Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 250-251.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
३८१
जो मण्णदि जीवेमि य जीविज्जामि य परेहिं सत्तेहिं
सो मूढो अण्णाणी णाणी एत्तो दु विवरीदो ।।२५०।।
यो मन्यते जीवयामि च जीव्ये च परैः सत्त्वैः
स मूढोऽज्ञानी ज्ञान्यतस्तु विपरीतः ।।२५०।।

परजीवानहं जीवयामि, परजीवैर्जीव्ये चाहमित्यध्यवसायो ध्रुवमज्ञानम् स तु यस्यास्ति सोऽज्ञानित्वान्मिथ्याद्रष्टिः, यस्य तु नास्ति स ज्ञानित्वात् सम्यग्द्रष्टिः

कथमयमध्यवसायोऽज्ञानमिति चेत्

आऊदयेण जीवदि जीवो एवं भणंति सव्वण्हू
आउं च ण देसि तुमं कहं तए जीविदं कदं तेसिं ।।२५१।।
जे मानतोहुं जिवाडुं ने पर जीव जिवाडे मुजने,
ते मूढ छे, अज्ञानी छे, विपरीत एथी ज्ञानी छे. २५०.

गाथार्थः[यः] जे जीव [मन्यते] एम माने छे के [जीवयामि] हुं पर जीवोने जिवाडुं छुं [च] अने [परैः सत्त्वैः] पर जीवो [जीव्ये च] मने जिवाडे छे, [सः] ते [मूढः] मूढ (मोही) छे, [अज्ञानी] अज्ञानी छे, [तु] अने [अतः विपरीतः] आनाथी विपरीत (अर्थात् जे आवुं नथी मानतो, आनाथी ऊलटुं माने छे) ते [ज्ञानी] ज्ञानी छे.

टीकाः‘पर जीवोने हुं जिवाडुं छुं अने पर जीवो मने जिवाडे छे’ एवो अध्यवसाय ध्रुवपणे (अत्यंत चोक्कस) अज्ञान छे. ते अध्यवसाय जेने छे ते जीव अज्ञानीपणाने लीधे मिथ्याद्रष्टि छे; अने जेने ते अध्यवसाय नथी ते जीव ज्ञानीपणाने लीधे सम्यग्द्रष्टि छे.

भावार्थः‘पर मने जिवाडे छे अने हुं परने जिवाडुं छुं’ एम मानवुं ते अज्ञान छे. जेने ए अज्ञान छे ते मिथ्याद्रष्टि छे; जेने ए अज्ञान नथी ते सम्यग्द्रष्टि छे.

हवे पूछे छे के आ (जीवननो) अध्यवसाय अज्ञान कई रीते छे? तेनो उत्तर कहे छेः

छे आयु-उदये जीवन जीवनुं एम सर्वज्ञे कह्युं,
तुं आयु तो देतो नथी, तें जीवन क्यम तेनुं कर्युं? २५१.