Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१८समाधितंत्र

टीकाशरीरादौ शरीरे आदिशब्दाद्वाङ्मनसोरेव ग्रहणं तत्र जाता आत्मेतिभ्रान्तिर्यस्य स बहिरात्मा भवति आन्तरः अन्तर्भवः तत्र भव इत्यणष्टेर्भमात्रे टि लोपमित्यस्याऽनित्यत्वं येषां च विरोधः शाश्वतिक इति निर्देशात् अन्तरे वा भव आन्तरोऽन्तरात्मा स कथं भूतो भवति ? चित्तदोषात्मविभ्रान्तिः चित्तं च विकल्पो, दोषाश्च रागादयः, आत्मा च शुद्धं चेतनाद्रव्यं तेषु विगता विनष्टा भ्रान्तिर्यस्य चित्तं चित्तत्वेन बुध्यते दोषाश्च दोषत्वेन आत्मा आत्मत्वेनेत्यर्थः चित्तदोषेषु वा विगता आत्मेति भ्रान्तिर्यस्य परमात्मा भवति किं विशिष्टः ? अतिनिर्मलः प्रक्षीणाशेषकर्ममलः ।।।। उत्पन्न थई छे ते ‘बहिरात्मा’ छे; (चित्तदोषात्मविभ्रातिः अन्तरः) चित्त (विकल्पो), रागादि दोषो अने आत्मा (शुद्ध चेतनाद्रव्य)ना विषयमां जेने भ्रान्ति नथी (अर्थात् जे चित्तने चित्तरूपे, दोषोने दोषरूपे अने आत्माने आत्मारूपे जाणे छे) ते ‘अन्तरात्मा’ छे; (अतिनिर्मलः परमात्मा) जे सर्व कर्ममलथी रहित अत्यंत निर्मळ छे ते ‘परमात्मा’ छे.

टीका : शरीर आदिमांशरीरमां अने ‘आदि’ शब्दथी वाणी अने मननुं ज ग्रहण समजवुं, तेमां जेने ‘आत्मा’ एवी भ्रान्ति उत्पन्न थई छे ते बहिरात्मा छे. अन्तर्भव अथवा अंतरे भव ते आन्तर अर्थात् अन्तरात्मा. ते (अन्तरात्मा) केवो छे? ते चित्त, दोष अने आत्मा संबंधी भ्रान्ति विनानो छेचित्त एटले विकल्प, दोष एटले रागादि अने आत्मा एटले शुद्ध चेतना द्रव्यतेमां जेनी भ्रान्ति नाश पामी छे तेअर्थात् जे चित्तने चित्तरूपे, दोषने दोषरूपे अने आत्माने आत्मारूपे जाणे छे ते अन्तरात्मा छे, अथवा चित्त अने दोषोमां ‘आत्मा’ मानवारूप भ्रान्ति जेने जती रही छे ते (अन्तरात्मा) छे.

परमात्मा केवा होय छे? अति निर्मळ छे अर्थात् जेनो अशेष (समस्त) कर्ममल नाश पाम्यो छे ते (परमात्मा) छे. (५)

भावार्थ : जे शरीरादि बाह्य पदार्थोमां आत्मानी भ्रान्ति करे छेतेने ज आत्मा माने छेते ‘बहिरात्मा’ छे; विकल्पो, रागादि दोषो अने चैतन्यस्वरूप आत्माना विषयमां जेने भ्रान्ति नथी, अर्थात् जे विकारने विकाररूपे अने आत्माने आत्मारूपेएकबीजाथी भिन्न समजे छे ते ‘अंतरात्मा’ छे; जे रागादि दोषोथी सर्वथा रहित छेअत्यंत निर्मळ छे अने सर्वज्ञ छे ते ‘परमात्मा’ छे.

विशेष
बहिरात्मा

जे शरीरादि (शरीर, वाणी, मन वगेरे) अजीव छे तेमां जीवनी कल्पना करे छे