Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 25-06-1979; Gatha: 106.

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गाथा – १०प प्रवचनसार प्रवचनो ३६२
प्रवचनः ता. २प–६–७९.
‘प्रवचनसार’ १०प गाथा.
हवे सत्ता अने द्रव्य अर्थांतरो (भिन्न पदार्थो, अन्य पदार्थो) नहि होवा विषे युक्ति रजू
करे छेः–
शुं कहे छे? आ वस्तु जे छे. एमां अस्तित्व, अस्तित्व (एटले) सत्ता, अस्तित्व नामनो ए
गुण छे. दरेक पदार्थ छे एमां अस्तित्व- सत्ता नामनो गुण छे. ते सत्ता गुण द्रव्यथी जुदो नथी.
‘सत्’ छे ते सत्ता गुणथी जुदुं नथी. आ परमाणु य सत् छे, आत्मा य सत् छे. तो जे सत् छे ते
सत्ता नामना गुणथी ते सत् जुदुं नथी. आहा... हा! जरी झीणो विषय छे. लोजिकथी सिद्ध करे छे.
हवे सत्ता-वस्तु छे एमां सत्ता नामनो गुण छे. ‘छे’ एवी सत्ता नामनो गुण छे. (ए गुण) न
होय तो वस्तु ज न होय. आत्मा, परमाणु आदि (छ द्रव्यो) एमां सत्ता नामनो गुण छे. ए सत्ता
ने द्रव्य अर्थांतरो, भिन्नपदार्थो नथी. सत्ता भिन्न छे ने द्रव्य भिन्न छे एम नथी. सत्ता गुण छे द्रव्य
गुणी छे. छतां ते भिन्न नथी. (भिन्न) नहि होवा विषे (आ गाथामां) युक्ति रजू करे छे.
ण हवदि जदि सद्द्व्वं असद्धव्वं हवदि तं कहं दव्वं ।
हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा दव्वं सयं सत्ता ।। १०५।।
जो द्रव्य होय न सत्, ठरे ज असत् बने कयम द्रव्य ए?
वो भिन्न ठरतुं सत्त्वथी! तेथी स्वयं ते सत्त्व छे. १०प.
टीकाः– बधी लोजिकथी वात छे भई आ तो वाणियाना वेपारथी जुदी जात छे. आहा.. हा!
“जो द्रव्य स्वरूपथी ज सत् न होय.” शुं कहे छे? आत्मा, परमाणु एक-एक, ए वस्तु पोताना
स्वरूपथी ज जो हयाती धरावती न होय, एना स्वरूपथी ज सत्ता न होय, निज स्वरूपथी ज एमां
सत्त्व न होय, आहा...! “तो बीजी गति ए थाय के” शुं कीधुं ई? समजाणुं? वस्तु जे छे आत्मा,
आ परमाणु, एमां जो द्रव्य स्वरूपथी सत्ता न होय, पोताथी ज सत्तापणे-होवापणे न होय-हयात
रहे-टके (अर्थ आप्यो छे) अंदर (नीचे फूटनोटमां) (के सत्तानुं कार्य एटलुं ज छे के ते द्रव्यने हयात
राखे. जो द्रव्य सत्ताथी भिन्न रहीने पण हयात रहे-टके, तो पछी सतानुं प्रयोजन ज रहेतुं नथी,
अर्थात् सत्ताना अभावनो प्रसंग आवे छे) (जो एम होय) तो बीजी गति शी थाय? केः
“ते
असत् होय.” ‘छे’ ... ई वस्तु पोताना स्वरूपथी छे. एम न होय तो, वस्तुनो अभाव थई जाय.
आहा... हा... हा!
“अथवा सत्ताथी पृथक होय.” कां’ असत् थई जाय, कां, सत्ताथी

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गाथा – १०प प्रवचनसार प्रवचनो ३६३
द्रव्य जुदुं थई जाय. द्रव्य पोताथी-स्वरूप (थी) सत्ता न होय तो सत्ताथी द्रव्य जुदुं थई जाय.
आहा...हा! “जो असत् होय तो, ध्रौव्यना असंभवने लीधे पोते नहि टकतुं थकुं.” वस्तु छे ई असत्
होय, सत्ता स्वरूप न होय, होवापणाना गुणवाळुं न होय, तो ते असत् होय. तो ते ध्रौव्यना
असंभवने लीधे, कायम रहेवुं एना असंभवने लीधे, पोते नहि टकतुं थकुं, द्रव्य ज पोते टकतुं नथी.
(तेथी) “द्रव्य ज अस्त थाय” छे. वस्तु नाश पामी जाय छे. समजाय छे कांई? बधो न्यायनो
विषय छे! आ ‘प्रवचनसार’.
कहे छे वस्तु (जे) छे. ए वस्तु, पोताथी सत्ता न होय, पोताथी होवापणे नहोय, तो सत् छे
ई बीजुं थई जाय, सत्थी द्रव्य बीजुं थई जायएम पोताथी सत् न होय, ए तो असत् थई जाय.
आहा... हा! हा! “द्रव्य ज अस्त थाय.” छे’ एवुं जो द्रव्य पोताथी छे एम न होय, तो ते द्रव्यनो
नाश थाय. आहा... हा... हा! “जो सत्ताथी पृथक होय.” वस्तु जे छे भगवान आत्मा के परमाणु
(वगेरे) एनी सत्ता नामना गुणथी जो ते (सत्) जुदुं होय.
“तो सत्ता सिवाय पण पोते टकतुं
(–हयात रहेतुं) थकुं.” सत्ता सिवायथी पण पोते टकतुं, सत्ताथी होवापणे थ्युं अने सत्ता सिवाय जो्र
होय तो, सत्ता सिवाय पण पोताथी टकतुं (-हयात रहेतुं) थकुं,
“एटले ज मात्र जेनुं प्रयोजन छे.”
ए टकतुं तत्त्व छे ई सत्ता छे. पण पोताथी हयात छे. अने एम न होय तो, सत्ता सिवाय पण “एटलुं
ज मात्र जेनुं प्रयोजन छे.”
सत्तानुं प्रयोजन ए छे के द्रव्य पोते पोताथी छे. जो ई सत्ताने न माने, तो
द्रव्य नो ज अभाव थई जाय. अस्तित्व न रहे ‘छे’ ई छे सत्ताथी छे. सत्तानी ना पाडे तो वस्तु अस्त
थई जाय. आहा.. हा! समजाय छे!
“एवी सत्ताने (ज) अस्त करे.” एटले शुं कहे छे? द्रव्य पोते
वस्तु, पोताथी स्वरूपे सत् न होय, तो सत्ता विनानी ए चीज नाश थई जाय. ए द्रव्य ज नथी एम
थाय. ‘सत्ता’ छे तो आत्मा-द्रव्य छे. एम जो सत्ता न माने. अथवा (सत्ताने सत्थी) भिन्न माने
तो (द्रव्यनुं) होवापणुं ज नकार थई जाय. द्रव्यना होवापणानी (ज) नास्ति थई जाय. आहा... हा...
हा!
(अहींयां कहे छे केः) “परंतु जो द्रव्य स्वरूपथी ज सत् होय तो–” हवे! (मार्मिक छे) पोते
पोताथी ज सत् होय, सत्ता सत् छे एम. सत्ता गुण छे. पण, पोताथीज सत् होय. वस्तु पोताथी ज
सत् छे. परमाणु (ए) परमाणु पोताथी सत् छे. आहा... हा! तो
“ध्रौव्यना सद्भावने लीधे पोते
टकतुं थकुं” ई द्रव्यमां सत्ता (गुण) छे. तेथी पोते ज पोताथी टकतुं थकुं “द्रव्य उदित थाय छे
(अर्थात् सिद्ध थाय छे.) ”
कहे छे (तेथी) द्रव्यनी सिद्धि थाय छे. आहा... हा! आवुं छे. वाणियाने
वेपार सिवाय हवे आवी वातुं (समजवी) बीजी जातनी छे आ बधी! अहींयां सत्तागुण, अस्तित्व
गुण, सत्तागुण, (ए जा अस्तित्व, ए आत्मा (ने सत्तागुण) बे अभेद छे. जो एम न होय तो
अस्तित्व विना, सत्ताना गुण विना द्रव्य ज, तेनो अभाव थई जाय. आहा... हा... हा!
समजाणुं? “सत्ताथी पृथक रहीने पोते टकतुं (हयात रहेतुं) थकुं एटलुं ज मात्र जेनुं

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गाथा – १०प प्रवचनसार प्रवचनो ३६४
प्रयोजन छे.” एटलुं ज मात्र ते सत्तानुं आयोजन हतुं. कारण के (ते) द्रव्य टकी रहे. द्रव्य
टकी रहे ए सत्तानुं प्रयोजन हतुं. आहा... हा... हा!
(कहे छे) भगवान आत्मा के परमाणु (एम आ विश्वमां) छ द्रव्य छे. एनुं (सत्तानुं)
प्रयोजन एटलुं हतुं के (छ ए द्रव्यो) टकी रहे. (जो) सत्तागुण न होय तो द्रव्यो टकी रहे एवुं रहेतुं
नथी. सत्ताथी तद्न भिन्न द्रव्य होय, (एटले) द्रव्यमां सत्ता (गुण) न होय, तो ते सत्ता विना द्रव्य
ज रहेतुं नथी. आहा.. हा... हा! (श्रोताः) आनुं शुं काम छे? आटलुं बधुं समजवानुं शुं काम छे?
(उत्तरः) काम छे. ई वस्तुस्थिति आवी छे. ‘छे’ गुण अने गुणी. गुण अने गुणी (बन्नेने)
अतद्भाव कहेशे. एक न्याये. अहींयां तो ते अतद्भावे (होवा) छतां अनन्य छे. एम अहींयां सिद्ध
करवुं छे. आहा... हा!
(शुं कहे छे केः) जे वस्तु छे ने ते सत्ता छे ने ‘छे’ ‘छे’ ई छे तेने लईने (सत्तागुणने
लईने) ते द्रव्य टकी रह्युं छे. पण ई सत्ता ज न होय एमां, तो ते टकवुं ज एमां रही शहे नहीं.
आहा... हा! (परंतु) “जो द्रव्य स्वरूपथी ज सत् होय.” वस्तु पोताथी ज छे. सत् छे. सच्चिदानंद
प्रभु! पोताथी सत् छे आत्मा (अने बाकीना द्रव्यो) आहा.. हा! तो - (१) ध्रौव्यना सद्भावने
लीधे पोते टकतुं थकुं.”
पोताथी ज सत्तावाळुं सत् छे. तेथी ध्रौव्यना सद्भावने लीधे, पोते टकतुं थकुं,
सत्ता पोतानी छे, पोतानी सत्ताथी पोतामां होवुं (हयात रहेवुं) तेथी ते ध्रौव्यपणे टकतुं थकुं.
(श्रोताने उदे्ेशीने) आ वांची तो ग्या हशे, के? वांच्युं’ तुं ने तमे? अहा.. हा.. हा! ‘एटलुं ज
मात्र जेनुं प्रयोजन छे एवी सत्ताने उदित करे छे (अर्थात् सिद्ध करे छे)
तेथी द्रव्य सिद्ध थाय छे. शुं
कीधुं? के आ तत्त्व छे ई स्वरूपथी ज न होय, पोताना स्वरूपथी ज सत् होय, तो तो पोते
पोतानाथी ध्रौव्य रहे. बीजा-बीजा राखे तो रहे (पण) सत्ता तो एनो गुण छे. (सत्) ने
सतासहित छे. होवापणासहित छे. अस्तित्वगुण सहित छे. एवी अस्तित्वगुणने लईने, एनुं
ध्रौव्यपणुं टकी रहे छे. अने अस्तित्वगुण जो भिन्न छे अने आत्माने (छए) द्रव्य (अस्तित्वगुणथी)
भिन्न छे तो तो अस्तित्वगुण विना आत्मानो (छए द्रव्योनो) अभाव थई जाय छे. सत्ता, सत्ता
एकेय नथी (रहेती) असत्ता थई जाय छे. आहा... हा! (भाई) आ ज तो आव्या!! ९३ गाथाथी
झीणुं हाले छे आ. आहा... ‘ज्ञेय अधिकार’ छे. ज्ञेय-भगवाने जोयां (छ ए द्रव्यो ज्ञेय) आवुं
स्वरूप छे. एनी मर्यादा केटली? केम छे? ते जणावे छे. मर्यादाथी विपरीत, अधिक के ओछुं के
विपरीत-ए श्रद्धा विपरीत छे. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) (१) ध्रौव्यना सद्भावने लीधे पोते टकतुं थकुं, द्रव्य उदित थाय छे
(अर्थात् सिद्ध थाय छे” एटले वस्तु सत्तागुणथी ‘छे’ . एटले (के) द्रव्य पोते ज सिद्ध थाय छे
एटले ‘छे’. जो (वस्तुमां) सत्तागुण न होय तो द्रव्य सिद्ध थतुं नथी.’ समजाणुं कांई

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गाथा – १०प प्रवचनसार प्रवचनो ३६प
“अने सत्ताथी अपृथक रहीने.” द्रव्य, द्रव्य, (अपृथक रहीने), वस्तु जे छे आत्माने परमाणु
(आदि छ ए द्रव्य) ए सत्ताथी अपृथक-अभेद रहीने, ‘पोते टकतुं थतुं (हयात–रहेतुं) पोते टकतुं
थकुं “एटलुं ज मात्र जेनुं प्रयोजन छे” “एवी सताने उदित करे छे” सत्तानुं प्रयोजन एटलुं ज छे
के पोते पोताने प्रगट करे. पोताथी प्रगट करे ई सत्तानुं प्रयोजन छे. तो सत्ताने आत्मा एकछे.
सत्ताने आत्मा (बेय) जुदा छे. एक अपेक्षाए एम कीधुं हो अत्यारे. पछी बीजी अपेक्षा आवशे.
हजी. आहा... हा! आवुं क्यां? माणसने नवराश छे? हें? हीरा-माणेकना धंधा आडे! लाखो रूपिया
पेदा थाय (ई) न्यां बहारे य देखाय. लोको माने के आहा...! पैसावाळा छे! आहा...! पैसा..वाळा
कोने कहेवा? अहींयां तो सत्तावाळुं द्रव्य छे. आहा... हा... हा! एटलुं ज सिद्ध करवुं छे. बाकी तो
सत्ताने द्रव्य, (बंनेने) प्रदेश भेद नथी. अने संज्ञाभेदे भेद ते अन्यत्व भेद छे. आहा.. हा!
(कहे छे केः) सत्ताथी द्रव्य, द्रव्य “सत्ताथी अपृथक रहीने” जुदुं नहीं रहीने, “पोते टकतुं”
हयात -टकतुं थकुं “एटलुं ज मात्र जेनुं प्रयोजन.” ई सत्तानुं, को पोते टकी रहे द्रव्य, एवुं सत्तानुं
प्रयोजन छे. ए सत्ता पोताथी ज होय, ते बराबर व्याजबी देखाय. एम कहे छे. लोजिक! न्याय
झीणा बहु!! साधारण बुद्धिमां तो (के) आ समजमां न आवे, पत्तो शुं अंदर छे? आत्मा’ छे’ पण
कहे छे के आत्मामां सत्ताना अभावे असत् थई जशे. आहा...हा! अने, सत्ताथी जो द्रव्य हशे, तो ते
सत्ताथी टकतुं द्रव्यपणुं, तेने लईने, पोताने लईने ध्रौव्यपणुं रहेशे. अने तेथी सत्तापणुं, स्वरूप एनुं
छे तेथी ते द्रव्य, एम न होय तो, तेनुं होवापणुं, पदार्थनुं- द्रव्यनुं होवापणुं साबित थशे. नहींतर
पदार्थनुं साबितपणुं नहीं थाय. आहा...हा..!
(अहींयां कहे छे केः) “माटे द्रव्य पोते ज सत्त्व (सत्ता) छे.” वस्तु पोते जे सत्ता-होवावाळा
गुणथी छे. दरेक द्रव्य, पोताना होवावाळा सत्तागुणथी छे. आहा... हा! “एम स्वीकारवुं” जुओ!
अहींयां (एम) स्वीकारवुं एम कहे छे. परने लईने नथी. , तेम सत्ता नामनो गुण, एनाथी
ध्रौव्यनुं-टकवुं थाय छे. एथी द्रव्यनी प्रसिद्धि थाय छे. तेथी द्रव्य पोताथी ‘सत्’ छे. एम साबित थाय
छे. आहा... हा!
(श्रोताः) साबित करवानुं तो कोर्टमां होय अहींयां शुं छे? (उत्तरः) (आ) कोर्ट छे
भगवाननी! कोलेज छे वीतरागनी! आहा... हा... हा! नवराश नहीं ने धंधा आडे! मुंबई जेवामां
तो-मोहनगरी! आखो दि’ धमाल (धमाल) आहा.. हा!
(कहे छे वीतरागी करुणाथी) आज भाई! समाचार आव्या छे भाईना-पाछा लाभुभाईना!
एमने एम छे. सारुं नथी. लाभुभाई बे शुद्ध छे! वच्चमां तार आवी ग्यो’ तो सारुं छे! आजे
जुओ आव्या छे (समाचार) एमने एम छे, बे शुद्ध छे आहा.. हा! आमने आम पडयो छे (देह)
शरीर मोळुं पडतुं जाय छे!!

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गाथा – १०प प्रवचनसार प्रवचनो ३६६
(कहे छे) अहींयां पण आत्मा चैतन्यस्वरूप छे, एवा साध्य विनाना जीवने पण असाध्य ज
कहेवाय छे. शुं कीधुं? आ भगवान आत्मा अंदर छे अनंतगुणनो पिंड प्रभु! तेनुं जेने साध्य नथी.
जेने ए सिद्धिनी खबर नथी, ए बधा असाध्य (अभान) छे. आहा... हा.! एने असाध्यनो रोग
लागु पडयो छे आहा...! केटला काळथी (ए असाध्यरोग) छे? के ते तो अनंतकाळथी छे. आहा...
हा! (श्रोताः) हवे वीतरागने सांभळवा आव्याने...! (उत्तरः) ए तो हवे, टाईम आवी ग्यो हवे!
आहा... हा! शरीरना परमाणु- अस्तित्व, परमाणुनुं अस्तित्व आत्माथी जुदुं छे अने परमाणुमां
अस्तित्व न होय, परमाणु टकी शके नहीं. (परमाणु) द्रव्य ज सिद्ध थाय नहीं. पण परमाणु,
पोताथी-सत्ताथी होय, एना सत्ता नामना गुणथी पोते होय, तो्र द्रव्य (परमाणु) सिद्ध थाय.
ध्रौव्यपणुं सिद्ध थाय. पोताथी ध्रौव्यपणुं सिद्ध थाय. आहा... हा... हा!
आ उपदेश मळे नहीं (बीजे क्यां’ य). (आ तो) बहारमां सामायिक करो ने... पोषा
करोने.. पडिककमण करो. मरी ग्यां एम करीने! आहा.. हा! भगवान आत्मा, ‘छे’ ई पोते सत्ता
नामना गुणने लईने ‘छे’ एकलाथी होय तो सत्ता विनानो असत् थई जाय. ‘नथी द्रव्य’ एम थई
जाय. आहा... हा... हा! न्याय समजाय छे? ‘आत्मा छे’ परमाणु छे’ ए ‘छे’ एमां द्रव्यमां सत्ता
जो न होय, तो ‘द्रव्य छे’ एवुं टकवुं ज त्यां रहे नहीं. न रहे तो द्रव्योनो ज अभाव थाय. आहा...
हा!
“माटे द्रव्य पोते ज सत्त्व (सत्ता) छे.” जोयुं? द्रव्य पोते ज सत्ता छे. एम स्वीकारवुं, कारण के
भाव अने भाववाननुं अपृथकपणा वडे अन्यपणुं छे.” १०प बीजुं आवशे जुदुं हो? आ अपेक्षाथी
बीजी अपेक्षा जुदी आवशे. अत्यारे तो अहींयां एटलुं ज सिद्ध करवुं छे के सत्तावान ने सत्तानो
धरनार द्रव्य, भाववान “अपृथक पणा वडे अन्यपणुं छे.” (बंने) जुदा नथी एथी अनेरापणुं नथी.
अनन्यपणुं छे. सत्ताने द्रव्यने अनन्यपणुं छे, अनन्यपणुं नथी. (अर्थात्) अनन्यपणुं छे अन्यपणुं
नथी. आहा... हा! हेठे कहयुं छे (फूटनोटमां-४) सत्तानुं कार्य एटलुं ज छे के ते द्रव्यने हयात राखे.
जो द्रव्य सत्ताथी भिन्न रहीने पण हयात रहे-टके, तो पछी सतानुं प्रयोजन ज रहेतुं नथी अर्थात्
सत्ताना अभावनो प्रसंग आवे छे.
(कहे छे के) हवे नीचे (फूटनोटमां) भाववान= भाववाळुं (द्रव्य भाववाळुं छे) अने सत्ता
तेनो भाव छे. तेनो अपृथक छे (-पृथक नथी) ते अपेक्षाए अनन्य छे (-अन्य नथी.) पृथकत्व
अने अन्यत्वनो भेद जे अपेक्षाए छे ते अपेक्षा लईने तेमना खास (जुदा) अर्थो हवेनी गाथामां
कहेशे, ते अर्थो अहीं लागु न पाडवा.
पाछु आम जे कहे छे के अपृथक छे ए पाछुं त्यां गुणभेद कहीने ए त्यां पृथक सिद्ध करशे.
पृथक एटले अतद्-अतद्भाव, अन्य छे एम सिद्ध करशे. पृथक तत्त्व -भिन्न छे, एम सिद्ध करशे.
(एटले) सत्ता ने आत्मा वच्चे अन्यपणुं छे. अनन्य नथी. आहा... हा! केम के द्रव्य छे एनुं नाम

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गाथा – १०प प्रवचनसार प्रवचनो ३६७
द्रव्य छे ने गुण छे ई गुण छे एवा नामभेद आदि अन्यपणुं छे. आहा.. हा! अतद्भाव’ तरीके
अन्यपणुं छे. अतद्भाव तरीके पृथकपणुं नहीं आहा... हा! आवुं होय? याद कोने? रस (कोने
होय?) आवशे. (अतदभावनी चोखवट) (हवेनी) गाथामां कहेशे, ते अर्थो अहीं लागु न पाडवा.
पछीना अर्थमां आवशे केः ‘सत्ता’ अन्य छे. ‘द्रव्य’ अन्य छे. (परंतु) पृथकपणुं नथी. पण जे भाव
‘गुणीनो’ छे ते भाव ‘गुणनो’ नथी. (अथवा) गुणीनो जे ‘भाव’ छे ते ‘भाव’ गुणनो नथी.
एथी ते अपेक्षाए सत्ता ने (सत्ने) अन्यत्व एटले अनेरा-अनेरा (कहीने) त्यां (कहीने) त्यां
(बंने) अनेरा छे (एम) कहेशे. अहींयां अन्यत्व कहे छे त्यां भिन्न कहेशे. आहा... हा... हा! आवुं
छे! वीतराग मारग!! (बधाथी निराळो छे.) लोकोने सांभळवा मळ्‌यो नथी बिचारांने! अने एमने
एम जिंदगी वई जाय, थई रह्युं! आहा... हा!
अहींयां तो कहे छे केः आत्मा, जे सत्ताथी’ छे. तेथी बे (सत्ताने सत्) अनन्य छे, एकमेक
छे. छतां हवेनी बीजी गाथामां एवो अर्थ आवशे के सत्ताने द्रव्यमां अन्यपणुं छे. ए जे भाव ‘द्रव्य’
नो छे तेभाव ‘गुण’ नो नहीं. (एटले) जे भाव ‘गुणनो’ छे ए भाव ‘द्रव्य’ नो नहीं. तेथी ए
बे वच्चे ‘अतद्भाव’ ने लीधे ‘अन्यपणुं’ पण कही शकाय छे. आहा...हा...हा!
(परंतु) अहींयां कहे छे केः “माटे द्रव्य पोते ज सत्त्व (सत्ता) छे एम स्वीकारवुं.” कारण के
भाव अने भाववाननुं” भाववान (एटले) भगवान आत्मा, अने सत्ता तेनो ‘भाव’, बेयनुं
अपृथकपणुं छे ई जुदा नथी. अनन्यपणुं छे, अनेरापणुं नथी. अनन्य एटले एकमेक छे.
“अपृथकपणा वडे अनन्यपणुं छे.” आहा... हा! (गाथा-१०प) अहींयां आटला सुधी सिद्ध कर्युं.
हवे (वात आवशे गाथा एकसो) छठ्ठीनी.
विशेष कहेशे......

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३६८
हवे पृथकत्वनुं अने अन्यत्वनुं लक्षण खुल्लुं करे छेः-
पविभत्तपदेसत्तं पुधत्तमिदि सासणं हि वीरस्स
अण्णत्तमतब्भावो ण तब्भवं होदि कधमेगं ।। १०६।।
प्रविभक्तप्रदेशत्वं पृथक्त्वमिति शासनं हि वीरस्य ।
अन्यत्वमतद्धावो न तद्धवत् भवति कथमेकम् ।। १०६।।
जिन वीरनो उपदेश एम– पृथकत्व भिन्नप्रदेशता;
अन्यत्व जाण अतत्पणुं; नहि ते–पणे ते एक क्यां? १०६.
गाथा – १०६
अन्वयार्थः– [प्रविभक्तप्रदेशत्वं] विभक्त प्रदेशत्व ते [पृथकत्वं] पृथकत्व छे [इतिहि]
एम [वीरस्य शासनं] वीरनो उपदेश छे. [अतद्धावः] अतद्भाव (अतत्पणुं अर्थात् ते-पणे नहि
होवुं) ते [अन्यत्वं] अन्यत्व छे. [न तत् भवत्] जे ते-पणे न होय [कथं एकम् भवति] ते एक
केम होय? (कथंचित् सत्ता द्रव्यपणे नथी अने द्रव्य सत्तापणे नथी माटे तेओ एक नथी.)
टीकाः– विभक्तप्रदेशत्व (भिन्नप्रदेशत्व) पृथकत्वनुं लक्षण छे. ते तो सत्ता अने द्रव्यने संभवतुं
नथी, कारण के गुण अने गुणीने विभक्तप्रदेशत्वनो अभाव होय छे-शुक्लत्व अने वस्त्रनी माफक. ते
आ प्रमाणेः जेम जे शुक्लत्वना-गुणना-प्रदेशो छे ते ज वस्त्रना -गुणीना छे तेथी तेमने प्रदेशविभाग
(प्रदेशभेद) नथी, तेम ज सत्ताना-गुणना-प्रदेशो छे ते ज द्रव्यना-गुणीना-छे तेथी तेमने
प्रदेशविभाग नथी.
आम होवा छतां तेमने (-सत्ता अने द्रव्यने) अन्यत्व छे, कारण के (तेमने) अन्यत्वना
लक्षणनो सद्भाव छे. अतद्भाव अन्यत्वनुं लक्षण छे. ते तो सत्ता अने द्रव्यने छे ज, कारण के गुण
अने गुणीने तद्भावनो अभाव होय छे-शुक्लत्व अने वस्त्रनी माफक. ते आ प्रमाणेः जेवी रीते
एक चक्षु-इन्द्रियना विषयमां आवतो, बीजी बधी इन्द्रियोना समूहने गोचर नहि थतो एवो जे
शुक्लत्वगुण छे ते समस्तइन्द्रियसमूहने गोचर थतुं एवुं वस्त्र नथी, तथा जे समस्तइन्द्रियसमूहने
गोचर थतुं एवुं वस्त्र छे ते एक चक्षु -इन्द्रियना विषयमां आवतो, बीजी
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१. अतद्भाव = (कथंचित्) ‘ते नहि होवुं ते; (कथंचित्) ते= पणे नहि होवुं ते; (कथंचित्) अतत्त्वपणुं, (द्रव्य (कथंचित्) सत्तापणे
नथी अने सत्ता (कथंचित्) द्रव्यपणे नथी माटे तेमने अतद्भाव छे.)
२. तद्भाव= ‘ते होवुं ते; ते= पणे होवुं ते=पणुं; तत्पणुं.

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३६९
बधी इन्द्रियोना समूहने गोचर नहि थतो एवो शुक्लत्वगुण नथी, तेथी तेमने तद्भावनो अभाव छे;
तेवी रीते
कोईना आश्रये रहेती, निर्गुण, एक गुणनी बनेली, विशेषण, विधायक (रचनारी)
अने वृत्तिस्वरूप एवी जे सत्ता छे ते कोईना आश्रय विना रहेतुं, गुणवाळुं, अनेक गुणोनुं बनेलुं,
विशेष्य, विधीयमान (-रचानारुं) अने वृत्तिमानस्वरूप एवुं द्रव्य नथी, तथा जे कोईना आश्रय
विना रहेतुं, गुणवाळुं, अनेकगुणोनुं बनेलुं, विशेष्य विधीयमान अने वृत्तिमानस्वरूप एवुं द्रव्य छे ते
कोईना आश्रये रहेती, निर्गुण, एकगुणनी बनेली, विशेषण, विधायक अने वृत्तिस्वरूप एवी सत्ता
नथी, तेथी तेमने तद्भावनो अभाव छे. आम होवाथी ज जो के सत्ता अने द्रव्यने कथंचित्
अनर्थांतरपणुं (-अभिन्नपदार्थपणुं, अनन्यपदार्थपणुं) छे तो पण, तेमने सर्वथा एकत्व हशे एम
शंका न करवी; कारण के तद्भाव एकत्वनुं लक्षण छे. जे ‘ते’ -पणे जणातुं नथी ते (सर्वथा) एक
केम होय? नथी ज; परंतु गुण-गुणीरूप अनेक ज छे एम अर्थ छे.
भावार्थः– भिन्नप्रदेशत्व ते पृथकपणानुं लक्षण छे अने अतद्भाव ते अन्यपणानुं लक्षण छे.
द्रव्यने अने गुणने पृथकपणुं नथी छतां अन्यपणुं छे.
प्रश्नः- जेओ अपृथक होय तेमनामां अन्यपणुं केम होई शके?
उत्तरः- वस्त्र अने सफेदपणानी माफक तेमनामां अन्यपणुं होई शके छे. वस्त्रना अने तेना
सफेदपणाना प्रदेशो जुदा नथी तेथी तेमने पृथकपणुं तो नथी. आम होवा छतां सफेदपणुं तो मात्र
आंखथी ज जणाय छे, जीभ, नाक वगेरे बाकीनी चार इन्द्रियोथी जणातुं नथी, अने वस्त्र तो पांचे
इन्द्रियोथी जणाय छे. माटे (कथंचित्) वस्त्र ते सफेदपणुं नथी अने सफेदपणुं ते वस्त्र नथी. जो एम
न होय तो वस्त्रनी माफक सफेदपणुं पण जीभ, नाक वगेरे सर्व इन्द्रियोथी जणावुं
----------------------------------------------------------------------
१. सत्ता द्रव्यना आश्रये रहे छे. द्रव्यने कोईनो आश्रय नथी. [जेम वासणमां घी रहे छे तेम द्रव्यमां सत्ता रहेती नथी (कारण के
वासण ने अने घीने तो प्रदेशभेद छे) परंतु जेम केरीमां वर्ण, गंध वगेरे छे तेम द्रव्यमां सत्ता छे.]
२. निर्गुण- गुण विनानी. [सत्ता निर्गुण छे, द्रव्य गुणवाळुं छे जेम केरी वर्णगुणवाळी, गंधगुणवाळी, स्पर्शगुणवाळी वगेरे छे, परंतु
वर्णगुण कांई गंधगुणवाळो, स्पर्शगुणवाळो के अन्य कोई गुणवाळो नथी. (कारण के वर्ण कांई सूंघातो के र्स्पशातो नथी); वळी
जेम आत्मा ज्ञानगुणवाळो, वीर्यगुणवाळो वगेरे छे. परंतु ज्ञानगुण कांई वीर्यगुणवाळो के अन्यगुणवाळो नथी; तेम द्रव्य
अनंतगुणोवाळु छे परंतु सत्ता गुणवाळी नथी. (अहीं, जेम दंडी दंडवाळो छे तेम द्रव्यने गुणवाळुं न समजवुं कारण के दंडी अने
दंडने तो प्रदेशभेद छे, द्रव्य ने गुण तो अभिन्नप्रदेशी छे.)
]
३. विशेषण= खासियत; लक्षण; भेदकधर्म.
४. विधायक= विधान करनार; रचनार.
प. वृत्ति= वर्तवुं ते; होवुं ते; हयाती; उत्पादव्ययध्रौव्य.
६. विशेष्य= खासियतोने धरनार पदार्थ; लक्ष्य; भेद्यपदार्थ-धर्मी
[जेम गळपण, सफेदपणुं, सुंवाळप वगेरे साकरनां विशेषणो छे अने
साकर ते विशेषणोथी विशेषित थतो (ते ते खासियतोथी ओळखातो, ते ते भेदोथी भेदातो,) पदार्थ छे, वळी जेम ज्ञान, दर्शन,
चारित्र, वीर्य वगेरे आत्मानां विशेषणो छे अने आत्मा ते विशेषणोथी विशेषित थतो (ओळखातो, लक्षित थतो, भेदातो) पदार्थ
छे, तेम सत्ता विशेषण छे अने द्रव्य विशेष्य छे. (विशेष्य अने विशेषणोने प्रदेशभेद नथी ए ख्याल न चूकवो.)
७. विधीयमान= रचानारुं; जे रचातुं होय ते. (सत्ता वगेरे गुणो द्रव्यना रचनारा छे अने द्रव्य तेमनाथी रचातो पदार्थ छे.)
८. वृत्तिमान= वृत्तिवाळुं; हयातीवाळुं; हयात रहेनार. (सत्ता वृत्तिस्वरूप अर्थात् हयाती स्वरूप छे अने द्रव्य हयात रहेनार स्वरूप छे.)

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७०
जोईए. पण एम तो बतनुं नथी. माटे वस्त्र अने सफेदपणाने अपृथकपणुं होवाछतां अन्यपणुं छे
एम सिद्ध थाय छे.
ए ज प्रमाणे द्रव्यने अने सत्तादिगुणोने अपृथकत्व होवा छतां अन्यत्व छे; कारण के द्रव्यना
अने गुणना प्रदेशो अभिन्न होवा छतां द्रव्यमां अने गुणमां संज्ञा-संख्या-लक्षणादि भेद होवाथी
(कथंचित्) द्रव्य ते गुणपणे नथी अने गुण ते द्रव्यपणे नथी. १०६.
प्रवचनः ता. २प–६–७९.
‘प्रवचनसार’ १०६ गाथा.
आ तो ध्यान राखे तो पकडाय एवुं छे भाई! (आ तो लोकोमां वातो छे ने के) दया पाळो,
जूठुं बोलवुं नहीं, शरीरथी ब्रह्मचर्य पाळवुं, वळी क हे के लीलोतरी खावी नहीं, कंदमूळ खावां नहीं,
चोविहार करवो (आवी प्रियानुं) समजाय तो खरुं! (पण एमां) शुं समजाय? धूळ समजाय? (ई
तो) अज्ञान छे अनादिनुं! आहा... हा... हा! परनो त्याग करुं छुं, ने हुं आम करुं छुं ने तेम करुं छुं,
ई तो (करुं, करुंना) मिथ्यात्व भाव छे. आहा...! अरे... रे!
अहींयां तो सत्ता गुणने पण अन्य (पणुं) छे एम ठरशे, हवेनी गाथा (मां). आ गाथामां
तो (गाथा-१०प) मां अनन्यपणुं ठेरव्युं, नहींतर तो ई द्रव्य ‘छे’ एम सिद्ध नहीं थाय. ‘सत्ता’
गुण विना अस्तित्व आत्मानुं छे, ध्रौव्य आत्मा छे ए सिद्धनहीं थाय. ए कारणे सत्ताथी द्रव्यनुं
अस्तित्व छे, एम अनन्यपणुं-एकमेपणुं कह्युं. पण जरी फेर एमां छे ई हवे फेर पाडशे. (आ
गाथामां). आहा... हा... हा! (जुओ!)
हवे, पृथकत्व अने अन्यत्वनुं लक्षण खुल्लुं करे छेः– एटले शुं? पृथक एटले आत्माथी, दरेक
द्रव्य (जे) जुदी चीज छे. एना प्रदेशो जुदा छे. तेने अहींयां पृथकपणुं कहे छे. आत्मा ने आ परमाणु
(देह) ए बे वच्चे पृथकपणुं छे. कारण के आना (शरीरना) प्रदेश जुदा छे ने आत्माना प्रदेश जुदा
छे. छतां
“अन्यत्वनुं लक्षण खुल्लुं” करशे. छतां ते गुण ने गुणी, ए भेद होवा छतां, ते अनेरुं-
अनेरुं छे. भेद छे- पहेलुं अभेद सिद्ध कर्युं सत्ता ने सत्-अभेद सिद्ध करतां छतां सत्ता ने द्रव्य वच्चे
भेद छे. सत्ता एटले होवापणुं रहे. द्रव्य तो अनंतगुपणे होवापणे छे. एटले सत्ता अने द्रव्य वच्चे
नामभेदे, लक्षणभेदे अन्यपणुं छे. भेद नथी एम पहेलां सिद्ध कर्युं छे. (अहींयां भेद छे एम कहे छे.)
आहा... हा! आवुं छे! केटलांकने काने पहेलुं पडतुं होय! कोई दी’ खबर न मळे कांई!
(प्रश्नः)
आवुं वांचीए, तो न्यां माणस भेळां शी रीते थाय? बीजामां तो राजी थाय माणसो, (कहीए) आम
करो... आम करो.. आम करो.. (तो माणसो झाझा भेगां थाय!)

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७१
आ देहना-तारा परमाणुमां, तारा आत्मा सिवाय, तारी सत्ता सिवाय, बीजानी सत्तामां कांई तारो
अधिकार नथी. आहा... हा! देशनी सेवा करवी, भूख्यानेत्रप आहार आपवो (परना काम करवा)
ए तारा अधिकारनी वात नथी, एम कहे छे अहींयां तो. आहा... हा... हा! (श्रोताः) पोतामां
असंख्यप्रदेश छे, एमां आहार क्यां हतो?
(उत्तरः) असंख्य प्रदेश पोतामां छे. ओलाना-बायडी-
छोकरांना प्रदेश जुदां छे छतां कहे छे ने मारां छे. मारां छे एनी अहींयां ना पाडे छे. आहा... हा!
जेना प्रदेश जुदा, तेनी वस्तु जुदी! अहींयां तो सत्ताना ने द्रव्यना प्रदेश एक छे. प्रदेशनी अपेक्षाए
पृथकपणुं नथी. पण द्रव्यअने गुण, द्रव्य ने सत्ता, नामभेद पडे छे (ते) संज्ञाभेदे अन्यपणुं कहेवामां
आवे छे. आहा... हा... हा.. हा! आवो मारग!!
पविभतपदेसत्तं पुधत्तमिदि सासणं हि वीरस्स
अण्णत्तमतब्भावो ण तब्भवं होदि कधमेगं ।। १०६।।
जिन वीरनो उपदेश एम–त्रिलोकनाथ, परमात्मा महावीर देवदेव!
एम बधा अनंत तीर्थंकरो (नो उपदेश एम छे.)
जिन वीरनो उपदेश एम– पृथकत्व भिन्नप्रदेशता;
अन्यत्व जाण अतत्पणुं; नहि ते–पणे एक क्यां? १०६
आहा... हा! ध्यान राखे तो, पकडाय एवुं छे. आहा... हा!
टीकाः– “विभक्तप्रदेशत्व” एटले के जेना क्षेत्र-प्रदेश जुदा छे. आ परमाणुनुं क्षेत्र (देहनुं
क्षेत्र) ने आत्मानुं क्षेत्र जुदुं छे. आहा... हा! बीजा आत्माओ अने आ आत्मानुं क्षेत्र जुदुं छे. आ
परमाणुनुं ने आत्मानुं क्षेत्र जुदुं छे. एम एक आत्माना प्रदेश (ते) बीजा आत्माना प्रदेश (थी)
जुदा छे. आहा.. हा!
“विभक्तप्रदेशत्व (भिन्नप्रदेशत्व) पृथकत्वनुं लक्षण छे.” एम कहे छे प्रदेश
जुदा, ए पृथकत्वनुं लक्षण छे. ई जूदुं ज छे, जूदुं छे. एम आत्माथी परमाणु तद्न जुदाछे. शरीरादि,
कर्मना परमाणुओ आत्माथी जुदा (छे). अने आत्माथी, शरीरने कर्मना (परमाणुओथी) भगवान
आत्मा तद्न जुदो छे. बे ना प्रदेश जुदा छे. बेनुं क्षेत्र जुदुं छे. आहा...हा! तेथी तेना भाव पण भिन्न
छे. आहा...हा...हा!
(अहींयां कहे छे केः) “विभक्तपदेशत्व (भिन्नप्रदेशत्व) पृथकत्वनुं लक्षण छे.” आत्माना
प्रदेशो ने परमाणुना प्रदेशो, ए भिन्नपणुं-पृथकपणुं (छे.) ए भिन्नपणानुं पृथकत्व लक्षण छे. ए जुदा
छे.
“ते तो सत्ता अने द्रव्यने संभवतुं नथी.” शुं कीधुं? ज्यारे एक द्रव्यना प्रदेश, बीजा द्रव्यना
प्रदेशथी जुदा-पृथक छे. एम आत्माने सत्ताना प्रदेश जुदा छे ई संभवतुं नथी.

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७२
जे प्रदेश आत्माना छे ते ज सत्ताना छे. एना प्रदेश जुदा नथी. आहा... हा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “विभक्तप्रदेशत्व (भिन्नप्रदेशत्व) पृथकत्वनुं लक्षण छे. ते तो सत्ता
अने द्रव्यने संभवतुं नथी. “ कारण के गुण अने गुणीने विभक्तप्रदेशत्वनो अभाव होय छे.” गुण
एटले सत्ता, ज्ञान आदि ने गुणी द्रव्य, एने जुदा प्रदेशनो अभाव होंय छे. कोनी पेठे? द्रष्टांत आपे
छे. “शुक्लत्व अने वस्त्रनी माफक.” “ते आ प्रमाणेः” जेम धोळापणुं गुणना प्रदेशो छे ते ज
वस्त्रना प्रदेशो छे. ते (प्रदेशो पण) गुणीना छे. जुओ! आ वस्त्र छे. ए जे प्रदेशो छे वस्त्रना. ए
आ धोळुं छे एना ए प्रदेशो छे. धोळपमां ए ज प्रदेशो छे. धोळपना प्रदेशो जुदा, वस्त्रना प्रदेश
जुदा, एम नथी. समजाणुं कांई आमां? आहा..! भेद सूक्ष्म! भेद करे छे. भेदज्ञाननी वात छे आ.
आहा... हा! परथी तो पृथक छे माटे जुदां, पण पोते गुण-गुणीनो भेद, पण भेद पडयो ए
अपेक्षाए अन्य छे, माटे नजरुं एने अभेद पर करवानी छे! आहा... हा... हा!
शुं कह्युं ई? जेना प्रदेश भिन्न छे एवा द्रव्य उपरथी तो द्रष्टि ऊठाववी (हठाववी) जोईए,
पण जेना प्रदेश एक छे, छतां तेना अन्यत्वपणुं लक्षणथी, ‘जे द्रव्य छे ते सत्ता नथी ने सत्ता छे ते
द्रव्य नथी’ नहींतर बेना नाम जुदा केम पडे? (माटे जुदा छे) एवुं अन्यत्व द्रव्य ने सत्ता वच्चे छे.
छतां द्रष्टिवंते अन्यत्वने (बे गुण, गुणीने) भिन्न न पाडतां द्रव्य उपर द्रष्टि करवी. आहा..! आ
प्रयोजन! आहा...! (श्रोताः) बराबर, बराबर! (उत्तरः) हें, आहा.. हा! समजाय एवुं छे समजे
तो, (देहने देखाडीने) आना प्रदेश ने आत्मा तो नीकळी जाय ने आ तो अहींयां पडया रहे छे. आ
माटी! एना प्रदेश- अंश बधा जुदा छे. एना सत्ताना प्रदेशो जुदा, आत्म भगवाननी सत्ताना प्रदेश
जुदा, आहा.. हा! छतां, गुणीने गुणना विभक्तप्रदेशनो अभाव होवाथी, “जेम जे शुक्लत्वना–
गुणना–प्रदेशो छे.”
जे धोळागुणना प्रदेशो छे आ “ते ज वस्त्रना–गुणीना छे.” कांई वस्त्रना प्रदेशो
जुदा ने आ धोळाना (प्रदेशो) जुदा एम छे? (नथी.)
“तेथी तेमने प्रदेशविभाग (प्रदेशभेद)
नथी.” आ धोळापणाने अने वस्त्रपणाने प्रदेश (भेद) एटले क्षेत्रभेद नथी.’ “तेम ज सत्ताना –
गुणना–प्रदेशो छे.”
सत्ता (एटले) अस्तित्व (अथवा) अस्तित्वगुण, एना जे प्रदेशो छे ते ज
आत्माना प्रदेशो छे. “ते ज द्रव्यना–गुणीना–छे. आहा... हा! “तेथी तेमने प्रदेशविभाग नथी.”
(कहे छे) राते पूछे तो आ जवाब आपशे के, आपशे के नहीं आमां! (वाह! परीक्षक
सद्गुरु! शिष्योनी खबर ले छे.) आहा... हा!
(शुं कहे छे? केः) जेम धोळुं वस्त्र (आ.) धोळुं ते तो गुण छे. अने आ वस्त्र छे. (देह
उपर)

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७३
धोळुं तो पर्याय छे पण अत्यारे गुण (कहेवामां आवे छे.) छतां ए धोळाना प्रदेश ने वस्त्रना
प्रदेश बे य एकमेक छे. एम सत्ताना ने द्रव्यना प्रदेश एकमेक छे. (आत्मामां) एम सत्ताना प्रदेश
जुदा अने आत्माना प्रदेश जुदा, एम परमाणुमां, परमाणुनी सत्ताना प्रदेश जुदा ने परमाणुना
प्रदेश जुदा एम नथी. आहा... हा... हा! धीमे.. थी तो कहेवाय.. छे... भाई! आ तो बहु.. मूळ
सत्तानी वात छे. मूळनुं अस्तित्व जे छे, ई अस्तित्व सत्ताने लईने छे. सत्तानुं एटलुं प्रयोजन
हतुं के ई टकी शके. हवे सत्ताने आत्माथी भिन्न करी नांखवुं, तो भिन्न करे तो सत्तानुं जे टकवुं ए
नहीं रहे. आहा... हा!
“जे सत्ताना–गुणना–प्रदेशो छे ते ज द्रव्यना–गुणीना–छे तेथी तेमने
प्रदेशविभाग नथी.” आहा.. हा!
(कहे छे के अहींयां) “आम होवा छतां” आवे त्यारे आवे ने..! आम होवा छतां “तेमने
(सत्ता अने द्रव्यने) अन्यत्व छे.” अनेरापणुं छे.’ आहा... हा... हा... हा! द्रव्य एटले सत्तागुण ने
सत्तावान, गुण (एटले) भाव, ने आत्मा भगवान. ए जुदा नथी. छतां द्रव्य अने गुण वच्चे
अन्यत्वपणुं छे. आहा.. हा.. हा... हा! कारण के जे द्रव्य छे ते गुण नथी ने गुण छे ते द्रव्य नथी.
आहा... हा... हा... हा!
(श्रोताः) स्वरूपभेदे भेद छे... (उत्तरः) हें, वस्तु भेदे बे भेद छे ने...!
पृथक प्रदेश नथी. अन्यत्व छे अनेरापणुं एटले जेवुं द्रव्य छे, गुण छे ई द्रव्यना ने गुणना प्रदेशो
एक ई अपेक्षाए पृथक नहीं. छतां सत्ता गुण छे ने द्रव्य गुणी छे. एटला भावनी अपेक्षाए
अनेरापणुं पण छे. गुणीथी गुण अन्य छे ने गुणथी गुणी अन्य छे. (तेथी अन्यत्व छे.) आहा...
हा! आवुं आव्युं’ तुं चोपडामां एमां? (नहीं.) अत्यारे तो संप्रदायमां य हालतुं नथी. आवी झीणी
वात कोण करे? (अनुभवी करे!) आहा.. हा! हवे एक तो समजी शके नहींने... पण बापु! वस्तु
आ छे. (माटे रुचि कर.)
(कहे छे) आत्मा छे. एम जेणे कबूलवुं छे. तो कहे छे के सत्ताना गुणने लईने तेनुं ध्रुवपणुं
छे. माटे ते जुदा नथी. प्रदेश जुदा नथी. ‘आत्मा छे’ छ बोलमां आवे छे ने...! (‘आत्मसिद्धि’
श्रीमद्राजचंद्र) आत्मा छे ते नित्य छे. ‘छे’ नित्य छे’ पण सत्तागुणने लईने ‘छे’ . सत्तागुणनुं
प्रयोजन ‘छे’ एथी सत्तागुण जुदो रही जाय, तो द्रव्य सिद्ध छे ई कोई रीते साबित न थाय.
आहा... हा... हा!
(श्रोताः) बहुं झीणुं आव्युं आ तो... (उत्तरः) हें? ए तो कह्युं’ तुं पहेलु भई!
झीणुं छे, छे तो लोजिकथी पण हवे (उपयोग सूक्ष्म करे) ई क्यां पडी छे अत्यारे दुनियाने! (कंई
विचार छे) मरीने क्यां जाशुं? देह छूटीने क्यां जईशुं? हारे ओलुं छे (मिथ्यात्व) आहा.. हा! घणा-
घणाने तिर्यंचना अवतार थाशे. पशु थाशे घणां. सम्यग्दर्शन नथी’ पुन्यना परिणाम एवा नथी के
सत्समागम, साचो चार-चार कलाक हंमेशा के वांचन के श्रवण तो पुन्ये य बंधाय. ई ए न मळे,
कलाक मळे, सांभळवा जाय तो ऊंधुं सांभळवा मळे! मिथ्यात्वनुं पोषण! आहा... हा! अरे.. रे! एने
क्यां जावुं भाई!

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७४
(अहींयां) तो परमात्मा (कहे छे) सत्ता नामनो गुण छे अस्तित्व, आत्मामां (ने)
परमाणुमां (एम छे ए द्रव्योमां) जे गुण ने गुणीना प्रदेशो जुदा नथी. छतां गुण ने गुणी बे
अन्यत्वपणे छे. ए य पण प्रदेशपणानी अपेक्षाए एकपणे छे. पण भाव ने आ भाववान, आ गुण
ने गुणी, ए अपेक्षाए अन्यपणुं पण छे. जुओ आ सिद्धांत!! (वीतरागनां सिद्धांतनी सूक्ष्मता!)
आहा.. हा.. हा!
(अहींयां कहे छे केः) “आम होवा छतां” आम होवा छतां एटले? केः वस्तु जे छे, ई
सत्ताथी छे. सत्ताथी टकी रही छे ध्रुवपणे. जो सत्ताथी एने भिन्न ठरावो, (तो) ध्रुवपणे टकवुं कोने
लईने? सत्तानुं प्रयोजन तो एटलुं ज छे के ‘कायम रहेवुं’ हवे जो सत्ता भिन्न ठरावो तो ‘कायम
रहेवुं’ रहेतुं नथी. आहा..! माटे ते सत्ता, अने आत्मा पृथक नथी, छतां-एम नककी कर्या छतां -बे
वच्चे अन्यपणुं छे ज. आ.. रे! आहा...हा...हा! भई! ध्यान राखे तो, पकडाय तेवुं छे. आहा...हा!
मीठालालजी! पकडाय एवुं छे के नहीं? आहा... हा!
(कहे छे केः) आ शरीर छे, जुओ, ई शरीरना, एना परमाणुमां (जो) अस्तित्वगुण न
होय, (एटले) सत्ता (न होय) तो ई परमाणु टकी शी रीते शके? सत्ता विना टकी शी रीते शके?
माटे ते सत्ता ने ई परमाणुना प्रदेश एक छे. अभेद छे, एम आत्मा एनामां सत्ता नामनो एक
गुण छे. ए गुण विनानुं ध्रुवपणुं (आत्मानुं) टकी शी रीते शके? सत्ता नथी, होवापणानी शक्ति
नथी, तो होवापणे रहेवुं क्यांथी बने? (न बने.) आहा... हा... हा! ए अपेक्षाए, गुणीने गुण
वच्चे, पृथकपणुं नथी, पण अन्यपणुं छे. आहा... हा... हा... हा! ई कहे छे जुओ!
(अहींयां कहे छे केः) “आम होवा छतां तेमने (–सत्ता अने द्रव्यने) अन्यत्व छे.” कारण
के (तेमने) अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे.” छतां गुणी (एटले) भगवान आत्मा, (एनो)
सत्तागुण बे वच्चे अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे. बे जुदा छे, अनेरा छे एवुं अन्यत्वलक्षण तेमां
छे. आहा.. हा! गुण अने गुणी भिन्न छे एवुं अन्यत्व लक्षण छे. गुण ते कंई गुणी थई जतो नथी
ने गुणी ते कंई गुण थई जतो नथी. आहा... हा... हा! मुनिओए आवुं कर्युं छे. आहा.. हा!
दिगंबर संतोए आवी टीका करी हशे! आनंदमां रहेता अतीन्द्रियआनंदमां झूलतां! एकलविहारीने
आवी टीका थई गई! आहा.. हा! छतां प्रभु कहे छेः अमे तो अमारा ज्ञानमां छीए, ए टीकामां-
करवामां-परमां अमे आव्या ज नथी. आहा...! टीकानो विकल्प छे एमां य आव्या नथी ने! आहा...
हा! त्यारे कोई कहे छे के (ए तो) निर्मानपणानुं कथन छे. (पण एम नथी) ए वस्तुना स्वरूपनुं
कथन छे. आहा.. हा!
(मुनिराज कहे छे) टीका करवामां अमे नथी, अमे तो स्वरूपमां गुप्त छीए. अमारुं (लक्ष)

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७प
बहार आव्युं नथी. विकल्प आव्यो ई पण अमे नथी. तो बहार आवीने टीका थाय! आहा... हा!
ए अमाराथी थई नथी! (भाषाए भाषानुं काम कर्युं छे.) आहा.. हा! आंही तो थोडुं’ क काम ज्यां
करे, एना अभिमान चडी जाय. अमे आ काम कर्युं ने अमे आ कर्युं ने अमे ते कर्युं ने.. ‘मरी
जवाना रस्ता छे बधा’ आहा... हा... हा... हा!
‘सत् छे ई सत्थी ज टकी शकशे.’ आ न समजाय
ने असत् समजाय ने एने लईने टकी शके, सत्य नहीं टके बापु! ए परिभ्रमणमां-रखडवुं पडशे.
आहा... हा.. हा! ‘सत्’ नहीं टके एटले? वस्तु, सच्चिदानंदप्रभु! ज्यां सत्ता ने आत्माने भिन्नता
नथी, तेथी सत्ता छे ते द्रव्य छे. ने सत्ता छे एनुं प्रयोजन अस्तित्व रहेवुं तो प्रयोजन अस्तित्व एने
लईने रह्युं छे. एवुं होवा छतां- राग ने द्वेष, पुण्य ने पापनी वात अहीं नथी लेवी. सत्तानी वात
छे अत्यारे तो. आहा... हा! छतां भगवान आत्मा गुणी छे, भाववान छे. अने सत्ता ते भाव छे.
एवुं बे वच्चे अन्यपणुं (छे.) आवुं अन्यपणुं छे. पृथकप्रदेशनुं अन्यपणुं नथी. पण पृथकभावनुं
अन्यपणुं छे. आहा... हा... हा! आहा... हा... हा! आवो केवो उपदेश आ ते? गुलाबचंदजी! आमां
झाझुं भण्ये य मळे तेवुं नथी क्यां’ य!
आहा.. हा! परमात्मा (ना) श्रीमुखे नीकळेली वाणी छे. आहा... हा! मुनिओ! दिगंबर
संतोए पण गजब काम कर्या छे! आमां रोकावुं पडयुं एणे विकल्प आव्यो एटले. आहा... हा!
विकल्प आव्यो. (टीका रचवानो) आहा.. हा! पद्मप्रभमलधारीदेव कहे छे ने भाई! (
‘नियमसार’
श्लोकार्थः– गुणना धरनार गणधरोथी रचायेला अने श्रुतधरोनी परंपराथी सारी रीते व्यक्त
करायेला आ परमागमना अर्थसमूहनुं कथन करवाने अमे मंदबुद्धि ते कोण?
श्लोक. प. तथापि-
हमणां अमारुं मन परमागमना सारनी पुष्ट रुचिथी फरी फरीने अत्यंत प्रेरित थाय छे. (ए रुचिथी
प्रेरित थवाने लीधे ‘तात्पर्यवृत्ति’ नामनी आ टीका रचाय छे.
] के आनी टीका ते अमे करनारा?
पद्मप्रभमलधारीदेव कहे छे. मंदबुद्धि अमे (छीए) ए तो परंपराथी चाली आवी छे. ए आ छे.
आहा.. हा! धन्य! मुनिराज!! जेने एम छे के आ टीका करनार अमे कोण मंदबुद्धि! हमणां एवुं
कंईक रह्या करे छे के कंईक थाय, थाय, थाय. पण ए टीका, अमाराथी थई नथी ई टीकाना
परमाणुनी पर्याय, ते वखते तेना द्रव्यने पहोंची वळे छे ने थाय छे. आहा... हा... हा! परमाणुओ ते
समयनी पर्यायनो, ए टीकानी पर्यायने पहोंची वळे छे, तेथी टीका थाय छे. आहा... हा.. हा! अने ते
पर्याय, एना द्रव्य ने गुणथी ते पर्याय थाय छे. अमाराथी नहीं ने अमे नहीं (ए कार्यमां) आहा...
हा... हा! कठण पडे!! क्यारेय सांभळ्‌युं नथी एथी कठण पडे!! आहा... हा! आ तो वकीलोनी-
जातनी वात छे! वेपारीओने तो आ तर्क! आहा... हा!
शुं कीधुं जोओ! “आम होवा छतां” एटले? सत्ता नामनो गुण अने आत्मा भाववान, एवुं
एनामां अन्यत्वपणुं होवा छतां, तेमने अन्यत्व छे. “कारण के तेमने अन्यत्वना लक्षणनो

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७६
सद्भाव छे.” ल्यो! आम होवा छतां ई तो पूर्वमां ग्युं. ई द्रव्यगुण एक छे एम होवा छतां एम.
(एटले के) द्रव्यगुण एक (मेक) छे. गुण अने गुणी बे एकपणे नथी. प्रदेश भेद नथी, पण गुण-
गुणीनो ‘भाव’ एकपणे नथी. आहा... हा... हा! अरे.. रे! ज्यां गुणीथी गुणी पण अन्यत्व छे,
गुणथी गुणी अन्यत्व छे, तो पछी शरीर, कर्म ने आ बधी चीजो मकान ने बंगला ए तो क्यां’य
रही गया, ए तो प्रदेशभेद छे एने तो. जेना प्रदेशभेद नथी छतां ते अन्यत्व छे आहा... हा... हा!
केम के सत्ता नामनो गुण छे ने गुणी पोते (छे.) भले सत्ताथी तेने सिद्ध कर्युं एम होवा छतां,
संज्ञा, संख्या, नाम आदि लक्षणथी गुण ने गुणीना भेद छे एथी ते बे वच्चे अन्यपणुं छे. आहा..
हा! तो आ बायडी-छोकरां, पैसा-धंधापणे अन्यपणुं क्यां आव्युं! एक-एकनुं करवा आहा.. हा.. हा!
तो देरासर बनाववा ने पूजा-भक्ति करवी ने ई तो अनेरापणे छे. अनेरापणाने तुं अनेरो केम करी
शके? आहा.. हा! आवी वात छे. होशुं ऊडी जाय एवुं छे. अमे आम करीए छीए ने अमे आम
करी दईएने, बे लाख रूपिया आप्या ने पांच लाख आप्या ने.. हमणां पांच लाख आप्या ने...
मिश्रिलाल गंगवाल!
(श्रोताः) पैसावाळा, पैसा आपे तो ज काम थाय ने..! (उत्तरः) धूळ मांय
नथी, पैसाथी काम चालतुं ज नथी, जे तत्त्व छे एनी पर्यायने ते द्रव्य पहोंची वळे छे ने एनाथी ते
काम चाले छे. कडियो एने पहोंची वळतो नथी, कडियो एनी पर्यायने (पोतानी ईच्छाने) पहोंची
वळे छे आहा... हा! अने ते पर्याय, द्रव्य ने गुणथी उत्पन्न थाय छे. ए पर्याय परथी (उत्पन्न) थाय
छे एम नथी. बहु फेर भाई!! आवुं वीतरागनुं स्वरूप हशे?! जिनेश्वर देवनी आ वाणी छे बापु!
आहा.. हा! जेना प्रदेश भिन्न छे एनी तो वात शुं कहीए. पण जेना प्रदेश एक छे गुण-गुणीना,
एने पण अन्यत्व लागु पडे छे. आहा... हा... हा!
(कहे छे) छे? (पाठमां) “कारण के तेमने अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे.” सत्ता गुणने
आत्मा गुणी, ए बंन्ने वच्चे अन्यत्व लक्षणनो सद्भाव छे. अनेरापणाना लक्षणनो बे वच्चे सद्भाव
छे. आहा... हा! (वळी) अनेरापणाना लक्षणनो सद्भाव छे, ओलामां एकपणानो सद्भाव हतो.
आहा...हा...हा! पछी आ वांच्युं छे के नहीं कोई दी’?
(श्रोताः) एम ने एम समजाय एवुं नथी...
(उत्तरः) गजब वात छे बापु!! शुं कहे!!
कहे छे केः तुं आत्मा छो प्रभु! अने एमां आत्मा छो ई आत्मा सत्ताथी छे. सत्ता न होय
तो, आत्मानुं होवापणुं-ध्रुवपणुं होई शके नहीं. एम होवा छतां-आम होवा छतां गुण-गुणीना भेदनुं
अन्यत्वलक्षण लागु पडे छे.
“अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे.” आहा... हा! “अतद्भाव
अन्यत्वनुं लक्षण छे” छे? (पाठमां नीचे फूटनोटमां) अतद्भाव (कथंचित् ‘ते’ नहि होवुं ते;
(कथंचित्) ते-पणे नहि होवुं ते; (कथंचित्) अतत्पणुं.
[द्रव्य (कथंचित्) सत्तापणे नथी अने सत्ता
(कथंचित्) द्रव्यपणे नथी माटे तेमने अतद्भाव छे.] अर.. र! चीरी-चीरीने वात क्यां लई ग्या!
आ बीजानुं कांई करी शकुं ने बीजामांथी कांई जाणुं ए वात तो क्यां’य रही गई,

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७७
ए तो छे नहीं, तारी कल्पना! पण सत्ता नामनो गुण छे ने आत्मा गुणी छे ए अपेक्षाए
कथंचित् अन्यपणुं पण छे. प्रदेश एक होवा छतां भावभेदे भिन्न छे तो अन्यत्व लक्षण लागु पडे छे.
आहा.. हा.. हा! झीणुं बहु भई! अहींयां.
‘ज्ञेय अधिकार बहु सरस छे.’ जगतना-ज्ञेयोनो आवो
स्वभाव छे. अनंत ज्ञेयो छे-जाणवा लायक. ए बधा ज्ञेयो पोताथी अस्ति छे. जेथी सत्ता गुणथी
अभिन्न छे. पण गुण ने गुणीना नाम ने लक्षणथी, अन्यपणे पण छे. आहा.. हा! समजाणुं कांई?
(कहे छे) अन्यपणुं नथी, ने अन्यपणुं पण छे. पण कई अपेक्षाए? प्रदेशभेद नथी माटे
अन्यपणुं नथी, पण बेना भावमां भेद छे माटे अन्यपणुं छे. आहा... हा! “अतद्भाव अन्यत्वनुं
लक्षण छे.” शुं कीधुं? पहेलुं एम कह्युं’ तुं के ‘अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे.’ अने ए अन्यत्वनुं
लक्षण ई अतद्भाव (छे.)
“अतद्भाव अन्यत्वनुं लक्षण छे.” अतद्भाव छे? (पाठमां नीचे
फूटनोटमां) (कथंचित्) ‘ते’ नहि होवुं ते; गुण ते गुणी नहीं ने गुणी ते गुण नहीं. कथंचित् प्रकारे
(छे.) आहा.. हा! आवी वातुं हवे क्यां! ओला-एम. ए ना पूछडां लगाडे ने.. वकिलो
एल.एल.बी. ना लगाडे... एमां आवुं कांई न आवे! आहा...हा! आ तो थोडे...थोडे...थोडे... धीमे..
धीमे समजवा जेवी वात छे बापु! परमसत्य! ए जगतथी जुदी, जुदी जात छे! आहा... हा! अरे!
परम सत्य काने न पडे! एने विचार के दि’ आवे ने आनुं पृथकपणुं के दि’ करे! आहा.. हा!
शुं कह्युं के? आम होवा छतां एटले सत्ता अने द्रव्यने प्रदेश भेद नहीं होवा छतां, सत्ता ने
द्रव्यने अन्यत्व छे’ गुण अने गुणीने अन्यपणुं पण छे. कारण अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे त्यां
भावनुं लक्षण ‘अतद्भाव अन्यत्वनुं लक्षण छे.”
विशेष हवे कहेशे......