Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Punya-Pap Adhikar Kalash: 100.

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-३-
पुण्य-पाप अधिकार
अथैकमेव कर्म द्विपात्रीभूय पुण्यपापरूपेण प्रविशति
(द्रुतविलम्बित)
तदथ कर्म शुभाशुभभेदतो
द्वितयतां गतमैक्यमुपानयन्
ग्लपितनिर्भरमोहरजा अयं
स्वयमुदेत्यवबोधसुधाप्लवः
।।१००।।
पुण्य-पाप बन्ने करम, बंधरूप र्दु मानी;
शुद्धात्मा जेणे लह्यो, नमुं चरण हित जाणी.

प्रथम टीकाकार कहे छे के ‘हवे एक ज कर्म बे पात्ररूप थईने पुण्य-पापरूपे प्रवेश करे छे’.

जेम नृत्यना अखाडामां एक ज पुरुष पोताने बे रूपे बतावी नाचतो होय तेने यथार्थ जाणनार ओळखी ले छे अने एक ज जाणे छे, तेवी रीते जोके कर्म एक ज छे तोपण पुण्य-पापना भेदे बे प्रकारनां रूप करी नाचे छे तेने, सम्यग्द्रष्टिनुं ज्ञान के जे यथार्थ छे ते एकरूप जाणी ले छे. ते ज्ञानना महिमानुं काव्य आ अधिकारनी शरूआतमां टीकाकार आचार्य कहे छेः

श्लोकार्थः[ अथ ] हवे (कर्ताकर्म अधिकार पछी), [ शुभ-अशुभ-भेदतः ] शुभ अने अशुभना भेदने लीधे [ द्वितयतां गतम् तत् कर्म ] बे-पणाने पामेला ते कर्मने [ ऐक्यम् उपानयन् ] एकरूप करतो, [ ग्लपित-निर्भर-मोहरजा ] जेणे अत्यंत मोहरजने दूर करी छे एवो [ अयं अवबोध-सुधाप्लवः ] आ (प्रत्यक्षअनुभवगोचर) ज्ञान-सुधांशु (सम्यग्ज्ञानरूपी चंद्रमा) [ स्वयम् ] स्वयं [ उदेति ] उदय पामे छे.