Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 10-07-1979.

< Previous Page   Next Page >


Combined PDF/HTML Page 40 of 44

 

Page 505 of 540
PDF/HTML Page 514 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प०प
प्रवचनः ता. १०–७–७९.
‘प्रवचनसार’ गाथा - ११४.
“हवे एकद्रव्यने अन्यत्व अने अनन्यत्व होवामां जे विरोध तेने दूर करे छे. (अर्थात् तेमां
विरोध नथी आवतो. एम दर्शावे छे)ः–
एटले शुं? केः सामान्यपणे द्रव्य तेनुं ते ज छे, अने विशेषपणे द्रव्य भिन्न-भिन्न अन्य-
अन्यपणे छे. छतां ते अनन्य छे. सामान्यथी जुदुं नथी (विशेष.) अन्य-अन्य अवस्था होवा छतां
अनन्य छे. आहा... हा! आवी वात! दरेक द्रव्य (नी वात छे.) दाखलो जीवनो आपशे. पण दरेक
द्रव्य, सामान्य छे ए तो तेनुं ते ज छे. विशेष छे (ते) अन्य-अन्य छे. छतां ते विशेष - पर्याय ते
स्वकाळे, अन्य-अन्य होवा छतां द्रव्यथी अनन्यमय छे. द्रव्यथी जुदी नथी. आहा... हा... हा! आ तो
दरेक द्रव्यनुं स्वरूप (आवुं छे.) आत्माने परद्रव्य हारे कांई संबंध नथी. आहा... हा! (आत्माने)
कर्मनी हारे, शरीरनी हारे, देशनी हारे, कुटुंब हारे, आबरु हारे, पैसा हारे, पगार हारे, (पुत्र-
पुत्रीओनी हारे) कांई संबंध नथी. दरेक द्रव्य (नुं) पोतानुं स्वरूप कायम रहीने, अनेरी-अनेरी,
अन्य-अन्य अवस्था थाय, ए अपेक्षाए अन्य पण कहेवाय, अने एनी ने एनी (अवस्थाओ) छे
माटे अनन्य छे. एनी छे - ए द्रव्य पोते ज पर्यायपणे आव्युं छे. आहा...हा...हा! आवी वात!
आवी वहेंचणी (दरेके-दरेक द्रव्यनी!) आखी दुनियानी वहेंचणी थई गई! आहा...हा!
अहींयां बधा द्रव्यनी वात छे. दाखलो जीवनो आपशे.
दव्वट्ठिएण सव्वं दव्वं तं पज्जयट्ठिएण पुणो ।
हवदि य अण्णमणण्णं तक्काले तम्मयत्तादो ।। ११४।।
द्रव्यार्थिके बधुं द्रव्य छे; ने ते ज पर्यायार्थिके;
छे अन्य, जेथी ते समय तद्रूप होई अनन्य छे. ११४.
टीकाः– आहा... हा! तत्त्वज्ञान एटलुं सूक्ष्म छे के पर्यायमां जीवने, नारकीआदि (नी पर्याय)
होवा छतां, ते अन्य-अन्य होवा छतां, ते अनन्य छे. आत्मानी साथे ए पर्यायोनुं तन्मयपणुं छे.
आहा... हा! चाहे तो हिंसाना परिणाम हो, (चाहे) दयाना हो, पूजाना-भक्तिना परिणाम,
रौद्रध्यानना परिणाम हो - ए परिणाम द्रव्यनी पर्यायमां छे. अनेरी-अनेरी अवस्था (ओ)

Page 506 of 540
PDF/HTML Page 515 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प०६
होवाथी अन्य पण कहेवाय छे. अने आत्मा तेमां वर्ते छे माटे अनन्य पण कहेवाय छे. आहा... हा!
परनी हारे कांई संबंध नहीं. पर अन्य छे ए जुदी चीज. अने द्रव्यनी पर्याय अन्य-अन्य थाय छे
ए जुदी चीज. आहा... हा! दरेक द्रव्यनी पर्याय अन्य-अन्य थाय छे. छतां ते अनन्य छे. अन्य छे
ते अनन्य छे. बीजा पदार्थो अन्य छे ए अनन्य नथी ए तद्न भिन्न छे. आहा... हा! समजाय छे?
(अहींयां कहे छे केः) “टीकाः खरेखर सर्व वस्तु”. जोयुं? द्रव्य शब्द न आपतां वस्तु कीधी.
सर्वस्य हि वस्तुनः केम के एमां वसेली शक्तिओ छे अनंत. दरेक द्रव्य-जीव कहो के परमाणु कहो के
आकाश कहो (धर्मास्ति, अधर्मास्ति, काळ कहो). वस्तु केम कीधी? के एमां (छए द्रव्योमां) अनंत
अन्वयी गुणो वसेला (ते केटला छे?) अनंत-अनंत अत्यंत अनंत! आहा... हा! चाहे तो आत्मा
हो के आकाश हो के चाहे परमाणु हो (तेमां) अनंत-अनंत अत्यंत अनंत गुणथी भरेली (वस्तु)
छे माटे तेने वस्तु कीधी. वस्तुमां वसेली शक्तिओ छे. ए पोतानी छे. ए शक्तिओ बीजानी
शक्तिओमां वसे अने बीजानी शक्ति अहींयां आवे एम नथी. आहा... हा! (जीवने) नजीकमां
नजीकनुं शरीर, नजीकमां नजीकनो दीकरो, स्त्री के कुटुंब - छतां ई चीज तद्दन जुदी (छे.) एनुं
विशेषपणुं (दरेक) द्रव्यनुं अन्य-अन्य होवा छतां, ते द्रव्यथी अनन्य छे, ते (कांई) जुदी नथी ते
पर्यायो. जेम जुदुं द्रव्य तद्दन अन्य छे एम आ पर्याय अनेरी-अनेरी थाय, माटे (तद्दन) अन्य ज
छे एम नहीं. (पर्याय अपेक्षाए) अन्य (अन्य) पण कहेवाय छे. (केमके) पहेली नहोती ने थई
ए अपेक्षाए. (परंतु) द्रव्य एमां वर्ते छे माटे अनन्य पण छे. आहा... हा! आवुं छे
(वस्तुस्वरूप!) को’ चीमनभाई! झीणुं छे भाई!
(अहींयां कहे छे केः) “खरेखर सर्व वस्तु” एक वस्तु न कीधी. (सर्व वस्तु कीधी.) अनंत
- अनंत वस्तु “सामान्य–विशेषात्मक होवाथी” दरेक - अनंत वस्तु पोते पोताथी सामान्य -
विशेष (होवाथी) सामान्य (विशेष) एटले द्रव्य तरीके सामान्य अने पर्याय तरीके विशेष. ई देरक
द्रव्यनुं स्वतः सामान्य-विशेषस्वरूप छे. आहा... हा! ए विशेषपणुं-जेम सामान्यपणुं एकरूप स्वनुं छे
एम विशेषपणुं परना संयोगे थाय छे के परथी थाय छे? एम नथी. ए विशेष अवस्था दरेक द्रव्यनी
ते ते समये, पहेलां नहोती ने थई, माटे ते अनेरा द्रव्यना संबंधे थई एम नथी. आहा... हा! आम
अन्यने एकदम’ अकस्मात बीजी लागे पर्याय! छतां ते पर्याय, पहेली नहोती (ने थई) अपेक्षाए
- विशेषपणे जोईए तो ते अन्य छे. पण ते विशेषपणुं - सामान्य त्यां वर्ते छे माटे सामान्यथी
अनन्य छे. सामान्यथी (ते) जुदी चीज नथी. आहा...! जेम बधी चीजो तद्दन जुदी छे (एम आ
पर्याय जुदी नथी वस्तुथी.) आहा... हा! एक आत्माने अने बीजा आत्माने कांई संबंध नथी.
सामान्यपणे बेय एक ने विशेषपणे जुदा एमेय नथी, परनी हारे. आहा... हा! अथवा सामान्यपणे
जुदा ने विशेषपणे एक, एमे य नथी. शुं कीधुं ई? अनंत जे आत्माओ अने अनंत परमाणुओ छे.
ए सामान्यपणे जुदा अने विशेषपणे एक एमेय नथी, तेम सामान्यपणे जुदा छे

Page 507 of 540
PDF/HTML Page 516 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प०७
माटे (दरेक वस्तु पोतानी) पर्यायथी पण जुदी नथी. (पर्यायपणे अन्य पण (वस्तुपणे) अनन्यत्व
छे. सामान्य द्रव्यथी ते ते पर्यायनो काळ - स्वकाळ, ‘क्रमानुपाती’ काल आवी गयुं छे. (गाथा-
११३मां) ते समये, ते पर्याय क्रमे-स्वकाळे क्रमानुसार आववानी ते आवी, तेथी तेने पहेली पर्यायनी
अपेक्षाए अन्य कहीए. पण वस्तुनी अपेक्षाए अनन्य छे. आहा... हा... हा! ए पर्याय कोई बीजा
(द्रव्य) थी थई छे (एम नथी.) आहा...! आ वात बेसवी (आकरी छे.) भाषा! भाषा तो भले
सहेली छे. आहा...! पण एनो ‘भाव’ कठण छे!! ‘कळशटीका’ मां (कळश-६०मां) कह्युं छे
[प्रश्नः
साम्प्रत (हालमां) जीवद्रव्य रागादि अशुद्ध चेतनारूपे परिणम्युं छे त्यां तो एम प्रतिभासे छे के
ज्ञान क्रोधरूपे परिणम्युं छे. तेथी ज्ञान भिन्न, क्रोध भिन्न – एवुं अनुभववुं घणुं ज कठण छे. उत्तरः
आम छे के साचे ज कठण छे, परंतु वस्तुनुं शुद्ध स्वरूप विचारतां भिन्नपणारूप स्वाद आवे छे.
]
कळशटीकामां कहे छे भई कठण छे, भाई! खरेखर कठण तो छे. पण स्वरूपनुं वेदन करतां, वेदन
परथी जुदुं जणाय छे. कठण तो छे. पण, भगवान आत्मा, सामान्यपणे द्रव्य जे छे तेने जोतां -
जोनारी पर्याय भले एनी - पण ए जुए छे सामान्यने, अने ते पर्याय एम माने छे (जाणे छे) के
हुं तो अखंड एकस्वरूपे बिराजमान छुं. पर्याय एम जाणे छे. आहा... हा! केम के पर्यायनो विषय जे
छे - एकलो पर्यायनो विषय पर्याय न रहेतां, पर्यायनो विषय त्रिकाळी द्रव्य (थाय) छे. आहा...
हा... हा! त्रिकाळी द्रव्य वस्तु जे छे महाप्रभु! (ए पर्यायनो विषय थाय छे.) अहींयां दाखलो
जीवनो आपशे. वात सर्वद्रव्यनी कहेवी छे. द्रष्टांत जीवनुं आपशे. लोकोने ख्यालमां आवी शके माटे
(जीवनुं द्रष्टांत आपशे.)
(अहींयां कहे छे केः) “खरेखर सर्व वस्तु सामान्य–विशेषात्मक होवाथी.” एटले एनो अर्थ
(ए) के कोई चीज कोईथी बनेली छे, कोई ईश्वर कर्ता छे, के एक द्रव्य (नी) पर्याय करी शके छे
एवुं कांई नथी. आहा...हा...हा! ‘सर्व द्रव्यो’ एटले
“सर्व वस्तु सामान्य–विशेषात्मक होवाथी”
कायम रहेवानी अपेक्षाए सामान्य, अने पलटवानी अपेक्षाए विशेष - नहीं पलटवानी अपेक्षाए
सामान्य, (ने पलटवानी अपेक्षाए विशेष.) आहा...हा! दरेक वस्तु नहीं पलटवानी अपेक्षाए
सामान्य, पलटवानी अपेक्षाए विशेष. बे (पडखां) थईने एनुं स्वरूप (ज) ए बे (पडखांमां) छे.
परनी हारे एने कांई संबंध नथी. आहा...हा!
(प्रश्नः) वहाला दीकरा होय, वहाली स्त्री होय एनी
हारे कांई संबंध नहीं? आहा...हा! (श्रोताः) दीकरो तो परमां छे. आत्माने दीकरो केवो? (उत्तरः)
पण सुमनभाई जेवो छोकरो होय लो (तमारे.) आठ आठ हजारनो पगार. (श्रोताः) आप तो ना
पाडो छो.
(उत्तरः) कोना दीकरा बापा? कोनो बापा कोनो दीकरो? आहा...! एनुं विशेष पण एक
समय टके. आहा...हा...हा! ते ते द्रव्यनुं विशेष पण एकसमय टके. तो बीजी चीज एनी छे क्यां
आवी प्रभु! आहा...हा...हा...हा! समजाय छे कांई?
(कहे छे) दरेक वस्तु, कायम रहेवानी अपेक्षाए तो भले ध्रुव छे पण क्षणिक अवस्थानी

Page 508 of 540
PDF/HTML Page 517 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प०८
अपेक्षाए एटले एक समय होय छे. छतां विशेष जे क्षणिक छे (ते) एक ज समय छे. एनी
(ध्रुवनी) छे छतां एक समय छे. अने तेने पूर्वनी पर्यायनी अपेक्षाए अन्य पण कहीए. अने
आत्मानी अपेक्षाए (आत्मा) अंदर वर्ते माटे अनन्य पण कहीए. परने अने आत्माने के परमाणु
ने के आत्मा, आत्माने के बीजा परमाणुने (कांई संबंध नथी.) आहा... हा! आ वात बेसवी
(आकरी बहु) लोकोने ई विचारेय क्यां? वखत न मळे ने क्यां (विचार) करे? ए दुनियानी
जंजाळमां? आहा... हा! (नकामो) वखत गाळी जिंदगी चाली जाय छे. अने पछी अवतार! घणांना
अवतार पशु थवाना, तिर्यंचमां जवाना. आहा... हा! कारण के धरम नथी, तेम आ शुं वस्तुं छे?
तेने समजवानो विकल्प पण विशेषे नथी, के दिवसमां बब्बे-चच्चार कलाक ए शुं चीज छे आ? तो
तो पुण्ये य बांधे. आहा... हा!
अहींयां कहे छेः ए “वस्तुनुं स्वरूप जोनाराओने अनुक्रमे (१) सामान्य अने (२)
विशेषने जाणनारां बे चक्षुओ छे (– (१) द्रव्यार्थिक अने (२) पर्यायार्थिक) एवी रीते ज लीधुं छे.
अनुक्रमे जोवामां सामान्य अने विशेष.
“ (१) द्रव्यार्थिक अने (२) पर्यायार्थिक.” एक साथे जोवानुं
पण लेशे. (ए प्रमाण.) (अहींयां) तो आटलुं लीधुं छे. पण एकसाथे जोवानुं पाछुं लेशे.
(अहींयां कहे छे केः) “तेमां, पर्यायार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करी.” आहा... हा! न्यांथी
ऊपाडयुं (जुओ) द्रव्यार्थिकने बंध करीने न्यांथी (ऊपाडयुं) नहीं. दरेक द्रव्यने जोवा माटे, पर्यायार्थिक
आंख्युं ने सर्वथा बंध करीने, पर्याय छे खरी. छे पण तेने जोवा तरफनी आंख्युं ने - द्रष्टिने बंध
करी. आहा... हा! हा! गजब वात छे!! पहेली तो कीधीः के सामान्य-विशेष वस्तु छे. पण
विशेषने जोवानी आंख्युंने बंध करी आहा... हा! छे? (पाठमां) ते पाछी कथंचित् बंध करीने एम
नहीं. “पर्यायार्थिक चक्षुेने सर्वथा बंध करीने” जाणवुं छे ने...! आहा... हा! “एकला उघाडेला
द्रव्यार्थिक चक्षु वडे”
एकली उघाडेली ज्ञाननी पर्याय (वडे) आहा... हा! “द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” द्रव्य
जेनुं प्रयोजन छे. द्रव्य
+ अर्थी (एटले) अर्थ = द्रव्य जेनुं प्रयोजन छे (ते द्रव्यार्थिक) ए नयथी
जोतां, विशेष नयनी आंख्युं बंध करी दईने. आहा... हा... हा! “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु
वडे” भाषा जोई? ओली तो (पर्यायार्थिक) बंध करी दीधी. अवस्थाने जोवानी आंख्युं ज बंध करी
दे. आहा... हा! तो तने सामान्य, अवस्थामां जणाशे. अवस्थाने जोवानी आंख्युं बंध करी दे अने
सामान्यने जो. तो पाछी जोनारी पर्याय तो रहेशे. आहा... हा! पण पर्यायनो जोवानो (विषय)
विशेष नहीं, सामान्य रहेशे. विशेषने-पर्यायने जोवानी आंख्युं सर्वथा बंध करी दे. आवी वात!
आहा... हा! बीजाने जोवानुं बंध करी दे ए वात तो एककोर (पडी रही) हें? आहा... हा!
(कहे छे केः) तारा सिवाय बीजा पदार्थो, चाहे तो भगवान त्रण लोकनो नाथ (के अन्य

Page 509 of 540
PDF/HTML Page 518 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प०९
छ द्रव्यो) एने जोवानी द्रष्टि ए कोई पर्यायार्थिक द्रष्टि के द्रव्यार्थिक द्रष्टि नथी हें? आहा... हा... हा!
फकत तारामां बे प्रकार छे. सामान्यपणुं (एटले) कायम रहेवापणुं अने बदलवापणुं - विशेषपणुं
(छे.) ई बदलवापणानी आंख्युंने बंध करी जई (उपरांत) परने जोवानी आंख्युंने बंध करी दई तो
नहीं ज ते (ई तो वस्तुमां छे ज नहीं.) आहा... हा... हा! गजब वात छे!! परने जोवानुं तो बंध
ज करी दे. आहा... हा.. हा! थोडे शब्दे घणुं छे हो प्रभु! आहा... हा!
(श्रोताः) खरेखर वस्तु छे...!
(उत्तरः) बहु वस्तु ‘आ’ छे! आहा... हा! पर्यायार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करी दई, एम न कह्युं के
परद्रव्यने जोवानुं बंध करी दई. आहा... हा... हा... हा! प्रभु! तारामां ज ज्यां छे बे (पडखां)
सामान्य ने विशेष. ई बे छे एमां ई विशेषने जोवानी आंख्युं सर्वथा बंध करी दईने - कथंचित्
बंध करीने ने (कथंचित्) उघाडीने अथवा गौण करीने ई (पण) अहींयां तो नथी (कीधुं) आहा...
हा! (श्रोताः) आप तो हमणां ज सम्यग्दर्शन थवानी वात करो छो...! (उत्तरः) हें? वस्तु ई छे.
त्रणलोकना नाथनी दिव्यध्वनि छे. आहा...! जगतना भाग्य छे, (आ) वाणी रही गई छे!
कुंदकुंदाचार्य तो निमित्त छे! आहा... हा! एने सांभळवानो ने विचारवानो अवसर लेवो नहीं. प्रभु!
तारे क्यां जावुं छे? क्यां रहेवुं छे?
अहींयां तो (कहे छे) पर्यायनी आंख्युं पण सर्वथा बंध करी दईने (एकला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे
जो.) आहा.. हा! बायडी-छोकरां जोवानुं बंध करीने ए तो वात ज (आचार्यदेव करता नथी.) ए
तो तारामां नथी (तेथी) तेनी तो वात ज अमे नथी करता. आहा...! समजाणुं कांई...?
आहा... हा! “पर्यायार्थिक चक्षुए सर्वथा बंध करीने, एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे”
उघडेलुं हो पण ई ज्ञान पाछुं, छे तो पर्याय. एने (द्रव्यने) जोनारी पण ई उघडेलुं ज्ञान के
(जयारे) पर्यायने जोवानी (आंख्युं) बंध करी दीधी एटले स्वने जोवानुं उघडयुं ज्ञान. आहा... हा...
हा! समजाणुं कांई...? आहा...! शुं टीका! आवी वात क्यां छे? भरतक्षेत्रमां! आहा.. हा! दिगंबर
संतोए तो अमृतना सागर रेल्यां छे! थोडा शब्दमां घणुं छे!! शुं कहीए एनी गंभीरता!!
आहा...!
(अहींयां) एम ई कहे छे. पहेली वात कीधी, के सर्व वस्तुओ सामान्य-विशेषात्मक छे,
हवे त्यारे वस्तुने तारी, तने (तारे) जोवी होय तो... आहा... हा! “उधाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु
वडे.” “जयारे अवलोकवामां आवे छे.”
जुओ, एमां परनी वात नथी लीधी. के पर्यायनयने बंध
करीने परने जोवुं. आहा... हा... हा! पर्यायार्थिक नयने बंध करी दईने. ओहोहोहो! अमृत रेडयां छे
प्रभुए! अरे... रे! जगतने (पोतानी खबर नथी!) कहे छे के तारामां बे प्रकार - सामान्य अने
विशेष. जीवमां ऊतारे छे हों? सामान्य वात तो बधानी (बधा द्रव्योनी) करे छे. पण उतारे छे
जीवमां. जीवमां उतारीने कहे छे के सर्व द्रव्योमां एम समजी लेवुं. आहा... हा! जयसेनाचार्यनी

Page 510 of 540
PDF/HTML Page 519 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१०
टीकामां छे. आमां चोख्खुं नथी. जयसेनआचार्यनी छे ने टीका? एमां छे जुओ, सर्वद्रव्येषु
यथासंभवं ज्ञातव्यं इति अर्थः - छेल्ला शब्दो छे, जयसेनआचार्यनी टीका, आहा...! आ तो
धीरानां काम छे भाई! ओलामां (समयसार) मां आवे छे ने भाई!! ‘निभृत’ - निभृत
पुरुषो वडे आहा... हा! चिंता विनाना पुरुषो वडे आहा...! निभुत पुरुषो वडे करीने आ वस्तु
विचाराय छे (अर्थात् स्वरूपमां एकाग्र थनारा पुरुषो वडे, चिंता विनाना पुरुषो वडे आ वस्तु
विचाराय छे.)
आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” आहा... हा! आटलुं
पर्यायचक्षुने सर्वथा बंध करीने (कहीने) जोर आप्युं. तेथी “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे” -
द्रव्यने जोई शके ते रीते ज्ञानने खुल्लो प्रगट करीने -पर्यायने जोवानुं नहीं’, पण द्रव्यने जोवानी
पर्यायनो-उघाड करीने (एकाग्र थवा कहे छे) “एकला उघाडेला” उघाडेला पाछा कीधुं छे हों! प्रगट
करीने... आहा... हा! आ वस्तु छे वस्तु! एनी कहे छे पर्यायने जोवानी आंख्युं बंध करी, अने
द्रव्यार्थिक -(एकला) उघाडेला चक्षु वडे (जो.) नयनुं ज्ञान उघडेलुं छे. द्रव्यार्थिक नय जे जोवे छे त्यां
(ते ज्ञान) उघडेलुं छे. पर्यायने जयारे (जोवानुं) बंध करी दीधुं छे त्यारे एने स्वने जोवानुं ज्ञान
उघडयुं छे. आहा... हा... हा! हा...!
(अहींयां कहे छे केः) “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे जयारे अवलोकवामां आवे छे,
त्यारे नारकपणुं, तिर्यंचपणुं” जुओ उतार्युं जीवमां. “मनुष्यपणुं, देवपणुं अने सिद्धपणुं” सिद्ध ए
पर्याय छे ने...! आहा... हा!
“ए पर्यायोस्वरूप विशेषोमां रहेला (अर्थात्) ए पर्यायो
स्वरूपविशेषोमां रहेला एक “जीव सामान्यने अवलोकनारा” आहा... हा... हा! पाछी अवलोकनारी
पर्याय ज छे. आहा... हा! पर्यायने जोवानी (पर्यायनय) बंध करी दईने, द्रव्यने जोवानी उघाडेली
ज्ञाननी पर्यायथी आहा... हा! शुं भर्युं छे!! हवे आम ने आम वांची जाय. प्रवचनसार वांची गयो,
एक जणो के’ तो’ तो समयसार, महाराज बहु वखाण करे छे ने... (हुं तो) पंदर दि’ मां वांची
गयो छुं कहे. बापा! पंदर दि’ शुं? भाई! ए गहन वात नो पार आवे एवुं नथी प्रभु! (द्रष्टि
मळ्‌या विना जन्मारो य वांचे तो.) आहा... हा!
(श्रोताः) आज दिव्यध्वनिनो ज दिवस छे...!!
(उत्तरः) दिव्यध्वनिनो दिवस छे, हा, वात साची! आहा...!
(कहे छे) ओलुं ‘दिव्यध्वनि’ (नामनुं मासिक) पत्र काढयुं छे. श्रीमद् तरफथी छे ने...!
ओला सोनी, अमदावादवाळा (श्रोताः) सोनेजी, डो. सोनेजी (उत्तरः) हा, ई. गोटा बधा गोटा!
श्वेताबंरना नाख्या ने अने आम - श्वेतांबर साधुए कर्युं ने... ढीकणांए आम कर्युं ने...! आहा...
हा! आ एनुं लखाण छे वजुभाईनुं मोरबीवाळा वांचे छे ने... (व्याख्यान). एनुं लखाण

Page 511 of 540
PDF/HTML Page 520 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प११
आ लखे छे ‘श्रीमदे नव तत्त्व कह्यां ने... एमां सम्यग्दर्शननी व्याख्या करी छे, छ-पदने जोवुं ने...
अहींयां तो कहे छे के ई छ-पदना भेद छे. (श्रोताः) ई भेद तो राग छे, एने विचारवाथी तो राग
(विकल्प) उत्पन्न थाय... (उत्तरः) आहा...! (भेदने जोवानी) ए आंख्युं ने बंध करी दईने...
आहा... हा! ‘एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे.” (अवलोकन कर.) बहेनुं-दीकरियुं ने झीणुं पडे
ध्यान राखीने सांभळवुं. बापु! आ तो अमृतना घर छे बापु, मांड मांड आव्युं छे! बे’ न-दीकरी,
माताओने झीणुं पडे थोडुं, धी... रे थी सांभळवुं - विचार करवो. आहा...! अरे, आवा समय क्यारे
आवे भाई! आहा... हा!
(कहे छे) वाह! भर्या छे (भाव) शुं जोयुं? सामान्य-विशेष वस्तु छे. एणे विशेष (ने)
जोवानी आंख्युं सर्वथा बंध करी दई अने द्रव्यार्थिक (एटले) उघडेलुं ज्ञान द्रव्यने जोनारुं उघडेलुं
ज्ञान, पाछुं छे तो ई पर्याय, ‘पण पर्याय पर्यायने न जोतां, पर्याय द्रव्यने जोतां’ - एम कहेवुं छे.
आहोहो! आहा... हा... हा! गजब वात छे भाई! मीठालालजी! समजाय छे ने? वस्तु छे ई
भगवान आत्मा, एमां सामान्य अने विशेष बे पडखां खरां. छतां विशेष पडखांने जोवानी आंख्युं
तो सर्वथा बंध करी दे. परने जोवानी वातुं तो नहीं पण तारी पर्यायने जोवानुं सर्वथा बंध करी दे.
आहा... हा! अने एकला उघडेला द्रव्यार्थिक (एटले) एकला द्रव्यने जाणवानुं जे ज्ञान उघडेलुं जे छे.
आहा... हा... हा! गजब भर्युं छे ने...!
(श्रोताने) सामे पुस्तक छे ने...? आहा... हा! “एकला”
ओलाने बंध करी दीधुं छे ने...? ‘एकला’ ने पाछुं “उघाडेला” द्रव्यार्थिक, एम ने एम द्रव्यार्थिक नय
(नहीं), पण द्रव्यनुं जेने प्रयोजन छे एवुं ज्ञान उघडयुं छे. आहा... हा! हें? आवी वातुं छे.
देवीलालजी! आहा... हा! संतोए तो अमृत रेडयां छे! शब्दे-शब्दमां केटली गंभीरता ने केटली ऊंडप
छे? आहा... हा! भले (समजणमां) थोडो वखत लागे. सत्यने समजवा माटे पण बराबर थोडुं
(पण) सत्य समजवुं जोईए. आहा... हा!
(कहे छे केः) भगवान आत्मा, सामान्य ने विशेष (पणे) होवा छतां, सामान्य नाम त्रिकाळी
ध्रुव एवुं ने एवुं अने विशेष नाम पर्याय, बदलती रहेतां छतां, बदलती पर्यायने जोवानी आंख्युं
बंध करी दईने, आहा... हा... हा! बीजाने जोवानुं ने भगवानने जोवानुं ते (तो) बंध करीज दईने,
पण तारी पर्याय छे तेने जोवानी आंख्युं बंध करी दईने आहा... हा! विमलचंदजी! विमलचंद
(आत्मा) नी वात हाले छे अहींयां. आहा... हा... हा! प्रभु! तारी वात तो जो (अनिर्वचनीय)
आचार्यो-संत कही शक्या नथी. गंभीर वात! छोडीने बेठा (छे मौन जंगलमां.) आहा... हा!
पर्यायने (जोवानुं) सर्वथा बंध करी दईने प्रभु शुं कहेवुं छे तारे आ! आत्माने जोवा माटे एनी
पर्यायने जोवानी आंख्युं सर्वथा बंध करी दई अने जयारे हवे द्रव्यार्थिकने (द्रव्यने) जोवुं छे ने...! तो
ई तो (जोवानुं) पर्यायमां आवे के नहीं? (जोवानुं कार्य तो पर्यायनुं छे.) तेथी कहे छे
“एकला
उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे.” आहा... हा! वाह! प्रभु! अंदरनो ज्ञाननो पर्याय,

Page 512 of 540
PDF/HTML Page 521 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१२
कहे छे एकलो द्रव्यने जाणे ते उघडयो छे. आहा... हा! पर्यायार्थिकने जोवानुं सर्वथा बंध थई गयुं छे
आहा... हा! आवी वातो सांभळवा मळे नहीं अने माणस पछी कहे ए एकांत छे त्यां एकांत छे.
बापु! एकांत छे सांभळ भाई! आहा... हा! बापु, तारा घरनी वातुं छे भाई! ओहोहोहो! संत कहे
छे के तारी पर्यायने जोवानुं तो सर्वथा बंध करी दे. आहा... हा... हा! अने द्रव्यने जोवानुं उघडेलुं जे
ज्ञान (द्रव्यार्थिक चक्षु वडे अवलोक.) आहा... हा... हा! समजाय छे कांई?
(अहींयां कहे छे केः) “एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे जयारे अवलोकवामां आवे छे.”
अवलोकवामां आवे छे ते (अवलोके छे) पर्याय, ते पर्याय छे ने...! पर्यायथी द्रव्यने जोवामां आवे छे
ने...! पर्यायने, पर्याय तरीके जोवानुं बंध करी दे. अने द्रव्यने जोवानी उघडेली पर्याय वडे अवलोकन
कर. आहा... हा... हा! आवी वातुं छे. “जयारे अवलोकवामां आवे छे त्यारे नारकपणुं.” जीव उपर
लीधुं हवे. कहेवुं छे तो सर्व द्रव्यनुं, पण समजाय एटले एकदम जीवने (उदाहरणमां लीधुं) मूळमां
अहींयां आ समजाय तो बराबर (सर्वद्रव्योनुं) समजे.
स्वने जाणे बराबर तो परने जाणे. पण
आने ज न जाणे तो परनुं जाणवुं क्यांथी आवे? स्व-पर, प्रकाशक एनो स्वभाव छे. पण स्वने
जाण्या विना परनो प्रकाशक - जाणवानो स्वभाव होवा छतां पण स्वने जाण्या विना परनुं जाणवुं
एमां आवी शके ज नहीं.
आहा... हा! समजाणुं कांई?
(अहींयां कहे छे केः) “नारकपणुं, तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं, देवपणुं अने सिद्धपणुं - सिद्धे य
पर्याय छे. आहा... हा! सिद्धनी पर्यायने जोवानी द्रष्टिने बंध करी दईने... आहा... हा! वाह! प्रभु
तारे शुं कहेवुं छे? सिद्धनी पर्यायने जोवानी द्रष्टि-पर्याय नयने, (एटले) पर्यायने जोवानी आंख्युं
सर्वथा बंध करी दईने, सुमनभाई? ई तमारा कायदा-फायदामां नथी आवुं क्यांय! आहा...! तो
आव्या बराबर ठीक! भाग्यशाळी! टाणे आ वात आवी, आवी छे (अपूर्व वात!) आहा...! जेवुं
ऊडुं भासे छे ई भाषा एटली बधी आवे नहीं.
आहा... हा!
संतो कहे छे. के तारी पर्यायने जोवानी आंख्युं बंध करी दे. पण (आ कहीने) शुं कहेवुं छे
प्रभु तारे! बीजाने जोवुं - परमात्मा ने पंचपरमेष्ठिने ए तो क्यांय वात ज नथी रही कहे छे. पण
तारी (पोतानी) पर्याय जोवानी आंख्युं ने सर्वथा बंध करी दई अने पर्यायमां द्रव्यने जोवानुं थाय ते
ज्ञान उघाडी (आत्मद्रव्यने जो.) उघडे ज ते (ज्ञान) एम कहे छे. आम पर्यायार्थिक नयने बंध कर्युं
एटले स्वने जोवानुं ज्ञान उघडे अंदर. छे तो ई ए य पर्याय. पण (ई) पर्यायनो विषय पर्याय
नथी. (पर्यायनो विषय द्रव्य छे.) आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “अने सिद्धपणुं – ए पर्यायोस्वरूप.” ई पांच पर्याय कीधी ने...!

Page 513 of 540
PDF/HTML Page 522 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१३
चार गतिनी ने एक सिद्धनी. आहा...हा! ए सिद्धने जोवानी पर्यायनी आंख्युंने पण सर्वथा बंध करी
दईने, अरे...रे! आहा...हा! पोताने तो सिद्धपर्याय नथी, पण श्रद्धामां एने छे के सिद्धपर्याय थवानी
छे मारे. छतां ई सिद्धपर्यायने जोवानी आंख्युं (सर्वथा) बंध करी दे. आहा...! अने बीजा सिद्ध जे
छे - अनंता सिद्धो
वंदीत्तु सव्वसिद्धे (‘समयसार’ गाथा-१) लो! कीधुं त्यां. भाई! समयसारमां.
(त्यां तो कह्युं) ज्ञानमां स्थापीने, एम कह्युं छे ने त्यां...! अहींयां तो कहे छे के तारी पर्यायमां
सिद्धने जोवानुं य बंध करी दे. आहा... हा! भाई...! आ तो प्रवचनसार छे! भाई, आ तो संतोना
काळजां - हृदय छे!! अरे! एवी वात सांभळवा मळे क्यां? भाई! आहा...!
कहे छे “उघाडेला द्रव्यार्थिक नय वडे” आहा... हा! जयारे आ (पर्यायने जोवानुं) बंध कर्युं
ने ई उघडयुं ने ज्ञान स्वने जोवानुं. समजाय छे कांई? “जयारे अवलोकवामां आवे छे, त्यारे
नारकपणुं, तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं, देवपणुं अने सिद्धपणुं – ए पर्यायोस्वरूप – विशेषोमां रहेला
(एक) जीवसामान्यने अवलोकनारा.” जोयुं? पर्यायने (जोवा) तरफनी आंख्युं बंध करी दई -
पछी तो द्रव्य (ने जोवानी) आंख्युं बंध करी दईने पर्यायने जाण एमे य कहेशे. जाणवानी अपेक्षाए
(आदरवानी अपेक्षाए) मूळ-पहेलुं आंहीथी लीधुं. द्रव्यने जोवानुं (सौथी पहेलुं) कीधुं छे. आहा...
हा! भगवान! आ तो भगवानना घरनी वातुं छे! पामर प्राणी! शुं करे एने! आहा...! एवी चीज
छे! एमां एम अभिमान करी नाखे के आवडे छे मने आ, अमने वांच्युं छे ने...! बापु! गर्व ऊतरी
जाय एवुं छे. आहा... हा... हा! भाई! तारी पर्यायने जोवानुं पण बंध करी दे. अने (छतां)
जोवानुं रहेशे तो खरुं (पर्यायने) जोवानुं बंध कर्युं एटले द्रव्यने जोवानुं उघडेलुं ज्ञान, ए वडे
करीने अवलोकवामां आवतां पर्यायोस्वरूप विशेषोमां रहेला - इ पांचेय पर्यायमां - विशेषमां
रहेला एक
“जीवसामान्यने अवलोकनारा” भाषा शुं छे? “ए पर्यायोस्वरूप विशेषोमां
रहेला”... पाछुं विशेषोमां रहेला. आहा... हा... हा! बीजी चीज तो ई पर्यायमां रहेली छे ज नहीं.
आहा... हा! देव-गुरु-शास्त्र अने सिद्धने य काढी नाख अहींथी. फकत पर्यायोरूप जे सिद्धनी पर्याय
छे एवा विशेषोमां रहेला (वळी) एवा विशेषोमां रहेला एक
“जीव सामान्यने अवलोकनारा” -
एक जीवने - सामान्यने - ध्रुवरूपे जाणनारा (ई) पर्याय तो थई. आहा... हा! को’ आवुं कोई दि’
सांभळ्‌युं’ तुं! स्थानकवासीमां क्यांय नहोतुं? (श्रोताः) दुनियानी कोई पीठमां नथी... (उत्तरः)
आहा...! भगवान त्रिलोकना नाथनी वाणी छे आ. आहा...!
आत्माने स्पर्शी नाखे एवी वात छे!
रहे नहीं भाई, बीजुं जुदुं - जुदुं न रही शके हवे! आवी रीते जाणे जोयो (आत्माने) के जेने
सिद्धनी पर्यायमां पण द्रष्टि नथी. पण ए पर्यायमां रहेलो जे आत्मा, छे? (पाठमां) सिद्धनी
पर्यायमां - ए पर्यायोस्वरूप विशेषोमां रहेला
“एक जीवसामान्यने.” एक जीवसामान्यने... ओली
(नारक आदि) पांच पर्यायो हती. ई पांचेय पर्यायमां रहेलो पाछो. आहा... हा... हा! शुं शैली ने शुं
टीका!! गजब छे!!

Page 514 of 540
PDF/HTML Page 523 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१४
(कहे छे केः) एक “जीव सामान्यने अवलोकनारा.” अने विशेषोने नहि अवलोकनारा.”
आहा...हा...हा! शुं कीधुं? ‘एक जीव सामान्यने’ - ‘सामान्य’ शुं हशे आ? कायम रहेनारी एकरूप
- बदल्या विनानी रहेनारी एक (रूप) चीज - अस्ति तरीके बदल्या विनानुं, कायम रहेनारुं ते
सामान्य. आहा... हा! आ तो क्यां’ य वाणीमां आव्युं नहीं वेपारना, धंधामां आव्युं नहीं भाई!
आ भूकामां न आव्युं. पावडरनो धंधो छे ने एने...! (श्रोताः) परनो विषय ए तो छे, ए विषय
जुदो (उत्तरः) एने जोवानुं बंध आंही तो (कहे छे) आहा...! पावडर ई परमाणुनी पर्याय छे एने
जोवानुं नहीं आंही सिद्धनी पर्यायने जोवानी य ना पाडे छे. आहा...! आहा... हा! हा, एमां रहेला
(पांच प्रकारनी पर्यायमां पण) एक “जीव सामान्यने अवलोकनारा अने विशेषोने नहि
अवलोकनारा ए जीवोने ‘ते बधुं य जीवद्रव्य छे’ एम भासे छे.”
छे? (पाठमां) आहा... हा!
(शुं कहे छे? केः) पोतानी पर्यायने, सिद्ध आदि पर्यायने पण जोवानी आंख्युं बंध करी दई.
आ आंख्युं (चर्मचक्षु) आम बंध करी द्ये ई नहीं हो? (एनी वात नथी.) जे पर्याय जोवामां आवे
ते पर्यायने (जोवानुं) बंध करी दईने, अने उघडेला द्रव्यार्थिक नय ने उघडेला चक्षु वडे, पर्यायमां
रहेला - विशेषो मां रहेला ने अवलोके “ए जीवोने ते बधुंय जीवद्रव्य छे.’ एम भासे छे” आहा...
हा! ते पर्याय उपरनी नजरुं बंध करी दई अने द्रव्यने जाणनारी पर्यायने (जे) उघडेली छे ए द्वारा
द्रव्यने जोतां ‘ते बधुं य जीवद्रव्य छे’ बस वस्तु! ई छे. आहा... हा! समजाणुं कांई?
आहा... हा! ‘ते बधुं य जीवद्रव्य छे’ एमां पर्याय-पर्याय (ना) भेद नहीं. पर्यायमां रहेलो
कीधुं. एम कीधुं ने...? हें? “ए पर्यायोस्वरूपविशेषोमां रहेला” जीवसामान्यने अवलोकनारा अने
विशेषोने नहि अवलोकनारा ए जीवोने ‘ते बधुं य जीवद्रव्य छे’ एम भासे छे.” आहा... हा... हा!
भगवान आत्मा, द्रव्य जे सामान्य जे अनंत-अनंत अचिंत्य अनंत शक्तिओनो सागर प्रभु!
एकरूप! द्रव्यार्थिक नयना उघडेला ज्ञानथी जोतां ‘ते बधुं य जीव ज छे’ आहा... हा! समजाणुं कांई?
आम लागे गाथा (ओ) साधारण! प्रवचनसार (नी) एना करतां समयसार आम छे ने... बापु!
बधुं य छे ई छे बापु! एके-एक समयसार, प्रवचनसार, नियमसार! एनी शुं वातुं करवी?
(अलौकिक आगम छे.) भरतक्षेत्रमां क्यांय एवी वात छे नहीं. आहा... हा!
(सद्गुरु कहे छे) अने आ रीते अंदर करे एटले प्राप्त थया विना रहे ज नहीं. एम कहे छे.
आहा...! एम कीधुं ने...? ‘बधुं य जीवद्रव्य छे एम भासे छे’ कीधुं ने? हें शुं कीधुं? ‘भासे छे’
एम कीधुं. ‘जणाय छे एम कीधुं.’ आहा... हा! धन्य काळ! धन्य समय बापु अहा! पर्यायने
जोनारी द्रष्टिने सर्वथा बंध करी दईने अने द्रव्यने जोनारा ज्ञानने-उघडेला द्रव्यार्थिक नय वडे, ए
पांचे पर्यायोमां रहेलो (जीव). पाछो पांचेय पर्यायोमां रहेलो (कीधो अने एक जीवसामान्यने

Page 515 of 540
PDF/HTML Page 524 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१प
अवलोकनारो पण कीधो) परमां रह्यो छे ज नहीं - परनी पर्यायमां ने एमां तो रह्यो छे ज नहीं.
व्यवहारे य रह्यो नथी (आत्मा). आहा... हा! (छतां) पोतानी पांच पर्यायमां रहेलो - “ए
पर्यायोस्वरूप विशेषोमां रहेला जीवसामान्यने अवलोकनारा अने विशेषोने नहि अवलोकनारा ए
जीवोने ‘ते बधुं य जीवद्रव्य छे’ एम भासे छे.”
आहा... हा! आ रीते जो जुए तो जीवद्रव्य भासे
छे कहे छे. आहा... हा! प्रभु! आ पांचमो आरो छे ने...? आवो हलको आरो छे एमां... (कहे छे
के) आरा-फारा कंई लागु पडता नथी प्रभु! आहा...! जेने पर्याय नयेय लागु पडती नथी. आहा...
हा! पर्याय नयथी जोवानी वात करशे. जाणवा माटे. पण ई पछी करशे. (पहेलुं) आ करीने. बे
नयमां पहेली आ नय लीधी छे. आहा... हा!
(श्रोताः) तो ज पर्यायनुं ज्ञान साचुं थाय ने...?
(उत्तरः) त्यारे ज्ञान (पर्याय) साचुं नहीं ई वात नहीं (केम के तेमांय पर्याय उपर वजन आवी
जाय छे.) ज्ञान (पर्याय) एने जोवे छे (वजन अहीं छे) (श्रोताः) द्रव्यने जुए... (उत्तरः) ई ज
ज्ञान साचुं छे. छतां साचुं ज्ञान जोवे छे द्रव्य - बधुं जीव (द्रव्य) आ छे. पांचे य पर्यायमां रहेलुं
तत्त्व ‘आ’ ‘आ’ छे. आहा... हा! सारी वात छे. प्रवचनसार हमणां वंचाणुं नो’ तुं. आंही वजन
वधारे आंही छे. (द्रव्यने जोवामां द्रव्यार्थिक नये.) ई तो पर्याय भासे छे एमे य कहेशे. पर्यायनयथी
भासे छे (कहेशे) ज्ञान करवा (माटे.) आंही तो पहेलुं आ उपाडयुं (छे) अहींयांथी... आहा... हा...
हा! (अनुक्रमना पहेला क्रमथी.)
(कहे छे) प्रभु! तारी पांच पर्यायमां रहेलो तुं, ते पर्यायने जोवानी आंख्युं बंध करी दे.
सिद्धनी पर्यायने जोवानी आंख्युं बंध करी दे. आहा... हा! अने ए वस्तु जे छे (आत्मा) एमां
उघडेला ज्ञान वडे अवलोकन कर. त्यारे तने भासशे के आ जीव (द्रव्य) आ बधुं य आ छे. आखो
परमात्मा-परमात्मा (आहा... हा! (देखाशे.)
(कहे छे) (आत्मा) अनंत अनंत अचिंत्य शक्तिओनुं एकरूप - एकरूप (कह्युं) बे - रूपे
नहीं. आहा... हा! गुणभेदे य नहीं. एम कह्युं ने...! शुं टीका! अमृतचंद्राचार्य! अरे! जीवो जरी
शांतिथी विचारता नथी, वांचता नथी. एकदम (वगर विचार्ये) कही नाखे. ए एनुं एकांत छे,
एकांत छे, एकांत छे. भाई बापा! परिणाम आवशे भाई! परिणाम तो सत्य हशे ते आवशे.
असत्ना असत् परिणाम आवशे बापु! आहा... हा! ए एक वात पहेली लीधी. हवे पर्याय जोवानी
वात लेशे.
(अहींयां कहे छे केः) “अने जयारे द्रव्यार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करीने.” जोयुं? ज्ञान
कराववुं छे ने...? पर्याय एनी छे, एनामां छे. एमां ई (आत्मा) रहेलो छे. माटे पर्यायनुं ज्ञान
कराववानुं छे. आहा... हा! परनुं कांई ज्ञान कराववानी ई वात आंही नथी. आहा... हा! “अने
जयारे द्रव्यार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करीने एकला उघाडेला पर्यायार्थिक चक्षु वडे.”
पाछुं

Page 516 of 540
PDF/HTML Page 525 of 549
single page version

गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प१६
जुओ न्यां उघडेलुं तो छे जाणवानुं पर्यायमां. पर्यायने जोनारुं ज्ञान छे ने...! द्रव्यने जोनारुं जेम ज्ञान
छे एम पर्यायने जोनारुं ज्ञान छे ने... आहा... हा! “उघाडेला पर्यायार्थिक चक्षु वडे अवलोकवामां
आवे छे त्यारे जीवद्रव्यमां रहेला नारकपणुं, तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं, देवपणुं अने सिद्धपणुं – ए
पर्यायोस्वरूप अनेक विशेषोने अवलोकनारा.”
जीवद्रव्यमां रहेला - आ पांचेय पर्यायो पाछी
जीवद्रव्यमां (रहेली) आहा... हा! कांई परमां नथी ई कांई. हवे आवो उपदेश एटले अजाण्या
माणसने- क्रियाकांडवाळाने एवुं लागे के आ, शुं मांडी छे? बापा! प्रभु! तारा घरनी वात मांडी छे
भाई! आहा... हा! तारुं घर एवडुं मोटुं छे तें सांभळ्‌युं नथी प्रभु! पर्यायथी वात आवशे.

विशेष कहेशे.....