Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२२समाधितंत्र स्थानशीलः परात्मा संसारिजीवेभ्य उत्कृष्ट आत्मा इति शब्दः प्रकारार्थे एवंप्रकारा ये शब्दास्ते परमात्मनो वाचकाः परमात्मेत्यादिना तानेव दर्शयति परमात्मा सकलप्राणिभ्य उत्तम आत्मा ईश्वर इंद्राद्यसम्भविना अन्तरङ्गबहिरङ्गेण परमैश्वर्येण सदैव सम्पन्नः जिनः सकलकर्मोन्मूलकः ।।।।

इदानीं बहिरात्मनो देहस्यात्मत्वेनाध्यवसाये कारणमुपदर्शयन्नाह वन्द्यएवुं मोटुं पदतेमां जे रहे छे ते स्थानशील परमेष्ठी, परात्मा एटले संसारी जीवोथी उत्कृष्ट आत्माएवा प्रकारना जे शब्दो छे ते परमात्माना वाचक छे,

‘परमात्मा’ इत्यादिथी तेमने ज दर्शावाय छे. परमात्मा एटले सर्व प्राणीओमां उत्तम आत्मा, ईश्वर एटले इन्द्रादिने असंभवित एवा अंतरंगबहिरंग परम ऐश्वर्यथी सदाय संपन्न; जिनसर्वकर्मोनो मूलमांथी नाश करनार(इत्यादि परमात्मानां अनंत नाम छे).

भावार्थ : निर्मळ, केवळ, शुद्ध, विविक्त, प्रभु, अव्यय, परमेष्ठी, परमात्मा, ईश्वर, जिन वगेरे नामो परमात्मावाचक छे.

आ नामो परमात्माना स्वरूपने बतावे छे. ते स्वरूपने ओळखीने पोताना आत्माने पण तेवा स्वरूपे चिंतववो ते परमात्मा थवानो उपाय छे.

आत्मामां शक्तिरूपे रहेला गुणोनुं जीवने भान थाय तेटला माटे भिन्न भिन्न गुणवाचक नामोथी परमात्मानी ओळखाण करावी छे.

आत्मा चैतन्यादि अनंत गुणोनो पिंड छे. आ गुणो भगवानमां पूर्णपणे विकसित थई गया छे, तेथी ते गुणोनी अपेक्षाए तेओ अनेक नामोथी ओळखाय छे.

परमात्माने गुण अपेक्षाए जेटलां नाम लागु पडे छे ते बधांय नामो आ आत्माने पण स्वभाव अपेक्षाए लागु पडे छे, कारण के शक्ति अपेक्षाए बंने आत्माओ समान छे; तेमां कांई फेर नथी. जे परमात्माना गुणोने बराबर ओळखे छे ते पोताना आत्माना स्वरूपने जाण्या वगर रहे नहि. जेटला गुणो परमात्मामां छे तेटला ज गुणो दरेक आत्मामां छे. पोताना त्रिकाली आत्मानी सन्मुख थईने तेमनो पूर्णपणे विकास करीने आ आत्मा पण परमात्मा थई शके छे. ६.

हवे बहिरात्माने देहमां आत्मबुद्धिरूप मिथ्या मान्यता कया कारणे थाय छे ते बतावतां कहे छे १. जे जाणतो अर्हंतने गुण, द्रव्य ने पर्ययपणे,

ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे. (श्री प्रवचनसार, गु. आवृत्तिगाथा ८०)