Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 09-07-1979; Gatha: 114.

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९२
प्रवचनः ता. ९–७–७९.
‘प्रवचनसार’ ११३ गाथा. भावार्थ, उदाहरण छे ने...! एना उपर आवी गयुं काल. बे लीटी
उपरनी (त्यांथी फरीने.)
(अहींया कहे छे केः) “द्रव्यनो – के जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता.” द्रव्य जे छे आत्मा के
परमाणु एनी जे समये जे अवस्था थाय, ए काळे ज थाय. (स्वकाळे थाय) क्रमानुपाती एम लख्युं
ने...! क्रमानुपाती-क्रमानुसार अने ते ते पर्यायनो कर्ता द्रव्य छे. आहा... हा! ज्ञानमां एनी दशा थाय,
एनो कर्ता आत्मा छे. ज्ञानावरणीयनो उदय एनो कर्ता नथी. एम कहे छे. एम आत्मामां,
आयुष्यगतिने लईने - आयुष्यकर्मने लईने, देहमां रहे छे एम नथी. एनी पोतानी पर्यायने कारणे
त्यां पर्यायमां (छे.) ते पर्यायनो कर्ता आयुष्य (कर्म) नथी. देहमां रहेवुं - जेटलो काळ (रहेवुं) ए
काळनी पर्यायनो ए शरीरमां रहेवानो जेटलो काळ छे तेटलो ए ज समयनो कर्ता ते द्रव्य छे. आहा...
हा! ते द्रव्य तेनो कर्ता, द्रव्य तेनुं करण-साधन अने द्रव्य ते पर्यायनो आधार (अधिकरण) (छे.)
आहा... हा! आ दरेक द्रव्यनी वात छे. आ मनुष्यपणे समजावी छे. ई दरेक द्रव्य एना पर्यायना
स्वरूपनो कर्ता छे (करण ने अधिकरण छे.) केटली वात समावी दीधी छे!! ओला कहे के अंतराय
करमने लईने आत्मामां, दीक्षा लेवानो भाव न थाय - एवुं आवे छे. ‘मोक्षमार्ग प्रकाशक’ मां.
एय? ‘मोक्षमार्ग प्रकाशक’ मां (एवुं लखाण आवे छे.) आहा... हा!
अहींया कहे छे के जे पर्याय थाय छे, ते द्रव्यमां - वस्तुना क्रम अनुसार - क्रमानुपाती - ते
क्रमे आववानी छे ते आवे छे - ते द्रव्यने तेथी असत्-उत्पाद कहेवामां आवे छे. द्रव्यनो असत्-
उत्पाद (कहे छे) पर्याय पहेली नहोती ने थई - ए अपेक्षाए द्रव्यने असत्-उत्पाद कहेवामां आवे
छे. छतां ते ते पर्याय, ते ते द्रव्यनी शक्ति जे छे अनंत - अन्वयशक्तिओ अनंत छे. द्रव्य एक छे,
पण एनी शक्तिओ एटले गुणो अनंत छे. अने ई अनंत (गुणो) नी हारे अनंती पर्यायो
गूंथायेली छे. आहा... हा... हा! (श्रोताः) प्रगट नथी ने गूंथायेली शी रीते छे? ... (उत्तरः)
गूंथायेली छे एमांथी प्रगट थाय छे. एने संबंध छे अन्वयशक्तिनो. ई तो पर्याय पहेली नहोती
तेथी तेने असत्-उत्पाद, द्रव्यनो असत्-उत्पाद छे एम कीधी. द्रव्यमां ई असत् (उत्पाद) छे एम
कीधुं. छतां एनी अन्वयशक्तिओ - जे गुणो छे (तेनी साथे संबंध छे.) अन्वयो- राते वात थई’
ती ने भाई! अन्वया गुणाः पण आवे छे. अन्वय द्रव्य ने ‘अन्वया गुणाः’ आवे छे बीजे. त्यां
वांचेलुं नो’ तुं - द्रव्य ते विशेष छे अने तेना गुणो ते विशेष्य छे एम आव्युं’ तुं. अथवा द्रव्य ते
वस्तु छे अने एनी शक्तिओ, अन्वयो छे. तो ई अन्वयो शक्ति छे अनंती. आहा... हा! आवी
वात!! अने ए शक्तिओनी साथे, ते ते समये जे पर्यायो थवानी ते शक्ति साथे संबंध राखे छे.
(पर्यायो) शक्ति साथे गूंथायेली छे. आहा... हा... हा! कोई तत्त्वनी पर्याय (बीजा तत्त्वने लईने
नथी.) के आ आत्मा

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९३
आयुष्य (कर्म) ने लईने शरीरमां रह्यो, के शाताना उदयने लईने अनुकूळता थई एम नथी एम
कहे छे. आहा... हा! गजब वात छे!! लाभुभाईनुं लखाण कांईक आव्युं छे, कांईक ठीक छे. कंईक
साध आवती जाय छे, पोतानी मेळे पीवे छे ने...! आहा... हा!
(कहे छे केः) दरेक द्रव्यनी पर्याय, आत्मा (के) परमाणुं - (आ शरीर) तो अनंत
परमाणुनो पिंड छे. तेमां एक - एक परमाणुं द्रव्य छे. अने एमां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श (आदि)
अन्वयशक्तिओ अनंत छे. तेनी समये-समये क्रमानुपाती (क्रमबद्ध) क्रमे जे थवानी पर्याय ते ते
द्रव्यने लईने थाय छे. आहा... हा! पर्याय, परने लईने तो बिलकुल नहीं. हो निमित्त-पण निमित्तने
लईने कांई अंदर थाय (एम छे नहीं) आहा... हा! आवी वात! जुओ! आ आंगळी हाले छे
आंगळी आ. ए परमाणुओ (द्रव्य) छे. एमां अनंत-अन्वयशक्ति-गुणो छे. एने अनुसरीने -
गूंथायेली (पर्यायो) ते काळे, ते ज क्रमे -क्रमानुसार जे पर्याय आववानी-थवानी ते ज थाय छे. तेथी
ते पर्यायने असत्-उत्पाद ने द्रव्यने पण असत्-उत्पाद कहीए. पर्यायने असत्-उत्पाद तो खरो पण
द्रव्यने असत्-उत्पाद कहीए. आहा...! आहा... हा! छे? जुओ! (पाठमां).
(अहींया कहे छे केः) “माटे पर्यायोना अन्यपणा वडे द्रव्यनो –के जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता
-पर्यायोना स्वरूपनुं “करण” पर्यायोना स्वरूपनुं “अधिकरण” होवाने लीधे पर्यायोथी अपृथक्
छे” पर्यायोथी अपृथक् छे. (द्रव्य) पर्यायोथी जुदुं नथी. तेथी ‘तेनो (द्रव्यनो) असत्–उत्पाद नककी
थाय छे.
आहा... हा! बे लीटीमां केटलुं भर्युं छे!! अहींयां (अज्ञानी) कहे के हुं परनी दया पाळी
दउं, परने (बचावी) अहिंसा करी दउं, पैसा रळी दउं, कमाई दउं दुकाने बेसीने, दुकाननी व्यवस्था -
लोढा-बोढानी सरखी व्यवस्था करी दउं, आहा... हा! धंधो दाणानो (तो) घउं, बाजरो आदि जे छे
एमां एक एक दाणो अनंत परमाणुनो पिंड छे. अने ई परमाणुंमां अनंत अन्वयशक्तिओ रहेली
छे. ते कारणे (ते दाणानी) ते पर्याय ते थवानी ते - आम जवानी होय - आववानी होय ते काळे
ते पर्याय (तेनाथी (द्रव्य-गुणथी) थाय. ओलो बीजो कहे के में आने दाणा आप्या ने में दाणा
तोळीने आप्या, ए बधी जूठी वात छे. आहा... हा!
(श्रोताः) व्यवहार छे...! (उत्तरः) व्यवहार
एटले कथनमात्र बोलवामां. मारो दीकरो! दीकरा केवां? कोनां दीकरा? सुमनभाई मारो दीकरो लो!
आठ हजार पगार पाडे! कोनो दीकरो ने कोनो (बाप)? आहा... हा! आ मारो दीकरो हुशियार थयो
छे. पण दीकरो कोनो? अहींया कहे छे. ए दीकरो तो आत्मा छे ने आत्मानी पर्याय तो एनाथी थाय
छे. ए पर्याय ताराथी थई छे ने तें दीकराने उत्पन्न कर्यो छे? त्रण काळ, त्रण लोकमां आ वात साची
नथी. आहा... हा! आकरुं भारे भाई!! पैसावाळा तो आम जाणे - करोडो पैसा (रूपिया) अबजो
पैसा (रूपिया) (माने के) अमे आम करी दईए - अमे आम करी दईए, (कोईने) बे-पांच लाख
आपीने धंधे चडावी दईए, एमाीं आपणने नफो तो मळे! महिने टका-दोढ टकानुं व्याज आपे,
पेदाशमां आठ आना अमारा ने आठ (आना)

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९४
एना. महिने-महिने चोपडा तपासवा जाय ई. के कांई खाई न जाय एमांथी अरे! आ बधुं बफम
हशे? आहा...हा! आवी वात छे! अरे! दुनियाए वीतरागतत्त्व सर्वज्ञदेव त्रिलोकनाथ परमात्मा-
एणे जे वस्तुनुं स्वरूप कह्युं-ए रीते सांभळवा मळे नहीं जगतने तो बिचारा करे शुं? एमां (वळी)
जुवानी (युवान) अवस्था-वीस-पचीस-सत्तावीसनी फाटेली उंमर ने एमां बे-पांच लाखनी पेदाश
होय- अने दुनिया वखाणे) करमी जाग्यो अमारे (छोकरो.) करमी जाग्यो एम कहे छे ने...! धरमी
जाग्यो एम कहे छे? आहा...! पापी जाग्यो. आहा... हा! ए कान्तिभाई? रामजीभाई पासे क्यां
हतां - पैसा हता? एनी पासे पैसा छे (कान्तिभाई पासे) एम कहे छे लोको! आहा... हा... हा!
अहींयां तो कहे छे पैसानी (पर्याय) - एक पैसो छे, एना अनंत परमाणुनो ई पींड छे.
अने एक-एक परमाणुमां अनंत अन्वयो - गुणो छे अने ते गुणनी जे समये - जे पर्याय थवानी
क्रमानुसार (क्रमबद्ध) ते ज पर्याय ते समये थाय. अने छतां ते पर्याय, पहेली नो’ ती माटे असत्-
उत्पाद कही, द्रव्यनो असत्-उत्पाद आव्यो छे एम कहे छे. आहा... हा! हवे आने अभिमानना पार
न मळे. आनुं आ करी दउं - ने आनुं आ करी दउं ने आनुं आ करी दउं - देरासर करी दउं लो ने!
मंदिर बनावी दउं! आहा...!
प्रभु (आत्मा) छे ए तो जाणनार देखनार छे, जाणनार–देखनारनो
पिंड प्रभु छे ने...! आहा...! ए जाणनार–देखनारने तुं द्रव्यद्रष्टिथी जो!! पर्यायद्रष्टि कहेशे हमणां.
(ए तो जाणवा माटे) पण द्रव्यद्रष्टि-वस्तुथी तुं जो तो तने जनम-मरणना अंत आवशे. आ भवनी
पर्यायनो अंत आवे ए तेनी स्थिति छे. आहा... हा!
भगवान आत्मा, सच्चिदानंद प्रभु! सर्वज्ञ जिनेश्वर देवे सत् शाश्वत ने ज्ञानने आनंदनो
सागर! अथवा आहा... हा! सुखना सागरमां सुखनुं जळ भर्यु छे एमां. सुखनो सागर - जळनुं
(दळ) छे. आ खारा सागरमां जळ बीजुं छे. आ तो (शरीर तो) माटी धूळ छे. भगवान आत्मामां
- अंदर भगवान आत्मा सुखना सागरनुं जळ छे ई तो. आहा... हा! आ शरीर तो जगतनी धूळ
छे. सागरमां जेम पाणी छे. एम आमां आनंदनुं जळ छे. ए सुखनो सागर छे प्रभु!! एनी एक
समयनी पर्याय थाय. तेनी पण स्वतंत्र कर्ता - ए द्रव्य छे. अत्यारे तो ई सिद्ध करवुं छे ने...!
दीकरा-दीकरी, बायडी क्यां’ य रही गया बापा! आहा... हा! आ शरीरनो एक-एक रजकण द्रव्य छे
ने द्रव्यमां गुणो छे (अनंत) अन्वयो. ‘अन्वया गुणाः’ शब्द छे क्यां’ क! ‘तत्त्वार्थ राजवार्तिक’ मां
आमां क्यां’ क छे. ‘अन्वया गुणाः’ अन्वय शक्ति लीधी छे पण शक्ति कहो के गुण बधुं एक ज
छे. छे ने...? क्यां? एकसो छासठ पानुं? नीचेथी पांचमी लीटी. छे ने...! लो! अंदर संस्कृतमां छे.
‘अन्वयिनो गुणाः’ अथवा ‘सहभुवोःगुणाः’ संस्कृतमां छे भाई! व्यतिरेक एटले पर्याय ए तो
आवी गई छे वात. छे? संस्कृतमांछे. एकसो छासठ पाने. ए संस्कृतमां नीचेनी छठ्ठी लीटी.
(वाचन).

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९प
अन्वयिनो गुणा अथवा सहभुवो गुणा
इति गुणलक्षणम् । [जयसेनाचार्य]
अहींया कहे छे प्रभु! जेवा सिद्धना गुण छे. भले एने प्रगट छे पर्याय. एवा गुणो तारामां
भरेला छे प्रभु! एवो जे महासागर! सुखनो महासागर! शांतिनो महादरियो! ज्ञाननो महा प्रवाह!
ज्ञाननो प्रवाह!! आहा... हा! ज्ञान.... ज्ञान.... समजण.... ज्ञान.... ज्ञान.... ज्ञान.... ज्ञान....! एवो
जे द्रव्यस्वभाव, तेना गुणो अन्वय एटले कायम रहेनारा अन्वयनी साथे रहेनारा अन्वयो (अनंत)
आहा... हा! ओलुं विशेषण आप्युं छे ने...! विशेषण कहो के अन्वयशक्ति कहो के अन्वयगुण कहो
(एकार्थ छे) शक्तिनो अर्थ एटलो ज. अन्वयगुणो लीधा अहींया. आहा... हा! आ तो मूळतत्त्वनी
वातुं छे बापु! अत्यारे तो गोटा हाल्या छे गोटा! जे बोलवानी पर्यायभाषा (वर्गणाना परमाणुं
छे.) तो कहे छे के ए परमाणुनी जे अन्वयशक्तिओ छे एने क्रमे भाषा (पर्याय) थवानी छे ते
काळ ज ते भाषानी पर्याय थाय छे. ए भाषानी पर्यायनो कर्ता ते परमाणुं छे. आत्मा नहीं - जीव
नहीं - होठ नहीं. आहा... हा! को’ देवीलालजी! आवी वात छे! आटलामां ए (बधुं) भर्युं छे.
(अहींया कहे छे केः) “पर्यायोना अन्यपणा वडे द्रव्यनो” असत्–उत्पाद नककी थाय छे.”
भाषा एम लेवी भाई! आहा... हा! शुं कहे छे? घणुं भर्यु छे! भाई! तुं कोण छो? भगवान छो.
भगवानमां अनंता-अनंता गुणो भगवत्स्वरूपे पडया छे (ध्रुव छे.) एनी वर्तमानमां, ते पर्याय, जो
द्रव्य उपर द्रष्टि होय, तो तो ते पर्याय क्रमानुपाती (क्रमबद्ध) सम्यग्दर्शन-ज्ञान ने चारित्र ए पर्याय
आवे. जो द्रष्टि द्रव्य उपर न होय, तो राग अने पर उपर होय - संयोग उपर (होय) तो विकारी
थाय आवे, विकार मारो छे ए मिथ्यात्वनी पर्याय उत्पन्न थाय. ई पर्यायोनो उत्पाद- असत्
(उत्पाद) पहेलो नहोतो ने थयो छतां ई द्रव्य पोते ज ई असत्-उत्पादपणे ऊपजयुं एम पण
कहेवाय छे. आहा... हा! केम के द्रव्य पोते पर्यायना कर्ता, करण अने अधिकरण होवाने लीधे
पर्यायोथी अपृथक छे. आहा... हा! केटलुं समाव्युं छे! हवे आवुं सांभळवुं! मळे नहि बिचाराने ने
रखडया-रखड, चोराशीना अवतार! आहा... हा! ओगण पचास दि’ थी छे लाभुभाईने! हजी अंदर
दि’ रहेवुं पडशे! आहा... हा! भाषा नहीं ने आम ने आम रहेवुं- ए पण ए पर्यायनो जे द्रव्यना
अन्वयगुणनी साथे संबंधवाळो पर्याय ए काळनो ए क्रमानुपाती - क्रमे थनारो ते ज पर्याय थाय छे.
आहा... हा! दाकतरोथी मटे... दवाथी मटे. आरे...! आरे! ए बधी वात जूठी छे. ते द्रव्यनी ते
समयनी ते क्रममां आवेली पर्याय, ए अन्वयनी साथे संबंध राखीने- संबंध तोडीने नहीं- ए
पर्याय थाय छे तेनो कर्ता ते द्रव्य, करण एटले द्रव्य साधन अने द्रव्यवस्तु ते तेनो आधार (छे.) ए
पर्यायनो आधार द्रव्य (छे.) आहा... हा... हा!
(शुं कहे छे केः) आ (ठवणी) उपर रहेल पुस्तकनो आधार (ठवणी) हेठे (छे.) ते नहीं

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९६
एम कहे छे. (मंदिरना) शिखर उपर पाणो चडावे तो कहे छे के ए (मंदिरना) आधारे रहेल छे
एम नहीं. आहा... हा! ई परमाणुना, ते समयनी पर्याय थई ते पर्यायनो कर्ता- साधन ने आधार
ते परमाणु छे. आहा... हा! आ शिखरे सोनानो (कळशो) चडाव्यो- फलाणुं आम कर्यु ने फलाणु
आम कर्युं अभिमानना पार न मळे अरे... रे! ए अभिमानमां गोथां खाय ने मरीने जाय चार
गतिमां (रखडवा.) आहा... ह! केटलुं समाडयुं छे जुओ! आ तो विशेषमां आव्युं केः “पर्यायोना
अन्यपणा वडे द्रव्यनो” – पर्यायोना अन्यपणा वडे द्रव्यनो – के जे असत्–उत्पाद नककी थाय छे” के
जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता छे, करण अने अधिकरणने लीधे पर्यायोथी अपृथक् छे.”
पर्यायोथी जुदो
नथी. ई द्रव्य, पर्यायोथी जुदो नथी. तेथी
“तेनो असत्–उत्पाद नककी थाय छे.” आहा... हा!
आटलामां केटलुं भर्युं छे! आ काल आवी गयुं छे. पण आ तो द्रव्य पोते असत्-उत्पादपणे नककी
थाय छे एम कहे छे. अने छतां ते पर्याय, एकदम बीजी जातनी थाय - संयोगोमां आवीने बीजी
थाय एटले तने एम लागे के एनाथी थई (तो) कहे छे के ना. एना क्रमानुपातीथी (थई छे
क्रमबद्ध). अन्वयना संबंधथी थई छे अने क्रमे आववानी ते आवीने ते पण असत्-उत्पादपणे
पर्याय ऊपजे छे. आहा... हा! त्रण लोकनो नाथ, सत्स्वरूप प्रभु! जे पलटतो नथी - बदलतो नथी,
ए पण अहींया कहे छे के ई पर्यायपणे असत्-उत्पादपणे ते ऊपजे छे. आहा... हा! समजाणुं
कांई...? छे के नहीं एमां? (पाठमां) आहा... हा! गर्व गाळी नाखे एवुं छे!! गर्व गाळतां
भगवान नजरे पडे एवुं छे! आहा... हा!
आवो जे गर्व गाळे, एनी पर्याय (पर) नजर न रहेतां,
आहा... हा! केम के ई पर्यायनो कर्ता तो द्रव्य छे, एनो आधार ई द्रव्य छे, साधन ई द्रव्य छे. (तेथी
द्रव्यने ज जोवानु आव्युं) आ बहारना साधनो मेळवीने, पर्याय निमित्त उत्पन्न करे, निमित्तो मेळवे
साधन अनुकूळ साटु कहे छे ए वात बधी जूठी छे. आहा... हा!
(श्रोताः) पर्यायनी द्रष्टिनो भूकको
ऊडी जाय... (उत्तरः) वस्तु एवी छे बापु! वीतराग, सर्वज्ञ परमेश्वर, जिनेश्वरदेव - एना ज्ञानमां
आव्युं ए कथनमां आव्युं ई कथनमां आव्युं ई आ रचनामां आव्युं (छे.) आहा... हा!
(कहे छे केः) प्रभु (आत्मा) तुं कोई पण परमाणु ने हलावी शके नहीं, हाथने हलावी शके
नहीं, जीभने हलावी शके नहीं, आंखने आम (पटपटावी) शके नहीं आत्मा. केम बेसे? आहा...!
आ दाकतर कहे के ऊंडो श्वास लो! सारुं ऊंडो लईए. बापु! ई श्वासनी पर्याय, परमाणुनी ते काळे,
ते रीते ज आववानी छे ते रीते थाय छे, आत्मा अंदर प्रेरणा करे माटे ऊंडो श्वास थाय, एम नथी.
आहा... हा! एक गाथाए तो गजब सिद्धांत!! मारुं मकान ने मारा पैसा ने... मारा दीकरा ने...
मारी दीकरियुं ने... मारा जमाई - सारो जमाई मळ्‌यो होत तो (फुलाईने बीजाने कहे) आ मारा
जमाई छे.. क्यां करवो ए जमाई! प्रभु! तारी पर्यायमां पण तुं असत्पणे उत्पन्न था. पहेली पर्याय
नो’ ती माटे (असत्-उत्पाद) एमां तुं बीजाने एम मान के आ मारा (छे ए गर्व छे.) आहा...
हा! देवीलालजी! हिन्दीवाळा छे ए नो’ समजे गुजराती भाषामां! आहा...!

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९७
(अहींया कहे छे केः) पर्यायो अन्य छे. माटे पर्यायोना अन्यपणा वडे द्रव्यनो – के जे
पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता, करण अने अधिकरण होवाने लीधे पर्यायोथी - पर्यायोना अन्यपणा वडे
द्रव्यनो अपृथक छे तेथी तेनो
असत्–उत्पाद नककी थाय छे.” आहा... हा!
आ वातने (उदाहरण वडे) स्पष्ट करवामां आवे छेः दाखलो दईने सोनानो. (आ वातने
स्पष्ट करवामां आवे छे)ः
“मनुष्य ते देव के सिद्ध नथी.” आ (शरीर) ते मनुष्य नहीं हो आ तो परमाणुं छे पण
मनुष्यनी अंदर गति जे छे ने, गतिनी योग्यता जीवमां रहेली ए मनुष्यनी गति छे ते सिद्ध नथी के
देव नथी. मनुष्यनी जे पर्याय छे ते देवनी पर्याय नथी, ते सिद्धनी पर्याय नथी. आहा... हा! आचार्ये
बे वात लीधी. मनुष्य ते देव के सिद्ध नथी, एमां तिर्यंचने अंदर लई लेवुं. “देव ते मनुष्य के सिद्ध
नथी.”
भले स्वर्गमां देव थाय. आहा... हा! आचार्य छे ने... मनुष्यथी देव थवाना छे. देव पछी
सिद्ध थवाना छे. आहा... हा! (देवमांथी) पछी मनुष्य थईने सिद्ध थवाना छे. आहा... हा! दिगंबर
संतोनी वात छे बापा! “मनुष्य ते देव के सिद्ध नथी,” मनुष्यपणानी गति जे छे अंदर ते देवपणुं
नथी ने सिद्धपणुं नथी. अने “देव ते मनुष्य के सिद्ध नथी.” आहा... हा! मुनिराज तो देवमां
जवाना. देवनी पर्याय थवानी - पंचमकाळ छे ने...! आहा...! पण ई “देव ते मनुष्य के सिद्ध
नथी.”
आहा... हा! “ए रीते नहि होतो” थको अनन्य (–तेनो ते ज) केम होय?” जीव तेनो ते
ज केम होय? जोयुं? आहा...! ए जीव जे छे मनुष्य छे ते देव के सिद्ध नथी, अने देव के सिद्ध छे ते
मनुष्य नथी, तो पछी तेनो ते ज केम (जीव) होय? आहा...! तेनो ते ज केम होय? आहा... हा!
पर्यायमां अनेरो थाय छे ने...! दुनिया तो शरीरने ज देखे छे (माने छे) आत्मा. आ (शरीर तो)
माटी छे, पुद्गलनी अवस्था - जड-माटी छे. ए (शरीरमां) अनंता परमाणु छे एकेक परमाणुंमां
अनंती अन्वयशक्तिओ छे अने ते ते परमाणुनी (पर्यायो) क्रमानुपाती (क्रमबद्ध) जे पर्याय
आववानी ते ज आवे छे ए पर्यायनो कर्ता-साधन ने अधिकरण (आधार) ए परमाणु छे. आहा...
हा! आवुं जगतने बेसवुं (घणुं कठण!) अभ्यास क्यां छे? जगतना अभिमान आडे (समजवा)
नवरो क्यां छे? आ कर्यु ने.. आ कर्युं ने.. आ कर्युं ने...!
(अहींया कहे छे केः) (तेनो ते ज) केम होय, के जेथी अन्य ज न होय” अनेरो छे. ए
पर्यायथी अनेरो-अनेरो छे. “अने जेथी मनुष्यादि पर्यायो जेने नीपजे छे एवुं जीवद्रव्य पण -
आहा...! आहा... हा! जीवद्रव्य पण अने जेथी मनुष्यादि पर्यायो जेने नीपजे छे एवुं जीवद्रव्य पण
- ए जीवद्रव्य पर्याय अपेक्षाए अन्य छे एम सिद्ध करवुं छे. आहा... हा! आवो उपदेश हवे
मीठालालजी! नवरा क्यां? एक तो धंधा आडे नवरा क्यां? पाप. आखो दि’ धंधो! बायडी-छोकरां
(साचववां) धूळ-धाणी! आहा... हा! कांई जेनी हारी संबंध न मळे,

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९८
ऊगमणो-अचथमणो क्यां’ य न मळे. एक बावळमांथी आव्यो होय ने एक हारे लीमडामांथी आव्यो
होय. आहा... हा... हा! ए प्रश्न थयेलो. एक फेरे. अमरेली चोमासुं हतुं ने... छीयासीनुं. पूरुं थईने
चितल गया चितल. न्यां एक कुंवरजीनो मनसुख ने... एनुं सगपण न्यां कर्युं तुं न्यां शेठियावमां
लालचंद शेठनी दीकरी. लालचंद शेठ! आ बधा पैसावाळा! जे दि’ सगपण कर्युं ते दि’ पूछयुं मने
आणंदजीए के आ शुं? छोडी क्यांनी ने छोकरो क्यांनो? आ बधो मेळ शुं थाय छे. कहे छे.
सत्यासीनी वात छे. कारतक वद-१. पुनमे पूरुं थाय ने... एटले अमरेलीथी चितल आवेला सीधा ज.
आणंदजी हारे हतो. कीधुं के भाई! ए बाई क्यां’ कथी बावळमांथी आवी होय, अने आ छोकरो
लीमडामांथी आव्यो होय. ते आम भेगां कहेवाय पण भेगां कोने कहेवा? आहा... शांतिभाई! कोने
भेगां कहेवां? भेगां थया कहे छे कर्म अनुसार. आहा...! हा!
(अहींयां कहे छे) दरेक द्रव्य ते ते समयनी क्रमानुपाती पर्यायपणे ते द्रव्य ऊपजे छे. आहा...
हा! तेथी ते द्रव्यनो पण असत्-उत्पाद कहेवामां आवे छे. पर्यायनी अपेक्षाए. आहा... हा... हा! ए
अहींयां कहे छे.
“जेथी मनुष्यादि पर्यायो जेने नीपजे छे एवुं जीवद्रव्य” जोयुं? जीवद्रव्य पण हवे
द्रष्टांत आपे छे. “वलयादि विकारो (कंकण वगेरे पर्यायो) जेने ऊपजे छे एवा सुवर्णनी जेम.”
कंकण आदि पर्यायो सोनामां ऊपजे छे. सोनामां कडुं (कुंडळ, वींटी) आदि थाय ने...! एवा सुवर्णनी
जेम. वलयादि विकारो एटले पर्यायो, सोनामांथी थाय ने कुंडळ, कडां, वींटी, थाळी पण थाय -
सोनानी थाळी, सोनाना वाटका, सोनाना प्याला होय छे ने...! छे ने अहींयां आवे छे अमारे आहार
(दान) वखते. अमुशने घरे सोनाना (थाळी-वाटका) प्याला होय छे. सोनानी चमची वळी होय छे
ने...! आहा... हा! ए कहे छे के जे आकार थयो सोनानो (जेने) वलयादि विकारो (कह्यां) ए
जीवद्रव्य पण - वलयादि विकारो, कंकण वगेरे जेने ऊपजे छे (अर्थात्) जेने ऊपजे छे एवा
सुवर्णनी जेम - जीवद्रव्य पण
“पदे पदे (पगले पगले, पर्याये पर्याये) अन्य न होय?” आहा...!
ई जीव पण अन्य-अन्य न होय केम? एम कहे छे. जेम सोनुं पण पर्याये-पर्याये भिन्न भिन्नपणे
ऊपजे छे अने अन्य-अन्य छे तो जीव पण भिन्न भिन्न पर्याये ऊपजे छे तो अन्यपणे केम न
होय? आहा... हा! अहींयां तो परनी हारे कांई संबंध नथी ई सिद्ध करीने - एकदम भिन्नपणानी
पर्याय देखाय-मनुष्यदेह छूटीने देवमां - तो (लोको) कहे के आहा... आयुष्य देवनुं बांध्युं माटे
देवपणुं थयुं ते वात खोंटी छे. आहा... हा! समजाय छे? घणा संस्कारवाळा जीवो तो देवमां जवाना.
आवी स्थिति सांभळे - दररोज सांभळे एना पुण्य बंधाय, ए मरीने स्वर्गमां जवाना. आहा... हा!
एकदम मनुष्यदेह छूटीने स्वर्ग (मां जाय) तो एम थई जाय के आ शुं नवुं ऊपजयुं? के ना. अनेरी
पर्याय थई - पण ई पहेली नो’ ती माटे अनेरी-अन्य कीधी. ए अन्य छे (पर्याय) माटे द्रव्य एम
ने एम रह्युं छे एम नहीं. ए पण ऊपजयुं छे. आहा.. हा! छे ने? (पाठमां)

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९९
(कहे छे केः) “एवुं जीवद्रव्य पण – वलयादि विकारो (कंकण वगेरे पर्यायो जेने ऊपजे छे
एवा सुवर्णनी जेम – पदे पदे (पगले पगले, पर्याये पर्याये) अन्य न होय? केम न होय? अनेरुं
(द्रव्य) केम न होय?
अहीं सोनामां “जेम कंकण, कुंडळ वगेरे पर्यायो अन्य छे.” पर्यायो अनेरापणे
थाय छे. ए सुवर्ण अनेरी-अनेरी पर्यायपणे थाय छे एम जीवद्रव्य अनेरापणे केम न होय? आहा...
हा! परनी हारे कांई लेवा-देवा न मळे. कर्मने लईने ने फलाणाने लईने ढींकडाने लईने (आम थयुं
ए वात नहीं.) आहा... हा! आवी वात छे! सुकनलालजी! शुकन आ छे. आहा... हा! द्रव्य अनेरुं
केम न होय? एम कहे छे भाई! आहा... हा! पर्याय अपेक्षाए (नी वात छे!) आहा...! द्रव्य तो
द्रव्य छे. पण पर्याय भिन्नभिन्न थई ते काळे ते थवानी क्रमानुपाती - क्रमे आववानी हती (ते) थई,
आववानी हती ने थई, ए वखते द्रव्य अन्य केम न कहीए? द्रव्य अन्यरूपे नथी थयुं एम केम न
कहीए? पहेली (मनुष्य पर्याय) पणे हतुं ने (देवपणे) थयुं तो अन्य केम नथी? आहा... हा! आवी
वातुं! सांभळवा मळवी मुश्केल! अने सांभळवी य मुश्केल पडे! लो, आ हाथे य हलावी शके नहीं.
बोली शके नही. आहा... हें? साधुने आहार दई शके नही. भगवाननी स्तुति करी शके नही. आहा...!
भगवाननी पूजा (समये) चोखा वडे करीने (अर्ध्य) चडावी शके नहीं. ई आत्मा करी शके नहीं एम
कहे छे. आहा... हा! ए वखते ई जीवद्रव्यनो पर्याय, पहेलो नहोतो ने अनेरो थयो एथी तने एम
लागे के आ पर्यायने लईने आ बधुं - आ थाय छे एम नथी. आहा... हा! को’ कान्तिभाई! आवुं
तो सांभळ्‌युं नथी. नानी उंमरमां वया गाय बिचारा! बुद्धिवाळा हता पण. गोरधनभाईए तो थोडुं’
क पाछळथी सांभळेलुं! तत्त्वनी वात! आहा... हा! अरे... रे! जे कमाणी करवी जोईए ए कमाणी करी
नहीं. हें? आ दश हजारनो पगार ने पंदर हजारनो पगार ने वीस हजारनो पगार ने...! बापु! पण
एमां शुं थयुं? एमां क्यां तुं आव्यो? ए क्यां ताराथी थयुं? ताराथी थयुं - जे पर्याय पहेली नहोती
एम अहींयां थयुं तो अनेरुं थयुं तो द्रव्य अन्य केम न होय? एम कहे छे. परने लईने थयुं नथी.
एम कहे छे. ए पर्यायने लईने द्रव्य अनेरुं केम न थयुं? आहा... हा!
(अहींयां कहे छे) “अन्य न होय? जेम कंकण, कुंडळ वगेरे पर्यायो अन्य छे (भिन्नभिन्न छे,
तेना ते ज नथी) तेथी ते पर्यायो करनारुं सुवर्ण पण अन्य छे.”, छे? (पाठमां) कई पर्याय? कंकण,
कुंडळ आदि ते पर्यायो करनारुं सुवर्ण पण अन्य छे. एनुं - पर्यायोनुं करनारुं सुवर्ण पण पर्यायनी
अपेक्षाए अन्य छे. आहा... हा!
“तेम मनुष्य, देव वगेरे पर्यायो अन्य छे तेथी ते पर्यायो करनारुं
जीवद्रव्य पण पर्याय–अपेक्षाए अन्य छे.” आहा... हा! केटलुं स्पष्ट कर्युं छे!! हजी तो अहींयां
बहारना अभिमान मूकवा नथी. अमे आ कर्युं ने अमे आनुं आम कर्युं ने आ कर्युं ने - को’ कने
छेतरवा होय तो आम छेतरवा ने आम (चालाकीथी) छेतरवा ने अरे... रे! छेतराय जाय छे तुं
(ते) तने तारी खबर नथी. आहा... हा! ते पर्यायनी उत्पत्तिनुं कारण

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो प००
तो तारुं द्रव्य छे. आहा... हा! एना बीजाना पैसा गाय ने (छेतराणो) तो ए तो एने कारणे-
पैसानी पर्याय पैसाथी थई एने कारणे खेद थयो के राग थयो तो एने कारणे (थयो छे) ए कांई
पैसाने कारणे (खेद के राग) थयो एम नहीं. आहा... हा! आवी वातुं! त्रण लोकनो नाथ! आम
सामे ऊभो रह्यो होय जाणे अने सत्नी वातुं करतो होय आहा... हा! फाट-फाट. प्याला के! (अजर
प्याला!) आहा... हा!
परद्रव्यथी थाय... प्याला भिन्न छे. ए समये पण परद्रव्यनी पर्यायपणे तुं नहीं अने तारी
पर्यायपणे ते नहीं. तारे पर्याय तेनाथी (थाय) नहीं. आहा... हा... हा!
अहींयां तो कहे छे के तारी पर्याय भिन्नभिन्न भासे - एकदम विलक्षण भासे तो पण ई
क्रमानुपाती छे. अने ते एना गुणनी साथे संबंध राखीने छे. अने तेथी ते द्रव्य ते-पणे ऊपजयुं छे,
द्रव्यने पण तेथी अमे अन्य कहीए छीए. आहा... हा! को’ हें? आवुं छे! आमां आवुं झाझा माणस
सांभळनारा-शुं कहे छे? बहु थोडा (सांभळनारा होय) वात साची! थोडा ज होय. आवुं परम
सत्य!! आहा... हा! त्रण लोकनो नाथ! सीमंधरदेव परमेश्वर! इन्द्रोनी वच्चे कहेता हता ई आ वात
छे. अने हजी कही रह्या छे परमात्मा! सीमंधर भगवान तो साक्षात् अरिहंत पदे छे ने...! महावीर
परमात्मा सिद्धपद थई गया. आहा... हा! पण ते य कहे छे के सिद्धपद पर्याय टाणे ई अनेरी पर्याय
थई छे अने जीव पण त्यां अनेरापणे थयो छे. देवपणे हतो अथवा मुनिपणे हतो ते पर्यायपणे हतुं
ते वखते ते पर्यायपणे (जीवद्रव्य) हतुं. अने सिद्धपर्याय थई ते पहेलानी पर्यायने लईने थई एम
नहीं. आहा... हा... हा! इ सिद्धनी पर्याय, ते समये क्रमानुपाती (क्रमबद्ध) थई तेनो कर्ता - करण -
साधन ने आधार ए आत्मा छे. आहा.. हा.. हा! ए मोक्षनी पर्यायनो कर्ता मोक्षमार्गे य नहीं.
आहा... हा! केम के (मोक्ष) मारगनी पर्याय काळे द्रव्य ते-पणे ऊपजेलुं अने ज्यां सिद्धपद थयुं ते
पर्याय ते काळे ते द्रव्य ऊपजयुं तेथी अन्य-अन्य द्रव्य थयुं एम केम न कहेवाय? पर्याय अपेक्षाए
(थयुं एम कहेवाय छे.) आहा... हा! ई आ द्रव्य (गळे उतारवुं) मुश्केल! आ तो बधुं! आवी वातुं
हशे?! अरे! भाग्यशाळी लोक छो बापा! आवी वीतरागनी वातुं - घरनी वात - साक्षात् भगवान
बिराजता होय एम कहे छे. आहा... हा! लो! एकसो ने तेरमी गाथा.
भावार्थः– “जीव अनादि अनंत होवा छतां, मनुष्य पर्यायकाळे देवपर्यायनी के
स्वात्मोपलब्धिरूप सिद्धपर्यायनी अप्राप्ति छे.” भगवान (आत्मा) अनादि अनंत होवा छतां -
भगवान एटले आत्मा. मनुष्य पर्यायकाळे देवपर्यायनी पोते आचार्य छे ने... संत छे ने... मुनि छे
ने... कहे छे के मनुष्यनी पर्यायकाळे देवपर्यायनी के स्वात्मोपलब्धिरूप सिद्धपर्यायनी अप्राप्ति छे.
आहा... हा... हा! वात ई नाखी छे देवमांथी मनुष्य थईने सिद्ध थवाना (मुनिराज.) आहा... हा!
अरे! आनो एकांत कहे (अज्ञानी लोक). लोको एम कहे. परथी कांई न थाय - अने आडी -

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो प०१
अवळी कांई पर्याय न थाय-(मुनिराज कहे छे) परथी कांई न थाय ने आडी-अवळी कांई पर्याय न
थाय. ले शुं कहेवुं छे तारे? “क्रमानुपाती” तेना योगथी आववानी पर्याय जे छे ते आवे छे.
अन्यवयनो-गुणनो संबंध राखीने-अन्वयनो संबंध तोडीने नहीं. (क्रमानुपाती-क्रमसर) थाय छे.
अन्वयनो संबंध राख्यो तो अन्वय तो गुण छे एटलो पण संबंध थयो एनी हारे. एथी अहींयां
कीधुं के द्रव्य अन्यपणे ऊपजयुं छे. आहा...हा! आवी वातुं छे. भक्ति अहीं थाशे हों! शरीरनुं कारण
होवाने कारण! पूनम छे आ ज. चोमासानो दिवस! काले तो भगवाननो दिव्य ध्वनिनो दिवस छे.
भगवाननी दिव्यध्वनिनो-गणधरनी उत्पत्तिनो काले दिवस छे. चार ज्ञान थवानो-बार अंगनी
रचनानो-ए दिवस छे काल! नैगमकालनी अपेक्षाए. काले ज केम? (अपेक्षाए वात छे.) नैगम
एटले संकल्प-विकल्प. एथी एम कहेवा एने. आहा...हा!
(अहींयां कहे छे केः) “अर्थात् मनुष्य ते देव के सिद्ध नथी माटे ते पर्यायो अन्य अन्य छे.
आ रीते पर्यायो अन्य होवाथी, ते पर्यायोनो करनार, आहा... हा! एक बाजु एम कहे के पर्यायोनो
करनार द्रव्य-गुण नहीं. पर्यायनो करनार पर्याय, पर्याय कर्ता, पर्याय कर्म, पर्याय करण, पर्याय
संप्रदान, पर्याय अपादान, पर्याय अधिकरण - आधार (पण) अहींयां तो बीजी वात सिद्ध करवी छे
ने...! आहा... हा! स्याद्वाद अनेकांत मार्ग - आ रीते छे. फुदडीवाद नथी. आहा... हा! सिद्धनी
पर्यायोनो करनार, मोक्षनी पर्यायथी मोक्षनी पर्याय थई एमे य नहीं एम कहे छे. हें? आहा... हा!
एक कोर मोक्षमार्ग छे एनाथी मोक्ष थाय एम कहेवुं. अहींयां कहे छे सिद्धनी पर्यायनो करनार,
सिद्धनो आत्मा छे.
(श्रोताः) कई अपेक्षा साची? (उत्तरः) बेय अपेक्षा साची छे. क्यां गया तमारा
वडील मोतीलाल छे? गया? छे. के गुजराती समजे के नहीं? ई तो समजे छे गुजराती. (श्रोताः)
बहु सरळ भाषा छे. (उत्तरः) भाषा सरळ छे! अने ई तो घणी वार आवे छे ने...! आहा... हा!
कपाट फाडी नाख्या छे अंदरथी! (भेद खोली नाख्या छे.) परनी हारे कांई संबंध नहीं अने पूर्वे
पर्याय नो’ ती माटे थई तेथी कंईक विलक्षण परनुं थयुं. एना संबंधथी बिलकुल नहीं. अने ते
पर्याय द्रव्यने अडती नथी छतां ते पर्यायनो कर्ता द्रव्य छे. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “ते पर्यायोनो करनार, साधन अने आधार एवो जीव पण पर्याय–
अपेक्षाए अन्यपणाने पामे छे.” पर्याय अपेक्षाए (जीव) अन्यपणाने पामे छे. आहा...हा! शुं
वीतरागनी शैली!!
“आ रीते जीवनी माफक, दरेक द्रव्यने” दरेक द्रव्य-परमाणु, आकाश, धर्मास्ति,
अधर्मास्ति, काळ-दाळ, भात, रोटला, शाक दरेक द्रव्यने “पर्याय अपेक्षाए अन्यपणुं छे.” ई शाकनी
पर्याय जे थाय छे (काचामांथी) पाकी. ए पाकवानी पर्यायनो एनो काळ छे क्रमानुपाती ए थयो छे.
ए पाकी पर्यायनो कर्ता ई परमाणु छे. बाई नहीं, (वासण) नहीं. आहा...हा! आंही तो
अभिमाननो पार नहीं के माराथी केवुं सरस थाय छे. केवा (मजाना) पुडला थाय छे. हाथ हलावुं
(हळवे-हळवे) शुं कहेवाय? वडी

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो प०२
थाय छे ने... पापड (सरस) थाय छे ने ढींकडुं थाय छे ने...! (माने के हुं) हुशियार! मरी गयो छे.
आत्माने मारी नाख्यो परनुं कर्तापणुं मानीने-करीने आहा... हा! भगवान (आत्मा) तो जीवती
जयोत! जीवती जयोत बिराजे छे चैतन्य!!
कहे छे के ते ते काळे ते पर्यायपणे द्रव्य ऊपजे छे माटे अन्य पण कहेवामां आवे छे द्रव्यने.
पण अनेरो (कोई) बीजो छे एम नहीं. ए पर्याय विलक्षण आदि पर्याय थाय एना करवामां एनुं
द्रव्य छे. बाकी कोई बीजुं द्रव्य - एनुं निमित्तपणुं छे, निमित्तपणुं हों. पण एथी कंई (निमित्त)
एनो कर्ता छे के साधन छे के आधार, अपादान छे एम नथी. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) पर्याय–अपेक्षाए अन्यपणुं छे.” आहा...! “दरेक द्रव्यने पर्याय–
अपेक्षाए अन्यपणुं छे. आम द्रव्यने अन्यपणुं होवाथी द्रव्यने असत्–उत्पाद छे. एम निश्चित थाय
छे.
द्रव्यने हों? पर्याय तो असत् छे ज, पण ई पर्याय द्रव्यनी छे ने...! तेथी द्रव्यने असत्-उत्पाद
कहेवामां आवे छे. आहा... हा! आवुं झीणुं छे! ई एकसो तेर थई.

विशेष कहेशे.....


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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प०३
हवे एक द्रव्यने अन्यत्व अने अनन्यत्व होवामां जे विरोध तेने दूर करे छे (अर्थात् तेमां
विरोध नथी आवतो एम दर्शावे छे)ः-
दव्वट्ठिएण सव्वं दव्वं तं पज्जयट्ठिएण पुणो ।
हवदि य अण्णमणण्णं तक्काले तम्मयत्तादो ।। ११४।।
द्रव्यार्थिकेन सर्व द्रव्यं तत्पर्यायार्थिकेन पुनः ।
भवति चान्यदनन्यत्तत्काले तन्मयत्वात् ।। ११४।।
द्रव्यार्थिके बधुं द्रव्य छे; ने ते ज पर्यायार्थिके
छे अन्य, जेथी ते समय तद्रूप होई अनन्य छे. ११४.
गाथा – ११४
अन्वयार्थः– (द्रव्यार्थिकेन) द्रव्यार्थिक (नय) वडे (सर्वं) सघळुं (द्रव्यं) द्रव्य छे; (पुनः
) अने वळी (पर्यायार्थिकेन) पर्यायार्थिक (नय) वडे (तत्) ते (द्रव्य) (अन्यत्) अन्य-
अन्य छे, (तत्काले तन्मयत्वात्) कारण के ते काळे तन्मय होवाने लीधे (अनन्यत्) (द्रव्य
पर्यायोथी) अनन्य छे.
टीकाः– खरेखर सर्व र्वस्तु सामान्य-विशेषात्मक होवाथी वस्तुनुं स्वरूप जोनाराओने अनुक्रमे
(१) सामान्य अने (२) विशेषने जाणनारां बे चक्षुओ छे - (१) द्रव्यार्थिक अने (२) पर्यायार्थिक.
तेमां, पर्यायार्थिक अक्षुने सर्वथा बंध करीने एकला उघाडेला द्रव्यार्थिक चक्षु वडे जयारे
अवलोकवामां आवे छे, त्यारे नारकपणुं, तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं देवपणुं अने सिद्धपणुं -ए
पर्यायोस्वरूपविशेषोमां रहेला जीवसामान्यने अवलोकनारा अने विशेषोने नहि अवलोकनारा ए
जीवोने ‘ते बधुं य जीवद्रव्य छे’ एम भासे छे. अने जयारे द्रव्यार्थिक चक्षुने सर्वथा बंध करीने
एकला उघाडेला पर्यायार्थिक चक्षु वडे अवलोकवामां आवे छे, त्यारे जीवद्रव्यमां रहेला नारकपणुं,
तिर्यंचपणुं, मनुष्यपणुं, देवपणुं अने सिद्धपणुं - ए पर्यायोस्वरूप अनेक विशेषोने अवलोकनारा अने
सामान्यने नहि अवलोकनारा एवा ए जीवोने (ते जीवद्रव्य) अन्य-अन्य भासे छे, कारण के द्रव्य ते
ते विशेषोना काळे तन्मय होवाने लीधे ते ते विशेषोथी अनन्य छे - छाणां, तृण, पर्ण - अने
काष्ठमय अग्निनी माफक (अर्थात् जेम तृण, काष्ठ, वगेरेनो अग्नि ते ते काळे तृणमय, काष्ठमय

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गाथा – ११४ प्रवचनसार प्रवचनो प०४
वगेरे होवाने लीधे तृण, काष्ठ वगेरेथी अनन्य छे, तेम द्रव्य ते ते पर्यायोरूप विशेषोना समये ते-मय
होवाने लीधे तेमनाथी अनन्य छे - जुदुं नथी.) अने जयारे ते बन्ने चक्षुओ - द्रव्यार्थिक अने
पर्यायार्थिक - तुल्यकाळे (एकीसाथे) खुल्लां करीने ते द्वारा अने आ द्वारा (द्रव्यार्थिक चक्षु द्वारा तेम
ज पर्यायार्थिक चक्षु द्वारा) अवलोकवामां आवे छे, त्यारे नारकत्व-तिर्यंचत्व - मनुष्यत्व - देवत्व-
सिद्धत्व-पर्यायोमां रहेलो जीवसामान्य अने जीवसामान्यमां रहेला नारकत्व - तिर्यंचत्व - मनुष्यत्व
- देवत्व - सिद्धत्व पर्यायोस्वरूप विशेषो तुल्यकाळे जे देखाय छे.
त्यां, एक चक्षु वडे अवलोकन ते एकदेश अवलोकन छे अने बे चक्षुओ वडे अवलोकन ते
सर्व अवलोकन (-संपूर्ण अवलोकन) छे. माटे सर्व अवलोकनमां द्रव्यनां अन्यत्व अने अनन्यत्व
विरोध पामतां नथी.
भावार्थः– दरेक द्रव्य समान्य-विशेषात्मक छे. तेथी दरेक द्रव्य तेनुं ते ज पण रहे छे अने
बदलाय पण छे. द्रव्यनुं स्वरूप ज आवुं उभयात्मक होवाथी द्रव्यना अनन्यपणामां अने अन्यपणामां
विरोध नथी. जेम के मरीचि अने श्रीमहावीरस्वामीनुं जीवसामान्यनी अपेक्षाए अनन्यपणुं अने
जीवना विशेषोनी अपेक्षाए अन्यपणुं होवामां कोई प्रकारनो विरोध नथी.
द्रव्यार्थिकनयरूपी एक चक्षुथी जोतां द्रव्यसामान्य ज जणाय छे तेथी द्रव्य अनन्य अर्थात् तेनुं
ते ज भासे छे अने पर्यायार्थिकनयरूपी बीजा एक चक्षुथी जोतां द्रव्यना पर्यायोरूपी विशेषो जणाय छे
तेथी द्रव्य अन्य-अन्य भासे छे. बन्ने नयोरूपी बन्ने चक्षुओथी जोतां द्रव्यसामान्य तथा द्रव्यना विशेषो
बन्ने जणाय छे तेथी द्रव्य अनन्य तेम ज अन्य-अन्य बन्ने भासे छे. ११४.