Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 12-07-1979.

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२७
प्रवचनः ता. १२–७–७९.
‘प्रवचनसार’ ११४ गाथा. फरीने द्रव्यार्थिक पहेलुं कह्युं के पर्यायार्थिकने न जोतां द्रव्यार्थिक
नयनो विषय उघडयो. उघडयुं छे. ज्ञान. ए ज्ञान वडे द्रव्यार्थिक द्रव्य ने जो. तो ई सामान्य तने
नजरे पडशे. पण पर्याय (नय) नी आंख्युं बंध करी दईने. परने जोवानी (आंख्युं) बंध करीने
नहीं. परने तो ई जोतो ज नथी. पर्यायनी आंख्युं - पोतानो पर्याय छे तन्मय छे तेमां आत्मा रहे
छे. आहा... हा! जेवी पर्यायनयनी आंख्युं बंध करी, द्रव्य नयने जोतां बधुं य एक आत्मा छे एम
भासे छे. आवी वात छे! हवे (एने (जयारे) “द्रव्यार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करीने” एटले
उघडेलुं ज्ञान तो छे. फकत एनुं लक्ष नथी. लक्ष तो पर्याय उघडेली छे तेमां छे. द्रव्यार्थिक चक्षु बंध
करीने “एकला उघाडेला पर्यायार्थिक चक्षु वडे अवलोकवामां आवे छे” पर्यायथी जयारे जीवनी
दशाओ जोवामां आवे छे. (खरेखर तो) एने जोवानुं एनामां ने एनामां छे. सामान्य ने विशेष.
बहारमां क्यां’य नहीं. आहा...हा! बहारमां करवानुं तो कांई नथी, तारा द्रव्य-पर्याय सिवाय
बहारमां कांई करवानुं तो छे नहीं, पण बहारने जोवानुं य नथी. जुवे छे ते तारी पर्यायने (जुवे
छे.) आहा.. हा! आवी वात छे.
(कहे छे केः) आत्मा सिवाय कोई कषायने के करमने के परने कांई करुं ए नहीं. निश्चयथी तो
चैतन्यने शरीर कह्युं छे. चैतन्यविग्रह एम पुण्यने पाप - कषायभाव ए पण विग्रह छे. छे एनी
पर्यायमां. पण ए पण एक शरीर छे. आ शरीर छे जे चैतन्यभगवान! परम पारिणामिक
स्वभावभाव, ए चैतन्यशरीर छे. चैतन्यविग्रह छे. विग्रह शब्द छे ने..! एम पुण्य ने पापना भाव,
के गतिना आ उदयभाव. सिद्धभाव एककोर राखो. अहींयां तो सिद्धपर्यायने जोवानी वात छे. पण
चार गति जे छे उदय, चैतन्यशरीर छे भगवान, चैतन्यविग्रह ए अपेक्षाए तो चैतन्य विग्रह छे.
(शरीर छे चैतन्य.) चैतन्य शरीर ज छे. आहा... हा.. हा! त्रण प्रकारना शरीरः चैतन्यशरीर, कषाय
शरीर, कर्म शरीर, औदारिक शरीर, आहारक शरीर वैक्रेयिक शरीर, पछी आहारक, तैजस, कार्मण ए
जड (शरीर (छे.) अने आत्मामां थतो विकार ए चैतन्यनुं विकृत शरीर अने एनो त्रिकाळी
स्वभाव, परमस्वभाव, ज्ञायकभाव ए एनुं निजशरीर (छे.) निज वस्तु छे ई.
(कहे छे केः) ए निजवस्तु ज्ञेय थवा माटे तुं एक वार पर्यायने (जोवानुं) चक्षु (सर्वथा)
बंध कर. पण हवे स्वने जोयुं. अने स्वने जाण्युं तो पर्यायमां पण ई सामान्य वर्ते छे. एथी एने
जोवा माटे पण आ बाजुनुं (द्रव्यनुं) लक्ष छोडीने आ बाजु (पर्यायने) जो. कारण के ई पर्याय पण
तारा अस्तित्वमां छे. जेम बीजा (कोईपण) द्रव्यनो अंश तारा अंशीमां नथी, कारण शरीरनो -
पर्यायनो एक अंश तारामां नथी. तारा अस्तित्वमां पर्यायनुं अस्तित्व न होय तो, चार गतिनी अने
सिद्धनी पर्यायनुं अस्तित्व (साबित ज न थाय.) पण ए पांचे पर्यायनुं अस्तित्व छे.

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२८
आहा... हा! एने जोवाने उघडेलुं ज्ञान छे. कीधुं ने...? “एकला उघाडेला पर्यायार्थिक चक्षु वडे.”
पर्यायनुं अस्तित्व जोवा माटे स्वने जोयुं छे ते ज्ञान पर्याय जोवाने उघडेलुं छे. आहा... हा! आवी
बधी वातुं झीणी! लोकोने बहारथी (सुख मेळववुं छे.) पण ए बहार छे ज नहीं ने...! बहारमां तो
परनुं कंई तो करतो नथी, पण बहारमां ई विषय - कषाय -शुभभाव ए पण एने परमार्थे
परशरीर कीधुं छे एने. आहा.. हा! पण अहींयां कहे छे के तारी पर्यायनुं अस्तित्व छे एने जोवानी
उघडेली आंख्यथी जो - जाण. आहा... हा! छे? (पाठमां.)
(कहे छे केः) “ए पर्यायोस्वरूप अनेक विशेषोने अवलोकनारा” “जीवद्रव्योमां रहेला”
छे? (पाठमां.) ओलामां तो एक अंशे य रहेलो नथी. करमने शरीर आदि (परमां तो रहेलो ज
नथी.) आहा... हा! अरे.. अरे! क्यारे फुरसद ले ने क्यारे निर्णय करे! चोराशीना अवतार करी -
करीने सोथा नीकळी गया छे ने हजी एने दरकार नथी. के हुं कोण छुं? क्यां छुं? क्यां (शुं करी रह्यो
छुं?) अहींयां गति छे ई पण पर्यायना अंशमां छे. ते त्रिकाळी चीजमां नथी. आहा... हा! कषाय-
शुभ दया -दान व्रत-भक्तिना परिणाम पण मारी पर्यायमां, पर्यायमां, पर्यायमां वर्ते छे जरी. एमां
वर्ते छे वस्तुमां तो ई नथी. पण वस्तुनुं ज्ञान थया पछी एना अस्तित्वमां छे (पर्याय) एने जो.
परने जोवानी वात ज नथी. परने जुवे छे ई तो पोतानी पर्यायने जुवे छे. आहा.. हा! खरेखर तो
राग - द्वेषने जुवे छे ए पण ज्ञाननी पर्याय छे अने एने जोवे छे. आहा.. हा.. हा!
(कहे छे केः) पण, एनी पर्यायमां गति छे. ए पर्यायने जोतां “जीवद्रव्यमां रहेला” एम छे
ने...? (अहीं पाठमां) कर्म-शरीर के (बीजुं कंई) जीवद्रव्यमां रहेल नथी. आ शरीर जे छे ए
जीवद्रव्यमां रह्युं नथी. आहा.. हा! जीवद्रव्यनी पर्यायमां (जे) रहेलुं छे. एना सामान्य (द्रव्यमां) ए
रहेल नथी. हवे एना विशेषमां रहेलुं जे - ए जीवद्रव्यमां रहेला छे? (पाठमां) जीवद्रव्यमां रहेला
(नारकपणुं - तिर्यंचपणुं - मनुष्यपणुं - देवपणुं के सिद्धपणुं) एम कीधुं छे त्यां. आहा... हा! ए तो
पहेलां आवी गयुं के जीवद्रव्यमां रहेला एटले त्रिकाळीमां रहेला एम नहीं. आहा.. हा! “जीवद्रव्यमां
रहेला”
जीवद्रव्य भगवान चैतन्य परमात्मस्वरूप एनुं ज्यां ज्ञान उघडयुं त्यारे न्यां जीव (नी)
पर्यायने जोवानुं. ई भणतरथी उघडयुं के ई प्रश्न अहींयां छे ज नहीं. ई शुं कह्युं? शास्त्रथी -
भणतरथी पर्यायने जोवानी ई वात अहींयां लीधी नथी. आहा... हा!
अहींयां तो जीव त्रिकाळी ज्ञायकमूर्ति प्रभु! एने जोतां पर्यायने जोवानुं उघडेलुं ज्ञान (छे
तेनाथी पर्यायनुं ज्ञान छे) समजाय छे आमां कांई? अरे! आ तो त्रण लोकना नाथ, जिनेश्वरदेव!
परमेश्वर एटले कोण? आहा..! जेनी पासे एकावतारी इन्द्रो गलुडिया- बच्चांनी जेम बेसे! आहा...
हा! एवा त्रिलोकनाथ! जिनेश्वरदेवनी वाणी छे ‘आ’. ए वाणीनी गंभीरतानो पार न मळे!
आहा.. हा!

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२९
कहे छे केः आंख्युं पर्याये (जोवानी) बंध करी, सर्वथा हों? त्यारे (द्रव्य) जोवामां आव्युं,
उघडेलुं ज्ञान (द्रव्यार्थिक नय) थी जोवामां आव्युं - हवे ई उघडेला ज्ञानथी “जीव (द्रव्यमां) रहेला
पर्यायो. छे ने...? (पाठमां.) “नारकपणुं, तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं, देवपणुं अने सिद्धपणुं ए
पर्यायोस्वरूप अनेक विशेषोने अवलोकनारा”
पर्यायस्वरूप अनेक विशेषतोने जाणनारा. “अने
सामान्यने नहि अवलोकनारा” एक
आना तरफ लक्ष छे एटले एने नहि जोनारा एम. “एवा ए
जीवोने (ते जीवद्रव्य) अन्य अन्य भासे छे.” पर्याय
छे ते जीवद्रव्यमां अनेरी - अनेरी भासे छे.
सिद्धपर्याय ने देवपर्याय ने ए (आदि पर्यायो) अनेरी - अनेरी छे. आहा..!
“अन्य अन्य भासे
छे कारण के द्रव्य ते ते विशेषोना काळे तन्मय होवाने लीधे” भगवान आत्मा, द्रव्य! ते ते
विशेषोना काळे - ते ते कोण? नारकी - मनुष्य - देव - तिर्यंच अने सिद्ध (पर्यायो) ते विशेषोना
काळे तन्मय होवाने लीधे” ते ते पर्यायमां जीवद्रव्य (ते काळे) तन्मय छे. आहा.. हा!
(कहे छे केः) जेम कार्मण शरीर, औदारिक शरीर अने स्त्री-कुटुंब परिवार आदि एनो
त्रणेयनो एकके य अंश अहींयां (जीवद्रव्यमां) तन्मय नथी. ए तो स्वतंत्र (पणे) जुदा छे. आहा..
हा! आ तो ओला (भाई) कहेता’ ता ने..! के बावो थाय तो समजाय. ओलो अमृतलाल नहीं?
वडियावाळो. बैरां मरी गयां! पछी एक फेरे (कहे के आ वात तो बावो थाय तो समजाय.) पण
भाई! बावो ज छे. (आत्मा) तारामां रागे य नथी ने खरेखर तो सामान्यमां तो गतिए य नथी
पण पर्यायनुं अस्तित्व तारामां छे ए (अहींयां) सिद्ध करवुं छे. ए परने लईने पर्याय नथी. आहा..
हा! एम कह्युं ने..?
“जीवद्रव्यमां रहेला” एम कीधुं. जीवनी पर्यायमां रहेला (एम न कीधुं.)
आहा.. हा! ए जीवद्रव्य पर्यायमां छे. ए जीवद्रव्य पर्यायद्रष्टिए पर्यायमां (ते ते काळे) छे. आहा...
हा! “अन्य अन्य भासे छे.” अनेरी - अनेरी दशा (ओ) छे. सामान्यने देखतां अनन्य - अनन्य
ते ते ते भासे छे. विशेषने जोतां ते अन्य - अन्य पर्याय भासे छे. आवुं छे बापु!! आहा..! जनम
- मरण रहित! आहा...! वीजळीना चमकारे जेम मोती परोवे! आहा..! आ तो चमकारो आवी
गयो छे एम वीतराग मारगनी वाणी (अलौकिक) आ बधुं तूत छे! जोवानुं जाणवानुं होय तो तारुं
सामान्य अने विशेष बे. आहा.. हा.. हा! परने जोवाने - जाणवाने तो वात ज नहीं. आहा.. हा!
परने छोडी - कांई बायडी-छोकरां - कुटुंबने -व्यवस्थित कंई व्यवस्था करी शकुं - ए वात तो त्रण
काळमां छे ज नहीं आत्मामां. (ए वात) द्रव्यमां तो नथी पण पर्यायमां य नथी. आहा.. हा! आवो
जे भगवान आत्मा, सामान्यने जोईने (देखीने) - सामान्यनुं (लक्ष) बंध करीने, पछी विशेषने
जाणवुं छे. एटले छद्मस्थनो उपयोग सामान्यमां होय त्यारे विशेषमां होतो नथी. एथी ते उपयोगने
पर्यायमां लाववो छे एथी (सामान्यने) जोवानुं बंध करीने कीधुं. आहा.. हा! समजाणुं कांई..?

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गाथा – १४४ प्रवचनसार प्रवचनो प३०
(अहींया कहे छे केः) “–ए पर्यायोस्वरूप अनेक विशेषोने अवलोकनारा अने सामान्यने
नहि अवलोकनारा एवा ए जीवोने (ते जीवद्रव्य) अन्य अन्य भासे छे.” ई पर्याय अन्य अन्य
भासे. नारकीपणुं. - तिर्यंचपणुं - मनुष्यपणुं - देवपणुं अने सिद्धपणुं - ए पर्याय छे ने...? आहा..
हा! सामान्य जे त्रिकाळ छे ते अनन्य छे. ए नहीं. अत्यारे तो सामान्य जोनारे, विशेष जोवा माटे
ज्ञान उघडयुं छे. खुल्युं छे, खील्युं छे. ते पण पोतानी पर्यायने जोवा माटे (खील्युं छे.) आहा.. हा!
अहीं तो हजी बहार आडे नवरो थतो नथी. अर... र... र! अरे! क्यां जाशे? आंही मोटा पैसावाळा
कहेवाय, आ बधा करोडपति! चीमनभाई गया?
(श्रोताः) जी हा! (उत्तरः) मोटा शेठ! पचास
करोड रूपिया! मुंबईमां, चीमनभाई तो तेमां नोकर हता ने...! शेठनी पासे पचास करोड रूपिया!
आव्यो’ तो मुंबई आव्यो’ तो. एमां - एमांने माणस आम! पैसा ने वेपार ने आ बायडी ने
छोकरांव ने जे तारी पर्यायमां पण ए नथी. आहा.. हा! तेनी सांभळमां तुं (पडयो छो ने) तेमां
तारो काळ बधो जाय छे! आहा... हा! कान्तिभाई! आवुं छे. तारामां जे छे एने जोवाने फुरसदे य
नथी मळती तने. आहा.. हा! तारे करवुं छे शुं? ए कर्युं (अत्यार सुधी) रखडवानुं तो करे ज छोड
अनंत काळथी ई तो अनंत काळथी अनंत जीवो (आ) करे छे. आहा.. हा!
(कहे छे के) आचार्य महाराज तो जुदा पाडी अने जीवद्रव्य बधुंय छे एम जोनारने कहे छे.
हवे तुं पर्याय पण तारामां छे एने जो. आहा.. हा! ई पर्यायथी जीव (द्रव्य) अन्य भासे छे. भले
“जीवद्रव्यमां रहेलां” पण अनेरी (अनेरी) भासे छे. “कारण के द्रव्य ते ते विशेषोना काळे तन्मय
होवाने लीधे.”
आहा... हा! जोयुं? कारण के वस्तु जे भगवान आत्मा - द्रव्य जे परमज्ञायकभाव
भगवान - परम स्वभावभाव, ते विशेषोना काळे तन्मय होवाने लीधे - पर्यायमां तन्मय छे. स्त्री
- कुटुंब, परिवार के पैसो मकान एमां कोई दि’ ए छे ज नहीं, रही शकतो ज नथी. आहा... हा...
हा! एमां तन्मय नथी (ए) अनंत काळथी. अरे.. रे! एने (एनी) दया नथी. के तारी तने दया
नथी. आहा... हा!
(कहे छे केः) “जीवद्रव्यमां रहेला” एने जाणतां एम कीधुं ने...? ओला (स्त्री-कुटुंब
आदि) जीवद्रव्यमां रहेला नथी. स्त्रीकुटुंब (के कोई) जीवद्रव्यमां रहेला छे? (नथी रहेला.) आहा...
हा! आ शरीर जीवद्रव्यमां रहेलुं छे? (जी, ना.) अंदर आठ करम छे ई जीवद्रव्यमां रहेला छे? (जी,
ना.) एनी पर्यायमां (मात्र) आ चार गतिनी ने सिद्धनी पर्याय - ए रहेला छे. ए जीव रह्यो छे
(एमां.) आहा...हा!
“द्रव्य ते ते विशेषोना काळे तन्मय होवाने लीधे.” आहा...हा! एक बाजु एम
कहेवुं - त्रिकाळी सामान्य - स्वभावमां गतिए नथी ने भेद य नथी ने गुणभेद नथी आहा... हा!
भगवान परमस्वभाव भाव, परम ज्ञायक पारिणामिक स्वभावभाव, एमां तो पर्याय छे ई ए नथी.
आहा... हा! ए वस्तुनी स्थिति त्रिकाळी छे. एमां नजर ठराववा (एम

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३१
कहेवामां आवे छे.) अहींयां (कहे छे) पर्यायमां तुं तन्मय छो. एनुं ज्ञान कराववा (कहेवामां आवे
छे.) आहा.. हा! आवी वातुं छे. “ते ते विशेषोना काळे” ते ते समये एम. “तन्मय होवाने
लीधे”
आहा... हा! द्रव्य छे तेनी पर्याय नारकपणुं (आदि) शरीर नहि हों? ए (नारकादि) नुं
शरीर नहीं. गतिनी जे पर्याय छे तेमां ई तन्मय होवाने लीधे. आहा.. हा! ए गतिनी पर्याय छे
एमां ई तन्मय छे. पण पर्यायअपेक्षा (कह्युं छे.) हों? आहा..!
“ते ते विशेषोथी अनन्य छे.” ते ते
विशेषोथी ते अनन्य छे. अन्न अन्य छे पण अनन्य छे. पर्याय छे. अहा.. हा.. हा! एटले
विशेषोथी ते अनन्य छे. अन्य - अन्य नहीं पण ते ते विशेषोथी (द्रव्य) अनन्य छे. ते ते
(पर्यायोथी) विशेषोथी जीवद्रव्य तन्मय (होवाने लीधे) अनन्य छे. अनेरा - अनेरा (पणे) छे
एम नहीं. आहा... हा! आ तो भगवद्वाणी छे! संतो-कुंदकुंदाचार्य! साक्षात् भगवान पासे (सीमंधर
भगवान पासे विदेहमां) गया. साक्षात् वाणी सांभळी, हता तो मुनि! पण भगवान पासे गया
हता. के एटली योग्यता हती मनुष्य होवा (छतां पण) ए आवीने (अहींयां) जगत पासे जाहेर
करे छे. आहा...हा!
(कहे छे केः) प्रभु! तारामां बे ज भाव छे. एक सामान्य अने एक विशेष. बीजा कोई
द्रव्यनो अंश. तारामां त्रण काळ, त्रण लोकमां नथी. आहा... हा! जेनी व्यवस्थामां ज प्रभु! तुं
रोकाणो!! शरीरने आम राखुं - वाणीने आम राखुं (करुं), आम थोडा-सरखा राखुं तो शरीरने
आम ठीक रहे ने, छोकरांव ठीक रहे. माळे..! ए बधानी परद्रव्यनी अवस्था (व्यवस्था) ताराथी थती
ज नथी ने. तेनी अवस्थामां ज रोकाई गयो प्रभु!
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। पुरुषार्थसिद्धि
(उपायमां) आवेे ए तो निमित्तनी वातुं छे. आहा... हा! साधन तो रागथी भिन्न पडवुं -
प्रज्ञाब्रह्मथी ए साधन छे.
(अहींयां तो ज्ञान-ज्ञाननुं छे पण हारे जे गति छे मनुष्यपणा (आदिनी) एनुं ज्ञान करवुं,
मुनि! अहींथी तो देवमां जशे गति, अहींयांथी तो देवमां जवाना छे. आहा... हा! मुनिओने के
धर्मात्माने के आना धर्मना संस्कार पडेला छे एने स्वर्गमां जवाना छे कहे छे के त्यां ए जीव त्यां
गतिमां तन्मयपणे हशे. एमां (जीवद्रव्य) तन्मय छे. अनेरुं - अनेरुं नथी. एमां तन्मय छे. आहा..
हा! भाई आव्या? हसमुखभाई छे? आहा.. हा!
(अहींयां कहे छे केः) “अन्य अन्य भासे छे” , कारण के द्रव्य ते ते विशेषोना काळ तन्मय
होवाने लीधे ते ते विशेषोथी अनन्य छे.” एक पर्याय छे त्यारे बीजी पर्याय नथी. शुं कीधुं ई?
नारकपर्याय छे एमां मनुष्यपर्याय नथी, मनुष्यर्पाय छे तंये सिद्धपर्याय नथी. सिद्धपर्याय छे तंये
नारक -मनुष्य (तिर्यंच के देवपर्याय) नथी. आहा.. हा! (एक समये) एक ज पर्याय छे. तेथी ते
अन्य अन्य छे छतां (ते ते विशेषोथी) अनन्य छे. पर्यायथी अन्य अन्य छे, वस्तुथी (द्रव्यथी एक
ज छे) माटे अनन्य छे. एथी पर्यायो अन्य छे एनाथी (द्रव्य) अनन्य छे. आहा...हा!

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३२
आत्मानी साथे (ए) पर्यायो तन्मय छे माटे अनन्य छे. आहा... हा.. हा! भाई! आवो मारग छे!
“ते ते विशेषोना काळे तन्मय होवानी लीधे ते ते विशेषोथी अनन्य छे” अनन्य छे एटले अनेरो
नहीं. ते ते पर्यायमां ते काळे ते ते विशेषोथी अनन्य छे. आहा.. हा! भले नरकगतिनी पर्याय हो,
श्रेणिक राजा! समकिती छे पहेली नरकमां (छे.) तेना (नरकना) संयोगनी साथे तन्मय नथी.
क्षायिक समकिती छे. छतां नरक गतिनी (पर्याय) साथे तन्मय छे. ते काळे ते ते विशेषो पूरती
तन्मय छे. आहा.. हा! छतां ते गति मारी छे एम ई मानतो नथी. वस्तुद्रष्टिए पण पर्यायमां
तन्मय छुं एम जाणे छे. ए मारामां ने माराथी छे आ पर्यायमां मारो जीव छे. आहा.. हा!
जाणवानी वात छे ने..! नरकगतिमां पहेली नरक छे. तीर्थंकर थवाना छे. आहा... हा! त्रण ज्ञान
अने क्षायिक समकित लईने नीकळवाना छे. माताना पेटमां आवशे तंये त्रण ज्ञानने क्षायिक समकित
छे. आहा... हा! पण ई जाणे छे के आ पर्याय छे ई मारामां छे. ते ते काळे ते पर्यायमां हुं तन्मय
छुं पर्याय (द्रष्टिए) पर्यायथी, द्रव्यथी नहीं. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “कारण के द्रव्य ते ते विशेषोना काळे तन्मय होवाने लीधे ते
विशेषोथी अनन्य छे.” कोनी पेठे? हवे द्रष्टांत आपे छे. “–छाणां, तृण, पणर् एटले पांदडां काष्ठमय
(अथवा) लाकडांमय अग्निनी माफक.” काष्ठमय अग्निनी माफक (अर्थात् जेम तृण, काष्ठ वगेरेनो
अग्नि ते ते काळे तृणमय, काष्ठमय वगेरे होवाने लीधे”
ए अग्नि तृणमय, काष्ठमय परिणमे छे
ने...! आहा.. हा!
“तृण, काष्ठ (तणखलां, लाकडां वगेरेथी अनन्य छे. अनन्य छे, अनेरा - अनेरा
(पणे) अग्नि नथी. ए अग्नि लाकडांथी - पांदडाथी तन्मय छे. अनन्य छे. आहा..हा..हा! आ तो
द्रष्टांत आप्यो हों? ए गतिमां जेम आत्मा तन्मय छे - वस्तुने जेणे जाणी छे ई जाणे छे के आ
पर्यायमां मारुं तन्मयपणुं छे. आहा...हा! ए पर्याय कोई परद्रव्यमां थई छे (एम नथी.) आहा..
हा! ओलामां तो एम आव्युं छे, जीवना चौद भेदो नामकर्मना कर्मने कारणे थया छे. नाम करम करण
छे एना कारणे (थया छे.) (‘नियसार’ गाथा-४२) त्यां एकदम वस्तुनुं स्वरूप शुद्ध चैतन्य!
पूर्णानंदनो नाथ! एमां ए नथी एम बताववुं छे. अहींयां एनी पर्यायमां अंशमां जेटलुं नारकपणुं,
तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं ऊपजयुं छे, मनुष्यपणुं एटले (आ) शरीर नहीं, पण ए मनुष्यपणा (रूप)
गति, गति! जे तन्मयपणे छे जेम अग्नि लाकडां के पांदडा जे - मय होय तेम तन्मय थई जाय छे.
अग्नि ए वखते जुदी रहे छे एम नथी. एम आत्मा जे जे पर्यायने पामे छे, ए पांचमांथी (पांच
प्रकारनी पर्यायमांथी) ते वखते तेमां तन्मय छे. आहा.. हा!
(अहींया कहे छे केः) “अग्नि ते ते काळे तृणमय, काष्ठमय वगेरे होवाने लीधे तृण, काष्ठ
वगेरेथी अनन्य छे.” अनन्य छे एटले -अनेरी नथी. अग्नि लाकडांने छाणाने बाळे छे जयारे, तो
अग्नि त्यारे त्यां त्यां तन्मय छे - बाळे छे. अग्नि अने लाकडां (छाणां) जुदा पडी जाय छे एम
नथी. आहा... हा! एक ठेकाणे एम कहे छे के ई तृणादिनी अग्नि (अथवा जुदां छे

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३३
तृण अने अग्नि) एम जीव पर्यायपणे परिणमेलो छे ई पर्याय छे आत्मा नथी, ए द्रव्यद्रष्टिनी
अपेक्षाए (कीधुं छे.) आहा.. हा! पण ई द्रव्यद्रष्टिमां ज्ञान थया ने काळे, त्यारे एनी पर्यायमां शुं छे
तेनुं अहींया ज्ञान कराव्युं छे. प्रवचनसार ज्ञानप्रधान ग्रंथ छे. आहा... हा! जेम अग्नि ते ते काळे
लाकडां - छाणां - तृण - पांदडा आदि साथे तन्मय छे पर्यायथी. “तेम द्रव्य ते ते पर्यायोरूप
विशेषोना समये”
ते ते समये “ते – मय होवाने लीधे” ते ते पर्यायोरूप विशेषोना समये ते ते
समये ते - मय होवाने लीधे “तेमनाथी अनन्य छे – जुदुं नथी” ए गति तेनी पर्यायथी जुदी नथी.
आहा... हा! जेम पर जुदुं - शरीर जुदुं - कार्मण शरीर जुदुं एम आ पर्याय एनी जेम जुदी एम
नथी. आहा... हा! ए पर्याय अनन्य छे एनाथी तन्मय छे. आहा.. हा! आवो उपदेश!! कोई दि’
सांभळ्‌यो न होय बापु! सांभळे तो विचारवानी नवराश न मळे! एकला पाप आडे आखो दि’
पाप! रळवुं ने बायडी - छोकरां साचववां - एकलां पाप!! ए पोटलां पापना बांधीने हाल्या जशे.
(चार गतिमां रखडवा.)
अहींयां तो हजी द्रव्यने जेणे जोयुं छे एनामां ज्ञान उघडयुं छे. पोताने जाणतां पर - पर्यायने
जाणवानुं ज्ञान उघडयुं छे. एथी ते जाणे छे के आ पर्याय मारामां छे. बीजी चीज कोई मारामां नथी.
दीकरो मारो, बायडी मारी, छोकरां मारां, पैसा मारा, बंगला मारा, आबरु मारी मोटी. ए बधी धूळ
तारा पर्यायमां य नथी. आहा.. हा! एने तुं पोतानुं मानीने शुं करवुं छे प्रभु तारे? रखडी मरवुं छे
तारे? आहा... हा! दुनियाने बेसे के न बेसे वस्तुस्थिति आ छे. आ बहारनी - आत्मा सिवाय
बहारना भपकानी एथी जरी पण ठीक! लागे. आहा.. हा! गजब वात छे प्रभु!! तो कहे छे के (ए
ठीकनी मान्यता) मिथ्याद्रष्टि छे. एने नथी द्रव्यनुं ज्ञान के एने नथी पर्यायनुं ज्ञान. (मात्र मूढ छे.)
आहा... हा!
(कहे छे केः) आत्मामां द्रव्य अने पर्याय सिवाय, परपदार्थनी गमे तेटली विभूति - वैभव
खडकायेल देखाय एने ने तारे पर्यायमां पण संबंध नथी. आहा.. हा! फकत तारी पर्यायमां, गति
थई छे ते तारामां तन्मय छे. आहा.. हा!
“ते ते काळे” पाछुं कहे छे ते ते काळे - सदाय ए गति
नथी एम कहे छे. मनुष्यगति फरीने एकदम देवगति थशे, देवगति फरीने एकदम मनुष्य गति थशे.
मनुष्यगति फरीने एकदम सिद्धदशा थशे. आहा.. हा! ए पर्याय तारामां अन्य - अन्य छे, ए अन्य
- अन्य छे छतां तारामां अनन्य छे. (जुदुं नथी.) ए.... य? ई तो पांच छे पर्याय माटे अन्य -
अन्य कीधी. पण तारी हारे ए (पर्याय) अनन्य छे. आहा... हा! हवे आवुं समजवा माटे रोकावाय
ते. क्यां वखत मळे? आहा..! ओहो... हो! संतोए तो अमृतनां वेलणां वायां छे! आहा.. हा!
प्रभु! तारे ने परद्रव्यने कांई संबंध नथी हों? आ मारो दीकरो ने आ मारा दीकरानी वहुने..
आहा...! एने दागीना चडाव्या होय, पांच - दश वीश हजारना! पहेरीने नीकळे त्यारे खुशी थाय,
मारा पैसा ने खरचाणा ने लोकमां जाणे माटे आवी गयुं! आहा.. हा! (हास्य) आहा... हा!

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३४
प्रभु! तुं क्यां गयो? क्यां खोवाई गयो तुं? परमां - अटवाई ने खोवाई गयो प्रभु तुं! पर्यायथी
खोवाई गयो, द्रव्य तो ठीक! (श्रोताः) खोवाई तो पर्यायथी ज होय ने..? (उत्तरः) हा, आहा..
हा! गाथा दीठ ते अमृत भर्यां छे. वारता नथी प्रभु आ! आ तो भगवत् - कथा छे. ए अबजो
रूपिया ने करोडो रूपिया ने महेल अने मकान, आ तो हजी साधारण मकान छे. अबजोना मकान
(होय) आ तो कोई कहे पडयुं ई गया भवनुं हतुं, आ पडयुं ने...? गया भवनुं हतुं. कांईक पडयुं
छे आ बाजु कहे छे नो’ होय. ए तो जे प्रकारे, जे क्षेत्रे जे होय थवानुं एमां कांई नहीं. प्रभु! तने
डर लाग्यो एटलुं! लोकोने (भय थाय) के अहींयां पडशे के (आपणुं) पडशे. परद्रव्यनी अवस्था तो
तने अडती य नथी ने...! आहा.. हा! एने शेनी तने चिंता छे? फकत द्रव्यना स्वभावने जोईने,
पर्यायमां - अस्तित्वमां पांच गति छे पांच (गति) छे ने ई...? चार गति अने अने सिद्धगति -
पांच गति छे. ए पर्याय तन्मयपणे छे तारामां ते ते काळे.. आहा.. हा! सिद्धने. वखते सिद्धनी
पर्याय तारामां तन्मयपणे छे. त्यारे बीजी गति छे ज नहीं. अने जयारे बीजी गतिमां तन्मय छे
त्यारे सिद्धगति अने बीजी गति नथी. आहा... हा!
(कहे छे केः) मनुष्यगतिने काळे तारी पर्यायमां मनुष्यगति तन्मय छे. तारुं द्रव्य तेमां तन्मय
छे. ते वखते देवगति के सिद्धगति के (मनुष्य गति सिवाय) बीजी गति तारामां छे ज नहीं. आहा...
हा! समजाणुं कांई?
“तेम द्रव्य ते ते पर्यायोरूप विशेषोना समये ते – मय होवाने लीधे तेमनाथी
अनन्य छे – जुदुं नथी.” ए पर्यायने जोवानी वात करी. पण ई पर्याय एटले गति. आहा... हा!
एमां क्रोध - मान, राग - द्वेषनी वाते य करी नथी. आ तो गति छे, ई गति छे ज. अने ई गति
पण आयुष्य होय त्यां सुधी रहे छे. छतां समय - समयमां तन्मयपणुं भिन्नभिन्न छे. आहा... हा!
ई पचास- साठ वरस मनुष्यपणुं रहे, माटे ई ने ई पर्याय ते - पणे रही छे ए वरसमां एम
नथी. ते ते पर्याय ए अवस्थामां ते द्रव्य ते काळे तन्मय छे. अग्नि लाकडामां ने छाणामां जेम
तन्मय छे एम (द्रव्य पर्यायमां तन्मय छे.) आहा.. हा! हवे त्रीजी वात करे छे. आ तो (अहींयां)
तो एक आंख्य बंध करीने बीजी (खोलीने) एम कह्युं हतुं. (हवे एक हारेनी वात- प्रमाणनी वात
करे छे.)
(अहींयां कहे छे केः) “अने जयारे ते बन्ने चक्षुओ – द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक – तुल्यकाळे
(एकसाथे) खुल्लां करीने” प्रमाणे छे. तुल्यकाळे पाछुं एक समयमां (खुल्लां करीने कीधुं.)
सामान्यने जाणे. जाणवानी वात ने अहींयां...! सामान्यनो आदर छे ई तो एक ज प्रकारनो छे.
एमां विशेषनो आदर एम नथी (कह्युं.) पण अहींयां तो ज्ञानमांजेम सामान्यने जाणे छे तेम
विशेषने जाणे छे. विशेष भले आदरणीय नथी. आश्रय करवा लायक नथी. आहा... हा! क्षायिकभाव
पण आश्रय करवा लायक नथी छतां उदयभाव अत्यारे गतिनी हारे तन्मय छे कहे छे. समजाणुं
कांई? समय - समयनुं अस्तित्व, द्रव्य अने पर्यायनुं कई रीते छे? तेनी संधि करे छे?

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३प
आहा... हा! “अने जयारे ते बन्ने चक्षुओ – द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक तुल्यकाळे (एकीसाथे)
खुल्लां करीने.”
क्षयोपशम छे ने..! उघाड छे ने बेयने जाणवानो...! “ते द्वारा अने आ द्वारा
(द्रव्यार्थिक चक्षु द्वारा तेम ज पर्यायार्थिक चक्षु द्वारा)
बेय द्वारा “अवलोकवामां आवे छे” द्रव्य,
सामान्य छे ते अवलोकवामां आवे छे अने ते द्रव्य पर्यायमां तन्मय छे एने पण अवलोकवामां आवे
छे. बेय एकसाथे जोवामां आवे छे. आहा... हा! जाणवानी-अपेक्षाए वात लीधी छे ने...!
(अहींयां कहे छे केः) “द्रव्यार्थिक चक्षु द्वारा तेम ज पर्यायार्थिक चक्षु द्वारा अवलोकवामां
आवे छे.” जाणवामां (आवे छे.) , त्यारे नारकत्व–तिर्यंचत्व–मनुष्यत्व–देवत्व–सिद्धत्व–पर्यायोमां
रहेलो जीवसामान्य”
पर्यायमां रहेल जीवसामान्य, पांच पर्याय छे ते एक समये पांच (पर्याय)
नहीं. पण ते ते समये - एक-एक समये (एक पर्याय) एम जुदी जुदी पर्याय जुदे जुदे समये पांच
पर्यायमां रहेलो जीव (सामान्य). आहा... हा! नारकत्व-तिर्यंचत्व-मनुष्यत्व-देवत्व-सिद्धत्व पर्यायोमां
‘रहेलो’ जीवसामान्य एम कीधुं ने...! आहा... हा!
“पर्यायोमां रहेलो जीवसामान्य अने
जीवसामान्यमां रहेला” अन्यत्वमां रहेला जीवसामान्य - अन्य-अन्य पर्यायोमां रहेलो जीवसामान्य
अने “जीवसामान्यमां रहेला नारकत्व–तिर्यंचत्व–मनुष्यत्व–देवत्व–सिद्धत्व पर्यायो स्वरूप विशेषो
तुल्य – काळे ज देखाय छे.”
आहा... हा! पहेलुं मुख्य ने गौण करीने सामान्यने जोवानुं कह्युं’ तुं.
अने पर्यायने जोवाने टाणे द्रव्यने जोवानुं छोडी (लक्ष छोडी कह्युं’ तुं) ए बेयने समकाळे जोवा माटे
प्रमाणज्ञान छे. आहा...! परने जोवा माटे ई प्रश्न ज अहींयां छे नहीं. कारण के परने जाणे छे ई
पर्याय पोतानी छे. ई कांई परने लईने थई छे ने परने माटे (एने जाणवा) आ पर्याय थई छे
एम नथी. आहा... हा!
(कहे छे) एक आत्मा, द्रव्य ने पर्याय सिवाय - अनंत द्रव्यना अने पर्यायना गर्वने उठावी
देवानी वात करे छे. जो क्यां’ य पण (परनो करवानो) गर्व रह्यो. (मिथ्याद्रष्टि छे.) आहा... हा!
सामान्य एवुं द्रव्य त्रिकाळी अने विशेष जे एनी पांच (प्रकारनी) पर्यायो, ए (पर्यायमां) ते समये
ते तन्मय छे. पांचे य (पर्याय) एक साथे नहीं. (एक पर्याय होय.) ते ते समये एक ज गतिमां
अन्य छतां अनन्य, एवी रीते बीजा (द्रव्य) साथे अन्य के अनन्य कोई दि’ थाय नहीं. पर्याय छे
ई अन्य अन्य छे, छतां अनन्य छे. पर्याय प्रगटे (मनुष्यगतिनी) ए वखते बीजी गति नथी. छतां
ते पर्यायनी साथे अनन्य छे. जेम बीजां द्रव्यो अन्य छे तेनी साथे कोई दि’ एक समय पण अनन्य
छे ए त्रणकाळमां नथी. आहा... हा! आ पुस्तक ने पानां अने आंगळीनी पर्याय छे अने एने
जाणवुं ई ए नथी (आत्मामां) एने जाणवा काळे तारी ज्ञाननी पर्याय छे तेमां तुं तन्मय छो. एने
जाणवामां तन्मय छो एम नथी. आहा... हा! शुं कीधुं समजाणुं?

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प३६
आहा... हा! जाणवामां आव्युं के छे आ शास्त्र! ते ज्ञाननी पर्याय तेमां (शास्त्रमां) तन्मय
नथी. ते काळे विशेष जाणवामां आव्युं पण ते काळे पोते परनी हारे तन्मय नथी. ए अन्य-अन्य
पर्याय छे ए ते पर्यायनी अपेक्षाए अन्य कहेवाय, छतां द्रव्यनी अपेक्षाए तेने अनन्य कहेवाय.
द्रव्यथी ते (पर्यायविशेष) जुदी नथी. आहा... हा!
आहा... हा! जेम बीजां द्रव्यो अने पर्यायो (आ द्रव्यथी) तद्दन जुदां छे. शेढे ने सीमाडे क्यां’
य मेळ नथी. स्वद्रव्यनी पर्याय अने द्रव्यने बीजां द्रव्य के तेनी पर्याय हारे क्यां’ य मेळ नथी -
संबंध नथी. आहा... हा! जेनी हारे पचास-पचास, साठ-साठ वरस गाळ्‌यां होय (धर्मपत्नी हारे)
सीतेर-सीतेर, सो वरस गाळ्‌यां होय, पण कहे छे के एक समय (मात्र) पण तेनी तन्मय नथी.
अन्य छे ते अन्य ज छे. अने आ पर्याय अन्य छे ते पर्याय अनन्य (पण) छे. आहा... हा! केटले
ठेकाणेथी आने उपाडी मूकवो! (बधेथी खूंटीओ उपाडी मूकवी.) आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “त्यां, एक चक्षु वडे अवलोकन ते एकदेश अवलोकन छे” एक चक्षु
वडे जोतां एकदेश ज्ञान छे. एक भागनुं (अवलोकन छे) “अने बे चक्षुओ वडे अवलोकन ते सर्व
अवलोकन (–संपूर्ण अवलोकन) छे”,
जाणवानुं-जाणवानी अपेक्षाए वात छे ने...! आदरवानुं शुं
छे ई अत्यारे अहींयां (वात नथी.) आदरवानुं तो ज्यां क्षायिकभाव पण आदरणीय नथी. आहा...
हा! एक बाजु एक कहे छे के क्षायिकभाव परद्रव्य, परभाव होय छे. अहींयां उदयभाव गतिनो
(श्रोताः) हेय छे. (उत्तरः) छे ई ज. छे तारामां. हें? एके-एक गाथा!! केटली गंभीरताथी छे!!
एम ने एम वांची जाय. (रहस्यनी गंभीरता न समजाय). “माटे सर्व अवलोकनमां द्रव्यनां
अन्यत्व”
अनेरी-अनेरी पर्याय “अने अनन्यत्व” वर्तमान-अपेक्षाए अनन्यत्व छे. पर्याय जुदी
नथी, द्रव्यथी (अनन्य छे.) ए
“विरोध पामतां नथी.” (द्रव्यनां) अन्यत्व अने अनन्यत्व विरोध
पामतां नथी. शुं कीधुं ई?
जे पांच पर्यायो छे गतिनी. ई गतिनी पर्याय छे एक-एक ते अन्य-अन्य छे. सिद्ध
सिवायनी ओली चार छे ई गतिनी छे. सिद्ध छे ई ओली चार नथी. मनुष्यनी छे ते देवनी नथी.
अन्य छे, अनेरी-अनेरी छे. पण आत्मानी अपेक्षाए - आत्मा एमां तन्मयपणे वर्ते छे, (तेथी)
अनन्य छे. आहा... हा! हवे आवुं समजवानो वखत मळे क्यारे? आखो दि’ जगतना पाप!
बायडी-छोकरां (नी उपाधिमां) ए क्यां जशे? घणा (तो) मरीने ढोरमां जवाना. पशु थवाना. जेने
हजी पुण्यना य ठेकाणां नथी. धरम तो क्यां रह्यो? अरे... रे!
अहींयां तो परना संबंधथी तो सर्वथा भिन्न ज करी नाख्युं. भिन्न ज छे. परथी-एनाथी
भिन्न छे सर्वथा-एनी व्यवस्थामां रोकाई जवुं. आहा...हा! को’ चीमनभाई! आवुं छे. क्यां बायडी?