Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 1.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

पूर्वरंग
अथ सूत्रावतार :
वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गदिं पत्ते
वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुदकेवलीभणिदं ।।१।।
वन्दित्वा सर्वसिद्धान् ध्रुवामचलामनौपम्यां गतिं प्राप्तान्
वक्ष्यामि समयप्राभृतमिदं अहो श्रुतकेवलिभणितम् ।।१।।

अनुभूतिनी अर्थात् अनुभवनरूप परिणतिनी [परमविशुद्धिः] परम विशुद्धि (समस्त रागादि विभावपरिणति रहित उत्कृष्ट निर्मळता) [भवतु] थाओ. केवी छे ते परिणति? [परपरिणतिहेतोः मोहनाम्नः अनुभावात्] परपरिणतिनुं कारण जे मोह नामनुं कर्म तेना अनुभाव(-उदयरूप विपाक)ने लीधे [अविरतम् अनुभाव्य-व्याप्ति-कल्माषितायाः] जे अनुभाव्य(रागादि परिणामो)नी व्याप्ति छे तेनाथी निरंतर कल्माषित (मेली) छे. अने हुं केवो छुं? [शुद्धचिन्मात्रमूर्तेः] द्रव्यद्रष्टिथी शुद्ध चैतन्यमात्र मूर्ति छुं.

भावार्थआचार्य कहे छे के शुद्धद्रव्यार्थिक नयनी द्रष्टिए तो हुं शुद्ध चैतन्यमात्र मूर्ति छुं. परंतु मारी परिणति मोहकर्मना उदयनुं निमित्त पामीने मेली छेरागादिस्वरूप थई रही छे. तेथी शुद्ध आत्मानी कथनीरूप जे आ समयसार ग्रंथ छे तेनी टीका करवानुं फळ ए चाहुं छुं के मारी परिणति रागादि रहित थई शुद्ध थाओ, मारा शुद्ध स्वरूपनी प्राप्ति थाओ. बीजुं कांई पणख्याति, लाभ, पूजादिकचाहतो नथी. आ प्रकारे आचार्ये टीका करवानी प्रतिज्ञागर्भित एना फळनी प्रार्थना करी. ३.

हवे मूळगाथासूत्रकार श्री कुंदकुंदाचार्य ग्रंथना आदिमां मंगळपूर्वक प्रतिज्ञा करे छे

(हरिगीत)
ध्रुव, अचल ने अनुपम गति पामेल सर्वे सिद्धने
वंदी कहुं श्रुतकेवळी-भाषित आ समयप्राभृत अहो! १.

गाथार्थआचार्य कहे छेः हुं [ध्रुवाम्] ध्रुव, [अचलाम्] अचळ अने [अनौपम्यां] अनुपमए त्रण विशेषणोथी युक्त [गतिं] गतिने [प्राप्तान्] प्राप्त थयेल एवा [सर्वसिद्धान्] सर्व सिद्धोने [वन्दित्वा] नमस्कार करी, [अहो] अहो! [श्रुतकेवलिभणितम्] श्रुतकेवळीओए कहेला [इदं][समयप्राभृतम्] समयसार नामना प्राभृतने [वक्ष्यामि] कहीश.