१६समाधितंत्र अवस्थाओ होय छे. तेमां बहिरात्मावस्था छोडवा योग्य छे; अंतरात्मावस्था, परमात्मपदनी प्राप्तिनुं साधन छे, माटे ते प्रगट करवा योग्य छे अने परमात्मावस्था जे आत्मानी स्वाभाविक परम वीतरागी अवस्था छे ते साध्य छे माटे ते परम उपादेय (प्रगट करवा योग्य) छे.
प्रश्नः सर्व प्राणीओमां आत्मानी त्रण अवस्थाओ छे एम श्लोकमां कह्युं छे पण अभव्यने तो एक बहिरात्मावस्था ज संभवित छे, तो सर्व प्राणीओने आत्मानी त्रण अवस्थाओ केम बनी शके?
उत्तरः जे जीव अज्ञानी बहिरात्मा छे तेमां पण अंतरात्मा अने परमात्मा थवानी शक्ति छे. भव्य अने अभव्य जीवोमां पण केवलज्ञानादिरूप परमात्मशक्ति छे. जो ते शक्ति तेमनामां न होय, तो तेने प्रगट न थवामां निमित्तरूप केवळज्ञानावरणादि कर्म पण न होवां जोईए, पण बहिरात्माने (अभव्यने पण) केवलज्ञानावरणादि कर्म तो छे; तेथी स्पष्ट छे के बहिरात्मामां (भव्य के अभव्यमां) केवलज्ञानादि शक्तिपणे छे. अभव्यने ते शक्ति प्रगट करवा जेटली योग्यता नथी.
अनादिथी बधा जीवोमां केवलज्ञानादिरूप परमस्वभाव शक्तिरूपे छे. ते स्वभावनां श्रद्धाज्ञान करी तेमां लीन थाय तो ते केवलज्ञानादि शक्तिओ प्रगट थई जाय अने केवलज्ञानावरणादि कर्मो स्वयं छूटी जाय.
श्रीमद् राजचंद्रे कह्युं छे के –
बधाय जीवो शक्तिपणे परिपूर्ण सिद्ध भगवान जेवा छे, पण जे पोतानी त्रिकाल शुद्ध चैतन्यस्वरूप स्वभावशक्तिने सम्यक् प्रकारे समजे, तेनी प्रतीत करे अने तेमां स्थिरता करे, ते परमात्मदशा प्रगट करी शके.
वर्तमानमां जे धर्मी अंतरात्मा छे तेने पूर्वे अज्ञान दशामां बहिरात्मपणुं हतुं ने हवे अल्प काळमां परमात्मपणुं प्रगट थशे.
परमात्मपदने प्राप्त थयेला श्री अरिहंत अने सिद्ध भगवानने पण पूर्वे बहिरात्मदशा हती. तेओ पोतानी स्वाभाविक शक्तिनी प्रतीति करी जे समये स्वभावसन्मुख थया ते समये तेमनुं बहिरात्मपणुं टळी गयुं अने अंतरात्मदशा प्रगट थई अने पछी उग्र पुरुषार्थ करी स्वभावमां लीन थई परमात्मा थया.
ए रीते, अपेक्षाए दरेक जीवमां त्रण प्रकारो लागु पडे एम समजवुं.