Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 115.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

ये खलु पूर्वमज्ञानेन बद्धा मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगा द्रव्यास्रवभूताः प्रत्ययाः, ते ज्ञानिनो द्रव्यान्तरभूता अचेतनपुद्गलपरिणामत्वात् पृथ्वीपिण्डसमानाः ते तु सर्वेऽपि- स्वभावत एव कार्माणशरीरेणैव सम्बद्धाः, न तु जीवेन अतः स्वभावसिद्ध एव द्रव्यास्रवाभावो ज्ञानिनः

(उपजाति)
भावास्रवाभावमयं प्रपन्नो
द्रव्यास्रवेभ्यः स्वत एव भिन्नः
ज्ञानी सदा ज्ञानमयैकभावो
निरास्रवो ज्ञायक एक एव
।।११५।।

समस्त [ प्रत्ययाः ] प्रत्ययो [ पृथ्वीपिण्डसमानाः ] माटीनां ढेफां समान छे [ तु ] अने [ ते ] ते [ कर्मशरीरेण ] (मात्र) कार्मण शरीर साथे [ बद्धाः ] बंधायेल छे.

टीकाःजे पूर्वे अज्ञान वडे बंधायेला मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योगरूप द्रव्यास्रवभूत प्रत्ययो छे, ते अन्यद्रव्यस्वरूप प्रत्ययो अचेतन पुद्गलपरिणामवाळा होवाथी ज्ञानीने माटीनां ढेफां समान छे (जेवा माटी वगेरे पुद्गलस्कंधो छे तेवा ज ए प्रत्ययो छे); ते तो बधाय, स्वभावथी ज मात्र कार्मण शरीर साथे बंधायेला छेसंबंधवाळा छे, जीव साथे नहि; माटे ज्ञानीने द्रव्यास्रवनो अभाव स्वभावथी ज सिद्ध छे.

भावार्थःज्ञानीने जे पूर्वे अज्ञानदशामां बंधायेला मिथ्यात्वादि द्रव्यास्रवभूत प्रत्ययो छे ते तो माटीनां ढेफांनी माफक पुद्गलमय छे तेथी तेओ स्वभावथी ज अमूर्तिक चैतन्यस्वरूप जीवथी भिन्न छे. तेमनो बंध अथवा संबंध पुद्गलमय कार्मण शरीर साथे ज छे, चिन्मय जीव साथे नथी. माटे ज्ञानीने द्रव्यास्रवनो अभाव तो स्वभावथी ज छे. (वळी ज्ञानीने भावास्रवनो अभाव होवाथी, द्रव्य आस्रवो नवां कर्मना आस्रवणनुं कारण थता नथी तेथी ते द्रष्टिए पण ज्ञानीने द्रव्य आस्रवनो अभाव छे.)

हवे आ अर्थनुं कळशरूप काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः[ भावास्रव-अभावम् प्रपन्नः ] भावास्रवोना अभावने पामेलो अने [ द्रव्यास्रवेभ्यः स्वतः एव भिन्नः ] द्रव्यास्रवोथी तो स्वभावथी ज भिन्न एवो [ अयं ज्ञानी ] ज्ञानी[ सदा ज्ञानमय-एक-भावः ] के जे सदा एक ज्ञानमय भाववाळो छे ते[ निरास्रवः ] निरास्रव ज छे, [ एकः ज्ञायकः एव ] मात्र एक ज्ञायक ज छे.

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