Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२०समाधितंत्र

अंतरात्माना त्रण भेद छेउत्तम अंतरात्मा, मध्यम अंतरात्मा अने जघन्य अंतरात्मा.

अंतरंगबहिरंग परिग्रहोथी रहित शुद्धोपयोगी आत्मध्यानी दिगम्बर मुनि ‘उत्तम अंतरात्मा’ छे. ‘आ महात्मा सोळ कषायोना अभावद्वारा क्षीणमोह पदवीने प्राप्त करीने स्थित छे.’

चोथा गुणस्थानवर्ती व्रतरहित सम्यग्द्रष्टि आत्मा ‘जघन्य अंतरात्मा’ कहेवाय छे. आ बेनी (जघन्य अंतरात्मा अने उत्तम अंतरात्मानी) मध्यमां रहेला सर्वे ‘मध्यम अंतरात्मा’ छे, अर्थात् पांचमांथी अगियारमा गुणस्थानवर्ती जीवो मध्यम अंतरात्मा छे.

परमात्मा

जेमणे अनंतज्ञानदर्शनादिरूप चैतन्य शक्तिओनो पूर्णपणे विकास करी सर्वज्ञपद प्राप्त कर्युं छे ते ‘परमात्मा’ छे.

परमात्माना बे प्रकार छेसकल परमात्मा अने निकल परमात्मा.

अरहंत परमात्मा ते सकल परमात्मा छे अने सिद्ध परमात्मा ते निकल परमात्मा छे, तेओ केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टयथी सहित छे.

अरहंत परमात्माने चार अघाति कर्मो बाकी छे. तेनो क्षणे क्षणे क्षय थतो जाय छे. तेमने बहारमां समवसरणादि दिव्य वैभव होय छे. तेमने इच्छा विना भव्य जीवोने कल्याणरूप दिव्य ध्वनि छूटे छे. तेओ परम हितोपदेशक छे. परम औदारिक शरीरना संयोग सहित होवाथी तेओ सकल (कलशरीर सहित) परमात्मा कहेवाय छे.

जे ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, रागादि भावकर्म अने शरीरादि नोकर्मथी रहित छे, शुद्धज्ञानमय छे, औदारिक शरीर (कल) रहित छे, ते निर्दोष अने परम पूज्य सिद्ध परमेष्ठी ‘निकल परमात्मा’ कहेवाय छे. तेओ अनंतकाळ सुधी अनंत सुख भोगवे छे.

‘आत्मामां परमानंदनी शक्ति भरी पडी छे. बाह्य इन्द्रियविषयोमां वास्तविक सुख नथी. एम अंतर प्रतीति करीने धर्मी जीव अंतर्मुख थईने आत्माना अतीन्द्रिय सुखनो स्वाद ले छे. जेम लींडीपीपरना दाणे दाणे चोसठ पहोरी तीखाशनी ताकात भरी छे तेम प्रत्येक आत्मानो स्वभाव परिपूर्ण ज्ञानआनंदथी भरेलो छे, पण तेनो विश्वास करी अंतर्मुख १. जुओनियमसार, गु. आवृत्तिपृ. २९५