Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 160.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३५५
(शार्दूलविक्रीडित)
एकं ज्ञानमनाद्यनन्तमचलं सिद्धं किलैतत्स्वतो
यावत्तावदिदं सदैव हि भवेन्नात्र द्वितीयोदयः
तन्नाकस्मिकमत्र किञ्चन भवेत्तद्भीः कुतो ज्ञानिनो
निश्शङ्कः सततं स्वयं स सहजं ज्ञानं सदा विन्दति
।।१६०।।

तो निःशंक वर्ततो थको पोताना ज्ञानस्वरूपने निरंतर अनुभवे छे. १५९.

हवे आकस्मिकभयनुं काव्य कहे छेः

श्लोकार्थः[एतत् स्वतः सिद्धं ज्ञानम् किल एकं] आ स्वतःसिद्ध ज्ञान एक छे, [अनादि] अनादि छे, [अनन्तम्] अनंत छे, [अचलं] अचळ छे. [इदं यावत् तावत् सदा एव हि भवेत्] ते ज्यां सुधी छे त्यां सुधी सदाय ते ज छे, [अत्र द्वितीयोदयः न] तेमां बीजानो उदय नथी. [तत्] माटे [अत्र आकस्मिकम् किञ्चन न भवेत्] आ ज्ञानमां आकस्मिक (अणधार्युं, एकाएक) कांई पण थतुं नथी. [ज्ञानिनः तद्-भीः कुतः] आवुं जाणता ज्ञानीने अकस्मातनो भय क्यांथी होय? [सः स्वयं सततं निश्शङ्कः सहजं ज्ञानं सदा विन्दति] ते तो पोते निरंतर निःशंक वर्ततो थको सहज ज्ञानने सदा अनुभवे छे.

भावार्थः‘कांई अणधार्युं अनिष्ट एकाएक उत्पन्न थशे तो?’ एवो भय रहे ते आकस्मिकभय छे. ज्ञानी जाणे छे केआत्मानुं ज्ञान पोताथी ज सिद्ध, अनादि, अनंत, अचळ, एक छे. तेमां बीजुं कांई उत्पन्न थई शकतुं नथी; माटे तेमां अणधार्युं कांई पण क्यांथी थाय अर्थात् अकस्मात क्यांथी बने? आवुं जाणता ज्ञानीने अकस्मातनो भय होतो नथी, ते तो निःशंक वर्ततो थको पोताना ज्ञानभावने निरंतर अनुभवे छे.

आ रीते ज्ञानीने सात भय होता नथी. प्रश्नःअविरतसम्यग्द्रष्टि आदिने पण ज्ञानी कह्या छे अने तेमने तो भयप्रकृतिनो उदय होय छे तथा तेना निमित्ते तेमने भय थतो पण जोवामां आवे छे; तो पछी ज्ञानी निर्भय कई रीते छे?

समाधानःभयप्रकृतिना उदयना निमित्तथी ज्ञानीने भय ऊपजे छे. वळी अंतरायना प्रबळ उदयथी निर्बळ होवाने लीधे ते भयनी पीडा नहि सही शकवाथी ज्ञानी ते भयनो इलाज पण करे छे. परंतु तेने एवो भय होतो नथी के जेथी जीव स्वरूपनां ज्ञानश्रद्धानथी च्युत थाय. वळी जे भय ऊपजे छे ते मोहकर्मनी भय नामनी प्रकृतिनो दोष छे; तेनो पोते