कहानजैनशास्त्रमाळा ]
निर्जरा अधिकार
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इति श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायामात्मख्यातौ निर्जराप्ररूपकः षष्ठोऽङ्कः ।।
सम्यकवंत महंत सदा समभाव रहै दुःख संकट आये,
कर्म नवीन बंधै न तबै अर पूरव बंध झडै विन भाये;
पूरण अंग सुदर्शनरूप धरै नित ज्ञान बढै निज पाये,
यों शिवमारग साधि निरंतर आनंदरूप निजातम थाये.
कर्म नवीन बंधै न तबै अर पूरव बंध झडै विन भाये;
पूरण अंग सुदर्शनरूप धरै नित ज्ञान बढै निज पाये,
यों शिवमारग साधि निरंतर आनंदरूप निजातम थाये.
आम श्री समयसारनी (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत श्री समयसार परमागमनी) श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामनी टीकामां निर्जरानो प्ररूपक छठ्ठो अंक समाप्त थयो.
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