आपता ते मुरब्बी श्री वकील रामजीभाई माणेकचंद दोशीनो हुं हृदयपूर्वक आभार मानुं छुं. ज्यारे ज्यारे भाषांतर करतां कोई अर्थ बराबर न बेसता होय त्यारे त्यारे हुं (अमृतलालभाई मारफत) पत्र द्वारा पं
दरेक वखते विनासंकोचे प्रश्नोना उत्तरो आप्या छे. तेमनी सलाह मने भाषांतरमां घणी उपयोगी थई छे. आ रीते तेमणे करेली मदद माटे हुं तेमनो अंतःकरणपूर्वक आभार मानुं छुं. आ सिवाय जे जे भाईओनी आ अनुवादमां सहाय छे ते सर्वनो हुं आभारी छुं.
आ अनुवाद भव्य जीवोने जिनदेवे प्ररूपेलो आत्मशांतिनो यथार्थ मार्ग बतावो, ए मारी अंतरनी भावना छे. श्री अमृतचंद्राचार्यदेवना शब्दोमां ‘आ शास्त्र आनंदमय विज्ञानघन आत्माने प्रत्यक्ष देखाडनारुं अद्वितीय जगतचक्षु छे.’ जे कोई तेना परम गंभीर अने सूक्ष्म भावोने हृदयगत करशे तेने ते जगतचक्षु आत्मानुं प्रत्यक्ष दर्शन करावशे. ज्यां सुधी ते भावो यथार्थ रीते हृदयगत न थाय त्यां सुधी रातदिवस ते ज मंथन, ते ज पुरुषार्थ कर्तव्य छे. श्री जयसेनाचार्यदेवना शब्दोमां समयसारना अभ्यास आदिनुं फळ कहीने आ उपोद्घात पूर्ण करुं छुंः — ‘स्वरूपरसिक पुरुषोए वर्णवेला आ प्राभृतनो जे कोई आदरथी अभ्यास करशे, श्रवण करशे, पठन करशे, प्रसिद्धि करशे, ते पुरुष अविनाशी स्वरूपमय, अनेक प्रकारनी विचित्रतावाळा, केवळ एक ज्ञानात्मक भावने पामीने अग्र पदने विषे मुक्तिललनामां लीन थशे.’ दीपोत्सवी, वि. सं. १९९६ — हिंमतलाल जेठालाल शाह
प्रथम आवृत्तिमां श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेवकृत संस्कृत टीका छपाववामां आवी नहोती; आ द्वितीय आवृत्तिमां ते उमेरवामां आवी छे. आ संस्कृत टीका वि. सं. १९७५मां श्री परमश्रुतप्रभावक मंडळ द्वारा प्रकाशित समयसार प्रमाणे छपाववामां आवी छे; तेमां (वि. सं. १९७५नी मुद्रित टीकामां) क्यांक अशुद्धिओ जणाई ते घणीखरी (हस्तलिखित प्रतोना आधारे) सुधारी लेवामां आवी छे, तेम ज क्यांक मुद्रित पाठो करतां हस्तलिखित प्रतोना पाठांतरो विशेष बंधबेसता लाग्या त्यां हस्तलिखित प्रतो प्रमाणे पाठ लेवामां आव्या छे.
गुजराती अनुवाद प्रथम आवृत्ति प्रमाणे राखवामां आव्यो छे; मात्र कोईक जूज स्थळोए अल्प फेरफार कर्यो छे.
जे जे भाईओए काममां मदद करी छे ते सौनो ॠणी छुं. फागण सुद ११ हिं. जे. शाह वि. सं. २००९