Page 404 of 540
PDF/HTML Page 413 of 549
single page version
पर्यायपणे नथी. आहा... हा! ते गुण, गुणपणे छे (सत्तागुण) पण अनेरागुणपणे नथी. पर्यायपणे
नथी. एकगुण गुणपणे नथी ई कई अपेक्षाए के बीजा गुणपणे नथी. एम द्रव्य, द्रव्य तरीके नथी ते
बीजा द्रव्य तरीके नथी. एम एक पर्याय बीजी पर्यायपणे नथी. आहा.. हा!
नहीं. एटले परनी हारे तो कांई संबंध छे नहीं. हवे पोतामां-एमां त्रण प्रकार पडे छे. आत्माने
‘एक आत्माने’
‘ज्ञानादिगुण तरीके’ “अने ‘सिद्धत्वादिपर्याय’ तरीके,” आंही सिद्धनी पर्यायनी वात लीधी एम
सम्यग्दर्शनपर्याय, चारित्रनी पर्याय लेवी.
अतद्भाव (छे.) ‘ते -भाव, ते नहीं, द्रव्यभाव ते गुणभाव नहीं, गुणभाव ते (द्रव्य के) पर्याय
भाव नहीं. आहा... हा! एक ज वस्तुनी अंदर (छे.) परनी साथेनी अहींयां वातनहीं. ए रीते एक
गुणने विस्तारी शकाय. एम ‘सर्व द्रव्यो विशे समजवुं.’
अभिन्न होवा छतां- (ए गुणपर्याय) प्रदेशे अभिन्न होवा छतां, आ रीते विस्तार समजी शकायछे.
आवुं स्वरूप छे लो! परनी हारे कांई नहीं हवे रह्युं ज नहीं, हवे (तो) एकमां -एकमां अंदर. चाहे
तो परमाणु होय के चाहे आत्मा! चार द्रव्य तो छे ज ए तो आहा..! चार द्रव्यमां ई छे.
Page 405 of 540
PDF/HTML Page 414 of 549
single page version
करावे एम नथी. तेम काळ बीजाने बदलावे एम नथी. आहा... हा! ‘नियमसार’ मां आवे छे. काळ
न होय तो परिणमन न होय बीजामां लो! एवुं आवे. आहा...! ए तो काळद्रव्यनी सिद्धि करवा
(कथन) छे. ‘काळद्रव्य न होय, तो परमां परिणमन थाय नहीं’ एम पाठ छे. ए तो फक्त
काळद्रव्यने सिद्ध करवा कह्युं छे. एक द्रव्यनी पर्याय बीजा द्रव्यनी पर्यायने करे, ए त्रणकाळमां बनतुं
नथी. आहा... हा... हा! झीणुं बहु!
रूपिया भेगा कर्या छे. हुकम केवा? नानो ने ई बे ए! कोण करे भाई! जे एक द्रव्य छे ई बीजा
द्रव्यने, क्षेत्रथी फेरवी शके, काळथी फेरवी शके, काळथी फेरवी शके- ई कांई बनी शके नहीं. आहा...
हा... हा! एनी वात तो एक बाजु रही गई केः आत्मा, शरीरने अडतो नथी. माटे आत्मा शरीरनी
पर्याय करतो नथी. गजब वात छे!! आ हाथ हाले ने आ आंगळी हाले! रोटली तूटे तो कहे छे के
रोटली तूटे छे एने हाथ अडतो नथी. तूटे छे ई एनी पर्याय छे, रोटलीनी. हाथ (एने) अडतो
नथी. हाथ आत्माने अडतो नथी. आत्मा हाथने अडतो नथी. एवुं परथी तो आ रीते ज भिन्न छे.
बधा द्रव्योमां! अनंत द्रव्योमां!! आहा... हा! ज्यां सिद्धभगवान बिराजे छे त्यां अनंता निगोदना
जीव छे. (ओहो) ज्यां सिद्ध भगवान बिराजे छे त्यां. छतां एक द्रव्यने, बीजा द्रव्यने-कोई (कोई)
अडतुं नथी. आहा... हा! एम निगोदना जीव अनंता, एक अंगूलना असंख्यभागमां (छे.) बधे
ठेकाणा भर्यां छे आंही- आखा लोकमां. पण एक निगोदनो जीव, बीजा निगोदना जीवने अडतो
नथी, ने एक-एक जीवने- बे-बे शरीर छे. तैजस ने कार्माण. (ए) तैजस- कार्माण शरीर (छे)
पण एने आत्मा अडतो नथी. तैजस (शरीरमां) अनंत परमाणुं छे. तेमां एक परमाणुं, बीजा
परमाणुं ने अडतो नथी. ए तो जाणे मुख्य-मुख्य वस्तु छे. आहा... हा... हा!
छतां -तेमां ए भाव आ नहीं, द्रव्य भाव ते गुण (भाव) नहीं, ने पर्याय नहीं, (एवो)
अतद्भाव सिद्ध करे छे. आहा... हा... हा... हा! छे ने? (पाठमां)
“अने ‘सिद्धत्वादिपर्याय’ तरीके– एम निश्चये, एक आत्मद्रव्य छे ई
Page 406 of 540
PDF/HTML Page 415 of 549
single page version
परथी भिन्न छे पण द्रव्य छे ई पर्याय नथी ने पर्याय छे ई द्रव्य नथी (एवो अतद्भाव छे.)
आहा... हा... हा! मिथ्यात्व जे छे ई पर्यायमां, ए दर्शनमोहने लईने नथी. पण ते पर्याय छे, ते
द्रव्य नथी ने द्रव्य छेते पर्याय नथी. आहा... हा... हा... हा! - “एम एक आत्मामां “त्रण प्रकारे”
धर्मनी पर्यायनो विचार करे, तो आत्मा ‘द्रव्य’ तरीके छे, ज्ञानादि त्रिकाळ ‘गुण’ तरीके छे, अने
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रनी पर्याय ‘पर्याय’ तरीके छे. ए पर्याय गुणरूपे नथी, गुण द्रव्यरूपे नथी, द्रव्य
पर्यायरूपे नथी. आहा.. हा! आवुं झीणुं छे!
सत्तासिद्धत्वपर्याय, एम “त्रण प्रकारे विस्तारवामां (वर्णववामां) आवे छे. एम नीचे एक
आत्माने सत्ताद्रव्य तरीके, सत्तागुण तरीके, छे ने...? बीजा हयाती (आदि) ज्ञानादिगुण तरीके हों!
एक गुण तो छे (सत्ता) ई ज्ञानादिगुणो छे पण एमां एकबीजानो अभाव छे एमां. अने ई
सत्ताने सम्यग्दर्शननी पर्याय थई, ई (सत्ता) पर्याय तरीके एने वर्णववामां आवे (छे.) सत्ता गुण
ने ज्ञाननी पर्याय थई, दर्शननी पर्याय थई ए हयाती साथे छे. ए पर्याय छे (ई) पर्यायमां
अस्तित्व छे. ते अस्तित्व गुणमां ते अस्तित्व नथी, गुणनुं अस्तित्व छे ई द्रव्यमां अस्तित्व नथी.
द्रव्यनी सत्ता छे. गुणनी सत्ता नथी. गुणनी सत्ता छे ई पर्यायनी सत्तामां नथी. (त्रणेयनी सत्ता
जुदी जुदी छे.) आवुं! अहा.. हा! झीणुं बहु!! मारग झीणो बहु!!
सत्तागुण सिवायनो ते, ज्ञानादिगुण नथी. सत्तागुण तरीके सत्ता छे. पण सत्तागुणपणे द्रव्य, ते
सत्तागुण नथी. सत्तागुण ज्ञान-दर्शनादि गुण नथी. सत्ता, सत्ताथी छे. ज्ञानादि अनंतगुण छे ई रीते
सत्ता नथी. आहा. हा! आवो विषय! गाथा (बधी) तत्त्वनो विषय छे आ तो! एकदम भिन्न भिन्न
वस्तु बतावे छे. परथी तो भिन्न पण एकमां य भि न्नद्रव्य, गुण, पर्याय, (त्रणे भिन्न भिन्न स्वरूपे
छे.) आहा... हा!
छे.’ नारकीमां जीव छे एम कहेवुं ई व्यवहार छे. देवमां जीव छे एम
Page 407 of 540
PDF/HTML Page 416 of 549
single page version
श्रेणिक राजा! नरकमां छे ई कहेवुं व्यवहार छे, पण एनी गतिनी ‘योग्यता ज’ नारकीनी छे. ई
पर्यायमां ए छे. पण ई गुणमां नथी ने ई द्रव्यमां नथी. जे पर्यायमां छे ते गुणमां नथी ने ते
द्रव्यमां नथी. आहा... हा... हा! आवुं छे! कां’ (शास्त्रमां) एक कहे छे ने...! के श्रेणिकराजा, नरके
गया ते समकिती छे- क्षायिक समकिती (छे.) तीर्थंकरगोत्र बांध्युं छे. हवे ई तो एने पूर्वनुं आयुष
बंधाई गयुं, एने लईने नरकमां गया! अहींयां ना पाडे छे. अहा... हा! आयुष्यकर्मनी पर्यायमां
आयुष्यपर्याय हती, आंही जवानी पर्याय त्यां हती ते पोतानी पर्यायथी त्यां (जवानी) गति करे छे.
आयुष्यकर्म तो निमित्तमात्र छे. ए निमित्तथी कांई आमां थतुं नथी. आहा... हा... हा! शास्त्रमां
एवो लेख आवे. आनूपूर्व्य नामनी एक प्रकृति छे. नामकर्मनी. जेम बळदने नाथ नाखे. ने खेंचे एम
आनुपूर्वी प्रकृति नरकमां लई जवा (जीवने) खेंचे छे. देवमां लई जवा, मनुष्यमां लई जवा,
तिर्यंचमां लई जवा गति (करावे छे) आनुपूर्व्य अहींयां कहे छे केः (ए गति थई त्यारे) हती चीज
आनुपूर्व्य ए बताव्युं छे. बाकी तो ते समये जे पर्याय छे गति करवानी एकता, एने लईने ई गति
करे छे. आनुपूर्व्य (प्रकृति) ने लईने नहीं. आहा... हा... हा!
(केटलाके तो) सांभळ्युं न होय, (अने माने के) वाडामां जन्म्या जैन छीए. जैन परमेश्वर शुं कहे छे
तत्त्वने ई खबर न मळे! आहा.. हा! नवराश नहीं ने पण नवराश, धंधा! धंधो करवो, बायडी-
छोकरां साचववां! वेपार साचववो! के नो’ साचवे तो ओलुं थई जाय!
थशे. ए परमाणुमां पर्याय, जे रीते गति थवानी, ते थशे ज. ए पर्याय (जे थाय छे ई) बीजो जोडे
आ छे, एनाथी पर्याय ई पर्याय थाय छे, एम तो छे ज नहीं. पण एनी जे पर्याय थाय छे जे
पैसा लेवानी-देवानी आदि, (ते) पर्याय ते द्रव्य नथी ने पर्याय ते गुण नथी. आहा... हा!
(पंडितजी!) आवी वातुं छे!! (तत्त्वनो) सूक्ष्मपणे विचार करवो जोईए भाई! आ तो, प्रभुनो
मारग छे! सर्वज्ञपरमेश्वर! त्रिलोकनाथ! एणे ज्ञानमां जोयुं एवुं कह्युं छे. आहा...! छे ई? (पाठमां)
त्रीजो पेरेग्राफ!
प्रमाणे सर्व द्रव्यो विषे समजवुं.”
Page 408 of 540
PDF/HTML Page 417 of 549
single page version
(पणे) सत्तागुण नथी. सत्तागुणथी ज्ञान आदि बधा गुण, जुदा छे. आहा... हा... हा! प्रवचनसार
वांच्युं छे कोई फेरे? नवराश क्यांथी, नवराश? वांचो तो्र ए समजायने! आहा... हा! (श्रोताः)
आपनी हाजरी वगर बराबर समजाय नहीं...
जाय छे कोण? जीवद्रव्यनी पर्याय एवी (थवानी) होय तो जाय. शरीरनी पर्यायनी योग्यता होय, तो
शरीर पर्याय जाय. आहा... हा... हा... हा! ए मास्तर पासे जावुं माटे एने लईने (एटले) शरीरने
लईने गयो छे अने शरीर आत्माने लईने न्यां गयुं छे एम नथी. आहा... हा... हा... हा! अमे
(भणता’ ता) त्यारे धूळी (निशाळ) हती.
चोपडीमां जता. पहेली धूळी निशाळे, धूळमां एकडो करावे पहेलो! एने (मास्तरने) पैसा न
आपता, पण कंई सारुं वरस एवुं होय त्यारे के दा’ डो होय तो, लगन होय तो बाप आपे पीरसणुं
एटले एने हाले (गुजरान) छोकरां घणां होय ने एटले हाले (गुजारो) ई शीखवतो, एक मास्तर
हतो जडभरत! हतो साधारण भणेलो ई ‘एकडे एक’ धूळमां शीखडावतो! अहा... हा... हा... हा!
ते रीते सत्ने सत्पणे जाणवुं! सत्ने गोटा वाळशे, असत्पणे रखडवुं पडशे, मरी जशे!! चोराशीना
अवतारमां आहा... हा! अहींयां खम्मा! खम्मा! थातुं होय, पांच-पचीस करोड रूपिया होय, आहा...
ई मरीने भाई भूंडने कूखे जाय. मांस आदि न खाय दारू (न) पीए. भूंडने कूखे जाय ने विष्टा
खाय. आहा...! बापु, एवुं अनंतवार थई गयुं छे! आहा... हा! विवेक, विचार कर्यो नथी एणे.
दीर्धसूत्री थतो नथी. वर्तमानमां एकलो रोकाई गयो बस! परद्रव्यथी भिन्न (हुं) एनो निर्णय कर्यो
नथी. अने आम तो, द्रव्य ते गुण नहीं ने गुण ते पर्याय नहीं, एनो निर्णय कर्यो नथी. आहा.. हा!
ई ज्ञानगुण नथी, सत्तागुण छे ई दर्शनगुण नथी, आहा...! अने सत्तागुण छे ई सम्यग्दर्शननी
पर्याय आदि नथी.
छे, ए सत्तागुणनी पर्याय नथी ने सत्तागुणनी पर्याय ई ज्ञानगुणनी पर्याय नथी. अहा..! एक
Page 409 of 540
PDF/HTML Page 418 of 549
single page version
‘सर्वगुणांश ते समकित’ ए अनंतगुणनो पिंड! एनो ज्यां द्रष्टिने अनुभव थयो, (आत्माना)
जेटला गुणोनी संख्या एनो एकअंश व्यक्तपणे बधु प्रगट! पूरण! पण ते एकपर्याय,
बीजीपर्यायपणे नथी. आहा.. हा! आहा...! हा! (श्रोताः) छतां सत्ता, द्रव्य-गुण-पर्याय-त्रणेयमां
व्यापेली छे...! (उत्तरः) व्यापी छे सत्ता सत्तामां! द्रव्य सत्, गुण सत्, पर्याय सत् ई तो आवी गयुं
ने... (टीकामां) ई तो गाथा चाले छे आ
भाई! ई तो अधिकार जे आवे ई (स्पष्टीकरण थाय.) आहा... हा..!
पर्यायथी ई समकितनी पर्याय नथी (थई.) समकितनी पर्याय, समकितनी पर्यायने लईने छे.
सत्तागुणने लईने नथी. बीजी रीते कहीए तो, श्रद्धागुण जे छे त्रिकाळ, आत्मा जे त्रिकाळ छे एम
श्रद्धागुण त्रिकाळ छे. तो श्रद्धागुण छे ई आतम-द्रव्यनो श्रद्धागुण, आत्मद्रव्य ए श्रद्धागुणरूपे नथी ई
आत्मद्रव्य, अने गुण तो त्रिकाळ छे. अने एनी पर्याय छे ई श्रद्धानी पर्याय तरीके छे. ए बीजा
गुणने लईने पर्याय छे एम नहीं. ए पर्याय थई ई समकितदर्शननी पर्याय छे ए बीजा गुणथी थई
एम नथी. गुणने कोई गुण सहाय नथी. बीजा द्रव्यने तो बीजा द्रव्यनी सहाय नथी (ज), एक द्रव्य
बीजा द्रव्यने तो सहाय नथी, पण आत्मामां ने परमाणुमां जे अनंतगुण रह्या छे, तो ई एकगुण
बीजागुणने सहाय नथी. आहा... हा... हा! एनुं अस्तित्व, सत्ता छे भिन्न-भिन्न! आहा... हा!
(ते) पर्याय जुदी छे (ते ते) गुण जुदो छे ने गुणमां द्रव्य जुदुं छे! आहा... हा! आवुं लांबुं!
आचार्योए काम कर्या छे ने!! आहा... हा... हा! जंगलमां रहीने, मुनि! मुनिओ, तो नग्न ज हता,
दिगम्बर ज हता. श्वेतांबर तो नीकळ्या, हमणां बे हजार वरस, पछी एमांथी नीकळ्या. जैनदर्शनमां
तो एकला नग्न मुनि ज होय अनादिथी. अनादिथी अनंतकाळ! (मुनि नग्न न होवाना)
वस्त्रसहित ते मुनिपणुं नथी.’
गोटा वाळ्या छे. आहा... हा! न्यां तो लूगडांना पोटलानां पोटला राख्यां छे. अने अहींयां तो कहे के
एक लूगडांनो कटको (पासे) राखे ने मुनिपणुं माने तो निगोदमां जशे. एने साधु माने तो ई
निगोदमां जशे.
Page 410 of 540
PDF/HTML Page 419 of 549
single page version
आ साधु छे’ ए पण निगोदमां जामी जवाना छे. आहा... हा! गजब काम बापु! आकरुं काम
बहु!! वस्तुंनुं स्वरूप एम छे. आ तो अनादि भगवान त्रणलोकना नाथ! सर्वज्ञदेवे जोयुं-जाण्युं,
एम कह्युं छे. ओलुं तो कल्पित बधुं बनाव्युं छे. श्वेतांबर लोकोए शास्त्र कल्पित बनाव्यां छे बधां!
एनी श्रद्धाने माने ते गृहीतमिथ्याद्रष्टि छे. आहा... हा! आवुं आकरुं काम पडे!! आहा... हा!
छे, ए चारित्रगुण छे ई चारित्रगुणनी पर्याय छे एम नथी. ए चारित्रगुण छे ने चारित्रनुं द्रव्य छे
(ए चारित्रनी पर्याय छे) ए बधुं भिन्न छे. (द्रव्य-गुण ने पर्याय) द्रव्यरूपे चारित्र, गुणरूपे
चारित्र, पर्यायरूपे चारित्र, - (ए त्रणेय भिन्न छे.) आवी वात छे! आहा... हा... हा!
(मुनिराजने) एनी दशामां विकल्प होय, पंचमहाव्रतना, पण एने ई (मुनिराज) बंधनुं कारण
माने. अने नग्नदशा होय ई निमित्त तरीके नग्नदशा. ई में करी नथी ने माराथी नग्नदशा थई
नथी. आहा... हा... हा! कारण के एक द्रव्य बीजा द्रव्यने (कांई करी शके नहीं) ए लूगडुं छोडी शके.
लंगोटी छोडी शके, एम एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके नहीं आहा... हा! आवी वात छे.
आहा.. हां! गजब वातुं!! परमात्मा सिवाय, जिनेश्वरदेव त्रिलोकनाथ! केवळीए कहेली वात, संतो
कहे छे. एवी वात, क्यां’ य बीजे छे नहीं. आहा...! आकरुं लागे पण शुं थाय? भाई! बीजाने
दुःख लागे. अमे आ बधुं करीए त्यारे खोटुं? भक्ति करीए, पूजा करीए, सामायिक करीए,
पडिक्कमणा (करीए) - बधुं मिथ्यात्वसहित छे. आहा... हा! दिगंबरमां रहीने पण जे सामायिक
होय, विकल्प ऊठे एने सामायिक माने ‘अमे सामायिक करीने बेठा छीए’ मिथ्यात्व छे भाई!
आहा... हा! आहा...!
Page 411 of 540
PDF/HTML Page 420 of 549
single page version
सम्यग्दर्शननी पर्याय, स्वद्रव्यना लक्षे, कर्त्ताना स्वतंत्रपणे, षट्कारकना परिणमनथी सम्यग्दर्शन थाय,
(अर्थात्) षट्कारकना परिणमनथी सम्यग्दर्शन थाय. एनुं लक्ष भले द्रव्य उपर छे. पण छे
स्वतंत्रपणे षट्कारकनुं परिणमन! ई सम्यग्दर्शननी पर्याय (जे छे ते) सम्यक्त्व श्रद्धागुण जे त्रिकाळ
छे ते-रूपे नथी. त्रिकाळ जे श्रद्धागुण छे, एनी आ पर्याय छे ने...? पण छतां ए पर्याय,
श्रद्धागुणपणे नथी. पर्याय, पर्यायपणे छे, गुण गुणपणे छे, द्रव्य द्रव्यपणे छे. आहा...! आवुं छे.
आहा...! आवुं सांभळवा य लोको नवरा क्यां छे? जिंदगी चाली जाय छे आम बफममां ने
बफममां! घणा वखतमां!
लीधे तेमने अन्यत्व छे.” अतद्भावने लईने अन्यत्व छे. पृथक् प्रदेशने लईने अन्यत्व परनुं छे.
पण पोतामां, असंख्य प्रदेशमां, पृथक् प्रदेश नथी. छतां अतद्भावपणे अन्यत्व छे. ‘ते-भाव नथी’
ते अन्यत्व छे. गुणथी पर्याय अन्यत्व छे, गुणथी द्रव्य अन्यत्व छे, द्रव्यथी गुण अन्यत्व छे,
अतद्भावनी अपेक्षाए तेने अन्यत्व कहेवामां आवे छे. एना प्रदेशो भिन्न नहि होवा छतां (अन्यत्व
कहेवामां आवे छे) आहा...हा...हा! जेना प्रदेशो भिन्न छे- आ आत्माना प्रदेशो ने शरीरना प्रदेशो
भिन्न भिन्न छे. आहा...! तो आत्मा, शरीरने हलावी शकतो नथी. होठने हलावी शकतो नथी,
रोटलीना टुकडा करी शकतो नथी. दांतने आम खेंच करी (दबावी) शकतो नथी. आहा... हा!
(श्रोताः) पेटमां दांत नथी, तो चाववुं शी रीते...? (उत्तरः) आहा... हा! ई दांत दांतनुं काम
दांतनी पर्यायमां छे. दांतनी पर्याय जे छे सत्ता एनुं ई परमाणु जे दांतना छे तेमांय ई सत्तागुण छे.
एनी शक्तिमां सत्तागुण छे, एनाथी बीजा जे गुणो छे ई-रूपे सत्ता नथी. तेनी एकसमयनी
पर्यायनी सत्तानी, सत्तापणे छे. आहा... हा! आवुं स्वरूप छे! केवुं ते आ! आवो वीतरागनो
मारग! ओलुं तो कहेः छकायनी दया पाळवीने...!
ई तारी दया छे. जेम छे तेम जाणवुं ई तारी दया छे. अने जेम छे तेम न जाणवुं ई तारी हिंसा छे.
आहा... हा! आवुं छे! आ गाथाओ बधी झीणी छे!! पण छतां समजाय एवी छे.
गुणभाव नथी ने गुणभाव ते द्रव्यभाव नथी ने गुणभाव (के द्रव्यभाव) ते पर्यायभाव
Page 412 of 540
PDF/HTML Page 421 of 549
single page version
अन्यत्व छे. ते द्रव्य ते गुणपणे नथी. ते गुण ते पर्यायपणे नथी, ते बीजागुणपणे नथी. ए रीते
अतद्भावने लीधे अन्यत्व छे. पृथक परमाणु, एक- एक द्रव्य जुदा एनी वात नहीं (ए तो प्रदेशे
ज जुदां छे.) ई तो पृथक् प्रदेश छे (तेथी) जुदां ज छे. आहा... हा! भारे काम! ए सीसपेननी
अणी कोई काढी शकतुं नथी एम कहे छे. कलमथी लखी शकतो नथी. बोली शकतो नथी, बोलवानी
जडनी अवस्था छे. तो ए पृथक्पणांमां गयुं! अहींयां तो अतद्भाव तरीके अन्यत्वनी वात हाले छे,
ओलां तो पृथक् प्रदेश छे माटे अन्यत्व छे. एनी हारे तो अहींयां कांई वात ज नथी. आहा.. हा!
आ तो अतद्भाव (एटले) ‘ते-भाव नथी’ ने “ते-ते भाव आ नथी” एवा अतद्भावनी
अपेक्षाए एकबीजामां प्रदेशभेद न होवा छतां अन्यपणुं कहेवामां आवे छे. आहा... हा... हा... हा! छे
के नहीं आमां जुओ ने? (पाठमां) आ सोनगढनुं लखाण नथी आ (शास्त्रमां). घणां बोले, एम के
सोनगढ नुं एकांत छे! एकांत कहीने काढी नाखे. अरे! भाई, सांभळ तो खरो! प्रभु! आहा... हा!
एकांत कोने कहेवुं? अनेकांत कोने कहेवुं? एनी खबर नथी’! (तने.) आहा.. हा.. हा!
समजवुं.
आहा... हा!
पुरुषार्थगुण आत्मामां एक छे अनादि अनंत. (ए) पुरुषार्थगुणने
ज्ञानादिगुण’ छे? (पाठमां) एक आत्माना पुरुषार्थगुणने, पुरुषार्थी आत्मद्रव्य, पुरुषार्थी ज्ञान आदि
गुण, बीजो गुण लो एनाथी. “अने पुरुषार्थी सिद्धत्वादिपर्याय एम विस्तारी शकाय.” आहा...
हा... हा! एम समकितनी पर्याय छे, एनो श्रद्धागुण छे. श्रद्धागुण छे आत्मामां. समकित पर्याय छे.
ए श्रद्धागुण छे ए आत्मद्रव्य छे, ए श्रद्धागुण अने रागुणरूप नथी, अने ई श्रद्धागुण छे ते एक
समयनी पर्याय तरीके नथी. समकितनी पर्याय तरीके श्रद्धागुण नथी. श्रद्धागुण पर्याय तरीके नथी ने
पर्याय श्रद्धागुण तरीके नथी. अने श्रद्धागुण एक द्रव्य तरीके नथी. आहा... हा.. हा! आवुं छे. आ तो
सामे अधिकार आव्यो होय, त्यारे आवेने...! खेंचीने उपरथी लेवाय तो, बेसे झट! आ तो आमां
लखाण छे. अरे.. रे! एणे
Page 413 of 540
PDF/HTML Page 422 of 549
single page version
शरण नहीं ले ने सत्य छे ते ते एने सत्यने सत्यपणे वस्तुने वस्तुपणे राख. श्रीमद् कहे छे.
श्रीमद्मां एक वाक्य छे. ‘वस्तुने वस्तुपणे राख’ तुं फेरफार करीश नहीं कांई! आहा...हा...हा!
मानवामां. ओलामां तो ई आवे छे ने! स्थानकवासीमां ‘दया ते सुखनी वेलडी, दया ते सुखनी
खाण.’ ‘अनंता जीव मोक्षे गया, दया तणा’ (ए ज जाणे) - प्रमाण’ - ई परनी दया, परनी
दया त्रणकाळ मां (आत्मा) करी शकतो नथी. आहा... हा... हा! हवे एनाथी एने धरम मानवो छे
ने मुक्ति करवी छे. परनी दयानो भाव छे ई राग छे. आहा... हा... हा! राग छे ई आत्माना
स्वरूपनी हिंसा छे! ‘पुरुषार्थसिद्धिउपाय’ मां छे. अमृतचंद्राचार्य! आ तो वीतरागना सिद्धांत छे
भाई! कल्पित नथी आ कांई, कल्पित बनावेलुं! क्यां’ य मेळनो’ खाय ने..! आ तो चारे बाजुथी
जुओ तो सत्नुं सत्पणुं ऊभुं रहे छे. आहा...हा...हा!
आत्मद्रव्य’ . आहा...! “पुरुषार्थी ज्ञानादिगुण” अने ‘पुरुषार्थी सिद्धत्वादिपर्याय’ – एम
विस्तारी शकाय छे.” आहा... हा! एम एक श्रद्धा नामनो गुण छे. जे श्रद्धाद्रव्य तरीके वर्णवाय छे.
ए श्रद्धा (गुण) अनेरा गुण तरीके नथी. अने ए श्रद्धा (गुण) समकितनी पर्याय तरीके नथी.
आहा... हा! सम्यग्दर्शननी पर्याय (ई तो एक समय छे.) श्रद्धागुण छे ई तो कायम छे. पर्याय तो
एक समयनी अवस्था छे. एटले ई श्रद्धागुणनी पर्याय नथी, पर्याय पर्यायनी छे (समकितनी.)
आहा.. हा.. हा!
भिन्न छे, ई तो सर्वथा अत्यंत अभाव छे. (एक-बीजा द्रव्यमां एकबीजा द्रव्यनो.) ए रीते अहींयां
नथी. अहींयां तो प्रदेशो अखंड छे-अभेद छे बधाना. (द्रव्यगुण पर्यायना.)
पर्यायनुं नाम ‘पर्याय’ ई संज्ञा- संज्ञा.
द्रव्यनुं प्रयोजन गुणोने आश्रय देवो, एक ठेकाणे (ध्रुव) रहेवुं ई.
Page 414 of 540
PDF/HTML Page 423 of 549
single page version
होवाने लीधे पुरुषार्थगुणने तथा आत्मद्रव्यने, ज्ञानादि अन्यगुणने के सिद्धत्वादिपर्यायने अतद्भाव
छे.” बे य वच्चे अतद्भाव छे. आहा... हा!
छे. ई एनी वर्तमान पर्याय समकितपणे नथी. ए समकितपर्याय ते त्रिकाळीश्रद्धा गुणपणे नथी. अने
ते द्रव्यपणे नथी. आहा.. हा.. हा! आ तो आंखनो मोतियो ऊतारवो होय, एनी वात छे. आहा...
आहा! मोतियो ऊतारवा जवाना छे ने...? बीजी आंखनो आहा.. हा! आंखमां पडळ वळी गया छे
कहे छे. तारी द्रष्टिमां-ज्ञानमां पडळ वळी गया छे अज्ञानना (मिथ्यत्वना.) आहा.. हा! छतां ते
अज्ञाननी पर्याय, मिथ्यात्व-अज्ञानपणे छे. ए गुणपणे थई नथी. द्रव्यपणे छे ए गुणमां भूल नथी.
अने ए भूल (आत्म) द्रव्यमां नथी. आहा.. हा! आवुं छे! कई जातनो उपदेश आ ते!! अहींयां
क्यां’य आव्या छ- काय जीवने सामायिक करवी ने पोषा करवा ने पडिक्कमणा करवा चोविहार करवो
ने ई तो कांई आव्युं नहीं आमां!!
मर्यादामां तुं नथी. आहा... हा... हा! (श्रोताः) बावो बनावी दीधो! (उत्तरः) हें! बावो बनावी
दीधो! अहा.. हा! आहा... हा! दुकान उपर बेसे! हवे दररोज आम हजारोनी पेदाश होय, अनेत्रप
पांच-पांच, दश-दश, वीस हजार पैसानुं (रूपियानुं) रोकाण थतुं होय, शुं कहेवाय तमारे ई?
लाकडानो ई? (श्रोताः) गल्लो. (उत्तरः) हा, ई भराय आम पेट भरीने. पहेलां तो आ... आ
नहोतुं ने...! नोटुं नो’ती. रूपिया रोकडा (चांदीना सिक्का) अमारे नानो हडफो राखता हडफो!
समज्या? शुं कीधुं ई? हडफो! हडफानुं शुं कीधुं? गल्लो! ई राखता एमां कोई वखते ई आखो
रूपियाथी भराई गयो’ तो! वेपार हतो. ई तो सीतेर वरस पहेलानी वात छे. एकवार रोकडा
रूपियाथी ई आखुं भराई जाय, आम! दाणा ने (मालनुं) वेंचाण थई गयुं होय तो, त्यारे आ
(जीव) खुशी थाय के ओहोहोहो! आ ज तो त्रणसे रूपियानुं भराणुं, त्रणसें रोकडा! ते दि’ ओली-
नोट क्यां हती. आ भ्रम छे बधो!
मूकी दईने असत्ने पंथे चडी जाय छे. खबर नथी एने. आहा... हा! नग्न साधु थाय तो य पण
‘कु-पंथे’ चडी जाय छे. ई रागनी क्रिया - दया-दान छे ई धरम छे, ए मने धरमनुं कारण छे. ई
मिथ्यात्वभावमां
Page 415 of 540
PDF/HTML Page 424 of 549
single page version
आत्मद्रव्यने.” आहा.. हा! ए वीर्यगुण अने एना आत्मद्रव्यने, वीर्यगुणने अने ज्ञानादि
अनंतगुणने “ज्ञानादि अन्यगुणने के सिद्धत्वादिपर्यायने.” पुरुषार्थगुण छे एनी जोडे ज्ञान-
दर्शन-आनंद गुण छे. छतां तेने, अन्यगुणने के सिद्धत्व आदिपर्यायने (एटले) ए गुणनी
पर्यायने “अतद्भाव छे.” त्रण वच्चे अतद्भाव छे. ‘ते-आ नहीं, ते-आ नहीं, ते-आ नहीं,
आहा.. हा! पर्याय, ते गुण नहीं ने गुण ते द्रव्य नहीं ने द्रव्य ते गुण नहीं ने द्रव्य ते पर्याय
नहीं आहा... हा... हा!
अतद्भाव)
अन्यत्व तो तद्न जुदुं (प्रदेश जुदा माटे चीज जुदी.) एक द्रव्यने अने बीजा द्रव्यने प्रदेश जुदा छे
तो अन्यत्व जुदुं. पण आ रीते अतद्भावनी अपेक्षाए तेने अन्यपणुं छे. प्रदेश पृथक् नहि होवा
छतां. आहा... हा... हा! आवो जैन धरम हशे? आवो! जैनपणुं बधुं ऊडाडी दीधुं लोकोए तो!
आहा... हा!
अन्यत्वभाव छे. आहा... हा! बहुं झीणुं लखाण आव्युं.
Page 416 of 540
PDF/HTML Page 425 of 549
single page version
एसो हि अतब्भावो णेव अभावो त्ति णिद्दट्ठो
एष ह्यद्धावो नैव अभाव इति निर्दिष्टः ।। १०८।।
–आने अतत्पणुं जाणवुं, न अभावने; भाख्युं जिने. १०८.
ज अन्यत्वव्यवहार (-अन्यत्वव्यवहार) सिद्ध थाय छे. परंतु द्रव्यनो अभाव ते गुण, गुणनो अभाव
ते द्रव्य - एवा लक्षणोवाळो अभाव ते अतद्भाव नथी. जो एम होय तो (१) एक द्रव्यने
अनेकपणुं आवे, (२) उभयशून्यता थाय (अर्थात् बन्ननो अभाव थाय), अथवा (३) अपोहरूपता
थाय. ते समजाववामां आवे छेः-
रीते एक द्रव्यने पण अनेकपणुं आवे (अर्थात् द्रव्य एक होवा छतां तेने अनेकपणानो प्रसंग आवे).
Page 417 of 540
PDF/HTML Page 426 of 549
single page version
गुणनो अभाव थाय, गुणनो अभाव थतां द्रव्यनो अभाव थाय- ए रीते उभयशून्यता थाय
(अर्थात् द्रव्य तेमज गुण बन्नना अभावनो प्रसंग आवे).
अपोहरूपता छे, तेम द्रव्य-अभावमात्र ज गुण थाय, गुण-अभावमात्र ज द्रव्य थाय- ए रीते आमां
पण (द्रव्य-गुणमां पण)
----------------------------------------------------------------------