Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 230.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३५७
यश्चतुरोऽपि पादान् छिनत्ति तान् कर्मबन्धमोहकरान्
स निश्शङ्कश्चेतयिता सम्यग्द्रष्टिर्ज्ञातव्यः ।।२२९।।

यतो हि सम्यग्द्रष्टिः टङ्कोत्कीर्णैकज्ञायकभावमयत्वेन कर्मबन्धशङ्काकरमिथ्यात्वादि- भावाभावान्निश्शङ्कः, ततोऽस्य शङ्काकृतो नास्ति बन्धः, किन्तु निर्जर्रैव

जो दु ण करेदि कंखं कम्मफलेसु तह सव्वधम्मेसु
सो णिक्कंखो चेदा सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो ।।२३०।।
यस्तु न करोति कांक्षां कर्मफलेषु तथा सर्वधर्मेषु
स निष्कांक्षश्चेतयिता सम्यग्द्रष्टिर्ज्ञातव्यः ।।२३०।।

गाथार्थः[यः चेतयिता] जे *चेतयिता, [कर्मबन्धमोहकरान्] कर्मबंध संबंधी मोह करनारा (अर्थात् जीव निश्चयथी कर्म वडे बंधायो छे एवो भ्रम करनारा) [तान् चतुरः अपि पादान्] मिथ्यात्वादि भावोरूप चारे पायाने [छिनत्ति] छेदे छे, [सः] ते [निश्शङ्कः] निःशंक [सम्यग्द्रष्टिः] सम्यग्द्रष्टि [ज्ञातव्यः] जाणवो.

टीकाःकारण के सम्यग्द्रष्टि, टंकोत्कीर्ण एवा एक ज्ञायकभावमयपणाने लीधे कर्मबंध संबंधी शंका करनारा (अर्थात् जीव निश्चयथी कर्म वडे बंधायो छे एवो संदेह अथवा भय करनारा) मिथ्यात्वादि भावोनो (तेने) अभाव होवाथी, निःशंक छे तेथी तेने शंकाकृत बंध नथी परंतु निर्जरा ज छे.

भावार्थःसम्यग्द्रष्टिने जे कर्मनो उदय आवे छे तेनो ते, स्वामित्वना अभावने लीधे, कर्ता थतो नथी. माटे भयप्रकृतिनो उदय आवतां छतां पण सम्यग्द्रष्टि जीव निःशंक रहे छे, स्वरूपथी च्युत थतो नथी. आम होवाथी तेने शंकाकृत बंध थतो नथी, कर्म रस आपीने खरी जाय छे.

हवे निःकांक्षित गुणनी गाथा कहे छेः

जे कर्मफळ ने सर्व धर्म तणी न कांक्षा राखतो,
चिन्मूर्ति ते कांक्षारहित समकितद्रष्टि जाणवो. २३०.

गाथार्थः[यः चेतयिता] जे चेतयिता [कर्मफलेषु] कर्मोनां फळो प्रत्ये [तथा] तथा

* चेतयिता = चेतनार; जाणनार-देखनार; आत्मा.