Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 166.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

आस्रव अधिकार
२६३

मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगाः पुद्गलपरिणामाः, ज्ञानावरणादिपुद्गलकर्मास्रवणनिमित्तत्वात्, किलास्रवाः तेषां तु तदास्रवणनिमित्तत्वनिमित्तं अज्ञानमया आत्मपरिणामा रागद्वेषमोहाः तत आस्रवणनिमित्तत्वनिमित्तत्वात् रागद्वेषमोहा एवास्रवाः ते चाज्ञानिन एव भवन्तीति अर्थादेवापद्यते

अथ ज्ञानिनस्तदभावं दर्शयति
णत्थि दु आसवबंधो सम्मादिट्ठिस्स आसवणिरोहो
संते पुव्वणिबद्धे जाणदि सो ते अबंधंतो ।।१६६।।
नास्ति त्वास्रवबन्धः सम्यग्दृष्टेरास्रवनिरोधः
सन्ति पूर्वनिबद्धानि जानाति स तान्यबध्नन् ।।१६६।।

मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योगए पुद्गलपरिणामो, ज्ञानावरणादि पुद्गल- कर्मना आस्रवणनां (आववानां) निमित्त होवाथी, खरेखर आस्रवो छे; अने तेमने (मिथ्यात्वादि पुद्गलपरिणामोने) कर्म-आस्रवणना निमित्तपणानुं निमित्त रागद्वेषमोह छेके जेओ अज्ञानमय आत्मपरिणामो छे. माटे (मिथ्यात्वादि पुद्गलपरिणामोने) आस्रवणना निमित्तपणाना निमित्तभूत होवाथी राग-द्वेष-मोह ज आस्रवो छे. अने ते तो (रागद्वेषमोह तो) अज्ञानीने ज होय छे एम अर्थमांथी ज नीकळे छे. (गाथामां स्पष्ट शब्दोमां कह्युं नथी तोपण गाथाना ज अर्थमांथी ए आशय नीकळे छे.)

भावार्थःज्ञानावरणादि कर्माेना आस्रवणनुं (आगमननुं) कारण तो मिथ्यात्वादि- कर्मना उदयरूप पुद्गलना परिणाम छे, माटे ते खरेखर आस्रवो छे. वळी तेमने कर्म- आस्रवणना निमित्तभूत थवानुं निमित्त जीवना रागद्वेषमोहरूप (अज्ञानमय) परिणाम छे माटे रागद्वेषमोह ज आस्रवो छे. ते रागद्वेषमोहने चिद्विकार पण कहेवामां आवे छे. ते रागद्वेषमोह जीवने अज्ञान-अवस्थामां ज होय छे. मिथ्यात्व सहित ज्ञान ज अज्ञान कहेवाय छे. माटे मिथ्याद्रष्टिने अर्थात् अज्ञानीने ज रागद्वेषमोहरूपी आस्रवो होय छे.

हवे ज्ञानीने आस्रवोनो (भावास्रवोनो) अभाव छे एम बतावे छेः

सुद्रष्टिने आस्रवनिमित्त न बंध, आस्रवरोध छे;
नहि बांधतो, जाणे ज पूर्वनिबद्ध जे सत्ता विषे. १६६.

गाथार्थः[ सम्यग्दृष्टेः तु ] सम्यग्द्रष्टिने [ आस्रवबन्धः ] आस्रव जेनुं निमित्त छे एवो