Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 167.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

आस्रव अधिकार
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अथ रागद्वेषमोहानामास्रवत्वं नियमयति
भावो रागादिजुदो जीवेण कदो दु बंधगो भणिदो
रागादिविप्पमुक्को अबंधगो जाणगो णवरि ।।१६७।।
भावो रागादियुतो जीवेन कृतस्तु बन्धको भणितः
रागादिविप्रमुक्तोऽबन्धको ज्ञायकः केवलम् ।।१६७।।

इह खलु रागद्वेषमोहसम्पर्कजोऽज्ञानमय एव भावः, अयस्कान्तोपलसम्पर्कज इव कालायससूचीं, कर्म कर्तुमात्मानं चोदयति; तद्विवेकजस्तु ज्ञानमयः, अयस्कान्तोपलविवेकज इव कालायससूचीं, अकर्मकरणोत्सुकमात्मानं स्वभावेनैव स्थापयति ततो रागादिसङ्कीर्णोऽज्ञानमय एव कर्तृत्वे चोदकत्वाद्बन्धकः तदसङ्कीर्णस्तु स्वभावोद्भासकत्वात्केवलं ज्ञायक एव, न मनागपि बन्धकः

हवे, रागद्वेषमोह ज आस्रव छे एवो नियम करे छेः

रागादियुत जे भाव जीवकृत तेहने बंधक कह्यो;
रागादिथी प्रविमुक्त ते बंधक नहीं, ज्ञायक नर्यो. १६७.

गाथार्थः[ जीवेन कृतः ] जीवे करेलो [ रागादियुतः ] रागादियुक्त [ भावः तु ] भाव [ बन्धकः भणितः ] बंधक (अर्थात् नवां कर्मनो बंध करनार) कहेवामां आव्यो छे. [ रागादिविप्रमुक्तः ] रागादिथी विमुक्त भाव [ अबन्धकः ] बंधक नथी, [ केवलम् ज्ञायक : ] केवळ ज्ञायक ज छे.

टीकाःखरेखर, जेम लोहचुंबक-पाषाण साथे संसर्गथी (लोखंडनी सोयमां) उत्पन्न थयेलो भाव लोखंडनी सोयने (गति करवाने) प्रेरे छे तेम रागद्वेषमोह साथे भेळसेळपणाथी (आत्मामां) उत्पन्न थयेलो अज्ञानमय भाव ज आत्माने कर्म करवाने प्रेरे छे, अने जेम लोहचुंबक-पाषाण साथे असंसर्गथी (लोखंडनी सोयमां) उत्पन्न थयेलो भाव लोखंडनी सोयने (गति नहि करवारूप) स्वभावमां ज स्थापे छे तेम रागद्वेषमोह साथे अभेळसेळपणाथी (आत्मामां) उत्पन्न थयेलो ज्ञानमय भाव, जेने कर्म करवानी उत्सुकता नथी (अर्थात् कर्म करवानो जेनो स्वभाव नथी) एवा आत्माने स्वभावमां ज स्थापे छे; माटे रागादि साथे मिश्रित (मळेलो) अज्ञानमय भाव ज कर्तृत्वमां प्रेरतो होवाथी बंधक छे अने २ागादि साथे अमिश्रित भाव स्वभावनो प्रकाशक (प्रगट करनार) होवाथी केवळ ज्ञायक ज छे, जरा पण बंधक नथी.

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