Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 13-07-1979.

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३७
क्यां छोकरां? क्यां वहुओ? क्यां मकान? क्यां लूगडां ने दागीना ने धूळ! आहा... हा! वस्तुनी
पर्याय कया काळे थई एनी, एने ने तारे कांई संबंध नथी. आहा... हा! प्रभु! एना साटु तुं रोकाई
गयो! तें तारा द्रव्य-पर्यायनी स्थितिने न जोई. ए अहींयां कहेवा मागे छे (मुनिराज!) तात्पर्य तो
आ छे.
शरीरनी एटली वात (करी छे ने...!) (तारा द्रव्य–पर्यायने जो. ए तात्पर्य छे.!)
विशेष कहेशे.....
प्रवचनः ता. १३–७–७९.
‘प्रवचनसार’ ११४ गाथानो भावार्थ.
“भावार्थः– दरेक द्रव्य सामान्य–विशेषात्मक छे.” एक कहीने शुं कहेवुं छे? द्रव्यमां जे
विशेषपणुं भासे छे. ई एनुं स्वरूप छे. विशेष कोई परने लईने थाय छे, ई एमां-वस्तुनां स्वरूपमां
नथी. “दरेक द्रव्य सामान्य-विशेषस्वरूप छे.” एटले सामान्य छे ते ध्रुवपणे ठीक! पण विशेषमां
पर्यायोमां बदलो थाय छे. ई बदलो थाय छे एमां परनी अपेक्षा कांई छे के नहीं? के ना. प्रभु!
बदलो थवुं ए तो एनो-पर्यायनो स्वभाव छे. आहा... हा! एथी बीजा द्रव्यनी - एमां कोई
द्रव्यनी, पर्यायमां अपेक्षा नथी. आहा... हा! आकरुं काम (आ) बेसवुं! आखी दुनिया! चौद
ब्रह्मांडमां अनंत-अनंत द्रव्यो, सामान्य-विशेषस्वरूपे ज बिराजे छे. एना विशेषने माटे कोईनी
अपेक्षा नथी, कोई काळे, कोई क्षेत्रे - कोई प्रतिकूळ संयोगे के अनुकूळ संयोगे - एनी अवस्थाने
परनी कोई अपेक्षा छे ज नहीं. आहा... हा! तेनी अवस्था तेने काळे स्वतंत्र थाय - तेवुं ज एनुं
सामान्य (एकरूप) रहे, विशेषपणे बदले एवुं स्वरूप छे. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “तेथी दरेक द्रव्य तेनुं ते ज पण रहे छे. ध्रुव तरीके दरेक द्रव्य ते ज रहे
छे. सामान्य तरीके - जेमां बदलवुं नथी - एवी स्थिति तरीके ते तेनुं ते ज रहे छे. “अने बदलाय
पण छे.” पलटे पण छे. आहा... हा! ई पलटवुं ई तो एनो-पर्यायनो धर्म ज छे. पर्याय ते परने
लईने परिणामे छे - कोई पण द्रव्यनी - परमाणुनी के आत्मानी नरकना जीवनी के निगोदना
जीवनी, परमाणु एक-एकनी के स्कंधनी कोई द्रव्यनी कोईनी पर्याय-विशेषपणे थवानो तेनो पोतानो
स्वभाव छे. एमां विशेषपणुं लागे छे ई विशेषपणुं बीजाने लईने के संयोगनेलईने (थाय छे) ए
द्रष्टि विपरीत छे. आहा... हा! आ वात (अलौकिक छे) पण शब्दो सामान्य छे. वस्तुनी वहेंचणी -
अनंतथी भिन्न छे. दरेक द्रव्य, एक क्षेत्रमां रह्यां छतां - एक आकाशना प्रदेशमां छ द्रव्य छे. भले
आत्मा आखो नहीं पण असंख्यप्रदेशे. एक आकाशना प्रदेशे छे. असंख्यप्रदेशी होवा छतां. एवा-
एवा अनंता जीवना असंख्यप्रदेश. एक जीव एक प्रदेशमां न रही शके. एक जीव असंख्यप्रदेशमां
रहे. आकाशना. छतां कहे छे के ई आकाशनी पर्यायनी - अपेक्षाए त्यां ई रहेलो

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३८
छे. आहा... हा! एम नथी. (श्रोताः) आकाश न होय तो रहे क्यां? (उत्तरः) ई तो निमित्तनी
(व्यवहार) कथनी छे. ई ज आवे छे ने...! के आकाश परनो आधार होय, तो आकाशनो आधार
कोण?
(श्रोताः) आकाशनो आधार आकाश... (उत्तरः) थई रह्युं. अने परिणमनमां दरेक द्रव्यना
परिणमनमां काळ निमित्त छे. तो काळना परिणमनमां कोण? ई तो एक निमित्तपणुं सिद्ध करवुं होय
त्यारे (एम कथनी थाय.) एथी करीने स्वद्रव्यनी पर्यायमां कोई पण घालमेल के फेरफार परद्रव्यथी
थाय एवुं स्वरूप नथी. आकरी वात बापु!! भाषा सादी छे. (श्रोताः) ए वात व्याजबीने यथार्थ ज
छे...
(उत्तरः) चौद ब्रह्मांडमां - अनंता द्रव्यो पोताथी सामान्य ने विशेषपणे रहेला छे. पोताना
सामान्यने तो परनी अपेक्षा होय ज नहीं, पण पलटवानी भिन्नभिन्न अनेक अवस्था थाय, एथी
एम लागे के जाणे परनी कोई अपेक्षा हशे? के ना. तो सामान्य तेनुं ते ज पण रहे अने बदलाय
पण छे.
“द्रव्यनुं स्वरूप ज. आवुं उभयात्मक होवाथी” स्वरूप ज उभयात्मक आवुं छे. सामान्य ने
विशेष - एनुं स्वरूप ज छे. विशेषपणुं परने लईने थाय, ए कोई चीज नथी. आहा... हा!
(कहे छे केः) एक आत्माने पोताना सामान्य-विशेष माटे कोई अनंत-अनंत पदार्थमांथी -
तीर्थं करनी पण तेने जरूर नथी. आहा... हा! शास्त्रमां तो वात घणे ठेकाणे आवे. ‘एमना चरण-
कमळथी प्राप्ति थाय सम्यग्दर्शननी’ आहा... हा! वात त्यां करी के निमित्त त्यां केवुं होय? एटलुं
जणावे छे. बाकी सम्यग्दर्शननी पर्याय, विशेष छे. सामान्य पोते कायम छे अने सम्यग्दर्शन पर्याय,
ए विशेष छे. विशेषपणुं पण एनुं पोतानुं स्वरूप छे. ए विशेषपणुं कोई परनी-अपेक्षाथी थयुं छे,
कर्मनो उघाड थयो अंदर ने दर्शनमोहनो अभाव थयो, माटे सम्यग्दर्शननी पर्याय थई, तो त्यां
विशेषनुं सामर्थ्यपणुं पोतानुं छे ते रहेतुं नथी. आहा...! समजाणुं कांई...?
(श्रोताः) तत्त्वार्थसूत्र
मां तो आवे छे... (उत्तरः) ए निमित्तनी निमित्तनी कथनी. ‘तत्त्वार्थसूत्रमां’ आवे छे के द्रव्याश्रया
निर्गुणा गुणाः। (अध्याय-प सूत्र-४१) दरेक द्रव्यना गुणो, ते द्रव्यने आधारे अने गुणने आधारे
गुण नहीं. ए सुतरुं छे. आ नित्यभाव छे ते परिणमे छे. परिणमवुं परिणमन एनुं स्वरूप छे
(द्रव्यनुं.) आहा... हा!
(कहे छे) सम्यग्द्रष्टि जीव, पोताना सामान्य-विशेष सिवाय, पर पदार्थथी अंतरमां तद्दन
उदास छे. आहा... हा! कोई परनी अपेक्षाए मारामां फेर पडशे, अने मारे लईने परनी अवस्थामां
क्यां’ क कोक ठेकाणे कंईक फेर पडशे, ए द्रष्टि, सम्यगद्रष्टिनी नथी. आहा... हा! वात तो थोडी छे
पण गंभीरता शी एनी घणी!
“द्रव्यनुं स्वरूप ज आवुं उभयात्मक” सामान्य ने विशेषस्वरूप ज
ए छे. “द्रव्यनां अन्यत्वपणामां अने अनन्यत्वपणामां (विरोध पामतां नथी)” द्रव्यनी पहेली
पर्याय नहोती ने थई ए माटे - ते अपेक्षाए ते ते पर्याय अन्य-अन्य छे ते द्रव्यनी साथे
अनन्यपणे छे ए बेयमां विरोध नथी. अन्यपणुं पण कहेवाय छे ने अनन्यपणुं पण कहेवाय

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३९
छे. पहेली (पर्याय) नहोती ने बीजी थई अने ते-काळे सिद्धपद वखते नरकगति के मनुष्यगति
(आदि) नथी के मनुष्यगति वखते ते सिद्धगति नथी. ई अन्य-अन्य कहेवाय छे. छतां ते अन्य-
अन्य, अनन्य छे. ए द्रव्यथी ते विशेष अनन्य छे. आहा... हा... हा... हा! समजाय छे कांई...?
आवुं स्वरूप हवे!! बाईयुं ने बधाने बिचाराने... वखत मळे नहीं. जिंदगीयुं हाली जाय छे! आहा...
हा! मनुष्यपणानुं आयुष्य छे. छे एटलुं ज छे. जेटलो काळ देहमां रहेवानुं-विशेषपणे रहेवानुं (छे.)
तेटलो काळ रहेशे. आयुष्यने कारणे कहेवुं ए पण एक निमित्त छे. आहा... हा! ए स्थितिमां पोतानी
सामान्य-विशेष द्रव्यशक्ति, परथी जुदी जो सांभळी नहीं अने परने लईने कंईपण मारमां फेरफार
थाय छे ने माराथी परमां कंई फेरफार थाय छे (एवा अभिप्रायवाळानुं) परिभ्रमण नहि मटे प्रभु!
आहा...! एना भवभ्रमणना चक्रो विचरीत द्रष्टिने लईने नहीं मटे. आहा... हा!
अहींयां कहे छे “आवुं उभयात्मक होवाथी द्रव्यना अनन्यपणामां ए पर्याय अनन्य छे
द्रव्यनी. “अने अन्यपणामां” पहेली नहोती ने अन्य थई छे, ई अन्यपणुं कहेवाय अने
अनन्यपणुं पण कहेवाय छे. (एमां “विरोध नथी.” जेम के, मरीचि अने श्रीमहावीर स्वामी”
मरीचिनो जीव ऋषभदेव भगवान वखते (हतो ने...!) आहा... हा! “मरीचि अने श्रीमहावीर
स्वामीनुं जीवसामान्यनी अपेक्षाए अनन्यपणुं.” भिन्नपणुं नथी अनन्यपणुं छे. “अने जीवना
विशेषोनी अपेक्षाए अन्यपणुं होवामां कोई प्रकारनो विरोध नथी.”
जुओ! क्यां मरीचिनी पर्याय
अने क्यां भगवान (महावीर स्वामीनी) पर्याय! जीव तो ई ज छे. जीवसामान्य एटले कायम
रहेनारानी अपेक्षाए अनन्यपणुं छे. पण जीवना विशेषोनी - अपेक्षाए अन्यपणुं” क्यां मरीचिनी
पर्याय ने क्यां भगवाननी पर्याय? ए अन्य-अन्यपणुं छे. ए वस्तुमां - स्वरूपनी स्थितिमां छे.
कोई परनी अपेक्षा एमां छे नहीं. आहा... हा!
(हवे कहे छे केः) “द्रव्यार्थिकनयरूपी एक चक्षुथी जोतां द्रव्यसामान्य ज जणाय छे.”
पर्यायने जोनारी आंख्यने (सर्वथा) बंध करीने, द्रव्यने जोवानी आंख्य उघडे छे. (ए चक्षुथी जोतां)
द्रव्यसामान्य ज जणाय छे.
“तेथी द्रव्य अनन्य अर्थात् तेनुं ते ज भासे छे” द्रव्यार्थिकथी तो द्रव्य
अनंतकाळमां तेनुं ते ज भासे छे. “अने पर्यायार्थिकनयरूपी बीजा एक चक्षुथी जोतां द्रव्यना
पर्यायोरूपी विशेषो जणाय छे” विशेषमां तफावत मोटो (छे.) “तेथी द्रव्य अन्य–अन्य भासे छे”
क्यां मरीचिनी पर्याय? ने क्यां तीर्थंकर-केवळीनी पर्याय? आहा... हा! क्यां निगोदमां - एक
अक्षरना अनंतमा भागनी पर्याय? ए जीव (त्यांथी) नीकळीने मनुष्य थईने आठ वर्षे केवळ
(ज्ञान) पामे! आहा... हा! क्यां? सामान्यनी अपेक्षाए जीव एनो ई. विशेषनी अपेक्षाए तो
(जबरो तफावत.) निगोदमां अक्षरना अनंतमा भागे (ज्ञानपर्यायनो) उघाड अने न्यांथी मनुष्य
थाय, कारण के त्यां पण (नगोदमां पण) शुभभाव छे. पर्यायमां शुभभाव

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प४०
छे. शुभभाव वखते ई आत्मा तन्मय छे. आहा... हा! अने एना फळ तरीके जयारे मनुष्यपणुं थया
छे. ते मनुष्यपणामां विशेष दशा न्यां क्यां (नगोदमां) अक्षरनो अनंतमो भाग अने अहींयां आठ
वर्षे अंतर्मुख ज्यां नजर करे छे. आहा... हा! ज्यां भगवान (आत्मा) पूरण सामर्थ्यमां स्वभावथी
भरेलो भगवान! अंतर्मुख नजर करे छे (एकाग्र थाय छे) त्यां केवळ (ज्ञान) थाय छे. आहा...
हा! आवी वात छे. वीतरागनो मारग कोई अलौकिक छे!! लोको (जाणे के) साधारण आम होय
अने (क्रियाकांडमां) सामायिक करवी ने पोषा करवा ने पडिक्कमणुं करवुं, लीलोतरी नो’ खावी ने
चोविहार करवो, उपवास करवा ने ए बधुं संवर ने तप. उपवास करवा ते तप ने आ निर्जरा!!
आ... रे! क्यांनुं क्यां (मान्युं) प्रभु! वीतराग सर्वज्ञदेव, परमात्मा! एणे कहेलो द्रव्यनो अने
पर्यायनो स्वभाव, भले भिन्न-भिन्न पर्याय होय, छतां द्रव्यनी अपेक्षाए तो ए पर्यायो अन्य-अन्य
नथी अनन्य छे. पर्यायनी अपेक्षाए - ई पहेली नो’ ती ने थई अन्य तेथी अन्य-अन्य कहेवाय
छे. पण एने ने एने अने एमां (जोवानुं छे.) आहा... हा!
(कहे छे केः) एक अहींयां अबजोपति खम्मा-खम्मा थतो होय, जाणे गादीए बेठो होय
दुकाने. पचीस-पचास नोकरो होय. आहा... हा! फू थई जाय मरीने नरके जाय. आहा... हा!
पर्यायमां ई अपेक्षाए अन्य-अन्य छे. अनेरी पर्याय (थाय) क्षणमां अनेरी-अनेरी (थाय छे.)
जुओने...! छतां आत्मानी साथे अनेरी नथी. (अनन्य छे.) आत्मा साथे तो पर्याय अनन्य छे.
आहा... हा! आत्मा ज एमां (पर्यायमां) वर्ते छे. आहा... हा!
“पर्यायार्थिकनयरूपी बीजा एक
चक्षुथी जोतां द्रव्यना पर्यायोरूपी विशेषो जणाय छे तेथी द्रव्य अन्य–अन्य भासे छे.” जोयुं?
पर्यायथी जुए तो (द्रव्य) अन्य-अन्य भासे छे. द्रव्यथी जुए तो अनन्य छे. पहेलां द्रव्यथी जुए तो
पर्याय पण एनी ज छे. अनन्य छे. पर्यायथी कांई जुदुं नथी द्रव्य. आहा... हा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “बन्ने नयोरूपी बन्ने चक्षुओथी जोतां द्रव्यसामान्य” वस्तु सामान्य
ध्रुव पण छे “तथा द्रव्यना विशेषो” पर्याय पण छे. “बन्ने जणाय छे तेथी द्रव्य अनन्य तेमज
अन्य–अन्य भासे छे” ११४.
हवे सर्व विरोधने दूर करनारी सप्तभंगी प्रगट करे छेः– जैनदर्शननो प्राण छे आ
सप्तभंगी!!
समाप्त