Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 26-06-1979.

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७८
प्रवचनः ता. २६–६–७९.
‘प्रवचनसार’ १०६ गाथा. बीजो पेरेग्राफ. झीणुं छे आ.
(कहे छे के अहींयां) “आम होवा छतां” एटले केः आत्मा छे (एमां) सत्ता गुण छे.
परमाणु छे एमां वर्ण, गंध, रस, (स्पर्श) गुण छे. एमां ई सत्ता छे. पण सत्ता गुण छे ई द्रव्य
नथी. अने द्रव्य छे ते एक गुणरूप नथी. एवो बे वच्चे ‘अतद्भाव अन्यत्व’ छे. ‘ते- नहीं’ ए
रीते अतद्भाव अन्यत्व छे. पृथकत्व अन्यत्व नथी. एटले शुं? शरीर, वाणी कर्म आदि, स्त्री-कुटुंब-
परिवार लक्ष्मी आदि, ए तो पृथक प्रदेश छे. पृथक प्रदेश छे तेथी अन्य छे. अहींयां आत्मामां छे
अस्तित्वगुण, ए गुण अने आत्माने प्रदेशभेद नथी. छतां गुण ते द्रव्य नहीं, द्रव्य ते गुण नहीं. गुण
द्रव्यने आश्रये रहे छे. तेथी बे वच्चे अतद्भाव छे. आहा... हा! अने अतद्भावने लईने, द्रव्यने
अने गुणने अन्यत्व कहेवामां आवे छे. अनेरापणुं छे एम कहेवामां आवे छे. को’ सांभळ्‌युं?
(कहे छे केः) आ शरीर, वाणी, कर्म, स्त्री, कुटुंब, परिवार, पैसो मकान ए तो आत्माना
प्रदेशथी भिन्न छे, पृथक प्रदेश छे. अने तेथी अन्यत्व छे ज. एमां नथी आ आत्मा, आत्मामां नथी
ए. आहा... हा! पण आत्मामां एक सत्ता नामनो गुण छे. ‘अस्तित्व’ . (आ) अस्तित्व न होय
तो तेनुं ‘छे-पणुं’ रही शके नहीं. अस्तित्व ‘छे’ ई सत्तागुणने लईने छे. छतां सत्तागुणनी ने
द्रव्यनी वच्चे ‘अतद्भाव’ छे. (एटले) जे द्रव्य छे ते गुण नहीं ने गुण छे ते द्रव्य नहीं. केम के
गुण छे ते आत्माना-द्रव्यना आश्रये रहे छे. आहा.. हा! आवी वातुं हवे धरमनी नामनी! क्यां पडी
छे, दुनियाने! आहा.. हा! क्यां मरीने जशुं क्यां आहा... हा! देहनी स्थिति क्षणमां छूटी जाय, फडाक
दईने! जाय... रखडवा (चार गतिमां!) आ तत्त्व ज अंदर छे, ए कई रीते छे, एनुं यथार्थ (पणे)
पदार्थनुं ज्ञान करावे छे (आ.) एटले खरेखर तो ‘भेदज्ञान करावे छे.’
(शुं कहे छे? केः) पहोळो-पृथक छे, ते अन्य छे तेथी एनाथी जुदो ठराव्यो, अने आमां
(एटले) आत्मामां गुण छे सत्ता, छतां प्रदेशभेद नथी, पण ते अन्य छे. एटले (अनुभव माटे)
गुणभेद उपर द्रष्टि राखवानी नथी. आहा... हा... हा! ई शैली कहेवा मागे छे. गुणी जे छे ‘वस्तु’
अनंतगुणो जेने आश्रये रहेल छे. तेनी द्रष्टि करतां, बधेथी (द्रष्टिने) संकेलीने (एकाग्र थतां) तेने
सम्यग्दर्शन थाय. तेने धरमनी शरूआत थाय. आहा... हा... हा!
“आम होवा छतां एटले? के आत्मा
एनी सत्ता (बंनेने) प्रदेशभेद नथी. एम होवा छतां, प्रदेशभेद नथी एम होवा छतां “तेमने (सत्ता
अने द्रव्यने) अन्यत्व छे.” आहा... हा! सत्ता नामनो गुण छे अस्तित्व, अस्तित्व. अने आत्मा
अनंतगुणनो धरनार छे, तो बे वच्चे प्रदेशभेद नथी. बेना क्षेत्र जुदा नथी. बेनुं रहेठाण-रहेवुं ए
जुदुं नथी, पण बेना ‘भाव’ भिन्न छे. आहा... हा... हा! धरम करवामां आवुं शुं काम हशे? आहा...
हा... हा... हा! आ भेदज्ञान करावे छे बापु! जेम परथी

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३७९
पृथक मन कीधुं, हवे गुण ने गुणीने प्रदेशभेद - पृथकता नथी, पण अन्यत्व छे एवुं छे स्वरूप!
अन्यत्व छे ई भेद छे. आहा.. हा! तेथी एने अभेद द्रष्टि-द्रव्य उपर द्रष्टि कराववा, गुणनो
अतद्भाव छे ते (द्रष्टिमांथी) छूटी जाय छे. समजाय छे कांई? आहा... हा... हा!
(कहे छे) द्रव्य एटले आत्मा, एमां सत्ता (आदि) ज्ञान, दर्शन कोई (पण) गुण, ए गुण
जे छे अने गुणी जे आत्मा, बे वच्चे प्रदेश-क्षेत्रभेद नथी. छतां अतद्भावरूप-अतद् (एटले) ‘ते’
नहीं (होवुं ते). गुण ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते गुण नहीं ए रीते “अतद्भावरूप अन्यत्व छे.” छतां
ए अन्यत्व आश्रय करवा लायक नथी ई भेद (छे.) आहा... हा! बीजा द्रव्योमां तो एनी मेळे थाय
छे. आने तो (आत्मानो तो) आश्रय करवानो छे ने? जीवने तो. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “कारण के तेमने अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे.” कोने? आत्माने
अने सत्ताने. परमाणुने अने सत्ताने. एने अन्यत्व लक्षणनो सद्भाव छे. अनेरापणुं छे एवा
लक्षणनी त्यां हयाती छे. आहा... हा... हा! ‘समयसार’ तो ऊंचुं छे ज पण आ ‘प्रवचनसार’ पण
ऊंची चीज छे! ‘ज्ञेय अधिकार’ आ समकितनो अधिकार छे ‘आ’ . सम्यग्द्रष्टिने आत्मा सिवाय,
अन्य वस्तु छे ई तो अन्य छे. एमां अन्यमांथी कोई चीज मारी नथी (एवो द्रढपणे अभिप्राय
छे.) शरीर, वाणी, मन, स्त्री, कुटुंब, परिवार, दीकरा-दीकरी कोई चीज एनी नथी. एटलेथी हद
नथी. हवे एनामां रहेलो ज्ञानगुण छे, ते गुण छे ते द्रव्यने आश्रये छे. तेथी ते गुणने अने द्रव्यने
(बन्नेनी) वच्चे अतद्भाव (छे.) एटले ‘ते-भाव’ नहीं. गुणभाव ते द्रव्यभाव नहीं ने द्रव्यभाव ते
गुणभाव नहीं. एवा अतद्भावनुं अन्यपणुं सिद्ध थाय छे. (गुण अने गुणी वच्चे.) आहा.. हा..
हा! आहा.. हा! लोकोने बहारथी मळे, बिचाराने जिंदगी वई (चाली) जाय छे! अंदर वस्तु शुं छे
एनी खबरुं न मळे! आखो दि’ धंधाना पापना पोटला बांधे! आहा..! वीस वरसनो थाय ते
(छेक) ६०-७० वरस सुधी मजूरी करे! आ धंधानी! एमां आ आत्मा शुं ने गुण शुं ने गुणी शुं?
आहा.. हा.. हा!
(कहे छे) (श्रोताः) वेपार धंधो करतां, करतां आ थाय ने..! (उत्तरः) वेपार धंधो हवे
धूळमांय, ए तो थवानो हशे ते थाय छे. ए आत्माथी क्यां थाय छे! अहा.. हा! आहा.. हा! विकल्प
करे. (ईच्छा करे.) बाकी धंधानी क्रिया ई करी शके (एम नहीं) एनी पण समय, समयनी अवस्था
क्रममां धंधामां जे परमाणु छे, पैसाना ने मकानना (दुकानना), मालना, ए मालनी जे समय जे
पर्याय छे ई त्यां थवानी ज छे ते (थशे ज.) आहा... हा.. हा! (श्रोताः) रोटली जे वखते थवानी ते
वखते थवानी, तो्र बाईए शुं कर्युं? ...
(उत्तरः) ई त्यारे ज थवानी छे ई. (श्रोताः) रांध्या विना?
(उत्तरः) रांधे नहीं तो पण ई वखते विकल्प होय. (रोटली थवा काळे विकल्प होय बाईने) उचित
निमित्त होय. (वळी) उचित निमित्त होय. ई निमित्त छे माटे न्यां (कार्य) थाय छे एम नथी.

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८०
आहा... हा! आवी वात छे! शांतिभाई! आमां क्यां, आ तमारा रूपियामां क्यां आमां सूझ पडे
एवुं छे?
आहा... हा! एक एक बोल केटलो ऊतार्यो छे ऊंडो!! “कारण के तेमने अन्यत्वना लक्षणनो
सद्भाव छे.” आत्मा अने सत्ता तेनी ए बेनी वच्चे (अने) आत्मा ने ज्ञानगुणनी वच्चे
अन्यत्वना लक्षणनो सद्भाव छे. बे एक नथी एम त्यां अन्यत्व लक्षणनी हयाती छे. गुण अने
गुणी वच्चे अन्यत्व (लक्षणनो) सद्भाव-हयाती छे. आहा... हा... हा!
“अतद्भाव अन्यत्वनुं
लक्षण छे.” ‘ते’ नहीं. सत्ता ते द्रव्य नहीं, ने द्रव्य ते सत्ता नहीं. एम एने अतद्भाव (अर्थ नीचे
फूटनोटमां) अतद्भाव= (कथंचित्) ‘ते’ नहि होवुं ते; (कथंचित्) ते-पणे नहि होवुं ते; (कथंचित्)
अतत्पणुं,
[द्रव्य (कथंचित्) सत्तापणे नथी अने सत्ता (कथंचित्) द्रव्यपणे नथी माटे तेमने
अतद्भाव छे.) को’ आवुं वांच्युं’ तुं के’ दि शांतिभाई! तो चोपडा बहु फेरवे छे न्यां! हीराना ने
हीरा, हीरा. हीरामां हेरान! अहा..हा..हा! आहा.. हा! चैतन्य हीरो! ‘जेमां गुण ने गुणीनी भेदता
लक्षमां लेवा जेवी नथी’
आहा...! शुं संभाळे छे!! (तारा स्वरूपने) प्रभु, तुं आत्मा छो ने..! अने
ते आत्मा अनंतगुणनुं एकरूप छे तो अनंतगुणनो आश्रय छे. गुणने आश्रये द्रव्य नथी, द्रव्यने
आश्रये गुण छे छतां गुण ने द्रव्य बे वच्चे अतद्भाव छे. (एटले गुण छे ते द्रव्य नथी ने द्रव्य छे
ते गुण नथी. आहा... हा... हा! आंही सुधी ज्यां अतद्भाव छे. (सुधी) ल्ये छे. भले ई अतद्भाव
अन्यनुं कारण छे-अनेरो ई (गुण छे.) गुण अनेरो छे, द्रव्य अनेरुं छे. आ प्रदेशभेदमां तो वस्तु
(जात न जुदी (होय छे.) आहा..! एनो अर्थः शुं कहेवाय तमारे? लादी! पोपटभाईनी लादी आवी
याद. लादी ने रजकणे-रजकण, एने समयथी (तेनी) ते ते पर्याय थाय, ते ते परमाणुना गुण-
सत्ता-ने (परमाणु) द्रव्य तो ई परमाणु ने सत्ता (वच्चे) अतद्भाव छे. भले परमाणुमां वर्ण-गंध-
रस-स्पर्श (आदि गुण) छे. पण (ए) वर्ण- गंध- रस- स्पर्श ने परमाणु (द्रव्य) बे वच्चे
एकभाव नथी अतद्भाव छे, अतद्भावछे एटलुं अन्यत्व छे. अहा... हा! आहा... हा! समजाय
एवुं छे, भाषा तो सादी छे पण. आ (वात) कोई दि’ सांभळी नो होय (एटले) आकरी पडे!
(आ तो क्रियाकांड) दया पाळो, व्रत करो ने ईच्छामि, वंदामि, पयाहिणं सामायिकं,
पायईच्छितं, करणेणं, विसेहि करणेणं (पाठ बोल्याने) थई गई सामायिक! शेनी य खबर न मळे
ने! अरे.. रे!
(अहींयां कहे छे केः) “अतद्भाव अन्यत्वनुं लक्षण छे” गुण ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते गुण
नहीं (ए अतद्भाव छे.) एवो जे अतद्भाव अन्यत्व-अनेरापणानुं लक्षण छे. एटले ते अनेरुं छे.
प्रदेशभेदथी भले अनेरुं नहीं, पण आ रीते अनेरुं छे.
“ते तो सत्ता अने द्रव्यने छे

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८१
ज.” सत्ता नामनो गुण छे. अने द्रव्य छे ई गुणी छे. बे वच्चे आटलो तो- अतद्भाव-लक्षण
अन्यत्व तो साबित थाय छे. आहा... हा!
“कारण के गुण अने गुणीने.” गुण जे सत्ता-ज्ञान
आदि, अने द्रव्यने “तदभावनो अभाव होय छे.” ते भावनो बे वच्चे अभाव होय छे. आहा...
हा! ‘ते-पणे’ होवुं; गुण द्रव्यपणे होवुं अने द्रव्यने गुणपणे होवुं (एवा तद्भावनो अभाव होय
छे) आवी वातुं हवे! अहा... हा... हा! वीतरागनो मारग बहु झीणो बातु! धरम शैली एवी छे
आ. आ तो धीराना काम छे! आहा.. हा... हा!
कहे छे (केः) जेना पृथक प्रदेश छे ई तो अन्य छे. एने ने मारे तो कांई संबंध नथी.
आहा... हा! पण तारामां रहेल गुण-सत्ता अने आत्मा, बे वच्चे एकभाव नथी. जे गुण छे ए रूपे
द्रव्य नथी ने जे द्रव्य छे ए रूपे गुण नथी. ए रीते
“तदभावनो अभाव होय छे.” बेमां तद्भावनो
अभाव होय छे. सत्ता ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते सत्ता नहीं. एवो तद्भावनो बे वच्चे अभाव छे.
अहा... हा! आहा... हा! घोडचंदजी! आवुं क्यां’ य सांभळवा कलकत्तामां मळे नहीं क्यां’ य! आ
फेरे वळी पडया छे आवी ने! आहा... हा!
एकलो प्रभु तुं छे एम कहे छे. आहा... हा! एकलडामां पण गुणने गुणीनी अन्यता छे.
आहा... हा! आहा...! ए... ई? पृथक प्रदेशे आ शरीर, वाणी, करम, आबरु, दीकरा, दीकरी (ए
तो) क्यांय अन्य छे. ई (तो) आत्मामां छे ज नहीं. पण आत्मामां, जे ज्ञान ने सत्ता गुण छे तेने
ने आत्माने अतद्भाव लक्षण सिद्ध थाय छे. तद्भावनो अभाव (सिद्ध) थाय छे. तद्भावनो अभाव
सिद्ध छे. आहा... हा! जे सत्ता छे ते द्रव्य नथी ने द्रव्य छे ते सत्ता नथी. तेवो बे वच्चे (अतद्भाव
छे.) तेम ज्ञान छे ते आत्मा नथी ने आत्मा छे ते ज्ञान नथी, एम आनंद छे ते आत्मा नथी ने
आत्मा छे ते आनंद नथी. एवो
“तद्भावनो अभाव छे.” आ ते आ छे ने आ ते आ छे. एवा
तद्भावनो त्या अभाव छे. आहा... हा... हा... हा! दुकानमां ‘आ’ आवे नहीं, बायडी-छोकरां वच्चे
आ वात के दि’ आवे? अपासरे (उपाश्रये) जाय तो आ वात मळे नहीं, आहा... हा!
(श्रोताः)
दिगंबर मंदिरे जाय तो न्यां’य मळे नहीं? (उत्तरः) न्यां’य क्यां छे? बधी वातु बहु फेर! दिगंबर
मंदिरोमां बिचारा, फेर करी नाख्या!
आहा... हा! वस्तु छे ‘आ’. ते परने स्पर्शती नथी. जे चीज स्व छे. ए शरीर, करमने
स्पर्शती ज नथी. एथी तो ते पृथक-अन्यत्व छे (तेनाथी) पण आत्मा अने गुण तो स्पर्शेला
छे. आहा... हा! छतां बे वच्चे ‘तद्भावनो अभाव छे.’ गुण ते आत्मा ने आत्मा ते गुण
एवा “तद्भावनो अभाव छे.” आहा... हा! आवुं झीणुं छे!! (श्रोताः) आ न जाणीए तो कांई
वांधो खरो?
(उत्तरः) आ न जाणे एने गुणभेद उपर द्रष्टि रहेशे. पर अन्य छे एम नहीं जाणे तो
एना उपर द्रष्टि रहेशे. अने गुण अने द्रव्य, बे भिन्नभिन्न छे एम न माने तो, एने गुणभेद,
गुणी-गुणना भेदनी द्रष्टि

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८२
रहेशे. आहा...हा...हा! ए...ई? आहा...हा! आ तो वीतरागना वचन छे!! एना एक एक वचन
उपर (अनंत आगमना भाव समायेलां छे!) “तद्भावनो अभाव होय छे.” हवे द्रष्टांत आपे छे.
(अहींया कहे छे केः) द्रष्टांतथी समजावे छे केः “शुक्लत्व अने वस्त्रनी माफक.” शुक्लत्व
एटले धोळापणुं, आ वस्त्रनुं धोळापणुं (छे ने) अने वस्त्र (जे छे.) आ धोळापणुं अने आ वस्त्र.
एनी माफक. “ते आ प्रमाणेःजेवी रीते एक चक्षु–इन्द्रियना विषयमां आवतो, बीजी बधी
इन्द्रियोना समूहने गोचर नहि थतो एवो जे शुक्लत्वगुण.”
शुं कहे छे? आ धोळो गुण छे ई
आंखनो विषय एकलो रह्यो. बीजी कोईपण इन्द्रियोनो विषय (ए) नहीं. आ धोळुं छे ई आंखनो
विषय छे. बीजी कोईपण इन्द्रियोनो विषय (ते) नहीं. अने आ ‘वस्त्र’ छे ई बधी इन्द्रियोनो
विषय छे. बे ‘भाव’ फेर पडी ग्या! समजाणुं कांई? फरीने...! ‘शुक्लत्व अने वस्त्रनी माफक. ‘जेवी
रीते एक चक्षु - इन्द्रियना विषयमां आवतो’, कोण? धोळो गुण. ‘बीजी बधी इन्द्रियोना समूहने
गोचर नहि थतो.’ (कोण?) धोळो गुण (बीजी) इन्द्रियनो विषय ज न थाय. बीजी इन्द्रियनो
विषय न थाय. धोळापणुं नाकथी जणाय? (कानथी जणाय, जीभथी जणाय, चामडीथी जणाय?
आहा... हा! धोळापणुं वस्त्रनुं जे छे ई आंख इन्द्रियनो एकनो ज विषय छे. बीजी बधी इन्द्रियोनो
विषय ए (धोळापणुं) नथी. आहा... हा! दाखलो केवो आप्यो, जुओने!!
(अहींया कहे छे केः) “बीजी बधी इन्द्रियोना समूहने गोचर नहि थतो एवो जे
शुक्लत्वगुण छे ते समस्त इन्द्रियसमूहने गोचर थतुं एवुं वस्त्र नथी.” कोण वस्त्र. वस्त्र ते समस्त
इन्द्रियसमूहने गोचर छे. शुं कीधुं? आ धोळो जे गुण छे. ए एक चक्षु-इन्द्रियनो ज विषय छे, बीजी
बधी (इन्द्रियोनो) ए विषय नथी, वस्त्र छे ई बधी इन्द्रियोनो विषय छे. स्पर्श-रस-गंध-वर्ण बधा
विषय (गुणो वस्त्रमां छे.) माटे वस्त्र अने धोळापणामां अतद्भावपणे अन्यत्व छे. (पण) पृथक-
प्रदेशपणे अन्यत्व नथी. आहा... हा!
(श्रोताः) अतद्भाव पुरवार करे छे... (उत्तरः) हें, अतद्भाव
छे बे वच्चे, धोळपण छे ने ई एक इन्द्रियनो विषय छे. आंखथी जणाय. अने बीजी (कोई)
इन्द्रियो वडे ए न जणाय. आंख बंध करे तो (धोळप) नाकथी जणाय? (ना. न जणाय.) अने आ
वस्तु (वस्त्र) छे ते आखी (बधी) इन्द्रियोथी जणाय. आहा... हा! समजाणुं कांई? (श्रोताः)
न्याय सरस छे.
(उत्तरः) हें? सरस न्याय छे. आहा... हा! “शुक्लत्वगुण छे ते समस्त
इन्द्रियसमूहने गोचर थतुं एवुं ‘वस्त्र’ नथी.” आहा...हा...हा!
आहा... हा! एक इन्द्रियने गम्य छे, धोळो रंग. ई बीजी बधी इन्द्रियने गम्य नथी. (अने)
वस्त्र छे ई बधी इन्द्रियोने गम्य छे. माटे वस्त्र अने धोळपणमां अतद्भावरूप अन्यत्व छे. धोळापणुं
ते वस्त्र ने वस्त्र ते धोळापणुं एम’ नथी. माळे’...! आ...रे...! आ वकीलोनो विषय

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८३
ए वेपारीओने आवी ग्यो! आहा... हा... हा! (श्रोताः) वाणियाने... आहा... हा! आ तो द्रष्टांत
आप्यो हों? (वस्तुस्थिति) सिद्ध करवा. सत्ता नामनो गुण अथवा ज्ञान आदि गुण अने आत्मा,
बेना भावनो तद्भाव नथी. बेना तद्भावनो अभाव छे. केम? के वस्त्रनी धोळप छे ई एक आंख
इन्द्रियथी ज जणाय छे, बीजी इन्द्रियोथी नहीं. अने वस्त्र छे ई तो बधी इन्द्रियोथी जणाय छे. माटे
तेने अतद्भाव छे. धोळापणा अने वस्त्रने तद्भाव नथी तद्भावनो बे वच्चे अभाव छे. आहा...
हा! समजाणुं?
(श्रोताः) लूगडा सिवाय बीजाने आवे के नो’ आवे? (उत्तरः) हें? (श्रोताः)
कपडांनुं (उदाहरण छे) तो बीजामां, छत्रीमां लागु पडे के नहीं? (उत्तरः) आ कपडानो दाखलो आ
तो. समजे माणस एटले. आ छे ते आंखे (थी) जणाय, काने (कानथी) जणाय? आ आखुं वस्त्र
तो काने य जणाय. आंख्युं बंध करीने आ आम कानथी जणाय, स्पर्शथी जणाय, (कपडांना
फरफराहटथी जणाय.) आहा...हा! आवो उपदेश क्यां? आहा...हा! एवी वात छे! (लोकोने) दरकार
नथी! एटले एने झीणुं लागे छे. ‘झीणुं नथी सत्य छे.’ परम सत्यनी स्थिति ज आवी–मर्यादा
छे.’
जे सत्नी मर्यादा जे प्रमाणे छे ई प्रमाणे नहीं समजे, तो ई सत्ज्ञान नहीं थाय, सत्ज्ञान नहीं
थाय तो सत्स्वरूप तेने मळी शकशे ज नहीं. आहा... हा! सत्स्वरूप प्रभु! जेवुं सत् छे एना तरफ
ई वळी नहीं शके. आहा... हा! असत्ज्ञानथी ते सत् तरफ वळी शके? आहा... हा...!
(अहींया कहे छे केः) “तथा जे समस्त इन्द्रियसमूहने गोचर थतुं एवुं वस्त्र.” बधा-पांचेय
इन्द्रियना समूहने जणातुं एवुं वस्त्र. “ते एक चक्षु–इन्द्रियना विषयमां आवतो, बीजी बधी इन्द्रियोना
समूहने गोचर नहि थतो एवो शुक्लत्वगुण नथी”, वस्त्रथी शुक्लत्वगुण केम जुदो पडयो? ए एक ज
इन्द्रियनो विषय छे. अने बीजी बधी इन्द्रियोनो विषय ते नथी. वस्त्र बधी इन्द्रियोनो विषय छे.
माटे बेयने भिन्नता छे. आहा... हा!
“तेथी तेमने तद्भावनो अभाव छे.” अरे! गुण-गुणीनी
(वच्चे) भिन्नता! गजब वात छे!! आहा... हा!
हजी तो आ बायडी-छोकरां बीजा नहीं, आ शरीर मारुं नहीं. (ए मानवुं) परसेवो ऊतरे
एने. आ शरीर तो जड-माटी धूळ छे. आ एनी पर्याय जे समये-समये थाय ई एनाथी थाय छे.
अने ई जाणे के माराथी थाय छे, में आम कर्यु. शरीरनुं आम कर्युने...! शरीर द्वारा काम कर्युं (आखो
दि’) शरीर द्वारा काम कर्युं (एम ज घूंटण छे!) आहा... हा!
(श्रोताः) थपाट मारे तो शरीर द्वारा
ज मारे ने...! (उत्तरः) कोण मारे? ई तो परमाणुनी पर्याय थवानी ते थाय. थपाट मारी शकतो
नथी ई (आत्मा) अ... हा... हा... हा! ए परमाणुनी पर्याय ई रीते थवानी होय तो ज थाय. अने
ए (बीजाना हाथनी थपाट) अडती नथी आने (गालने). थपाट एने अडती नथी गालने. आहा...
हा... हा! आवुं (वस्तु) स्वरूप!! जे पोते पोतामां छे ए बीजाथी अभावस्वरूप छे पोताथी
भावस्वरूप छे, बीजाथी अभावस्वरूप छे. अत्यंत अभाव छे. हवे अत्यंताभाव (होवाथी) एने अडे

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८४
य क्यां? आहा...! आकरी वात बहु बापु, आ तो! आहा... हा! ए हीराने अडतो नथी आत्मा,
एम कहे छे.’ आ आत्मा (तो) नहीं पण हाथे य अडतो नथी. (श्रोताः) एनुं शुं काम छे पण
पैसा आवे छे ने...! हाथ न अडे तो कांई नहीं, अमारे तो पैसानुं काम छे ने! (उत्तरः) पैसा कोनी
पासे आवे? आहा...! पैसानो मालिक हतो के दि’? पैसानो मालिक पैसो छे. आहा... हा! (अरे!)
परमाणुंमां वर्ण-गंध-रस-स्पर्श (गुणो) छे ते पण परमाणुमां अन्यभाव छे. अतद्भाव छे. ई
परमाणुंमां स्पर्श (नामनो गुण छे) आ स्पर्श, टाढुं-ऊनुं ई अने परमाणु (द्रव्य) वच्चे अतद्भाव
छे. केमके (टाढुं-ऊनुं) स्पर्श एक इन्द्रियनो विषय छे अने आ आखुं तत्त्व छे ए पांचेय इन्द्रियनो
विषय छे. एटले (आखा तत्त्वने-द्रव्यने) अतद्भावनो अभाव छे. अहा... हा... हा... हा! पण,
अतद्भाव तरीके विशेष छे. प्रदेश तरीके. पण तद्भाव तरीके, तद्भावनो भाव होवा छतां भिन्नभिन्न
भाव होवा छतां, तेनो अभाव ते एनुं स्वरूप छे. आहा... हा... हा! समजाणुं कांई? आवी वात
क्यां सूक्ष्म! धरम करवो एमां आवी वात शुं करवी? पण धरम कोण करे छे? खबर छे तने?
आहा... हा! धरम करनारो शुं करे छे? धरम करनारो’ ... परपदार्थनी सामुं जोतो नथी, अने
पोताना गुण-भेदने करतो नथी! ए धरम करे छे ई द्रष्टि द्रव्य उपर जाय छे ने ए धरम करे छे.
देवीलालजी! आहा... हा... हा!
(कहे छे केः) धरम तो पर्यायमां थाय ने? आहा... हा! पर्याय क्यां वळे छे? एनुं लक्ष क्यां
जाय छे? ध्येय कोने बनावे छे? ई जो परने ध्येय बनावे तो अज्ञान छे. हवे पोते छे पर्याय, एमां
आत्माने ज्ञानगुण बे भिन्न, एम जो पर्यायमां लक्ष करे तो ई विकल्प ऊठे छे. कारण के बे (वच्चे)
अतद्भाव छे. आहा... हा! आव वातु छे झीणी! पण ज्यारे गुण ने आत्मा, भले अन्यपणे-
अतद्भावने (लईने) अन्यपणे कहेवाय, छतां एवा (भेदनुं) लक्ष छोडी दईने, एक द्रव्य उपर-
ज्ञायक उपर द्रष्टि करे तो सत्य हाथ आवे (एटले आत्मतत्त्व जणाय.) आहा... हा! हवे आवुं क्यां!
आहा... हा! मुंबई जेवा शहेरमां आवी वात थाय त्यां तो (लोको बूमो पाडे के) शुं कहे छे आ?
(अहींयां कहे छे केः) “तेथी तेमने तद्भावनो अभाव छे.” कोने? वस्त्रने अने धोळा
स्वभावने. धोळागुणने तद्भावनो अभाव छे.’ आहा... हा... हा! एक-एक शब्दनो अर्थ तो धीमे’
कथी थाय छे पण हवे. आहा... हा! निर्णय-परथी भिन्न छे. एवा निर्णय करवानो पण अवसर न
ले, ई के दि’ आत्माना-अंतरमां जाय. आहा... हा! हे प्रभु! मारुं स्वरूप ज परथी तद्दन भिन्न,
कर्मथी-कर्मना प्रदेशो भिन्न अने आत्माना प्रदेशो भिन्न, एथी कर्मना उदयथी आत्माने राग थाय,
एम नथी. आहा...! मोटो वांधो ‘आ’!!
(श्रोताः) जैन धर्म तो कर्मने ज माने छे... (उत्तरः)
तेमने नहीं आहा... हा! अहींया तो कर्मनो पहेलेथी ज नकार दईए छीए. आहा...! संशय थाय ई
जीवनी पोतानी भूल छे. ए करमने लईने संशय थाय, दर्शनमोहने लईने एम नथी. छतां
संशयभावने

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८प
अने आत्माने- आ संशयभाव आत्माने आश्रये थाय छे - छतां संशयभाव ने आत्मा बे ने
अतद्भाव छे. आहा... हा!
(अहींया कहे छे केः) “तेथी तेमने तद्भावनो अभाव छे.” कोने? धोळापणुं अने वस्त्रपणुं
(अर्थात्) धोळापणुं अने वस्त्रपणुं ए एक नथी. केम के धोळापणुं एक इन्द्रियनो विषय थयो, अने
वस्त्र पांच इन्द्रियनो विषय थयो. धोळापणुं ए आंखनो विषय छे. बीजी इन्द्रियोनो विषय नथी.
(एथी ए बे वच्चे तद्भाव नथी.) समजाणुं कांई? एक इन्द्रियनो विषय थयो (बाकीनी) चार
इन्द्रियोनो विषय (धोळापणुं) न थयो. आ वस्त्र छे ई (आंख सहित बाकीनी) चारेय इन्द्रियोनो
विषय छे. (एटले के) पांचे य नो अहा... हा... हा.! माटे बे वच्चे अतद्भाव छे. अतद्भाव
अनेरापणे गणवामां आवे छे. ओला प्रदेशभेदनुं अन्यत्व जूदुं, आ अतद्भावनुं अन्यत्व जूदुं.
आहा... हा...! (श्रोताः) प्रदेशभेद नाम पृथकत्व... (उत्तरः) हें! पृथक छे तद्न (ए तो.) आ
भाषा तो सादी छे आमां कोई संस्कृत ने व्याकरण ने... (एवुं नथी.) बेनुं-दीकरियुंने पकडाय एवुं
छे! नहीं?!
(कहे छे केः) तेने एक वार हळवो बनावी दे. पर मारां छे ई बोजो ऊठावी नाख. आहा...
हा... हा! (आत्मा) हळवो तो छे... पण माने (जूठी) मान्यताने लईने आ मारुं, आ पैसा मारा,
ए पैसा पेदा करी शकुं, पैसाने हुं वापरी शकुं, छोकरांने बराबर भणावी शकुं, व्यवस्था घरनी सरखी
राखुं तो ए (बधा सरखा) रहे. आहा... हा! दीकरीने पण ठेकाणे पाडवी होय तो, ध्यान राखीने
(शोधी काढुं के) वर केवो छे? घर केवुं छे? एवी बधी ध्यान राखे तो ठेकाणे पडे. ए बधी भ्रमणा
छे!! आहा... हा... हा... हा! भारे जगत, तो भाई! आहा... हा! छतां ए चीजोमां रह्यो देखाय.
पण एनाथी भिन्नपणे आत्मा भास्यो होय, तथा संयोगो होय, संयोग संयोगने कारणे होय,
इन्द्रियोना विषयो पण ज्यां संयोगे होय, छे पृथक पण संयोगे आवे. पण छतां अंदर द्रष्टिमां फेर
होय. आहा...! के हुं तो आत्मा ज्ञायक! चैतन्यस्वरूप अभेद! गुणी अने गुणना भेदथी पण विकल्प
ऊठे छे माटे ई हुं नहीं. (हुं तो अभेद-एकरूप छुं.) आहा... हा! आहा... हा... हा! को’ बाबुभाई!
आवुं झीणुं छे! आहा... हा! अरे... रे! आवा आ! अमारे हीराचंदजी मा’ राज बीचारा! वया
ग्या! काने पडी नहीं वात! ई करतां भाग्यशाळीने जीवो अत्यारे! आहा... हा! छेंतालीस वरसनी
दिक्षा! बार वरसनी उंमरे लीधेली. शांत माणस! गंभीर! बहु हजारो माणस-बे हजार माणस
व्याख्यान सांभळे, शांति! अरे... रे! आ शब्द काने नहीं पडेला ‘आ’!! आहा... हा! केः परथी
पृथक छे तो ई तो (अत्यारे के’ छे के) नहीं, परनी दया पाळी शके छे.
एवं पमाणं सारं णाणसंजं
किंचन “ई परनी दया पाळवी ई अहिंसा ने ज्ञाननो सार” हवे आनुं शुं करवुं कहो? हवे अहींया
तो (कहे छे) के परनी दया तो पाळी शके नहीं केम के पर छे ई प्रदेशथी पृथक छे. (वळी ए बे)
प्रदेशथी पृथक छे. तेनी दया कोई पाळी शके नहीं. पण एनामां जे दयानो भाव आवे. आहा...! ए
भावने अने

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८६
द्रव्यने पण अतद्भाव छे. अहहहा! एकरूप नथी. आहा... हा! एनो पण (विकल्प) छोडीने, गुण
अने आत्मानो पण विकल्प छोडीने - ओलो तो विकार छे. आ ज्ञान छे आत्माने जाणनारुं अने हुं
आत्मा छुं ई बे वच्चे पण अतद्भाव छे. आहा... हा! ‘अतद्भाव’!! अतद्भावमां एकलुं कर्युं.
उन्मग्न, निमग्न नहीं? आहा...! पर्यायद्रष्टिथी जोईए तो गुण ने गुणी निमग्न नजरे पडे. (अने)
द्रव्यद्रष्टिए जोईए, तो आहा...हा...हा! तो न्यां (भेद) ऊडी जाय छे. भेद तो ऊडी जाय छे. आहा...
हा... हा... हा! उन्मग्न-निमग्न आवी गयुं’ तुं ने (गाथा-९८ फूटनोटमां अर्थ छे.) केवी वात एम!
सिद्धांत आ छे!!
(कहे छे केः) पर्यायद्रष्टिथी जुए तो भेद देखाय, ई तो विकल्प आवे. आहा... हा... हा! तेने
पर्यायथी - अवस्थाना भेदथी देखे के ‘आ राग छे- आ मारो छे- (आ अतद्भाव छे.) त्यां तो
विकल्प ऊठे. पण पर्यायद्रष्टि छोडीने द्रव्यद्रष्टिथी देखे तो निमग्न - भेद पण डूबी जाय छे. भेद पण
बूडी (डूबी) जाय छे. आहा... हा... हा! अभेदपणुं प्रसिद्धिमां आवे छे. अभेदपणुं द्रष्टिमां आवे छे.
आ आनुं नाम धरम छे!! अरे! क्यां पहोंचवुं! अमृत रेडयां! पंचमआरामां, संतोए तो अमृत
रेडयां छे!! भाव कहेवानी आ शैली!!
कहे छे अतद्भाव छे. छतां पृथक प्रदेश नथी. आहा... हा! पण ए अतद्भावमां पृथक प्रदेश
नथी. छतां अतद्भावने जोवानी बे द्रष्टि (छे.) पर्यायद्रष्टिथी जुए तो अतद्भाव एवुं जुदापणुं
भासे. अने द्रव्यद्रष्टिथी द्रव्यार्थिकनये जुए तो ते निमग्न पण छे. आहा... हा! ओलुं उन्मग्न हतुं ए
विकार, पर्याय (भेद) निमग्न थई जाय छे. द्रव्यमां पण ई अभेद थई जाय छे. आहा... हा!
(श्रोताः) बहु खुलासो... आव्यो. (उत्तरः) आवी व्याख्या छे. आहा...! “तेथी तेमने तद्भावनो
अभाव छे.”
(अहींया कहे छे केः) “तेवी रीते कोईना आश्रये रहेती”. हवे आव्युं पाछुं झीणुं! सत्ता जे
छे ए द्रव्यने आश्रये रहे छे. द्रव्य छे ई कोईना आश्रये रहेतुं नथी. आहा...! छे? (पाठमां) “तेवी
रीते कोईना आश्रये रहेती” आहा...! (एटले) द्रव्यना आश्रये रहेती. “निर्गुण” (एटले)
गुणमां गुण नथी (ए निर्गुण). आहा... हा... हा!
द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः। तत्त्वार्थसूत्र’ नुं सूत्र
छे. (अ. प. सूत्र. ४१) द्रव्यने आश्रये गुण छे पण द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः। गुणने आश्रये गुण
नहीं. भारे आकरुं काम!! आहा... हा! हजु एना पलाखा साचा (तो गोखे.) प्रयोगमां लेवुं तो
अलौकिक वातुं छे. आहा... हा! भाई! नथी ने...? हसमुख नथी आव्यो...! आहा...! “निर्गुण” शुं
कीधुं? गुण विनानी ‘सत्ता’ (गुण) निर्गुण छे. द्रव्य गुणवाळुं छे. जेम नीचे (फूटनोटमां जुओ!)
केरीमां वर्णगुण छे, केरीमां वर्ण-गंध वगेरे छे तेम द्रव्यमां सत्ता छे. “निर्गुण” = गुण विनानी.
[सत्ता निर्गुण छे, द्रव्य गुणवाळुं छे. जेम केरी वर्ण गुणवाळी, गंधगुणवाळी, स्पर्शगुणवाळी वगेरे

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८७
छे. परंतु वर्णगुण कांई गंधवाळो, स्पर्शवाळो के अन्य कोई गुणवाळो नथी (कारणके वर्ण कांई
सूंघातो के स्पर्शतो नथी); वळी जेम आत्मा ज्ञानगुणवाळो, वीर्यगुणवाळो वगेरे छे, परंतु ज्ञानगुण
कोई वीर्यगुणवाळो के अन्य कोई गुणवाळो नथी; तेम द्रव्य अनंतगुणोवाळुं छे, परंतु सत्ता गुणवाळी
नथी. (अहीं जेम दंडी दंडवाळो छे तेम द्रव्यने गुणवाळुं न समजवुं; कारण के दंडी अने दंडने तो
प्रदेशभेद छे, द्रव्य ने गुण तो अभिन्नप्रदेशी छे.
] ‘जेम दंडी दंडवाळो छे तेम द्रव्यने गुणवाळुं न
समजवुं’ ए शुं कीधुं? दंडी-लाकडीवाळो अने दंड-लाकडी ए बे तद्न जुदी चीज छे. एम अहींया न
समजवुं. ई तो पृथक प्रदेश छे (बन्नेना) एम अहींया गुण अने गुणी वच्चे एम न समजवुं.
(अहीं तो) फक्त गुण ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते गुण नहीं एटलो अतद्भाव छे. आहा... हा!
(श्रोताः) आ वातमां क्षेत्र एक छे ने...! (उत्तरः) क्षेत्र एक छे. एक ज छे. गुण लेवुं छे ने...!
गुण ने द्रव्य क्षेत्र एक ज छे. पर्याय छे ए वळी पछी वात. ई (प्रदेशभेदनी) अत्यारे वात नहीं.
आ तो गुण ने द्रव्य वच्चेनी वात छे. आहा...हा!
अनेकान्त मारग वस्तुना स्वरूपमां छे ए रीते हों? अने अनेकांत एटले अनेक धरम एमां
छे ई रीते अनेकान्त छे. एमां नथी ने अनेकांत ठेराववुं बीजी रीते - परनुं पण करी शके, ई तो
एमां छे नहीं एनामां. एनमां छे नहीं ने ई अनेकांत क्यांथी लागु पडे एने...! आहा... हा! ए
सत्ता नामनो गुण छे आत्मामां, ए निर्गुण छे. एमां गुण नथी (बीजो). पोते एक गुण छे पण
एमां बीजो गुण नथी. (वस्तु) ए गुणोनी बनेली छे अने सत्ता एक ज गुणनी बनेली छे.
विशेषण छे. (नीचे फूटनोटमां) विशेषण
= खासियत; लक्षण; भेदक धर्म. ए खास भेद धर्म छे.
सत्ता ने आत्माने खास जुदा प्रकार छे एम. आहा... हा! विधायक छे= रचनारी छे. ए गुण छे ई
द्रव्यने रचनार छे. द्रव्य छे ते गुणोनो रचनार नथी. छे? (पाठमां) विधायक= विधान करनार;
रचनार छे. आहा... हा! गुण छे ई द्रव्यने बतावे छे. एटले एनो रचनार छे. द्रव्य एनो रचनार
(गुण) छे. द्रव्य एने-गुणने रचनार नथी. आहा... हा! छे? (फूटनोटमां) विधान करनार; रचनार.
“निर्गुण एक गुणनी बनेली, विशेषण, विधायक (–रचनारी).
(अहींया कहे छे केः) “अने वृत्तिस्वरूप” वृत्तिस्वरूप (नीचे फूटनोटमां) वृत्ति=वर्तवुं ते;
होवुं ते; हयातीः उत्पादव्ययध्रौव्य. एनी ए सत्ता छे. (तेने) आटला बोल विशेषण कह्या. ‘सत्ता
गुण’
निर्गुण छे, एकगुणनी बनेली छे, विशेषण छे, द्रव्यनुं विशेषण छे, अने विधायक छे –
रचनारी छे अने वृत्तिस्वरूप छे. छे ने वृत्तिस्वरूप (एटले) वर्तवुं ते. एवी जे सत्ता छे “ते कोईना
आश्रय विना रहेतुं”
हवे द्रव्य. हवे द्रव्य केवुं छे? केः “कोईना आश्रय विना रहेतुं” पहेली ए
गुणनी वात करी. आहा! सत्ता नामनो गुण छे. ते निर्गुण छे. गुणमां गुण नथी. एकगुणनी बनेली
छे. विशेषण छे, विधायक छे - रचनारी छे अने वृत्तिस्वरूप छे एवी जे सत्ता छे. बस त्यां ए वात
पूरी. (हवे द्रव्यनी वात) “ते कोईना आश्रय विना रहेतुं”

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८८
द्रव्य. द्रव्य केवुं छे? के “कोईना आश्रय विना रहेतुं द्रव्य.” आहा...हा...हा! आ...रे!
“गुणवाळुं” छे. ओली तो एकगुणनी (वात) हती. ए एकगुणमां नहोतो बीजो गुण.
आ द्रव्य तो गुणवाळुं छे. आहा... हा! अनेक गुणोनुं बनेलुं छे. रचेलुं अनादिथी. “अनेक
गुणोनुं बनेलुं” “विशेष्य” छे. छे?
(पाठमां फूटनोटमां).
आहा...! विशेष्य= खासियतोनो धरनार पदार्थ; लक्ष्य; भेद्य पदार्थ-धर्मी. [जेम गळपण,
सफेदपणुं, सुवांळप वगेरे साकरनां विशेषणो छे, अने साकर ते विशेषणथी विशेषित थतो (-ते ते
खासियतोथी ओळखातो, ते ते भेदोथी भेदातो) पदार्थ छे, वळी जेम ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य
वगेरे आत्मानां विशेषणो छे अने आत्मा ते विशेषणोथी विशेषित थतो (ओळखातो, लक्षित थतो,
भेदातो) पदार्थ छे, तेम सत्ता विशेषण छे. आहा... हा! द्रव्यना लक्षणथी सत्तानुं लक्षण भिन्न छे अने
द्रव्य विशेष्य छे (एटले) सामान्य छे. अने गुण छे ते विशेषण छे. आहा... हा! (विशेष्य अने
विशेषणोने प्रदेशभेद नथी ए ख्याल न चूकवो.)
] झीणुं बधुं बहु झीणुं! आहा... हा! मारग लोकोए
बहारथी (मान्यो छे.) आ कांईक दया पाळोने... आ पूजा करीने भक्ति करीने मानीए के हाल्या
जवाना, हाल्या जवाना घणा तो पशुमां जवाना. आ बधा वाणिया, मरीने! कारण के मांस आदि
नथी, पुण्ये य नथी. बे-चार कलाक हंमेशा वांचन होय ने सत्समागमेय अत्यारे तो न मळे, एने
कोनो करवो सत्समागम? अने कोना समागमे वांचवुं- विचारवुं? (एनी गम नहीं) बे-चार कलाक
वांचे तो पुण्ये य बंधाय. आहा...! एका’ द कलाक मळे एमां एवा मळे कुसंगी के पाप बंधाय
मिथ्यात्वनुं! हवे क्यांथी उद्धार! आहा... हा! छे? (पाठमां).
(अहींया कहे छे केः) “गुणवाळुं, अनेक गुणोनुं बनेलुं, विशेष्य विधीयमान (रचानारुं)
अने वृत्तिमानस्वरूप एवुं द्रव्य नथी.” जुओ! छे? (पाठमां) जे कोईना आश्रय विना रहेतुं द्रव्य,
एम वृत्तिमानस्वरूप एवुं द्रव्य नथी. “तथा कोईना आश्रय विना रहेतुं, गुणवाळुं, अनेक गुणोनुं
बनेलुं, विशेष्य, विधीयमान अने वृत्तिमानस्वरूप एवुं द्रव्य छे ते कोईना आश्रये रहेती, निर्गुण,
एकगुणनी बनेली, विशेषण, विधायक अने वृत्तिस्वरूप एवी सत्ता नथी.”
आहा... हा... हा!
आकरुं पडे एवुं छे!
(कहे छे केः) जे एक सत्ता छे. ए एक गुणवाळी छे ने ई द्रव्यने आश्रये छे. अने द्रव्य छे ई
अनंतगुणवाळुं छे. कोईना आश्रये नथी. माटे बे वच्चे अतद्भाव (एटले) ते ते भाव ते ते नहीं.
एटले अतद्भावनुं अन्यपणुं अंदर छे. आहा... हा! ए सत्ता छे ते द्रव्य नथी ने द्रव्य छे ते सत्ता
नथी. आहा... हा! (श्रोताः) बन्ने अनादिना छे कोण कोने रचे? (उत्तरः) रचे कोण? ए रचायेलुं
छे एम कहेवाय. छ द्रव्यथी रचायेलो छे लोक एम कहेवाय. पाछुं आवे! आहा... हा... हा! रचायेलुं
एटले बनेलुं छे एम (समजवुं.) रचायेल एटले एम ‘छे’. आ लोक पण छ द्रव्यथी रचायेलो छे
एम

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गाथा – १०६ प्रवचनसार प्रवचनो ३८९
बोलाय. ‘पंचास्तिकाय’ ‘छे’ एम भाव एम छे. आहा... हा! ई तो ओलामां आव्युं नहीं!
‘छहढाळा’ मां (
तीनलोक तिहुँकाल माँही नहि, दर्शन सो सुखकारी, सकल धरम को मूल यही
इस बिन करनी दुखकारी–ढाळ त्रीजी–१६) कोईए लोकने कर्यो नथी, कोईए (लोकने) धारी राख्यो
नथी. एम आवे छे ने...! वस्तु छे ई छे. आहा... हा!
अहींया तो वस्तुनो गुण अने वस्तु, ए पण खरेखर एकपणे नथी. बेयना लक्षणो
(बन्नेमां) भिन्नपणुं छे. एटलुं बे वच्चे अन्यत्व छे. पण परना प्रदेशो भिन्न छे ए अन्यपणुं ने आ
अन्यपणुं बीजी जातनुं छे. आहा... हा!
“तेथी तेमने तद्भावनो अभाव छे.” “आम होवाथी ज,
जो के सत्ता अने द्रव्यने कथंचित् अनर्थांतरपणुं (अभिन्नपदार्थपणुं, अनन्यपदार्थपणुं) छे.” सत्ता
ने द्रव्यने एकपदार्थपणुं छे.
“तो पण, तेमने सर्वथा एकत्व हशे एम शंका न करवी.” सर्वथा- सत्ता
अने द्रव्यने सर्वथा एकत्व छे एम शंका न करवी. आहा... हा! “कारण के तद्भाव एकत्वनुं लक्षण
छे.” तद्भाव= ‘ते-भाव’ ते एकत्वनुं लक्षण छे. आहा... हा! जोयुं? पाछुं ते-भाव ते एकत्वनुं
लक्षण छे. जे श्वेतपणे जणातुं नथी.
“जे ते–पणे जणातुं नथी ते सर्वथा एक केम होय? नथी ज.”
सर्वथा एक नथी. “परंतु गुण–गुणीरूपे अनेक ज छे एम अर्थ छे.” गुण ने गुणीना भेदथी
अतद्भाव अन्यत्व छे. एम समजवुं जोईए. तद्न अन्यत्व नथी (एटले) एकदम प्रदेश भिन्न छे
माटे अन्यत्व छे एम नहीं. आ पर्यायद्रष्टिथी जोतां भिन्नपणे छे. द्रव्य (द्रष्टि) थी जोतां अभिन्न छे.
छे? (पाठमां) आहा... हा! बधो विषय झीणो! अभ्यास न मळे ने!
(श्रोताः) आप तो ‘हा’
पडावी द्यो छो... (उत्तरः) पण वात आ कहेवाय छे ए बेसे छे के नही? आहा... हा... हा!
जे वस्तु छे. ए तो अनंतगुणस्वरूप छे. अने एक गुण छे ए निर्गुण स्वरूप छे. निर्गुण छे
एटले गुणमां गुण नथी. द्रव्य तो अनंतगुणवाळुं छे. निर्गुण (गुण) अने गुणवाळा (द्रव्य) ने
अतद्भाव छे. भेदभाव छे. छतां एवो भेदभाव नथी के एना प्रदेशो सत्ताना ने आत्माना प्रदेशो
जुदा एवुं नथी.
विशेष कहेशे .........