Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 273.

< Previous Page   Next Page >


Page 405 of 642
PDF/HTML Page 436 of 673

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]

बंध अधिकार
४०५

पराश्रितत्वाविशेषात् प्रतिषेध्य एव चायं, आत्माश्रितनिश्चयनयाश्रितानामेव मुच्यमानत्वात्, पराश्रितव्यवहारनयस्यैकान्तेनामुच्यमानेनाभव्येनाप्याश्रीयमाणत्वाच्च

कथमभव्येनाप्याश्रीयते व्यवहारनयः इति चेत्
वदसमिदीगुत्तीओ सीलतवं जिणवरेहि पण्णत्तं
कुव्वंतो वि अभव्वो अण्णाणी मिच्छदिट्ठी दु ।।२७३।।
व्रतसमितिगुप्तयः शीलतपो जिनवरैः प्रज्ञप्तम्
कुर्वन्नप्यभव्योऽज्ञानी मिथ्याद्रष्टिस्तु ।।२७३।।

छे, कारण के व्यवहारनयने पण पराश्रितपणुं समान ज छे (जेम अध्यवसान पराश्रित छे तेम व्यवहारनय पण पराश्रित छे, तेमां तफावत नथी). अने आ व्यवहारनय ए रीते निषेधवा- योग्य ज छे; कारण के आत्माश्रित निश्चयनयनो आश्रय करनाराओ ज (कर्मथी) मुक्त थाय छे अने पराश्रित व्यवहारनयनो आश्रय तो एकांते नहि मुक्त थतो एवो अभव्य पण करे छे.

भावार्थःआत्माने परना निमित्तथी जे अनेक भावो थाय छे ते बधा व्यवहारनयना विषय होवाथी व्यवहारनय तो पराश्रित छे, अने जे एक पोतानो स्वाभाविक भाव छे ते ज निश्चयनयनो विषय होवाथी निश्चयनय आत्माश्रित छे. अध्यवसान पण व्यवहारनयनो ज विषय छे तेथी अध्यवसाननो त्याग ते व्यवहारनयनो ज त्याग छे, अने पहेलांनी गाथाओमां अध्यवसानना त्यागनो उपदेश छे ते व्यवहारनयना ज त्यागनो उपदेश छे. आ प्रमाणे निश्चयनयने प्रधान करीने व्यवहारनयना त्यागनो उपदेश कर्यो छे तेनुं कारण ए छे केजेओ निश्चयना आश्रये प्रवर्ते छे तेओ ज कर्मथी छूटे छे अने जेओ एकांते व्यवहारनयना ज आश्रये प्रवर्ते छे तेओ कर्मथी कदी छूटता नथी.

हवे पूछे छे के अभव्य जीव पण व्यवहारनयनो कई रीते आश्रय करे छे? तेनो उत्तर कहे छेः

जिनवरकहेलां व्रत, समिति, गुप्ति वळी तप-शीलने
करतां छतांय अभव्य जीव अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि छे. २७३.

गाथार्थः[जिनवरैः] जिनवरोए [प्रज्ञप्तम्] कहेलां [व्रतसमितिगुप्तयः] व्रत, समिति, गुप्ति, [शीलतपः] शील, तप [कुर्वन् अपि] करतां छतां पण [अभव्यः] अभव्य जीव