Pravachansar Pravachano-Gujarati (Devanagari transliteration). Date: 30-06-1979; Gatha: 110.

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४२९
प्रवचनः ता. ३०–६–७९.
‘प्रवचनसार’ १०९ गाथा.
हवे सत्ता ने द्रव्यनुं गुण– गुणीपणुं सिद्ध करे छेः–
मूळ वात तो ए छे के आत्मा एकलो ज्ञानस्वरूप ज छे. भले बीजा गुण छे पण ई
असाधारण (ज्ञानगुण) एक ज छे. एथी ज्ञानस्वरूपनुं सत् जे रीते छे. ए गुण-गुणीना भेद तरीके
अभेद (मां) अतद्भाव कहयो. छतां सर्वथा अन्यता (अन्यपणुं) नथी, एथी ते द्रव्य उपर
(अभेद) द्रष्टि आपतां गुणनुं परिणमन थाय छे. आहा... हा! सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र थाय.
आहा.. हा! अरे! अनंतगुणनुं परिणमन थाय. सम्यग्दर्शन एटले ‘सर्वगुणांश ते समकित’!!
आहा... हा! ए द्रव्य अने गुणने सर्वथा अभाव माने तो, द्रव्य उपर द्रष्टि आपतां गुणनी व्यक्तता-
प्रगटता नहीं थाय. आहा... हा! गुण ने द्रव्य वच्चे तद्न अभाव माने तो, द्रव्य उपर द्रष्टि थतां
(छतां) गुणनी व्यक्ततानो अंश नहीं आवे. आहा... हा! अने द्रव्य उपर (अभेद) द्रष्टि पडतां द्रव्य
ने गुण-भले बे वच्चे अतद्भाव छे बे छे एनो (एकबीजामां) तद्रन अभाव छे एम नथी- माटे
ते द्रव्यनी द्रष्टि थतां गुणनुं- अनंतगुणनुं परिणमन (व्यक्तपणे) प्रगट थाय छे. परिणमनमां आखी
दशा पलटी जाय छे. आहा... हा... हा! समजाणुं कांई? (श्रोताः) छतां आप गुणनी द्रष्टि तो
छोडावो छो... गुणनी द्रष्टि छोडावो छो...! (उत्तरः) अहीं तो अभिन्नपणुं छे पुण्यनी तो वात ज
अहींयां क्यां छे.
(श्रोताः) पुण्य नहीं गुण-गुणीनुं (उत्तरः) अभेदपणुं (छे.) तद्न-सर्वथा अभाव
छे (गुण-गुणीने) एम नहीं. (अतद्भावनुं अन्यत्व पण) एम नहीं. अतद्भाव कह्यो ने अन्यत्व
कह्युं. गुण ने द्रव्य वच्चे अतद्भाव-अन्यत्व कहयुं तो (ते बे) सर्वथा जुदा छे- बीजा द्रव्यो जेम
सर्वथा अन्यत्व छे. अन्यत्व कहो के जुदा कहो (एकार्थ छे.) एम आत्मा ने गुण ने सर्वथा जुदा
मानो तो वस्तु बेय नहीं रहे.
कारण के अहींयां तो द्रव्यद्रष्टि छतां, द्रव्यने गुण अभेद छे. तेथी ते ते गुणनुं-अनंतगुणनुं
परिणमन निर्मळ थईने व्यक्तपणे प्रगट थई साथे ज्ञान-आनंद-शांति-स्वच्छता बधा गुणोनुं
परिणमन थई जशे. आहा... हा... हा! आवो प्रभुनो मारग छे! सत्य ज आवुं छे. आहा.. हा!
सत्यने कांई पण मोळुं करवानुं करे (तो) घरमां मिथ्यात्व रहेशे, शल्य! आहा... हा.. हा!
(अहींयां कहे छे केः) “हवे सत्ता ने द्रव्यनुं गुण-गुणीपणुं सिद्ध करे छेः- अहींयां एक गुणनुं
कीधुं (परंतु) दरेक गुण लेवा (समजवा.).

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३०
जो खलु दव्वसहावो परिणामो सो गुणो सदविसिट्ठो ।
सदवट्ठिर्द सहावे दव्वं त्ति जिणोवदेसोऽयं ।। १०९।।
आहा... हा! कुंदकुंदाचार्य कहेतां-कहेतां पण भगवान आम कहे छे (एम गाथामां कहे छे.) कहे
छे तो पोते! आहा... एटली निर्मानता ने एटली (के गाथामां कहे छे) जिणोवदेसोयं प्रभु!
त्रणलोकनाथ! तीर्थंकरनी वाणी आम छे. अहा... हा... हा! कुंदकुंदाचार्य (आम) कहे, ए पोते स्वतंत्र
पण कही शके छतां अहींयां कहे छे जिननो उपदेश-वीतरागनो उपदेश, आवो उपदेश बापु! आहा... हा!
परिणाम द्रव्यस्वभाव जे, ते गुण ‘सत्’ – अविशिष्ट छे;
‘द्रव्यस्वभावे स्थित सत् छे’ – ए ज आ उपदेश छे. १०९.
टीकाः– “द्रव्य स्वभावमां नित्य अवस्थित होवाथी सत् छे.” सत्ताने अने द्रव्यने एक सिद्ध
कर्युं. द्रव्य स्वभावमां नित्य अवस्थित छे एथी सत् छे. “–एम पूर्वे ९९ मी गाथामां प्रतिपादित
करवामां आव्युं छे.” (गाथा) ९९ पोतपोताना अवसरे परिणाम थाय छे. द्रव्यना उत्पादव्ययध्रौव्य
त्रणेय परिणाम लीधा छे. उत्पादव्ययने ध्रौव्य त्रणे परिणाम लीधा त्यां द्रव्यना. आहाहाहा! (गाथा
९९ टीकाः– अहीं विश्वने विषे स्वभावमां नित्य अवस्थित होवाथी द्रव्य ‘सत्’ छे. स्वभाव द्रव्यनो
ध्रौव्य–उत्पाद–विनाशनी एक्तास्वरूप परिणाम छे.) ए वातने याद करे छे. उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य ते
त्रण परिणाम छे. पण कोना? के! द्रव्य जे परिणमे (छे) तेना. आहा... हा! परिणामी जे द्रव्य छे
तेना उत्पाद–व्ययने ध्रौव्य ए त्रण एनामां परिणाम छे. तेथी
‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्’ ने ‘सद्
द्रव्यलक्षणम् (तत्त्वार्थ सूत्र अ. प सूत्र. २९–३०) आहा... हा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) द्रव्य स्वभावमां नित्य अवस्थित होवाथी सत् छे– एम पूर्वे ९९ मी
गाथामां प्रतिपादित करवामां आव्युं छे.” द्रव्यनो स्वभाव ‘होवो’ “अने (त्यां) द्रव्यनो स्वभाव
“परिणाम कहेवामां आव्यो छे.”
जोयुं? आ लो- उत्पाद-व्ययने ध्रौव्य त्रणेय परिणाम छे एम
कहेवामां आव्युं त्यां. अंश कह्या’ ता ने..! उत्पाद-व्ययने ध्रौव्य त्रण पर्याय-अंश कह्या’ ता. ए पर्याय
आश्रित त्रण छे. अने पर्याय द्रव्य आश्रित छे एम कह्युं’ तुं. आहा... हा... हा... हा! समजाणुं कांई?
(वळी कहे छे) फरीने, के जे ए उत्पाद-व्ययने ध्रौव्य परिणाम छे. ते परिणाम, द्रव्यनो

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३१
स्वभाव- त्रणेय कहेवामा आव्यो छे. आहाहा... हा! द्रव्यनो स्वभाव, परिणाम कहेवामां आव्यो छे.
आवो- अने एम सिद्ध करवामां आवे छे, के द्रव्यना स्वभावभूत परिणमन छे. द्रव्यना स्वभावभूत
परिणमन त्रण (स्वरूपे छे.) स्वभावभूत एटले उत्पाद-व्यय ने ध्रौव्य. ई त्रणने अहींयां परिणाम
कहेवां छे. कारण के त्रणेय ने पर्याय कीधी’ ती ने? (गाथा-९९मां.) ए त्रण पर्यायो छे. ई त्रण
पर्यायने आश्रित छे. पर्याय द्रव्यने आश्रित छे. अहा.. हा.. हा! आ तो वकीलातनुं काम हशे बधामां,
नहि?! आ अरे...! वाणिया साटु तो शास्त्र छे. वाणियाने वेपारने जैनपणुं मळ्‌युं! आहा... हा!
(श्रोताः) वाणिया तो घणा बुद्धिवाळा होय, ने एटला बधा रूपिया कमाय...! (उत्तरः) कमाणा-
बमाणा धूळमां क्यां’ य खोट-खोट जाय छे बधी एने. ‘आ कमाणो ई जैन! द्रव्यनी द्रष्टि थतां-
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यपणे परिणमन थाय छे ए माप छे त्यां. सम्यग्दर्शन परिणाम थाय छे (त्यारे)
मिथ्यात्वना परिणाम जाय छे ने समकितना परिणाम थाय छे ने ध्रौव्यपणानो अंश रहे छे. ए
द्रव्यना त्रण परिणाम छे. आहा... हा! झीणुं पण बहु बापु! आहा..! द्रव्य उपर द्रष्टि पडतां, द्रव्यना
त्रण परिणाम छे. परनी तो वात अहीं कांई छे नहीं. एना पोताना परिणाम त्रण छे. उत्पाद-व्यय
ने ध्रौव्य ए परिणाम छे. एनी भले समीप होय! उत्पाद-व्ययने धौव्य पर्याय आश्रित छे. पर्याय
कहो के परिणाम कहो (एक ज छे.) आहा... हा! अने ते परिणमन द्रव्य आश्रित छे. आहा...! ते
पर्यायो द्रव्यआश्रित छे. अहा... ठीक!
(अहींयां कहे छे केः) “अने (त्यां) द्रव्यनो स्वभाव परिणाम कहेवामां आव्यो छे.”
आहा... हा! ए परने लईने परिणमे छे एम नहीं, एम कहे छे. ई द्रव्यनो (ज) स्वभाव परिणाम
कहेवामां आव्यो छे. शुं कह्युं? (श्रोताः) द्रव्यनो स्वभाव परिणाम कहेवामां आव्यो छे. (उत्तरः) हा
द्रव्यनो स्वभाव ज परिणाम कहेवामां आव्यो छे. एनुं परिणमन कोई बीजा लईने छे एम नथी.
आहा... हा... हा! एकेक न्याय! आहा...! ‘द्रव्यनो स्वभाव परिणमंन कहेवामां आव्यो छे.
“अहीं
एम सिद्ध करवामां आवे छे के– जे द्रव्यना स्वभावभूत परिणाम छे, ते ज ‘सत्’ थी अविशिष्ट
(अस्तित्व अभिन्न एवो, अस्तित्वथी कोई बीजो नहि एवो) गुण छे.”
ते अस्तित्व-सत्ताथी
अभिन्न छे. आहा... हा! जे द्रव्य आपणे अहींयां (एनी वात) पण छे तो छ ए द्रव्यनी वात. पण
जे द्रव्यने परिणाम छे उत्पादव्ययध्रौव्यना ए अस्तित्वने लईने छे. छे ने? (पाठमां) ‘सत्’ थी
अविशिष्ट, अस्तित्वथी अभिन्न एवो अस्तित्वथी कोई बीजो नहि एवो गुण छे. ए उत्पादव्ययध्रौव्य
(कोई) जुदी चीज नथी. पण ई अस्तित्वगुणनुं ज ए रूप छे. आहा... हा... हा! सत्ता जे छे. ए
अस्तित्वगुण छे. एनुं उत्पाद व्यय ने ध्रौव्य त्रण परिणाम छे. अने सत्ता छे ई द्रव्यनी साथे अभेद
छे. अतद्भाव कहयो ई तो अपेक्षाए (ते-भाव नहीं) बाकी अभेद छे. एटले द्रव्यनुं परिणमन
थतां, उत्पाद व्यय ने ध्रौव्यना परिणाम परिणमे छे. आहा... हा... हा! समजाणुं कांई? प्रविणभाई!
आवुं क्यां? आवुं कांई तमारा वेपारमां आवे नहीं.

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३२
आहा... हा... हा! आवो मारग आहा...!! संतोए तो सरळ करीने बताव्युं छे आ!
(कहे छे केः) (त्यां) “द्रव्यनो स्वभाव परिणाम कहेवामां आव्यो छे.” (गाथा) ९९ मां.
अहीं एम सिद्ध करवामां आवे छे के– जे द्रव्यना स्वभावभूत परिणाम छे, ते ज ‘सत्’ थी
अविशिष्ट अस्तित्वथी अभिन्न एवो गुण छे.
ए सत्ता गुणथी उत्पादव्ययध्रौव्य सत् छे. अने सत्थी
ते अभिन्न छे. जे उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य परिणाम कहयां’ ता (ई) सत् छे. कारण
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं
सत् ते सत्थी ते परिणाम जुदां नथी. आहा.. हा.. हा!
तो तमे तो आ महिना दि’ थी अहींयां छो. तो य सांभळ्‌युं नथी? नहीं? ले! (श्रोताः)
संभळाय तो पाप लागी जाय ने...! (उत्तरः) एमां वळी पाप लागी जाय? आ वळी नवा
स्थानकवासी! आ शेठेय महिना दि’ थी अंदर छे. आहा... हा. आहा... हा!
शुं कहे छे? के द्रव्यनो स्वभाव परिणाम हों, परिणाम. पर्याय. द्रव्य ते गुण नहीं ने गुण ते
द्रव्य नहीं एवो अतद्भाव कह्यो हतो. ते कांई बे वच्चे तद्न अभाव नथी. एम अहींयां द्रव्यना
परिणाम छे, ए एना सत्थी तद्न अभिन्न छे. सत्थी जुदां नथी. सत्ताथी जुदां नथी. आहा...हा!
अस्तित्वथी द्रव्यनुं परिणमन उत्पादव्यय ध्रौव्य जुदां नथी. एथी ज्यां आम द्रव्यनी द्रष्टि करे छे, त्यां
सत्तामां उत्पादव्ययध्रौव्य परिणमे छे, त्रणेय परिणमन थाय छे एथी त्यां सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्रना
परिणाम उत्पन्न थाय छे. आहा..हा..हा! बधा आ तो तमारा चोपडा छे. दिगंबरना चोपडा (ग्रंथो)
छे. घरना चोपडा (होय ते) फेरवे, आम आम! आहा... हा! मध्यस्थताथी जरी सांभळे-विचारे तो
सत्नी वात एने बेसे! अने बेसतां, एनी द्रष्टि द्रव्य उपर जाय तो परिणमन थया वगर रहे नहीं
केम के सत्ता (चीजा ‘
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्’ परिणमनवाळी छे. आहा... हा... हा! ए सत्ता ने
द्रव्य अभिन्न छे. प्रदेशे तो बेय तद्न अभिन्न छे. आहा.. हा! तेथी सत्ताने-अस्तित्वने लईने, द्रव्यमां
त्रण प्रकारना परिणाम थाय छे. उत्पाद-व्यय ने ध्रौव्य. आहा... हा!
अहींयां तो ई कहेवुं छे. के द्रव्यस्वभावमां सत्ता छे- गुण (छे.) ए कांई सर्वथा (द्रव्यथी)
भिन्न नथी. एथी सत्ता ने द्रव्यने अतद्भाव (जे) भावभेदथी भेद कह्यो. छतां ई द्रव्यनी द्रष्टि थतां
सत्तागुण जे एनी साथे छे एना त्रण परिणाम थाय छे. एटले ए त्रण प्रकारना परिणाम द्रव्यना ज
थया. आहा... हा! सत्ताना त्रण परिणाम कीधां कारण के
‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्’ ई ई सत् कीधुं
पाछुं सद् द्रव्यलक्षणम् एम. आहा... हा... हा! आकरी वात छे थोडी! आ तो मुदनी रकमनी वात
छे! आहा... हा... हा!

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३३
(अहींयां कहे छे केः) ‘द्रव्यनो स्वभाव परिणाम कहेवामां आव्यो छे. अहीं एम सिद्ध
करवामां आवे छे के जे द्रव्यना स्वभावभूत परिणाम छे. ते ज ‘सत्’ थी अविशिष्ट
अस्तित्वथी अभिन्न.”
द्रव्यनो सत्तागुण छे. अस्तित्वगुण छे. तेना उत्पादव्ययध्रौव्य परिणाम
कह्यां. ए अस्तित्वथी अभिन्न छे. अस्तित्वथी द्रव्य अभिन्न छे तेना परिणाम पण अस्तित्व
अभिन्न छे. “अस्तित्वथी कोई बीजो नहि एवो गुण छे.” सत्ता नामनो गुण छे ई परिणमे छे,
तो सत्ता ने गुण कोई बीजा (अन्य) नथी. त्रणपणे परिणमे ई तो सत्तागुण पोते परिणमे छे.
परिणमे छे माटे बीजो (अन्य) कोई गुण छे (एम नथी.) “अस्तित्वथी अभिन्न एवो,
अस्तित्वथी कोई बीजो नहि एवो गुण छे.”
शुं कहेवा मागे छे? के अस्तित्वगुण छे. अने आ
उत्पादव्ययने ध्रौव्य परिणाम कह्यां. (तेथी ते तो) एम कहे त्रण थयां. उत्पाद-व्यय ने ध्रौव्य (त्रण)
परिणाम थयां. पण सत्तागुणथी कोई (ई) भिन्न नथी. उत्पादव्ययध्रौव्यथी द्रव्य भिन्न नथी. पण
सत्तागुणथी आ उत्पादव्ययध्रौव्य (त्रण) परिणाम भिन्न नथी. आहा... हा.. हा आकरुं बहु
बाबुभाई! धंधा आडे नवराश न मळे एने क्यां’ य अहा... हा.. हा! आहा... हा! शुं अमृतवाणी
छे ने.... भगवाननी! हें? आवी वात क्यां’ य (बीजे नथी.) अमृत वरसाव्यां छे!! एक-एक शब्दे
न्यायना भंडार भर्या छे! आहा... हा... हा!
(अहींयां कहे छे केः) “द्रव्यना स्वरूपनी वृत्तिभूत एवुुं जे अस्तित्व.” अमृत वरस्यां छे.
“द्रव्यना स्वरूपनी वृत्तिभूत.” टकवुं ए; हयात रहेवुं ते. “एवुं जे अस्तित्व द्रव्यप्रधान कथन द्वारा
‘सत्’ शब्दथी कहेवामां आवे छे.”
शुं कीधुं ई? आहा...! के द्रव्यमां, स्वरूपनी वृत्तिभूत एटले
अस्तित्व- हयाती- (छे.) स्वरूपनी हयाती (स्वरूप) सत्ता. एवुं जे अस्तित्व. द्रव्यप्रधान कथन
द्वारा-द्रव्यनी मुख्यताना कथन द्वारा, ‘सत्’ शब्दथी कहेवामां आवेल छे. आहा... हा... हा! “तेनाथी
अविशिष्ट (–ते अस्तित्वथी अनन्य) गुणभूत ज द्रव्यस्वभावभूत परिणाम छे.”

उत्पादव्ययध्रौव्य (त्रण) परिणाम छे ई अस्तित्वगुणथी भिन्न नथी. अस्तित्वगुणना स्वभावभूत
परिणाम छे. सत्तागुणना ई उत्पादव्यय ने ध्रौव्य, अस्तित्वगुणनुं ज परिणाम छे. आहा...हा...हा!
माणस वांचे नही, स्वध्याय करे नहीं शास्त्रनो, पछी (बूमो पाडे) एकांत छे, एकांत छे, एकांत छे
एम कहे! आहा...हा! भाई! तने समजवा शास्त्र छे, आ तो अमृतना शास्त्र छे! आहा... हा!
अमृतना झरणां केम (शी रीते) झरे.. एम कहे छे. आहा...हा...हा...हा!
(कहे छे केः) केम के ई अस्तित्वगुण, द्रव्यथी जुदो नथीं तेथी अस्तित्वगुणना परिणाम
उत्पादव्ययध्रौव्य छे आहा... हा! अस्तित्वगुणना जे मूळभूत द्रव्यस्वभाव भूत् परिणाम छे. ए सत्ता
ने (सत्) एक ज छे. ए सत्ताथी-सत्ता नामनो गुण एक ज छे. सत्ता नामना उत्पादव्ययध्रौव्य, सत्ता

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३४
ने ए एक ज छे. शुं कह्युं ई? समजाणुं? आहा... हा! द्रव्यना स्वरूपनी वृत्ति एटले टकवुं. एवुं जे
अस्तित्व-सत्ता, ए द्रव्यप्रधान कथा द्वारा ‘सत्’ शब्दथी कहेवामां आवेल छे. ‘द्रव्य’ पोते ज ‘सत्’
छे. एम कहेवामां आवेल छे.
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ते ज सदद्रव्यलक्षणम् एने अहींयां सिद्ध
कर्युं छे. आहा... हा... हा! उमास्वातिए जे सूत्रो कह्यां छे (‘तत्त्वार्थसूत्र’ मां तेने सिद्ध कर्यां छे.)
(कहे छे केः) वस्तुनी स्वरूपनी हयाती (स्वरूप) गुण एवी (जे) स त्ता. एमने द्रव्यप्रधान
कथन द्वारा- ‘द्रव्यना स्वरूपनी वृत्तिभूत एवुं जे अस्तित्व द्रव्यप्रधान कथन द्वारा ‘सत्’ शब्दथी
कहेवामां आवे छे.” तेनाथी अविशिष्ट (– ते अस्तित्वथी अनन्य) गुणभूत ज द्रव्यस्वभावभूत
परिणाम छे.”
ई एवो अस्तित्वथी जुदां नहीं (अनन्य) गुणभूत ज द्रव्यस्वभाव, अस्तित्वना
उत्पादव्ययध्रौव्य परिणाम छे. अस्तित्वने द्रव्यनी प्रधानताथी कहीए, तो कहे छे ई अस्तित्वनो जे
द्रव्यस्वभाव, उत्पादव्ययध्रौव्य ई द्रव्यनो स्वभाव छे. समजाणुं कांई? अस्तित्वगुणनुं द्रव्यप्रधान कथन
कहीए, तो अस्तिगुण- उत्पादव्ययध्रौव्य छे एमन कहेतां द्रव्यथी ते उत्पादव्ययध्रौव्य छे. आहा... हा...
हा! समजाणुं कांई? आहा...! द्रव्यना स्वरूपनी हयाती एवुं जे अस्तित्व एनुं द्रव्यनी मुख्यताथी
कथन करतां (एटले) सत्तागुणथी नहि पण सत्तागुणने द्रव्यनी मुख्यताना कथन करतां ‘सत्’
शब्दथी कहेवामां आवे छे. “तेनाथी अविशिष्ट (–ते अस्तित्वथी अनन्य) गुणभूत ज
द्रव्यस्वभावभूत परिणाम छे.” कारण के द्रव्यनी वृत्ति त्रण प्रकारना समयने (–भूत, वर्तमान ने
भविष्य एवा त्रण काळने) स्पर्शती होवाथी (ते वृत्ति अर्थात् अस्तित्व) प्रतिक्षणे ते ते स्वभावे
परिणमे छे.
प्रवचनः ता. ३०–६–७९.
छेल्लो पेरेग्राफ छे. “(आ प्रमाणे) त्यारे प्रथम तो, द्रव्यना स्वभावभूत परिणाम छे.” शुं
कहे छे? के उत्पादव्ययने ध्रौव्य थाय छे. ई द्रव्यना परिणाम छे. जे क्षणे क्षणे उत्पादव्ययने ध्रौव्य,
पोत-पोताना अवसरे थाय छे. ए द्रव्यना परिणाम छे. ए परिणाम (बीजा) कोईथी थया छे, के
(बीजा) कोईथी थाय छे, के कोईथी बदलाय छे एम नथी. आहा... हा!
“अने ते
उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक परिणाम, अस्तित्वभूत एवी द्रव्यनी वृत्ति.” (नीचे फूटनोटमां अर्थ) वृत्ति
= वर्तवुं ते; हयात रहेवुं ते; (तेथी) द्रव्यनी हयाती. द्रव्यनो जे हयाती नामनो सत्तागुण (छे.) एना
अस्तित्वस्वरूप द्रव्यनी हयातीने लीधे
‘सत्’ थी अविशिष्ट एवो” ‘सत्’ (एटले)
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् अने सत्तागुण बेय जुदा नथी बेय एक छे. आहा... हा... हा! जेम
परद्रव्यनुं पृथकपणुं तद्न छे एम आ (गुण-गुणी) पृथक नथी. पहेलुं जरी कही गया छे ने के द्रव्य
अने सत्ता अतद्भाव तरीके अन्यत्व छे एम कह्युं’ तुं. छतां ए अतद्भाव

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३प
छे पण छे तो तद्भावस्वरूप. ई द्रव्यनी ज सत्ता छे ने द्रव्यनो ज गुण छे. आहा... हा... हा! ई
द्रव्यनो खास “एवो द्रव्यविधायक (–द्रव्यने रचनारो) गुण ज छे.” ए तो द्रव्य, सत्तास्वरूपे (ज)
छे. (अथवा) द्रव्य सत्तास्वरूप ज छे. आहा.. हा! एनी सत्ताना स्वरूपमां जे उत्पादव्ययध्रौव्य थाय, ए
सत्ताथी भिन्ननथी अने सत्ता द्रव्यथी भिन्न नथी. आवी व्याख्या छे. केळवणी करवी पडशे ने जरी!
(कहे छे) एवी द्रव्यनी हयातीने लीधे ‘सत्’ थी अविशिष्ट (एटले) सत्थी जुदुं नहि एवो
“द्रव्य विधायक (–द्रव्यने रचनारो सत्ता ई गुण ज छे” द्रव्यने रचनारो सत्ता- अस्तित्व (वस्तुमां)
ई एनो गुण ज छे. अहींयां अस्तित्वथी वात लीधी छे.
“–आ रीते सत्ता ने द्रव्यनुं गुण–गुणीपणुं
सिद्ध थाय छे.” सत्ता गुण छे, द्रव्य गुणी छे. ए रीते ए गुणीनो ज गुण छे ए गुण, गुणीनो छे.
गुणीनो (ज) गुण छे. आहा...हा! अने ए गुणनी हयातीपणाने लईने उत्पादव्ययध्रौव्यना परिणाम
थाय, ते द्रव्यना ज छे. आवी वात छे! आहा...! बहु स्पष्ट कर्युं (छे.) . ए परिणाम कोई बीजा
द्रव्य करे नहीं ए माटे आ बधुं (वस्तुस्थितिना न्यायथी) सिद्ध करे छे. गमे ते प्रसंगमां, प्रत्येक द्रव्य
पोतानी हयातीवाळा गुणथी, जुदो नथी. तेथी ते हयातीवाळो गुण जे छे एमां परिणाम उत्पादव्ययने
ध्रौव्य छे अने उत्पादव्ययध्रौव्य परिणाम सत्ताथी जुदां नथी, ने सत्ताथी गुणी जुदो नथी. गुणीनो
(सत्ता) गुण छे ने (सत्ताना) उत्पादव्ययध्रौव्य (ए त्रण) परिणाम छे. आहा... हा! हवे आवुं
अनोखुं! वेपारीने (समजवा) नवराश नहीं ने...! आवी झीणी वात! भाषा तो सादी छे!
(कहे छे केः) आत्मा! सिद्ध तो ई करवुं छे के परिणमन जे थाय छे ई तो एनी सत्ताने
लईने थाय छे. अने ई सत्ता गुणीनो गुण छे. अने ई सत्ता उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं छे. तेथी ते
सत्तानुं परिणमन ते द्रव्यनुं परिणमन छे. (श्रोताः) एक गुणनुं परिणमन छे ते आखा द्रव्यनुं
परिणमन? (उत्तरः) ए ई बीजा गुणनुं ई प्रमाणे, त्रीजा गुणनुं परिणमन ई प्रमाणे. अहींयां तो
सत्तागुणनी व्याख्या करी. एम ज्ञानगुण लो, ज्ञानगुण पण हयातीवाळो तो छे. ते गुणीथी गुण कांई
जुदो नथी. अने ज्ञानगुणमां पण उत्पादव्ययध्रौव्य परिणाम थाय छे. आ तो सत्तागुणनी वात करी
(छे.) एम अनंतगुणनुं परिणमन-हयाती, ए गुणीना गुण छे. ए गुणमां होवापणापणुं छे. अने
एने लईने एना उत्पादव्यय ने ध्रौव्य परिणाम थाय छे. ए उत्पादव्ययध्रौव्यना परिणामथी द्रव्य जुदुं
नथी. आहा... हा... हा... हा! घणी वात करे छे! शब्दो थोडा पण घणी वात गंभीर करी छे!! को’
भाई! आमां उपरटपकेथी समजाय तेवुं नथी. आहा... हा!
अहींयां तो भगवंत! सर्वज्ञ परमात्माए, अनंत द्रव्य पृथक (प्रत्यक्ष) जोयां. ते अनंतद्रव्यमां,

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३६
ते द्रव्यनुं होवापणुं- ई होवापणानो गुण (अस्तित्व) ते द्रव्यथी जुदो नथी. अने ते होवापणानो
गुण, उत्पादव्यय ने ध्रौव्य परिणामथी जुदो नथी. होवापणाना गुणना ज उत्पादव्ययध्रौव्य छे. आहा...
हा... हा! एनी वात करी, द्रव्य छे ते सत्ता सहित छे. अस्तित्वगुण सहित छे. अने ए गुण छे ई
उत्पादव्ययध्रौव्य परिणाम सहित छे. माटे ते सत्तागुण-गुणीथी जुदो नथी. सत्ता (गुण) नुं परिणमन
(उत्पादव्ययध्रौव्य) पण द्रव्यथी जुदुं नथी. आहा... हा! हवे आ वाणियाओने याद राखवुं बधुं धंधा
आडे! आहा.. हा! वात तो एमां ई सिद्ध करवी छे प्रभु! तुं पोते आत्मा छो. अने आत्मामां
अनंतगुणो एनी हयाती धरावे छे. ए गुणीना गुणो हयाती धरावे छे. अने ए गुणीना गुणो,
समय-समयमां उत्पादव्ययध्रौव्यपणे परिणमे छे. आहा...! त्रणेय पर्याय लीधी छे ने...?
उत्पादव्ययध्रौव्यने परिणामकीधां छे पर्याय कीधी छे. आहा... हा! एटले एने बीजुं (कोई) द्रव्य
उत्पादपणे परिणमावे नवी रीते (बदलावे) एनो प्रवाह तोडी द्ये-आहा.. हा! भगवान आत्मा के
कोईपण द्रव्य, एनी हयातीवाळा गुणोनो उत्पादव्ययध्रौव्यनो प्रवाह (क्रम) ए गुण गुणीथी जुदो
नथी, अने ते गुणीथी गुण जुदो नथी. एथी ते प्रवाहने कोई तोडी शके -पर्याय कोई आडी-अवळी
करी शके, ए नथी एम कहे छे. छे थोडुं, पण घणो माल भर्यो छे!! आचार्योना हृदयमां घणो माल
छे!! आखी दुनियाने वहेंची नाखी. अनंत द्रव्यो, अनंतपणे पोताथी कायम केम रहे? (एनी
वहेंचणी करी नाखी.) जेने परनी हयातीनी जरूर नथी केम के पोते ज (दरेक द्रव्यो) हयातीवाळा-
अस्तित्ववाळा गुणोथी छे. अने ते हयातीवाळा गुणो पोते ज उत्पादव्ययध्रौव्यपणे परिणमे छे. एटले
एने परिणमन माटे बीजा कोई द्रव्यनी जरूर पडे एम नथी. उचित-योग्य निमित्त भले होय ए तो
पहेलां (गाथा-९प) मां कही गयो. उचित-निमित्त-पण उचित निमित्त छे ई परिणमनने काळे छे.
ए उचित निमित्त आव्युं एटले (अहीं द्रव्य) उत्पादव्यय ध्रौव्यपणे परिणम्युं एम नथी. आहा... हा!
समजाय छेकांई? झीणी वातुं बहु! भाई! आ तो दया पाळवी ने... प्रतिक्रमण करवा ने... व्रत करवां
ने... अपवास करवां... ने ए तो सहेलुं सट हतुं! रखडवानुं!! मिथ्यात्वपोषक हतुं ई तो बधु! केम के
अहींयां सामुं द्रव्य पण ते गुणीथी गुण (सहित) छे. अने ते गुण ते उत्पादव्ययध्रौव्यथी छे. अने
तेथी तेना उत्पादव्ययध्रौव्य तेनी सत्ताथी जुदां नथी, ते सत्ता ते सत्-द्रव्यथी जुदां नथी. एटले बीजानुं
कांईपण (कोईद्रव्य) करी शके के बीजा (द्रव्यने) अडी शके (एवुं वस्तुस्वरूपमां छे नहीं) आहा...
हा!
(श्रोताः) अडी न शके एटले तो आचार्योए लख्युं छे आमां...! (उत्तरः) ए आवी गयुं ने
पहेलां. ई एटला माटे तो कहे छे. के वस्तु छे ई सत्तागुणवाळी अस्तित्वपणे छे. अने एवा बधा
गुणो पण अस्तित्वपणे छे. अने अस्तित्वगुण छे ए बधा गुण-पण उत्पादव्ययध्रौव्यवाळा छे.
(तेथी) कोईपण गुण उत्पादव्ययध्रौव्य विनानो होय नहीं अने उत्पादव्ययध्रौव्य छे ते सत्ताना छे ने
ए (सत्ता) गुण गुणीनो छे. एटले एना परिणमनमां कोई बीजानुं कारण छे (एम नथी) एमां
आवी गई ई वात! आहा...हा...हा!
(श्रोताः) वधारे (चोख्खुं) आव्युं नहीं (उत्तरः) अंदर
तत्त्वथी आवी गयुं न्यायथी. आहा...हा! अरे.. रे!

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३७
आहा...हा! शुं वाणी छे! ‘प्रवचनसार’! वीतरागनी दिव्यध्वनि!! आहा...हा! वहेंची नाख्या अनंता
(पदार्थोने) जुदा (जुदा) भले अनंत हो!
(हवे कहे छे केः) कोई पण द्रव्यना उत्पादव्ययध्रौव्यमां (अन्य) कोई द्रव्यनुं उत्पादव्ययध्रौव्य
आवे एम नथी. कारण के सत्ता (गुण) थी ज ते गुणी छे. अने गुणीनी ते सत्ता छे. अने ते सत्ता
पोते ज उत्पादव्ययध्रौव्यवाळी छे. एटले हवे एने उत्पादव्ययध्रौव्यना परिणमन माटे कोई बीजा
द्रव्यनी अपेक्षा छे (एम नहीं.) उचित (निमित्त) हो! पण ई परिणमन (निमित्त छे माटे)
परिणमन करे एम नथी. ई तो (मात्र) निमित्त छे. आहा...हा! चीमनभाई! आवी वातुं छे!
आमां माथां शुं गणे वेपारी आखो दि’, माथाकूटमां पडया ने आ तो निवृत्ति जोईए, निवृत्ति!
मगजे य शुं काम करे? आहा...हा...हा!
(कहे छे) (द्रव्यमां) क्षणे क्षणे भिन्न भिन्न अवस्था थाय छे. तेथी कोई बीजा तत्त्वना
अस्तित्वने लईने (ए अवस्था) छे (एवुं नथी.) के भिन्न भिन्न अवस्था ई सत्ताना पोताना
उत्पादव्ययध्रौव्य गुण छे एनाथी थाय छे. आहा... हा! एक द्रव्यने, बीजा द्रव्यनो संयोग थतां, एनी
अवस्था बीजी देखाय, एथी कहे छे के तने एम थई जाय छे के आ संयोग थी अवस्था बदली छे
एम नथी, एम कहेवुं छे. आहा... हा... हा! घणुं समाडयुं! ते तेनामां, तुं तारामां. संयोगथी तुं जोवा
मांड के अग्नि आवी माटे पाणी ऊनुं थयुं- उचित निमित्त आव्युं माटे पाणी ऊनुं थयुं एम नथी.
ए अग्निमां सत्ता नामनो गुण छे. अने उष्ण (ता) नामनो गुण छे. ए पण उत्पादव्यय ने
ध्रौव्यवाळा (गुण) छे. तो ई ठंडी अवस्थामांथी ऊनी अवस्था थई ई एना उत्पादने लईने थई छे.
आहा... हा.. हा...! ए उचित निमित्त छे माटे थई छे एम नथी. कारण के उचित निमित्त छे ए पण
सत्तावाळुं तत्त्व छे. अने ए पण एना उत्पादव्ययध्रौव्यपणे सत्ता (स्वयं) थाय छे. अने ते सत्ताथी
उत्पादव्ययध्रौव्य (तेना) जुदा नथी. अने ते सत्ता तेना सत्थी (एटले) द्रव्यथी जुदी नथी. आहा...
हा! मीठाभाई, समजाय छे आमां? थोडी वात छे पण गंभीर छे! आहा... हा!
“घणी (वातथी)
भेदज्ञान कराव्युं छे!” वहेंचणी करी नाखी वहेंचणी! के गमे एवा संयोगोमां पर्याय देखाय एकदम,
जेम पाणीनी ठंडी अवस्था हती ते उष्ण देखाय एकदम, एथी तने एम लागे के अग्निनो संयोग छे
माटे ते (उष्ण) थईएम नथी. ए तो अग्निनो सत्ता नामनो गुण छे ने उष्णता नामनो गुण छे,
ए पोते ज उत्पादव्ययपणे परिणमीने उष्णता छे. (पण) अग्निने लईने (पाणी उष्ण थयुं) एम
नहि. आहा... हा... हा... हा! बहु समाव्युं छे!! गाथामां!
(कहे छे) शरीरमां रोग आव्यो, ई एनी सत्ता नामनो गुण छे (पुद्गलनो) एथी एमां
अहींयां एनुं्र परिणमन उत्पादव्ययध्रौव्यपणे (थई रह्युं छे.) माटे आ थयो (रोग.) हवे ई

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३८
उत्पादव्यय कोई बीजा कारणे थयो छे एम नथी. अने ई (रोगनो) उत्पाद ने कोई दवानो उत्पाद
आवे ई जातनो (उचित निमित्तपणानो) माटे ई (रोगनो) उत्पाद जाय छे एम नथी. अने ई
उत्पाद छे अने आवे ओलो दवानो उत्पाद माटे (रोग) नो उत्पाद फरी जाय छे एम नहीं. आ
दवाखाना मींडा वळे बधा. आहा... हा! संयोगने देखनारो एना (संयोगथी-संयोगी द्रष्टिथी देखे
छे.) शास्त्रमां (निमित्तनी) भाषा आवे. आ दवा, आ दवाथी आम थाय ए बधी वातुं निमित्तथी
कथन छे. आहा... हा! अहींयां तो एक (एक) गुण (सत्ता सहित) ते उत्पादव्ययध्रौव्य परिणमन
सहित ज होय छे. एथी तने एम लागे के संयोग आव्यो माटे आ पर्याय थई तो तो एनी सत्ताने
(निमित्त के उपादान) एना गुणनो उत्पादव्ययध्रौव्य एनाथी (ते ते परिणमन) थयुं ते तें मान्युं
नहीं. आहा.. हा! समजाय छे कांई? आ त्रण लीटीमां एटलुं भर्युं छे अहीं! आहा... हा! शुं त्यारे
आमां वांच्युं शुं हशे त्यारे तमे त्यां? दुकाने. शांतिभाई! आहा.. हा! (श्रोताः) कोई आत्मानी वात
होय तो अर्थ समजाय. (उत्तरः) पण आ तो सीधी वात छे. एना व्याजमां ने एना काढवामां ने
केम हुशियार थाय छे? आहा... हा.. हा! अहींयां तो गजब वात करी छे ने...!
(कहे छे) आहा... हा! सत्-सत्ता- उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं परिणमन-आहा.. हा! ते ते द्रव्यनुं,
ते ते गुणनुं. आहा... हा! ते ते गुणनुं उत्पादव्ययने ध्रौव्य ते ए गुणनो ज उत्पादव्ययध्रौव्य छे. हवे
ई गुण गुणीनो छे. माटे गुणी पोते ज ते रीते उत्पादव्ययध्रौव्यपणे परिणम्युं छे. आहा.. हा!
संयोगोने न जुओ!
(श्रोताः) तो हाथमां केम आवे छे? जो शक्ति आत्मानी नहीं मानो तो तो
आत्मा शक्तिथी-संयोगोथी (हाथमां) आवे छे... (उत्तरः) ई... ई... ई व्यवहारे कथन छे. ई तो
वात करीय पहेली. कह्युं छे आवुं नथी. आहा... हा! (श्रोताः) कह्युं छे ने (शास्त्रमां) पण..
(उत्तरः) कह्युं छे ने व्यवहारथी कह्युं छे. निमि त्त गणाव्युं छे खबर छे.. ने... आहा.. हा!
अहींयां तो माणसने एम थाय के आ संयोगो आव्या ने एकदम पलटन थयुं, माटे संयोगथी
थयुं, एम नथी. (जुओ,) अत्यारे (अहींयां व्याख्यानमां बेठा छो त्यारे) सांभळवामां आवे छे,
ज्ञान थाय छे अंदर, ए सांभळवानो संयोग आव्यो माटे त्यां ज्ञान थयुं ते (नी) अहींयां ना पाडे
छे. (कारण के) ए ज्ञानमां सत्ता नामनो अस्तित्व गुण छे. अने ए गुण पण (हयातीवाळो) छे
ने...! ए एना उत्पादव्ययध्रौव्यपणे परिणमे छे तेथी (ज्ञान) एनुं थाय छे. एने लईने (ज्ञानगुणने
लईने) उत्पाद ज्ञाननो पर्याय छे. सांभळवाने लईने (के) शब्दनी पर्यायने लईने त्यां (ज्ञान
पर्यायनो उत्पाद) छे एम नथी. आहा... हा!
(श्रोताः) ए तो उपादानथी छे... (उत्तरः) हें?
(श्रोताः) आ तो उपादानथी वात करी. (उत्तरः) उपादाननी नहीं, ए तो वस्तुनी स्थिति ए ज छे.
उचित निमित्त भले हो! पण ते काळे- ते ते पोताने कारणे उत्पादव्ययध्रौव्यपणे सत्ता परिणमे छे ने
ए सत्तागुण, गुणीनो छे. ई सत्तानुं परिणमन छे जे ई गुणीनुं ज परिणमन छे. संयोगनुं नहीं.
आहा...हा...हा!

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गाथा – १०९ प्रवचनसार प्रवचनो ४३९
देवीलालजी! आवी वात छे. बेसवी कठण पडे! (श्रोताः) बेसे तो समाधान थाय... (उत्तरः)
वस्तुस्थिति आम छे.
(कहे छे) अहींयां बताववामां एटलो भाव छे के कोईपण तत्त्वने एकदम बदलती अवस्था
देखीने, संयोग आव्यो माटे बदलती अवस्था (एकदम) थई एम नथी. पहेलां आम हतुं ने पछी
केम आम थयुं? पहेलां आ रीते, आ पर्याय नहोती न्यां बेठो त्यारे अहींयां (बेठो त्यारे) आ
ज्ञाननी पर्याय आवी थई आंही. सांभळवामांथी थई तो एनुं कारण शुं? आहा... हा! कहे छे के
एनो ज्ञानगुण ने सत्तागुण ज. उत्पादव्ययध्रौव्यरूप (परिणमे) छे. एथी तेना गुणनुं उत्पादव्यय ने
ध्रौव्य करीने ज ए (ज्ञान) थयुं छे. अने ए गुण गुणीनो एटले द्रव्यनुं ज ए परिणमन छे. बीजानुं
छे नहीं’ . देवीलालजी! आहा... हा! हवे आमां परनी दया ने परनी हिंसा... मंदिर बनाववा ने...
रथयात्रा बनाववा ने.. आहा..! भारे वात भई!
कोई पण द्रव्य, ते ते काळे-संयोगो भले विविध प्रकारना आवे- एथी अहींयां विविध
प्रकारनी पर्यायो थई एम’ नथी. ते क्षणे ज तेना उत्पादनो, व्ययनो, ध्रौव्यनो- सत्तागुणनुं परिणमन
छे. माटे थाय छे. ते गुण छे गुणीनो ते, गुणी तो ध्रुवपणे पडयुं छे. संयोगोरूपे परिणम्या’ ता माटे
संयोगोने लईने परिणम्या छे एम’ नथी. आहा... हा! आ तो बेसे एवुं छे.
(अहींयां कहे छे केः) “गुण ज छे. – आ रीते सत्ता ने द्रव्यनुं गुण–गुणीपणुं सिद्ध थाय छे.”

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गाथा – ११० प्रवचनसार प्रवचनो ४४०
हवे गुण ने गुणीना अनेकपणानुं खंडन करे छेः-
णत्थि गुणो त्ति कोई पज्जाओ तीह वा विणा दव्वं ।
दव्वतं पुण भावो तम्हा दव्वं सयं सत्ता ।। ११०।।
नास्ति गुण इति वा कश्चित् पर्याय इतीह वा विना द्रव्यम् ।
द्रव्यत्वं
पुनर्भावस्तस्माद्द्रव्यं स्वयं सत्ता ।। ११०।।
पर्याय के गुण एवुं कोई न द्रव्य विण विश्वे दीसे
द्रव्यत्व छे वळी भाव; तेथी द्रव्य पोते सत्त्व छे. ११०
गाथा – ११०
अन्यवार्थः– [इह] आ विश्वमां [गुणः इति वा कश्चित्] गुण एवुं कोई [पर्यायः इति वा]
के पर्याय एवुं कोई, [द्रव्यं विना न अस्ति] द्रव्य विना (-द्रव्यथी जुदुं) होतुं नथी; [द्रव्यत्वं पुनः
भावः] अने द्रव्यत्व ते भाव छे (अर्थात् अस्तित्व ते गुण छे); [तस्मात्] तेथी [द्रव्यं स्वयं
सत्ता] द्रव्य पोते सत्ता (अर्थात् अस्तित्व) छे.
टीकाः– खरेखर द्रव्यथी पृथग्भूत (जूदुं) गुण एवुं कोई के पर्याय एवुं कोई पण न होय; -
जेम सुवर्णथी पृथग्भूत तेनी पीळाश आदि के तेनुं कुंडळपणुं आदि होता नथी तेम. हवे, ते द्रव्यना
स्वरूपनी वृत्तिभूत ‘अस्तित्व’ नामथी कहेवातुं जे द्रव्यत्व ते तेनो ‘भाव’ नामथी कहेवातो गुण ज
होवाथी, शुं ते द्रव्यथी पृथकपणे वर्ते छे? नथी ज वर्ततुं. तो पछी द्रव्य स्वयमेव (पोते ज) सत्ता हो.
११०.