Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

सम्यक्त्वस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबन्धकं किल मिथ्यात्वं, तत्तु स्वयं कर्मैव, तदुदयादेव ज्ञानस्य मिथ्यादृष्टित्वम् ज्ञानस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबन्धकं किलाज्ञानं, तत्तु स्वयं कर्मैव, तदुदयादेव ज्ञानस्याज्ञानित्वम् चारित्रस्य मोक्षहेतोः स्वभावस्य प्रतिबन्धक : किल कषायः, स तु स्वयं कर्मैव, तदुदयादेव ज्ञानस्याचारित्रत्वम् अतः स्वयं मोक्षहेतुतिरोधायि- भावत्वात्कर्म प्रतिषिद्धम् [ मिथ्यादृष्टिः ] मिथ्याद्रष्टि थाय छे [ इति ज्ञातव्यः ] एम जाणवुं. [ ज्ञानस्य प्रतिनिबद्धं ] ज्ञानने


रोकनारुं [ अज्ञानं ] अज्ञान छे एम [ जिनवरैः ] जिनवरोए [ परिकथितम् ] कह्युं छे; [ तस्य उदयेन ] तेना उदयथी [ जीवः ] जीव [ अज्ञानी ] अज्ञानी [ भवति ] थाय छे [ ज्ञातव्यः ] एम जाणवुं. [ चारित्रप्रतिनिबद्धः ] चारित्रने रोकनार [ कषायः ] कषाय छे एम [ जिनवरैः ] जिनवरोए [ परिकथितः ] कह्युं छे; [ तस्य उदयेन ] तेना उदयथी [ जीवः ] जीव [ अचारित्रः ] अचारित्री [ भवति ] थाय छे [ ज्ञातव्यः ] एम जाणवुं.

टीकाःसम्यक्त्व के जे मोक्षना कारणरूप स्वभाव छे तेने रोकनारुं मिथ्यात्व छे; ते (मिथ्यात्व) तो पोते कर्म ज छे, तेना उदयथी ज ज्ञानने मिथ्याद्रष्टिपणुं थाय छे. ज्ञान के जे मोक्षना कारणरूप स्वभाव छे तेने रोकनारुं अज्ञान छे; ते तो पोते कर्म ज छे, तेना उदयथी ज ज्ञानने अज्ञानीपणुं थाय छे. चारित्र के जे मोक्षना कारणरूप स्वभाव छे तेने रोकनार कषाय छे; ते तो पोते कर्म ज छे, तेना उदयथी ज ज्ञानने अचारित्रीपणुं थाय छे. माटे, (कर्म) पोते मोक्षना कारणना तिरोधायिभावस्वरूप होवाथी कर्मने निषेधवामां आव्युं छे.

भावार्थःसम्यग्दर्शन, ज्ञान अने चारित्र मोक्षना कारणरूप भावो छे तेमनाथी विपरीत मिथ्यात्वादि भावो छे; कर्म ते मिथ्यात्वादि भावो-स्वरूप छे. आ रीते कर्म मोक्षना कारणभूत भावोथी विपरीत भावो-स्वरूप छे.

पहेलां त्रण गाथाओमां कह्युं हतुं के कर्म मोक्षना कारणरूप भावोनुंसम्यक्त्वादिनुं घातक छे. पछीनी एक गाथामां एम कह्युं के कर्म पोते ज बंधस्वरूप छे. आ छेल्ली त्रण गाथाओमां कह्युं के कर्म मोक्षना कारणरूप भावोथी विरोधी भावोस्वरूप छेमिथ्यात्वादिस्वरूप छे. आ प्रमाणे एम बताव्युं के कर्म मोक्षना कारणनुं घातक छे, बंधस्वरूप छे अने बंधना कारणस्वरूप छे, माटे निषिद्ध छे.

अशुभ कर्म तो मोक्षनुं कारण छे ज नहि, बाधक ज छे, तेथी निषिद्ध ज छे; परंतु शुभ कर्म पण कर्मसामान्यमां आवी जतुं होवाथी ते पण बाधक ज छे तेथी निषिद्ध ज छे एम जाणवुं.

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