Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 109-110.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

पुण्य-पाप अधिकार
२५७
(शार्दूलविक्रीडित)
संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि तत्कर्मैव मोक्षार्थिना
संन्यस्ते सति तत्र का किल कथा पुण्यस्य पापस्य वा
सम्यक्त्वादिनिजस्वभावभवनान्मोक्षस्य हेतुर्भवन्-
नैष्कर्म्यप्रतिबद्धमुद्धतरसं ज्ञानं स्वयं धावति
।।१०९।।
(शार्दूलविक्रीडित)
यावत्पाकमुपैति कर्मविरतिर्ज्ञानस्य सम्यङ् न सा
कर्मज्ञानसमुच्चयोऽपि विहितस्तावन्न काचित्क्षतिः
किन्त्वत्रापि समुल्लसत्यवशतो यत्कर्म बन्धाय तन्-
मोक्षाय स्थितमेकमेव परमं ज्ञानं विमुक्तं स्वतः
।।११०।।
हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः[ मोक्षार्थिना इदं समस्तम् अपि तत् कर्म एव संन्यस्तव्यम् ] मोक्षार्थीए आ सघळुंय कर्ममात्र त्यागवा योग्य छे. [ संन्यस्ते सति तत्र पुण्यस्य पापस्य वा किल का कथा ] ज्यां समस्त कर्म छोडवामां आवे छे त्यां पछी पुण्य के पापनी शी वात? (कर्ममात्र त्याज्य छे त्यां पुण्य सारुं अने पाप खराबएवी वातने क्यां अवकाश छे? कर्मसामान्यमां बन्ने आवी गयां.) [ सम्यक्त्वादिनिजस्वभावभवनात् मोक्षस्य हेतुः भवन् ] समस्त कर्मनो त्याग थतां, सम्यक्त्वादि जे पोतानो स्वभाव ते-रूपे थवाथीपरिणमवाथी मोक्षना कारणभूत थतुं, [ नैष्कर्म्यप्रतिबद्धम् उद्धतरसं ] निष्कर्म अवस्था साथे जेनो उद्धत (उत्कट) रस प्रतिबद्ध अर्थात् संकळायेलो छे एवुं [ ज्ञानं ] ज्ञान [ स्वयं ] आपोआप [ धावति ] दोड्युं आवे छे.

भावार्थःकर्मने दूर करीने, पोताना सम्यक्त्वादिस्वभावरूपे परिणमवाथी मोक्षना कारणरूप थतुं ज्ञान आपोआप प्रगट थाय छे, त्यां पछी तेने कोण रोकी शके? १०९.

हवे आशंका ऊपजे छे केअविरत सम्यग्द्रष्टि वगेरेने ज्यां सुधी कर्मनो उदय रहे त्यां सुधी ज्ञान मोक्षनुं कारण केम थई शके? वळी कर्म अने ज्ञान बन्ने (कर्मना निमित्ते थती शुभाशुभ परिणति अने ज्ञानपरिणति बन्ने) साथे केम रही शके? ते आशंकाना समाधाननुं काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः[ यावत् ] ज्यां सुधी [ ज्ञानस्य कर्मविरतिः ] ज्ञाननी कर्मविरति [ सा सम्यक् पाकम् न उपैति ] बराबर परिपूर्णता पामती नथी [ तावत् ] त्यां सुधी [ कर्मज्ञानसमुच्चयः अपि विहितः, न काचित् क्षतिः ] कर्म अने ज्ञाननुं एकठापणुं शास्त्रमां कह्युं छे; तेमना एकठा रहेवामां

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