Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३६५
सम्यग्द्रष्टिः स्वयमतिरसादादिमध्यान्तमुक्तं
ज्ञानं भूत्वा नटति गगनाभोगरङ्गं विगाह्य ।।१६२।।

आ निःशंकित आदि आठ गुणो व्यवहारनये व्यवहारमोक्षमार्ग पर नीचे प्रमाणे लगाववाःजिनवचनमां संदेह न करवो, भय आव्ये व्यवहार दर्शन-ज्ञान-चारित्रथी डगवुं नहि, ते निःशंकितपणुं छे. १. संसार-देह-भोगनी वांछाथी तथा परमतनी वांछाथी व्यवहार- मोक्षमार्गथी डगवुं नहि ते निष्कांक्षितपणुं छे. २. अपवित्र, दुर्गंधवाळीएवी एवी वस्तुओना निमित्ते व्यवहारमोक्षमार्गनी प्रवृत्ति प्रत्ये ग्लानि न करवी ते निर्विचिकित्सा छे. ३. देव, गुरु, शास्त्र, लोकनी प्रवृत्ति, अन्यमतादिकना तत्त्वार्थनुं स्वरूपइत्यादिमां मूढता न राखवी, यथार्थ जाणी प्रवर्तवुं ते अमूढद्रष्टि छे. ४. धर्मात्मामां कर्मना उदयथी दोष आवी जाय तो तेने गौण करवो अने व्यवहारमोक्षमार्गनी प्रवृत्तिने वधारवी ते उपगूहन अथवा उपबृंहण छे. ५. व्यवहारमोक्षमार्गथी च्युत थता आत्माने स्थित करवो ते स्थितिकरण छे. ६. व्यवहार- मोक्षमार्गमां प्रवर्तनार पर विशेष अनुराग होवो ते वात्सल्य छे. ७. व्यवहारमोक्षमार्गनो अनेक उपायो वडे उद्योत करवो ते प्रभावना छे. ८. आ प्रमाणे आठे गुणोनुं स्वरूप व्यवहारनयने प्रधान करीने कह्युं. अहीं निश्चयप्रधान कथनमां ते व्यवहारस्वरूपनी गौणता छे. सम्यग्ज्ञानरूप प्रमाणद्रष्टिमां बन्ने प्रधान छे. स्याद्वादमतमां कांई विरोध नथी.

हवे, निर्जरानुं यथार्थ स्वरूप जाणनार अने कर्मना नवीन बंधने रोकी निर्जरा करनार जे सम्यग्द्रष्टि तेनो महिमा करी निर्जरा अधिकार पूर्ण करे छेः

श्लोकार्थः[इति नवम् बन्धं रुन्धन्] ए प्रमाणे नवीन बंधने रोकतो अने [निजैः अष्टाभिः अङ्गैः सङ्गतः निर्जरा-उज्जृम्भणेन प्राग्बद्धं तु क्षयम् उपनयम्] (पोते) पोतानां आठ अंगो सहित होवाना कारणे निर्जरा प्रगटवाथी पूर्वबद्ध कर्मोने नाश करी नाखतो [सम्यग्द्रष्टिः] सम्यग्द्रष्टि जीव [स्वयम्] पोते [अतिरसात्] अति रसथी (अर्थात् निजरसमां मस्त थयो थको) [आदि-मध्य-अन्तमुक्तं ज्ञानं भूत्वा] आदि-मध्य-अंत रहित (सर्वव्यापक, एकप्रवाहरूप धारावाही) ज्ञानरूप थईने [गगन-आभोग-रङ्गं विगाह्य] आकाशना विस्ताररूपी रंगभूमिमां अवगाहन करीने (अर्थात् ज्ञान वडे समस्त गगनमंडळमां व्यापीने) [नटति] नृत्य करे छे.

भावार्थःसम्यग्द्रष्टिने शंकादिकृत नवीन बंध तो थतो नथी अने पोते आठ अंगो सहित होवाने लीधे निर्जरानो उदय होवाथी तेने पूर्व बंधनो नाश थाय छे. तेथी ते धारावाही ज्ञानरूपी रसनुं पान करीने, जेम कोई पुरुष मद्य पीने मग्न थयो थको नृत्यना अखाडामां नृत्य करे तेम, निर्मळ आकाशरूपी रंगभूमिमां नृत्य करे छे.