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अने कर्मना प्रदेश भिन्न छे. एथी पृथक छे तेथी जीव छे. वळी तेमनी स्थिति पृथकपणानुं लक्षण
छे. आहा...! भले एनी ई ज्ञाननी पर्याय, अनंतने जाणे, छतां ते (ज्ञाननी पर्याय) अनंतने
जाणे, ते पोताना प्रदेशमां रहीने जाणे छे. बीजाना प्रदेशने अडया विना जाणे छे. आहा... हा...
हा! जेना पृथक प्रदेश छे. एने जाणे खरुं, जाणवा छतां पृथक प्रदेशपणे अन्यने अन्यपणे
राखीने जाणे छे. आहा... हा! जणाणुं माटे आत्मामां आवी गई वात (-वस्तु), के आत्मा
जणाय (एने) जाणनारो छे. माटे पर पदार्थना प्रदेशमां-क्षेत्रमां गयो, एम नथी. न्यायनो
विषय छे जरी भई! (श्रोताः) जुदापणुं कहेवुं छे तो वळी एमां गया वगर जणाय केवी
रीते...? (उत्तरः) ई वात छे ने अहींया! जाय क्यां? ई साटु तो कह्युं. “भिन्नप्रदेशत्व”
आत्माना प्रदेश अने लोकालोकना प्रदेश भिन्न छे. ई लोकालोकने जाणे, एथी करीने एना
जाणवामां (ज्ञानप्रदेशमां) ए चीज आवी गई नथी. तेम ई चीजमां ई जाणवुं (ज्ञानप्रदेश)
परिणम्युं नथी. आहा... हा... हा!
अतद्भाव छे. एटले के ज्ञान ते आत्मा नहीं ने आत्मा ते ज्ञान नहीं एटलो अतद्भाव छे. ए
अतद्भाव ‘ते अन्यपणानुं लक्षण छे.’ अन्यपणुं तो ओलुं य कह्युं’ तुं, एना पृथक प्रदेश छे एटले त
न भिन्न छे. को’ वाणियाने आवुं कांई... मळे नहीं सांभळवा क्यां’ य! आहा... हा... हा... हा!
अहीं (आत्मामां) आवी गया एम नथी. ते आ ज्ञान अनंतने जाणे, छतां पोताना प्रदेशथी पृथक
थईने, अन्यने जाणवा जाय छे एम नथी. आहा... हा!
अने एना गुण - वर्ण, गंध, रस, स्पर्श ए पृथक नथी. पृथकपणुं तो अनेरा द्रव्य साथे होय छे.
अन्यपणुं तो पोतामां होय ने पृथकपणुं परमां (परनी साथे) होय. ई शुं कह्युं? आहा... हा!
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होवा छतां अतद्भाव छे. गुण ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते गुण नहीं. एवी रीते (ए) बे वच्चे
अतद्भावपणानुं अन्यपणुं साबित थाय छे. अहा... हा! आवुं छे. आहा... हा! केटलुं नाख्युं!! अन्य
पदार्थ, भगवान हो तीर्थंकरदेव! एनी वाणी! ए आत्माना प्रदेशथी, भिन्न प्रदेशे छे. भगवानना
प्रदेश भिन्न छे ते पृथक प्रदेश तरीके अन्य छे. आहा... हा... हा! मंदिर, मूर्तिने, ए बधा आत्माथी
पृथक प्रदेशे करीने भिन्न छे. आहा... हा! को’ शांतिभाई! आहा... आवुं छे! वीतराग मारग!
तेम पर अहींया आवता नथी. एटलो, परथी, पृथकलक्षण परनुं- ई मुख्य लक्षण छे. अने हवे
आत्मानी अंदर, द्रव्यमां, एना गुण अने गुणी (एटले) आत्मद्रव्य, आ द्रव्य छे आ गुण छे ए
बेयने अतद्भाव (अर्थात्) ‘ते नहीं’ गुण छे ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य छे ते गुण नहीं. एवो
अतद्भाव, (ए) अतद्भावनी अपेक्षाए अन्यपणुं छे. (पण) (प्रदेश पृथक नथी.) पृथक प्रदेशपणुं
नथी. पृथक प्रदेशनुं ‘अन्यपणुं’ ने अतद्भावनुं ‘अन्यपणुं’ बे य जुदी जात छे. अहा... हा... हा!
आहा! आवी वात सांभळवा, नवराश न मळे कयां’य! (आ शुं कहे छे!) पृथक् प्रदेश! (ने वळी)
अतद्भाव! अतद्भाव एटले ‘ते-भाव नहीं’ (आत्म) द्रव्य छे ते ज्ञान नहीं ने ज्ञान छे ते
(आत्म) द्रव्य नहीं. (ई) अतद्भाव छे. अतद्भावनी अपेक्षाए द्रव्य अने गुणने अन्यपणुं छे.
पृथक प्रदेशनी अपेक्षाए, अन्य-परनी साथे अन्यपणुं छे. (अर्थात् पर साथे अन्यपणुं छे.)
‘अतद्भाव’ (अर्थात्) ‘ते-नहीं’ . द्रव्य ते गुण नहीं ने गुण नहीं ने गुण ते द्रव्य नहीं.
अतद्भावनी अपेक्षाए द्रव्य ने गुण ने अन्यपणुं छे. समजाय छे कांई?
अतद्भाव अन्यत्व छे. तेथी तेना गुण अने गुणीना भेदनुं लक्ष छोडी दे. आहा... हा... हा! अने
एक आत्मा, ज्ञायकभावस्वरूप छे, तेना उपर द्रष्टि दे तो तेने सत् हाथ आवशे. लो! समजाणुं कांई?
के, ने पडी छे, के’ ने पडी! आहा... हा! हजी तो साचुं - ज्ञान साचुं, सम्यक् पछी, पण साचुं ज्ञान
(करे). जेम छे तेम ज्ञान थवुं ए पण कठण! ज्ञान थयुं नथी ने समकित थाय, एम नथी कांई!
आहा... हा!
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पोताना गुणथी-अभेद छे, अने गुणथी अभेद-एक छे एम द्रष्टि करतां तिर्यंचने पण सम्यग्दर्शन
थयुं. आहा...हा...हा! आम छे.
हा... हा! शरीर, वाणी, कर्म, स्त्री, कुटुंब, परिवार (अने) देश, गाम ए तो क्यां’य रही ग्या कहे छे
ए तो अन्य छे, एना प्रदेश पृथक छे तेथी तेने अन्यपणुं छे, एनी हारे कांई-कांई संबंध नथी.
आहा... हा! फक्त तारामां, गुण अने गुणी - अनंतगुण भर्या छे (एटले ध्रुव छे ज.) अने आत्मा
अनंतगुणनो धरनार द्रव्य छे. एटलो अतद्भाव (बे वच्चे छे.) गुण ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते गुण
नहीं. अने एटलो अतद्भाव (छे तेथी) अन्यपणुं छे. ‘ए पण छोडी दईने (द्रष्टिमांथी) आहा...
हा! (श्रोताः) बहु मजा आवी...! (उत्तरः) आवी वात छे. लोकोने तो शुं! बिचारा, खबर न पडे,
झीणी वात!! बहारमां चडावी दीधा. कहे के जिनबिंब दर्शन करीए कलाक! जाव...! प्रभु! आवो
वखत कं’ ये (क्यारे) मळे! संसारनो अभाव कर्या विना, एने-एने चोराशीना अवतार मटे एम
नथी भाई! आहा... हा!
आत्मा अने (एनो) ज्ञानगुण आत्मा अने सत्तागुण. आत्मा अने आनंदगुण एने (आत्माथी)
अपृथक्रपणुं छे. पृथक् नथी. जुदापणुं नथी, पृथक्पणुं नथी. तो “जेओ अपृथक् होय तेमनामां
अन्यपणुं केम होई शके?” जेना प्रदेशो भिन्न छे, पृथक् छे एमां (तो) भिन्नपणुं संभवे, आ तो
तमे आत्मानी अंदर (प्रदेश एक होवा छतां) भिन्नपणुं ठराव्युं! बीजाथी भिन्नपणुं ठराव्युं होय तो ते
भले... कहो. आहा...हा...हा...हा! देव-गुरु ने शास्त्र, ए पण पृथक्पणे अन्य छे. आहा...! ए तो
भले! पण, आत्माना गुण अने गुणीमां पृथक्रपणुं नथी, छतां तमे एने अन्यपणुं ठरावो छो. ए शुं
छे? एम प्रश्न छे! आहा...हा...हा!
‘अपृथक्पणुं होय तेमनामां अन्यपणुं केम होई शके? जे जुदा ज नथी, प्रदेश-क्षेत्र जुदा ज नथी.
एमां अन्यपणुं केम संभवे? एवो प्रश्न शिष्यनो छे.
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छे. गुणी अने गुण वच्चे तफावत छे. “अन्यपणुं होई शके छे.” आहा... हा! “वस्त्रना अने तेना
सफेदपणाना प्रदेशो जुदा नथी.” वस्त्रना अने धोळापणाना प्रदेश जुदा नथी. आहा... हा! “तेथी
तेमने पृथक्पणुं तो नथी.” आम होवा छतां सफेदपणुं तो मात्र आंखथी ज जणाय छे.” सफेदपणुं
तो मात्र आंखनो ज विषय छे. अने वस्त्र तो पांचेय इन्द्रियनो विषय छे. (तेथी) भाव फेर छे.
अहा... हा... हा! आहा... हा! सफेदपणुं ए आंखनो विषय छे. आखुं वस्त्र छे ई पांचेय इन्द्रियनो
विषय छे. ई अपेक्षाए तेना बे वच्चे अतद्भाव छे. भले प्रदेश जुदा नथी (बन्नेना) पण अतद्भाव
छे. जे गुण छे ते द्रव्य नथी ने द्रव्य छे ते गुण नथी. आहा... हा... हा! आवी झीणी वात!! हेतु तो
अंदर द्रव्यमां अभेदपणुं सिद्ध करवुं छे. परथी तो जुदां पाडीने, करेल ज छे. एनो कांई त्याग-ग्रहण
करवानो नथी. एम कहे छे. आहा...हा! परमां अनंता पर छे प्रदेशे, एनो कोई त्याग- ग्रहण नथी.
फकत, तारामां जे कांई... आहा...हा! राग आदि थाय, ए प्रदेश ई ज छे. एथी तेने तेना कहेवामां
आवे छे. पण रागनो भाव ने आत्मानो भाव, बे भिन्न छे. (बन्ने वच्चे) अतद्भाव छे. एथी तेणे
रागनी द्रष्टि छोडी, अने ज्ञायकनी द्रष्टि करवी, ई अपेक्षाए गुणी अने गुणमां अन्यत्व छे.
आहा...हा...हा!
भिन्न छे. (प्रदेश भिन्न छे) तो एनुं शुं करे? आहा... हा! शरीरना प्रदेशने आत्माना प्रदेश, बे
भिन्न छे तो आत्माना प्रदेश ई शरीरना प्रदेशने शुं करे? आहा... हा! वाणीना प्रदेश ने आत्माना
प्रदेश भिन्न छे माटे वाणीने आत्मा शुं करे? कर्मना ने आत्माना प्रदेश जुदा माटे कर्मने आत्मा शुं
करे? तेम, कर्म आत्माने शुं करे? केम के तेना प्रदेश (तो) जुदा छे. आहा... हा! बहु सरस!! सूक्ष्म,
शब्द रही जाय छे, अनादि! जे रीते छे वस्तु, ए रीते तेने न समजतां, पोतानी कल्पनाथी, बहार-
पदार्थना संबंधे कंईक लाभ थाय, एवुं मानी बेठो (छे) अंदर! पोते कोण छे? एने तो जाणतो
नथी! आहा... हा!
धरम करीए (छीए, धर्म) थाय. एम छे ज नहीं. आहा... हा! त्यारे आ बधा लाखो खर्च्या ने आ
छव्वीस लाखनुं मकान (परमागम मंदिर) कर्यु लो! फोगट गयुं? एनाथी कांई धरम नहीं? आहा...
हा... हा! जेना प्रदेश भिन्न, तेनुं अस्तित्व तद्न पृथक!! तेने तो आत्मा अडतो (य) नथी. आहा...
हा! पृथकभावनी अपेक्षाए ई अन्यपणुं छे. आहा...हा...हा! समजाय छे कांई? भाषा तो सादी छे.
पण माणसने दरकार जोईएने...! अरे...रे!
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मात्र आंखथी ज जणाय, अने बाकीनी इन्द्रियोथी जणातुं नथी, माटे सफेदाईने वस्त्र वच्चे भिन्नता
थई. अतद्भाव थयो. पृथकपणुं भले नहीं. आहा... हा! कयां लई गया!! आहा...! गुण ने गुणी
(वच्चे) अतद्भाव छे! अन्यपणुं- बे वच्चे अन्यपणुं छे. पण पृथक प्रदेशनी अपेक्षाए अन्यपणुं
नहीं, पण भावनी अपेक्षाए तेने अन्यपणुं छे. आहा...! जे गुणनो भाव छे, ते गुणीनो भाव नहीं
ने गुणीनो भाव ते गुणनो नहीं. आहा... हा... हा! त्यां सुधी जा! ई, ई अतद्भावने छोडी दे!!
पृथक प्रदेशवाळा द्रव्य छे एने तो छोडी ज दे, (अरे!) पंच परमेष्ठिने पण छोडी दे!! आ... हा...
हा... हा! पण तारा प्रदेशमां- तारा ज प्रदेशमां जे गुण, ज्ञान, आनंद (छे.) एमां पण (द्रव्य अने
गुणने) भाव फेर छे. ए कपडाना द्रष्टांते, कपडुं छे एनुं धोळापणुं ई आंखनो विषय छे, अने “जीभ,
नाक वगेरे बाकीनी इन्द्रियोथी जणातुं नथी.” अने वस्त्र तो पांचे इन्द्रियोथी जणाय छे.” अने
सफेद जे वस्त्र छे ई आखुं वस्त्र पांचेय इन्द्रियनो विषय छे. माटे बेमां फेर छे बेमां एकपणुं मान
तो विपरीत छे. आहा... हा!
नथी. आहा... हा! पहेलां कह्युं ई वस्त्रनुं. वस्त्र ते सफेदपणुं नहीं. आहा... हा! केम के सफेद गुण ते
तो एक आंखथी ज जणाय, अने आखुं वस्त्र छे ए तो बधी इन्द्रियोनो विषय (थाय छे.) वर्ण-
रस-गंध-स्पर्श बधी इन्द्रियोथी. (वस्त्रमां बधा गुणो छे.) माटे ई वस्त्र अने सफेदाई वच्चे
अतद्भाव छे. अतद्भावनी अपेक्षा तो अन्य छे. आहा... हा... हा! ए वाणी, देह, बैरां-बायडी-
छोकरां (आदि) क्यां’ य (दूर) रही गया! मकान, आबरू ने पैसा ने आ वकीलात करता’ ता ने...
ए अन्यमां वयुं गयुं (चाल्युं गयुं) कहे छे. अहा... हा! ए अन्यमां - पृथकप्रदेशमां (छे तेनी
साथे) आत्माने कांई संबंध नथी, एम कहे छे. आहा... हा! के अमारो दीकरो सारो थयो ने मारी
दीकरी... ठेकाणे पडी ने आ छोकरां हुशियार थयां ने...! आहा... दशा शुं हशे, आ?
जुदो (छे.) अहा... हा... हा! आवुं छे.
केम कहेवुं...! अहा... हा! आहा... हा! प्रभु तो एम कहेवा मागे छे (केः) तारा तत्त्वने अने बीजा
तत्त्वने कांई संबंध नथी. जेना प्रदेश भिन्न, क्षेत्र भिन्न, जेना भाव भिन्न, जेनुं द्रव्य भिन्न!! आहा...
हा... हा... हा! कोनी आशाए तुं जंग करीश? परनी आशाए? पर तो भिन्न छे. देव-गुरु-शास्त्रथी
मने लाभ थाय, ए वात आमां रहेती नथी. आहा... हा... हा... हा! परमेश्वरना प्रदेशो - पंच
परमेष्ठिना प्रदेशो जुदा छे. तारा प्रदेशो जुदा छे, क्षेत्र बे य नुं जुदुं
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भाव ने आत्माना प्रदेश एक छे. पण भाव अने भाववान वच्चे पृथकत्व नथी, पण अतदभावपणुं
छे. आहा....! एथी एटलुं पण अतद्भावपणे अन्यत्व छे. आहा...हा...हा! आवी वातुं हवे!
परना प्रदेश जुदा छे, एने अडतुं नथी (आत्म) द्रव्य! तो्र एने भांगे ने तोडे-राखे ए बने क्यांथी?
आहा.. हा... हा! ‘तणखलाना बे कटका करवानी ताकात आत्मामां नथी.’ केम के तणखलाना प्रदेश
जुदा छे ने (आत्म) प्रभुना प्रदेश जुदा छे. आहा.. हा.. हा! एक आत्मा सिवाय, सारा जगतथी तुं
(अरे!) सिद्धभगवानथी य जुदो, आहा.. हा! पंचपरमेष्ठिथी जुदो, अरे, ते ते पंचपरमेष्ठिनुं स्वरूप
छे तारुं! अने ते भाव अने भाववान, आ परमेश्वरनुं सर्वज्ञपणुं अने आत्मा, बे वच्चे पण
अतद्भाव छे. आहा... हा.. हा.. हा! शुं कीधुं ई? आत्मामां सर्वज्ञपणुं थयुं ए केवळज्ञान ने
आत्माना प्रदेश एक छे. छतां सर्वज्ञपणुं ते (आत्म) द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते सर्वज्ञपणुं नहीं. बे वच्चे
भावमां अतद्भाव छे. ते-भाव, ते-छे एम नथी. ते -भाव, तेम-नथी एम छे. आहा... हा!
मीठालालजी! आवुं सांभळवानुं (मळवुं) बहु मुश्केल भाई! बहारथी-करवुं ने ई क्रियाने...
भगवाननी पाणी रेडे ने स्वाहा! (अर्ध्य चडावे) ए तो शुभ भाव छे. ए शुभभाव ने आत्माना
प्रदेश एक छे. पण भाव भिन्न छे. भाव छे ते विकारी पर्याय अने आत्मा अविकारी द्रव्य छे. अरे!
अविकारी परिणाम होय, एनाथी आत्माना प्रदेश भिन्न नथी, छतां ए बे वच्चे भावमां अतद्भाव
छे. आहा... हा... हा! भगवान आत्मा, सर्वज्ञस्वभाव तरीके, भाव अन्य छे तेथी अतद्भावनी
अपेक्षाए, ते भावथी अन्य कहेवामां आव्यो छे. आहा... हा... हा! ज्ञेयनुं स्वरूप छे आ. ए
ज्ञेयस्वरूपनी आवी प्रतीति जे थाय, तेने समकित कहे छे. सम्यग्दर्शननो विषय छे आ. आहा... हा!
लोकोने मूळ वातनी खबर नहीं ने, जाडना पांदडा तोडे छे, ए पांदडा पाछा पांगरशे पंदर दि’ ए!
आहा... हा!
एम तो बनतुं नथी. माटे वस्त्र अने सफेदपणाने अपृथकपणुं होवा छतां अन्यपणुं छे.” वस्त्र अने
धोळापणुं जुदां नही होवा छतां, प्रदेश भिन्न नथी माटे अपृथक छे छतां अन्यपणुं छे. आहा... हा... हा!
पंडित छे. (ते मश्करीमां) बोले ‘भारे वात, भणवुं-गणवुं कांई नहीं... आनंद (आनंद!)’
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व्याख्यान थयुं, सांभळ्युं. भारे वात! कहे भणवुं-गणवुं कांई नहीं ने आनंद! आ... हा! भाई! तुं शुं
करे छे भाई! भगवान! तने तारा सिवाय, जेना प्रदेशो भिन्न छे, एनामां तारो अधिकार कांई नथी.
तारामां अधिकार छे गुण-गुणीनो आहा.. हा! छतां ते गुण अने गुणीने, एक भाव छे एम नथी.
बेना भाव भिन्न छे. आहा... हा... हा!
संख्या, संज्ञा, लक्षणथी भिन्न छे. गुण अनंत छे, द्रव्य एक छे. एनुं नाम ‘गुण’ छे ने एनुं नाम
‘द्रव्य’ छे, भेद थई गयो. आहा.. हा... हा! संज्ञा, संख्या, लक्षण भेद छे. द्रव्यनुं लक्षण गुणोने
आश्रयगुणोनुं लक्षण पोते-पोतापणे रहे. (जेम के) ज्ञान जाणपणुं-पणे, दर्शन श्रद्धा-पणे वगेरे.
आहा... हा! माटे वस्त्रने अने सफेदपणाने अपृथक्पणुं एटले जुदापणुं नथी, बनी शके छे छतां
अन्यपणुं छे. “एम सिद्ध थाय छे.”
बनतुं नथी. आहाहाहाहा! पर वस्तुथी पर वस्तुमां कांई बनतुं नथी. आ तो तारी चीजनी अंदर
पण (अतद्भाव) भेद बतावीए छीए. केम के द्रव्य ने गुण एवा (बे) नाम पडया, द्रव्य ते अनंत
गुणनुं (रूप) एक छे, गुणो अनंता छे, बेय नी वच्चे अतद्भाव (छे.) एटले ‘ते-पणे नहीं (होवुं
ते)’ गुण ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य छे ते गुण नहि. ‘ते-भाव नहीं’ तेथी अतद्भाव! (अथवा) ‘ते-
भाव नहीं’ तेथी अतद्भाव. छतां ई अतद्भावने लईने, द्रव्य अने गुणने अन्यत्व कहेवाय छे.
आहा... हा.. हा! पृथकपणुं नथी, अतद्भाव छे. तेथी तेने अन्यपणुं कहेवामां आवे छे. आवी वात
हवे क्यां’ य नवराश न मळे! आकरुं लागे लोकोने! मूळ-मूळ वस्तु छे आ तो मूळ चीज छे!
आहा... हा!
तारे कांई संबंध नथी. आहा... हा... हा... हा! एना प्रदेशो भिन्न, एनुं (तुं) करी शुं शक! (शके?)
एने अडतो नथी ने करी शुं शक? (शके?) आहा... हा! पाणी ऊनुं थाय छे. पाणीना प्रदेश जुदा छे
अने अग्निना प्रदेश जुदा छे. (ई तो) पृथक प्रदेश छे. पृथक प्रदेश छे तेथी ई अन्य छे. अन्यथी
अन्यनुं कांई बने केम? आहा... हा! ए थयुं छे ऊनुं पोते, पोताथी. छतां ई (पाणीनो) ऊनानो
भाव अने द्रव्य (ए) बे वच्चे पण अतद्भाव अन्यत्व छे. आहा... हा... हा! आवो उपदेश!
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अधिकार छे ने...! आहा... हा! एमणे आ रीतनो ख्याल (करी) प्रतीति करवी जोईए. एम कहे छे.
एक गुण अनेक
अपेक्षाए कथंचित् (कह्युं.) प्रदेशपणे ते एक छे. गुणो अने आत्माना प्रदेशो एक ज छे. पण
‘कथंचित्’ एटले? गुण अने गुणी वच्चे ‘भाव’ एक नथी. ई अपेक्षाए कथंचित् गुण ते द्रव्य
नथी, द्रव्य गुणपणे नथी.
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जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतब्भावो
यः खलु तस्याभावः स तदभावोऽतद्भावः ।। १०७।।
नथी ते–पणे अन्योन्य तेह अतत्पणुं ज्ञातव्य छे. १०७.
‘पर्याय’ तरीके- एम त्रिधा विस्तारवामां आवे छे.
पर्याय’ - एम विस्तारवामां आवे छे.
अर्थात् ‘ते-पणे होवानो अभाव’ छे ते तद्-अभाव’ लक्षण ‘अतद्भाव’ छे के जे (अतद्भाव)
अन्यत्वनुं कारण छे; तेवी रीते एक द्रव्यमां जे सत्तागुण छे ते द्रव्य नथी, अन्य गुण नथी के पर्याय
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समजवुं.
के सिद्धत्वादिपर्याय छे ते हयाती गुण नथी-एम परस्पर तेमने अतद्भाव छे के जे अतद्भावने लीधे
तेमने अन्यत्व छे. आ ज प्रमाणे सर्व द्रव्यो विषे समजवुं.
ज्ञानादिगुण’ अने पुरुषार्थी सिद्धत्वादिपर्याय’ - एम विस्तारी शकाय छे. अभिन्न प्रदेशो होवाने लीधे
आम विस्तार करवामां आवे छे, छतां संज्ञा-लक्षण-प्रयोजनादि भेद होवाने लीधे पुरुषार्थगुणने तथा
आत्मद्रव्यने, ज्ञानादि अन्यगुणने के सिद्धत्वादिपर्यायने अतद्भाव छे के जे अतद्भाव तेमनामां
अन्यत्वनुं कारण छे.) १०७.
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२. तद्-अभाव तेनो अभाव.
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“हवे अतद्भावने उदाहरण वडे स्पष्ट रीते दर्शावे छेः– दाखलो आपे छे.
जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतब्भावो
नथी ते– पणे अन्योन्य तेह अतत्त्वपणुं ज्ञातव्य छे. १०७.
अक्षरना प्रदेशो जुदा छे, अमाराथी ई पृथक छे. अक्षरना प्रदेश अने आत्माना प्रदेश बे तद्न भिन्न
छे. ई अक्षरने अक्षर (करे) अमे कर्त्ता नथी. आहा.. हा! अमे जाणवानुं काम करीए छीए, अमारा
आत्माना गुण वडे, ए गुणने पण अतद्भाव छे आत्माथी. आहा.. हा! तो पुथक्तानी क्रिया तो
(अमाराथी) क्यां’ य दूर रही. आहा... हा! गोखी राखे, आ हाले एवुं नथी हों? अंदर एने
बेसारवुं जोईए. आहा... हा... हा!
(जुओ!) एक मोतीनी माळा, हार तरीके (एटले) एने हार कहेवाय. ‘दोरो छे अने मोती छे’
एम त्रिधा प्रकारे विस्तारवामां आवे छे.
पर्याय, (एटले) द्रव्य सत् गुण सत् ने पर्याय सत्! आहा...!
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आहा... हा! माळा एक छे. पण एमां मोतीनी धोळाश, हार धोळो, दोरो धोळो अने मोती धोळुं. “एम
त्रिधा विस्तारवामां आवे छे” तेम एक द्रव्यनो सत्तागुण, ‘सत् द्रव्य’. सत्ता गुण-सत्ता गुण लीधो
छे हार. तेम एक द्रव्यनो सत्तागुण ‘सत् द्रव्य’, ‘सत् गुण’ अने ‘सत् पर्याय’ – एम त्रिधा
विस्तारवामां आवे छे.
भगवान आत्मा. आहा... हा! (द्रव्य एक पण त्रण प्रकार द्रव्य-गुण-पर्याय.) .
पण ई पछी (कहेशे.) आ तो द्रष्टांत छे.
नथी.” एम परस्पर एकबीजानो अभाव “–एम एकबीजाने जे ‘तेनो अभाव’ अर्थात् ‘ते–पणे
होवानो अभाव’ छे” आहा... हा! तेथी सफेदपणुं हारपणे थई जाय ने हार, सफेदपणे थई जाय
एकलो, अने दोरो सफेद छे ई हारपणे थई जाय, मोतीपणे थई जाय, एम बनतुं नथी. आहा... हा!
द्रव्य अभाव थई जाय, आहा... हा! “ते तद्–अभाव’ लक्षण” दोरानुं, मोतीनुं ने हारनुं ‘तद्-
अभाव’ लक्षण, ते तद्-अभाव लक्षण
नहीं एटलो फेर छे ने बेयमां. ए रीते अतद्भाव लक्षण, द्रव्य ते भाव नहीं ने भाव ते द्रव्य नहीं
ई तद्-अभाव लक्षण, अतद्भाव छे. एने अतद्भाव कहेवाय छे. आहा... हा... हा! केटलाके तो आ
वांच्युं ज न होय. पुस्तक पडयुं होय!
कहेवाय छे आ! क, ख, ग, घ, एम बोलता नथी? ए शीखवा जाय छे के नहीं? (श्रोताः) जाय छे
(प्रभु!)
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आहा... हा! “के जे अतद्भाव अन्यत्वनुं कारण छे.” अन्यत्वनुं कारण (ई) छे. आहा... हा... हा!
ए गुण जुदो ने आत्मा जुदो एम अन्यत्व, आत्मानी अंदर सत्द्रव्य, सत्गुण, सत्पर्याय (छे.) छतां
त्रणेयने अन्यपणुं छे. द्रव्य ने गुण वच्चे अने द्रव्य-गुण पर्याय वच्चे अतत्पणुं छे. आहा... हा... हा!
आम कह्युं ने ‘सत् द्रव्य’, ‘सत्गुण’, सत् पर्याय’. सत्नो ज विस्तार छे. छतां द्रव्य ते गुण नथी,
गुण ते पर्याय नथी, पर्याय ते गुण नथी गुण ते द्रव्य नथी. आहा... हा... हा!
पाडयो. आहा... हा! एने पण छोड! (द्रष्टिमांथी) आहा... हा... हा! भगवान अंदर आत्मा!
निर्विकल्प अने अभेदपणे बिराजे छे. तेनी उपर द्रष्टि कर. एनो आदर कर. तेनो स्वीकार ने सत्कार
कर. त्यारे ते चीजनो (आत्मानो) आदर थतां तेने सत्दर्शन थशे. जेवुं ए स्वरूप छे, एवुं ज तने
दर्शन थशे ने प्रगटशे. सम्यग्दर्शन! दर्शन एटले श्रद्धा! आहा... हा! एथी सत्श्रद्धा ने त्यारे सत्यदर्शन
थाशे त्यारे सत् देखाशे. जेवुं अखंड सत् (स्वरूप) छे तेवुं सत् श्रद्धाशे. आहा.. हा!
(गुण) पणे नथी. सत्तागुण द्रव्यपणे पण नथी ने सत्तागुण, अनेरा गुणपणे पण नथी. आहा...
हा... हा! एम ज्ञानगुण, द्रव्यपणे नथी, तेम ज्ञानगुण, सत्ता आदि बीजागुणपणे पण नथी. आहा...
हा! दरेक गुणनी भिन्नता छे. (एक गुण बीजागुणपणे नथी.) आहा... हा! आमां तो भई वखत
जोईए, निवृत्ति जोईए, अभ्यास करेतो बेसे एवुं छे! आहा... हा! आ कांई लौकिक भणतर नथी.
आहा... हा!
वच्चे अतद्भाव अने गुण-गुण वच्चे अतद्रभाव. आहा... हा... हा!
अनेरागुणपणे नथी ने पर्याय (पणे) नथी. आहा... हा... हा!
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अर्थात् ‘ते–पणे होवानो अभाव’ सत्ता (अन्य) गुणपणे नहीं, सत्ता द्रव्यपणे नहीं, सत्ता पर्यायपणे
नहीं. आनंदगुण, द्रव्यपणे, नहीं, आनंदगुण ज्ञान (गुण) पणे नहीं, आनंदगुण पर्यायपणे नहीं.
आहा... हा... हा!
कहेवाय. गुणोने द्रव्य न कहेवाय. ने गुणोने पर्याय न कहेवाय. आहा... हा!
अभाव लक्षण आ भाव ते आ नहीं एवुं तद्-अभाव लक्षण, एकबीजानी वच्चे तद्-अभाव लक्षण,
आहा... हा! ए
अनेरो, गुणथी द्रव्य अनेरुं. आहा... हा... हा! को’ भावार्थ आव्यो!
वर्णववामां आवे छे. ए ज प्रमाणे सर्व द्रव्यो विषे समजवुं.” आहा.. हा! बधां द्रव्यो, द्रव्यपणे,
गुणपणे अने पर्यायपणे... आहा... हा! ज्यारे जुओ त्यारे, एना समये पर्याय, जे पर्याय थाय छे.
पर्याय ते पर्यायपणे छे ने गुण ते गुणपणे छे ने द्रव्य ते द्रव्यपणे छे. आहा..! ए गुणने लईने
पर्याय छे एनी ना कहे छे. आहा.. हा.. हा! बे वच्चे अतद्भाव छे ने.....! ए अतद्भाव लक्षण बे
चीज वच्चेनो अहींयां सिद्ध करे छे. आहा... हा... हा! आनंदस्वरूप भगवान आत्मा ए ज्ञानस्वरूप
नही ने ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा ते आनंदस्वरूप नहीं. आहा... हा! एम एक व्यकितनो अभाव
सिद्ध करे छे. सत्तागुण छे ए आत्मद्रव्य तरीके, एक आत्मा ते ज्ञानगुण तरीके, अने सिद्धत्वादि
पर्याय तरीके-एम त्रण प्रकारे वर्णववामां आवे छे. ए ज प्रमाणे सर्व द्रव्यो विषे समजवुं. जेटला
बधा आ जगतमां पदार्थो छे ते बधा (विशे समजवुं.) आहा... हा!
एक परमाणु, बीजा परमाणुथी अन्य-पृथक् छे. कारण एक परमाणुनो प्रदेश जुदो, बीजा परमाणुनो
जुदो, ए पृथक् (प्रदेश) अन्यत्व छे. अने परमाणुमां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श छे ई परमाणुना प्रदेशमां
वर्ण, गंध, रस, स्पर्श छे. एमां बे वच्चे अतद्भावरूप अभाव छे ते सिद्ध थाय छे. आहा... हा!
वर्णगुण ते परमाणु नहीं ने परमाणु (द्रव्य) ते वर्णगुण नहीं. आहा... हा... हा! अने ते परमाणु