Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 08-07-1979; Gatha: 113.

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७८
प्रवचनः ता. ८–७–७९.
‘प्रवचनसार’ गाथा-११२ नो भावार्थ. टीका आवी गई छे.
शुं कहे छे? “भावार्थः– जीव मनुष्य–देवादिक पर्याये परिणमतां छतां अन्य थई जतो नथी.”
भगवान आत्मा! द्रव्यस्वरूप छे जे त्रिकाळ. ए मनुष्यनी पर्यायने पामे के देवनी पामे के सिद्धनी
पामे, पण कांई ते वस्तु अन्य थई जती नथी. पर्यायपणे परिणमे एम भिन्न भिन्न. वस्तु तो एनी
ए-एवडी ने एवडी-एवी ने (एवी) ए वस्तु छे. आहा...हा! “जीव मनुष्य देवादिक” देवादिकमां
तिर्यंच-नारकी एना पर्याये परिणमतां छतां-अवस्थामां-अवस्थारूपे थवा छतां (आत्मा) अन्य थई
जतो नथी. अनेरी चीज थई जती नथी. आहा...हा! जीवद्रव्य तो जीवद्रव्यरूपे त्रिकाळ छे. आहा...!
भगवत्स्वरूप! अहींयां तो पर्यायोरूपे परिणमे छे एम कह्युं. ‘नियमसार’ मां तो एम कह्युं के जे
मोक्ष अने संवर-निर्जरा आदिनी पर्याय छे ए परद्रव्य छे. केम के स्वद्रव्य जे छे त्रिकाळ! सच्चिदानंद
प्रभु! एकरूप स्वभाव-ज्ञायक परम पारिणामिक स्वभाव, ए स्वद्रव्य छे. अने मोक्षनी पर्याय, संवर-
निर्जरानी पर्याय (परद्रव्य छे.) (
‘नियमसार’ गाथा–४१ अन्वयार्थः जीवने क्षायिकभावनां स्थानो
नथी, क्षयोपशम–स्वभावनां स्थानो नथी, औदयिकभावनां स्थानो नथी के उपशमस्वभावनां
स्थानो नथी.)
(आम छे छतां) अहींयां कहे छे के जीव (पर्यायोमां) प्रवर्ते छे. आहा...हा...हा!
पर्याय एनी छे. ई कांई करमथी थई छे के कांई संयोगो-बीजी चीजथी थई छे (ए पर्यायो के)
सिद्धनी के नर्कनी (के अन्य पर्याय) संयोगी चीजथी थई छे एम नथी. छतां ते अनेरी अनेरी
पर्याये, स्वयंसिद्ध पोते (स्वतः) परिणमे (छे) छतां वस्तु (आत्मा) अन्य-अन्य थई जती नथी.
आहा...हा...हा!
(कहे छे) बहारनी तो वात ज शी करवी? शरीर ने वाणी ने मनना बधां-जड जुदी जुदी
अवस्थाए थाय ए तो बधां जड-पर, पण आत्मा पोते ए पांच पर्यायपणे थाय. नारकीपणे,
मनुष्यपणे, तिर्यंचपणे, देवपणे, ने सिद्धपणे-ए पांच (प्रकारनी) पर्यायपणे परिणमतां छतां
(आत्मा) अन्य थई जतो नथी. द्रव्य बीजुं थई जाय छे एम नथी. आहा...! त्यां
(‘नियमसार’
शुद्धभाव अधिकार) गाथा-३८ मां तो एम कह्युं जीवादिबहितच्चं परद्रव्य छे. ई तो टीकाकारे कह्युं
टीकाकारे नाख्युं छे क्यांथी? के (‘नियमसार’) प० मी गाथामां नाख्युं छे ने...! कुंदकुंदाचार्ये पोते
नाख्युं छे. (
‘नियमसार’ गाथा–प० अन्वयार्थः– पूर्वोकत सर्व भावो परस्वभावो छे. परद्रव्य छे,
तेथी हेय छे; अंतःतत्त्व एवुं स्वद्रव्य–आत्मा–उपादेय छे.) भगवान आत्मा! नित्यानंद ध्रुव! एनी
अपेक्षाए जेटली पर्यायो थाय, ए बधी परद्रव्य, परभाव हेय छे. (तो एने तो) पोते भगवान
कुंदकुंदाचार्ये परद्रव्य कह्युं. तो एनो (आधार) लईने
जीवादिबहितच्चं परद्रव्य छे एम कीधुं. ई तो
टीकाकार परद्रव्य कहे, पण आचार्य पोते (मूळ पाठमां) कही गया छे.

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७९
(अर्थात्) कहेवाना छे. (गाथा) पचासमां. आ तो ३८ मां (कह्युं छे.) आहा... हा! स्वद्रव्य,
भगवान (आत्मा) ध्रुव! टंकोत्कीर्ण, वज्रनुं बिंब! जेम एकरूप होय, जेमां पर्यायनो प्रवेश नथी,
छतां पर्याय छे. आहा... हा! वस्तु भगवान आत्मा!
द्रष्टिना विषय माटे छे जे द्रव्य, ए तो
पर्यायपणे परिणमे पण एनुं लक्ष त्यां नथी. संवर–निर्जरापणे परिणमे ते (परिणाम–पर्याय)
उपर समकिती–ज्ञानीने तेनुं लक्ष नथी. ज्ञान बराबर करे. ज्ञान तो छ द्रव्यनुं य करे. (ए ज्ञान)
करवा छतां एक स्वद्रव्य जे चैतन्यप्रभु! ई कोई (पण) पर्याये थतो नथी माटे एकरूप छे, एवी
द्रष्टि धर्मीनी कदी खसती नथी!! आहा!
अने ए द्रष्टि खसे तो ई पर्यायबुद्धि-मिथ्याद्रष्टि थई जाय
छे. आहा... हा! ए कीधुं (हवे कहे छे.)
(अहींयां कहे छे केः) “अनन्य रहे छे” अनेरी-अनेरी पर्यायपणे परिणमवा छतां अरे,
निगोदनी, एकेन्द्रियनी, तिर्यंचनी- ए तो (आगळ) आवी गयुं ने...! तिर्यंचमां ई आवी गयुं.
निगोदनी-लसण ने डुंगळी, एनी एक कटकीमां अनंताजीव (एवो) एक जीव अक्षरना अनंतमां
भागमां विकास होवा छतां जीवद्रव्य अनेरुं थतुं नथी. आहा... हा! (जीव) पर्यायमां परिणम्युं छे.
एम कहेवाय, ई अहींयां कीधुं छे. (
‘द्रव्य पर्यायोमां वर्ततुं होवाथी’) पर्यायमां वर्ते छे. आगळ तो
कहेशे (गाथा एकसो) तेर मां तो ई पर्यायनुं करण-साधन ने कर्ता तो द्रव्य छे. (–गाथा–११३ टीका
‘के जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता, करण अने अधिकरण होवाने लीधे पर्यायनी अपृथक छे’)
एम
कहेशे. आहा...हा! आहा...हा! पाछळ छे छेल्ली छे. ए पर्यायनुं एक बाजु एम कहे पर्यायनुं षट्कारक
परिणमन, द्रव्यने गुणनी अपेक्षा विना स्वतंत्र छे. एक बाजु एम कहे द्रव्य पोते ते पर्यायमां
परिणमे छे. परिणमे छतां द्रव्य एम थतुं नथी. आहा.. हा! पर्यायने परद्रव्य कहीने, परद्रव्यरूपे
परिणमे छे. परिणमे छतां ई द्रव्य छे सत् ई अनेरापणे थतुं नथी. आहा...हा...हा! एनी पोतानी
पर्याय जे पांच (प्रकारनी) छे ए पणे थवा छतां द्रव्य एम थतुं नथी. आहा...हा! पर्यायने परद्रव्य
कहीने, परद्रव्यरूपे परिणमे छे छतां ई द्रव्य छे सत् ई अनेरापणे थतुं नथी. आहा...हा...हा! एनी
पोतानी पर्याय जे पांच (प्रकारनी) छे ए -पणे थवा छतां, द्रव्य एम थतुं नथी. तो बीजा पदार्थ-
संयोगनी तो वातशी करवी? के संयोगने लईने आम थयुं-संयोगने लईने आम थयुं-कर्मनो उदय
आकरो आव्यो माटे आम थयुं-आहा...! दुश्मन एवो प्रतिकूळ आव्यो के खरेखर सूता’ ता ने मार्यो!
आ ज तो एवुं सांभळ्‌युं ओला कान्तिभाईनुं क्यारे मरी गया खबर नथी कहे. एम के राते थई
गयो अकस्मात कहे. सवारे दूधवाळी आवी ते कहे के कान्तिभाईनुं माथुं आम केम थई गयुं छे? दूध
देवावाळाए (कीधु). त्यां ज्यां जोवे ते खलास भाई! कांई नथी. क्यारे देह छूटयो? आहा...हा! जे
समये देह छूटवानो ते समये देह छूटशे. आहा...हा! ई पहेलुं खबर दईने छूटशे? के भई लो हवे हुं
आ समये छूटवानुं छुं.
अहींयां तो कहे छे के जे द्रव्य पर्याय-पणे परिणम्युं छे. परिणम्युं छे (ते पर्यायोमां) द्रव्य वर्ते
छे. छतां द्रव्य तो द्रव्यपणे रहे छे, द्रव्य अनेरुं थतुं नथी. क्यां (एक जीवनी) निगोदनी पर्याय ने
क्यां सिद्धनी पर्याय, आम होवा छतां द्रव्य तो तेनुं ते ज ने एनुं ए रह्युं छे. आहा... हा! तिर्यंचनी

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४८०
पर्याय (कीधी ने) एटले निगोदनी. सिद्धनी पर्याय केवळज्ञाननी आहा...! ए जीव मनुष्य, देवादिक-
ए पांच (पर्यायपणे) परिणमतां छतां अन्य थतो नथी (कोण?) द्रव्य-जीव. “अनन्य रहे छे तेनो
ते ज रहे छे”
तेवो ने तेवो ज रहे छे. आहा... हा! “अनन्य रहे छे’ अने “तेनो ते ज रहे छे”
आहा...हा आ ‘ज्ञेय अधिकार’ छे. ज्ञेयनी मर्यादा स्वतंत्र छे. गमे ते पर्यायो-रूपे परिणमे छतां द्रव्य
तो द्रव्यरूपेज रहे छे द्रव्य अनेरुं थतुं नथी, तेनुं बीजुं थतुं नथी, बीजी रीते थतुं नथी.
“ तेनो ते ज
रहे छे” आहा.. हा!
(अहींयां कहे छे केः) “कारण के ते ज आ देवनो जीव छे, जे पूर्वभवे मनुष्य हतो” आहा...
हा! आचार्योनी स्थिति तो आचार्यदेव देह छूटीने देवामां जवाना छे. पंचमआराना छे ने...! तो ई
देवपर्याय थई, ए पूर्वभवे मनुष्य हता. ए जीव ज पूर्वभवे मनुष्य हतो. आहा...हा! अने अमुक
भवे तिर्यंच हतो
”-एम ज्ञान थई शके छे. “आहा...हा! “आ रीते, जीवनी माफक.” जीवनुं द्रष्टांत
दीधुं अहींयां तो (एम) “दरेक द्रव्य पोताना सर्व पर्यायोमां तेनुं ते ज रहे छे.” परमाणु आदि दरेक
द्रव्य, पोताना सर्व पर्यायो-अवस्थामां, गमे तेवी पर्यायमां वर्ततुं होय पण “तेनुं ते ज” द्रव्य रहे छे.
आहा...हा...हा!
(कहे छे) परमाणु वींछीना डंख- पणे परिणमे अने (एज परमाणु) मेसुबनी पर्याय-पणे
परिणमे, पण परमाणु (द्रव्य) तो तेनो ते ज ने तेवडो ने तेवडो (एवो ने एवो) ज रहे छे.
आहा... हा! एकवार ई परमाणु सर्पनी दाढमां झेर-पणे परिणमेलो होय छे. आहा... हा! छतां
परमाणु तो तेनो ते ज- ते रीते ज रहयो छे. अने ए परमाणु साकरनी पर्यायपणे परिणमे. आहा...
हा! तो द्रव्य छे ते तो तेनुं ते ज रह्युं ने तेवुं ने तेवुं ज रह्युं छे. द्रव्यमां कांई ओछुं-वत्तु के घालमेल
थई नथी. आहा... हा!
आवी अंदर प्रतीति, पर्यायपणे द्रव्य वर्ते छतां द्रव्य, द्रव्यमां छे आहा... हा!
एवी द्रष्टिनुं परिणमन थवुं–ए एनुं तात्पर्य छे.
(कहे छे केः) आनुं तात्पर्य शुं? के (वस्तुस्थिति) आम छे, आम छे. आनुं तात्पर्य आ छे.
आहा...हा! ई गमे ते मनुष्यनी पर्याय-पणे तुं हो (पण) प्रभु! तुं आत्मा तो तेवो ने तेवो ज
रहयो छो. गरीबने घरे- मागी खाय त्यारे रोटला मळे. अने लूलो होय-पांगळो होय, आंधळो होय.
आहा...हा! ई शरीरनी अवस्था छे. अंदरमां ए जातनी योग्यता (छे.) छतां (आत्म) द्रव्य तो तेवुं
ने तेवुं ज छे. आहा...हा! गमे ते अवस्था (हो) आ परमाणु (शरीरना) एक वार वींछीना
डंखपणे परिणमेला हता. आ परमाणु सर्पनी दाढमां झेर-रूपे थयेला हता. अत्यारे आ (शरीरनी)
पर्यायपणे छे छतां वस्तु (परमाणुद्रव्य) छे ई छे एवी ने एवी छे. आहा...हा! (अवस्थाओमां)
केटलो फेर! पर्यायनो केटलो फेर! ई तो पर्यायनो फेर, वस्तुनो फेर कांई नथी. आहा...हा! आवुं
स्वरूप छे (ज्ञेयोनुं.) आ ‘ज्ञेय अधिकार’ छे. ज्ञेय छे ई द्रव्य तरीके ते एवुं ने

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४८१
एवुं सदा काळ त्रण लोकमां (रह्युं छे.) आहा... हा! गमे ते स्थिति पर्यायमां (होय) भंगीनी
अवास्था थाय. विष्टा उसेडे, पायखाने (थी) एवी पर्याय थाय पर्याय. ई क्रिया तो जडनी छे.
आहा... हा! ए पर्याय थवा छतां वस्तु तो जेवी छे एवी ज रही छे. आहा... हा! अने एक
तीर्थंकरनो जीव, त्रण ज्ञान ने क्षायिकनी पर्याय वखते आहा... हा! माताना उदरमां आवे छे.
(गर्भमां) सवा नव महिना रहे छे. एवी भले पर्याय होय कहे छे, छतां द्रव्य तो तेवुं ने तेवुं छे
एमां अंदर. आहा.. हा! विस्मय! आश्चर्यकारी वात छे! सर्वज्ञ सिवाय, आवुं कोईए जोयुं नथी.
कल्पनानी वातुं करी ए कांई वस्तुनी स्थिति नथी. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “आ रीते, जीवनी माफक, दरेक द्रव्य पोताना सर्व पर्यायोमां तेनुं ते ज
रहे छे, अन्य थई जतुं नथी–अनन्य रहे छे” (ओहोहोहो) अनन्य रहे छे. अनेरुं नहीं एम.
आम द्रव्यनुं अनन्यपणुं होवाथी द्रव्यनो सत्–उत्पाद नककी थाय छे.”
भगवान आत्मा! तेनो ते
होवाथी ते द्रव्यनो सत्-उत्पाद, छे एमांथी थाय छे. ई सत्-उत्पाद अन्वयशक्ति अंदर शक्तिरूपे हती
सत्पणे ते आवी छे. ई सत्-उत्पाद छे. एने बहारना कोई संयोगोने कारणे सत्-उत्पाद थयो छे
एम नथी. आहा...हा!
विशेष कहेशे.....


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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८२
हवे असत्-उत्पादने अन्यपणा वडे (अन्यपणा द्रारा) नक्की करे छेः-
मणुवो ण होदि देवो वा माणुसो व सिद्धो वा ।
एवं अहोज्जमाणो अणण्णभावं कधं लहदि ।। ११३।।
मनुजो न भवति देवो देवो वा मानुषो वा सिद्धो वा ।
एवमभवन्ननन्यभावं कथं लभते ।। ११३।।
मानव नथी सुर, सुर पण नहि मनुज के नहि सिद्ध छे;
ए रीत नहि होतो थको कयम ते अनन्यपणुं धरे? ११३.
गाथा – ११३
अन्वयार्थः– [मनुजः] मनुष्य ते [देवः न भवति] देव नथी. [वा] अथवा [देवः] देव ते
[मानुषः वा सिद्धः वा] मनुष्य के सिद्ध नथी; [एवम् अभवन्] एम नहि होतो थको [अनन्यभावं
कथ लभते] अनन्य केम होय?
टीकाः– पर्यायो पर्यायभूत स्वव्यतिरेकव्यकितना काळे ज सत् (-हयात) होवाने लीधे तेनाथी
अन्य काळोमां असत् ज (-अहयात ज) छे. अने पर्यायोनो द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्ति साथे गूंथायेलो
(-एकरूपपणे जोडायेलो) जे क्रमानुपाती (क्रमानुसार) स्वकाळे उत्पाद थाय छे तेमां पर्यायभूत
स्वव्यतिरेकव्यकितनुं पूर्वे असत्पणुं होवाथी, पर्यायो अन्य ज छे. माटे पर्यायोना अन्यपणा वडे
द्रव्यनो - के जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता, करण अने अधिकरण होवाने लीधे पर्यायोथी अपृथक छे
तेनो-असत् उत्पाद नककी थाय छे.
आ वातने (उदाहरण वडे) स्पष्ट करवामां आवे छेः
मनुष्य ते देव के सिद्ध नथी, देव ते मनुष्य के सिद्ध नथी; ए रीते नहि होतो थको अनन्य
(तेनो ते ज) केम होय, के जेथी अन्य ज न होय अने जेथी मनुष्यादि पर्यायो जेने नीपजे छे एवुं
जीवद्रव्य पण-वलयादि विकारो (कंकण वगेरे पर्यायो) जेने ऊपजे छे एवा सुवर्णनी जेम-पदे पदे
(पगले पगले, पर्याये पर्याये) अन्य न होय? जेम कंकण, कुंडळ वगेरे पर्यायो अन्य छे (-भिन्नभिन्न
छे, तेना ते ज नथी) तेथी ते पर्यायो करनारुं सुवर्ण पण अन्य छे, तेम मनुष्य, देव वगेरे पर्यायो
अन्य छे तेथी ते पर्याये करनारुं जीवद्रव्य पण पर्याय-अपेक्षाए अन्य छे.)

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८३
भावार्थः– जीव अनादि-अनंत होवा छतां, मनुष्यपर्याय काळे देवपर्यायनी के
स्वात्मोपलब्धिरूप सिद्धपर्यायनी अप्राप्ति छे अर्थात् मनुष्य ते देव के सिद्ध नथी माटे ते पर्यायो अन्य
-अन्य छे. आ रीते पर्यायो अन्य होवाथी, ते पर्यायोनो करनार, साधान अने आधार एवो जीव
पण पर्याय-अपेक्षाए अन्यपणाने पामे छे. आरीते, जीवनी माफक, दरेक द्रव्यने पर्याय अपेक्षाए
अन्यपणुं छे. आम द्रव्यने अन्यपणुं होवाथी द्रव्यने असत्-उत्पाद छे एम निश्चित थाय छे. ११३.

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८४
प्रवचनः ता. ८–७–७९.
‘प्रवचनसार’. ११३ गाथा.
हवे असत्–उत्पादने अन्यपणा वडे (अन्यपणा द्धारा) नक्की करे छेः) असत्-उत्पाद थाय
छे पण अनेरी-अनेरी अवस्था छे. पर्याये. आहा.. हा! ओलां सत्- (उत्पाद) पणामां तो जेवी छे
तेवी पर्याय आवी. अने हवे आ तो असत्-उत्पाद (कहे छे.) पर्याय आम नहोती पर्याय एवी
पर्याय थई. ए असत्-उत्पाद (छे.) असत्-उत्पादमां अन्यपणा वडे-अनेरापणा वडे ई वखते
जीवद्रव्य ई नो ई रह्यो. पण पर्याय तरीके बीजो (अन्य) थई गयो! आहा... हा! क्यां ई
सर्वार्थसिद्धिना देवनो जीव, अने क्यां एक नरक-निगोद ने सातमी नरकनो जीव, पर्याये? (ए
असत्-उत्पाद होवा छतां द्रव्य तो ई ने ई ज छे.) एने विश्वास बेसवो (के) तत्त्व आवुं ज छे.
परना संयोग विना, आवी एकदम पर्याय सिद्धनी थाय, देवनी थाय, निगोदनी थाय-एमां कोई
संयोगोने कारणे (ए थाय) छे एम नथी. ते ते समयना ते (ते) उत्पाद- छे एमांथी थाय ई
अपेक्षाए सत्-उत्पाद छे. हवे नो’ ती ने थई, असत्-उत्पाद छे. पर्यायनी अपेक्षाए. (हवे आ
गाथामां) ई कहे छे.
मणुवो ण होदि देवो देवो वा माणुसो व सिद्धो वा।
एवं अहोज्जमाणो अणण्णभावं कधं लहदि।।
११३।।
मानव नथी सुर, सुर पण नहि मनुज के नहि सिद्ध छे;
ए रीत नहि होतो थको कयम ते अनन्यपणुं धरे? ११३.
एनुं ए पर्याय केम रहे? एम कहे छे. पर्याय तो जुदी (जुदी थाय ज ने...! आहा.. हा! एकवार
स्त्रीनुं शरीर पामे ने...! भंगीनुं शरीर पामे, विष्टा (उपाडे.) आहा... हा! पण एनी पर्याय जे छे
ते छे. ई अनेरी-अनेरी पर्याय थई छे. आहा...! वस्तु अनेरी थई नथी. आहा... हा... हा... हा!
ए ‘ज्ञेयनो विषय’ छे. ज्ञेयना स्वरूपनी मर्यादा आ छे. आहा... हा! आम... केम? एवो जेमां
अवकाश नथी. आहा...! (हवे) एनी टीका.
टीकाः– “पर्यायो” (शुं कह्युं) पर्यायो बहुवचन छे. बधी पर्याय छे. “पर्यायो पर्यायभूत”
अवस्थारूप “स्वव्यतिरेकव्यकितना काळे ज” स्वव्यतिरेकव्यक्ति (एटले) पहेलाथी भिन्न व्यकितना
काळे ज “सत् (हयात) होवाने लीधे जुओ आ क्रमबद्ध! आ तो अध्यात्मनो ग्रंथ छे. आ कांई
वारता नथी. आ तो सर्वज्ञ परमेश्वर, त्रिलोकनाथ जेणे एक समयमां, त्रण काळ त्रण लोक जाणे
एवी पर्याय प्रगट करी- तो पण कहे छे पर्याय छे ते ई अनेरी-अनेरी (छे.) ई

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८प
पर्याय अनेरी छे. पहेलां नो’ ती ने थई छे. ए अपेक्षाए पर्यायने असत्-उत्पाद कहेवाय छे.
ओलामां आवे छे ने...! ‘पंचस्तिकाय’ (मां) अभूतपूर्व! ई बीजी अपेक्षाए. सिद्धपर्याय अभूतपूर्व
(कीधी केमके) पूर्वे नो’ ती ने थई छे. आहा... हा! अनंतकाळमां कोई दि’ सिद्धदशा (के जे) अनंत
ज्ञान-आनंद अनंत-अनंत शक्तिओनुं व्यक्तपणुं पूरण अनंतकाळमां कोई दि’ थयुं नहोतुं. ए थाय
छे - ए पर्यायपणे अनेरुं थयुं छे. द्रव्य तरीके भले एनो ए छे. पण पर्याय तरीके द्रव्य अनेरुं थयुं
छे. आहा... हा! लेबाश एनो ई पर्यायनो ए आव्यो छे. आहा... हा! दीर्घद्रष्टिनी वात छे अहींया
तो भाई! लांबी द्रष्टि करे (तो समजाय तेवुं छे.) वर्तमान पर्यायमां-कहे छे. “पर्यायो पर्यायभूत”
एटले पर्यायो छे.
“स्वव्यतिरेकव्यक्तिना” एटले भिन्न भिन्न (व्यकितना) आत्मा अने (छ) द्रव्य
जे छे एनी द्रव्यत्व-अन्ययशक्तिओ तो त्रिकाळ छे, ए व्यतिरेक नथी. भिन्न भिन्न नथी. आत्मा अने
परमाणुओमां-द्रव्यत्वपणुं-एनी अन्वयशक्तिओपणुं-गुणशक्तिओपणुं ए तो त्रिकाळ छे. एमां
अनेरापणुं, एमां नथी. आहा... हा! आ तो “पर्यायो पर्यायभूत स्वव्यतिरेकव्यक्तिना” स्व
(व्यतिरेक एटले) भिन्न व्यक्ति नाम प्रगटने “काळे ज सत्” छे. ए काळे ज ते पर्याय सत् छे.
पहेलां नो’ ती ने थई माटे असत्-उत्पाद (कह्यो पण) ते काळे ज सत् छे. आहा... हा!
(कहे छे केः) अहींया होय चक्रवर्ती एक समये, बीजे समये सातमी नरकनो नारकी (थाय.)
आहा...! रतनने ढोलिये सूतो होय, देव खम्मा-खम्मा करतो होय, छन्नुं हजार राणीओ. एक राणीनी
हजार देव सेवा (करता होय). ई आम पडयो होय (रतनने ढोलिये). बहारनी दशानी वात नथी
आ तो अंतरनी (के) ए बीजे समये सातमी नरकनो नारकी (थाय.) आहा... हा! (एकदम)
अनेरी-अनेरी पर्यायपणे! (तो) कहे छे के आटलो बधो फेर पडे छे तेथी कोई संयोगने कारणे ते
(फेर) छे एम नथी ई कहेशे हमणां (टीकामां) समजाणुं कांई?
आहा... हा! ते “काळे ज सत् (–हयात) होवाने लीधे तेनाथी अन्य काळोमां असत् ज
(–अहयात ज छे.)” जे काळे, जे पर्याय छे ते काळे ज ते सत् छे. बीजा काळे ते असत् छे.
पर्यायनी अपेक्षाए (असत्-उत्पाद छे) द्रव्यनी अपेक्षाए सत्-उत्पाद कह्यो’ तो. छे ते ऊपजे छे
अहींयां तो नथी ते ऊपजे छे, पर्याय नो’ ती न ऊपजे छे. आहा... हा! आ वीतरागनो अनेकांत
मारग!! ए वस्तुनी स्थिति एवी छे. केटलाक लोको एम कहे छे (के) बधा मारगो भेगां करीने
भगवाने आवुं अनेकांतपणुं प्ररूप्युं!! आहा... हा... हा! एम कहे छे पंडितो अत्यारे (केटलाक) के
एकांत- (वेदांत) द्रव्यनुं एकांत (बौद्ध) पर्यायनुं एकांत-एम बधानुं भेगुं करीने अनेकांत कर्युं!
(पण एम नथी भाई!) एमने तो केवळज्ञान थयुं त्यारे वस्तु जे प्रमाणे छे ते प्रमाणे
(केवळज्ञानमां) जणाणी छे. जणाणी एवी वस्तु आ वाणी द्वारा आवी छे. एमांथी आगम रचाणा
छे. (ए) आगमने सांभळीने (समजीने) भव्य जीवो संशय निवारे (छे.) आहा... हा!
(अहींया कहे छे केः) “अने पर्यायनो द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्ति साथे गूंथायेलो

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८६
(–एकरूपपणे) जोडायेलो) जे क्रमानुपाती (क्रमानुसार) पर्याय जे थाय- एमां द्रव्यनुं
द्रव्यत्वभूत-द्रव्यपणुं (अर्थात्) सत्नुं सत्पणुं, भावनुं भाववानपणुं जे आगळ आवी गयुं छे ते
द्रव्यत्वभूत “अन्वयशक्ति साथे गूंथायेलो (–एकरूपपणे जोडायेलो) जे क्रमानुंपाती क्रमानुसार
(एटले) ए अन्वयनी साथे पर्याय (व्यतिरेक) जोडायेली छे. (पर्याय) तद्न अध्धरथी आम
(आधार विना) थई छे एम नथी. आहा... हा! पहेली नो’ ती ने थई माटे अन्वय साथे कांई
संबंध ज नथी एम नहीं. आहा... हा! अन्वय एटले गुणो. आहा! आ बधी भाषा जुदी जात छे.
पर्यायपणे असत् छतां ते व्यतिरेको पर्याय
“अन्वयशक्ति साथे (गूंथायेलो) एकरूपपणे जोडायेलो
जे क्रमानुपाती क्रमानुसार स्वकाळे उत्पाद थाय छे.” आहा... हा! ते ज काळे ते पर्याय, स्वकाळे
उत्पन्न थाय. आहा... हा!
हवे आमां क्यां आडुं अवळुं? बीजाने लईने तो आडुं–अवळुं नथी.
(क्रमबद्ध छे.) शुं कीधुं? समजाणुं? संयोगो एकदम फर्या माटे पर्याय फरी, ई वात तो छे ज नहीं,
एमां पण एनी पर्याय पण परथी नथी. स्वकाळे जे उत्पन्न (पर्याय) एनी अन्वयशक्तिओ - जे
तेना गुणो छे तेना संबंधेथी पर्याय उत्पन्न थाय छे, पोते थाय छे पण अन्वयशक्ति साथे संबंध छे.
आहा... हा! अन्वयशक्ति साथे संबंध तूटीने - नो’ ती ने थई छे माटे संबंध तूटीने थई छे (एम
नहीं) आहा... हा! गजब वात छे!!
शुं कीधुं? “पर्यायोनो द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्ति साथे गूंथायेलो (–एकरूपपणे जोडायेलो)
जे क्रमानुपाती (–क्रमानुसार) स्वकाळे उत्पाद थाय छे आहा... हा! शुं टीका!! आ टीका -सिद्धांतो
कहेवाय. जेना शब्दोमां गंभीरतानो पार नथी! थोडामां घणुं करीने समाडी दीधुं छे! आहा... हा!
दिगंबर संतोए भरतक्षेत्रमां केवळज्ञानना बीजडां रोप्यां छे आहा...! अन्वयशक्ति साथे
एकरूपपणे जोडायेलो जे क्रमानुपाती (एटले) क्रमे थतो - जे थवाथी ते ज थाय ते क्रमे अनुपाती -
आहा..हा! साधारण अधिकार छे, आ प्रवचनसार ने ज्ञेय अधिकार एम करीने काढी नाखे. बापु!
एम नथी भाई! आ तो वीतरागनी वाणी छे!! आहा... परमागम छे!! दिव्यध्वनिमां आवेलो सार
छे!! आहा...हा! भले कहे छे एकदम पर्यायनो पलटो खाय, सिद्धनी पर्याय पलटे एकदम! छतां
एनी अन्वयशक्तिना संबंधमां रहीने थई छे. आहा...हा...हा! सत्-उत्पादमां तो ते होय ज ते. छे ई
थई छे एम. पण असत्-उत्पादमां पण नो’ ती ने थई माटे असत्- (उत्पाद) छतां ए पर्यायने
क्रमानुपाती जे अन्वयशक्तिओ छे-गुणो छे-द्रव्यनुं द्रव्यपणुं छे. द्रव्यनुं द्रव्यत्वपणुं - एनी शक्तिपणुं
जे छे एनो संबंध राखीने पर्यायो क्रमानुपाती थाय छे. आहा... हा! हवे आवुं बधुं क्यारे याद रहे?
आहा... हा! हाल्या जाय जुओने आम अकस्मात! खबर न पडी कहे छे आजे सवारे वळी एवुं
सांभळ्‌युं! सवारे ओली दूधवाळी आवी त्यारे खबर पडी! दूधवाळी कहे के आ कान्तिभाईनुं माथुं
आम केम छे? थई गयेलुं (मृत्यु) जोवे त्यां कांई न मळे, आ देहनी स्थिति! रात्रे त्यां क्यारे थयुं
एकला! आहा.. हा! ए ज समय ते परिणाम छूटवानो काळ. छतां ते परिणाम अन्वयशक्तिओने
साथे गूंथायेल छे. अध्धरथी थयेल छे (एम नहीं) ई

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८७
तो पर्याय पूर्वे नहोती ने थई छे माटे असत् कीधी (छे.) पण ए पर्याय जे थई छे ते
अन्वयशक्तिनो संबंध राखीने थई छे. ए (तेनी साथे) गूंथायेली छे. आहा... हा! को’ देवीलालजी!
आवुं कथन क्यां छे?
(श्रोताः) बीजे क्यांय (आ वात) नथी!
(कहे छे केः) दिगंबर संतो! (सिवाय कोईए वस्तुस्वरूप कीधुं नथी.) ई छापामां पहेलुं
आव्युं’ तुं. छापुं छे ने...! आव्युं’ तुं ने के सौराष्ट्रना कानजीस्वामीए दिगंबर संप्रदायनो बहु प्रचार
कर्यो छे! आव्युं’ तुं आमां क्यां’ क छे, आमां छापुं छे ने...! (तेमां छाप्युं छे के) श्रीमद् राजचंद्र
पण एम के समयसार ने प्रवचनसारनो अभ्यास करता अने एमने को’ के पूछयुं के आ स्थिति क्यारे
थशे? (के आ ज्ञाननो प्रचार क्यारे थशे?) तेओए कह्युं के पचास वरस पछी तेनो प्रकाश वधारे
थशे. (श्रोताः ताळीओ) आमा क्यां’ क छापामां (लखाण) छे. (आ छापुं) के’ दुनुं पडयुं छे ई
तो आमां में तो आ ज वांच्युं अंदरथी.
(पत्रिका-छापुं शोधीने स्व-मुखे वाचन करे छे) सौराष्ट्रमां दिगंबर जैन संप्रदाय. लेखक छे
सत्य. आजथी चालीश वर्ष उपर सौराष्ट्रमां मूळ दिगंबर तरीके एकेय घर दिगंबर जैन नहोतुं. ए
संप्रदायनी मान्यतानी कोईपणने जरा पण खबर नहोती. ते आ प० वर्ष पर निर्वाणपदने पामेला
श्रीमद् राजचंद्रजी एकला दिगंबर संप्रदायना सिद्धांतो केवळ पोताना अथाग बुद्धिबळे यथार्थ समज्यां
हता. एणे देशकाळ जोईने दिगंबरना पवित्र सिद्धांतोनुं सौराष्ट्रमां के गुजरातमां कोईने खास शिक्षण
आप्युं नहोतुं. एनो शिष्यवर्ग एटलुं जाणतो हतो के श्रीमद्-कृपाळुंदेव दिगंबर जैन संप्रदायना
समयसार, प्रवचनसार, भगवती आराधना वगेरे आगमो-परमागमोनुं अवलोकन करे छे. पण ए
सं. १९प७ नी सालमां राजकोट मध्ये श्रीमद् राजचंद्रजीनुं अवसान थयुं. त्यारे एनी आगळ कोई
कोई जिज्ञासुए पूछेलुं आपनुं - पवित्र ज्ञान - खरेखरुं क्यारे प्रसार पामशे? त्यारे (तेओश्री) एक
ज उत्तर आपता हता के अमारा निर्वाण पछी पचास वर्षे आ पवित्र ज्ञाननो प्रचारक नीकळशे.
(ताळीओ-हर्षनाद).
ए तो ए लोको कहे छे, ए लोकोने खबर नथी. ते दि’ पांच हजार रूपिया आपीने फोटो
मूकाव्यो’ तो ने...! ए आवुं धारीने फोटो मूक्यो छे ने...! एना तरफथी माणस आव्यो’ तो. शेठे
मोकल्यो’ तो. कया शेठ? हा, जयसुख शेठ! एने माणसने मोकल्यो’ तो. पांच हजार रूपिया दईने के
श्रीमद्नो फोटो! के अहींथी शरूआत... (थाय एम धारीने.) घणुं आ लख्युं छे आमां हों! अने
प्रसार करशे. अने हालमां ज्ञाननो प्रचार सोनगढना संत पूज्य कानजीस्वामी सौराष्ट्रमां करे छे.
सौराष्ट्रमां चारे बाजु - गामे - गाम दिगंबर जैन संप्रदायना मंदिरो तैयार थई रह्यां छे. प्रतिष्ठा
अने अंजनशलाकाओ धाम-धूमपूर्वक थाय छे. भाग्यशाळी हजारो लोको गामो-गाम धननो सदुपयोग
करे छे. आ रीते पू. कानजीस्वामीना अथाग प्रयत्न वडे सौराष्ट्रभरमां दिगंबर जैन धर्मनी

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८८
जयोत झळहळी रही छे. एम करीने घणुं लख्युं छे. घणा वखतथी छापुं आव्युं छे पडयुं छे आमां.
आहा... हा! आ वस्तु झीणी बहु बापु! एनो एकदम (तीव्रताथी) अभ्यास करे तो
पकडाय. एनी रीत जे छे -एनी पद्धतिनी जे रीत छे ते रीते पकडवी कठण! आहा... हा! जुओने
केवुं कहे छे? (गाथामां)
(अहींया कहे छे केः) “पर्यायो पर्यायभूत स्वव्यतिरेकव्यक्तिना काळे ज सत् (–हयात)
होवाने लीधे तेनाथी अन्य काळोमां असत् ज (अहयात ज) छे. अने पर्यायोनो द्रव्यत्वभूत
अन्वयशक्ति साथे गूंथायेलो (–एकरूपपणे जोडायेलो) जे क्रमानुपाती
- क्रमे थतो स्वकाळे उत्पाद
थाय छे.”
आहा...! केटलुं मूकयुं छे? असत्-उत्पाद छे छतां तद्रन अध्धरथी - आम आकाशना
फूलनी जेम छे एम नहीं. ई (असत्-उत्पाद) अन्वयनी साणे जोडाणनी उत्पन्न थाय छे. अने ते
स्वकाळे पर्याय उत्पन्न थाय छे. आहा... हा! आमां हवे वाद-विवादे एकांत छे, सोनगढनुं एकांत!
कहो बापु! तुं शुं करी रह्यो छे? प्रभु! तमे य प्रभु छो बापु! भगवान! बापु, आ तो भगवान
थवानी कळा छे! ई भगवानस्वरूप छे. छे ते थाय छे. (ई सत्-उत्पाद) अने असत्-उत्पादनी
पर्याय कीधी तो ते पण अन्वयशक्ति हारे गूंथायेली कीधी (छे.) चेतनजी! आंही बहारमां तो सत्-
उत्पाद कीधो अने (वळी) असत्-उत्पाद कीधो, नथी पहेली ने थई, ए पर्याय अपेक्षाए (कीधुं)
छतां पहेली नहोती ने थई तेने असत्-उत्पाद कीधो, पण अन्वयशक्ति साथे तेने संबंध छे -
जोडायेली छे. आहा... हा! आवी वात! क्यां छे बापा! भाग्यशाळीने काने पडे एवी वातो छे आ
तो!
गरीब घरे आवी गया ने...! भरतक्षेत्र गरीब! वात रही गई भगवाननी! आहा... हा!
(श्रोताओः) अमारा भाग्य (छे ने...!)
(कहे छेः) आहा... हा! शुं शैली!! सत्-उत्पाद तो ठीक, ए तो अन्वयशक्ति-द्रव्यत्व (एटले
के) द्रव्य जे छे - वस्तु - सत् - भाव (जेछे) एनो भावपणुं - सत्त्वपणुं - एमांथी थाय छे माटे
ते सत् - उत्पाद छे. छे ते थाय छे. अंदर -मां छे (ते आवे छे.) अंदरमां योग्यता, ए जातनी पडी
छे. भगवाने तो जोई छे ने के आ पर्याय थाशे, अहींयां. आहा... हा! अन्वयशक्तिमांथी - भगवाने
तो जोयुं छे के आ पर्याय छे ई आमांथी आवशे. अहींया हवे असत्-उत्पादमां पण भगवान! वात
झीणी बहु प्रभु! ए पर्याय नो’ ती ने थई, तो पण जे द्रव्य - जे वस्तु छे एनी अन्वयशक्ति-
द्रव्यत्वपणुं-गुणपणुं-भावपणुं जे छे एनी साथे नथी ने थई ते (असत्-उत्पाद) पण गूंथायेली छे.
शशीभाई! आहा...हा! जुओ! आ प्रवचनसार! आहा...! गजब वात छे!! एनी रीते अने पद्धति
अलौकिक छे! आहा...हा! एमां दुनियाना विस्मयो अने अचिंत्यता क्यां रहे एमां? आहा... हा!
(खरेखर अलौकिक तो) एना द्रव्यने पर्याय - बेनी समजणमां, एनी विस्मयता लागे. (अने
बाकीनी सर्व) बीजी चीजो - गमे तेटली अनुकूळता (वाळी) - करोडो प्रकारनी हो,

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४८९
एमां अचिंत्यता शुं? (विस्मयता शुं?)
(अहींया तो कहे छे प्रभु! तारामां अन्वयशक्तिओ - द्रव्यनुं द्रव्यत्वपणुं एवुं छे, (के) द्रव्य
जे तुं द्रव्य छो, भगवान कहे छे के तुं वस्तु छो तो तेमां वस्तुपणुं (द्रव्यपणुं) रह्युं छे. ई द्रव्यत्व
कहेवाय, ई अन्वयशक्ति कहेवाय (ई गुण कहेवाय.) आहा... हा! ए (पर्याय) नथी ने उत्पन्न थई
(छतां ए) असत्-उत्पादने संबंध छे अन्वयशक्ति साथे. ए (असत्-उत्पाद कीधो) अध्धरथी
साधन थई गई छे- नथी ने थई माटे पण एम नथी. आवी वातुं छे हवे! आ बेनुं-दीकरियुं ने
साधारण ने अभ्यास (कंईक) होय एने तो ठीक, पण आ रोटला रांधे ने खाय ने... एमां आ वातुं
(बेसारवी)! शुं कहे छे आ? बेसवुं कठण पडे! आहा... हा!
(शुं कहे छे केः) पाछी पर्यायो ‘पर्यायभूत’ कीधी (छे.) एटले के ‘छे’ . एवी एकरूपपणे
जोडायेलो “जे क्रमानुपाती–क्रमानुसार” जोयुं? क्रमानुसार पर्याय थाय पण ए अन्वयशक्ति साथे
(-एकरूपपणे) जोडायेल छे. क्रमानुसार छे. जे समये, जे थवानी ते क्रम-अनुसार (ज) छे. आहा...
हा! (जुओ आ) “क्रमबद्ध”!! तमे क्रमबद्ध मानो तो पुरुषार्थ ऊडी जाय छे. अरे प्रभु! सांभळ तो
खरो! (एम छे नहीं.) आ ‘क्रमानुपाती’ (क्रमबद्ध) नो निर्णय करे छे त्यारे स्वद्रव्य उपर द्रष्टि
जाय छे. (ए ज पुरुषार्थ छे.) कारणके (पर्याय) नो’ ती ने थई, ए पर्याय अन्वय साथे गूंथायेली
छे. (एने) अन्वय साथे संबंध छे. ए अन्वय-गुण छे ते, अन्वयी-द्रव्य छे तेनुं अन्वयपणुं छे- ए
द्रव्यनुं द्रव्यपणुं छे. (माटे) गूंथायेली पर्याय द्रव्यमांथी- जे नहोती ने थई - एम ज्यां निर्णय करवा
जाय छे त्यां द्रव्यनो निर्णय थाय छे. देवीलालजी! आहा... हा!
(कहे छे) भाई! भले पर्याय असत् उत्पन्न थाय, नहोती ने थई पण एनुं तात्पर्य शुं छे?
(एनुं तात्पर्य ए छे के) ए नो’ ती ने थई (छतां) अन्वय साथे संबंध विना थई एवो अर्थ
नथी, तेम ज अन्वयशक्तिओ जे छे - गुणो छे एनी साथे (ए असत् पर्यायने) कांई पण संबंध
नथी ने ए विनानी थई छे एम नथी. आहा... हा! शुं द्रव्य-गुण ने पर्यायने (अलौकिक रीते) सिद्ध
करे छे! हें? एक माणस पूछतो’ तो (कहे के) आ द्रव्य-गुण-पर्याय पोताथी जाणवा-द्रव्य-गुण
जाणवा एमां शुं? अरे! भगवान! एमां सर्वस्व छे! द्रव्यमां सर्वस्व छे, एना गुणोमां सर्वस्व छे,
अने ते काळे क्रमानुपाती-क्रमानुसार (क्रमबद्ध) स्वकाळे ते ज (उत्पाद) थाय. आहा... हा!
(श्रोताः) आमां ज पुरुषार्थ छे... (उत्तरः) अनंत पुरुषार्थ छे! भाई! आवो निर्णय जेणे करवो छे.
आ कहेलानुं तात्पर्य शुं छे? (अहींया) एवुं कह्युं के आम थाय छे (सत्-उत्पाद) ने आम थाय छे
(असत्-उत्पाद) बस एटलुं - एम ज छे! (तो कहे छे केः) एनुं तात्पर्य छे के नहोती ने थई तो
पण गुण साथे संबंध छे अने गुण छे ई गुणीना छे. एना उपर द्रष्टि जतां सत्नी तने खबर -
श्रद्धा पडशे. आवो सत् परमात्मा! सत् छे. आहा... हा!
आवो भगवान (आत्मा) सत् छे अंदर

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९०
ए तने प्रतीतमां आवशे, तने वेदनमां आनंद आवशे. अने तंय (तने) खबर पडशे के आ आखी
चीज आनंदमय छे. जेनो (आ) नमूनो आववाथी...!!
समजाणुं काई? आहा... हा!
(कहे छे) सादी गाथा लागे आजे (पण) सादीमां केटलुं भर्युं छे! आहा... हा! आ तमारे
न्यां पांच-पचास हजार पेदा थाय महिना-महिनामां ने दिवसमां ने गणतरो क्यां हतो धूळमां न्यां!
दश-दश लाख पेदा करे छे महिने! आम दुकाने बेसे, तो नोकरो वीस-पचीस. भाई! न्यां छे ने
शांतिभाईने त्यां, शांति (भाई) झवेरी! शुं कहेवाय ई? झवेरात, झवेरात. आ हीरा घसे छे ने...!
बधा हुशियार माणस! एक-एकने महिने चारसे-पांचसे-छसे मळता हशे! (श्रोताः) वधारे मळता
हशे... (उत्तरः) हजार लो ने...! अमने को’ क वात करे अमे... एमां ई कोई नवीन चीज नथी
बापु! आहा... हा! ए कंई विस्मयकारी नथी. आहा... हा! (विस्मयकारी चीज तो) प्रभु! तारुं
(आत्म) द्रव्य ने द्रव्यत्वपणुं अने तेनी क्रमानुपाती-क्रमानुसार (क्रमबद्ध) स्वकाळे परिणमन थाय
तेवुं तारुं स्वरूप-स्वभाव छे!! आहा... हा! को’ समजाणुं आमां? आहा... हा! आ तो मारग
बापा! त्रण लोकना नाथ, तीर्थंकरदेव (नी) वाणीमां आव्युं (ई) अलौकिक वातुं छे. (श्रोताः)
द्रव्यमां हती ते आवी, ए वात द्रव्यद्रष्टिवाळा ज कहे ने...! (उत्तरः) ई तो द्रव्यद्रष्टि छे. पण नहोती
ने थई (ई) उत्पादने अन्वय साथे संबंध छे. आहा... हा! देवीलालजी! अध्धरथी - आम अध्धरथी
(शुं) थई छे! (ना.) ए तो हारे ज राख्युं छे. आहा... हा! ओली सत् छे ई उत्पन्न थाय छे ए
द्रव्यनुं द्रव्यतत्त्वपणुं - अन्वयशक्तिओना संबंधमां हती - छे ई आवी छे पण अहींया पर्याय तरीके
जुओ के (पहेली) नहोती ने आवी तो पण अन्वय साथे संबंध छे. आहा... हा!
(अहींया कहे छे केः) “जे क्रमानुपाती–क्रमानुसार स्वकाळे उत्पाद छे.” हवे आटलो तो शब्द
छे! हें? भले! ई अन्वयशक्तिनी हारे संबंध (कीधो) पण स्वकाळे ई पर्यायो उत्पन्न थाय छे.
आहा... हा! जेम अन्वयशक्तिनुं द्रव्य, एकरूप स्वकाळे छे, त्रिकाळ एकरूप छे. अने आमां
(पर्यायमां) एक समयनो काळ, ते समयनो ते ज काळ छे. आहा... हा! स्वकाळे ते पर्याय उत्पन्न
थाय छे. केटली भाषा वापरी छे. (जुओ!) “क्रमानुपाती” छे? (पाठमां) “स्वकाळे” “उत्पाद”
थाय छे. “तेमां पर्यायभूत स्वव्यतिरेक व्यक्तिनुं पूर्वे असत्पणुं होवाथी” ए पर्यायभूत - नवी
थई, पूर्वे नहोती, एथी एने असत्पणुं होवाथी
“पर्यायो अन्य छे.” ए अपेक्षाए पर्याय अन्य छे.
आहा... हा! पर्याय-अन्य होवा छतां - नहोती ने थई माटे ‘छे’ छतां अन्वय विनानी- तेना
संबंध विनानी (थई छे) एम नहीं. आहा... हा! आवी वातुं!! ओलुं तो कहे के दया पाळो... ने
छ- कायनी दया पाळो... ने व्रत करो ने... उपवास करो... ने आ करो..... ने धूळमां य ए तो अज्ञान
छे. आहा... हा!
अहींया कहे छे (केः) तेमां पर्यायभूत स्वव्यतिरेकव्यकितनुं पूर्वे असत्पणुं

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गाथा – ११३ प्रवचनसार प्रवचनो ४९१
होवाथी, पर्यायो अन्य छे. माटे पर्यायोना अन्यपणा वडे द्रव्यनो – के जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता,
करण अने अधिकरण होवाने लीधे.”
देखो! शुं आव्युं? “माटे पर्यायोना अन्यपणा वडे द्रव्यनो - के
जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता छे” आहा... हा! ए पर्यायनो, स्वद्रव्य कर्ता छे. परद्रव्य-कर्मनी प्रकृतिनो
उदय तीव्र आव्यो माटे अहींया विकार थयो ने... ए करम खसी गयुं समकित थयुं ने... एम नहीं.
आहा... हा! ए समकितनी पर्यायने काळे- पहेली नहोती ने थई - अरे! सिद्धपणुं पहेलुं नो’ तुं.
ए सिद्धपणुं थयुं- ए अभूतपूर्व थयुं छतां- अन्वयशक्तिनो संबंध राखीने थयुं छे. अने ते
क्रमानुसारी (क्रमबद्ध) ते पर्याय ते काळे, सिद्धनी पर्याय ते (स्वकाळे) थाय छे. आहा... हा... हा!
ए पर्यायने तेनुं द्रव्यत्व - अन्वयशक्ति साथे संबंध छे. अन्वयशक्ति छे ते द्रव्यनी छे. आहा... हा!
त्रणे य भेगुं थयुं!! आहा... हा! भले! नरकनी पर्याय, थाय पण कहे छे के पर्याय छे तो एनी -
एनामां -एनाथी छे ने...! एमां द्रव्य वर्ते छे ने...! द्रव्य वर्ते छे ते द्रव्यनी अन्वयशक्तिओ साथे ते
(पर्याय) गूंथायेली छे ने...! अध्धरथी थई नथी (कांई ए पर्याय) आहा... हा!
(कहे छे) ए तो पहेली नहोती ने थई (तेथी असत्-उत्पाद छे) पण थई ई छे स्वकाळे, ई
अन्वयना-गुणना साथे संबंध राखीने थई छे. आहा... हा! गजब वात छे ने...!! आवुं सांभळवुं
बहु मुश्केल पडे! आहा... हा! हीरालालजी! तमे आवी गया ठीक रविवार छे ने...! वात आवी गई.
भाग्यशाळीने काने पडे एवुं छे! आहा... हा!
(कहे छे केः) एक तो उत्पन्न नहोती ने थई कहेवुं; अन्वय हारे संबंध (छे.) कहेवुं अने तेथी
अन्य छे एम कहेवुं. एम कीधुं ने...! “पर्यायो अन्य छे” अन्य ज (छे.) एम कीधुं. छे?
(पाठमां) “माटे पर्यायोना अन्यपणा वडे द्रव्यने के जे पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता.” ए द्रव्य छे ई
पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता (छे.) आहा... हा... हा... हा! ए द्रव्य छे ए पर्यायोना स्वरूपनुं करण -
साधन (ई द्रव्य). ए पर्यायनुं साधन द्रव्य (छे.) आहा... हा! करमनो (उदय) आकरो आव्यो ने
करम घटयां माटे (पर्याय आम थई एनी ना पाडे छे.) आहा... हा!
“पर्यायोना स्वरूपनुं कर्ता.”
ए असत्-उत्पाद छे, ए पर्यायनो कर्ता, करण अने अधिकरण होवाने लीधे आहा...! द्रव्य एनुं
साधन ने अधिकरण!! (असत्-उत्पाद) अनेरापणे थई - स्वकाळे थई - पहेली नो’ ती ने थई,
ए अन्वयशक्तिनो संबंध राखीने थई (एटलुं कह्या पछी) द्रव्य लीधुं. आ पर्यायने अन्वयशक्ति
साथे राखीने कीधुं. हवे द्रव्य लीधुं. आहा... हा! के द्रव्य जे छे ते तेनी पर्यायनुं कर्ता - ते स्वकाळ
पर्याय थाय तेनुं साधन-स्वकाळे पर्याय थाय तेनो आधार (द्रव्य) होवाने लीधे “पर्यायोथी अपृथक
छे.” पर्यायोथी जुदुं (द्रव्य) नथी. “तेनो - असत् - उत्पाद नककी थाय छे.” द्रव्य (कांई) पर्यायोथी
जुदुं नथी. आहा... हा! अपृथक छे. पर्यायो द्रव्यथी अपृथक छे. आहा... हा! तेनो असत्-उत्पाद
नककी थाय छे.