प्रस्तुत ग्रंथ भाषा–सौष्ठव, पद्य-रचना अने साहित्यगुणोनी द्रष्टिए जैन साहित्यमां एक विशिष्ठ–अनोखुं स्थान प्राप्त करे छे.
आ ग्रन्थना संस्कृत-टीकाकार श्री प्रभाचंद्र पोतानी टीका-प्रशस्तिमां, ग्रन्थना अपरनाम ‘समाधिशतक’नो उल्लेख कर्यो छे. आथी प्रस्तुत ग्रंथ, ‘समाधितंत्र’ अने ‘समाधिशतक’ — ए बंने नामोथी जैन समाजमां प्रसिद्ध छे.
श्री पूज्यपादाचार्य मूलसंघ–अन्तर्गत नन्दिसंघना प्रधान आचार्य हता. तेओ सुप्रसिद्ध, बहु प्रतिभाशाळी, प्रखर तार्किक विद्वान् अने महान तपस्वी हता. समय :
श्रवण बेल्गोलना शिलालेख नं. ४० (१०८)मा उल्लेख छे के तेओ श्री समंतभद्राचार्यनी पछी थया अने तेओ तेमना मतानुयायी हता.
तेमणे पोताना ‘जैनेन्द्र व्याकरण’मां
उल्लेख कर्यो छे. ते पण बतावे छे के श्री समन्तभद्राचार्य तेमना पूर्वागामी हता.
विद्वानोना मत प्रमाणे श्री समन्तभद्राचार्य ई.स. २००मां–बीजी शताब्दिमां थई गया. श्री भट्टाकलंकदेवे (समय–ई.स. ६२० थी ६८०) पोतानी ‘तत्त्वार्थराजवार्तिक’मां अने श्री विद्यानंदे (समय ई.स. ७७५ थी ८००) पोतानी ‘तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक’ टीकामां, श्री पूज्यपाद रचित ‘सर्वार्थसिद्धि’नां वाक्योनो उपयोग अने अनुसरण कर्युं छे. आथी अनुमान थाय छे के श्री पूज्यपाद स्वामी श्री भट्टाकलंकदेवनी पहेलां अर्थात् ई.स. ६२० पहेलां थई गया होवा जोईए.
आ बंने आधारोथी साबित थाय छे के तेओ ई.स. २०० अने ई.स. ६२०नी वच्चेना काळमां थई गया.
शिलालेखो अने उपलब्ध जैन साहित्य उपरथी विद्वानोए नक्की कर्युं छे के आ सुप्रसिद्ध आचार्य ई.स. पांचमी शताब्दिमां अने विक्रमनी छठ्ठी शताब्दिमां थई गया. निवासस्थान अने माता–पितादि :
तेओ कर्णाटक देशना निवासी हता. कन्नड भाषामां लखेला ‘पूज्यपादचरिते’ तथा ‘राजावलीकथे’ नामना ग्रंथोमां तेमना पितानुं नाम ‘माधवभट्ट’ अने मातानुं नाम ‘श्रीदेवी’ आप्युं छे अने लख्युं छे के तेओ ब्राह्मणकुलमां उत्पन्न थया हता.
श्री देवसेनाचार्यकृत ‘दर्शनसार’मां लख्युं छे के तेमना एक वज्रनंदी नामना शिष्ये वि.सं. ५२६मा द्राविड संघनी स्थापना करी.