बहिरात्मा
बाह्य शरीरादि, विभावभाव तथा अपूर्णदशामां जे आत्मबुद्धि करे छे अर्थात् तेनी साथे एकतानी बुद्धि करे छे ते बहिरात्मा छे. ते आत्मानुं वास्तविक स्वरूप भूली बहारमां काया अने कषायोमां मारापणुं माने छे, तेने भावकर्म अने द्रव्यकर्म साथे एकताबुद्धि छे; तेनाथी ज पोताने लाभ – हानि माने छे. ते मिथ्याद्रष्टि जीव अनादिकालथी संसारपरिभ्रमणनां दुःखोथी पिडाय छे. अंतरात्मा
जेने शरीरादिथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं भान छे ते अंतरात्मा छे. तेने स्व – परनुं भेदज्ञान छे. तेने एवो विवेक वर्ते छे के ‘हुं ज्ञान – दर्शनरूप छुं; एक शाश्वत आत्मा ज मारो छे, बाकीना संयोगलक्षणरूप अर्थात् व्यवहाररूप जे भावो छे ते बधा माराथी भिन्न छे – माराथी बाह्य छे.’ आवो सम्यग्द्रष्टि आत्मा मोक्षमार्गमां स्थित छे. परमात्मा
जेणे अनंतज्ञान – दर्शनादिरूप चैतन्य – शक्तिओने पूर्णपणे विकास करी सर्वज्ञपद प्राप्त कर्युं छे ते परमात्मा छे. ४.
त्यां बहिरात्मा, अन्तरात्मा अने परमात्मा – प्रत्येकनुं लक्षण कहे छे –
अन्वयार्थ : (शरीरादौ जातात्मभ्रान्तिः बहिरात्मा) शरीरादिमां जेने आत्म – भ्रान्ति ✾अक्खाणि बाहिरप्पा अंतरप्पा हु अप्पसंकप्पो ।