Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 1-7-1979; Gatha: 112.

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प२
प्रवचनः ता. १–७–७९.
‘प्रवचनसार’ टीका. (काले थोडी टीका चाली हती आजे फरीने.)
टीकाः– “आ प्रमाणे यथोदित सर्व प्रकारे.” एम कहेवामां आव्युं छे “यथोदित सर्व प्रकारे
अकलंक लक्षणवाळुं.” निर्दोष जेनुं लक्षण छे. “अनादिनिधन” आ द्रव्य, द्रव्य. छ ज्ञेयो छे. ज्ञेयनो
अधिकार छे ने...! ई ज्ञेय छे- वस्तु तो अनादि अनंत छे. अनादि (निधन)
“आ द्रव्य सत्–
स्वभावमां (अस्तित्वस्वभावमां) उत्पाद पामे छे.” आहा... हा! ई अस्तित्व स्वभाव छे. एमां
उत्पाद पामे छे. सत् उत्पाद छे. एम कहीने (कहे छे के) बीजो संयोग आव्यो, माटे त्यां उत्पाद-
विलक्षण रीते, विपरीत रीते देखाय छे एम नथी. ए द्रव्यनी अन्वयशक्तिओमांथी पर्याय आवी छे
आ. परद्रव्यना संबंधथी आवी नथी. जरी विचार मागे छे भई आ तो! विचारनो विषय छे. “आ
द्रव्य सत्स्वभावमां (अस्तित्वस्वभावमां) उत्पाद पामे छे.”
(शुं कहे छे?) अस्तित्वस्वभावमां
उत्पाद पामे छे. उत्पादव्यय (ध्रौव्य) एनो स्वभाव छे एमां उत्पाद पामे छे. आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “द्रव्यनो ते उत्पाद, द्रव्यनी अभिधेयता वखते.” द्रव्यना मुख्य कथन
वखते, अभिधेयता छे ने? (तेनो अर्थ फूटनोटमां) कहेवायोग्यपणुं; विवक्षा; कथनी. “सद्भावसंबद्ध
छे.”
आत्मामां के परमाणुमां जे समये अन्वयशक्ति जे छे- आत्मानी ज्ञान, दर्शन, आनंद (आदि)
अन्वयशक्तिओ, परमाणुमां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श (आदि) अन्वयशक्तिओ -एमां सद्भावसंबद्ध छे
एमांथी पर्यायो उत्पन्न थाय छे. द्रव्यथी-द्रष्टिए जोईए तो द्रव्य ज कहेवामां आवे छे एम कह्युं ने...!
त्यारे पर्यायो नहि. आहा...! (“अने पर्यायोनी अभिधेयता वखते असद्भावसंबद्ध छे. ते स्पष्ट
समजाववामां आवे छेः–)
(अहींयां कहे छे केः) “ज्यारे द्रव्य ज कहेवामां आवे छे– पर्यायो नहि, त्यारे उत्पत्तिविनाश
रहित,” अंदर, अंदर शक्तिओ. सत्नी वस्तु छे ते सत् छे एनी अन्वय शक्तिओ पण सत् छे.
“युगपद् प्रवर्तती” युगपद् (एटले) साथे प्रवर्तती. “द्रव्यनी निपजावनारी अन्वयशक्तिओ वडे.”
आ भाषा बधी एवी छे! वस्तु छे आत्मा! एना ज्ञान-दर्शन-आनंद (आदि) अन्वयशक्तिओ (ते)
गुण छे. कायम रहेनारी शक्तिओ गुण- (ते) अन्वयशक्तिओ ए “वडे उत्पत्तिविनाशलक्षणवाळी”
ए वडे एटली वात त्यां. हवे
‘उत्पतिविनाशलक्षणवाळी’ क्रमे प्रवर्तती पर्यायोनी निपजावनारी.”
अवस्थाने निपजावनारी ते ते व्यतिरेक व्यकितओने पामता द्रव्यने सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे.”
आहा...! जे वस्तु छे. एमां अन्वयशक्तिओ एटले गुण छे. एने संबद्धथी ज त्यां पर्याय उत्पन्न थाय
छे. द्रव्यनुं लक्ष छे तेय एनो अन्वय छे, सत् छे एनाथी ते उत्पन्न थाय छे. शक्तिओ छे ते उत्पन्न
थाय छे. समजाय छे आमां!

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प३
(कहे छे) वस्तु जे छे. एमां अन्वयशक्तिओ -गुणो छे. अनादिअनंत वस्तु जेम अनादि
अनंत छे, एम (गुणो) अनादि अनंत छे. ए शक्तिओने अवलंबीने जे व्यतिरेकपर्यायो थाय छे.
ए नवी थई छे एम नहीं. ई छे एमांथी थई माटे तेने सत्-संबंध कहेवामां आवे छे. आहा..!
वाणियाने आवो विचार (वानो) वखत क्यां रह्यो! आहा... हा!
“पर्यायोनी निपजावनारी ते ते
व्यतिरेकव्यक्तिओने पामता द्रव्यने सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे.” सद्भावसंबद्धनो अर्थ छे
(फूटनोटमां) सद्भावसंबद्धहयाती साथे संबंधवाळो-संकळायेलो.
[द्रव्यनी विवक्षा वखते, द्रव्यनी
ज्यारे मुख्यता (करीने) कथन करवामां आवे त्यारे अन्वयशक्तिओने मुख्य अने
व्यतिरेकशक्तिओने गौण, अन्वयशक्तिओ एटले आत्मामां ज्ञान, दर्शन, आनंद आदि शक्तिओ
त्रिकाळ (छे.)
] एनी मुख्यताथी कथन थाय, तेमांथी पर्याय थाय छे, ई सत्, सत् छे तेमांथी
(पर्याय) थाय छे तेथी सत्थी ई पर्याय उत्पन्न थई एम कहेवामां आवे छे. (श्रोताः) शुं द्रव्यमां
पर्यायनुं बंडल वाळीने (पडीकुं) पडयुं छे? (उत्तरः) ई अन्वयशक्ति छे एमांथी आवे छे.
आत्मामां अनंत गुणो छे एमांथी ज आवे छे ई सद्भावसंबद्ध कहेवामां आवे छे. नवी उत्पन्न
थई एम नहीं द्रव्यनी मुख्यताथी. आहा...! आहा...हा! आवुं छे. क्रियाकांड-तेथी बिचारा (तेमां)
चडी गया! तत्त्वनी वात पडी रही आखी!
(अहींयां ई कहेवा मागे छे) के वस्तुमां पर्याय जे उत्पन्न थाय छे. ई अन्वय शक्तिओना
संबंधथी थाय छे. हती ते सत्संबद्धथी थई छे. ‘छे एमांथी थई छे’ समजाणुं कांई? आहा... हा!
एकदम नवी पर्याय लागे (कोई) विलक्षणपर्याय लागे एने कोई एम माने के आवी विलक्षण पर्याय
कोई संयोग थयो माटे आवी पर्याय आवी, तो आंही कहे छे के ई वात तारी जूठी छे. ई
अन्वयशक्तिना संबंधथी आवेली छे माटे सद्भावसंबद्ध कहेवामां आवे छे. आहा.. हा! आवुं बधुं
शीखवुं! पाधरुं सामायिक ने पोषा ने पडिक्कमणा करवा मांडे, थई गयुं बिचाराने! मींडा वळ छे
एकला! (धर्मना नामे.) आहा... हा! धरमनी खबर न मळे! लोकोने बिचाराने!
एक जण (पासेथी) तो एवुं सांभळ्‌युं. नाम नथी आपतो के आ शरीर छे ई आ सोंपवुं.
मरी गया पछी (दान आपे) ई शुं तमारे कहेवाय ई? मेडिकल कोलेज (ने सोंपवुं) पण भई
आपणने (तमारा नाम आवडे नहीं.) जीवतुं सोंपवुं पण मरी गया पछी सोंपवुं. तेथी अहीं काम
आवे चीरवामां (शिखाउ दाकतरने). आंख्युं काढीने आपवी. (चक्षुदान करवुं) मरी गया पछी.
आहा...! आ शुं पण (गांडपण). आ शरीर पर छे. आंख्युं पर छे. हुं आ दउ छुं (देहदान-चक्षुदान
करुं छुं) ए मान्यता ज मिथ्यात्व छे.
(श्रोताः) आंख्युं काढी ने आंधळा माणसने (उत्तरः) चडावे
छे ने.... खबर छे ने! चडावे छे जोता’ ता एक फेरे. ई आंख तो जड होय, पण ओलानी
(आंधळानी)

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प४
आंखमां तेज होय ने-अंदर आत्मा. जोडाय जाय अंदर. ई देखाय एम. अने आ तो कहे शरीर
मेडिकल (कोलेजो ने सोंपी देवुं अने आंख्युं य सोंपी देवी. ई जाणे एमांथी कांई मोटो धरम कर्यो
(एम माने.) आहा..हा! अरे.. रे शुं करे छे जीव! ई शरीरने अने एने संबंध एना द्रव्यनो, ई
शरीरने अने आत्माने संबंध शुं छे? ई शरीर हतुं क्यां आत्मानुं ते आत्मा तेने आपे, के आ
शरीर, मरी गया पछी आ शरीर मारुं नहीं तेथी (आपी जाउं छुं.) ते तमारे चीरवुं होय तो चीरजो
ने आम करजो ने आम करजो. ई तो जडनुं (परमाणुनुं) हतुं. कंई आत्मानुं हतुं नहीं. ई आप्युं -में
आप्युं ई वात ज जूठी छे. (जूठो अभिप्राय छे.) (श्रोताः) शुभभाव तो खरो ने...! शुभभाव.
(उत्तरः) ई शुभभाव! पाप मिथ्यात्वनुं. शुभभाव (माने) एमां. आहा...हा! आ कांई..
आहा...हा...हा...हा!
अहींयां तो एम कहेवा मागे छे. के तमाम, बाह्य संयोगोमां, ए वखते आत्मानी पर्याय,
विलक्षण-एकदम नवी देखाय. के मतिज्ञानमांथी एकदम श्रुतकेवळ थाय. आहा... हा... हा! अने
मिथ्यात्वनो नाश थईने एकदम क्षायिक समकित थाय. क्षयोपशम थईने भले क्षायिक थाय. आम
क्षायिक! जाणे के आहा... हा! तो ई चीज थई ई परना संबंधने लईने छे एमां? के ना. एनी
अन्वयशक्तिओ जे छे गुणो एना संबंधथी थयेली- सत्थी थयेली छे ई (पर्यायो) आहा... हा!
आवुं समजवुं पडतुं हशे, धरम माटे? जेन्तीभाई! समजण विना न थाय कांई धरम? आहा... हा!
अहींयां तो एम कहे छे प्रभु! के परमाणुओ (छे.) परमाणुमां पण वर्ण, गंध, रस, स्पर्श
अन्वय शक्तिओ छे. कायम रहेनारी (अन्वयशक्तिओ-गुणो) एमांथी पर्याय थाय छे ते सत्थी थई
छे. कोई संयोग आव्यो माटे एकदम धोळीनी पीळी थई, पीळीनी काळी थई एम नथी. ई अवस्था
(ओ) अन्वयशक्तिना संबद्धथी थयेली छे. ‘छे ते थई छे’ आहा...! समजाणुं कांई? एम तारा
तत्त्वनी (आत्मानी) अंदर, भगवान आत्मामां, ज्ञान-दर्शन-अनंत अनंत अनंत अतीन्द्रिय गंभीर
शक्तिओनो भंडार प्रभु! एना संबद्धमांथी थयेली पर्याय ‘ते छे ते थई छे’ एम कहेवामां आवे छे.
छे एमां जुओ! (पाठमां)
“सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे.” आहा..! सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे. ‘छे
ए भाव ते उत्पाद छे’ छे एमांथी थयुं माटे सद्भाव उत्पाद छे.’ आहा... हा! मूळ तत्त्वनी खबर
न मळे एटले पर्यायमां आम-एकदम नवुं लागे. जाणे कांईक संयोग आव्यो माटे नवुं थयुं ए मोटी
भ्रमणा-मिथ्यात्व छे एम कहे छे. परनी हारे कांई संबंध छे ज नहीं. एमांथी सत्-वस्तु छे-
शक्तिओ छे (अन्वय) एना संबंधमांथी आवेली वस्तु छे. माटे सद्भाव संबद्ध सत् छे ते आवी
छे. ‘हती ते थई छे’ आहा... हा! समजाय छे आमां? तेथी तो हळवे-हळवे कहेवाय, वाणियानो
धंधो बीजो, आ विचार मागे छे. आहा... हा.. हा!

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४पप
सत्नी पर्याय, सत्ना अन्वयथी थई एम कहेवाय, द्रव्यनी मुख्यताथी. अने ई पर्याय नो’ ती ने
थई एथी असत् उत्पन्न थई एम पण कहेवाय. आहाहा... हा! ‘एमां छे’ एमांथी थई, एथी ‘छे
ते थई’ एम कहेवाय. अन्वयशक्तिने संबद्धने लईने. गुणने लईने. अने पहेली नहोती ने थई,
पर्यायद्रष्टिथी जुओ, वस्तुतः नहोती ने थई छे. एनो संबंध अन्वय हारे नो रह्यो. ई तो आंही
पर्यायने ज (मात्र) जोईए तो ए पर्याय नहोती अने थई ए असद्उत्पाद, पर्याय-द्रष्टिथी कहेवामां
आवे छे. द्रव्यद्रष्टिथी अन्वयशक्ति (ओ) ना संबद्धमांथी उत्पन्न थई माटे ते ‘छती आवी छे’ ‘छे
ते आवी छे’, हती ते आवी छे’ हती ते थई छे’ आहा... हा!
(श्रोताः) आमां कांई समजाणुं
नहीं... (उत्तरः) हे? को’ आमां समजातुं नथी ए... देवीलालजी! आहा... हा! वस्तु तो वस्तु छे.
हवे वस्तुमां द्रव्य-गुण ने पर्याय त्रण छे. परनी हारे कांई संबंध नहीं. वस्तु छे आत्मा, परमाणु-
परमाणु छे एने एक कोर राखो, अत्यारे आत्मानी (वात) लईए. आत्मा वस्तु छे तेमां त्रण
प्रकार-के द्रव्य, गुण ने पर्याय (ए त्रण प्रकार छे.) हवे ए द्रव्यनी साथे अन्वयशक्तिओ -गुण जे
रहेल छे. अन्वय छे ई. (एटले) साथे रहेनारा. छेछेछेछेछेछेछे. हवे एमांथी थयेली पर्याय - ई
अन्वयमांथी थयेली पर्याय माटे ते छतीमांथी थयेली पर्याय एम कहेवामां आवे छे. ‘हती ते थई’
‘छे ते थई’ आहा...! को’ चेतनजी भई आ प्रवचनसार छे! घणा वखते वंचाय छे. चार वरस
पहेलां (वंचायुं हतुं.) आहा... हा!
अहींयां तो पर्याय उत्पन्न थाय छे. थाय छे एना बे प्रकार. अंतरंगमां अन्वय (रूप) जे
शक्तिओ छे. वस्तु अन्वय छे अने शक्तिओ (पण) अन्वय छे. अन्वय एटले कायम रहेनारी.
छेछेछेछेछे. ई छेछेछे एमांथी थई, एने द्रव्यद्रष्टिए कहेवुं होय त्यारे छे एमांथी थई, हती एमांथी
थई, एथी (सद्भावसंबद्ध) कहेवामां आवे छे. को’ आ तो समजाय छे के नहीं? परने लईने नहीं.
परनो संयोग एकदम आव्यो ने थई (छतां) परने लईने नहीं. द्रष्टांतः- के जेम आत्मामां मतिज्ञान
छे अने एकदम बीजे समये केवळज्ञान थयुं, हवे केवळज्ञान जे थयुं ए अन्वयशक्तिओना संबद्धे थयुं
एटले छतुं ते थयुं छे. अंदर-अंदर अन्वयशक्तिना संबद्धे थयुं माटे छतुं ते थयुं छे केवळज्ञान ए
सद्भावसंबद्ध (छे.) सद्भावसंबद्ध उत्पाद छे. आहा... हा! हीराभाई नथी? गया क्यांय गया?
(श्रोताः) राजकोट गया छे. (उत्तरः) राजकोट? ठीक!
(अहींयां कहे छे केः) “सुवर्णनी जेम”. ते आ प्रमाणेः ज्यारे सुवर्ण ज कहेवामां आवे
छे.” सोनुं ज कहेवामां आवे छे. “–बाजुबंध वगेरे पर्यायो नहि” . कुंडळ, कडां आदि पर्यायो नहीं.
“त्यारे सुवर्ण जेटलुं टकनारी.” त्यारे सोना जेटलुं टकनारी “युगपद् प्रवर्तती” अन्वय
(शक्तिओ) हो अंदर.
“सुवर्णनी निपजावनारी अन्वयशक्ति.” एटले गुण-सोनाना गुणो -
अन्वयशक्तिओ. ए अन्वयशक्तिओ “वडे, बाजुबंध वगेरे पर्यायो जेटलुं टकनारी” क्रमे प्रवर्तती
बाजुबंध वगेरे पर्यायोनी निपजावनारी ते ते

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प६
व्यतिरेकव्यकितओनो पर्यायोने पामता सुवर्णने सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे.” सोनामां हती ते
पर्याय आवी. आहा... हा! सोनामां अन्वयशक्तिओ हती, ‘कायम रहेनारी हती’, एमांथी ई
बाजुबंधनी पर्याय आवी एम द्रव्यद्रष्टिथी-द्रव्यनी मुख्यताथी एने (सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद)
कहेवामां आवे छे. आहा.. हा... हा! को’ समजाय छे के नहीं?
(श्रोताः) कोई ‘हा पाडतुं नथी...
(उत्तरः) हा पाडे तो... ई केवी रीते? पूछे तो... (पण) आ सादी भाषा तो छे!
(कहे छे) वस्तु छे. आत्मा वस्तु छे. अने वस्तु छे तो तेमां वसेली अन्वयशक्तिओ छे.
ज्ञान-दर्शन आदि. हवे जो अन्वयशक्तिमांथी केवळज्ञान थयुं. मति (ज्ञान) मांथी एकदम केवळ
(ज्ञान) थयुं. तो कहे छे केः केवळज्ञाननीय पर्याय, ई अन्वयशक्ति (जे) सद्भावसंबद्ध छे. तेना
संबद्धे थई माटे ‘छे ते थई छे’ एमां ‘हती ते थई छे’ हतीमांथी आवी छे’ छतीमांथी छती थई
छे’ आहा... हा... हा... हा! समजाणुं कांई? ‘सुवर्णनो दाखलो दीधो ने...! सुवर्णमां एनी पीळाश,
चीकाश, वजन आदि अन्वयशक्तिओ पडी छे. एमांथी ई बाजुबंध आदि पर्यायो थई. बाजुबंध
आदि एटले कडां, वींटी (वगेरे) ए सुवर्णमां अन्वयशक्तिओ छे एमांथी ई पर्यायो थई छे. कोई
हथोडो, एरण के (कारीगरे) घडी (एटले थई) एम नहीं एम कहे छे. आहा... हा! समजाणुं कांई?
अहींयां तो हजी द्रव्यनीय मुख्यताथी कथन आवे छे. पर्यायनी मुख्यताथी आवशे त्यारे एम आवशे.
ई पर्याय पण द्रव्यनी ज छे, द्रव्य ज छे. द्रव्य, पर्यायरूप छे. ई पर्याय छे ते जेम द्रव्य छे
अन्वयशक्ति (ओ) थी प्राप्त थई माटे ई पण द्रव्य छे. पर्याय पण द्रव्य छे. जेम द्रव्य छे ते पर्याय
छे तेम पर्याय छे ते द्रव्य छे. आहा... हा! वीतराग मारग बहु झीणो बापु! तत्त्वज्ञाननी द्रष्टि विना,
तत्त्वनो वास्तविक भाव अंदर शुं छे? एनुं ज्ञान थया विना क्यां एने अटके छे ने क्यां छूटे छे
एनी एने खबरुं नथी. आहा... हा!
अहींयां कहे छे के आत्मामां जे सद्भावसंबद्ध छे, अन्वयशक्तिओ वडे- छे अंदर? सुवर्णनी
अन्वयशक्ति (ओ) जे पीळाश, चीकाश आदि, एमांथी बाजुबंध वगेरे- कडां-कुंडळ पर्यायो जेटलुं
टकनारी-पर्याय जेटलुं, क्रमे प्रवर्तती
“बाजुबंध वगेरे पर्यायोनी निपजावनारी ते ते व्यतिरेक”.
व्यतिरेक एटले जुदी जुदी पर्यायोने “व्यकितओने” जुदी जुदी पर्यायोने “पामता सुवर्णने
सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे.”
छे एवुं उत्पन्न थयुं छे’ एवो -एवो संबंध छे. को’ देवीलालजी!
चीमनभाई! समजाणुं के नहि आमां?
(श्रोताः) प्राप्तनी प्राप्ति छे... (उत्तरः) छे एमांथी आवे छे.
‘छे’ (एमांथी आवे छे) ई अहींयां अत्यारे (वात कहेवी छे) पछी बीजी (वात) कहेशे... आहा...!
ई द्रव्यनुं स्वरूप ज ई छे. एने तुं बीजी -बीजी चीज कही दे के आ अमुक पर्याय आवी एकदम,
माटे कोई बीजाने लईने ने बीजी चीज छे, बीजुं द्रव्य छे एम नहीं. आहा... हा!
(श्रोताः) बीजाने
लईने थई नथी. ए वात ज बराबर छे...! (उत्तरः) ई साटु तो कहेवुं छे अहींयां..! ‘के एकदम’!
(पर्यायो बदले छे.) सोनामां अन्वयशक्तिओ छे-पीळाश, चीकाश,

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गाथा १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प७
वजन (आदि) छे. तेमांथी कडांनी, कुंडळनी पर्यायो थई, ते कडांनी-कुंडळनी पर्याय हथोडाथी ने
एरणथी ने सोनीथी (कदी थाय) नहीं, ई एम नथी कीधुंः (एनाथी ते पर्यायो थई नथी) पण
अहींया तो आनाथी (सोनाथी) आ आम थई छे ए अस्ति सिद्ध करवुं छे. आहा... हा! वाणियाने
वखत मळे नही. अने वखत मळे तो आ संसारमां...! आहा..! पुस्तको आपे छे (पण) पुस्तको
वांचता नथी माळा... के आ शुं कहे छे? वांच तो खरो! ई वांचे तो अर्धो कलाक वांचेने... कहे के...!
अहींयां आवे छे केटली’ क बाईयुं! ई पुस्तक पडयुं होय ई लई, बे मिनिट वांची ने एक सूत्र
वांचे! ई वांच्युं कहेवाय! आहा... हा... हा!
अरे! बापु मारग जुदा भाई! अहींयां तो द्रव्यनी पर्यायना बे प्रकार पाडवा छे. एक तो
सत्संबंधे प्रगटी छे माटे सत् हती ते थई. एक वात कीधी. (बीजी वात हवे.)
(अहींयां कहे छे केः) “अने ज्यारे पर्यायो ज कहेवामां आवे छे.” अने जयारे (पर्यायो) ज
कह्युं. ओलामां शुं हतुं? “ज्यारे द्रव्य ज कहेवामां आवे छे.” एम हतुं. पेरेग्राफनो पहेलो शब्द!
आहा... हा! बीजा पेरेग्राफनो पहेलो शब्द (वाक्य छे.)
“ज्यारे द्रव्य ज कहेवामां आवे छे – पर्यायो
नहि.” अने अहींयां (कह्युं छे) “ज्यारे पर्यायो ज कहेवामां आवे छे– द्रव्य नहि.” आहा...! “त्यारे
उत्पत्ति–विनाश जेमनुं लक्षण छे पर्यायनुं (लक्षण उत्पत्ति विनाश छे.) “एवी, क्रमे प्रवर्तती.”
क्रमे-क्रमे प्रवर्ते छे आ क्रमे प्रवर्तती, क्रमबद्ध आवी गयुं के नहीं? (आव्युं) आहा... हा! अरे! भाई,
आवो वखत क्यारे मळे! मांड माणस (थयो) नीकळवानो वखत आवे, ए वखते बफममां बफम
काढी नाखे! अरे ई पाछो निगोदमां जाय, मिथ्यात्वना जोरे! आहा... हा.. हा! कुंदकुंदाचार्य तो एम
कहेः एक वस्त्रनो टुकडो राखीने मुनिपणुं मानशे, मनावशे आहा... हा! प्रभु एणे नवे तत्त्वनो
विरोध कर्यो छे. ई निगोदमां जाशे. आहा...! ई, ई शुं कहेवाय? (श्रोताः) काकडीना चोर ने...
(उत्तरः) काकडीना चोरने द्यो फांसो! एम हशे? एम नथी भाई! एणे तत्त्वनो पूरो- पूरो विरोध
कर्यो छे. तत्त्वनो पूरो विरोध कर्यो छे. आहा... हा! एक पण वस्त्रनो टूकडो राखीने (पोताने) मुनि
माने, मनावे, मानताने गुरु जाणे निगोदमांथी कीधो छे बापा! केम के ई रागनो टुकडो- (वस्त्र) नो
टुकडो राख्यो छे माटे राग छे, तीव्र राग छे त्यां मुनिपणुं होय नहीं. वस्त्र राखवानो भाव छे त्यां
तीव्र राग छे, तेने मुनिपणुं होय नहि. त्यां मुनिपणुं नथी ने मुनिपणुं मनावे छे आहा... हा! साधुने
कुसाधु माने कुसाधुने साधु माने-पचीस मिथ्यात्व कहेवामां आव्या छे ने..! विचार क्यां छे? पोताना
संप्रदायमां मानेलो साधु! अरे! जे नारायण ‘आहारदान’.
(अहींयां कहे छे केः) “अने ज्यारे पर्यायो ज कहेवामां आवे छे– द्रव्य नहि, त्यारे
उत्पत्तिविनाश जेमनुं लक्षण छे” पर्यायोनुं “एवी क्रमे प्रवर्तती.” क्रमे प्रवर्तनारी पर्यायो.

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प८
(ई) “पर्यायोनी निपजावनारी ते ते व्यतिरेकव्यकितओ पर्यायोनी निपजावनारी जुदी जुदी -
व्यतिरेक व्यकितओ “वडे” व्यतिरेक जुदी-जुदी व्यकितओ “वडे” “उत्पत्तिविनाश रहित” अन्वय
(शक्तिओ) “युगपद् प्रवर्तती द्रव्यनी निपजावनारी अन्वयशक्तिओने पामता द्रव्यने
असद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे.”
जे अन्वयशक्तिओवाळुं द्रव्य छे. पर्यायनी द्रष्टिए जोतां ई
असद्भावसंबद्ध छे. ‘नहोती ने थई छे.’ अन्वयशक्तिना संबद्ध विना ‘नहोती ने थई छे’ आहा...
हा! समजाय छे?
(कहे छे) “द्रव्यनी निपजावनारी अन्वयशक्तिओ पामता द्रव्यने असद्भावसंबद्ध ज
उत्पाद छे” जे नहोती ने थई छे’ पर्यायद्रष्टिए पर्याय नहोती ने पर्याय उत्पन्न थई, छतां ते पर्याय
द्रव्य छे. ए पर्याय द्रव्यथी जुदी छे एम नहि. पर्याय जुदी-जुदी भिन्न भिन्न थई छतां ते द्रव्यथी
थईने ते द्रव्य छे. आहा... हा! न्यां पर्याय भिन्न भिन्न छे माटे बीजुं द्रव्य छे अने बीजा द्रव्यने
कारणे भिन्न भिन्न थई छे (एम नथी). समजाणुं कांई? पहेलां तो सद्भावसंबद्ध कीधो! (एटले)
‘छे’ एमांथी थई’ पण ‘नथीमांथी थई’ माटे को’ क ना संबंधे थई एम’ नथी. ई तो
पर्यायद्रष्टिए जोतां मुख्यपणे ज्यारे जोईए के अन्वयमां जे हतुं ते आव्युं एम न जोतां (‘जे नथी
ते थई’ एम पर्यायथी जोतां असद्भावसंबद्ध कहेवामां आव्यो छे).
(कहे छे केः) तत्त्वनुं जे स्वरूप (छे) एथी (कोई) ओछुं, अधिक के विपरीत मान्यता करे
तो ई मिथ्यात्वने पामे छे. तेथी मिथ्यात्व, सत्यने असत्य (पणे) स्थापे छे. एथी मिथ्यात्वना फळ
मां-असत्यना (फळमां) चोराशीना अवतार छे. आहा... हा! अने सत्यना फळमां केवळज्ञान ने मोक्ष
छे! आहा... हा! एटले केः जे अंदर शक्ति हती एने संबद्धे पर्याय थई माटे असद्भावसंबद्ध - ‘छे
ते थई’ ए पण सत्. अने ‘नहोती ने थई, एकदम नहोती ने थई, एकदम नहोती ने थई’ माटे
ते परद्रव्यथी थई एम नथी. ए (असद्भावसंबद्ध पर्याय) पण अन्वयना संबद्धमां रहीने अनेरी
(अनेरी) पर्याय थई छे. आहा.. हा! समजाणुं कांई? ए नवी थई (माटे) अन्वयनो संबंध छूटी
गयो छे एम नथी. फक्त ‘नहोती ने थई’ ई अपेक्षाए ए पर्यायने असद्संबंध कहेवामां आवे छे.
आहा... हा! छे? (पाठमां) “सुवर्णनीय जेम ज.” ते आ प्रमाणेः ज्यारे बाजुबंध वगेरे पर्यायो.”
कडां-कुंडळ वगेरे पर्यायो
“ज कहेवामां आवे छे सुवर्ण नहि.” पर्यायने कहेवामां आवे सोनाने नहि.
त्यारे बाजुबंध वगेरे पर्यायो जेटलुं.” ए कुंडळ-कडां जेटलो काळ रहे तेटलुं “टकनारी”
तेटलुं टकनारी “क्रमे प्रवर्तती” एक पछी एक थती- क्रमबद्धपणे एक पछी एक थती (एटले
क्रमे) “प्रवर्तती बाजुबंध वगेरे पर्यायोनी निपजावनारी ते ते व्यतिरेक–व्यकितओ.” भिन्न
भिन्न प्रगटताओ “वडे सुवर्ण जेटलुं टकनारी.” आहा... हा! “युगपद् प्रवर्तती, सुवर्णनी
निपजावनारी अन्वयशक्तिओने पामता सुवर्णने असद्भावयुक्त ज उत्पाद

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गाथा १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प९
छे.” आहा... हा... हा! जोयुं? असद्भावयुक्त उत्पाद (कह्यो) पण अन्वयशक्तिओनी साथे संबद्ध
तो छे ज. अध्धरथी नथी. समजाणुं कांई? पण पर्यायद्रष्टिनी मुख्यताने जोतां ‘नहोती ने थई’ एम
कहेवामां आवे छे. आहा...! पण थई छे ई तो अन्वयसंबद्धे तो छे ज. पर्याय द्रव्यनी ज छे. ई
द्रव्यना संबद्धे ज थई छे. ई पर्याय द्रव्यनी छे ने पर्याय द्रव्य छे. ई द्रव्य छे ई पोते पर्याय छे.
आहा... हा... हा! आवी वातुं छे! आ तो एकसो ने अगियार गाथा!!
“असद्भावयुक्त ज उत्पाद
छे.” जोयुं ने? जोर तो त्यां छे.
(कहे छे) ‘ई नहोती ने थई’ ए पण बराबर छे अने ‘हती ने थई’ ए पण बराबर छे.
आहा... हा! अन्वयशक्तिओ हती ते परिणमी छे. अने पहेली नहोती ने परिणमी छे माटे
असद्उत्पाद कहेवामां आवे छे. छतां ई पर्यायने पण अन्वयशक्तिओ साथे संबंध तो छे. संबद्ध
छूटीने अध्धरथी थई छे एम नहीं. आहा... हा! समजाणुं कांई?
(कहे छे केः) समजाय एटलुं समजवुं बापु! आ तो वीतरागनो मारग! महा गंभीर छे!
त्रण लोकना नाथ! आहा... हा! एक द्रव्यमां अनंती शक्तिओ छे बापु! एक द्रव्य भले अंगूलना
असंख्यमां भागमां परमाणु रह्युं पण एनी शक्तिओ अनंत... अनंत... अनंत... अनंत... ए शुं छे?
अने ए शक्ति जे अन्वय छे तेनीय शक्तिओमांथी जे पर्यायो थई ‘जे हती ते थई’ ए अपेक्षाए
एने सद्भाव संबंध छे. अने एनी पर्यायनी मुख्यताथी जयारे कहेवुं होय त्यारे पहेली नहोती ने
थई’ ए असद्संबंध एम’ कहेवामां आवे छे. छतां ‘नहोती ने थई’ एम कहेवामां आवे छे ते
अन्वयना संबंधमां तो छे ज ते. पण मुख्यपणे ‘नहोती ने थई’ एम कहेवामां आवे छे. आहा...
हा! आवुं धरम करवामां शुं काम हशे एनुं? कहे छे धरम (ते शुं छे) धरमनी पर्याय जे छे.
आहा...! धरमनी पर्याय जे छे. ई शुं छे? ए क्यांथी आवी? कोई रागनी क्रिया करी-दया- दाननी
एमांथी आवी? एमां हती? दया-दान-व्रत-भक्तिना परिणाम कर्या एमांथी (धरमनी) पर्याय
आवी? एमां (आ शांतिनी) पर्याय छे? अन्वयमां छे. अन्वयमां शक्तिरूप छे, माटे आवे छे.
आहा... हा! अने ‘नहोती ने आवी’ (एम असद्पर्याय) कहेवाय छे पर्यायनी मुख्यताथी पण एने
संबंध तो अन्वय (शक्तिओ) नो छे ज. गौणपणे. ई ‘नहोती ने थई’ ए अपेक्षाए असद्पर्याय
(कहेवाय छे.) पण ‘नहोती ने थई’ माटे कोई संयोग आव्या, माटे नहोती ने थई एकदम -एम
नथी. आहा...हा! सत्नो संबंध ने सत्नो असंबंध-एमां ने एमां समाई जाय छे. समजाणुं कांई?
[हवे, पर्यायोनी अभिधेयता वखते पण, असत्–उत्पादमां पर्यायोनी निपजावनारी ते ते
व्यतिरेक व्यकितओ युगपद्वृत्ति पामीने अन्वयशक्तिपणाने पामती थकी पर्यायोने करे छे
(पर्यायोनी विवक्षा वखते पण, व्यतिरेकव्यकितओ
अन्वयशक्तिरूप बनती थकी पर्यायोने द्रव्यरूप
करे छे.)
]

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४६०
(अहींयां कहे छे केः) “जेम बाजुबंध वगेरे पर्यायोनी निपजावनारी ते ते
व्यतिरेकव्यकितओ युगपद्प्रवृत्ति पामीने अन्वयशक्तिपणाने पामती थकी बाजुबंध वगेरे
पर्यायोने सुवर्ण करे छे.” तेम. द्रव्यनी अभिधेयता वखते पण, सत्–उत्पादमां द्रव्यनी
निपजावनारी अन्वयशक्तिओ क्रमप्रवृत्ति पामीने ते ते व्यतिरेकपणाने पामती थकी द्रव्यने पर्यायो
(–पर्यायोरूप) करे छे.”
द्रव्यने पर्यायोरूप करे छे. थोडुं वांचवुं जोईए, विचारवुं जो्रईए. एमने एम
अध्धरथी हाले एम नहीं हाले! आहा... हा! आ एमने एम अनादि-अज्ञान तो हाल्युं छे! आहा...
हा! वस्तुनी स्थिति जे छे एमांथी कंईपण ओछुं, अधिक, विपरीत (माने.) परना संबंधे (कार्य)
थाय. ए जो कंई थई जाय तो ई विपरीतद्रष्टि छे ई. आहा.. हा! (पर्याय) ‘नहोती ने थई’ माटे
परना लक्षे ने परना संबंधे थई- एकदम केवळ (ज्ञान) थाय, एकदम क्षायिक समकित थाय, एकदम
मति-श्रुतज्ञान, झळहळ ज्योति प्रभु! चैतन्य प्रगटे, ए संबद्ध नहोतो ने पहेलो थयो, ए तो
पर्यायनी मुख्यताथी कहेवामां आवे छे. बाकी एनी पर्यायनी साथे, अन्वयनी साथे संबद्ध गौण-पणे
छे. आहा... हा! अने ज्यारे अन्वयना संबद्धथी ज्यारे सद्संबद्धपर्याय थई जयारे एम कहीए तो
अन्वय छे एमांथी ज ए आवी छे. एने सद्संबद्ध पर्याय (अहींयां) कहेवामां आवे छे. अहा...
हा... हा! हवे आवी वातुं! एना चोपडामां आवे नहीं, दुकानमां (आवे नहीं.) अपासरे जाय तो य
सांभळवा मळे नहीं. देरासर जाय तो य सांभळे नहीं. आहा...! आवी वातुं छे बापु! झीणी बहु
भाई! शुं थाय?
दीपचंदजी कही गया छे. (तेमणे) एक ‘अध्यात्मपंचसंग्रह’ शास्त्र बनाव्युं छे. एमां कही
गया छे के हुं जोउं छुं तो आगम प्रमाणे श्रद्धा कोईनी देखाती नथी. कारण के एने आगम शुं कहे छे
एनी एने खबरुं नथी. मोढे कहीए तो सांभळता नथी. पण ई तो एकांत छे-एकांत छे एम
एकांत कहीने (तत्त्वनी वातने) उडाडी द्ये. (तेथी) आ लखी जाउं छुं एम कहीने आमां लख्युं छे.
‘पंचसंग्रह’ अध्यात्मनुं (शास्त्र) एमां लखी गया छे. लखी जाउं छुं बापु! मारगडा कोई जुदा छे!
आहा... हा! सम्यग्दर्शननी पर्याय, ए अन्वय अंदर दर्शन-श्रद्धागुण छे एना संबंद्ध ‘छे एमांथी
आवी छे’ ए द्रव्यद्रष्टिने मुख्य करतां एम कहेवाय. (अने) पर्यायने मुख्य करीने (कहीए तो पण)
अन्वय ने गुण तो राखवा ज ते-अभाव छे एम बिलकुल नहीं. ए पर्यायनी मुख्यताथी (कहीए
त्यारे) मिथ्यात्व गयुं, समकित थयुं ई पर्याय असद् थई ‘नहोती ने थई’ (समकितनी पर्याय)
एम कहेवामां आवे छे. आहा... हा... हा! अने एमेय कहेवामां आवे छे के मिथ्यात्व छे ए उपादान
छे. अने समकित छे ते उपादाय छे एटले केः मिथ्यात्व छे तेनो क्षय थाय छे त्यारे समकितनी
पर्यायनी उत्पत्ति थाय छे एम एनो (उपादान-उपादेय) नो अर्थ छे. आहा... हा! आकरी वातुं बहु
बापु! लोकोने कंई काने पडी नथी! एमने एम आंधळे आंधळा, जगत चाल्युं जाय छे. तत्त्व जे छे
अंदर आत्मा! अनंत-अनंत गुणनो गंभीर सागर! एनी पर्याय जे थाय-अवस्था ते अवस्था छती

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४६१
थाय छे. ‘छे ते थाय छे’ छती थायछे’ आहा..! ए द्रव्यतानी मुख्यताथी कहीए त्यारे एम छे.
पर्यायनी मुख्यताथी कहीए त्यारे अछती थाय छे ‘नहोती ने थई’ छतां गौणपणे अन्वयनो संबंध
तो छे एने. अध्धरथी आम ने आम थई छे (एम छे नहीं.) समजाणुं कांई? आहा... हा! आवी
वातुं छे हवे! थयुं ने? (स्पष्टीकरण) “द्रव्यने पर्यायो (–पर्यायोरूप) करे छे.”
(अहींयां कहे छे केः) “जेम सुवर्णनी निपजावनारी अन्वयशक्तिओ क्रमप्रवृत्ति पामीने ते
ते व्यतिरेकव्यक्तिपणाने पामती थकी सुवर्णने बाजुबंध आदि पर्यायमात्र (–पर्यायमात्ररूप) करे छे
तेम.”
आहा... हा! ई पर्याय सुवर्णने करे छे ने सुवर्ण पर्यायने करे छे. आहा... हा... हा... हा! ए
सुवर्णनी पर्याय जे छे, तेथी सुवर्णनी सिद्धि थाय छे कहे छे. अने सुवर्णनी सिद्धि छे तेनाथी पर्यायनी
सिद्धि थाय छे- आहा...हा! कोई परद्रव्य छे माटे (सुवर्णना) पर्यायनी सिद्धि थाय छे- पर्यायनी
सिद्धि थाय छे नवी एकदम (बाजुबंध वींटी, वींटीमांथी कडां) एथी परद्रव्यनो संबंध छे तेथी थाय छे
एम नथी. देवीलालजी! आहा... हा!
(श्रोताः) भगवानना समवसरणमां आवता आंधळा य देखता
थई जाय? (उत्तरः) आहा...हा! मिथ्याद्रष्टि पडया छे न्यां. अनंतवार समोसरणमां गयो छे.
अनंतवार सांभळ्‌युं छे. पण अंदर पर्याय छती, छतां द्रव्यमां छती पडी छे- शक्तिओ ने शक्तिवान
पर द्रष्टि न गई. आहा...हा! शक्तिवान ने शक्तिवाळो ने शक्ति छे अनंत-अनंतगुणनो सागर
गंभीर प्रभु! ए पर द्रष्टि न गई-भगवानना समोसरणमां (भगवानने) अनंतवार सांभळ्‌या.
भगवाननी आरती अनंतवार उतारी. आहा...हा! मणिरतनना दीवा! हीराना थाळ! कल्पवृक्षना
फूल- लई भगवाननी आरती उतारी एमां शुं वळ्‌युं अनंतवार उतारी ई तो राग छे! आहा...! ए
कंई धरम नथी. आहा...हा...हा!
अहींयां तो कहे छे के पर्यायनी उत्पत्ति भले रागनी थई. तो पण अंदर शक्तिनीय योग्यता
तो हती, ए योग्यता विना थती नथी. परने लईने थई नथी एम सिद्ध करवुं छे. आहा... वाह!
आहा... हा!
“माटे द्रव्यार्थिक कथनथी सत्–उत्पाद छे; शुं कीधुं? ‘द्रव्यार्थिक’ शुं सांभळ्‌युं न होय
केटलाके तो. वाणियामां जनम थयो ने जन्मीने...! ‘द्रव्यार्थिक’ एटलेशुं? (तेनी खबर न मळे!)
द्रव्यार्थिक एटले जे वस्तु छे- द्रव्य छे. एना- द्रव्यना प्रयोजनवाळी जे द्रष्टि छे ए द्रव्यार्थिक द्रष्टि
कहेवाय छे. आहा... हा! आंधळे-आंधळुं हाल्युं! आ बाजु देखनार ने (एक) आंधळो हतो. आवे छे
(पदमां) ‘अंधोअंध पलाय’ आंधळो छुं के देखनार विचारेय करतो नथी. के शुं पण. सम्यग्दर्शन शुं
छे? अने धरमनी शरूआत थाय त्यारे शुं थाय? अने केम थाय? आहा... हा! तेनी शरूआत थवा
द्रव्यमां छती शक्ति पडी छे. एथी तेने द्रव्यनी द्रष्टि थतां तेने समकित थाय छे. समजाणुं कांई?
आहा.. हा! द्रव्यमां श्रद्धा नामनी शक्ति तो अनादि अन्वय पडी छे. अने ए शक्तिनो धरनार
भगवान (आत्मा) ए पण अन्वयस्वभाव छे. आहा... हा! पण एना उपर द्रष्टि दीधी नहीं
जेमांथी

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४६२
पर्याय आवे छे- थाय छे तेना उपर द्रष्टि आपी नहीं. आम-आम द्रष्टिने-भगवानने सांभळी ने
थाशे ने...! आहा... हा! अने नवी पर्याय थई, एने तो मुख्यपणे पर्याय ‘नहोती ने थई’ एम
कह्युं. गौणपणे तो एनेय अन्वयनो संबंध छे. समजाय छे कांई...? आहा... हा! शुं शैली!! गजब
शैली छे!!!
(कहे छे सद्गुरु केः) तने जो धर्मनी पर्याय प्रगट करवानी होय. तो ई प्रगट थवानी ते
क्यांथी (थशे) कंई अध्धरथी ते थशे? अध्धरथी थशे. आकाशमां फूल (ऊगता) नथी, ते फूल थई
जशे अध्धर! ई छे अंदर बापु! आहा..! अन्वय नाम कायम रहेनारुं द्रव्य छे. तेमां अन्वय-कायम
रहेनारा गुणो-शक्तिओ छे. आहा... हा... हा! छे’ ... एनी प्रतीति करतां पर्याय थाय छे. छे’
आखुं-द्रव्य आखुं, तेनी प्रतीति-तेनुं ज्ञान करतां ते पर्याय निर्मळ थाय छे. आहा.. हा! अने तेने
पर्यायथी जुओ के ‘नो’ ती ने थई’ तो पण ते अन्वय त्रिकाळ छे एनो गौणपणे संबद्ध तो छे ज.
एमांथी समकितदर्शन थाय छे. आहा... हा! को’ प्रविणभाई! आमां क्यां! लोढाना वेपारमां आवुं
सांभळ्‌युं छे केदी’ कोईए? आहा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “माटे द्रव्यार्थिक कथनथी सत्–उत्पाद छे” एटले छे’ ... एमांथी आवे
छे. (अने) “पर्यायार्थिक कथनथी असत्–उत्पाद छे” ते वात अनवघ (निर्दोष, अबाध्य) छे.”
बेय रीते निर्दोष ने अबाध्य छे. आहा... हा! छे? (पाठमां) हवे एमां पंडितजीए सहेलुं करी नाख्युं
छे. सादी भाषामां. (भावार्थ.) “जे पहेला हयात होय तेनी ज उत्पत्तिने सत् –उत्पाद कहे छे.”
सादी भाषा करी नाखी. जे.. पहेलां... हयात... सता ‘छती चीज होय’ तेनी ज उत्पतिने सत्-उत्पाद
कहे छे. “अने जे पहेलां हयात न होय तेनी उत्पतिने असत्–उत्पाद कहे छे.” जयारे पर्यायोने
गौण करीने”
गौण करीने हों? द्रव्यनुं मुख्यपणे कथन करवामां आवे छे, त्यारे तो जे हयात हतुं ते
ज उत्पन्नथाय (छे) ”
हयात हतुं ते उत्पन्न थाय. “कारण के द्रव्य तो त्रणे काळ हयात छे.” तेथी
द्रव्यार्थिक नयथी
द्रव्यार्थिकनय एटले वस्तुना प्रयोजननी द्रष्टिए कहीए तो “द्रव्यने सत्–उत्पाद छे.
द्रव्यने सत्उत्पाद छे एटले ‘छे’ ते उत्पन्न थाय छे. ए द्रव्यमां छे ते पर्यायमां आवे छे. आहा... हा!
भाषा तो समजाय एवी छे पण हवे एने (रुचिथी सांभळवुं जोईए) कोई दी’ सांभळ्‌युं नो’ होय
ने... नमो अरिहंताणं... नमो अरिहंताणं... नमो अरिहंताणं... मिच्छामि पडिककमाणि ईरिया-
विहिया-तस्स उत्तरी मिच्छामि.. करीने जाव थई गई सामायिक! आहा.. हा! प्रभु! वीतरागनो
मारग! अने तुं ज मोटो प्रभु छो! प्रभु? आहा..! हा! तारी मोटपनो पार नथी नाथ!! तारामां
एटला गुणो!! एटला गुणो भर्या छे!!! के एनो जो संबंध कर, तो पर्याय अंदरमांथी उत्पन्न थया
विना रहे नहीं. एने सत्-उत्पाद कहे छे. आहा.. हा.. हा! मुख्यपणे. अने गौणपणे (आ अने)
पर्यायने मुख्यपणे कहीए जे नहोती ने थई त्यारे तेने (आ) पर्यायने अन्वय साथे छे.

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४६३
गौणपणे. (ते पर्यायने असत्-उत्पाद कीधो.) समजाय छे कांई? आहा...हा...हा! आवो कलाक जाय
हवे एमां घरे पूछे के शुं तमे सांभळ्‌युं? आहा...हा...हा! (श्रोताः) एटले तो अमे घेरे चोपडी
उघाडता नथी...! (उत्तरः) उघाडता नथी! (मुक्त... हास्य) अहहाहा! आहा... हा!
प्रवचनसार!! भगवाननी दिव्यध्वनिनो पोकार छे. त्रणलोकना नाथनी दिव्यध्वनि! अवाज...
ॐ कारध्वनि सूनी, अर्थ गणधर विचारै. भगवानने’ कार नीकळे, आवी वाणी न होय एनी, कारण
के अभेदस्पर्शी थई गई, केवळज्ञान पूरण!! एने वाणी अभेद निरक्षरीवाणी होय छे. ॐकार ध्वनि
सूनि अर्थ गणधर विचारै. रची आगम उपदेश- ए वाणीमांथी (गणधर) आगम रचे अने उपदेशे.
(सांभळीने) ‘संशय भवी जीव निवारै.’ जे पात्र जीव होय ई संशयने निवारे. आहा...हा...हा!
बनारसीदासना वचन छे. बनारसीदासनुं छे. ‘बनारसी विलास’ छे ने...? आहा...हा!
(अहींयां कहे छे केः) “त्यारे तो जे हयात हतुं ते ज उत्पन्न थाय छे. (कारण के द्रव्य तो त्रणे
काळे हयात छे); तेथी द्रव्यार्थिक नयथी तो द्रव्यने सत्–उत्पाद छे.” आहा... हा! (हवे असत्-उत्पाद
कहे छे.)
“अने जयारे द्रव्यने गौण करीने पर्यायोनुं मुख्यपणे कथन करवामां आवे छे, त्यारे जे
हयात नहोतुं ते उत्पन्न थाय छे.” आहा... हा! (असत्) पर्यायनी (वात छे.) हयात नहोतुं ते
उत्पन्न थाय छे. (एटले) पर्यायनी पहेली ई नहोती. अन्वयपणे गुण (त्रिकाळ) छे. “कारण के
वर्तमान पर्याय भूतकाळे हयात नहोतो.”
वर्तमान पर्याय गयाकाळमां-भूतकाळमां नहोती. “तेथी
पर्यायार्थिक नयथी द्रव्यने असत्–उत्पाद छे.”
(एने असत्-उत्पाद कहेवामां आवे छे.)
(वळी) “अहीं ए लक्षमां राखवुं के द्रव्य अने पर्यायो जुदी जुदी वस्तुओ नथी.” हवे आ
(मार्मिक) आनी सिद्धि करीए. द्रव्य अने पर्याय जुदी जुदी चीज नथी. जेम परमाणु ने बीजा छ
द्रव्यो (आ) आत्माथी जुदां छे, एम द्रव्य ने पर्याय जुदां नथी. आहा... हा!
“तेथी पर्यायोनी
विवक्षा वखते पण” भले पर्यायनी (मुख्यताथी) कहेवामां आवे, पण “असत्–उत्पादमां” पण “जे
पर्यायो छे ते द्रव्य ज छे”
जे पर्याय उत्पत्ति छे ते द्रव्य ज छे. आहा... हा... हा... हा! द्रव्यना
घेरावामां ए उत्पन्न थयेली छे. परना घेरावामांथी ए उत्पन्न थई नथी. आहा.. हा... हा अरे त्रण
लोकनो नाथ दिव्यध्वनि करतो हशे अने गणधरो ने सिंह ने वाघ सांभळे, सिंहने वाघ ने नाग!
काळा नाग हाल्या आवे आम जंगलमांथी (समवसरणमां) ई बापु! वाणी केवी होय! भाई!
आहा... हा! ए वीतरागनी वाणी! एना रचेलां शास्त्रो, एना भाव गंभीर केटला होय?

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४६४
भाई! एनी ऊंडी गंभीरता होय छे. एने ऊंडुं लागे माटे - आवुं शुं छे? एम एनो कंटाळो न
आववो जोईए. गंभीरता लागे, एकदम न पकडाय, तेथी एमां कंटाळो न आववो जोईए.
(ऊलटानी रुचि वधवी जोईए.) आहा...हा...हा...हा!
(अहींयां कहे छे केः) “तेथी पर्यायोनी विवक्षा वखते पण असत्–उत्पादमां, जे पर्यायो छे ते
द्रव्य ज छे”, जे पर्यायो छे ते द्रव्य ज छे. आहा... हा! बीजुं द्रव्य नथी एम कहेवुं छे. पर्यायो छे ते
द्रव्य ज छे. पर्याय बदलीने बीजी थई माटे द्रव्य छे, एम नथी. “अने द्रव्यनी विवक्षा वखते पण,
सत्–उत्पादमां, जे द्रव्य छे ते पर्यायो ज छे.”
जे द्रव्य छे ते पर्यायो ज छे. जे पर्यायो छे ते द्रव्य ज
छे. अने जे द्रव्य छे ते पर्यायो ज छे. आहा.. हा! असत्-उत्पादमां पण अन्वय गौण राखीने
पर्यायनी मुख्यताथी कथन कर्यु छे. अने सत्-उत्पादमां अन्वयने मुख्य करीने सत्ने सत् उत्पन्न
(सत्-उत्पाद) छे एम कहेवामां आव्युं छे. पण असत्-उत्पाद छे (एम कीधुं) एटले बिलकुल
अन्वयनो संबंध ज नहोतो एम नहीं (कारण के) पर्याय पोते द्रव्य ज छे. आहा.. हा.. हा! अने
द्रव्य छे ते पर्यायो छे.
विशेष कहेशे......

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गाथा – ११२ प्रवचनसार प्रवचनो ४६प
हवे (सर्व पर्यायोमां द्रव्य अनन्य छे अर्थात् तेनुं ते ज छे माटे तेने सत्-उत्पाद छे- एम)
सत्-उत्पादने अनन्यपणा वडे नककी करे छेः-
जीवो भवं भविस्सदि णरोऽमरो वा परो भवीय पुणो ।
किं दव्वंत णजहदि ण जहं अण्णो कहं होदि ।। ११२।।
जीवो भवन् भविष्यति नरोऽमरो वा परो भूत्वा पुनः ।
किं द्रव्यत्वं प्रजहाति न जहदन्यः कथं भवति ।। ११२।।
जीव परिणमे तेथी नरादिक ए थशे; पण ते–रूपे
शुं छोडतो द्रव्यत्वने? नहि छोडतो कयम अन्य ए? ११२.
गाथा – ११२
अन्वयार्थः- [जीव] जीव [भवन्] परिणमतो होवाथी [नरः] मनुष्य, [अमरः] देव
[वा] अथवा [परः] बीजुं कांई (-तिर्यंच, नारक के सिद्ध) [भविष्यति] थशे. [पुनः] परंतु
[भूत्वा] मनुष्यदेवादिक थईने [किं] शुं ते [द्रव्यत्वं प्रजहाति] द्रव्यपणाने छोडे छे? [न जहत्]
नहि छोडतो थको ते [अन्यः कथं भवति] अन्य केम होय? (अर्थात् ते अन्य नथी, तेनो ते ज छे.)
टीकाः– प्रथम तो द्रव्य द्रव्यभूत अन्वयशक्तिने सदाय छोडतुं थकुं सत् ज (हयात ज) छे.
अने द्रव्यने जे पर्यायभूत व्यतिरेकव्यकितनो उत्पाद थाय छे तेमां पण द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिनुं
अच्युतपणुं होवाथी द्रव्य अनन्य ज छे (अर्थात् ते उत्पादमां पण अन्वयशक्ति तो अपतित -
अविनष्ट-निश्चळ होवाथी द्रव्य तेनुं ते ज छे, अन्य नथी.) माटे अनन्यपणा वडे द्रव्यनो सत्-उत्पाद
नक्की थाय छे (अर्थात् उपर कह्युं तेम द्रव्यनुं द्रव्य-अपेक्षाए अनन्यपणुं होवाथी, तेने सत्-उत्पाद
छे-एम अनन्यपणा द्धारा सिद्ध थाय छे.)
आ वातने (उदाहरणथी) स्पष्ट करवामां आवे छेः
जीव द्रव्य होवाथी अने द्रव्य पर्यायोमां वर्ततुं होवाथी जीव नारकत्व, तीर्यंचत्व, मनुष्यत्व,
देवत्व अने सिद्धत्वमांना कोई एक पर्याये अवश्यमेव थशे- परिणमशे. परंतु ते जीव ते पर्यायरूपे
थईने शुं द्रव्यत्वभूत अन्वयशक्तिने छोडे छे? नथी छोडतो. जो नथी छोडतो तो ते अन्य कई रीते