Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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(१३)

परिणमवा लागे छे; आ सिवाय बीजो कोई उपाय नथी. माटे दरेक जीवे वस्तुना यथार्थ स्वरूपनी ओळखाण करवानो प्रयत्न सदा कर्तव्य छे.

यथार्थ आत्मस्वरूपनी ओळखाण कराववी ते आ शास्त्रनो मुख्य उद्देश छे. ते उद्देशने पहोंची वळवा आ शास्त्रमां आचार्यभगवाने अनेक विषयोनुं निरूपण कर्युं छे. जीव अने पुद्गलने निमित्तनैमित्तिकपणुं होवा छतां बन्नेनुं तद्दन स्वतंत्र परिणमन, ज्ञानीने रागद्वेषनुं अकर्ता- अभोक्तापणुं, अज्ञानीने रागद्वेषनुं कर्ता-भोक्तापणुं, सांख्यदर्शननी एकांतिकता, गुणस्थान- आरोहणमां भावनुं अने द्रव्यनुं निमित्तनैमित्तिकपणुं, विकाररूपे परिणमवामां अज्ञानीनो पोतानो ज दोष, मिथ्यात्वादिनुं जडपणुं तेम ज चेतनपणुं, पुण्य अने पाप बन्नेनुं बंधस्वरूपपणुं, मोक्षमार्गमां चरणानुयोगनुं स्थान

इत्यादि अनेक विषयो आ शास्त्रमां प्ररूप्या छे. ए बधानो

हेतु भव्य जीवोने यथार्थ मोक्षमार्ग बताववानो छे. आ शास्त्रनी महत्ता जोईने उल्लास आवी जतां श्री जयसेन आचार्यवर कहे छे के ‘जयवंत वर्तो ते पद्मनंदी आचार्य अर्थात् कुंदकुंद आचार्य के जेमणे महातत्त्वथी भरेलो प्राभृतरूपी पर्वत बुद्धिरूपी शिर पर उपाडीने भव्य जीवोने समर्पित कर्यो छे.’ खरेखर आ काळे आ शास्त्र मुमुक्षु भव्यजीवोनो परम आधार छे. आवा दुःषम काळमां पण आवुं अद्भुत अनन्य-शरणभूत शास्त्रतीर्थंकरदेवना मुखमांथी नीकळेलुं अमृतविद्यमान छे ते आपणुं महा सद्भाग्य छे. निश्चय-व्यवहारनी संधिपूर्वक यथार्थ मोक्षमार्गनी आवी संकलनाबद्ध प्ररूपणा बीजा कोई पण ग्रंथमां नथी. परम पूज्य सद्गुरुदेवना शब्दोमां कहुं तो ‘आ समयसार शास्त्र आगमोनुं पण आगम छे; लाखो शास्त्रोनो निचोड एमां रहेलो छे; जैन शासननो ए स्तंभ छे; साधकनी ए कामधेनु छे, कल्पवृक्ष छे. चौद पूर्वनुं रहस्य एमां समायेलुं छे. एनी दरेक गाथा छठ्ठा-सातमा गुणस्थाने झूलता महामुनिना आत्म-अनुभवमांथी नीकळेली छे. आ शास्त्रना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव महाविदेह क्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधरभगवानना समवसरणमां गया हता अने त्यां तेओ आठ दिवस रह्या हता ए वात यथातथ्य छे, अक्षरशः सत्य छे, प्रमाणसिद्ध छे, तेमां लेशमात्र शंकाने स्थान नथी. ते परम उपकारी आचार्यभगवाने रचेला आ समयसारमां तीर्थंकरदेवना निरक्षर ॐकारध्वनिमांथी नीकळेलो ज उपदेश छे.’

आ शास्त्रमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनी प्राकृत गाथाओ पर आत्मख्याति नामनी संस्कृत टीका लखनार (लगभग विक्रम संवतना १०मा सैकामां थई गयेला) श्रीमान अमृतचंद्राचार्यदेव छे. जेम आ शास्त्रना मूळ कर्ता अलौकिक पुरुष छे तेम तेना टीकाकार पण महासमर्थ आचार्य छे. आत्मख्याति जेवी टीका हजु सुधी बीजा कोई जैन ग्रंथनी लखायेली नथी. तेमणे पंचास्तिकाय तथा प्रवचनसारनी पण टीका लखी छे अने तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि स्वतंत्र ग्रंथो पण लख्या छे. तेमनी एक आ आत्मख्याति टीका वांचनारने ज तेमनी अध्यात्मरसिकता, आत्मानुभव, प्रखर विद्वत्ता, वस्तुस्वरूपने न्यायथी सिद्ध करवानी तेमनी असाधारण शक्ति अने उत्तम काव्यशक्तिनो पूरो ख्याल आवी जशे. अति संक्षेपमां गंभीर रहस्योने गोठवी देवानी तेमनी अजब शक्ति विद्वानोने आश्चर्यचकित करे छे. तेमनी आ दैवी टीका श्रुतकेवळीनां वचनो जेवी छे.