालिक सूत्र’ ने बधां वांचेला दुकान उपर. ६४-
६पनी साल. ‘समवायांग’ ६४-६प-६६ (नी सालमां वांच्युं) एटला वरसनी वात छे! आहा...हा!
(पण) ‘आ तत्त्व कंई अलौक्कि छे, ए तत्त्व कहीए (छीए) ए तत्त्व क्यांय ए पुस्तकोमां
हतुं नहीं.’ आहा... हा!

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प८
अहींयां एम कहयुं केः जेम केरी छे ई परमाणु छे रजकण. एमां वर्ण, रस, गंघ, स्पर्श, एना
गुणो छे. अने तेनी लीली ने पीळी अवस्था छे. तो ई लीली, पीळी अवस्थाथी ने एना गुणोथी
तेनुं द्रव्य जुदुं नथी. अभिन्न छे. एम दरेक द्रव्यने क्षणे क्षणे थती अवस्था अने तेना कायम रहेनारा
गुण, ते गुण ने पर्याय ते द्रव्य छे. बीजा द्रव्यने लईने एमां पर्याय पलटे छे, एम नथी. समजाय छे
के नहीं? आहा... हा! वाडामां तो आ व्रत पाळो, दया करो, अपवास करो, भक्ति करो, देरासर
बनावो, एमां शुं धूळमां छे? (धरम कांई?)
आहा... हा! आनुं-आनुं तात्पर्य ई छे के जयारे एना, दरेक द्रव्यना गुणपर्याय ते द्रव्य छे.
तो तारो आत्मा जे छे तेना गुण ने पर्याय ते आत्मा छे. तेथी ते आत्मा अखंड छे तेना पर द्रष्टि
कर. के जेथी तने बधानी सत्तानो नकार थशे, पोतानी पूर्ण सत्तानो स्वीकार थशे. स्वीकार थतां तने
अतीन्द्रिय आनंद आवशे. आहा...हा...हा...हा! आ एनुं तात्पर्य छे. ए...ई! आ शुं करवा सामे
जोयुं? प्रश्न कर्यो’ तो ने...! अहा...हा...हा! आहा...हा! भगवान आत्मा, द्रव्य छे - वस्तु छे. एमां
ज्ञान जाणवुं-देखवुं आनंद एना गुणो छे, अनंत! अने तेमां पर्याय जे थाय छे मतिज्ञान-श्रुतज्ञान
आ थाय छे ने...! थोडुं ज्ञान (होय) पछी वधु ज्ञान पलटे छे ई दशा, (ते) पर्याय छे. तो पर्याय
(ने) गुण ते आत्मा छे. जयारे एम छे तो एने बीजा द्रव्यो उपरथी द्रष्टि हठावी दई, कारण के
बीजानुं करी शकतो नथी, बीजाना गुणपर्याय. तेना (तेनामां) छे. आहा...हा...हा! को’ चीमनभाई!
वेपारमां शुं करवुं? आ हुशियार होय एने? हुशियार माणस कहेवाय छे ने...! दश हजारनो पगार
हुशियार न कहेवाय? हुशियार ज होय ने? रामजीभाईनो दिकरो हुशियार ल्यो! आठ हजारनो पगार
ल्यो!! महिने आठ हजार! रामजीभाईनो दीकरो छे एक ज. मुंबईमां छे. ‘एसो’ ‘एसो’ छे ने
कंपनी. ‘एसो’ कंपनी नथी? ‘ऊडतो घोडो’ एमां नोकरी हती पण ई एसो बदली गई. नाम
बीजुं फ्री थई ग्युं छे हवे. पहेलां ‘एसो काुं’ हतुं. आठ हजारनो पगार छे मासिक हों! एमां कांई
नहीं, पंदर हजारनो पगार होय (एवा पण) बहु आवे छे अहींयां. दलीचंदभाईनो दीकरो नथी
एक, पंदर हजारनो पगार महिने. एकनो दश हजारनो छे ने एकनो आठ हजारनो छे. पगार धूळमां
य नथी क्यांय! आहा... हा! ए रजकणे-रजकण ते तेना गुण-पर्यायथी छे. एने लईने तुं नथी ने
तारे लईने ए नथी. आहा... हा... हा! आवुं बेसवुं कठण पडे! छे? (पाठमां) हवे बीजुं वांचीए.
(अहींयां कहे छे केः) “एक ज द्रव्य छे, द्रव्यांतर नथी.” शुं कीधुं ई? के दरेक पदार्थमां जे
गुणो छे, अजे शक्ति (ओ) अने एनी थती अवस्था, ए द्रव्य छे. ते द्रव्य (एटले) ते वस्तु छे.
द्रव्यांतर एटले अनेरुं द्रव्य नथी. पलटी अवस्था एटले एम थई ग्युं के ‘आ’ लीलीनी पीळी ने,
पीळीनी काळी ने, ई तो एनी अवस्थाओ छे. ई कांई अनुेरुं द्रव्य नथी. ए द्रव्य स्वरूप ज छे. ई
पदार्थ ई स्वरूप ज छे. आहा... हा!
“अर्थात् ते ते गुणपर्यायो अने द्रव्य एक ज द्रव्यरूप छे,
भिन्नभिन्न द्रव्यो नथी.” आहा... हा! आ आत्मा, शरीर ने के वाणीने अडयो य नथी. फकत ए

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३प९
आत्मा, तेनामां जे कायमना गुणो छे - जाणवुं - देखवुं - आनंद एनी वर्तमान पर्याय कोईनी
विकारी ने कोईनी अविकारी थाय, ए पर्याय ने गुण ते ज आत्मा छे. एवुं आत्मानुं अस्तित्व,
एना गुण-पर्यायना अस्तित्वमां छे. एनुं अस्तित्व सत्ता, ए अस्तित्व छोडीने परनी सत्ताना
अस्तित्वमां छे एम कदी नथी. आहा... हा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “वळी जेम पीतभावे ऊपजतुं, केरी हरितभावथी नष्ट थतुं अने
आम्रफळपणे टकतुं होवाथी.” आहा...! आम्रफळ टके छे ने...! “आम्रफळ एक वस्तुना पर्याय द्वारा
उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य छे.
आमां शु कहेवुं छे? के उत्पाद-व्यय ने ध्रौव्य अमे सिद्ध करी गया छीए. पण
आमां गुण-पर्याय छे ई द्रव्य छे ई सिद्ध करवुं छे. उत्पाद-व्यय-ने ध्रौव्य एक समयमां ऊपजे, व्यय
थाय ने ध्रौव्यपणे रहे ई साबित करी ग्या छीए. पण आ तो गुणपर्याय ते द्रव्य सिद्ध करवुं छे.
आहा... हा! ओला त्रण बोल हता (उत्पाद-व्यय-ने ध्रौव्य) आ बे बोल छे (गुण ने पर्याय).
नवी अवस्था ऊपजे, पूर्वनी अवस्था जाय ने वस्तु तरीके सद्रश-कायम रहे. ई त्रण थईने द्रव्य
कीधुं’ तुं. अहींयां गुण, पर्याय बे थईने द्रव्य कहे छे. आहा... हा! आ तो कोलेज जुदी जातनी छे
भई! दुनियानी बधी खबर नथी? दुनियाना दश-दश हजार माईल फर्या छीए आखी हिन्दुस्तानना
त्रण वार. दश-दश हजार माईल! बधा समजवा जेवा छे!! आ...हा...हा...हा! आ तत्त्व जे अंदर छे.
एमां एनी जे अवस्था थाय छे - दशाओ, आ बधी जाणवानी-देखवानी-मानवानी, अरे, रागनी!
ए बधी दशा ने गुण ए तत्त्व छे. एनुं ई अस्तित्व छे. ई अस्तित्व (मां) परने लईने विकार
थाय, परने लईने गुण टके, परने लईने आ द्रव्य रहे एम नथी. समजाणुं कांई? आहा... हा!
आवो उपदेश कई जातनो? ओलुं तो आम करो! सेवा करो! दवा अपो! फलाणुं (सेवानुं काम)
करो! आहा... हा! भूख्याने अनाज अपो! तरस्याने पाणी आपो! खाली जग्यामां ओटला (उतारा)
बनावो, बधा आराम करे! आरे... अहाहाहाहा! भगवान! सांभळने प्रभु! तुं कर, कर एम कहे छे
तंई सामी चीज ए छे के नहीं? सामी कोई चीज छे एने तुं करवा मागे छे नहीं? सामी चीज छे
तो ई चीज एना गुण ने शक्ति विनानी छे के गुण ने शक्तिवाळी छे? अने गुणने शक्तिवाळी ए
चीज होय तो एनुं परिणमन एनाथी थाय छे के ताराथी थाय छे? आहा... हा! लोजिकथी छे वात
न्यायथी (सिद्ध थयेली छे.) पण ई समजवुं जोईए एमां (आळस न चाले!)
(अहींयां कहे छे केः) “आम्रफळ एक वस्तुना पर्याय द्वारा उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य छे, तेम उत्तर
अवस्थाए अवस्थित गुणे ऊपजतुं” जोयुं? गुण-पर्याय थईने (द्रव्य-सिद्ध) करवा छे ने? उत्तर
अवस्थाए (एटले) पछीनी पर्याय गुणे ऊपजतुं “पूर्व अवस्थाए अवस्थित गुणथी नष्ट थतुं”
गुण तो अवस्थित छे.
“अनेद्रव्यत्वगुणे टकतुं होवाथी” आहा... हा... हा! वस्तुपणे टकतुं होवाथी
“द्रव्य एकद्रव्यपर्याय द्वारा उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य छे.” ल्यो! आहा... हा! मूळ माथे (मथाळे) तो एम
कह्युं. गुणपर्याय ई एकद्रव्यपर्यायो छे. पहेलुं.

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गाथा – १०४ प्रवचनसार प्रवचनो ३६०
एनो अर्थ स्वभाव कर्यो छे. आ ई उत्पाद-व्यय पर्यायमां आवी. अने गुण आव्यो गुणमां
(ध्रौव्यमां) उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य ते गुण-पर्याय छे. उत्पादव्ययध्रौव्य द्रव्य छे अमे गुण-पर्याय (पण)
द्रव्य छे एम. आहा... हा! “द्रव्य एक द्रव्यपर्याय द्वारा उत्पादव्ययध्रौव्य छे.”
“भावार्थः– आना पहेलांथी गाथामां द्रव्यपर्याय द्वारा (अनेक द्रव्यपर्याय द्वारा) द्रव्यनां
उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य बताववामां आव्यां हतां.” आहा... हा... हा! बे परमाणुथी मांडी अनंत
परमाणु, भेगां थाय तेनी ई पर्यायने समानजातीय द्रव्यपर्याय - अवस्था कहेवामां आवे छे. अने
आत्मा शरीर बेय ने (एकसाथे देखवाथी) असमानजातीय द्रव्यपर्याय कहेवामां आवे छे. आ जात
जुदी (आत्मानी) आनी जात जुदी (परमाणुनी) एने असमानजातीय (द्रव्य) पर्याय कहेवामां आवे
छे. आहा... हा! आ भाषा कई जातनी... ने आहा...! छे ने? (पाठमां)
“भावार्थः– आना पहेलांनी गाथामां द्रव्यपर्याय द्वारा (अनेक द्रव्यपर्याय द्वारा) द्रव्यनां
उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य बताववामां आव्यां हतां. आ गाथामां गुणपर्याय द्वारा. वात अहींयां छे.
समजाणुं? आहा... हा! ओलामां त्रण बोल हता - उत्पाद - व्ययने ध्रौव्य. उत्पाद (एटले) नवी-
नवी अवस्था थाय छे दरेक पदार्थमां ते. (व्यय एटले) पुराणी अवस्था बदले छे अने (ध्रौव्य
एटले) रहे छे - टके छे. ए त्रणे थईने तत्त्व छे. अहींयां गुण-पर्यायने लीधुं. गुणो तत्त्वमां-द्रव्यमां
कायम रहेनारा, अने एनी परिणति जे थाय बदलीने ई पर्यायने गुण, द्रव्य छे. पहेलुं उत्पाद-व्यय
ने ध्रौव्य ते द्रव्य कीधुं’ तुं. अहींयां गुण ने पर्यायने द्रव्य कीधुं छे. बे मां कांई फेर नथी. “आ
गाथामां गुणपर्याय द्वारा (एकद्रव्यपर्याय द्वारा) द्रव्यनां उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य बताव्यां छे.”
ल्यो!
पहेलां उत्पादव्ययध्रौव्य (द्रव्य) बताव्युं आमां गुण-पर्याय (द्रव्य) बताव्युं. आहा... हा!
विशेष कहेशे.....

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गाथा – १०प प्रवचनसार प्रवचनो ३६१
हवे सत्ता अने द्रव्य अर्थातरो (भिन्न पदार्थो, अन्य पदार्थो) नहि होवा विषे युक्ति रजू करे छेः-
ण हवदि जदि सद्व्वं असद्धुव्वं हवदि तं कहं दव्वं ।
हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा दव्वं सयं सत्ता ।। १०५।।
न भवति यदि सदद्रव्यमसद्ध्रुवं भवति तत्कथं द्रव्यम् ।
भवति पुनरन्यद्धा तस्माद्द्रव्सं स्वयं
सत्ता ।। १०५।।
जो द्रव्य होय न सत्, ठरे जे असत् बने कयम द्रव्य ए?
वा भिन्न ठरतुं सत्त्वथी! तेथी स्वयं ते सत्त्व छे. १०प.
गाथा – १०प
अन्वयार्थः– [यदि] जो [द्रव्यं] द्रव्यं [सत् न भवति] (स्वरूपथी जा सत् न होय तो-
(१) [ध्रुवं असत् भवति] नककी ते असत् होय; [तत् कथं द्रव्यं] जे असत् होय ते द्रव्य केम होई
शके? [पुनः वा] अथवा (जो असत् न होय) तो (२) [अन्यद् भवति] ते सत्ताथी अन्य (जुदुं)
होय! (ते पण केम बने? [तस्मात्] माटे [द्रव्यं स्वयं] द्रव्य पोते ज [सत्ता] सत्ता छे.
टीकाः– जो द्रव्य स्वरूपथी ज सत् न होय, तो बीजी गति ए थाय के- (१) ते असत् होय,
अथवा (२) सत्ताथी पृथक होय. त्यां, (१) जो असत् होय तो, ध्रौव्यना असंभवने लीधे पोते नहि
टकतुं थकुं, द्रव्य ज
अस्त थाय; अने (२) जो सत्ताथी पृथक होय तो सत्ता सिवाय पण पोते टकतुं
(-हयात रहेतुं) थकुं, एटलुं ज मात्र जेनुं प्रयोजन छे एवी सत्ताने अस्त करे.
परंतु जो द्रव्य स्वरूपथी ज सत् होय तो- (१) ध्रौव्यना सद्भावने लीधे पोते टकतुं थकुं, द्रव्य
उदित थाय छे. (अर्थात् सिद्ध थाय छे); अने (२) सत्ताथी अपृथक रहीने पोते टकतुं (-हयात
रहेतुं) थकुं, एटलुं ज मात्र जेनुं प्रयोजन छे एवी सत्ताने उदित करे छे (अर्थात् सिद्ध करे छे.) माटे
द्रव्य पोते ज सत्त्व (सत्ता) छे एम स्वीकारवुं, कारण के भाव ने
1भाववाननुं अपृथकपणा वडे
अनन्यपणुं छे. १०प.
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१. सत्= हयात. २. असत् = नहि हयात एवुं
३. अस्त= नष्ट. (जे असत् होय तेनुं टकवुं= हयात रहेवुं केवुं? माटे द्रव्यने असत् मानतां, द्रव्यना अभावनो प्रसंग आवे अर्थात्
द्रव्य ज सिद्ध न थाय.)
४. सत्तानुं कार्य एटलुं ज छे ते द्रव्यने हयात राखे. जो द्रव्य सत्ताथी भिन्न रहीने पण हयात रहे. टके, तो पछी सत्तानुं प्रयोजन ज
रहेतुं नथी. अर्थात् अभावनो प्रसंग आवे छे.
* भाववान= भाववानळुं (द्रव्य भाववाळुं छे अने सत्ता तेनो भाव छे. तेओ अपृथक छे (-पृथक नथी) ते अपेक्षाए अनन्य छे (-
अन्य नथी) पृथक्त्व अने अन्यत्वनो भेद जे अपेक्षाए छे ते अपेक्षा लईने तेमना खास (जुदा) अर्थो हवेनी गाथामां कहेशे. ते
अर्थो अहीं लागुं न पाडवा. अहीं तो अनन्यपणाने अपृथकपणाना अर्थमां ज समजवुं.)