Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 07-07-1979.

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४६६
होय के जेथी त्रिकोटि सत्ता (-त्रण प्रकारनी सत्ता, त्रिकाळिक हयाती) जेने प्रगट छे एवो ते (जीव),
ते ज न होय? (अर्थात् त्रणे काळे हयात एवो जीव अन्य नथी, तेनो ते ज छे.)
भावार्थः– जीव मनुष्य-देवादिक पर्याये परिणमतां छतां अन्य थई जतो नथी, अनन्य रहे छे,
तेनो ते ज रहे छे; कारण के ‘ते ज आ देवनो जीव छे, जे पूर्व भवे मनुष्य हतो अने अमुक भवे
तिर्यंच हतो’ एम ज्ञान थई शके छे. आ रीते, जीवनी माफक, दरेक द्रव्य पोताना सर्व पर्यायोमां तेनुं
ते ज रहे छे, अन्य थई जतुं नथी-अनन्य रहे छे. आम द्रव्यनुं अनन्यपणुं होवाथी द्रव्यनो सत्-
उत्पाद नककी थाय छे. ११२.
प्रवचनः ता. ७–७ –७९.
‘प्रवचनसार’ . ११२ गाथा. एकसो अग्यार थई गई.
“हवे सर्व पर्यायोमां द्रव्य अनन्य छे” गमे ते पर्याय होय-नारकी, देव द्रव्य तो अनन्य छे
द्रव्य तो “तेनुं ते ज छे” आहा... हा! द्रव्य तो तेनुं ते ज छे पण ज्ञानगुण पण तेनो ते ज छे.
आहा... हा! जेम आनंद गुण, श्रद्धा गुण, अनन्य छे ते सदाय छे. गमे ते पर्यायमां हो पण वस्तु छे
ई पोते अनंत गुणथी अनन्यमय त्रिकाळ-त्रिकोटि कहेशे. ए त्रिकाळ छे. आहा... हा!
“अर्थात् तेनुं
ते ज छे.” जे द्रव्य छे ते भले मनुष्यपणे थयुं, देवपणे थयुं, अरे मतिज्ञाननी पर्यायपणे थयुं पण द्रव्य
तो ते वस्तु छे ते ते ज छे. आहा... हा! एमां क्यांय ओछा-अधिकपणुं थयुं नथी. वस्तु एवी छे
आखी (पूर्ण). जेने कारणपरमात्मा कहो, कारणजीव कहो, सहज त्रिकाळी, स्वरूपप्रत्यक्षज्ञान त्रिकाळ
कहो. ई गमे ते पर्यायमां हो पण वस्तु तो वस्तुमां (पूरण) छे. द्रष्टि तो त्यां राखवा जेवी छे एम
कहे छे. आहा... हा! स्वरूप प्रत्यक्ष कीधुं ने...! स्वरूपद्रष्टि त्रिकाळ छे. एम द्रव्य
“तेनुं ते ज छे तेम
तेनी द्रष्टि–श्रद्धा तेनी ते ज छे.” त्रिकाळी हों! तेनी ते ज छे (द्रष्टि) मिथ्यात्व अवस्था हो (पण
श्रद्धात्रिकाळ तेनी ते ज छे.) आहा... हा! तो ई श्रद्धा- ज्ञान- आनंद अन्वय शक्तिओ छे.
अन्वयशक्ति लेवी छे ने...!
“माटे तेने सत्–उत्पाद छे–एम सत्–उत्पादने अनन्यपणा वडे नककी करे
छेः– सत्-उत्पादथी अनन्य छे भले पर्याय- उत्पाद अन्य थाय पण वस्तु तो अनन्य छे. वस्तु
अनेरी थई नथी. पर्याय अनेरी-अनेरी थाय.
(गाथा) एकसो बार.
जीवों भवं भविस्सदि णरोऽमरो वा परो भवीय पुणो ।
किं दव्वत्तं पजहदि ण जहं अण्णो कहं होदि ।। ११२।।
नीचे हरिगीत.

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४६७
जीव परिणमे तेथी नरादिक ए थशे; पण ते–रूपे
शुं छोडतो द्रव्यत्वने? नहि छोडतो कयम अन्य ए? ११२.
“टीकाः– प्रथम तो द्रव्य वस्तु द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने” देखो. आहा... हा! द्रव्य जे छे
वस्तु! एनुं द्रव्यपणुं-भाव जे छे तेनुं भावपणुं-एवी अन्वयशक्तिओने “सदाय नहि छोडतुं थकुं”
आहा... हा! प्रथम तो ई कहेवुं छे के द्रव्य, द्रव्यत्वभूत वस्तु तेनो भाव, तेनुं भावपणुं आहा... हा!
वात थई’ती हमणां नहीं! चंदुभाई आव्या’ ता दाकतर. ते दि’ वात थई’ ती. भाव अने भाववान
वस्तु एक ज छे. नाम भले बे (होय) वस्तु अभेद ज छे. एम द्रव्यत्व-द्रव्य द्रव्यत्वभूत (एटले)
वस्तु छे ई द्रव्य, द्रव्यत्वभूत (एटले) एनुं भावपणुं अन्वयशक्तिओ. जेम द्रव्य अन्वय छे
(अथवा) कायम रहेनार. एम एनी अन्वयशक्तिओने “सदाय नहि छोडतुं थकुं” आहा... हा! द्रव्य
जे छे ई द्रव्य तो पोते द्रव्यने नहि छोडतुं पण द्रव्य छे तेना द्रव्यत्व (एटले) अन्वयशक्तिओ के
भाववान (अर्थात्) भावनो भाववानने कदी नहि छोडतुं. आहा... हा! आवी चीज (सत्) छे. एक
लीटीमां केटलुं समाडयुं छे! बीजा हारे तारे शुं संबंध? (मूळ तो) एम कहेवुं छे.
(कहे छे) भले ते द्रव्य द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिओने सदाय नहि छोडतुं (भले) ते गमे ते
पर्यायमां हो. आहा... हा! तो य परने अने एने कांई संबंध नथी. त्रिकाळी द्रव्य, एनुं द्रव्यत्वपणुं
एटले अन्वयशक्तिओ- ए तो कायम एकरूप त्रिकाळ छे. पण तेनी थती पर्यायो ई अन्वयशक्तिने
छोडीने नथी थती. द्रव्यने छोडीने पर्याय थती नथी. पर्यायमां तो तेनो ते अन्वय ते द्रव्य अने तेनो
ते गुण (छे) एवो ने एवो गुण ने एवुं ने एवुं द्रव्य रहे छे. आहा... हा! समजाय छे आमां?
‘सत्’ प्रभु! सत्-उत्पाद सिद्ध करे छे. ‘सत्’ वस्तु छे. एनुं जे द्रव्यपणुं (एटले) द्रव्यनुं द्रव्यपणुं.
आहा... हा! (एटले के) अन्वयशक्ति. वस्तुने अन्वय कीधी, पण एनी शक्तिओ जे सत्त्व छे
(अर्थात्) सत्नुं सत्त्वपणुं-द्रव्यनुं द्रव्यपणुं-भावनुं भाववानपणुं-एवी
“अन्वयशक्तिने सदाय नहि
छोडतुं थकुं (सत् ज छे.) आहा... हा!
(कहे छे केः) गमे ते पर्यायमां हो, पण द्रव्य पोतानुं द्रव्यत्व (एटले) अन्वयशक्तिओ -
त्रिकाळ एकरूप छे गुणो-एने ई (द्रव्य) कोई दि’ छोडतुं नथी. आहा... हा! एवी द्रष्टि कराववा
आ वात करे छे. आहा... हा! द्रव्य तो लीधुं पण द्रव्यनुं द्रव्यत्व एटले के अन्वयशक्तिओ एम.
आहा... हा! ‘द्रव्यत्वभूत’ कीधुं छे ने भाई...! ‘द्रव्यत्वभूत’ झीणी वात छे प्रभु! द्रव्य छे वस्तु छे.
‘सत् ज (हयात ज) छे.’ सत्नुं जे सत्पणुं-द्रव्यत्वपणुं-अन्वयशक्तिपणुं-ए अन्वयशक्तिने द्रव्य
सदाय नहि छोडतुं (थकुं) सत् ज (हयात ज) छे. आहा... हा!
“ज्यारे जुओ त्यारे ई पुरण भंडार
भर्यो छे” एम कहे छे ए द्रव्य छे (एनुं) द्रव्यत्वभूत-द्रव्यपणुं एटले अन्वयशक्तिपणुं एटले
भावनुं भावपणुं - द्रव्य (ने) ज्यारे ‘भाव’ कहीए त्यारे एनुं सत्त्वपणुं

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४६८
भाववान (अथवा) भावपणुं एने कदी (द्रव्य) छोडतुं नथी. आहा... हा! झीणी वात छे भाई!
मुदनी रकमनी वात छे. आहा... हा! परने ने एने कांई संबंध नथी एम (आचार्यदेव) कहे छे.
परमाणु हो के (अन्य द्रव्यो हो) अहींयां तो आत्मानी साथे संबंधनी वात छे. आत्मानी वात कहेवी
छे ने अहींयां तो....! द्रव्यपणे अने मूळपणे. परमाणुनी कांई वात नथी कहेवी अत्यारे. आहा.... हा!
“प्रथम तो” (संस्कृत टीकामां)
तावद् कह्युं छे. द्रव्यं हि तावद् संस्कृत छे. मूळ वात ए छे के एम
(अर्थ छे) तावद् एटले मूळ वात एम छे के संस्कृत टीकानी पहेली लीटी (जुओ) द्रव्यं हि
तावद्द्रव्यत्वभूतामन्वयशक्तिं आहा...हा!
(कहे छे) प्रभु! तुं कोण छो? कहे छे केः अन्वयशक्तिओ-द्रव्यत्वपणुं नहीं छोडतो. ए हुं छुं.
आहा... हा! पर्यायपणे भले-नारकपर्याय, मनुष्यपर्याय, देवपर्याय (हो) पण मारी चीज जे छे अने
चीजनुं चीजपणुं जे छे- एनी अन्वयशक्तिओ लीधी छे ने...? अन्वयशक्ति कहो के अन्वयसामर्थ्य
(अथवा) स्वभावनुं सामर्थ्य (ने सदाय नहि छोडतुं थकुं सत् ज (हयात ज) छे. आहा... हा! आ
अधिकार ‘ज्ञेय अधिकार’ छे! के. आत्मज्ञेय! ज्ञेय अधिकारमां अहींयां (मुख्यपणे) आत्माने ज
लीधो छे. द्रष्टांत तरीके तो आत्माने ज लीधो. ज्ञेयो तो बधां छे. ए दरेक द्रव्य ज्ञेय छे एने द्रव्यत्व
(भूत) अन्वयशक्तिओ ने ए द्रव्य छोडतुं नथी. ए भले गमे ते पर्यायपणे थाव (ते तो तेनुं ते ज
छे.) अहींयां तो भले आत्मानो द्रष्टांत दीधो. (पण बधा द्रव्यो ते तोतेना ते ज छे.) प्रभु! तुं गमे
ते स्थितिमां हो पण ते द्रव्य छे ते द्रव्यत्वने-अन्वयशक्तिओने (कदी छोडतुं नथी.) ए भाववान ते
‘भाव’ ने कदी छोडतुं नथी. आहा.. हा! छे? एक लीटी छे.
तावद् (एटले) मूळ वात एम छे के
एम (कहेवुं छे.) तावद् नाम प्रथम एटले मुख्य वात ते ‘आ’ छे. आहा... हा! बे (प्रकारे) भाषा
लीधी छे ने..! द्रव्य (ते) द्रव्यभूत (अर्थात्) भाववान तेना भावने कदी छोडतो नथी. आहा.. हा!
द्रव्य, द्रव्यत्व एवो भाव, एवी अन्वय शक्तिओ-गुण, (एमां) एटली अनंती शक्तिओ छे ते
भावने भाववान कोई दि’ छोडतुं नथी. आहा...हा...हा...हा! पहेली लीटी (नो ज भाव स्पष्ट थाय
छे.)
(कहे छे केः) आ चार महिना (आ वरसना) थया आने. पांच वरस ने चार महिनानो
आजे दिवस छे ने...! फागण शुद-१३ (छे.) चैत्र, वैशाख, जेठ ने अषाढ तेथी पांच वरस ने चार
महिना थया ‘परमागम (मंदिरनी प्रतिष्ठाने) आहा... हा! (श्रोताः) खजानो खोली दीधो छे
आपश्रीए तो...!
(उत्तरः) कहे छे के तुं द्रव्य छो के नहीं! तो एनुं द्रव्यपणुं छे के नहीं! द्रव्यपणुं एटले के
अन्वयशक्तिओ छे के नहीं! अन्वय एटले कायम रहेनारुं सामर्थ्यवाळुं तत्त्व छे के नही! आहा... हा!
कायम सामर्थ्य ने सत्त्व ने रहेनारुं सत् सत् कहो के द्रव्य कहो, सत्त्व-अन्वयशक्तिओ तेने ते

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४६९
अन्वयशक्तिने सत् कदि छोडे छे? (‘सदाय नहि छोडतुं थकुं सत् ज (हयात ज छे.) आहा... हा..
हा! गमे ते (पर्यायमां हो) निगोदनी पर्यायमां हो, मनुष्यनी पर्यायमां हो, प्रभु तुं द्रव्य छो ने!
अने तारुं द्रव्यपणुं-अन्वयशक्तिओ-गुणो छे (अर्थात्) भाई ई भाववानने (छोडतुं नथी.) भले
निगोदमां पर्याय अक्षरना अनंतमा भागे थई जाय, पण एने-द्रव्ये द्रव्यशक्तिओने (कदी) छोडी
नथी. आहा... हा... हा! समजाणुं कांई..? भाषा तो सादी छे पण हवे भाव तो (आकरा छे!)
(अहींयां कहे छे केः) “अन्वयशक्तिने सदाय नहि छोडतुं थकुं सत् ज (हयात ज) छे.”
तो कायम-ह्यात ज छे. गमे ते पर्यायमां हो पण ई सत् हयात ज छे. आहा... हा! संयोगने लईने
तो नहीं, पण एक समयनी पर्याय-पर्याय थाय एने लईने असत् (थई जाय एम) नहीं ई तो
ह्यात-कायम तत्त्व छे. आहा... हा... हा! आ ज्ञेय अधिकार! आत्मज्ञेय! आहा...! ए ज्ञेयनुं ज्ञेयपणुं
ज्ञेये कदी छोडयुं नथी. आहा... हा! आवो भगवान आत्मा! एणे भगवानपणुं कदी छोडयुं नथी.
‘नियमसार’ मां तो ई ज आवे छे ने...! ‘कारणज्ञान’ (‘नियमसार गाथा १३-१४) कारणद्रव्य तो
ठीक, कारण परमात्मा ई पण द्रव्य ठीक! पण ‘कारणज्ञान’ - ‘त्रिकाळीकारणअन्वयज्ञान’ . जे छे
एमां. ज्ञानीय एवो जे आत्मा, एनुं जे ज्ञान-कायमी ज्ञान- कारणज्ञान (त्रिकाळ अन्वयछे) अने
केवळज्ञान ते कार्यज्ञान छे. आहा... हा!
(कहे छे) भगवान आत्मा, एनी अन्वयशक्तिओ- द्रव्यत्वपणुं सदाय तेने नहि छोडतुं -
एकधाराए सदाय चाले छे कहे छे. आहा... हा! “अने द्रव्यने जे पर्यायभूत व्यतिरेकव्यकितनो
उत्पाद थाय छे.” हवे कहे छे के ए द्रव्य ज छे एने जे पर्यायो-व्यतिरेक भिन्न भिन्न प्रगटता-उत्पाद
थाय छे. (जोयुं?) ओली अन्वय (शक्तिओ) नी सामे व्यतिरेक (पर्यायो) लीधी. समजाणुं? उत्पाद
थाय छे व्यतिरेक व्यकितओ ते अन्वयनी सामे व्यतिरेक लीधी. छे? समजाणुं? ओला द्रव्यने
द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्ति लीधी (अने) द्रव्यने पर्यायभूत व्यतिरेकव्यकित लीधी. आहा... हा! ए
द्रव्यने जे अन्वयशक्तिने नहि छोडतुं एने पर्यायभूत व्यतिरेक व्यक्तिनो उत्पाद थाय छे. पर्यायभूत
व्यतिरेक नाम भिन्न भिन्न (पर्यायो). ओलामां (द्रव्यमां) एकरूप त्रिकाळ (अने आ) भिन्नभिन्न
प्रगटता उत्पन्न थाय छे
“तेमां पण द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिनुं अच्युतपणुं होवाथी” आहा... हा!
ई द्रव्यने पर्यायभूत व्यतिरेक प्रगटताओ भिन्न भिन्न छे “तेमां पण द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिनुं
द्रव्यने. एम छे ने...? अने द्रव्यने पण पर्यायरूप व्यतिरेक छे तेमां पण ते द्रव्यने द्रव्यत्वभूत
अन्वयशक्तिनुं अच्युतपणुं होवाथी
“द्रव्य अनन्य ज छे.” आहा... हा... हा! आ सिद्धांत कहेवाय
आ! हें? वारता (कांई नथी.) आ भगवाननी वार्ता छे!
(कहे छे केः) भगवत्स्वस्वरूप! एनुं (आत्मद्रव्यनुं) भगवत्स्वरूप छे. अन्वयशक्तिओ
(त्रिकाळ छे.) आहा... हा! पर्याय्भूत व्यतिरेक उत्पाद थाय तेमां पण, “द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिनुं

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७०
अच्युतपणुं होवाथी.” द्रव्यनो द्रव्यत्वगुण एवी अन्वयशक्ति (एटले) अन्वयसामार्थ्यएकरूप
रहेवावाळुं अन्वयसामार्थ्य (नुं) अच्युतपणुं होवाथी-च्युत जरीए थई नथी. आहा... हा! चाहे तो
निगोदनी पर्याय हो, लसण-डुंगळी (मां रहेला छे) एक अक्षरनो अनंतमो भाग-उघाड.
(उपयोगमां) ते पर्यायमां होवा छतां ते द्रव्ये द्रव्यत्वने-अन्वयशक्तिने छोडी नथी. आहा... हा... हा!
(वात करवा पूरती) वात नथी बाता आ! आहा... हा! ‘सत् ने प्रसिद्ध करवानी ए टीका! आ
‘टीका’ कहेवाय. आहा...! अमृतचंद्राचार्य! (कहे छे) प्रभु! तुं द्रव्य छो ने...! अने द्रव्यमां द्रव्यत्वपणुं
अन्वय शक्तिओ छे ने...! ए अन्वयशक्तिओवाळुं द्रव्य, व्यतिरेक-भिन्न भिन्न पर्यायने प्राप्त थतुं
छतां ए अन्वय-द्रव्यनुं द्रव्यपणुं अन्वयशक्तिओने कदी छोडतुं नथी. आहा... हा! एमां कदी घाल-
मेल कांई थती नथी. निगोदमां अक्षरना अनंतमां भागनी थई छतां द्रव्यना द्रव्यत्वपणामां कांई
खामी थई नथी. आहा... हा... हा... हा! अने केवळज्ञाननी पर्याय थई, तो पण द्रव्यमां
द्रव्यत्वअन्वयशक्तिमां कांई पण घटाडो थयो नथी तेम वधारो थयो नथी. (द्रव्य तो तेनुं ते ज छे.)
आहा... हा... हा! समजाय छे कांई?
(सद्गुरु कहे छे) ‘अनंतकाळथी आथडयो विना भान भगवान’ (-श्रीमद् राजचंद्र’)
आहा.. हा! देशने तिथि छे आज. ‘परमागम (मंदिर) नी’ मासिक तिथि! भक्ति आंही थाशे हो
आज. हिंमतभाई करावशे. तेरस छे ने... आहा...! तेमनुं गुणस्थान पामे-केवल-तो य द्रव्यनुं
द्रव्यत्व-अन्वयशक्ति ते एवी ने एवी छे. आहा... हा... हा! अने अक्षरना अनंतमा भागनी
निगोदनीय पर्याय थाय, तो य द्रव्यनुं-द्रव्यत्व-अन्वयशक्ति सदाय एवडी ने एवडी (एवी ने एवी)
छे. “सदाय नहि छोडतुं थकुं.” आहा... हा... हा! अरे! टीकाना वधारे शब्दोनी शुं जरूर छे? आहा..
हा! थोडुं लख्युं घणुं करीने जाणजो. एवी वात छे आ तो! थोडुं कह्युंः के द्रव्यनुं द्रव्यत्वपणुं
अन्वयशक्तिओ कोई दि’ त्रिकाळ-त्रिकाळ (द्रव्यने) छोडतुं नथी. आहा.. हा! पर्यायमां गमे ते
हीनाधिक दशाओ थाव. छतां द्रव्यनुं द्रव्यत्व-अन्वयशक्तिपणुं, एमां सदाय छोडयुं नथी एणे. एमां
कदी घटाडो-वधारो थयो नथी. आवो उपदेश हवे, आकरो लागे लोकोने! निश्चय छे निश्चय छे पण
बापा सत्य ‘आ’ छे. (तुं) निश्चय- (निश्चय) करीने एकांत करी नाख. पर्याय हो, ई तो पर्याय
तो कहे छे. पण पर्याय होवा छतां, पूर्णता द्रव्यनी-पूर्णता द्रव्यत्वनी द्रव्यत्वपणानी अन्वयशक्तिओ
एवी ने एवी बधी छे ज्ञान एवुं ने एवुं, दर्शन एवुं ने एवुं, आनंद एवो ने एवो, श्रद्धा एवी ने
एवी, श्रद्धा एटले पर्याय नहीं (त्रिकाळीगुण) आहा..! सत्ता एवी ने एवी, वस्तुत्व एवुं ने एवुं,
प्रमेयत्व एवो ने एवो, जीवतर शक्ति एवी ने एवी ई (बधी) शक्तिओनुं शक्तिपणुं एवुं ने एवुं
छे. आहा... हा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “तेमां पण द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिनुं अच्युतपणुं होवाथी आहा...
हा! पहेलामां एम कह्युं हतुं “अन्वयशक्तिने सदाय नहि छोडतुं थकुं” छे ने? एमां

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७१
आ द्रव्य द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिनुं अच्युतपणुं होवाथी “द्रव्य अनन्य ज छे” द्रव्य तो अनन्य एनुं
ए ज छे. आहा... हा... हा! क्यां निगोदनी पर्याय ने (क्यां) तिर्यंचनी अने क्यां सर्वाथसिद्धिना
देवनी पर्याय! त्रण ज्ञान-क्षायिक समकित सहित (जे देवने वर्ते छे.) अरे! आहा... हा! छतां द्रव्य
ने द्रव्यनी अन्वयशक्तिओ तो एवा ने एवा ज छे. ए ‘महासत्ता’ ने पकडवानी छे. हें? एवी
‘महासत्ता’ प्रभु छे. अन्वयशक्तिनुं भरेलुं तत्त्व, एटले ‘भाव’ थी भरेलो भगवान (आत्मा)
आहा.. हा! (तेमां एकाग्रता करवानी छे.) “अर्थात् ते उत्पादमां पण” पर्यायमां नवी नवी
(पर्यायमां) व्यतिरेक उत्पादमां पण
“अन्वयशक्ति तो” आहा... हा! क्यां ए चक्रवर्ती राजा होय,
अने ए मरीने नरकमां जाय. के राजा मोटो होय ते निगोदमां जाय मरीने. आहा...! आंही जुओ तो
केटलो उघाड देखातो होय, (ई) मरीने निगोदमां जाय. पण छतां कहे छे के ई तो पर्यायमां फेर छे.
वस्तु तो छे ई छे एमां (फेर थयो नथी.) “ते उत्पादमां पण अन्वयशक्ति तो अपतित–
अविनष्य–निश्चळ होवाथी द्रव्य तेनुं ते ज छे, अन्य नथी”
वस्तु तो तेनी ते ज छे (तेमां फेर थयो
नथी.) आहा.. हा! समजाय छे आमां?
“माटे अनन्यपणा वडे द्रव्यनो सत्–उत्पाद नककी थाय
छे.”
आहा... हा! ‘माटे अनन्यपणा वडे... द्रव्यनो सत्-उत्पाद छे एमांथी थाय छे उत्पाद एम कहे
छे. आहा.. हा! छे एमांथी आव्युं छे. ए ज छे (एम) कहे छे. ई पर्याय जे थई छे ई ‘सत्’
मांथी थई छे. छे एमांथी थई छे. आहा... हा! ‘सत्-उत्पाद’ कह्यो छे ने...! ‘छे एमांथी थई छे.
‘सत्-उत्पाद’ आहा...!
“ (अर्थात् उपर कह्युं तेम द्रव्यनुं द्रव्य–अपेक्षाए अनन्यपणुं होवाथी, तेने
सत्–उत्पाद छे एम अनन्यपणा द्धारा सिद्ध थाय छे.”) आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “आ वातने (उदाहरणथी) स्पष्ट करवामां आवे छे.” जीव द्रव्य
होवाथी अने द्रव्य पर्यायोमां वर्ततुं होवाथी” वळी शुं कीधुं (आ) पाछुं द्रव्य, अन्वयशक्तिओने
छोडतुं नथी ई ए राख्युं; अने ई द्रव्य पर्यायोमां वर्ततुं होवाथी (एम पण कह्युं) आहा... हा! जे
द्रव्य छे-भगवान आत्मा, एमां अनंत अन्वयशक्तिओ जे छे द्रव्यत्व (पणा) रूपनी एवुं जे द्रव्य,
ई पर्यायमां वर्ततुं होवाथी! आहा... हा! भाई! एक बाजुथी कहेवुं के पर्याय षट्कारकपणे स्वतंत्र
परिणमे छे एने द्रव्य (गुण) नी पण अपेक्षा नथी. पर्याय जे छे ई (सत्) छे.
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् छे ई (पर्याय). व्यय पण ‘सत्’ छे. उत्पाद पण ‘सत्’ छे. ध्रौव्य पण
‘सत्’ छे. ए तो छे. आहा... हा! तेथी ए उत्पादनी पर्यायमां द्रव्य वर्ततुं होवाथी (एम अहीं कह्युं
पण) द्रव्य तो अन्वयशक्तिओमां वर्ते छे. त्रिकाळपणे. ई द्रव्य हवे ‘पर्यायोमां वर्ततुं थकुं’ आहा...
हा!
“जीव द्रव्य होवाथी” एम अहींयां जीव उपर उतारवुं छे ने...? जीव पण “द्रव्य होवाथी अने
द्रव्य पर्यायोमां वर्ततुं होवाथी” द्रव्य पर्यायमां वर्ततुं होवाथी’ लो! (एम कीधुं) एक बाजुथी एम
कहेवुं के पर्याय षट्कारकथी परिणमे छे. आहा..! एककोर एम कहेवुं के जीवद्रव्य

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७२
मोक्ष अने मोक्षनी पर्यायने करतुं नथी. (‘समयसार’) सर्व विशुद्ध अधिकार (मां कह्युं छे के) मोक्ष
ने मोक्षनी पर्यायने द्रव्य करतुं नथी. आंही कहे छे के ‘द्रव्य पर्यायमां वर्ततुं थकुं’ आहा... हा! भेद
समजाववो छे ने... भिन्न- भिन्न आहा.... हा!
(कहे छे केः) “जीव द्रव्य होवाथी” -जीव द्रव्य होवाथी एम. जीव... द्रव्य होवाथी आहा...!
ओलो (पहेलां) सि द्धांत कीधो हवे उतारे छे (जीवना उदाहरण उपर) “जीव... द्रव्य होवाथी, द्रव्य...
पर्यायोमां वर्ततुं होवाथी”
आहा... हा! “जीव नारकत्व” जीवनारकीपणुं “तिर्यंचत्व” तिर्यंचपणुं
“मनुष्यत्व” मनुष्यपणुं “देवत्व” देवपणुं अने “सिद्धत्व” सिद्धपणुं (अथवा) सिद्ध- पांचेय पर्याय
हो? (पर्यायो छे). चार गतिनी ज मात्र एम नहीं. “सिद्धत्वमांना कोई एक पर्याये अवश्यमेव
थशे”
- ई पांचमांथी कोई एक पर्याये (जीव) जरूर थशे. आहा... हा! चार गति (नी) अने (एक)
सिद्धपर्याय. (बधी) पर्याय छे ने...! ई जीव पर्यायमां वर्ततुं थकुं आहा.. हा! “परिणमशे.” परंतु ते
जीव ते पर्यायरूपे थईने शुं द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने छोडे छे?”
आहा... हा! ए सिद्धनी पर्याय
थई, छतां ई द्रव्य (जीव) ते पर्यायरूपे थईने शुं द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने छोडे छे? सिद्धपर्याय थई
छतां द्रव्य पोतानुं द्रव्यत्व अन्वयशक्तिने छोडे छे?
(“नथी छोडतो”) आहा... हा! आवुं
(वस्तुस्वरूप) द्रव्यानुयोगनी वात छे. नारकीपणे तो ठीक, चार गतिनी पर्यायपणे वर्ततुं थकुं- जीवद्रव्य
वर्ततुं थकुं पोताना त्रिकाळी अन्वयगुणोने छोडतुं नथी. एम सिद्धत्वनीय पर्याये वर्ततुं थकुं- जीवद्रव्य
पोतानी द्रव्यत्वअन्वयशक्तिओने छोडतुं नथी. आहा... हा... हा... हा! छे ने एम अंदरमां? (पाठमां.)
जुवानियाओने तो आबधुं नवुं लागे. जुवान कोण छे बापाआमां? ए तो बधी जडनी अवस्था छे.
भगवान (आत्मा) तो आ अंदरमां (तेनो ते ज छे) कहे छे ने के पर्यायमां परिणम्यो तो य वस्तु तो
एवी ने एवी ने एम ने एम रही छे. आहा... हा! ए वस्तु पर्यायोमां वर्ते छे एम कहेवुं व्यवहारे.
आहा... हा!
(श्रोताः) व्यवहारे आत्मा! (उत्तरः) व्यवहारे पर्याय. (आत्मद्रव्य नहीं) ई द्रव्यनुं
पर्यायमां प्रवर्तवुं- परिणमन एनुं छे एम बताववुं छे ने द्रव्यत्व (कीधुं ने) द्रव्यत्व बताववुं छे ने?
द्रव्यत्वगुण छे ने..! द्रव्यत्व गुण छे ने...! तो द्रव्यत्वगुणनो अर्थः द्रवे छे. एम त्यारे सिद्ध थाय छे ने...
(पांच पर्यायो.) आहा... हा! तेथी द्रव्यत्व लीधुं छे ने...? (कीधुं छे) ‘द्रव्यत्वभूत’ एनुं जे ‘पणुं छे
ई’ पणुं पाछुं पर्यायमां ज्यारे परिणमे छे छतां ते अन्वयशक्तिने छोडतुं नथी. आहा... हा! अरे!
आवो विचार करवो क्यारे? (वखत) मळे! नहीं ने सांभळवा मळे नहीं ने निर्णय क्यारे करे?
‘करवानुं तो आ छे.’ आहा... हा!
(कहे छे) भाई...! ई कांतिभाईना समाचार आव्या’ ता काल. के रात्रे दश वाग्या सुधी तो
वातुं करता’ ता. हवे सवारमां ऊठया ने... त्रेसठ वरसनी (उंमर) दीकरो-दीकरी थया नथी. दश
वाग्या सुधी राते मित्रो हारे वातुं करी सूई गया. सवारे ऊठया-ऊठयाने एकदम आंचको-बंध

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७३
थई गयुं (हृदय) आ ऊठया ने आ बंध थई गयुं लो!!
आहा... हा! जडनी अवस्था जे समये जे थवानी-कोण रोके? ने कोण करे? ई पर्यायनो कर्ता
द्रव्य छे हों पाछा. ई अहींयां सिद्ध करवुं छे. ‘कळशटीका’ मां आवे छे ने..! पर्यायनो कर्ता द्रव्य छे.
करण द्रव्य छे. कर्ता द्रव्य छे. अपेक्षाथी जे वात होय (ते अपेक्षा समजवी जोईए)
(श्रोताः) पर्याय
शुं स्वभाव छे? (उत्तरः) पर्याय एनी छे ई स्वभाव छे. अहींयां ई सिद्ध करीने, परद्रव्योने लईने
कांई (कार्य) थतुं नथी एमां- एम सिद्ध करवुं छे. ए (आत्मा) पोते आखो भरेलो द्रव्यत्व-
द्रव्यत्वनी (अन्वय) शक्तिओथी (छे.) छतां ए द्रव्य, पर्यायोमां वर्ततुं (थकुं) एने बीजुं द्रव्य कांई
पण करी शकतुं नथी. आहा... हा! करम, शरीर, वाणी, मन, देश -कुटुंब (आदि परद्रव्यो) कोई चीज
एने (कांई पण करी शकतुं नथी.) ई द्रव्य, पोते ज ई पर्यायोमां (पर्यायभूत व्यतिरेकव्यकितओमां)
वर्ते छे (एम कीधुं छे.) बीजां द्रव्य, एने वर्तावे छे (एम नथी.) आहा... हा! आवुं (अकर्तापणुं
समजवा) वखत क्यां मळे? (आवुं) सांभळवुं ज कठण पडे!ं (लोकोने) ओलुं तो दया पाळो...
व्रत करो... भक्ति करो... तप करो... लो! (समजवानी एमां जरूर ज नहीं.) आहा... हा! “एक
व्याख्याने पूरुं छे’!!
(अहींयां कहे छे केः) “कोई एक पर्याये अवश्यमेव थशे– परिणमशे.” जोयुं? द्रव्य, द्रव्यत्व-
अन्वयशक्तिओने नहि छोडतां छतां, ते द्रव्य, पर्यायमां वर्ते छे. तेथी (आ पांचमांथी) कोई पण एक
पर्याये अवश्यमेव थशे. कोईपण पर्याये जरूर थशे (ज). आहा... हा! एम करीने - ए पर्यायनो
काळ- एनाथी छे. ए पर्याय (नो उत्पाद) फलाणुं द्रव्य आव्युं अकस्मात ने एकदम आम थई गयुं.
एकदम फेरफार थयो. परद्रव्यमां-ए द्रव्य (कर्म) नो संयोग एकदम आकरो आव्यो (माटे आम थयुं)
एत्रप वातमां माल कांई नथी एम कहे छे. ए द्रव्य पोते ज ते काळे पर्यायमां वर्ते छे तेथी थे थई
छे. आहा... हा! पर (द्रव्य) कर्मने लईने नहीं, संयोगने लईने नही, अकस्मात कांई नहीं, आहा...
हा! अकस्मात नहीं, ते द्रव्य पोते ते समये ते पर्याये वर्ते छे, ते प्रमाणे वर्ते छे. आहा... हा!
समजाणुं?
(अहींयां कहे छे केः) “परंतु ते जीव ते पर्यायरूपे थईने शुं द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने छोडे
छे?” एम कीधुं. नरकनी पर्याय थई के सिद्धनी पर्याय थाय. ते जीव ते पर्यायरूपे थईने- पर्यायरूप
(जीवद्रव्य) थयुं छतां शुं ते द्रव्य, द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने छोडे छे? आहा... हा! तेनो भाव अने
भाववान (जीवद्रव्यनुं) ई पर्यायमां भले आव्युं छतां तेनुं भाववानपणुं ए ‘भावे’ कदी छोडयुं छे?
आहा... हा! वस्तु छे ने...! तत्त्व छे ने तत्त्व.. अस्ति छे ने...! ‘सत्’ ... छे ने... ‘सत्’ नुं सत्पणुं
छे ने...! सत्पणुं राखीने पर्यायमां प्रवर्ते छे ने...! के सत्पणुं छोडीने पर्यायमां प्रवर्ते छे? आहा...
हा! शुं शैली!! आचार्यनी टीका!!
“परंतु ते जीव ते पर्यायरूपे”

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७४
थईने” पर्यायपणे (आत्मा) थयो. “शुं द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने छोडे छे? सिद्धपर्याय थई, एथी
शुं गुणनी -अन्वयशक्ति-द्रव्यनुं द्रव्यत्व छे- ए छोडे छे? के नरकमां जईने -सातमी नरके गयो. पण
ते पर्यायोमां वर्ततुं द्रव्य, ए द्रव्यनुं द्रव्यपणुं-आ अन्वयशक्तिओ शुं त्यां छोडे छे? आहा... हा! आ
टीका कहेवाय! जोई! आ सिद्धांत! थोडामां घणुं भर्युं होय- ‘भाव’ . अमृतचंद्राचार्य! दिगंबर संत!
चालता सिद्ध!! आहा... हा! एनी आ टीका छे.
(कहे छे) (श्रोताः) अभवी तो अनादि -अनंत मिथ्यात्वरूपे ज परिणमे छे...! (उत्तरः)
भले परिणमे. (पण) द्रव्यनुं द्रव्यत्वपणुं छूटयुं छे? भले मिथ्यात्वपणे परिणम्यो. पण द्रव्यनुं द्रव्यत्व
-अन्वयशक्तिओ जे गुणो छे एमांथी कंई ओछुं (थयुं के) कंई छूटयुं छे?
(श्रोताः) अनंतकाळथी
शुं एवो ने एवो छे? (उत्तरः) एवो ने एवो छे ने एवो ने एवो रहेशे, सिद्ध थशे तोय एवो ने
एवो छे. आहा...हा...हा! (मुक्त हास्य...) अने ते पण पर्यायमां द्रव्य वर्ततुं कह्युं एवी भाषा लीधी
छे. छतां द्रव्य एवुं ने एवुं छे!! कारण के पर्याय एनी सिद्ध करवी छे ने..! परने लईने कांई थयुं
नथी एमां. आहा...हा...हा! केटली... सादाई अंदर वस्तु छे! सादी वस्तु छे!! आहा...हा! ए आवुं
द्रव्य! द्रव्यत्व-अन्वयशक्तिओवाळुं द्रव्य, पर्यायमां वर्ततुं छतां-भले सातमी नरकनी पर्यायमां वर्ततुं-
के निगोदनी पर्याये वर्ततुं के सिद्धनी पर्याये वर्ततुं, के सर्वाथसिद्धिना देवनी पर्यायमां वर्ततुं-
त्रणज्ञानना धणी, एकावतारी! ए पर्यायपणे प्रवर्ततुं- शुं द्रव्यनुं द्रव्यत्वपणुं छूटयुं छे? छे? (पाठमां)
ते पाछो जीव ‘ते पर्यायरूपे थईने’ (वळी) पर्यायरूपे थईने
“शुं द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने छोडे
छे? नथी छोडतो.” आहा...हा...हा...हा!
(कहे छे केः) भगवान आत्मा, पर्यायना अंशमां-गमे ते पर्यायमां हो, पण भगवाने पोते
द्रव्यत्वभूत-अन्वयशक्तिओने कदी छोडी नथी. आहा...! ज्ञाननी पूरणता, दर्शननी पूरणता, आनंदनी
पूरणता, स्वच्छतानी पूरणता, प्रभुतानी पूरणता, आहा... हा! ए पर्यायमां वर्ततुं छतां आ
पूरणताने छोडी नथी. आहा... हा! को’ हिंमतभाई! आवुं सांभळ्‌युं’ तु के दि’? आहा...!
तारी
नजरने आळसे, रही गयुं छे! कहे छे. आचार्य! वस्तु तो एवी ने एवी रही, पर्यायमां वर्ते छे छतां
वस्तुतो एवी ने एवी ज रही छे. आहा.. हा! सिद्धपणे परिणमे तो य वस्तु एवी ने एवी रही छे.
तो बीजानी वात क्यां करवी? अनंत-अनंत पर्यायो ज्यां अनंती-अनंती पर्यायोनी व्यक्तता अनंती
पूरण थई गई! अनंत शक्तिओ (जे) छे. अनंत सामार्थ्यवाळो भाव द्रव्यत्व-एमांथी अनंत पूरण
ज्ञान, दर्शन पर्याय थई छतां वस्तुने एनुं अन्वयपणुं (शुं) छोडयुं छे? (कदी नथी छोडयुं.)
आहा...हा...हा! ए वस्तु छे ते एकरूपे छे द्रव्य अने द्रव्य-गुण. द्रव्य ने द्रव्यगुण, अन्वयशक्ति कहो
(एकार्थ छे.) शुं कथन पद्धति!! आहा.. हा!
एक गाथाए न्याल करी नाखे एवुं छे!! तकरार,
वादविवादे पार न पडे बापा! आ वात तो वस्तुस्थितिनी मर्यादा भगवान कही वर्णवे छे. आहा...
हा! गमे ते पर्याये परिणमो- सिद्ध के केवळज्ञानपणे परिणमे तोय शुं?

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७प
आहा...हा! केवुं छे के केवळज्ञान? के एक समयमां अनंता केवळीओने जाणे छतां त्यां अन्वयशक्तिने
कांई घसारो थयो छे? (ए तो एवी ने एवी छे.) आहा...हा!
(कहे छे) ज्ञानशक्ति, दर्शनशक्ति, आनंदशक्ति, कारणशक्ति- ए तो पूरण बधी (छे.)
कारणद्रव्य छे एम कारण शक्ति (ओ) पूरण एनी (छे.) एमां क्यांय ओछी-वत्ती थई छे कांई?
(ना.) ए द्रष्टिमां लेवुं अघरी वात छे बापु! आहा...! को’ चीमनभाई! हें? आवी वात छे. आ
बहारनी क्रियाकांड ने.. आ ने आ ने.. ए वखते पण कहे छे के क्रियाकांड ना तारा रागनी पर्याय
थई छतां द्रव्य ने गुण तो एवा ने एवा रह्या छे. आहा... हा... हा! ग्रहीतमिथ्यात्वपणे परिणमो
ए- तो अनादि छे. ते द्रव्य ते पर्यायमां प्रवर्ते छे. छतां ते पर्यायमां (मिथ्यात्व) परिणम्युं छे पण ते
द्रव्य ने गुण तो तेवा ने तेवा ज रह्या छे. आहा... हा! एनी मोटपने आंच नथी क्यां’य. प्रगट दशा
थाय तो एने आंच-घटी जाय छे एम नथी. महाप्रभु!! केवळ थयुं सिद्ध अनंत-अनंत, अनंत ज्ञान
अनंत दर्शन, अनंतसुख, अनंत वीर्य जेटला गुणो छे तेटली पर्यायो-व्यक्तिओने पूरण प्रगटी,
आहा..! छतां आंही जे पूरण गुणो छे द्रव्यत्व-ए द्रव्यनुं द्रव्यत्व अन्वयशक्तिओ सदाय एवी ने
एवी छे. आहा... हा! आ वात बेसारवी ओछी वात छे बापा!
(अहींयां कहे छे केः) “जो नथी छोडतो तो ते अन्य कई रीते होय.” ई छोडतो नथी प्रभु!
पोताना अनंतगुणो जे ध्रुव छे. अन्वयशक्तिओ-द्रव्यत्व छे. आहा.. हा! आ द्रव्यत्व छे (ई) ओलुं
द्रवे पर्याय ई नथी हों? भाई! (ओलुं) द्रव्य -गुणमां द्रवे-द्रवे आवे छे ने पंचास्तिकाय’ मां नवमी
गाथा.
[अन्वयाथर्ः- ते ते सद्भावपर्यायोने जे द्रवे छे– पामे छे तेने (सर्वज्ञो) द्रव्य कहे छे– के जे
सत्ताथी अनन्यभूत छे.] द्रवे छे-विभावपणे परिणमे छे. ई अहींयां नहीं. (अहींयां तो) द्रव्यत्व
एटले एनुं भावपणुं लेवुं छे. द्रव्य, द्रवे छे पर्याय एम अहींयां नथी लेवुं. समजाणुं कांई? अहींयां
तो द्रव्यनुं द्रव्यपणुं कायम जे छे-अन्वयशक्तिओ एने शुं कांई घसारो लाग्यो छे? निगोदमां. (गयो
त्यारे) अने सिद्ध थयो त्यारे (अन्वयशक्तिओ) वधी! एमां शुं कांई ओछुं-वधारे थयुं छे के
(पर्यायमां) ज्ञान ओछुं-अधिक देखाय त्यारे? निगोदमां के पूर्णतामां कांई-कांई ओछप आवी छे?
(कहे छे ना. एवी ने एवी छे.) आ ते शुं वात छे!! आहा...हा...हा! आ तो भाई! मध्यस्थनी
वात छे. आग्रह छोडीने-पोते मान्युं होय ए प्रमाणे कांई थाय, एम न होय, वस्तु जेम छे तेम हशे,
तेम (ज) रहेशे. मान्यता करी’ ती एम ई प्रमाणे आमांथी नीकळे एम नथी. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “तो ते कई रीते होय के जेथी त्रिकोटि सत्ता.” जोयुं? त्रिकोटि सत्ता
एटले “त्रण प्रकारनी सत्ता, त्रिकाळिक हयाती.” त्रण प्रकारनी सत्ता, आहा...हा! त्रिकाळ हयाती!
द्रव्य अने अन्वयशक्तिओनी त्रिकाळ हयाती (छे.) आहा...हा! द्रव्यनी, द्रव्यत्वने

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७६
अन्वयशक्तिओनी त्रिकाळ हयाती (छे.) एकरूपता-त्रिकाळिक हयाती! आहा.. हा! त्रिकोटिसता -
त्रण प्रकारनी सत्ता एटले भूत, भविष्य ने वर्तमान एम. त्रिकाळिक हयाती “जेने पगट छे एवो ते
जीव, ते ज न होय? (ते ज होय.)
गमे ते पर्याय होय वस्तु ते ज होय, वस्तु ते ज छे. आहा...
हा! कारखानां (कसाईखानां) नाखे मोटां, लाखो गायो ने भेंसु कापे. एवां पाप! आहाहा! ए
पर्यायमां वर्ततुं द्रव्य, शुं द्रव्ये द्रव्यत्वपणुं छोडयुं छे? कहे छे. आहा... हा! हा! नथी (छोडयुं) एम
कहे छे आत्मा (एवो) नथी एम कहे छे. ए पर्याये-परिणमन छे. आहा... हा... हा! छतां एना
द्रव्यना द्रव्यत्वपणामां कांई खामी छे? ई भले ना पाडे. (आचार्यदेव भले ना पाडे.) छे? (पाठमां)
त्रिकोटिसत्ता लीधी ने..! त्रिकोटि सत्ता त्रण प्रकारनी सत्ता-भूत-भविष्य ने वर्तमान. त्रणेय काळे
एकरूप सत्ता छे. आहा...हा!
“त्यां जोवानुं छे” पर्याय गमे ते प्रकारनी होय त्यां जोवानुं नथी.
(एकरूप सत्ता जोवानी छे.) आहा...हा! द्रव्य ने द्रव्यत्व-शकित्तओ ते (अभेदपणे) छे ते जोवानी छे.
आहा...! अने ते जोवानी ज
सम्यग्दर्शनज्ञान ने मोक्ष केवळज्ञान प्राप्त थाय छे. आहा... हा! केम के
ई सत् -सत्मांथी सत् आवे छे. एम (अहींयां) कहेवुं छे. आहा...! छतां सत्मांथी सत् आव्युं
छतां-प्रवर्त्युं छतां सत्मां न्यां खामी कांई छे नहीं आहा...हा! क्षायिक समकित थयुं, केवळज्ञान थयुं
लो अरे! ग्रहीतमिथ्यात्व थयुं, नास्तिक थयो- ‘आत्मा नथी’ हुं नथी’ एवुं पर्यायमां प्रवर्तवा छतां
द्रव्ये शुं द्रव्यत्वपणुं-अन्वयशक्तिओ छोडी छे? (नथी छोडी.) आहा..हा..हा! भाषा तो सादी पण
भाव जरी आकरा छे!
(अहींयां कहे छे केः) “जेने प्रगट छे एवो ते जीव, ते ज न होय? त्रणे काळे हयात एवो
जीव अन्य नथी.” अनेरो नथी तेनो ते ज छे.” तेनो... ते... ज.. छे आहा... हा... हा! शुं वस्तुनी
स्थिति’!! समयसारमां य छे पण आ प्रवचनसार! (पण अलौकिक आगम!) वळी छे नियमसार!
‘नियमसार’ (मां कह्युं) स्वरूपप्रत्यक्ष ई त्रिकाळ (छे.) (
‘नियमसार’ गाथा १२ टीका) आहा...
हा! स्वरूपद्रष्टि ए त्रिकाळस्वरूप! अरे! त्रिकाळी उपयोगमां तो एम लीधुं’ तुं ने भाई! के ज्ञानदर्शन
त्रिकाळ छे ए पोतपोताना जाणे छे. ई गुण जाणे छे एटलुं! गुण, स्वरूप छे पूरण एने जाणे छे. तेवुं
एनुं सामर्थ्य छे. पर्यायनी वात नहीं. आहा...हा..हा! उपयोगमां छे पहेली शरूआतमां (
‘नियमसार’
गाथा १०, १२, १३) वस्तु पोते जे छे एमां जे ज्ञान-दर्शन अनंता गुणो रहेला जे -अनंत अन्वये छे
तेने ते ज्ञान ने दर्शन जाणे ने देखे छे. ए एवी ताकातवाळु छे. पर्याय नहीं. (तेनी वात नथी)
अन्वयशक्तिनुं स्वरूप ज एवुं छे कहे छे. आहा...हा आमां तो धीरज जोईए बापु त्यारे तो माल
(हाथ आवे.) आ तो पूर्वना आग्रह कर्या होय बधा, (ए बधा पर) मींडां मूके त्यारे बेसे एवुं छे
‘आ’. आहा... आवी वस्तुनी स्थिति ज छे’. परमात्मा त्रिलोकनाथ जे कह्युं ते संतो कहे छे. आहा...
हा! जिनेश्वर एम कहे छे एम बोल्या ने.. संतो! जिनेश्वर एम कहे छे बाकी (प्रभु) तमे कहो छो ई
(पण) क्यां ओलुं-खोटुं छे! पण वास्तव (दर्शी) आपे छे प्रभुनो! त्रिलोकनाथ! सर्वज्ञदेव! परमेश्वर
एम कहे छे. गमे ते पर्यायमां द्रव्य प्रवर्ते छतां

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४७७
द्रव्य, द्रव्यपणुं कंई ओछुं (अधिक) थयुं छे? (तो कहे छे ना.) आहा...हा! त्रणे काळे ते रीते ने एक
चीजपणे रही छे. आहा...हा! एवी अंर्तद्रष्टि थवी, गमे ते पर्यायमां हो पण आ द्रष्टि थवी–ए ते छे
एवी द्रष्टि थवी–द्रष्टि–एवडो ई छे. छे तेने तेवडो मानवो ई कांई साधारण वात नथी भाई!
आहा... हा! महा पुरुषार्थ छे! ई त्रणे काळे हयात एवो ने एवो छे!! आहा... हा!

वात करशे ....