Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 30-6-1979b,30-06-1979; Gatha: 111.

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गाथा – ११० प्रवचनसार प्रवचनो ४४१
प्रवचनः ता. ३०–६–७९.
‘प्रवचनसार’ ११० गाथा. ‘हवे गुण ने गुणीना अनेकपणानुं खंडन करे छेः- आहा... हा!
अभेद सिद्ध करी अने पछी तद्न गुण ने गुणी एक ज छे, एम’ नथी. गुण अने गुणीना
अनेकपणानुं खंडन करे छे. आहा... हा!
णत्थि गुणो त्ति व कोई पज्जाओ तीह वा विणा दव्वं ।
दव्वत्तं पुण भावो तम्हा दव्वं सयं सत्ता ।। ११०।।
पर्याय के गुण एवुं कोई न द्रव्य विण विश्वे दीसे;
द्रव्यत्व छे वळी भाव; तेथी द्रव्य पोते सत्त्व छे. ११०.
आहा... हा! आचार्य! दिगंबर आचार्यो! कुंदकुंद आचार्य!! आहा... हा! प्रचुर संवेदन भर्या
छे! प्रचुर आनंदना संवेदनमां पडया छे! आवी टीका थई गई छे. आहा... हा! एनो तात्पर्य ए छे
के कोईपण पर्याय थवा काळे संयोग उपर द्रष्टि न कर. संयोग आव्या माटे आ थयुं! आहा.. हा! घरे
बेठो’ तो त्यारे परिणाम बीजां हतां, अने भगवानना दर्शन कर्या त्यारे परिणाम बीजां आव्यां, माटे
ई परिणाम संयोगथी आव्यां, एम नथी. ते परिणाम ते वखते सत्तागुणनो एवो ज उत्पादनो समय
हतो. ए थयो छे. सत्ता उत्पादव्ययध्रौव्यपणे थई छे. अने ए सत्ता द्रव्यथी जुदी नथी माटे द्रव्य ज ए
उत्पादव्ययध्रौव्यपणे थयुं छे. आहा... हा! भगवानने लईने ए शुभभाव थयो नथी, एम कहे छे.
आहा... हा.. हा! को’! अने ई शुभभाव थयो, ते काळे सातावेदनीय बंधाणी, ए आ शुभभावने
लईने नहीं एम कहे छे. तुं संयोगथी न जो! आहा... हा... हा! ई सातावेदनीयना परमाणु जे छे ई
अस्ति छे ई सत्ता धरावे छे. अने सत्ता (छे) तेमां उत्पादव्ययध्रौव्य परिणमन छे तेथी ते वखते कर्म
(प्रकृति) पणे परिणमवानी पर्याय, एना सत्तागुणने लईने, अने ई गुण गुणीनो-द्रव्यनो छे. तो
द्रव्यने लईने ई परिणाम कर्मरूपे थयां छे’ . आत्माए राग-द्वेष कर्या माटे सातावेदनीय (प्रकृति)
थई के कषाय थई (तो) एम नथी. आहा... हा... हा!
(श्रोताः) निमित्त कारणने लईने
सातावेदनीय बंधाय, सकारण...! (उत्तरः) ए बधी वातुं! ई साटु तो वात कहेवाय छे आ.
(कहे छे) ई वात करताने बहु, पण निमित्त कोण? उचित निमित्त हो! पण एने लईने
परिणाम थयां छे (एम नथी कहे छे) आहा.. हा! गजब वात छे!! तीर्थंकरगोत्र बंधाय (एवा)
शुभभाव थया, ए एनी सत्तानी पर्यायनो उत्पत्तिनो काळ छे. तेथी ते तीर्थंकरगोत्र बंधाणुं एम
नहीं. तीर्थंकरगोत्र बंधाणुं एमां एना परमाणुना जे सत्तागुण छे ए कर्मनी पर्यायपणे थवानो
उत्पादपणे, व्ययपणे, ने ध्रौव्यपणे ए सत्तागुणनुं (परिणमन) छे. ने सत्तागुणना परिणाम, गुणीना

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गाथा – ११० प्रवचनसार प्रवचनो ४४२
छे एटले कर्मना परमाणु छे. ए क्रमबद्ध ज ए रीते परिणम्या छे. आहा... हा! आवी वात छे.
आहा... हा! एकसो दस (गाथा.)
टीकाः– “खरेखर द्रव्यथी पृथग्भूत (जुदुं) गुण एवुं कोई के पर्याय एवुं कोई पण न होय;”
पर्याय भिन्न जातनी लागे. माटे ए तो पृथक् छे. एम नथी. द्रव्य-गुणनी पर्याय, एकदम फेरवाळी
लागे. एक समये मति-श्रुत ने बीजे समये केवळज्ञान. समजाणुं कांई? एथी एम न लागे के ओला
संयोगो अनुकूळ आव्या माटे थयुं. के ना. ए तो उत्पादव्ययध्रौव्यपणे परिणमन माटे केवळज्ञान
थवानुं, एना गुण-गुणीनो स्वभाव ज एवो छे ते थयुं. पूर्वनी पर्यायने लईने य नहीं. आहा... हा!
केवळज्ञाननो पर्याय, उत्पादरूपे सत्ताथी पोताना ज्ञान (गुण) नी हयातीथी, उत्पादरूपे, व्ययरूपे,
ध्रौव्यरूपे थयो. स्वतः पोताथी थयो छे. ते कर्मनो नाश थयो के पूर्वनी पर्यायने लईने थयो तो आ
उत्पाद केवळज्ञाननो थयो एमे य नथी. आहा... हा! ए तो पहेलां आवी गयुं (गाथा.) एकसो
एकमां. व्यय छे ई उत्पादने लईने नथी, उत्पादने व्ययनी अपेक्षा नथी, पोताना व्ययनी अपेक्षा
नथी. तो परनी अपेक्षा होय, एम ज नहीं. आवी वात छे भाई! आहा...हा...हा!
(कहे छे) मंदिर बनाववा पंदर-पंदर लाखना. आवो प्रमुख माणस होय, अग्रेसर ठीक होय
तो ई सारुं काम करे. एनी अहींयां ना पाडे छे. अहा... हा... हा! व्यवस्थापक बराबर होय ध्यान
राखनारो. तो त्यां (संस्था के मंदिरोमां) पर्याय सरखी थाय. एम नथी कहे छे. आहा.. हा! ई
वखते तेना ते वस्तुमां (जे) गुण छे सत्तागुण लो, ज्ञानगुण गणीए, एनुं परिणमन ए काळे ए
ज उत्पादव्ययध्रौव्य रूपे परिणमन थवानुं छे. तेथी ते (गुण द्रव्यनो छे) तेथी ते द्रव्यनुं ज परिणमन
छे. व्यवस्था, व्यवस्था करनारो छे माटे (व्यवस्थित) अहींयां थयुं छे एम नथी. आहा.. हा! केटलुं
फेरववुं पडे आमां! आखो दि’ दुकाने बेठो. ने आ कर्युं ने आनुं कर्युं ने आवुं कार्युं ने आ कर्युं,
घराकने बराबर साचव्या ने...! आहा.. हा! मीठासथी बोलीने आम कर्युं! (करुं-करुं ना मिथ्यात्वथी
फेरववुं पडे!)
(श्रोताः) आम मिथ्यात्व कर्युं ने वळी नोकर राखे (उत्तरः) ए बधा नोकर-नोकर
बधा, आहा! कोण राखे? ने कोण छोडे? बधी वातुं छे. आहा... हा!
(कहे छे) शेठियानो जे आत्मा छे. तो तेना गुणनुं अस्तिपणुं (तेनामां) छे के नहीं! तेना
गुणनुं अस्तिपणुं छे के नहीं, सत्ता छे के नहीं! (तो) सत्ता छे ते उत्पादव्ययध्रौव्यवाळी छे के एकली
सत्ता ज होय.
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् अनेसद्द्रव्यलक्षणम ए सिद्ध करे छे.
‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत्’ अने ‘सद्द्रव्य लक्षणम्’ - एटले कोई पण पदार्थमां समय-समये सत्ता
लईने उत्पादव्ययध्रौव्य ते द्रव्य छे तेथी द्रव्यना ज ए परिणाम छे. ए परने लईने नहीं. अने ते
सत्तानो उत्पादव्ययध्रौव्य थाय, ए तो तेनुं स्वरूप ज छे. आहा... हा! को’ समजाय छे आमां? आ
बधा (सामे बेठेला) हुशियार माणस के’ वाय. आ दाकतरो, वकीलो-दवायुं-दाकतरने दवानुं आव्युं ने
अहींयां. हवे के’ एने

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गाथा – ११० प्रवचनसार प्रवचनो ४४३
माटे थशे. बोलावे के न बोलावे! ए तो ए वखते बोलावे नहीं तो य पर्याय थवानी ते थवानी.
आहा... हा! अने दाकतरनो आत्मा पण ते वखते पोताना उत्पादव्ययध्रौव्यना परिणमनमां ते पर्याय
थायने! ते आवे छे. आहा... हा... हा! बहु आकरुं काम! आखी दुनियामांथी जुदो पडी जा! कहे छे.
जुदो छो. पडी जा एटले...! (जुदो छो ज.)
(कहे छे) आ संयोगोने देखीने, मारी पर्यायमां फेरफार थयो, बीजानी पर्यायमां संयोगने
लईने फेरफार थयो, ए भुली जा! आहा... हा... हा... हा! ते ते काळे तेना उत्पादव्ययने स्वभाव
ध्रौव्य (एटले)
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ए उत्पादव्ययध्रौव्य ते परिणाम छे. एनुं नाम सत्ताना
परिणाम छे. अने सत्ता सत्द्रव्यनी छे. तेथी खरेखर द्रव्यना ज ए परिणाम छे. आहा... हा... हा!
आ सांभळ्‌युं नो होय तो बेसे नहीं. एकांत लागे एने एकांत! आहा... हा! शुं थाय भाई!
त्रणलोकना नाथ! केवळी परमात्मानी आ वाणी छे. आहा... हा! ए वाणीमां कांईपण फेरफार करे के
ओछुं, अधिक के विपरीत (माने) तो सत्ने सत्पणे शास्त्रने, ए रीते न माने ए तो मिथ्याद्रष्टि छे.
आहा.. हा! शास्त्रमां एक पण पदने, के एकपण अक्षरने-आवे छे ने ‘सूत्र पाहुड’ मां भाई!
सूत्रपाहुडमां कहे छे के शास्त्रना एक पदने के एक अक्षरने फेरवे ए मिथ्याद्रष्टि छे. आहा... हा!
भारे! आकरुं काम बहु! आहा... हा!
(कहे छे केः) तो द्रव्यनी जे समयनी पर्याय सत्ताने लईने थई, ई परने लईने थई एम
माने ई मिथ्याद्रष्टि छे. आहा... हा! शुं! स्वतंत्रताना ढंढेरा!! आवा सांभळ्‌या नथी. आहा... हा!
(श्रोताः) तेनी लायकात नहोती तो नहोतुं ते वखते... (उत्तरः) मात्र हास्य ज आहा..!
(अहींयां कहे छे केः) “खरेखर द्रव्यथी पृथग्भूत (जुदुं) गुण एवुं कोई के पर्याय एवुं कोई
पण न होय.” एम सिद्ध करे करे छे हवे. के गुण ने गुणी जुदा नथी. ए (सत्ता) गुणनुं
उत्पादव्ययध्रौव्यनुं परिणमन थयुं ई (द्रव्यनुं) गुणीनुं ज थयुं छे. ए द्रव्य ने गुण बेय अभेद छे.
एम कहे छे. आहा... हा!
“जेम सुवर्णथी पृथग्भूत तेनी पीळाश आदि के तेनुं कुंडणपणुं आदि
होता नथी.” ए सुवर्ण एटले द्रव्य, पीळाश एटले गुण ने कुंडळ आदि पर्याय, ए सुवर्णथी तेना
गुणो जुदा नथी. अने कुंडळादि पर्यायो होतां नथी. सोनाथी सोनाना पीळाश आदि गुणो, अने कुंडळ
आदि पर्यायो, ए सोनाथी जुदां होतां नथी. आहा... हा! हजी आ तो द्रष्टांत छे हों? “तेम हवे, ते
द्रव्यना स्वरूपनी वृत्तिभूत ‘अस्तित्व’ नामथी कहेवातुं जे द्रव्यत्व.”
द्रव्यनो-स्वरूपनी हयातीवाळुं
एटले अस्तित्व-सत्ता, नामथी कहेवातुं जे द्रव्यत्व “ते तेनो ‘भाव’ नामथी कहेवातो गुण.” द्रव्यत्व
नामनो गुण, सत्ता नामनो गुण, कहेवातो
“गुण ज होवाथी” सत्ता नामनो-द्रव्यत्व नामनो गुण ज
होवाथी, “शुं ते द्रव्यथी पृथकपणे वर्ते छे? (अर्थात्) सत्ता, उत्पादव्ययध्रौव्यपणे परिणमी ई सत्ता
द्रव्यथी पृथकपणे वर्ते

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गाथा – ११० प्रवचनसार प्रवचनो ४४४
छे? आहा... हा! थोडामां बहु-घणुं भर्युं छे भाई! द्रव्यत्व ते भाव कहेवाय छे ए द्रव्यनो ‘भाव’
कहेवाय ने...! द्रव्य (जे छे) भे भाववाळुं ने द्रव्यत्व (ते) भाव. (अथवा) द्रव्य भाववाळुं-गुणवाळुं
अने सत्ता-द्रव्यत्व ते गुण. ते ‘भाव’ नामथी कहेवातो गुण ज होवाथी कहे छे ने द्रव्यनो आ
‘भाव’. तो ए भाव ते गुण ज छे. आहा... हा! द्रव्यनो ‘अस्तित्व’ भाव. द्रव्यनो सत्ताभाव. पण
ई द्रव्यनो सत्ताभाव ते द्रव्य ज छे. आहा... हा! आहा... हा... हा... हा! आचार्योए! दिगंबर
संतोए! काम कर्युं छे! माणसने आग्रह छोडीने जरी (विचारवुं जोईए) खोटुं लागे के आ बधुं
(त्यारे) अमारुं शुं खोटुं? बापु! माणसने. विचार तो कर भाई! आहा...! आवी वातनी गंध क्यां
छे बीजे शास्त्रमां य. आ करो.. आ करो... आ करो... आ करो.. अहींयां कहे छे के तुं करवानुं कहेछे,
(तो सांभळ) एनी सत्ताना परिणाम एनामां ने तारी सत्ताना परिणाम तारामां (थई ज रह्या
छे.) शुं करवुं छे तारे? आहा.. हा! केम के ई द्रव्य (शुं) सत्ता विनानुं छे? अने ई सत्ता
उत्पादव्ययध्रौव्य विनानी छे? अने उत्पादव्ययध्रौव्य विनानुं ए द्रव्य छे? (नथी ज.) आहा.. हा!
आवी वात छे. (लोको तो) वाद-विवाद करे पछी, नहीं? आनाथी आम रह्युं- कर्मनो आकरो उदय
आवे त्यारे विकार थाय ज. नहींतर विकार छे ई स्वभाव थई जाय. अहींयां कहे छे के विकार थवानो
पर्याय ते समये सत्तानामना गुणनुं ए जातनुं अस्तित्व परिणाम थवानुं छे ई उत्पादव्ययध्रौव्यरूपे
पोताथी थयुं छे. कर्मने लईने नहीं. आहा... हा!
हवे आ रतनचंदजी तो ज्यां आवे न्यां ई ज नाखे छे. आवे ते ए कर्मने लईने थाय,
करमने लईने थाय, करमने लईने थाय- ज्ञानावरणीयने लईने ज्ञान थाय. आहा... हा! अहींयां कहे
छे के ई ज्ञाननुं जे ओछा-वत्तापणुं थाय छे ई ज्ञानमां सत्ता नामनो गुण छे अथवा ज्ञानमां ज्ञाननुं
हयातीवाळो गुण छे ने...! ए हयातीवाळी पोते ज उत्पादव्यय (ध्रौव्य) पणे थाय छे. ध्रौव्यपणुं
राखीने, उत्पादपणे (पोते ज थाय छे. हीणी पर्याय थाव के अधिक थाव. ए पोताना ज उत्पादव्यय
(ध्रौव्य) थी थाय छे, परने लईने नहीं’. आहा... हा... हा! आ मोटो वांधो हतो ने..? वर्णीजी हारे.
ई एणे लख्युं छे बधा पुस्तको (मां). सोनगढनुं साहित्य जूठुं छे. बूडाडी मूकशे बधाने! आहा.. हा!
एणे आ वात सांभळी नो’ती. आहा... हा!
(कहे छे केः) कोई पण समये, करमनो उत्पाद-व्यय, एनी सत्ताना ने सत्थी छे. शुं कीधुं? ई
करम छे तेनी सत्ताथी छे ने ‘उत्पादव्ययध्रौव्य युक्तं सत् तेनुं द्रव्य छे. एटले ई सत्थी सत्ता छे ने
सत्ताथी परिणमन छे ने ई बधुं अभेद छे. आहा..हा! एम भगवान आत्मामां, विकारना परिणाम छे
ई उत्पादपणे, सत्ता नामना के अस्तित्वगुणने लईने उत्पादव्ययपणे परिणमे छे ते सत्तागुणनुं परिणमन
छे. ई करमने लईने नहीं. आहा...हा! (माथे हाथ मूकीने लोको बोले छे ने) अमारे शुं करवुं भाई,
करमनुं जोर छे. करमनुं जोर छे. करमनुं जोर छे. ई तद्न बधी मिथ्या-भ्रमणा छे. आहा...हा!

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गाथा – ११० प्रवचनसार प्रवचनो ४४प
(अहींयां कहे छे केः) “जे द्रव्यत्व ते तेनो ‘भाव’ नामथी कहेवातो गुण ज होवाथी.” सत्ता
कहो, गुण कहो के कहो (एकार्थ छे.) “शुं ते द्रव्यथी पृथकपणे वर्ते छे? जे गुण कहो के भाव कहो (के
सत्ता कहो) ए शुं द्रव्यथी जुदा वर्ते छे? “नथी ज वर्ततुं. तो पछी द्रव्य स्वयमेव (पोते ज) सत्ता
हो.”
के वस्तु पोते स्वयमेव ज छे. सत्ता छे ने ई सत्ता उत्पादव्यय (ध्रौव्य) पणे परिणमे छे.
आहा... हा! शब्दो थोडा (छे.) पण एमां भाव घणा भर्या छे! आहा... हा! अहींयां तो वात-सत्
शुं छे एनी वात छे बापा! अहीं कोई पक्ष नथी, वाडो नथी. आ तो
‘सत्’ नी ‘स्थिति’ नी
‘मर्यादा’ – सत्नी मर्यादा कये प्रकारे छे. (एनी वात छे.) आहा.. हा! ई एकसो दस थई (गाथा-
११०).
विशेष कहेशे.......

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४४६
हवे द्रव्यने सत्-उत्पाद अने असत्-उत्पाद होवामां अविरोध सिद्ध करे छेः-
एवंविहं सहावे दव्वं दव्वत्थपज्जयत्थेहिं ।
सदसब्भावणिबद्धं पाडुब्भावं सदा लभदि ।। १११।।
एवंविधं स्वभावे द्रव्यं द्रव्यार्थपर्यायार्थाभ्याम् ।
सदसद्भावनिबद्धं प्रादुर्भावं सदा लभते ।। १११।।
आवुं दरव द्रव्यार्थ–पर्यायार्थथी निजभावमां
सद्भाव–अणसद्भावयुत उत्पादने पामे सदा. १११.
गाथा – १११
अन्वयार्थः– [एवंविधं द्रव्यं] आवुं (पूर्वोकत) द्रव्य [स्वभावे] स्वभावमां
[द्रव्यार्थपर्यायार्थाभ्यां] द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक नयो वडे [सदसद्धावनिबद्धं प्रादुर्भावं]
सद्भावसंबद्ध अने असद्भावसंबद्ध उत्पादने [सदा लभते] सदा पामे छे.
टीकाः– आ प्रमाणे यथोदित सर्व प्रकारे अकलंक लक्षणवाळुं, अनादिनिधन आ द्रव्य सत्-
स्वभावमां (अस्तित्वस्वभावमां) उत्पाद पामे छे. द्रव्यनो ते उत्पाद, द्रव्यनी अभिधेयता वखते
सद्भावसंबद्ध छे अने पर्यायोनी अभिधेयता वखते असद्भावसंबद्ध छे. ते स्पष्ट समजाववामां
आवे छेः-
ज्यारे द्रव्य ज कहेवामां आवे छे- पर्यायो नहि, त्यारे उत्पत्ति-विनाश रहित, युगपद् प्रवर्तती,
द्रव्यनी निपजावनारी अन्वय शक्तिओ वडे, उत्पत्तिविनाशलक्षणवाळी, क्रमे प्रवर्तती,

----------------------------------------------------------------------
१. अकलंक= निर्दोष. (आ द्रव्य पूर्वे कहेला सर्व प्रकारे निर्दोष लक्षणवाळुं छे.)
२. अभिधेयता= कहेवायोग्यपणुं; विवक्षा, कथनी.
३. अन्वयशक्तिओ= अन्वयरूप शक्तिओ. (अन्वयशक्तिओ उत्पत्ति अने नाश विनानी छे. एकीसाथे प्रवर्ते छे अने द्रव्यने निपजावे
छे. ज्ञान, दर्शन, चारित्र वगेरे आत्मद्रव्यनी अन्वयशक्तिओ छे.)

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४४७
पर्यायोनी निपजावनारी ते ते व्यतिरेकव्यकितओने पामता द्रव्यने सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे;
सुवर्णनी जेम. ते आ प्रमाणेः ज्यारे सुवर्ण ज कहेवामां आवे छे बाजुबंध वगेरे पर्यायो नहि, त्यारे
सुवर्ण जेटलुं टकनारी, युगपद् प्रवर्तती, सुवर्णनी निपजावनारी अन्वयशक्तिओ वडे, बाजुबंध वगेरे
पर्यायो जेटलुं टकनारी, क्रमे प्रवर्तती, बाजुबंध वगेरे पर्यायोनी निपजावनारी ते ते व्यतिरेक
व्यकितओने पामता सुवर्णने सद्भावसंबद्ध ज उत्पाद छे.
अने ज्यारे पर्यायो ज कहेवामां आवे छे- द्रव्य नहि, त्यारे उत्पत्तिविनाश जेमनुं लक्षण छे
एवी, क्रमे प्रवर्तती, पर्यायोनी निपजावनारी ते ते व्यतिरेक व्यकितओ वडे, उत्पत्तिविनाश रहित,
युगपद् प्रवर्तती, द्रव्यनी निपजावनारी अन्वयशक्तिओने पामता द्रव्यने
*असद्भावसंबद्ध ज उत्पाद
छे; सुवर्णनी जेम ज. ते आ प्रमाणेः जयारे बाजुबंध वगेरे पर्यायोज कहेवामां आवे छे -सुवर्ण नहि,
त्यारे बाजुबंध वगेरे पर्यायो जेटलुं टकनारी, क्रमे प्रवर्तती, बाजुबंध वगेरे पर्यायोनी निपजावनारी ते
ते व्यतिरेक व्यकितओ वडे, सुवर्ण जेटलुं टकनारी, युगपद् प्रवर्तती, सुवर्णनी निपजावनारी अन्वय
शक्तिओने पामता सुवर्णने असद्भावयुक्त ज उत्पाद छे.
हवे, पर्यायोनी अभिधेयता वखते पण, असत्-उत्पादमां पर्यायोनी निपजावनारी ते ते
व्यतिरे कव्यकितओ युगपद्प्रवृत्ति पामीने अन्वयशक्तिपणाने पामती थकी पर्यायोने द्रव्य करे छे
(पर्यायोनी विवक्षा वखते पण, व्यतिरेक व्यकितओ अन्वयशक्तिरूप बनती थकी पर्यायोने द्रव्यरूप करे
छे); जेम बाजुबंध वगेरे पर्यायोनी निपजावनारी ते ते व्यतिरेक व्यकितओ युगपद्प्रवृत्ति पामीने
अन्वयशक्तिपणाने पामती थकी बाजुबंध वगेरे पर्यायोने सुवर्ण करे छे तेम. द्रव्यनी अभिधेयता
वखते पण, सत्-उत्पादमां द्रव्यनी निपजावनारी अन्वयशक्तिओ क्रमप्रवृत्ति पामीने ते ते
व्यतिरेकव्यकितपणाने पामती थकी द्रव्यने पर्यायो (-पर्यायोरूप) करे छे, जेम सुवर्णनी निपजावनारी
अन्वयशक्तिओ क्रमप्रवृत्ति पामीने ते ते व्यतिरेकव्यक्तिपणाने पामती थकी सुवर्णने बाजुबंध आदि
पर्यायमात्र- (-पर्यायमात्ररूप) करे छे तेम.
माटे द्रव्यार्थिक कथनथी सत्-उत्पाद छे, पर्यायार्थिक कथनथी असत्-उत्पाद छे- ते वात
अनवद्य (निर्दोष, अबाध्य) छे.
----------------------------------------------------------------------
१. व्यतिरेकव्यकितओ= भेदरूप प्रगटताओ. [व्यतिरेक व्यकितओ उत्पत्तिविनाश पामे छे. क्रमे प्रवर्ते छे अने पर्यायोने निपजावे छे.
श्रुतज्ञान केवळज्ञान वगेरे तथा स्वरूपाचरणचारित्र, यथाख्यात चारित्र वगेरे आत्मद्रव्यनी व्यतिरेक व्यक्तिओ छे, व्यतिरेक तथा
अन्वयना अर्थो माटे आगळ आवेल पदटिप्पण (फूटनोट) जुओ.
]
२. सद्भाव संबद्ध = हयाती साथे संबंधवाळो- संकळायेलो. [द्रव्यनी विवक्षा वखते अन्वयशक्तिओने मुख्य अने व्यतिरेकव्यकितओने
गौण कराती होवाथी, द्रव्यने सद्भावसंबद्ध उत्पाद (सत्-उत्पाद, हयातनो उत्पाद) छे.]
* असद्भावसंबद्ध = अहयाती साथे संबंधवाळो- संकळायेलो [पर्यायोनी विवक्षा वखते, व्यतिरेकव्यकितओने मुख्य अने
अन्वयशक्तिओने गौण कराती होवाथी, द्रव्यने असद्भाव-संबद्ध उत्पाद (असत्-उत्पाद, अविद्यमाननो उत्पाद) छे.]

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४४८
भावार्थः– जे पहेलां हयात होय तेनी ज उत्पत्तिने सत्-उत्पाद कहे छे अने जे पहेलां हयात
न होय तेनी उत्पत्तिने असत्-उत्पाद कहे छे. जयारे पर्यायोने गौण करीने द्रव्यनुं मुख्यपणे कथन
करवामां आवे छे, त्यारे तो जे हयात हतुं ते ज उत्पन्न थाय छे (कारण के द्रव्य तो त्रणे काळे हयात
छे); तेथी द्रव्यार्थिक नयथी तो द्रव्यने सत्-उत्पाद छे. अने ज्यारे द्रव्यने गौण करीने पर्यायोनुं
मुख्यपणे कथन करवामां आवे छे, त्यारे जे हयात नहोतुं ते उत्पन्न थाय छे. (कारण के वर्तमान
पर्याय भूतकाळे हयात नहोतो), तेथी पर्यायार्थिक नयथी द्रव्यने असत्-उत्पाद छे.
अहीं ए लक्षमां राखवुं के द्रव्य अने पर्यायो जुदी जुदी वस्तुओ नथी; तेथी पर्यायोनी विवक्षा
वखते पण, असत्-उत्पादमां, जे पर्यायो छे ते द्रव्य ज छे. अने द्रव्यनी विवक्षा वखते पण, सत्-
उत्पादमां, जे द्रव्य छे ते पर्यायो ज छे. १११.
प्रवचनः ता. ३०–६–७९.
‘प्रवचनसार.’ १११ गाथा.
‘हवे द्रव्यने सत्–उत्पाद अने असत्–उत्पाद होवामां अविरोध सिद्ध करे छेः– आहा...! शुं कहे
छे? द्रव्य छे... ने उत्पाद थाय छे. ई सत्नो उत्पाद छे. अने असत्नो उत्पाद छे. एटले पहेलां नो’
तुं ने नवुं उत्पन्न थयुं ए पर्यायने असत् उत्पाद कहे छे. (ए सत्उत्पाद अने असत्उत्पाद होवामां)
अविरोध सिद्ध करे छे; एमां विरोध नथी. शुं कह्युं ई? द्रव्य छे, ते छे, छे एनो उत्पाद छे. छे तेनो
उत्पाद छे. एक वात. अने बीजी (वात) नथी (पर्याय) तेनो उत्पाद छे. आहा... हा! द्रव्यमां ते हतुं
तेआव्युं छे. ई सत् छे. अने पर्यायमां नहोतुं ने पर्याय (नवी) थई छे ई असत् उत्पाद छे. बेयमां
विरोध नथी. आहा...हा! असत्-उत्पादमां होवामां अविरोध दर्शावे छे. बेयमां विरोध नथी एम कहेवुं
छे. आ माथुं (मथाळुं) गाथामां नाखवुं छे. (एनो भाव गाथामां छे.) छे? (पाठमां.) वस्तुनो
सत्उत्पाद छे ते ऊपजे छे अने नथी ते ऊपजे छे ए बे भावमां विरोध नथी. आहा...! छे ते
ऊपजे छे ई सत् (द्रव्य) नी अपेक्षाए, अने नथी ते ऊपजे छे ई पर्यायनी अपेक्षाए. पर्याय नो’
ती ने उपजी ए पर्यायनी अपेक्षाए (असत्उत्पाद). समजाणुं कांई आमां? एकसोने अगियार
(गाथा).
एवंविहं सहावे दव्वं दव्वत्थपज्जयत्थेहिं ।
सदसब्भावणिबद्धं पादुब्भावं सदा लभदि
।। १११।।
आवुं दरव द्रव्यार्थ–पर्यायार्थथी निजभावमां
सद्भाव–अणसद्भावयुत उत्पादने पामे सदा. १११.

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४४९
आहा... हा! आवी जातनो उपदेश! आहा...! शुं आमां करवुं शुं! न करवुं कांई? शुं करवुं ई
आमां शुं नथी आवतुं? ते द्रव्यनी तेनी पर्याय, तेनाथी छे तेम मानवुं, ते मान. (ई करवानुं छे.) ते
कोई पण क्षणे, विलक्षण द्रव्य (संयोगमां) देखीने अने आ द्रव्यने देखीने, विलक्षण पर्याय तने
देखाती होय, (तो पण) ई परने लईने नथी. आहा... हा! आम अमथुं लाकडुं पडयुं छे तेना उपर
वांसलो आम पडयो (छोडा थयां) तो ई (वांसलाना) संयोगने लईने (लाकडानी) ई पर्याय थई
छे एम नथी. वांसलो नहोतो त्यां सुधी कटको नहोतो लाकडानो, आम लागतां ज थयो, (लोको)
संयोगथी जुए छे ने (माने छे के) आने लईने आ थयुं. ज्ञानी जुए छे के एनामां सत्ता छे एना
उत्पादव्ययध्रौव्य परिणमन छे तेनाथी ते थयुं छे. आहा... हा! शांतिभाई! आ तो समजाय तेवुं छे.
आहा... हा!
को’ सीसपेनने छरी सारी अडी, आम छरी. ई संयोगथी देखनारा एम देखे छे के एनाथी
(सीसपेन छोलाय) छे. ई संयोगने देखनारा मिथ्याद्रष्टि, एनाथी देखे छे. अने स्वभावनी स्थितिना
देखनारा (सम्यग्द्रष्टि) ते टाणे, ते सत्तानो, ते रीते उत्पाद थवानो छे ते तेना उत्पादव्ययध्रौव्यथी थयुं
े. ए छरीथी (सीसपेननुं छोलावुं) थयुं नथी. आहा... हा... हा! (एम ज्ञानी देखे छे.) आवुं कोण
माने? हवे चोख्खी वात. (आंखेथी देखाय.) जेने सत् जोतुं होय ई माने बापा! दुनिया, दुनियाने
ठेकाणे गमे ते रही! रोटलीना बे टुकडा दांतथी थाय छे. एम जोनारा संयोगथी जुए छे. शुं कीधुं ई?
रोटलीना टुकडा बे दांतथी थाय ई संयोगथी जोवे छे. संयोग (दांतनो) थयो माटे आ टुकडा थया ई
एनी विलक्षणता संयोगथी थई एम अज्ञानी माने छे. धर्मी एम माने छे के एनी सत्ता ते
रोटलीना परमाणुनी, ते रीते टुकडा थवाना पर्यायनो उत्पाद छे ते उत्पाद थयो छे. (दांतने लईने
नहीं.) एकदम विलक्षणता देखी माटे परने लईने थयुं- पहेलुं केम नहोतुं के आ आव्युं त्यारे थयुं-
दांत अडे त्यारे आम कटका थया ई संयोगने देखनारा, एना सत्नी ते समयनी उत्पादव्ययध्रौव्य
सत्ता छे. तेनाथी थयुं (छे.) ए जोतो नथी. आहा... हा! आवुं छे. (वस्तुस्वरूप!)
(गाथा) अगियारमीने? (श्रोताः) जी, हा.
“टीकाः– आ प्रमाणे यथोदित.” यथा उदित “सर्व प्रकारे अकलंक लक्षणवाळुं.” आहा... हा!
निर्दोष, आ द्रव्य पहेलां (थी जा निर्दोष लक्षणवाळु छे. आहा... हा! द्रव्यनी सत्ता ने सत्ताना
उत्पादव्ययध्रौव्य, ए निर्दोष लक्षण छे. शुं कीधुं, समजाणुं? द्रव्यनो सत्तागुण, अने सत् ते
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं एटले
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ने सद्द्रव्य–लक्षणम् ए निर्दोष लक्षण छे.
आहा... हा! ‘तत्त्वार्थसूत्र’ ना सूत्रो छे. (अध्याय-प सूत्र. २९, ३०) पक्षने आडे सूझ पडे नहीं
(लोकोने) सूझ पडे नहीं! आहा... हा! “आ प्रमाणे यथा उदित सर्व प्रकारे अकलंक लक्षणवाळुं” छे
सत्! अकलंक लक्षणवाळुं छे द्रव्य.
“अनादिनिधन आ द्रव्य सत्–स्वभावमां (अस्तित्वस्वभावमां)
उत्पाद पामे छे.” आहा... हा... हा... हा! केटली वात करे छे!! अनादि- अनंत आ द्रव्य, कोईपण
द्रव्य-सत्-स्वभावमां - अस्तित्वस्वभावमां

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गाथा १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प०
पोताना उत्पादने पामे छे. आहा... हा!
(कहे छे) गुरुनो शिष्य नथी ने शिष्यनो गुरु नथी. एम कहे छे. गुरुथी थातुं नथी. गुरुनो
संयोग देखीने-वाणी सांभळीने-आ (ज्ञान) थयुं. एथी संयोगथी देखनारा (नी) ई द्रष्टि खोटी छे.
(श्रोताः) गुरुनो उपकार भूलवानी वात (आ) छे...! (उत्तरः) ई पछी उपकारनी वात. अहा..
हा... हा! (मुक्तहास्य). उपकारनो अर्थ पछी (बहुमान) आवे. विनय आदि (आवे.) पहेलां आ
सिद्धांत नक्की थईने (पछी निमित्तनी वात छे.) अहींयां तो एवी वात छे बापु! आहा... हा! के
आ हुं (तमारो गुरु) ने अमारो उपकार तमे मानो, ने तमे आम करो ने तमे आम करो ने... अरे
बापु! सांभळने भाई! आहा... हा! ई ज नंखाई छे ने! (छापे छे ने) आ चौद ब्रह्मांडनुं चित्र
आवे छे ने...! अने पछी (मोटा अक्षरथी)
जीवानाम् परस्परः उपग्रहः जीव परस्पर (अनु) ग्रहे
छे, गुरु शिष्यने अनुग्रहे छे. शिष्य गुरुनी सेवा करे ई परस्पर उपग्रह छे.’ आहा... हा... हा!
(श्रोताः) पण उपकार छे ने एमनो? (उत्तरः) को’ मीठाभाई? आवे छे के नहीं आ
चोपानियामां? पहेलुं चौद ब्रह्मांड चितरे ने हेठे लखे ‘आ’
जीवानाम् परस्परः उपग्रहः जीवोने
परस्पर उपकार? केवुं मीठुं लागे के माणसने ओशियाळा भिखारीने! अहा... हा... हा! (वक्ता-
श्रोतानुं हास्य) ओशियाळा! भिखारीने लागे के आहा! परस्पर उपकार! एनो आपणने उपकार!
आहा... हा! एने लईने आपणुं नथी हों! (श्रोताः) उमास्वातीए कह्युं एनुं शुं समजवुं? (उत्तरः)
एम क्यां कीधुं छे ई? ए तो उपकारनो अर्थ छे एटलुं जणाव्युं छे. शास्त्रीजीए ‘(परमार्थ)
वचनिका’ मां एनो अर्थ कर्यो छे. उपकारनो अर्थ (एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं) कांई करे छे ए नहीं. ए
वखते छे ‘आ’ एने आंही उपकार तरीके कह्युं छे. शास्त्रीजीए ‘वननिका’ मां अर्थ कर्यो छे एवो.
आहा... हा! अत्यारे मोटो! जगतमां आम जाणे के... आहा... हा! (व्याख्यानो करे) ‘परस्पर
उपकार के एक-बीजा’ ‘मांहोमांहे संप करो’ ‘परोपकार करो’ ‘बीजाने मदद करो’! आहा... हा!
बलुभाई! शुं कर्युं ई रूपिया भेगा कर्या ने दवा... ने... बवा... ने मोटा कारखाना!
(अहींयां तो कहे छे) एक पण द्रव्य, सत्ता गुण विना होय नहीं. अने सत्ता गुण, उत्पादव्यय
(ध्रौव्य) थया विना रहे नहीं. (कर्तापणानुं भूत) खलास थई गयुं!! आहा... हा! कोई पण द्रव्य,
सत्ता विना होय नहीं, अने सत्तानो गुण उत्पादव्ययध्रौव्य (परिणमन) विना होय नहीं. (अहो!
सद्गुरुनो वात्सल्य गुण) लो! अत्यारे क्यांथी आव्या?
जे वस्तु छे (ई) वस्तु छे अस्ति! समजाणुं कांई? ‘छे’ (अस्ति अथवा) ‘छे’ एनो जे
ज्ञानगुण ने सत्तागुण छे. (एटले) अस्तित्वगुण-सत्तागुण छे ई पण चीज (अस्ति) छे. ‘छे’ ए
अस्तित्वनामनो गुण छे. ई सत् छे सत्तागुण छे ई गुणीनो गुण छे. (एटले के) ई द्रव्यनो गुण छे.
अने ते सत्ता (गुण) उत्पादव्ययध्रौव्यपणे परिणमे छे. समय-समय एनुं परिणमन थाय (छे.)

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गाथा – १११ प्रवचनसार प्रवचनो ४प१
उत्पन्न ते उत्पाद ने जूनुं जाय ने ध्रौव्यपणे रहे. (ते एकेक समयमां त्रण छे) सत्तानुं (स्वरूप)
परिणमन स्वरूप छे. (अथवा) ई सत्तानुं स्वरूप (जा परिणमन छे. (ए परिणमन) ई द्रव्यनुं
(ज) परिणमन छे. एना परिणमनमां बीजाथी कांई (कार्य) थयुं छे ए वातमां कांई माल नथी.
आहा... हा! आवी वातुं छे बापा! आहा... हा! ई अहींयां कहे छे जुओ!
“द्रव्यनो ते उत्पाद, द्रव्यनी अभिधेयता वखते.” अभिधेयता- कहेवायोग्यपणुं; विवक्षा;
कथनी (फूटनोटमां छे अर्थ.) अभिधेयता वखते “सद्भावसंबद्ध छे.” शुं कहे छे? वस्तु जे छे- आ
आत्मा, परमाणु, माटी-जड-धूळ ए दरेकमां जयारे एनी पर्याय थाय छे (ई पर्याय) एनी सत्ताथी
थई, एना द्रव्यथी थई (द्रव्यमां हती ते थई) ई सद्भावसंबद्धथी कह्युं. अने पर्याय अपेक्षाए कहीए
तो ए टाणे (उत्पादपर्याय) नहोती ने थई ए असद्भाव संबद्ध कीधो. पण (जे) हती ने थई,
एने सद्भावसंबद्ध छे.
वस्तु जे छे आत्मा, आ परमाणु (देहना आदि) एमां सत्ता संबद्ध छे. सत्ताथी थई
(पर्याय) ते सत्ताना संबंधथीय थई एम कीधुं. ‘छे ते थई’ अने पूर्वे ‘नहोती ने थई’ तो पहेलांने
संबद्ध- (सद्भावसंबद्ध) अने ‘नहोती ने थई’ तेने असद्भावसंबद्ध कीधो. पूर्वे नहोती ने थई ई
अपेक्षाए असंबद्ध कही छे पूर्वनी (पर्यायनी) हारे संबंध नथी. नवी पर्याय स्वतंत्र थाय छे. झीणी
वात छे बहु बापु! आहा...हा! आव्युं ने... (मूळ पाठमां के) “द्रव्यनो उत्पाद, द्रव्यनी अभिधेयता
वखते.”
द्रव्यनो उत्पाद, द्रव्यनी मुख्यताथी कहेवुं होय तो ते सद्भावसंबद्ध छे. ‘छे ते पर्याय थई छे’
छे ते थई छे’ हती ते आवी छे’. अने पर्यायनी अपेक्षाए जोईए तो ‘ई पर्याय नहोती ने थई
छे’ (उत्पाद नहोतो ने थयो.) आहा... हा! आवुं वांचन बापु! झीणी वातुं बहु बापु! (श्रोताः)
‘आ’ ने ‘आ’ बेय (पर्याय)!
(उत्तरः) हा, बेय छे. ‘छे’ एमांथी आवी छे. (ई) सद्भावसंबद्ध
छे. अने पर्याय नहोती ने वर्तमान (उत्पादपणे) थई ए असद्भावसंबद्ध छे. बेय अविरुद्ध छे.
बेयमां विरोध नथी. आहा...हा...हा!