कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञानी हि तावदास्रवभावभावनाभिप्रायाभावान्निरास्रव एव । यत्तु तस्यापि द्रव्यप्रत्ययाः प्रतिसमयमनेक प्रकारं पुद्गलकर्म बध्नन्ति, तत्र ज्ञानगुणपरिणाम एव हेतुः ।
भावार्थः — रागद्वेषमोहस्वरूप भावास्रवनो ज्ञानीने अभाव थयो छे अने द्रव्यास्रवथी तो ते सदाय स्वयमेव भिन्न ज छे कारण के द्रव्यास्रव पुद्गलपरिणामस्वरूप छे अने ज्ञानी चैतन्यस्वरूप छे. आ रीते ज्ञानीने भावास्रव तेम ज द्रव्यास्रवनो अभाव होवाथी ते निरास्रव ज छे. ११५.
हवे पूछे छे के ज्ञानी निरास्रव कई रीते छे? तेना उत्तरनी गाथा कहे छेः —
गाथार्थः — [ यस्मात् ] कारण के [ चतुर्विधाः ] चार प्रकारना द्रव्यास्रवो [ ज्ञानदर्शन- गुणाभ्याम् ] ज्ञानदर्शनगुणो वडे [ समये समये ] समये समये [ अनेकभेदं ] अनेक प्रकारनुं कर्म [ बध्नन्ति ] बांधे छे [ तेन ] तेथी [ ज्ञानी तु ] ज्ञानी तो [ अबन्धः इति ] अबंध छे.
टीकाः — प्रथम, ज्ञानी तो आस्रवभावनी भावनाना अभिप्रायना अभावने लीधे निरास्रव ज छे; परंतु जे तेने पण द्रव्यप्रत्ययो समय समय प्रति अनेक प्रकारनुं पुद्गलकर्म बांधे छे, त्यां ज्ञानगुणनुं परिणमन ज कारण छे.
हवे वळी पूछे छे के ज्ञानगुणनुं परिणमन बंधनुं कारण कई रीते छे? तेना उत्तरनी गाथा कहे छेः —