Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 2.

< Previous Page   Next Page >


Page 2 of 642
PDF/HTML Page 33 of 673

 

समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(अनुष्टुभ्)
अनन्तधर्मणस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः
अनेकान्तमयी मूर्तिर्नित्यमेव प्रकाशताम् ।।२।।
शब्द, अर्थ ने ज्ञानसमयत्रय आगम गाया,
काळ, मत, सिद्धांतभेदत्रय नाम बताव्या;
ते महीं आदि शुभ अर्थसमयकथनी सुणीए बहु,
अर्थसमयमां जीव नाम छे सार, सुणजो सहु;
ते महीं सार विणकर्ममळ शुद्ध जीव शुद्धनय कहे,
आ ग्रंथमां कथनी सहु, समयसार बुधजन ग्रहे. ४.
नामादिक षट् ग्रंथमुख, तेमां मंगळ सार;
विघ्नहरण, नास्तिकहरण, शिष्टाचार उच्चार. ५.
समयसार जिनराज छे, स्याद्वाद जिनवेण;
मुद्रा जिन निर्ग्रंथता, नमुं करे सहु चेन. ६.

आ प्रमाणे मंगळपूर्वक प्रतिज्ञा करीने श्री कुंदकुंद आचार्यकृत गाथाबद्ध समयप्राभृत ग्रंथनी श्री अमृतचंद्र आचार्यकृत आत्मख्याति नामनी जे संस्कृत टीका छे तेनी देशभाषामां वचनिका लखीए छीए.

प्रथम, संस्कृत टीकाकार श्री अमृतचंद्र आचार्य ग्रंथना आदिमां (पहेला श्लोक द्वारा) मंगळ अर्थे इष्टदेवने नमस्कार करे छे

श्लोकार्थः[नमः समयसाराय] ‘समय’ अर्थात् जीव नामनो पदार्थ, तेमां सार जे द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म रहित शुद्ध आत्मा, तेने मारो नमस्कार हो. ते केवो छे? [भावाय] शुद्ध सत्तास्वरूप वस्तु छे. आ विशेषणपदथी सर्वथा अभाववादी नास्तिकोनो मत खंडित थयो. वळी ते केवो छे? [चित्स्वभावाय] जेनो स्वभाव चेतनागुणरूप छे. आ विशेषणथी गुण-गुणीनो सर्वथा भेद माननार नैयायिकोनो निषेध थयो. वळी ते केवो छे? [स्वानुभूत्या चकासते] पोतानी ज अनुभवनरूप क्रियाथी प्रकाशे छे, अर्थात् पोताने पोताथी ज जाणे छेप्रगट करे छे. आ विशेषणथी, आत्माने तथा ज्ञानने सर्वथा परोक्ष ज माननार जैमिनीय-भट्ट-प्रभाकर भेदवाळा मीमांसकोना मतनो व्यवच्छेद थयो; तेम ज ज्ञान अन्य ज्ञानथी जाणी शकाय छे, पोते पोताने नथी जाणतुंएवुं माननार नैयायिकोनो पण प्रतिषेध थयो. वळी ते केवो छे? [सर्वभावान्तरच्छिदे] पोताथी अन्य सर्व जीवाजीव, चराचर पदार्थोने सर्व क्षेत्रकाळसंबंधी, सर्व विशेषणो सहित, एक ज समये जाणनारो छे. आ