Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 4 of 642
PDF/HTML Page 35 of 673

 

समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
मम परमविशुद्धिः शुद्धचिन्मात्रमूर्ते-
र्भवतु समयसारव्याख्ययैवानुभूतेः
।।३।।

सरस्वतीनी मूर्ति प्रसिद्ध छे ते यथार्थ नथी तेथी अहीं तेनुं यथार्थ वर्णन कर्युं छे. जे सम्यग्ज्ञान छे ते ज सरस्वतीनी सत्यार्थ मूर्ति छे. तेमां पण संपूर्ण ज्ञान तो केवळज्ञान छे के जेमां सर्व पदार्थो प्रत्यक्ष भासे छे. ते अनंत धर्मो सहित आत्मतत्त्वने प्रत्यक्ष देखे छे तेथी ते सरस्वतीनी मूर्ति छे. तदनुसार जे श्रुतज्ञान छे ते आत्मतत्त्वने परोक्ष देखे छे तेथी ते पण सरस्वतीनी मूर्ति छे. वळी द्रव्यश्रुत वचनरूप छे ते पण तेनी मूर्ति छे, कारण के वचनो द्वारा अनेक धर्मवाळा आत्माने ते बतावे छे. आ रीते सर्व पदार्थोनां तत्त्वने जणावनारी ज्ञानरूप तथा वचनरूप अनेकांतमयी सरस्वतीनी मूर्ति छे; तेथी सरस्वतीनां नाम ‘वाणी, भारती, शारदा, वाग्देवी’ इत्यादि घणां कहेवामां आवे छे. आ सरस्वतीनी मूर्ति अनंत धर्मोने ‘स्यात्पदथी एक धर्मीमां अविरोधपणे साधे छे तेथी ते सत्यार्थ छे. केटलाक अन्यवादीओ सरस्वतीनी मूर्तिने बीजी रीते स्थापे छे पण ते पदार्थने सत्यार्थ कहेनारी नथी.

कोई प्रश्न करे के आत्माने अनंत धर्मवाळो कह्यो छे तो तेमां अनंत धर्मो कया कया छे? तेनो उत्तरःवस्तुमां सत्पणुं, वस्तुपणुं, प्रमेयपणुं, प्रदेशपणुं, चेतनपणुं, अचेतनपणुं, मूर्तिकपणुं, अमूर्तिकपणुं इत्यादि (धर्म) तो गुण छे; अने ते गुणोनुं त्रणे काळे समय-समयवर्ती परिणमन थवुं ते पर्याय छेजे अनंत छे. वळी वस्तुमां एकपणुं, अनेकपणुं, नित्यपणुं, अनित्यपणुं, भेदपणुं, अभेदपणुं, शुद्धपणुं, अशुद्धपणुं आदि अनेक धर्म छे. ते सामान्यरूप धर्मो तो वचनगोचर छे पण बीजा विशेषरूप धर्मो जेओ वचननो विषय नथी एवा पण अनंत धर्मो छेजे ज्ञानगम्य छे. आत्मा पण वस्तु छे तेथी तेमां पण पोताना अनंत धर्मो छे.

आत्माना अनंत धर्मोमां चेतनपणुं असाधारण धर्म छे, बीजां अचेतन द्रव्योमां नथी. सजातीय जीवद्रव्यो अनंत छे तेमनामांय जोके चेतनपणुं छे तोपण सौनुं चेतनपणुं निज स्वरूपे जुदुं जुदुं कह्युं छे कारण के दरेक द्रव्यने प्रदेशभेद होवाथी कोईनुं कोईमां भळतुं नथी. आ चेतनपणुं पोताना अनंत धर्मोमां व्यापक छे तेथी तेने आत्मानुं तत्त्व कह्युं छे. तेने आ सरस्वतीनी मूर्ति देखे छे अने देखाडे छे. ए रीते एनाथी सर्व प्राणीओनुं कल्याण थाय छे माटे ‘सदा प्रकाशरूप रहो’ एवुं आशीर्वादरूप वचन तेने कह्युं छे. २.

हवे (त्रीजा श्लोकमां) टीकाकार आ ग्रंथनुं व्याख्यान करवाना फळने चाहतां प्रतिज्ञा करे छे

श्लोकार्थश्रीमान् अमृतचंद्र आचार्य कहे छे के[समयसारव्याख्यया एव] समयसार(शुद्धात्मा तथा ग्रंथ)नी व्याख्या(कथनी तथा टीका)थी ज [मम अनुभूतेः] मारी