Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 3.

< Previous Page   Next Page >


Page 3 of 642
PDF/HTML Page 34 of 673

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]

पूर्वरंग
(मालिनी)
परपरिणतिहेतोर्मोहनाम्नोऽनुभावा-
दविरतमनुभाव्यव्याप्तिकल्माषितायाः

विशेषणथी, सर्वज्ञनो अभाव माननार मीमांसक आदिनुं निराकरण थयुं. आ प्रकारनां विशेषणो (गुणो)थी शुद्ध आत्माने ज इष्टदेव सिद्ध करी तेने नमस्कार कर्यो छे.

भावार्थअहीं मंगळ अर्थे शुद्ध आत्माने नमस्कार कर्यो छे. कोई एम प्रश्न करे के कोई इष्टदेवनुं नाम लई नमस्कार केम न कर्यो? तेनुं समाधानःवास्तविकपणे इष्टदेवनुं सामान्य स्वरूप सर्वकर्मरहित, सर्वज्ञ, वीतराग, शुद्ध आत्मा ज छे तेथी आ अध्यात्मग्रंथमां समयसार कहेवाथी इष्टदेव आवी गया. तथा एक ज नाम लेवामां अन्यमतवादीओ मतपक्षनो विवाद करे छे ते सर्वनुं निराकरण, समयसारनां विशेषणो वर्णवीने, कर्युं. वळी अन्यवादीओ पोताना इष्टदेवनुं नाम ले छे तेमां इष्ट शब्दनो अर्थ घटतो नथी, बाधाओ आवे छे; अने स्याद्वादी जैनोने तो सर्वज्ञ वीतराग शुद्ध आत्मा ज इष्ट छे. पछी भले ते इष्टदेवने परमात्मा कहो, परमज्योति कहो, परमेश्वर, परब्रह्म, शिव, निरंजन, निष्कलंक, अक्षय, अव्यय, शुद्ध, बुद्ध, अविनाशी, अनुपम, अच्छेद्य, अभेद्य, परमपुरुष, निराबाध, सिद्ध, सत्यात्मा, चिदानंद, सर्वज्ञ, वीतराग, अर्हत्, जिन, आप्त, भगवान, समयसार इत्यादि हजारो नामोथी कहो; ते सर्व नामो कथंचित् सत्यार्थ छे. सर्वथा एकांतवादीओने भिन्न नामोमां विरोध छे, स्याद्वादीने कांई विरोध नथी. माटे अर्थ यथार्थ समजवो जोईए.

प्रगटे निज अनुभव करे, सत्ता चेतनरूप;
सौ-ज्ञाता लखीने नमुं, समयसार सहु-भूप. १.

हवे (बीजा श्लोकमां) सरस्वतीने नमस्कार करे छेः

श्लोकार्थः[अनेकान्तमयी मूर्तिः] जेमां अनेक अंत (धर्म) छे एवुं जे ज्ञान तथा वचन ते-मय मूर्ति [नित्यम् एव] सदाय [प्रकाशताम्] प्रकाशरूप हो. केवी छे ते मूर्ति? [अनन्तधर्मणः प्रत्यगात्मनः तत्त्वं] जे अनंत धर्मवाळो छे अने जे परद्रव्योथी ने परद्रव्यना गुणपर्यायोथी भिन्न तथा परद्रव्यना निमित्तथी थता पोताना विकारोथी कथंचित् भिन्न एकाकार छे एवा आत्माना तत्त्वने, अर्थात् असाधारणसजातीय विजातीय द्रव्योथी विलक्षणनिजस्वरूपने, [पश्यन्ती] ते मूर्ति अवलोकन करे छेदेखे छे.

भावार्थःअहीं सरस्वतीनी मूर्तिने आशीर्वचनरूप नमस्कार कर्यो छे. लौकिकमां जे