Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 231.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

यतो हि सम्यग्दृष्टिः टङ्कोत्कीर्णैकज्ञायकभावमयत्वेन सर्वेष्वपि कर्मफलेषु सर्वेषु वस्तुधर्मेषु च कांक्षाभावान्निष्कांक्षः, ततोऽस्य कांक्षाकृतो नास्ति बन्धः, किन्तु निर्जर्रैव

जो ण करेदि दुगुंछं चेदा सव्वेसिमेव धम्माणं
सो खलु णिव्विदिगिच्छो सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो ।।२३१।।
यो न करोति जुगुप्सां चेतयिता सर्वेषामेव धर्माणाम्
स खलु निर्विचिकित्सः सम्यग्दृष्टिर्ज्ञातव्यः ।।२३१।।

यतो हि सम्यग्दृष्टिः टङ्कोत्कीर्णैकज्ञायकभावमयत्वेन सर्वेष्वपि वस्तुधर्मेषु जुगुप्सा- [सर्वधर्मेषु] सर्व धर्मो प्रत्ये [कांक्षां] कांक्षा [न तु करोति] करतो नथी [सः] ते [निष्कांक्षः सम्यग्दृष्टिः] निष्कांक्ष सम्यग्द्रष्टि [ज्ञातव्यः] जाणवो.

टीकाःकारण के सम्यग्द्रष्टि, टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभावमयपणाने लीधे बधांय कर्म- फळो प्रत्ये तथा बधा वस्तुधर्मो प्रत्ये कांक्षानो (तेने) अभाव होवाथी, निष्कांक्ष (निर्वांछक) छे, तेथी तेने कांक्षाकृत बंध नथी परंतु निर्जरा ज छे.

भावार्थःसम्यग्द्रष्टिने समस्त कर्मनां फळोनी वांछा नथी; वळी तेने सर्व धर्मोनी वांछा नथी, एटले के कनकपणुं, पाषाणपणुं वगेरे तेम ज निंदा, प्रशंसा आदिनां वचन वगेरे वस्तुधर्मोनी अर्थात् पुद्गलस्वभावोनी तेने वांछा नथीतेमना प्रत्ये समभाव छे, अथवा तो अन्यमतीओए मानेला अनेक प्रकारना सर्वथा एकांतपक्षी व्यवहारधर्मोनी तेने वांछा नथी ते धर्मोनो आदर नथी. आ रीते सम्यग्द्रष्टि वांछारहित होवाथी तेने वांछाथी थतो बंध नथी. वर्तमान पीडा सही शकाती नथी तेथी तेने मटाडवाना इलाजनी वांछा सम्यग्द्रष्टिने चारित्रमोहना उदयने लीधे होय छे, परंतु ते वांछानो कर्ता पोते थतो नथी, कर्मनो उदय जाणी तेनो ज्ञाता ज रहे छे; माटे वांछाकृत बंध तेने नथी.

हवे निर्विचिकित्सा गुणनी गाथा कहे छेः

सौ कोई धर्म विषे जुगुप्साभाव जे नहि धारतो,
चिन्मूर्ति निर्विचिकित्स समकितद्रष्टि निश्चय जाणवो. २३१.

गाथार्थः[यः चेतयिता] जे चेतयिता [सर्वेषाम् एव] बधाय [धर्माणाम्] धर्मो (वस्तुना स्वभावो) प्रत्ये [जुगुप्सां] जुगुप्सा (ग्लानि) [न करोति] करतो नथी [सः] ते [खलु] निश्चयथी [निर्विचिकित्सः] निर्विचिकित्स (विचिकित्सादोष रहित) [सम्यग्दृष्टिः] सम्यग्द्रष्टि [ज्ञातव्यः] जाणवो.

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