प्रश्नः — सम्यग्द्रष्टिने निर्जरा थाय छे, बंध थतो नथी एम तमे कहेता आव्या छो. परंतु सिद्धांतमां गुणस्थानोनी परिपाटीमां अविरत सम्यग्द्रष्टि वगेरेने बंध कहेवामां आव्यो छे. वळी घातिकर्मोनुं कार्य आत्माना गुणोनो घात करवानुं छे तेथी दर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य — ए गुणोनो घात पण विद्यमान छे. चारित्रमोहनो उदय नवीन बंध पण करे छे. जो मोहना उदयमां पण बंध न मानवामां आवे तो तो मिथ्याद्रष्टिने मिथ्यात्व -अनंतानुबंधीनो उदय होवा छतां बंध नथी एम पण केम न मनाय?
समाधानः — बंध थवामां मुख्य कारण मिथ्यात्व-अनंतानुबंधीनो उदय ज छे; अने सम्यग्द्रष्टिने तो तेमना उदयनो अभाव छे. चारित्रमोहना उदयथी जोके सुखगुणनो घात छे तथा मिथ्यात्व-अनंतानुबंधी सिवाय अने तेमनी साथे रहेनारी अन्य प्रकृतिओ सिवाय बाकीनी घातिकर्मोनी प्रकृतिओनो अल्प स्थिति-अनुभागवाळो बंध तेम ज बाकीनी अघातिकर्मोनी प्रकृतिओनो बंध थाय छे, तोपण जेवो मिथ्यात्व-अनंतानुबंधी सहित थाय छे तेवो नथी थतो. अनंत संसारनुं कारण तो मिथ्यात्व-अनंतानुबंधी ज छे; तेमनो अभाव थया पछी तेमनो बंध थतो नथी; अने ज्यां आत्मा ज्ञानी थयो त्यां अन्य बंधनी कोण गणतरी करे? वृक्षनी जड कपाया पछी लीलां पांदडां रहेवानी अवधि केटली? माटे आ अध्यात्मशास्त्रमां सामान्यपणे ज्ञानी-अज्ञानी होवा विषे ज प्रधान कथन छे. ज्ञानी थया पछी जे कांई कर्म रह्यां होय ते सहज ज मटतां जवानां. नीचेना द्रष्टांत प्रमाणे ज्ञानीनुं समजवुं. कोई पुरुष दरिद्र होवाथी झूंपडीमां रहेतो हतो. तेने भाग्यना उदयथी धन सहित मोटा महेलनी प्राप्ति थई तेथी ते महेलमां रहेवा गयो. जोके ते महेलमां घणा दिवसनो कचरो भर्यो हतो तोपण जे दिवसे तेणे आवीने महेलमां प्रवेश कर्यो ते दिवसथी ज ते महेलनो धणी बनी गयो, संपदावान थई गयो. हवे कचरो झाडवानो छे ते अनुक्रमे पोताना बळ अनुसार झाडे छे. ज्यारे बधो कचरो झडाई जशे अने महेल उज्ज्वळ बनी जशे त्यारे ते परमानंद भोगवशे. आवी ज रीते ज्ञानीनुं जाणवुं. १६२.
टीकाः — आ प्रमाणे निर्जरा (रंगभूमिमांथी) बहार नीकळी गई.
भावार्थः — ए रीते, निर्जरा के जेणे रंगभूमिमां प्रवेश कर्यो हतो ते पोतानुं स्वरूप प्रगट बतावीने बहार नीकळी गई.
३६६