Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 6.

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समाधितंत्र२१
तद्वाचिकां नाममालां दर्शयन्नाह
निर्मलः केवलः शुद्धो विविक्तः प्रभुरव्ययः
परमेष्ठी परात्मेति परमात्मेश्वरो जिनः ।।।।

टीकानिर्मलः कर्ममलरहितः केवलः शरीरादिनां सम्बन्धरहितः शुद्धः द्रव्यभावकर्मणामभावात् परमविशुद्धिसमन्वितः विविक्तः शरीरकर्मादिभिरसंस्पृष्टः प्रभुरिन्द्रादीनां स्वामी अव्ययो लब्धानंतचतुष्टयस्वरूपादप्रच्युतः परमेष्ठी परमे इन्द्रादिवंद्ये पदे तिष्ठतीति परमेष्ठी थईने तेमां एकाग्र थाय तो ते ज्ञान-आनंदनो स्वाद अनुभवमां आवे. आत्माथी भिन्न बाह्य विषयोमां क्यांय आत्मानो आनंद नथी. धर्मात्मा पोताना आत्मा सिवाय बहारमां क्यांयस्वप्नमां य आनंद मानतो नथी. आवो अंतरात्मा पोताना अंतरस्वरूपमां एकाग्र थईने परिपूर्ण ज्ञान आनंद प्रगट करीने पोते ज परमात्मा थाय छे......’’ ‘आत्मधर्म’मांथी)

परमात्मानां नामवाचक नामावलि दर्शावतां कहे छेः

श्लोक ६

अन्वयार्थ : (निर्मलः) निर्मळमल रहित, (केवलः) केवळशरीरादि पर द्रव्यना संबंधथी रहित, (शुद्धः) शुद्धरागादिथी अत्यंत भिन्न थई गया होवाथी परम विशुद्धिवाळा, (विविक्तः) विविक्तशरीर अने कर्मादिकना स्पर्शथी रहित, (प्रभुः) प्रभुइन्द्रादिकना स्वामी, (अव्ययः) अव्ययपोताना अनंतचतुष्टयरूप स्वभावथी च्युत नहि थवावाळा, (परमेष्ठी) परमेष्ठीइन्द्रादिथी वन्द्य परम पदमां स्थित, (परात्मा) परात्मासंसारी जीवोथी उत्कृष्ट आत्मा, (ईश्वरः) ईश्वरअन्य जीवोमां असंभव एवी विभूतिना धारकअर्थात् अंतरंग अनंतचतुष्टय अने बाह्य समवसरणादि विभूतिथी युक्त, (जिनः) जिनज्ञानावरणादि संपूर्ण कर्मशत्रुओने जीतनार (इति परमात्मा)ए परमात्मानां नाम छे.

टीका : निर्मल एटले कर्ममलरहित, केवल एटले शरीरादिना संबंधरहित, शुद्ध एटले द्रव्यकर्मभावकर्मना अभावना कारणे परम विशुद्धिवाळा, विविक्त एटले शरीर कर्मादिथी नहि स्पर्शायेला, प्रभु एटले इन्द्रादिना स्वामी, अव्यय एटले प्राप्त थयेल अनंतचतुष्टयमय स्वरूपथी च्युत (भ्रष्ट) नहि थयेला, परमेष्ठी एटले परम अर्थात् इन्द्रादिथी

निर्मळ, केवळ, शुद्ध, जिन, प्रभु, विविक्त, परात्म,
इश्वर, परमेष्ठी अने अव्यय ते परमात्म. ६.