श्री पूज्यपाद आचार्ये आ ग्रन्थमां जीवनी त्रण अवस्थाओ–बहिरात्मा, अंतरात्मा अने परमात्मानुं सुंदर रीते निरुपण कर्युं छे अने बहिरात्मावस्था छोडी अन्तरात्मावस्था द्वारा परमात्मपदनी प्राप्ति केवी रीते थाय तेनो उपाय सूचव्यो छे. स्व-परना भेदविज्ञान विना अन्तरात्मपणुं प्रगट थई शके नहीं, तेथी आचार्यदेवे आ ग्रन्थमां भेद-विज्ञाननुं महत्व विशेषपणे समजाव्युं छे.
आचार्यदेवे आध्यात्मिक रससागरने आ नाना ग्रन्थ–गागरमां अति कलापूर्ण कौशल्यथी भरी दीधो छे. तेमां भेदज्ञाननो ध्वनि प्रत्येक श्लोकमां गुंजी रह्यो छे. भेदज्ञाननी भावना अने तेना अभ्यास माटे ते पूरती सामग्री पूरी पाडे छे अने अभ्यासीने आगळ वधवा माटे सारी प्रेरणा आपे छे. आध्यात्मिक भावनानो आ एक अत्युत्तम ग्रन्थ छे.
परमात्मपदनी प्राप्ति भेदविज्ञान द्वारा ज थई शके, बीजी कोई रीते थई शके नहि,– ए बाबत उपर ग्रन्थकारे आगम, युक्ति अने जात अनुभवद्वारा पोतानी अनोखी, रोचक, हृदयग्राही, सरळ शैलीमां सुंदर रीते प्रकाश पाडयो छे.
आ ग्रन्थना अभ्यासथी चित्त अति प्रफुल्लित बने छे अने अनादिकाळथी अज्ञानवश थती भूलोनी परंपरानो पदे पदे बोध थाय छे. भेदविज्ञान द्वारा ते भूलो टाळी परमपदनी प्राप्ति केम करवी तेनी मार्गदर्शनपूर्वक प्रेरणा, आचार्ये सचोट भाववाही शब्दोमां करी छे. आ ग्रन्थना भावपूर्वक वांचन, विचार अने मननथी भवदुःखथी संतप्त थयेला जीवोने आत्मशांति थया वगर रहेशे नहि. ग्रन्थनी ए एक अद्भुत खूबी छे.
आचार्यदेवे आ ग्रन्थनी रचना मोक्षमार्गना अभिलाषी जीवोने लक्षमां राखीने करी छे–ए वात श्लोक (३) उपरथी जणाई आवे छे.
अंतिम श्लोक (१०५)मां ग्रन्थनो उपसंहार करतां आचार्यदेवे ग्रन्थना नाम– ‘समाधितंत्र’नो निर्देश करी तेनी उपयोगिता दर्शावतां कह्युं छे के आ मोक्षमार्गभूत ग्रन्थनो सारी रीते अभ्यास करी तथा तेने अनुभवमां उतारी, परमात्मामां निष्ठावान जीव परमपदनी- परमसुखनी प्राप्ति करी शके छे.
आ ग्रन्थमां आत्म-विषयने स्पष्ट करवा माटे एकार्थवाचक भिन्न भिन्न शब्दोनो सुंदर शैलीमां जे प्रयोग करवामां आव्यो छे ते जोतां, साहित्यद्रष्टिए पण ग्रन्थनी महत्ता विशेष प्रतिभासे छे. रचनाचातुर्य अने शब्दप्रयोगनुं कौशल्यादि कर्तानुं संस्कृतभाषानुं अगाध ज्ञान प्रगट करे छे.