Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 162.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(मन्दाक्रान्ता)
रुन्धन् बन्धं नवमिति निजैः सङ्गतोऽष्टाभिरङ्गैः
प्राग्बद्धं तु क्षयमुपनयन् निर्जरोज्जृम्भणेन

गुणो निर्जरानां कारण कह्या. एवी ज रीते अन्य पण सम्यक्त्वना गुणो निर्जरानां कारण जाणवा.

आ ग्रंथमां निश्चयनयप्रधान कथन होवाथी निःशंकित आदि गुणोनुं निश्चय स्वरूप (स्व-आश्रित स्वरूप) अहीं बताववामां आव्युं छे. तेनो संक्षेप (सारांश) आ प्रमाणे छे जे सम्यग्द्रष्टि आत्मा पोतानां ज्ञान-श्रद्धानमां निःशंक होय, भयना निमित्ते स्वरूपथी डगे नहि अथवा संदेहयुक्त न थाय, तेने निःशंकित गुण होय छे. १. जे कर्मनां फळनी वांछा न करे तथा अन्य वस्तुना धर्मोनी वांछा न करे, तेने निःकांक्षित गुण होय छे. २. जे वस्तुना धर्मो प्रत्ये ग्लानि न करे, तेने निर्विचिकित्सा गुण होय छे. ३. जे स्वरूपमां मूढ न होय, स्वरूपने यथार्थ जाणे, तेने अमूढद्रष्टि गुण होय छे. ४. जे आत्माने शुद्ध स्वरूपमां जोडे, आत्मानी शक्ति वधारे, अन्य धर्मोने गौण करे, तेने उपबृंहण अथवा उपगूहन गुण होय छे. ५. जे स्वरूपथी च्युत थता आत्माने स्वरूपमां स्थापे, तेने स्थितिकरण गुण होय छे. ६. जे पोताना स्वरूप प्रत्ये विशेष अनुराग राखे, तेने वात्सल्य गुण होय छे. ७. जे आत्माना ज्ञानगुणने प्रकाशित करेप्रगट करे, तेने प्रभावना गुण होय छे. ८. आ बधाय गुणो तेमना प्रतिपक्षी दोषो वडे जे कर्मबंध थतो हतो तेने थवा देता नथी. वळी आ गुणोना सद्भावमां, चारित्रमोहना उदयरूप शंकादि प्रवर्ते तोपण तेमनी (शंकादिनी) निर्जरा ज थई जाय छे, नवो बंध थतो नथी; कारण के बंध तो प्रधानताथी मिथ्यात्वनी हयातीमां ज कह्यो छे.

सिद्धांतमां गुणस्थानोनी परिपाटीमां चारित्रमोहना उदयनिमित्ते सम्यग्द्रष्टिने जे बंध कह्यो छे ते पण निर्जरारूप ज (निर्जरा समान ज) जाणवो कारण के सम्यग्द्रष्टिने जेम पूर्वे मिथ्यात्वना उदय वखते बंधायेलुं कर्म खरी जाय छे तेम नवीन बंधायेलुं कर्म पण खरी जाय छे; तेने ते कर्मना स्वामीपणानो अभाव होवाथी ते आगामी बंधरूप नथी, निर्जरारूप ज छे. जेवी रीतेकोई पुरुष परायुं द्रव्य उधार लावे तेमां तेने ममत्वबुद्धि नथी, वर्तमानमां ते द्रव्यथी कांई कार्य करी लेवुं होय ते करीने करार प्रमाणे नियत समये धणीने आपी दे छे; नियत समय आवतां सुधी ते द्रव्य पोताना घरमां पड्युं रहे तोपण ते प्रत्ये ममत्व नहि होवाथी ते पुरुषने ते द्रव्यनुं बंधन नथी, धणीने दई दीधा बराबर ज छे; तेवी ज रीते ज्ञानी कर्मद्रव्यने परायुं जाणतो होवाथी तेने ते प्रत्ये ममत्व नथी माटे ते मोजूद होवा छतां निर्जरी गया समान ज छे एम जाणवुं.

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