Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 11-07-1979.

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गाथा – १४४ प्रवचनसार प्रवचनो प१७
प्रवचनः ११–७–७९.
‘प्रवचनसार’ ११४ गाथा.
टीकाः– खरेखर सर्व वस्तु” दाखलो आत्मानो आपशे. “सामान्य – विशेषात्मक होवाथी
वस्तुनुं स्वरूप जोनाराओने अनुक्रमे (१) सामान्य अने (२) विशेषने जाणनारां बे चक्षुओ (१)
द्रव्यार्थिक अने (२) पर्यायार्थिक.
एमां शुं कह्युं? के जोनार जे छे आत्मा. ई सामान्य - विशेष जुए
छे. परने नहीं. पोतानी विशेष पर्यायमां पर जणावे छे ई पोतानी पर्याय छे. एटले सामान्य -
विशेषने जोनारां. जोनारांनी वात लीधी छे. समजाणुं कांई? “सर्व वस्तु सामान्य – विशेषस्वरूप
होवाथी”
विशेष स्वरूप होवाथी “वस्तुनुं स्वरूप जोनाराओने अनुक्रमे (१) सामान्य पहेलुं
सामान्यने जाणे छे. पछी विशेष जाणे छे. कारण सामान्यनुं ज्ञान यथार्थ थाय, तेने विशेषनुं ज्ञान
यथार्थ थाय. अने विशेष जाणवामां - पर जाणवानी वात तो लीधी ज नथी. केम के आत्मा जे परने
जाणे छे ई तो पोतानी पर्यायमां, पर्यायने जाणे छे. आहा.. हा! समजाणुं कांई? ई काल नहोतुं
आव्युं. आ ज अत्यारे आव्युं कंईक! आहा..... हा..! वस्तुने सामान्य - विशेष जोनारा - एम कह्युं.
वस्तुने सामान् य- विशेष अने पर जोनारा एम नथी कह्युं.
(श्रोताः) अंदर पोते जाणे छे...!
(उत्तरः) पोते पोतामां पर्यायमां जणाय छे पर्याय जणांय छे पण आ (पर) वस्तु जणाय एम
कहेवुं ई तो असद्भुत व्यवहार छे. आहा... हा! सामान्य जे त्रिकाळ छे एनुं जे विशेष छे,
आत्मामां ई विशेषने विशेष जाणे. अहींयां तो ई विशेष द्वारा सामान्य जाणशे पहेलुं एने जाणीने
पछी विशेषने जाणे एम कहेशे. केम के सामान्यने जाणतां जे ज्ञान थाय, ते वास्तविक पोतानी पर्याय
छे. तेने वास्तविक रीते ते जाणी शके. देवीलालजी! आहा.. हा!
(अहींयां कहे छे केः) (१) सामान्य अने (२) विशेषने जाणनारां बे चक्षुओ छे - त्रण
चक्षु नथी. पोतानुं सामान्यस्वरूप ने पोतानुं विशेषस्वरूप बस (एने जाणनारां बे चक्षु कीधां छे.)
ए विशेषमां बीजा जणाई जाय, ए तो पोतानी पर्याय छे. आहा... हा..! आ काल नहोतुं आव्युं.
आज फरीने लीधुं ने..! आहा.. हा! आ लोको आव्या छे ने...! आहा... हा! अने ते ‘अनुक्रमे’ एम
शब्द छे. पहेलुं सामान्य जुए छे पछी विशेष - एम आवशे. समजाय छे कांई...? “तेमां” हवे
तेमां- सामान्य विशेष जोनारां तेमां “पर्यायार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करीने.” पोतानी पर्यायां जे
जणाय छे, ई पर्याय जणाय छे. ई परने जाणवानुं चक्षु बंध करीने एम न कह्युं. (पण) पोतानी
पर्याय छे - जेमां बधुं जणाय छे ते पर्याय जाणे छे. ए पर्याय छे, ई पर्यायद्रष्टिनुं चक्षु बंध करी
दईने आहा...! आ ते कंई वात छे!! आंख्युं बंध करी दईने ने परवस्तुनुं जाणवुं बंध करी दईने ने
- एम नथी कह्युं. समजाय छे कांई...? आहा... हा... हा.. हा! गंभीर वस्तु छे भगवान! एक पण
- एक - एक गाथा!! प्रवचनसार, समयसार, नियमसार! नियमसारनी तो वात ज (अलौकिक!)
पोते पोता माटे बनाव्युं छे. आहा... हा... हा!
(श्रोताः) नियम- ‘नियमसार’

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१८
(उत्तरः) ए तो पोता माटे बनाव्युं छे! आ... हा! (मुनिराजे पोता माटे). आ तो उपदेशना वाक्य
(प्रवचनसारमां).
(कहे छे) शुं संघवी छे? आवो, आवो मोढा आगळ, मोढा आगळ एकला आव्या के बहेन
आव्या छे? (श्रोताः) एकला (उत्तरः) हें? एकला आव्या छे. एमनो दीकरो मरी गयो. जुवान! बे
वर्षनुं परणेतर. बाई जुवान! अहीं सांभळी गया - चार दि’ सांभळी गया, सांभळीने एकदम
पालीताणे गया त्यां ओफ थई गयो. जुवान! त्रेवीस वर्षनी उंमर! एना बैरां गुजरी गयेलां, पण
आंखमांथी आंसु नहीं, शोक करवा आवे एने समजावे. भाई! ई तो महेमान तो महेमान केटलो
काळ रहे? ए सुमनभाई! आहा... रमणिकभाई छे संघवी! बापु! जगतनी चीजो एवी छे.
अहींयां तो कहे छे ई परने जाणतो नथी. आहा... हा! परने (जाणतो ज नथी ने) कीधुं
ने... लोकालोकने जाणवुं कहेवुं ई असद्भुत व्यवहार छे. आहा... हा... हा! परने ने एने संबंध शुं
छे? परने अने स्वनी वच्चे मोटो अत्यंत अभावनो किल्लो कीधो छे. स्वद्रव्य अने परद्रव्यनी पर्याय
वच्चे (अत्यंत अभाव छे.) द्रव्य-गुण तो सामान्य छे. आहा.. हा! (स्व-परनी) पर्याय वच्चे
अत्यंत (अभावनो) किल्लो कीधो छे. सवारे कीधुं हतुं ने सजझायनुं - भगवान आत्मा अभय छे.
मजबूत किल्लो छे. ए एवो किल्लो छे के एमां पर्यायनो प्रवेश नथी. आहा... हा... हा! अहींयां तो
हजी स्वनी पर्याय छे. - एमां परनो प्रवेश नथी. अने परने अने परनी पर्याय ने स्वनी पर्याय
वच्चे अत्यंत अभावरूपी किल्लो पडयो छे. आहा.. हा! छतां अहींयां एवुं लीधुं छे भगवान आत्मा
विशेषने जाणे छे. सामान्यने जाणे छे ई पहेलुं कह्युं पछी विशेषने जाणे छे. परने जाणे छे एम नथी
लीधुं. भाई! आहा... हा! हवे आंख्युं बंध करीने अने आम परने जोवानुं (बंध करीने) एम न
लीधुं. आहा.. हा!
“पर्यायार्थिक चक्षुने सर्वथा” सर्वथा - कथंचित् एमे य नहीं. पर्यायमां जे विशेषता छे,
एने जे जाणे छे पोते पण ई पर्यायचक्षुने सर्वथा “बंध करीने” आहा.. हा! आंख्युं बंध करी
दईने ने परने जोवानुं बंध करी दईने - एम नथी कह्युं. भाई! आ तो वीतरागनी दिव्यध्वनि
छे!
“पर्यायार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करी (दईने) ” पर्यायनुं लक्ष ज छोडी दईने... आहा.. हा!
पोतानी पर्याय हों? “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” शुं कीधुं? के पर्यायने (जोवाना चक्षुने)
बंध करी - तो पर्याय जोनारी (छे.) ते (जोनारी) पर्याय रही के नहीं? द्रव्यने जोनारी पर्याय रही
छे के नहीं? तो कहे छे “उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” (अर्थात्) “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु
वडे.”
आहा... हा! शुं काम कर्युं छे (मुनिराज आचार्ये!) आ टीका! आहा..! पोतानी पर्यायने
जोवानुं सर्वथा बंध करी दई “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” द्रव्यार्थिक नय छे ई ज्ञान छे, ई
उघडेलुं ज्ञान छे, छे तो पर्याय. पण ई पर्याय जोनारी, जोनारने न

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१९
जोतां - पर्यायने न जोतां (द्रव्य - सामान्यने जाणे छे.) पर्याय नय तरीके छतां एमां द्रव्यनुं ज्ञान
छे. कारण के ए ज्ञान द्रव्यने जाणे छे (माटे द्रव्यार्थिक नय छे.) आहा... हा! आ तो त्रण लोकना
नाथनी वातुं छे बापा! आ कांई आली - दुवालीनी वात नथी. आहा... हा... हा!
कहे छेः वस्तु, सामान्य विशेष तुं पोते छो. एमां आम विशेषमां परने जाणवुं ई कंई आव्युं
नहीं. ई तो तारी पर्याय जणाय छे त्यां. हवे ई पर्याय जणाय छे तेने जोनारी आंख (सर्वथा) बंध
करी दईने - पर्यायने जोवानी (पर्यायार्थिक) चक्षु सर्वथा बंध करी दईने - हवे बंध करी दईने थयुं
त्यारे कोई द्रव्यने जोनारी ज्ञानचक्षु रही के नहीं? आहा... हा.. हा! (तो कहे छे के)
“एकला
उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु” भाषा जुओ! एकली उघडेली द्रव्यार्थिक नय. आहा... हा! अजब वातुं छे
बापा! आ तो वीतराग त्रिलोकनाथ! सर्वज्ञनी वाणी छे!! “पर्यायार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध
करीने!” एकला उघाडो द्रव्यार्थिक चक्षु”
द्रव्यार्थिक उघाडेला नय छे नय छे ने...! एटले द्रव्यने
जोनारी दशा (ज्ञाननी) उघडेली छे. (ज्यां) पर्यायने जोनारी (चक्षु) बंध करी दईने... आहा...हा!
त्यां द्रव्यने जोनारी पर्याय, त्रिकाळ थई छे. आहा... हा! आ काल लेवायुं’ हतुं - हों? आ तमे
आव्या फरीने लीधुं! (श्रोताः) अमने य लाभ थाय.. (उत्तरः) आ तो जयारे - जयारे कहे, वात
ज जुदी छे. आहा... हा! अलौकिक वाणीनी गंभीरतानो पार नथी प्रभु! आहा...हा!
कहे छे केः परने जाणवानी वात तो मूकी दीधी. परने जाणवानुं बंध करीने - एम न कह्युं.
कारण के परने जाणतो ज नथी. आहा.. हा! ए तो पर्यायने जाणे छे. आवे छे ने... ‘समयसार
नाटक’
‘समता रमता उरधता, ज्ञायकता सुखभास, वेदकता चैतन्यता, ए सब जीव विलास’
ऊर्ध्वता एटले मुख्यता पोते पर्यायमां छे. एथी पर्याय ज जणाय छे. नारकी, तिर्यंच, मनुष्य देव
अने सिद्ध - ए पांच पर्याय. एनी पोतानो हो पांच (पर्याय छे), ते सिद्धपर्यायने जोनारी पण
पर्यायचक्षुने (सर्वथा) बंध करी दे. आहा... हा! एथी तने अंदर द्रव्यने जोनारी चक्षुनो उघाड थाशे
ज. आहा.. हा! गजब वात छे!! समजाय छे कांई...? अरे... रे! प्रभुना विरह पडया! वाणी रही
गई!
(कहे छे केः) पोतानी पर्याय - जे ए पांच पर्यायोने देखे छे जे - सिद्धनी पर्यायने पण देखे
जे - ते चक्षुने बंध करी दे प्रभु! आहा...हा! पहेली पर्यायने बंध करी दे, द्रव्यने बंध करी दे ने
पर्यायने जो एम न लीधुं अहींथी (पर्यायने जोवुं बंध करी दे) केम के सामान्यने जोवाथी जे ज्ञान
थाय, ए ज्ञान विशेषने बराबर (यथार्थ) जाणी शके. पोताना विशेषने (जाणवानी वात छे हों!)
आहा... हा! समजाय छे कांई? समजाय एटलुं भाई! तत्त्वनो पार न मळे! एनी गंभीरतानो पार
न मळे! आहा...हा...हा!

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२०
(अहींया के छे केः) “एकला उघाडेला” आ (पर्यायचक्षु) बंध छे त्यारे एका उघडेला छे.
आहा... हा! काल कहेवाई गयुं छे आ बधुं. (श्रोताः) जमावट थाय छे आज. (उत्तरः) आ तो
फरीवार लीधुं के बे जण आव्या छे ने..! आहा...! आ तो भगवाननी वाणी! गमे त्यारे लो ए
कांई फरीने छे ज नहीं, तेनो पार नथी.
“पर्यायार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करी” दईने जयारे सर्वथा
बंध करी दईने (एटले शुं के) ई तो पर्यायने जोवानी चक्षु सर्वथा बंध करी, पण द्रव्यने जोनारुं
ज्ञान उघडेलुं छे. आहा.. हा! एक लीटी! (समजे तो बेडो पार!) आहा... हा! जो तो खरो प्रभु! तुं
कोण छो? आहा.. हा! सामान्य - विशेषमां पण. विशेषनी आंख्युं सर्वथा बंध करी दीधी. एटले के
विशेषने जोनारी आंखने सर्वथा बंध करी. पण विशेषमां स्वने जोनारी आंख तो उघडी गई (छे.)
आहा... हा... हा! समजाय छे कांई? ते (पर्यायचक्षु) बंध थई पण “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक
चक्षु वडे”
स्वने जोवानो भाव - एकला द्रव्यने जोवानो भाव उघडी गयो छे. वस्तु छे तेने जोवानो
भाव रही गयो छे. थई गयो छे. आहा... हा! पर्यायने जोवानुं ज्यां बंध कर्युं. त्यां द्रव्यने जोवानुं
(ज्ञान) उघडी गयुं छे. आहा... हा! जाणनारो छे ई जाणनारो - एने पर्यायमांथी अंधारुं थई जाय
एम तो छे नहीं. हें? भले कहे छे के पर्यायने (जोवानी चक्षु) सर्वथा तें बंध करी - तारी पर्यायने
जोवानी सर्वथा बंध करी - परनी वात तो छे ज नहीं. आहा...! परनी चीज के पर्यायने जोवानी तो
वात ज नथी. अहींया तो पोतानी पर्याय (सहित) पांच पर्याय लेशे. नारकी -तिर्यंच - मनुष्य -
देव अने सिद्ध पर्याय - ए पांच पर्यायो. (पोतानी) परनी नहीं. पण ए (जीवद्रव्य) पोतानी पांच
पर्यायमां वर्ते छे तेने जोवानुं बंध करी दईने... आहा... हा! भगवान! वात बीजी छे! आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” जोयुं? ई टाणे द्रव्यार्थिक चुक्ष छे.
छे तो ई ए पर्याय. समजाय छे कांई? हवे आ कहे के अमे प्रवचनसार वांची गया! तो एक जणो
वळी कहे महाराज समयसारना (बहु वखाण करे छे तो हुं तो) पंदर दि’ मां वांची गयो! पण बापुं!
ए एक कडीनो के एक शब्दनो पार न मळे भाई! (भावो ब्रह्मांडना भर्यां) आहा..! ई परमात्मानी
आ वाणी छे! दिगंबर संतोनी वाणी छे आ. केवळीना केडायतोनी आ वाणी छे! आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे जयारे अवलोकवामां आवे छे.”
पर्यायार्थिक (चक्षुने) सर्वथा बंध करी - पर्यायने जोवानुं सर्वथा बंध करी अने द्रव्यने जोनारी पर्याय
द्वारा जयारे द्रव्यने अवलोकवामां आवे छे. समजाय छे कांई? आमां तो भाई! अमे जाणीए छीए
(पण) बापा पार न मळे! आहा... हा! प्रभुनी वाणी अने संतो दिगंबर मुनि! एटले के केवळीना
केडायतो! जेने केवळज्ञान प्रगटशे. पण कहे छे के पर्यायने जोवानुं (सर्वथा बंध करी दईने) आहा...
हा! अमारे तो द्रव्यने ज जोवुं छे - एम कहे छे. अने ते पर्यायने जोवानी (सर्वथा) बंध करी दईने
कीधुं तो जोवानी पर्याय रही के नहीं? पर्यायने जोवानुं बंध करी दीधुं एटले द्रव्यने

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२१
जोवानुं ज्ञान उघडी गयुं! आहा... हा! रमणिकभाई! आवी वात आवी! आहा... हा! “एकला
उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” एटले बे (चक्षु) थयाने! ओलाने बंध करीने अने आने उघाडेला
वडे. आहा... हा! “एकला उघाडेला” द्रव्यार्थिक एटले पोताना पुरुषार्थथी उघाडेला एम. आहा...
हा! पर्यायने जोवानुं ज्यां बंध कर्युं आहा.. हा! त्यां द्रव्य जोवानी पर्याय उघडी गई!! आहा.. हा!
रतिभाई! आवी व्याख्या छे, आवी वस्तु छे.
(कहे छे केः) एम के समयसार! बापा आ तो प्रवचनसार! नियमसार अष्टपाहुड -
(एमां) अलौकिक वातुं छे! आहा... हा! ए कंई एम ने एम मळे एवुं नथी. आहा... हा! पहेलेथी
ज कहे छे के पर्यायने जाणवानुं (बंध करी दईने.) आहा.. हा! (पर्याय) एने तो बंध करी दई जोवुं
त्यारे एक बंध कर्युं त्यारे एक उघडे ज ते. आहा... हा! कहेवानो आशय एवो छे के पर्यायद्रष्टि ज्यां बंध
करी, त्यां द्रव्यद्रष्टि - द्रव्यने जोवानी उघडेलुं ज्ञान थयुं. उघडेलुं द्रव्यार्थिक चक्षु आहा..हा! ए वडे “जयारे
अवलोकवामां आवे छे, त्यारे नारकपणुं, तिर्थंचपणुं, मनुष्पणुं, देवपणुं अने सिद्धपणुं – ए
पर्यायोस्वरूप”
हवे विशेषने कहेशे. “विशेषोमां रहेला” ए विशेषो छे पण ए विशेषमां रहेल
सामान्य छे. आहा.. हा! पर्यायोने जोवानुं बंध करीने ‘आ’ जोवानुं छे. आहा.. हा!
“ए पर्यायो
स्वरूप विशेषोमां रहेला” (अर्थात्) “पर्यायो स्वरूप विशेषोमां रहेलां.” आहा.. हा! परमां रहेला
नहि पण फकत तारी जे पर्यायो - ए पांच प्रकारनी, चार गतिनी ने पांचमी (सिद्धनी) ए पांच
पर्याय विशेष छे. एमां रहेला
“जीवसामान्यने” एनी संधि तो करी. “ए पर्यायोस्वरूप विशेषोमां
रहेला (एक) जीवसामान्यने” एवुं जे जीवसामान्यने - कहेवुं छे तो सर्व द्रव्यो सामान्य - विशेष
छे पण लोकोने समजाय तेथी जीवद्रव्यनो द्रष्टांत आप्यो. समजाणुं? बाकी बधा द्रव्योने विशेषने
जोनारो तो छो ने तुं? एटले विशेषता तो आवी गयो तुं. समजाणुं कांई? ए विशेषोमां रहेलो जे
सामान्य. जे (पर्यायने) जोवानी आंख्युं हती तेने बंध करी दईने. छतां ते पर्यायमां रहेलो जीव
(सामान्य) आहा... हा.. हा! समजाणुं कांई?
(अहींयां कहे छे केः) “ए पर्यायो “स्वरूप विशेषोमां रहेला (एक) जीवसामान्यने
अवलोकनारा” ‘एक’ ‘जीव’ ‘सामान्यने’ अवलोकनारा - अवलोकन छे तो पर्याय, पण जोनार
जुवे छे द्रव्यने (सामान्यने) आहा... हा! (‘समयसार’) ३२० गाथामां कह्युं ने...! छेल्ला जयसेन
आचार्ये! (टीकामां छे ने...!) -
जे सकलनिरावरण – अखंड – एक – प्रत्यक्ष – प्रतिभासमय –
अविनश्वर – शुद्धपारिणामिक – परमभाव लक्षण – निजपरमात्मद्रव्य ते ज हुं छुं – एम पर्याय जाणे
छे.
केमके ‘आवुं द्रव्य हुं छुं’ - एम जाणवुं (कार्य) द्रव्यने छे नहीं. पर्यायमां जाणवुं (कार्य) थाय छे.
तेथी पर्याय एम कहे छे के “हुं तो आ छुं’ निजपरमात्मद्रव्य ते ज हुं छुं. भले विशेषोमां रहेलो छुं,
पण छुं आ -एम पर्याय जाणे छे. एज कहे छे के -
“जीवसामान्यने अवलोकनारा अने विशेषोने
नहि अवलोकनारा ए जीवोने ‘बधुं य

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२२
जीवद्रव्य छे’ एम भासे छे.” लो! त्यां (३२० गाथामां) जे कह्युं छे, बधे एक ज वात छे.
(कहे छे केः) जोनारी पर्याय एक सामान्यने जोयुं - बीडाई गयेली पर्याय - बंध थई
गयेली पर्याये अने ते बंध थई एटले उघडेली द्रव्यार्थिक पर्याय (थी) सामान्यने जोतां (बधुं य
जीवद्रव्य छे एम भासे छे) आहा.. हा! बे - त्रण लीटीमां केटलुं नांख्युं छे! अपार वात छे बापु!
कोई साधारण वात नथी. आ तो दिगंबर संतोनी वाणी छे! क्यां’ य छे नहीं. (बीजे) क्यां’ य छे
नहीं. एमां रहेलुं तत्त्व, ते तत्त्वने जाणनार. (चक्षु) उघडयुं कहे छे. आहा... हा! ए पर्याय उपर
द्रष्टि हती त्यारे द्रव्यने जाणनारुं ज्ञान अस्त थई गयुं हतुं. आहा... हा! पण र्पायने जोवानुं ज्यां
सर्वथा बंध कर्युं आहा...! एटले तने अवलोकवानुं उघडयुं ज्ञान - ते विशेषोमां रहेलो जे
जीवसामान्य छे? (पाठमां) “विशेषोमां रहेला (एक) जीवसामान्यने” अवलोकनारा अने
विशेषोने न अवलोकनारा”
छे ने? सामुं पुस्तक छे के नहीं? आहा..! आ कंई कथा नथी प्रभु! (के
जे नारायण!) आ तो भागवतकथा छे. आहा.. हा! केना गर्व करवा? कोना अभिमान करवा
जाणवाना? भाई! परमात्मानी एक-एक गाथा! (अलौकिक छे!) बधुं रहस्य भर्युं छे प्रभु! ई
संतो जयारे एनी व्याख्या करता हशे, एनी व्याख्यानो पार न मळे! भगवाननी वाणीमां आव्युं
हशे एटलुं तो झीलाणुं नहीं. आहा.. हा! भगवाने जोयुं एनुं अनंतमे भागे कहेवायुं - दिव्यध्वनिनो
दिवस छे काल! काल आ शरू थयुं छे (आ गाथानुं व्याख्यान)
“दिव्यध्वनि छे आ”
दिव्यध्वनिमां आवेलुं छे आ. (आवे छे ने के..) “मुख ओंकार धुनि सुनि अर्थ गणधर विचारै, रचि
आगम उपदेश भविक जीव संशय निवारै.” आहा.. हा! अहींयां कहे छे के आगममां आवेली आ
वात जेणे जाणी छे अंदर, एने संशय रहेतो नथी, द्रव्यने - (जाणनार) उघडेलुं ज्ञान, ज्यां
विशेषोमां रहेला (शुद्धसामान्य) जीवने जोयो - सामान्यने जोयो (भाळ्‌यो) त्यां संशय रहेतो नथी.
मिथ्यात्वनो कोई अंश रहेतो नथी. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “अने विशेषोने नहि अवलोकनारा ए जीवोने” बधाय जीवो लीधा
ने..! एक ज जीव लीधो नथी. जे आ पर्याय चक्षुने बंध करीने द्रव्यार्थिक चक्षु वडे जुए छे एवा
बधा जीवोने ‘ते बधुंय जीवद्रव्य छे.’ आहा.. हा! अरे.. रे! पांचमा आराना प्राणीने (जीवने) पण
आम छे एम कहे छे. पंचमआराना संत (पंचमआराना) श्रोताने एम कहे छे. आहा.. हा! ताराथी
न थाय एम कहेता नथी अहींयां (मुनिराज) आहा... हा! ‘मने न समजाय’ ए वात मूकी दे.
पर्याय छे एने जाणवानुं बंध करी दे, हुं नहीं जाणी शकुं - नहि जाणुं ए प्रश्न ज क्यां छे? (एम
आचार्य) कहे छे. आहा.. हा! एवा
“विशेषोने नहि अवलोकनारा ए जीवोने” जीवने नथी लीधुं.
(बहुवचन लीधुं छे) एवा जीवोने, आहा.. हा! पंचमआराना संत सामे (बेठेला) बधाय जीवोने -
(केजे) पर्यायचक्षुने (सर्वथा) बंध करीने एकला उघडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे अवलोकनारा एवा
पंचमआराना जीवोने - चोथा आरानी वात छे आ? आहा... हा!

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२३
“ते बधुं य जीवद्रव्य” एम भासे छे.” आहा... हा!
(कहे छे केः) (पंचमआरामां समकित) ओलुं पडशे, आ तो फलाणा श्लोक (मां कह्युं छे.)
आ (द्रव्यद्रष्टि) पडशे त्यां ऊभो थई जईश अंदर जो तो खरा! उघडेलुं ज्ञान ज्यां पर्याय (चक्षुने)
बंध करीने थयुं अंदर, त्यां भगवान तने भळाशे. (देखाशे.) आहा... हा! भगवाननो तने भेटो
थशे. ए भगवान छानो नहीं रहे. आहा... हा! गजब वात छे! चार लीटी! आहा!
“एवा
जीवोने” - अवलोकनार जीवने एम नथी लीधुं (“एवा जीवोने” लीधुं छे). ए पंचमआराना
प्राणीने कहे छे. प्रभु! तुं आवो छो ने...! अने पर्यायचक्षुने बंध करीने जोनारा घणा जीवोने (“–ए
पर्यायोस्वरूप विशेषोमां रहेला जीवसामान्यने अवलोकनारा अने विशेषोने नहि अवलोकनारा”)
ए जीवोने
“ते बधुंय जीवद्रव्य छे.” पर्यायनुं लक्ष छूटी गयुं. छे. आखो जीवद्रव्य छे आ तो. आहा..
हा!
(अहींयां कहे छे केः) द्रव्यार्थिक नयना उघडेला ज्ञानथी विशेषमां रहेनारा सामान्यने
अवलोकन करनारने “ते बधुंय जीवद्रव्य छे’ एम भासे छे.” छे? (पाठमां) आ जीवद्रव्य छे एम
भासे छे. आहा... हा! काले आव्युं’ तुं थोडुं! आ तो तमे आव्या तो जरी फरीने लीधुं. आ (नो)
तो पार न मळे बापा! गमे तेटली वार लो ने...! आहा.. हा! एना भावनी गंभीरता! (अपूर्व.)
एना भावनी अपरिमितता! (अथाग) (श्रोताः) परम परमेश्वरनी वात... (उत्तरः) हो! परमेश्वर
थवानी ज वात छे.
(कहे छे केः) “ते बधुंय जीवद्रव्य छे” एम कीधुं ने..! आहा..! एम कीधुं ने..? ‘ते बधुंय
(जीवद्रव्य छे) एटले पांच पर्यायो (स्वरूप) जीव नथी. एक पर्याय (जेवडो) जीव नथी. आहा..
हा! अरे... रे! आवी वात क्यां मळे? भगवानना विरह पडया!! वाणी रही गई!! वाणीए विरह
भूलाव्या!! हें? (वळी) वाणीए विरह भूलाव्या (भगवानना.) आहा... हा! एक
‘जीवसामान्यने
अवलोकनारा’ - एक ज जीवसामान्यने जोनारा अने विशेषोने नहि अवलोकनारा - (जोयुं?)
बहुवचन छे.
पंचमआराना जीवो पण घणा आ प्रमाणे अवलोकशे. आहा.. हा! (एम आचार्यदेव
कहे छे.) विश्वास–विश्वास लाव, तारामां ताकात छे, प्रभु! तुं पूरण वीर्यथी भरे लो प्रभु! सुखना
सागर, जळनुं (दळ), सुखनो सागर! ए सुखनुं जळ, ए भरेला भगवानने तुं जो! आहा... हा!
तने त्यां ‘जीवद्रव्य’ ते बधुं य छे तेम भासरो. (देखाशे.)
छे? (पाठमां) आहा.. हा!
(कहे छे) प्रभु! तुं स्त्रीं-पुरुष के नपुंसक नथी. तुं ए शरीरने अने लृगडांने अने आकृतिने
न जो परने जोवानी ज वात बंध करी दईने - आ स्त्रीनुं शरीर छे ने आ पुरुषनुं शरीर छे ए

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२४
तो (जोवानी) वात ज बंध करी दे. एम कहे छे (उपरांत) पोतानामां जोवामां पण (तारी) पर्यायने
जोवानुं बंध करी दे. (द्रव्यार्थिक नयनी आंखथी तने जो.)
‘आ वस्तु’ ‘आ सिद्धांत’
(त्रिकाळाबाधित छे.) आहा...! “बधुंय जीवद्रव्य छे” आ बधुं य जीवद्रव्य छे एम भासे छे. कहे छे
(के) भासे छे. एम कीधुं छे ने...? घणा जीवोने ने...? उघडेली आंखथी ने...? बंध करी आंख एक
(पर्यायनी ने?) ए बंध करी अने (बीजी) उघडेली आंखथी (जुए छे एने ने?) “ते बधुंय
जीवद्रव्य छे’ एम भासे छे.”
आना पछी सप्तभंगी आवशे. एकसो पंदरमां. आ तो अहींथी... आ
तो कुंदकुंदाचार्यनी वाणी! साक्षात् भगवान पासे गया हता. आहा..हा! अने एनी टीका करनार
अमृतचंद्राचार्य! ई भगवान पासे गया’ ता. भगवान (पोतानो) कुंदकुंदाचार्यदेव पण पोताना अने
सीमंधरदेव पासे गया’ता. आहा..हा! ए अमृतचंद्राचार्य आ कहे छे. श्लोकमां तो (मूळ गाथामां तो)
आटलुं ज छे.
दव्वठ्ठिएण सव्वं दव्वं तं पज्जयठ्ठिएण पुणो पर्यायथी पर्याय सिद्ध थई छे. हवदि य
अण्णमणण्णपर्यायथी अन्य छे, अन्य छे. (तक्काले तम्मयत्तादो) द्रव्यथी अनन्य छे. पर्याय
अपेक्षाए अन्य-अन्य छे, वस्तुथी अनन्य छे. अनेरो-अनेरो नथी. आहा..हा! आवी वातुं पर्याय
अपेक्षाए अन्य-अन्य छे, वस्तुथी अनन्य छे. अनेरो-अनेरो नथी. आहा...हा! आवी वातुं
तक्काले
तम्मयत्तादो ते काळे ते ते पर्यायमां-विशेषमां छे. पण विशेषने न जोतां सामान्यने जोवा जा तुं बापु!
- जेमां अतीन्द्रिय सुखनो सागर ऊछळे छे. जे इन्द्रियगम्य नथी. विकल्पगम्य नथी. पर्यायचक्षुथी गम्य
नथी. आहा... हा! जे द्रव्यार्थिक चक्षु वडे ज जणाय (एवुं) तत्त्व छे. आहा... हा!
(कहे छे केः) (पेलामां आव्युं ने...! (गाथा) एकसो तेरमां. “अने पर्यायोनो द्रव्यत्वभूत
अन्वयशक्ति साथे गूंथायेलो (–एकरूपपणे जोडायेलो) जे क्रमानुपाती (क्रमानुसार) स्वकाळे
उत्पाद थाय छे.”
छे एकसो तेरनी टीका (मां). “जे क्रमानुपाती - क्रमानुसार ने ते काळे (स्वकाळे)
उत्पाद थाय छे ए विशेषने जोवानी आंख्युं बंध करी दे. आहा.. हा.. हा! स्वकाळे ते तेनी पर्याय
थशे ज. ए ‘काळ’ ते नककी थई गयेलो ज छे. तेनी ‘जन्मक्षण’ छे. आहा.. हा! पण ते पर्यायने
जोवानुं बंध कर. आहा... हा! स्वकाळे पर्याय उत्पन्न थशे ज. छतां तेने जोवानुं बंध करी, बंध करी
एटले बंध ज थई गई - जोवानुं (बंध थई गयुं) एम नहीं. पर्यायनयने जोवानुं तें सर्वथा बंध
कर्युं एवी हवे एने पर्यायमां कंई जाणवानुं रह्युं नहीं एम नहीं. आहा.. हा! पर्यायने जोवानुं ज्यां
सर्वथा बंध कर्युं त्यारे द्रव्यार्थिक नयथी उघडेलुं ज्ञान, ए ज्ञान वडे ते जाणवामां आव्यो. आरे...!
आवी वातुं कया छे? बहारनी वातुं - क्रियाकांड अरे प्रभु! तारो ज्यां भवनो अंत न आवे (ए
वातमां शुं सार छे के तुं त्यां रोकाणो!) आहा..! चोराशीना अवतार! नरकना दुःखोनुं वर्णन
सांभळ्‌युं न जाय! बापु! तने जोतां आनंदनी व्याख्या ए कही न जाय एवो आनंद आवशे तने.
आहा.. हा! उघडेला ज्ञान वडे द्रव्यने! जोतां - पहेलुं ए ज्ञान बंध हतुं पर्यायद्रष्टिमां (बंध हतुं
उघडेलु नहोतुं) परनी द्रष्टिमां नही आहा...हा! अवस्थाने जोनारी तारी द्रष्टि तने जोती नहोती
(तारा द्रव्यने जोती नहोती.) आहा.. हा! ई अवस्था (ने जोवानी द्रष्टि) बंध करीने - तो पछी
कंई (जोवानुं) रह्युं के नहीं? भगवान ज्ञानमूर्ति प्रभु! केवळज्ञाननो कंद छे ने...! आ (पर्यायने

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२प
जोवानुं) बंध कर्युं तो पछी पर्यायमां कांई विकास रह्यो के नहीं? विकसित - चमत्कार जे वस्तु छे ए
बंध वखते पण प्रभु! परिचित नहि शके एम करीश मा सर्वज्ञ प्रभु! परिचित परि एटले समस्त
प्रकारे ने चिद् एटले ज्ञान - परिचित एटले सर्वज्ञ! आनो परिचय! ओलुं ‘श्रुतपरिचिता
अनुभूताः’ ए नहीं गुलांट खाईने आम परिचित थाय छे. पहेलो परिचित रागने एनो परिचय छे,
पर्यायद्रष्टिनो परिचय छे. आहा.. हा! गुलांट खाय छे. त्यारे द्रव्यने जोनारी आंख्युं वडे जोतां त्यारे
परिचित नाम सर्वज्ञपणुं प्रगट थई जाय छे. परि + चित् छे. ई. परि नाम सर्वथा प्रकारे (चित्)
नाम जोवुं ज्ञानने. परने जोवुं नहीं. ज्ञानने जोवुं हों? भाई! आहा.. हा! आवी वातुं छे.
(अहींयां कहे छे केः) “ते बधुंय जीवद्रव्य छे” एम भासे छे.” ते बधुंय जीवद्रव्य छे. एम
भासे छे. आंही सुधी तो पर्यायने जोवानुं बंध करीने अने बंध थई एटले उघडयुं ज्ञान, द्रव्यने
जोवानुं उघडया विना रहे ज नहीं. आहा... हा! जेणे पर्यायने जोवानुं चक्षु बंध करी, एने स्वने
जाणवानुं उघडेलुं ज्ञान उघडया विना रहे ज नहीं. (ए ज्ञान उघडे ज.) आहा.. हा! अने ए उघडेला
ज्ञान वडे (एटले) द्रव्यार्थिक नय वडे - द्रव्यार्थिक नय पण ज्ञान छे ने..! नय छे ने...! ई तो
ज्ञाननो अंश छे ने...! द्रव्यार्थिक एटले द्रव्यने (जोनारुं) ज्ञान, द्रव्यार्थिक नयथी जोनारुं द्रव्य (छे.)
आहा... हा! ए उघडेलुं ज्ञान ते द्रव्यार्थिक नय छे एनाथी जोतां द्रव्य जोवाय. (देखाय.) आहा.. हा!
लखे छे ने...? पाछुं नाखशे, आतमधरममां आवशे ई. आहा.. हा! हवे आ जयारे भास्युं त्यारे हवे
पर्यायने जाणवानुं यथार्थ ज्ञान थयुं. पहेली द्रव्यार्थिक (नय) ने बंध करीने पर्यायने जोवानुं नथी
कीधुं. (परंतु) पर्यायार्थिक चक्षुने (सर्वथा) बंध करीने द्रव्यार्थिक चक्षु वडे जो. (एम कीधुं छे.) अने
द्रव्य भास्युं त्यारे हवे पर्यायने जाणवानुं यथार्थ ज्ञान थयुं. पहेली द्रव्यार्थिक (नय) ने बंध करीने
पर्यायने जोवानुं नथी कीधुं. (परंतु) पर्यायार्थिक चक्षुने (सर्वथा) बंध करीने द्रव्यार्थिक चक्षु वडे जो.
(एम कीधुं छे.) अने द्रव्य भास्युं त्यारे पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान थयुं. को’ समजाणुं कांई?
(अहींयां कहे छे केः) “अने जयारे द्रव्यार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करीने” जे देखवामां आव्युं
छे. पण तेना तरफनुं लक्ष छोडी दई अत्यारे आहा.. हा! सामान्य जीव “आ बधुंय छे’ ‘आ बधुंय
छे’ एवुं ज्ञान थयुं छे. छतां ते तरफनुं जोवुं बंध करी पर्याय पण तारी छे - तारामां छे एने जोवा
माटे आ (चक्षु- द्रव्यार्थिकनय) बंध कर. आहा... हा! बहु झीणी वात छे भाई चंदुभाई! गंभीर छे
बापु! परमात्मानी वाणी! दिगंबर संतोनी वाणी! श्वेतांबरमां तो कथन पद्धति य मिथ्याद्रष्टि थया
पछी करे छे आरे! प्रभु! आकरुं लागे! शुं थाय? आ वात छे आकरी! आहा... हा... हा! ज्यां
केवळज्ञान रेलाय छे आम!! अल्पकाळमां केवळज्ञान थवानी तैयारीवाळुं छे ज्ञान! आहा.. हा!
छतां कहे छे पर्यायने जोवानुं – तारी पर्यायने जोवानुं बंध करी दे.
अने हवे, द्रव्यार्थिक (चक्षुने) बंध
कर. जोवाई गयुं - जणाई गयुं! पण ते तरफनुं लक्ष बंध कर. समजाणुं...? आहा... हा.. हा!
“द्रव्यार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करीने.” एटले तेना तरफनुं लक्ष छोडी दईने “एकला उघाडेला
पर्यायार्थिक चक्षु वडे”
ओलामां “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” हतुं. पहेली लीटीमां.
आमां “एकला उघाडेला पर्यायार्थिक चक्षु वडे”

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प२६
पर्यायपण एनामां छे ने...? एमां (पर्यायमां) वर्तुतुं द्रव्य छे ने...! परने ने एने कांई संबंध नथी.
ए वात अहींयां सिद्ध करवा (कहे छे) पर्याय एनी छे पण परने ने एने कांई संबंध नथी. आहा...
हा!
(कहे छे केः) अहींयां केवळज्ञान थयुं माटे वज्रनाराय (संहनन) हतुं माटे थयुं, अरे चार
ज्ञान ने मोक्षनो मारग हतो माटे केवळज्ञान थयुं - एमे य नहीं. आहा... हा! पर्यायने अंदर भले
जो. कहे छे. पण ई पर्याय पर्यायथी सिद्ध छे हों? नारकी - तिर्यंच - मनुष्य - देव ए चार गतिनी
ने सिद्धपर्याय - ए पांच पर्याय छे. छे? (पाठमां)
“एकला उघाडेला पर्यायार्थिक चक्षु वडे
अवलोकवामां आवे छे, त्यारे जीवद्रव्यमां रहेला” जोयुं? ए विशेषोमां रहेला (एम) हतुं पहेलामां.
“ए पर्यायोस्वरूप विशेषोमां रहेला” न्यां एम हतुं. हवे अहींयां “जीवद्रव्यमां रहेला” (कह्युं.)
द्रव्यमां रहेला!! आहा... हा! पर्यायनो संबंध (बताववो) छे ने...! परनी हारे कांई संबंध नथी
(एम बताववानुं जोर छे.) आहा.. हा!
(अहींया कहे छे केः) “त्यारे जीवद्रव्यमां रहेला नारकपणुं, तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं, देवपणुं
अने सिद्धपणुं–ए पर्यायोस्वरूप अनेक विशेषोने अवलोकनारा अने सामान्यने नहि
अवलोकनारा”
लक्ष ए परथी छोडीने एकलुं पर्यायनुं लक्ष हों? आहा...हा..हा! “एवा ए जीव ने
(ते जीवद्रव्य) अन्य अन्य भासे छे.”
पर्यायद्रष्टिमां एकरूप बधुं भासतुं हतुं. हवे अन्य द्रव्य छे
अन्य पर्याय छे अन्य अन्य भासे छे. हवे अनेरी-अनेरी-अनेरी, अन्य, अन्य, अन्य...अन्य...
अन्य...अन्य... अन्य भासे छे.
विशेष कहेशे...