कहानजैनशास्त्रमाळा ]
समूहनो विलय थयो, रागना समूहनो विलय करवाथी [ कर्मणां संवरेण ] कर्मनो संवर थयो अने कर्मनो संवर थवाथी, [ ज्ञाने नियतम् एतत् ज्ञानं उदितं ] ज्ञानमां ज निश्चळ थयेलुं एवुं आ ज्ञान उदय पाम्युं — [ बिभ्रत् परमम् तोषं ] के जे ज्ञान परम संतोषने (अर्थात् परम अतींद्रिय आनंदने) धारण करे छे, [ अमल-आलोकम् ] जेनो प्रकाश निर्मळ छे (अर्थात् रागादिकने लीधे मलिनता हती ते हवे नथी), [ अम्लानम् ] जे अम्लान छे (अर्थात् क्षायोपशमिक ज्ञाननी माफक करमायेलुं – निर्बळ नथी, सर्व लोकालोकने जाणनारुं छे), [ एकं ] जे एक छे (अर्थात् क्षयोपशमथी भेद हता ते हवे नथी) अने [ शाश्वत-उद्योतम् ] जेनो उद्योत शाश्वत छे (अर्थात् जेनो प्रकाश अविनश्वर छे). १३२.
नृत्य करी बहार नीकळी गयो.
राग-द्वेष-विमोह सबही गलि जाय इमै दुठ कर्म रुकाही;
उज्ज्वल ज्ञान प्रकाश करै बहु तोष धरै परमातममाही,
यों मुनिराज भली विधि धारत केवल पाय सुखी शिव जाहीं.
आम श्री समयसारनी (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत श्री समयसार परमागमनी) श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामनी टीकामां संवरनो प्ररूपक पांचमो अंक समाप्त थयो.