Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 298 of 642
PDF/HTML Page 329 of 673

 

समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

सन्ति तावज्जीवस्य आत्मकर्मैकत्वाध्यासमूलानि मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगलक्षणानि अध्यवसानानि तानि रागद्वेषमोहलक्षणस्यास्रवभावस्य हेतवः आस्रवभावः कर्महेतुः कर्म नोकर्महेतुः नोकर्म संसारहेतुः इति ततो नित्यमेवायमात्मा आत्मकर्मणोरेकत्वाध्यासेन मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगमयमात्मानमध्यवस्यति ततो रागद्वेषमोहरूपमास्रवभावं भावयति ततः कर्म आस्रवति ततो नोकर्म भवति ततः संसारः प्रभवति यदा तु आत्मकर्मणोर्भेदविज्ञानेन शुद्धचैतन्यचमत्कारमात्रमात्मानं उपलभते तदा मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगलक्षणानां अध्यवसानानां आस्रवभावहेतूनां भवत्यभावः तदभावे रागद्वेषमोहरूपास्रवभावस्य भवत्यभावः तदभावे भवति कर्माभावः तदभावेऽपि भवति नोकर्माभावः तदभावेऽपि भवति संसाराभावः इत्येष संवरक्रमः

टीकाःप्रथम तो जीवने, आत्मा अने कर्मना एकपणानो अध्यास (अभिप्राय) जेमनुं मूळ छे एवां मिथ्यात्व-अज्ञान-अविरति-योगस्वरूप अध्यवसानो विद्यमान छे, तेओ रागद्वेषमोहस्वरूप आस्रवभावनां कारण छे; आस्रवभाव कर्मनुं कारण छे; कर्म नोकर्मनुं कारण छे; अने नोकर्म संसारनुं कारण छे. माटेसदाय आ आत्मा, आत्मा ने कर्मना एकपणाना अध्यासथी मिथ्यात्व-अज्ञान-अविरति-योगमय आत्माने माने छे (अर्थात् मिथ्यात्वादि अध्यवसान करे छे); तेथी रागद्वेषमोहरूप आस्रवभावने भावे छे, तेथी कर्म आस्रवे छे; तेथी नोकर्म थाय छे; अने तेथी संसार उत्पन्न थाय छे. परंतु ज्यारे (ते आत्मा), आत्मा ने कर्मना भेदविज्ञान वडे शुद्ध चैतन्यचमत्कारमात्र आत्माने उपलब्ध करे छेअनुभवे छे त्यारे मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति अने योगस्वरूप अध्यवसानो के जे आस्रवभावनां कारणो छे तेमनो अभाव थाय छे; अध्यवसानोनो अभाव थतां रागद्वेषमोहरूप आस्रवभावनो अभाव थाय छे; आस्रवभावनो अभाव थतां कर्मनो अभाव थाय छे; कर्मनो अभाव थतां नोकर्मनो अभाव थाय छे; अने नोकर्मनो अभाव थतां संसारनो अभाव थाय छे. आ प्रमाणे आ संवरनो क्रम छे.

भावार्थःजीवने ज्यां सुधी आत्मा ने कर्मना एकपणानो आशय छेभेदविज्ञान नथी त्यां सुधी मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति अने योगस्वरूप अध्यवसानो वर्ते छे, अध्यवसानथी रागद्वेषमोहरूप आस्रवभाव थाय छे, आस्रवभावथी कर्म बंधाय छे, कर्मथी शरीरादि नोकर्म उत्पन्न थाय छे अने नोकर्मथी संसार छे. परंतु ज्यारे तेने आत्मा ने कर्मनुं भेदविज्ञान थाय छे त्यारे शुद्ध आत्मानी उपलब्धि थवाथी मिथ्यात्वादि अध्यवसानोनो अभाव थाय छे, अध्यवसानना अभावथी रागद्वेषमोहरूप आस्रवनो अभाव थाय छे, आस्रवना अभावथी कर्म बंधातां नथी, कर्मना अभावथी शरीरादि नोकर्म उत्पन्न थतां नथी अने नोकर्मना अभावथी संसारनो अभाव थाय छे.आ प्रमाणे संवरनो अनुक्रम जाणवो.

२९८