Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 236.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३६३
विज्जारहमारूढो मणोरहपहेसु भमइ जो चेदा
सो जिणणाणपहावी सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो ।।२३६।।
विद्यारथमारूढः मनोरथपथेषु भ्रमति यश्चेतयिता
स जिनज्ञानप्रभावी सम्यग्द्रष्टिर्ज्ञातव्यः ।।२३६।।

यतो हि सम्यग्द्रष्टिः, टङ्कोत्कीर्णैकज्ञायकभावमयत्वेन ज्ञानस्य समस्तशक्ति प्रबोधेन प्रभावजननात्प्रभावनाकरः, ततोऽस्य ज्ञानप्रभावनाऽप्रकर्षकृतो नास्ति बन्धः, किन्तु निर्जर्रैव

हवे प्रभावना गुणनी गाथा कहे छेः

चिन्मूर्ति मन-रथपंथमां विद्यारथारूढ घूमतो,
ते जिनज्ञानप्रभावकर समकितद्रष्टि जाणवो. २३६.

गाथार्थः[यः चेतयिता] जे चेतयिता [विद्यारथम् आरूढः] विद्यारूपी रथमां आरूढ थयो थको (चड्यो थको) [मनोरथपथेषु] मनरूपी रथ-पंथमां (अर्थात् ज्ञानरूपी जे रथने चालवानो मार्ग तेमां) [भ्रमति] भ्रमण करे छे, [सः] ते [जिनज्ञानप्रभावी] जिनेश्वरना ज्ञाननी प्रभावना करनारो [सम्यग्द्रष्टिः] सम्यग्द्रष्टि [ज्ञातव्यः] जाणवो.

टीकाःकारण के सम्यग्द्रष्टि, टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभावमयपणाने लीधे ज्ञाननी समस्त शक्तिने प्रगट करवाविकसाववाफेलाववा वडे प्रभाव उत्पन्न करतो होवाथी, प्रभावना करनार छे, तेथी तेने ज्ञाननी प्रभावनाना अप्रकर्षथी (अर्थात् ज्ञाननी प्रभावना नहि वधारवाथी) थतो बंध नथी परंतु निर्जरा ज छे.

भावार्थःप्रभावना एटले प्रगट करवुं, उद्योत करवो वगेरे; माटे जे पोताना ज्ञानने निरंतर अभ्यासथी प्रगट करे छेवधारे छे, तेने प्रभावना अंग होय छे. तेने अप्रभावनाकृत कर्मबंध नथी, कर्म रस दईने खरी जाय छे तेथी निर्जरा ज छे.

आ गाथामां निश्चयप्रभावनानुं स्वरूप कह्युं छे. जेम जिनबिंबने रथमां स्थापीने नगर, वन वगेरेमां फेरवी व्यवहारप्रभावना करवामां आवे छे, तेम जे विद्यारूपी (ज्ञानरूपी) रथमां आत्माने स्थापी मनरूपी (ज्ञानरूपी) मार्गमां भ्रमण करे ते ज्ञाननी प्रभावनायुक्त सम्यग्द्रष्टि छे, ते निश्चयप्रभावना करनार छे.

आ प्रमाणे उपरनी गाथाओमां सम्यग्द्रष्टि ज्ञानीने निःशंकित आदि आठ