Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 5.

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समाधितंत्र१७
तत्र बहिरन्तः परमात्मनां प्रत्येकं लक्षणमाह
बहिरात्मा शरीरादौ जातात्मभ्रान्तिरान्तरः
चित्तदोषात्मविभ्रान्तिः परमात्माऽतिर्निमलः ।।।।
विशेष

बहिरात्मा

बाह्य शरीरादि, विभावभाव तथा अपूर्णदशामां जे आत्मबुद्धि करे छे अर्थात् तेनी साथे एकतानी बुद्धि करे छे ते बहिरात्मा छे. ते आत्मानुं वास्तविक स्वरूप भूली बहारमां काया अने कषायोमां मारापणुं माने छे, तेने भावकर्म अने द्रव्यकर्म साथे एकताबुद्धि छे; तेनाथी ज पोताने लाभहानि माने छे. ते मिथ्याद्रष्टि जीव अनादिकालथी संसारपरिभ्रमणनां दुःखोथी पिडाय छे. अंतरात्मा

जेने शरीरादिथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं भान छे ते अंतरात्मा छे. तेने स्वपरनुं भेदज्ञान छे. तेने एवो विवेक वर्ते छे के ‘हुं ज्ञानदर्शनरूप छुं; एक शाश्वत आत्मा ज मारो छे, बाकीना संयोगलक्षणरूप अर्थात् व्यवहाररूप जे भावो छे ते बधा माराथी भिन्न छेमाराथी बाह्य छे.’ आवो सम्यग्द्रष्टि आत्मा मोक्षमार्गमां स्थित छे. परमात्मा

जेणे अनंतज्ञानदर्शनादिरूप चैतन्यशक्तिओने पूर्णपणे विकास करी सर्वज्ञपद प्राप्त कर्युं छे ते परमात्मा छे. ४.

त्यां बहिरात्मा, अन्तरात्मा अने परमात्माप्रत्येकनुं लक्षण कहे छे

श्लोक ५

अन्वयार्थ : (शरीरादौ जातात्मभ्रान्तिः बहिरात्मा) शरीरादिमां जेने आत्मभ्रान्ति अक्खाणि बाहिरप्पा अंतरप्पा हु अप्पसंकप्पो

कम्मकलंकविमुक्को परमप्पा भण्णए देवो ।।।।मोक्षप्राभृते, कुन्दकुन्दः
आत्मभ्रान्ति देहादिमां करे तेह ‘बहिरात्म’;
‘आन्तर’ विभ्रमरहित छे, अतिनिर्मळ ‘परमात्म’. ५.