Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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५८समाधितंत्र

टीकामूढात्मा बहिरात्मा यत्र शरीरपुत्रकलत्रादिषु विश्वस्तोऽवंचकाभिप्रायेण विश्वासं प्रपिपन्नः मदीया एते अहमेतेषामितिअभेदबुद्धिं गत इत्यर्थः ततो नान्यद्भयास्पदं ततः शरीरादेर्नान्यद्भयास्पदं संसारदुःखात्रसस्यास्पदं स्थानम् यतो भीतः यतः परमात्मस्वरूपसंवेदनाद्भीतः त्रस्त ततो नान्यदभयस्थानं ततः स्वसंवेदनात् नान्यत् अभयस्य संसारदुःखत्रासाभावस्य स्थानमास्पदम् सुखास्पदं ततो नान्यदित्यर्थः ।।२९।। (भीतः) ते डरे छे (ततः अन्यत्) तेनाथी बीजुं कांई (आत्मनः) आत्माने (अभयस्थानं न) निर्भयतानुं स्थान नथी.

टीका : मूढात्मा एटले बहिरात्मा ज्यां एटले शरीरपुत्रभार्यादिमां विश्वास करे छेअवंचक अभिप्रायथी (तेओ मने ठगशे नहि एवा अभिप्रायथी) विश्वास पामे छे‘ते मारां छे अने हुं तेमनो छुं’ एवी अभेदबुद्धि करे छेएवो अर्थ छे. तेनाथी बीजुं कोई भयनुं स्थान नथीतेनाथी एटले शरीरादिथी बीजुं भयनुं स्थानअर्थात् संसारदुःखना त्रासनुं स्थान नथी.

जेनाथी भय पामे छेजेनाथी एटले परमात्मस्वरूपना संवेदनथी भय पामे छेत्रासे छे, तेनाथी बीजुं कोई अभयस्थान नथीतेनाथी एटले स्वसंवेदनथी बीजुं अभयनुं संसारदुःखना त्रासना अभावनुं स्थान नथी. तेनाथी बीजुं सुखनुं स्थान नथीएवो अर्थ छे.

भावार्थ : शरीरपुत्रादि जे भयनुं स्थान छेदुःखनुं कारण छे तेमां बहिरात्मा आत्मबुद्धि करी विश्वास करे छे अने परमात्मस्वरूप जे निर्भय स्थान छे, परमशरणरूप छे अने सुखनुं कारण छे, तेना संवेदनने कष्टरूप मानी डरे छे.

अज्ञानी बाह्य शरीरादिमां सुख मानी तेमां निःशंकपणे प्रवर्ते छे, पण वास्तवमां तेओ मृगजळ समान छे. तेमां कांई सुख नथी; ते कोईनुं शरण नथी के कोईनुं विश्वासनुं अभयनुं स्थान नथी. एक शुद्धात्मस्वरूप ज अभयरूप छे, ते ज शरणनुं स्थान छे अने ते ज जगतना जीवोने भवभयमांथी रक्षा करनार परम तत्त्व छे.

विशेष

जेम पित्तज्वरवाळा रोगीने मीठुं दूध पण कडवुं लागे छे, तेम बहिरात्माने परम सुखदायी परमात्मस्वरूपनी भावना पण कष्टदायी लागे छे; तेथी ते आत्मस्वरूपनी भावनाने भावतो नथी पण विषयकषायनी ज भावना भावे छे.

वळी, ‘‘रागादि प्रगट ए दुःख दैन, तिनहीको सेवत गिनत चैन;

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